Tuesday 11 May 2021

गुरु घासीदास जी अउ छत्तीसगढ़

 

गुरु घासीदास जी अउ छत्तीसगढ़


 जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: सन्त गुरु घासीदास अउ छत्तीसगढ़


                       "मनखे मनखे एक कहिके"  मानुष मन ल एक धागा म पिरोइया, संत गुरु घासीदास के पावन पग चिन्ह पाके हमर छत्तीसगढ़ धन्य हे। जब समाज म ऊँच नीच अउ छुवाछुत चरम सीमा म रहिस, ते समय हमर राज के  बलोदाबाजार जिला के गिरौदपुरी नाम के गाँव म महगू दास अउ माता अमरौतिन के कोरा म दीन दुखिया मनके सहारा बनके, 18 दिसम्बर सन 1756 म, सन्त घासीदास जी प्रगट होइस। गुरु घासीदास जी मानुष समाज म फइले बुराई ल देख के बहुत दुखी होइस। बलौदा बाजार जिला के छाता पहाड़ म औरा धौरा पेड़ तरी अखण्ड साधना म लीन होके, सदज्ञान पाके, अपन जिनगी ल संत घासीदास जी ह दीन हीन मनके नाम करदिस। चोरी, मद्यपान, अंधविश्वास, व्यभिचारी, झूठ अउ जीव हत्या जइसन समाज म व्याप्त सबे बुराई ल घासीदास जी दुरिहाय के प्रण लिस अउ समाज सेवा म सतत लग गे। घासीदास जी के सतुपदेश के मनखे मन म अतका प्रभाव पड़िस कि, एक नवा पंथ सतनाम पंथ, वो बेरा ले चले ल लगिस। अउ आजो घलो छत्तीसगढ़ के कोना कोना म सतनाम पंथ चलत हे। 

                          संत घासीदास जी के उपदेश हमर महतारी भाषा छत्तीसगढ़ी म रहय, जेखर कारण जनमानस के अन्तस् म जस के तस समा जावव। गुरु घासीदास जी हमर छत्तीसगढ़ के आन बान शान आय। हमर छत्तीसगढ़ म भारी संख्या म सतनाम समाज उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम चारो दिशा म विद्यमान हे। करमा सुवा ददरिया कस पंथी(गुरुमहिमा ज्ञान) घलो हमर लोक नृत्य आय। पंथी नृत्य म कई कलाकार मन सन्त घासीदास जी के महिमा गान न सिर्फ भारत बल्कि विदेश म घलो कर चुके हे। जेमा स्व मोहनदास बंजारे जी के नाम पहली पंक्ति म आथे। 

                       वइसे तो हर शहर गाँव गली म सन्त घासीदास जी के पावन स्तम्भ जैत खाम रिहिथे, फेर गिरौदपुरी म बने बड़ ऊँच जैत खाम न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि हमर भारत देश के धरोहर आय। छत्तीसगढ़ अउ गुरु घासीदास जी के बात जब होथे, त हमर बिलासपुर जिला म बने क्रेंदीय विश्वविद्यालय नजर आघू झूल जथे।  छत्तीसगढ़ सरकार संत घासीदास जी के नाम म हर बछर पुरुस्कार घलो देथे। गुरु घासीदास जी छत्तीगढ़िया मनके अन्तस् म बसथे, तभो घर, गाँव गली खोर के नाम तको बाबा जी के सतविचार ल अन्तस् म जगा देथे। 

                        हमर राज के गिरौदपुरी, छाता पहाड़, भंडारपुरी, तेलासी पुरी, खपरीपुरी आदि सतनाम पंथ के पावन तीर्थ  आजो मनखे मन ल आकर्षित करथें। संत घासीदास जी सतनाम पंथ के प्रथम गुरु होइस। आजो बाबा जी के वंशज अउ  गुरु परम्परा शुशोभित हे। बालक दास जी महराज, अगम दास जी महराज अउ मिनीमाता जइसे कई महान विभूति बाबा जी के ही वंशज आय, जिंखर ऊपर हम सब छत्तीगढ़िया मन ल गर्व हे।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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 अजय अमृतांसु: *छत्तीसगढ़ अउ संत गुरु घासीदास*


