Friday 7 May 2021

पंख (व्यंग्य)- हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

 पंख (व्यंग्य)-

हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

          खोर म कुछ चिरई चिरगुन ला धीरे धीरे रेंगत देखेंव त थोकिन अचरज कस लागिस । गाड़ी मोटर आये ले कुछ चिरई चिरगुन मन चपकाके मरगे फेर कन्हो उड़ियइन निही । चिरई मन के दुर्दशा देख के मन थोकिन व्याकुल होगिस । तिर म जाके पूछे के सोंचेंव । तिर म गेंव घला ... फेर मोर भाखा ला ओमन काला समझही ... ? मानलो ... ओमन समझगे अऊ जवाब दिस तब ... में उंकर भाखा ला का समझहूं ... ? तभो ले पूछे के हिम्मत करेंव । एक ठिन चिरई उल्टा मुहीं ला पूछे लगिस – चुनाव लकठियागे हे का बाबू ... ? मोरे कस अवाज सुनके दंग रहि गेंव अऊ सन खाके पटवा म दत गेंव ... । में केहेंव – चुनाव मुनाव नइ आहे जी .... । में तूमन ला केवल इही पूछे बर आये हंव .... के तूमन गाड़ी मोटर म चपका के ढोर डांगर कस काबर मरत हव .... उड़िहातेव निही गा .... ? सियान चिरई किथे – उड़िहा सकतेन त काबर नइ उड़िहातेन बाबू .... ? हमर तिर पंख कहां हे तेमा ... ? में हाँसेव ... तुंहर पंख कहां गे तेमा ... ? चिरई किथे – हमर पंख ला लेगके ... नान नान हुर्रा कोलिहा से लेके बड़े बड़े छत्रप बघवा मन उड़िहाथे जी । में हाँसत केहेंव – बघवा मन उड़िहाही तेमा ? बड़ अलकरहा गोठियाथव । चिरई किथे – हमर पंख म अतेक ताकत हे के ... पूरा जंगल एक संघरा उड़िहा सकत हे ।  

          में पूछेंव – तब असन म .... पंख ला कन्हो ला काबर लेगन देथव तूमन ... अऊ पंख ला जबरदस्ती कन्हो लेगिचगे त तुंहंर तिर गोड़ निये का .... तेमा रेंगे नइ सकत हव .... ? चिरई मन किथे – हमन ला पांच बछर तक मुफ्त के राशन बांटे के योजना बनाके .... हमन ला अकर्मन्य बनाके हमर हांथ गोड़ म जंग लगा देथव .... हमर हांथ अऊ गोड़ हा बिगन काम करे अइलाके लरघिया जथे ... त हमर हांथ गोड़ का चलही ..... ओमा कुछ ताकत नइ बांचे .... तब कइसे रेंग डरबो । रिहीस बात उड़े के ..... हमर देंहे म .... पांच बछर म एक बेर पंख जामथे ..... फेर का करबे नानुक लोभ म परके बेंच पारथन ..... उही पंख के जोर म कुछ बघवा मन दिल्ली म , कुछ मन बंगाल म अऊ कुछ मन केरल म .... कुछ मन गुजरात म .... त कुछ मन .... असम म उड़त मेछरावत रहिथे । 

          मोर मन म एक सवाल उपजगे । में पूछेंव – मोला तूमन चुनाव लकठियागे हे का .... अइसे काबर केहेव अऊ तूमन मोर बात ला कइसे समझ गेव ... ? चिरई किथे – चुनाव लकठियाथे तब हमर तिर मोहलो मोहलो करइया के संख्या बाढ़ जथे ..... हमर हाल चाल पुछइया के उदुपले वृद्धि हो जथे .... तुंहर आये ले हमन उही समझेन ... । रिहीस बात , तुंहर बात समझे के .... तुंहर बात ला तो हमन सबर दिन समझथन .... फेर हमर बात ला तहूंमन समझ गेव .... एकर मतलबे इही आय के , चुनाव बिल्कुल ठंई म आगे हे .... ।   

          में समझ गेंव के येमन जनता चिरई आय ..... जेमन पांच बछर म एक बेर जामे ... अपन पंख ला बेंचके गंवा डरथे अऊ दूसर ला उड़हाये के मजा दे देथे । 

हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

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