           छत्तीसगढ़ म छत्तीसगढ़ी म संदेश देने वाला एक मात्र महान संत बाबा गुरु घासीदास रहिन। आपके जन्मभूमि अउ कर्मभूमि दूनो छत्तीसगढ़ रहिस। महान संत मन कोनो विशेष जाति या धर्म के नइ होवय अउ न ही ओकर उपदेश कोनो विशेष वर्ग के लिये होवय। उन तो विश्व कल्याण खातिर अवतरित होथे। उँकर बानी वचन घलो विश्व कल्याण बर होथे। येकर सेती बाबा ल हम केवल सतनामी समाज के दायरा म बाँध के नइ रख सकन। 

          सतनाम पंथ के संस्थापक गुरु घासीदास जी अइसन समय म अवतरित होइन जब देश मा सामाजिक व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गे रहिस। छुआछूत अउ वर्ण भेद समाज म कोढ़ बन के फैल गे रहिस। झूठ, कपट, फरेब समाज ला घुन बनके चगलत रहिस। समाज म गरीब अमीर, जाति म ऊँच-नीच के रेखा खीँचागे रहिस। अइसन बेरा म बाबा घासीदास जी कहिन- 

     *मनखे मनखे एक समान*

अर्थात मनखे अउ मनखे के बीच म कोई भेद नइ होना चाही। एक हाड़ माँस अउ एक रक्त ले बने मनखे अलग-अलग कइसे होही? उँकर ये संदेश ले शोषित वर्ग ल बल मिलिस। समाज मा अधिकार के साथ जीये के उम्मीद जागिस,अपन हक, बर लड़े खातिर उन जागृत होइस। शोषित वर्ग जेन सदियों ले सामाजिक रूप ले तिरस्कृत रहिन उँकर अंतस मा ऊर्जा के संचार होइस। छत्तीसगढ़ के इतिहास म उन पहिली संत रहिन जेन मनखे मनखे मा विभेद के खुल के विरोध करिन अउ शोषित वर्ग बर रास्ता खोलिन। निर्धन,असहाय अउ समाज ले तिरस्कृत मनखे बर बाबा घासीदास जी सहारा बनिन। लाखों लोगन उँकर अनुयायी बनगे। 

          उन छत्तीसगढ़ मा अवतरित एकमात्र संत आय जेन सामाजिक अउ आध्यात्मिक जागरण के आधारशिला रखिन । कठोर तपस्या ले प्राप्त ऊर्जा के उपयोग मानव कल्याण खातिर करिन। उँकर दूरदर्शिता देखव कि - जब तक समाज नशामुक्त नइ होही तब तक समाज ले बुराई मिटाना सम्भव नइ हे येकर सेती बाबा गुरु घासीदास जी कहिन- 

         *नशापान झन करव*

काबर नशा ही नाश के जड़ होथे। नशापान करने वाला मनखे के बर्बादी निश्चित हे। ये संदेश आज ले लगभग 250 बछर पहिली बाबा मन दे रहिन जे आज भी प्रासंगिक हवय। निश्चित रूप से बाबाजी युगदृष्टा रहिन तभे तो उन जतका भी बात कहिन आज पर्यन्त अक्षरशः लागू होवत हे। 

        कबीरपंथ के भांति सतनाम पंथ मा घलो मूर्ति पूजा के कोनो जघा नइ हे। मतलब कि बाबा घासीदास जी के बेरा मा घलो बाह्य आडंबरवाद अउ मूर्तिपूजा अपन चरम मा रहिस। तभे बाबाजी ल खुल के कहे बर परिस कि -

          *मूर्ति पूजा झन करव*

मंदिरवा मा का करे जइबो...

अपन घट के ही देवता मनइबो...

ये भजन सतनाम पंथ के जन-जन मा समाय हवय अउ बाह्य आडम्बर ले दूर रहिके केवल अउ केवल बाबा के बानी बचन मा रेंगत हवय। 


*बाबा गुरु घासीदास जी के संदेश मा वैज्ञानिकता-*


महान संत मन के चिंता केवल मानव जाति बर नइ होवय उन सम्पूर्ण सृष्टि के कल्याण बर सोंचथे। उँकर लिए मनुष्य के साथ साथ पशु पक्षी सबो जीव जंतु बर एक समान होथे। तभे तो बाबा अपन संदेश मा कहिथे- 

      *हिंसा मत करव। मांसाहार बंद करव*

उँकर ये संदेश मा वैज्ञानिकता हवय। सृष्टि मा समस्त जीव जन्तु के होना अनिवार्य हवय तभे संतुलन रइही। यदि मनखे मन अन्य जीव जन्तु ला मार के खाये लगही त सृष्टि के संतुलन बिगड़ जाही जेन सम्पूर्ण सृष्टि बर खतरा हवय। विधाता समस्त प्राणी ल धरती मा यथोचित संख्या म भेजे हवय। तभे वैज्ञानिक मन कई जीव जंतु के विलुप्ति ला धरती के लिए खतरा मानत हवय। ये बात ल बाबा सदियों पहिली ही भाँप ले रहिन। बाबा के सच्चा अनुयायी मन मांसाहार ले कोसो दूर रहिथे अउ जेन मांसाहारी हवय वो बाबा के अनुयायी नइ हो सकय। 


*सतनामी कोन...?*

बाबा घासीदास जी के सत्य के प्रति अटूट आस्था रहिस। सत्य अउ अहिंसा उँकर संदेश मा प्रमुखता से मिलथे। *वो हर मनखे जे सत के रद्दा मा रेंगत हवय सतनामी आय। सतनामी के अर्थ केवल एक विशेष जाति या वर्ग ले नइ हो के येकर अर्थ व्यापक हवय । अपन आचार विचार मा सात्विकता, सत्य अउ अहिंसा के पालन करने वाला हर मनखे सतनामी आय।*  जे मनखे सत्य अउ अहिंसा के पालन नइ करय वोला हम कइसे सतनामी कहिबों ...?


*बाबा गुरु घासीदास जी अउ पंथी*

बाबाजी के संदेश ल न केवल उँकर अनुयायी बल्कि हर वर्ग के लोगन महत्व देथे। छत्तीसगढ़ के लोक पारंपरिक *पंथी नृत्य* के माध्यम ले बाबा के संदेश अब पूरा हिंदुस्तान मा बगर गे हे । अब तो सात समुन्दर पर भी बाबाजी के संदेश पंथी के माध्यम ले जावत हवय। पंथी नृत्य छत्तीसगढ़ के पहिचान आय। 


*पशु के प्रति बाबा के प्रेम*


सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ तब भी कृषि प्रधान रहिस अउ आज भी हवय। निश्चित रूप से वो समय खेती कार्य मा पशु के स्तेमाल होवत रहिस। जमीन के जुताई से ले के ढुलाई, मिजाई तक पशु ऊपर ही मानव निर्भर रहिन। नांगर जोते मा बैल या भैंसा के प्रयोग होवत रहिस। मवेशी मन ला घलो बेरा बेरा म आराम के जरूरत होथे खासकर दोपहर के बेरा मा। बाबा कहिन- 

       *दोपहर बाद नांगर झन चलाव*

उँकर त तात्पर्य ये रहिस कि दोपहर मा पशु मन ला भी आराम के जरूरत होथे दोपहर के बाद नागर चलाये ले मनखे भी तकलीफ पाथे अउ पशु भी तकलीफ पाथे। 

           बाबा गुरु घासीदास स्वस्थ समाज के पक्षधर रहिन जिहाँ न जाति के भेद हो ना गरीब अमीर के। स्वस्थ समाज के लिए जरुरी हवय कि मनखे के मानसिकता भी स्वस्थ होवय। अपन उपदेश मा *बाबाजी मनखे ला चोरी, जुआ अउ व्यभविचार ले दूर रहे बात कहिन*। ये तीनो व्यसन मनखे ल बर्बाद तो करथे ही साथ ही स्वस्थ समाज मा भी वैमनस्य फैलथे। बाबा गुरु घासीदास हा समाज के लोगों ल सात्विक जीवन के साथ सत्य अउ अहिंसा ला जीवन म उतारे के शिक्षा दिन। उन मनखे ला प्रेम अउ मानवता के संदेश दिन। 


जय सतनाम🙏

*अजय अमृतांशु*

भाटापारा ( छतीसगढ़)

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 *छत्तीसगढ़ अउ संत गुरु घासीदास*


देश समाज मा जब चारों तरफ जाति- पाति ऊँच नीच भेदभाव अपन चरम सीमा मा रहिस जब मनखे ला मनखे नइ समझे जात रहिस वो समय छत्तीसगढ़ के पावन धरा रायपुर जिला( तत्कालीन) के एक छोटे से गाँव गिरौदपुर में सन 1756 में संत गुरु घासीदास जी मानव समाज के उद्धारक में रूप में अवतरित होइस।

माता के नाम अमरौतिन अउ पिता के नाम महंगू दास रहिस। जे सत्य के अनुगामी अउ सात्विक जीवन व्यतीत करत रहिस। सतनाम पिता मा अटूट लगन विश्वास रहिस। गुरु घासीदास जी बालकपन से ही सत के मारग मा चलते हुए सत्य अहिंसा परोपकार के राह, ज्ञान के दिशा देवत लोक कल्याणकारी काम करिस। जेमा साथी बुधारू ला साँप काटिस त जीवनदान दिस। औंरा धौंरा पेड़ के छाँव तरी प्रथम सतनाम के ज्ञान प्राप्त करिस। वइसे तो गुरु घासीदास जी सांसारिक मोह माया से दूर रह सत के संदेश दिए बर समाज मा व्याप्त कुरीति ला मिटाये बर अवतरित हो रहिस फेर गुरु वंशज ला आगे बढ़ाए खातिर सतपुरुष पिता के भविष्यवाणी अनुरूप माता सफुरा (सिरपुर मायके) संग शादी करके चार पुत्र गुरु बालकदास, गुरु अमरदास, गुरु आगरदास,गुरु अड़गढ़िहा दास अउ एक पुत्री माता सहोदरा के साथ पारिवारिक दुनिया मा बँध गइस। फेर मन मा तो समाज मा व्याप्त कुरीति ला मिटाये के अकुलाहट अउ सतज्ञान ला पाये बर छटपटाहट रहिस। तभे सांसारिक मोह माया ला विरक्त हो छाता पहाड़ी म सत्यज्ञान ला पाये खातिर तप धुनी रमा बैठिस। उहाँ से सतनाम शबद आत्मज्ञान पाये के बाद माता सफुरा जीवन दान, गौ जीवन दान के महिमा दिखाइस।

गुरु घासीदास बाबा जी अपन सात संदेश- *कज्जल छंद*


घपटे राहय जात पात ।

झूठ पाप के घोर रात ।

गुरु घासी के सात बात ।

तब मनखे ला दिस निजात ।।1


सतगुरु मा रखव आस ।

सार सार हे बात ख़ास ।

करे बुराई काल नास ।

काटे यम के नार फाँस ।।2


नशा - पान से रहव दूर ।

तन मन घर सब जाय चूर ।

मिटगे कतको बीर शूर ।

मउत बुलावय आँख घूर ।।3


मानवता के रखव नींव ।

एक बरोबर सबो जीव ।

दया धरम के अमृत पीव ।

मांस छोड़ तुम खाव घीव ।।4


जुआ जरे चोरी बिगाड़ ।

देथे घर के खुशी फाड़ ।

देखव हो के तुमन ठाड़ ।

बिकगे कुरिया खेत झाड़ ।।5


घासी गुरु के धर लौ ज्ञान ।

पर नारी माता समान ।

इँहला बेटी बहिन जान ।

ममता के तो इन खदान ।।6


उतरें सब झन एक घाट ।

देइस सबला कोंन बाँट ।

ऊँच नीच के भेद पाट ।

चलव लगाबो प्रेम हाट  ।।7


*✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*


के माध्यम ले जन जन मा जन चेतना के नव बीज बोइस। 

अपन बयालिस अमृत वाणी के माध्यम ले जिनगी के सार्थकता ला भी बताइस। उँखर 42 अमृत वाणी मैं अपन मनहरण घनाक्षरी के माध्यम ले पटल मा रखत हौं-


सतनाम  घट   घट, बसे  हवै  मन  पट

भरौ  ज्ञान  पनघट, कहे  घासीदास  हे

सबो संत मोरे आव,महिनत रोटी खाव

जिनगी  सुफल पाव, करम  विश्वास हे

ओतकेच तोर  पीरा,जतकेच मोर पीरा

लोभ मोह  क्रोध कीरा,करे तन नाश हे

सेवा कर दीन दुखी,दाई ददा रख सुखी

धर  ज्ञान  गुरुमुखी ,घट   देव  वास  हे।।


ऊँचा  पीढ़ा  बैरी बर,मया  बंधना ला धर

अन्याय  विरोध  बर,रहौ  सीना  तान  के

निंदा  अउ  चारि हरे,घर  के  उजार  करे

रहौ  दया   मया  धरे,कहना  सुजान  के

झगरा ना जड़ होय,ओखी के तो खोखी होय

सच ला ना  आँच  आय, मान  ले तैं  जान के

धन  ला  उड़ाव  झन,खरचा बढ़ाव  झन

काँटा  ला  गढ़ाव झन,पाँव  अनजान के।।


पानी पीयव छान के,बनावौ गुरु जान के

पहुना  संत  मान  के,आसन  लगाव  जी

मोला देख तोला देख,बेरा ग कुबेरा  देख

कर सबो  के सरेख, मिल  बाँट खाव जी

सगा के हे सगा बैरी,सगा होथे चना खैरी

अटके  हे देख  नरी,सगा  का बताँव  जी

मोर  हर   संत  बर, तोर   हीरा  मोर  बर

हे  कीरा के  बरोबर,मैं  तो समझाँव  जी।।


दाई हा तो दाई आय,मया कोरा बरसाय

दूध  झन  निकराय,मुरही  जी  गाय  के

गाय  भैंस नाँगर  मा,इखर गा जाँगर मा

ना रख  हल  गर  मा ,नोहय  फँदाय के

नारी  के सम्मान बर,विधवा  बिहाव बर

रीत  नवा  चालू  कर, चूरी  पहिराय  के

पितर  मनई   लगे,मरे   दाई   ददा  ठगे

जीयत  मा  दूर   भगे,मोह   बइहाय  के।।


सोवै   तेन  सब  खोवै ,जागै  तेन  सब पावै

सब्र  फल  मीठा  होवै,चख  चख  खाव जी

रोस  भरम  त्याग   के,सोये  नींद  जाग  के

ये  धरती  के  भाग  ला,खूब  सिरजाव  जी

कारन ला जाने बिना,झन न्याय ला जी सुना

ज्ञान   रसदा  ना  कभू , उरभट   पाव   जी

मन  ला हे  हार जीत,बाँटौ  जग मया  प्रीत

फिर  सब  मिल  गीत,सुमता  के  गाव  जी।।


दान  देवइया  पापी,दान  लेवइया  पापी

भक्ति भर  मन झाँपी,मूर्ति  पूजा छोड़ दे

जइसे खाबे  अन्न ला,वइसे पाबे  मन ला

सजा झन  ये तन ला,मोह  घड़ा फोड़ दे

ये  मस्जिद   मन्दिर , चर्च अउ  संतद्वार

बना  झन  गा बेकार, मन  सेवा  मोड़ दे

गरीब  बर  निवाला ,तरिया   धरमशाला

बना कुआँ  पाठशाला ,हित  ईंट जोड़ दे।।


आँख होय जब चूक,अँगरा कस जस लूख

फोकट  के  सुख  करे,जिनगी  ला  राख हे

पर  के भरोसा  झन,खा तीन  परोसा  झन

मास  मद  बसौ  झन,नाश  के  सलाख  हे

एक  धूवा   मारे  तेनो , बराबर खुद  गिनो

जान  के मरई  जानौ,पाप  के  तो शाख़ हे

गुरु घासीदास  कहे ,कहौ  झन  मोला बड़े

सत  सूर्य   चाँद  खड़े, उजियारी  पाख  हे।।

   *✍🏻 रचना- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*


जे मानव समाज गुरु घासीदास जी के बताये मार्ग के अनुसरण करथे वो सुखी जिनगी बितावत मोक्ष के प्राप्ति करथे।

वइसे तो गुरु जी के उपदेश मा मानव कल्याण के कोई पहलू नइ छूटे हे। गुरु जी 52 उपदेश ला मैं अपन छोट कलम के माध्य ले चौपाई छंद के माध्यम ले पटल मा रखत हौं, एक एक वर्ण मा गुरु जी के उपदेश समाहित हे-


(गुरु घासीदास जी के 52 उपदेश)

*अ*

अमर नही संतो ये चोला, काल उठा ले जाही तोला|

हिरदे मा सतनाम बसा ले, गुरु के महिमा मनुवा गा ले||1


*आ*

आवव आवव सतगुरु चरना, नाम-पान हे गुरु के धरना|

भवसागर ले तब तर जाहू, सबद सबद जब ज्ञान लखाहू||2


*इ* 

इरखा लिग़री-चारी त्यागौ, मीठ बोल मा अंतस पागौ|

दूर बुराई पर के रहना, सत मारग धर निस दिन चलना||3


*ई*

सत ईमान धरम हे गहना, संत गुनी गुरु जन के कहना|

सत ला जानौ सत ला मानौ, सत रक्षा बर मन मा ठानौ||4


*उ*

उल्लू चाहत घपटे रतिया, हम ला भावत सतगुरु बतिया|

सत्य प्रकाश करे उजियारा, झूठ करे जग मन अँधियारा||5


*ऊ*

ऊँचा जग मा इंखर दर्जा, चुका कभू नइ पावन कर्जा|

दाई ददा जनम देवइया, गुरु हे जिनगी के सिरजइया||6


*ए*

एक नाम हे सार जगत मा, रमे बसे सतनाम भगत मा|

घट घट कण कण जीव चराचर, चाँद सुरुज अउ पर्वत सागर||7


*ऐ*

ऐंठ गोठ झन ऐंठत रहिबे, दया मया झन मेंटत रहिबे|

धन दौलत के छोड़ गुमाना, जुच्छा आना जुच्छा जाना||8


*ओ*

ओढ़ चलौ गुरु नाम चदरिया, छाय नही तब दुःख बदरिया|

नार फाँस ला काटे यम के, खुशहाली से जिनगी दमके||9


*औ*

और नही मन रंग रँगावव, अजर नाम सतनाम लखावव|

दया दान जन पर हित सेवा, कर्म नेक रख पावव मेवा||10


*अं*

अंत अनंत अनादि हवे सच, लोभ मोह ले रइहौ बच बच|

क्रोध अगन ले तन मन जलथे, धीर धरे सुख जिनगी चलथे||11


*अः*

छः आगर छः कोरी सुमिरन, करके तन मन गुरु ला अर्पन|

बन सत हंसा गुरु गुन गावय, जनम दुबारा जग मा पावय||12


*ऋ*

ऋषि मुनि गुरु जन के बानी, सत्य प्रेम ले सत पहचानी|

कर्मयोग जिनगी के शाखा, जग कल्याण करे नित भाखा||13


*क*

कपट द्वेष झन रार करौ जी, सत्य काम मा ध्यान धरौ जी|

नजर गड़े झन पर धन नारी, अपन करम फल कर निस्तारी||14


*ख*

खान-पान सादा रख भाई, काम असुर हे मांस खवाई|

स्वस्थ दिमाक बसे चतुराई, बात कहे सच गुरु गोसाई||15


*ग*

गला लगा ले दीन दुखी ला, हँसी खुशी दे बाँट सुखी ला|

मान असल जग मान खजाना, दुख बिपदा मा हाथ बँटाना||16


*घ*

घर घर मंगल चौका गावव, सत के मांदर झाँझ बजावव|

महानाम सतनाम जपौ सब, सत्य करम मा पाँव नपौ सब||17


*ङ*

गङ्गा जल कस गुरु के बानी, ध्यान लगा उर बनबे ज्ञानी|

बुरा भला के राह बतावय, भटकत हंसा पार लगावय||18


*च*

चाल चलन रख नेक करम ला, थाम सदा सतनाम धरम ला|

जनम धरे हस कुल सतनामी, सत्य अहिंसा बन अनुगामी||19


*छ*

छोड़ बुराई जी सुख जिनगी, नशा पान हे दुख के तिलगी|

हँसी खुशी घर तन जर जाये, पद इज्जत धन मान गँवाये||20


*ज*

जल जंगल के रक्षा कर लौ, मातृभूमि बर जी लौ मर लौ|

जिनगी के आधार हवय ये, सतगुरु उद्गार हवय ये||21


*झ*

झगरा झंझट ला तुम टारौ, द्वेष अहम ला आगी बारौ|

आपस मा हम भाई भाई, सुमता के मिल बीज उगाईं||22


*ञ*

पञ्च तत्व ले बने शरीरा, अग्नि भूमि जल गगन समीरा|

नाम तभे भगवान पड़े हे, सत्यनाम संसार खड़े हे||23


*ट*

टल जाथे दुख बिपदा आये, महामंत्र सतनाम लखाये|

मनुज मनोरथ सुफल सुहाये, पद निर्वान सुगम पथ पाये||24


*ठ*

ठगनी हे ये काया माया, मोह धरे जग जन इतराया|

अंत घड़ी मिट्टी मिल जाना, फिर मनुवा काहे पछताना||25


*ड*

डर डर के नइ जिनगी जीना, सुख दुख के हे बिछे बिछौना|

दुख दिन बाद मिले सुख रैना, कतका सुग्घर गुरु के बैना||26


*ढ*

ढोंग रूढ़िवादी ला छोड़व, ज्ञान राह मा मन ला मोड़व|

सही गलत के कर करौ सरेखा, कर्म बनाये सब के लेखा||27


*ण*

प्राण भले जावय सच खातिर, पर जीते ना कपटी शातिर|

ध्यान धरौ सतगुरु के कहना, सत्य सदा हो सबके गहना||28


*त*

तरी तरी तन घुन्ना खाये, जे सतनाम सबद दुरिहाये|29

धरे नही जे गुरु के बैना, पाय नही वो सुख दिन रैना||


*थ*

थाह मिले ना ज्ञान समुंदर, खोज मनुज मन खुद के अंदर|

सबद सबद धर गुरु के बानी, बनबे मनुवा परम सुजानी||30


*द*

दान ज्ञान के मोल अनोखा, बिना ज्ञान के जिनगी खोखा|

सच ला थाम मढ़ा ले जोखा, नइ खाबे तब मनुवा धोखा||31


*ध*

धरम करम दू नाँव बने हे, सतगुरु किरपा छाँव बने हे|

धरम बिना हे करम अधूरा, करम लेख ला कर लौ पूरा||32


*न*

नमन करौ गुरु संत चरन मा, ध्यान लगा सतनाम भजन मा|

नाम सबद जग मुक्ति बँधे हे, हर प्राणी के साँस छँदे हे||33


*प*

पाटव जाति- पाति के खाई, एक रंग तन लहू समाई|

मनखे मनखे एक समाना, सीखव सब ला गले लगाना||34


*फ*

फाँस फँसौ ना जाति धरम के, पाठ पढ़व सब नेक करम के|

कर्म बड़े हे मानव जग मा, बाँध सुमत चल हर पग पग मा||35


*ब*

बैर खैर के दाग न छूटे, प्रेम भाव के घड़ा न फूटे|

बात ध्यान ये रख के चलना, झूल सबो लौ सुमता पलना||36


*भ*

भरम-भूत के तोड़व जाला, सत्य प्रेम के पी लौ प्याला|

बाँध मया परिवार रखौ जी, सुख जिनगी आधार रखौ जी||37


*म*

मन के जीते जीत हवे जग, मन के हारे हार हवे पग|

धीर धरे सुख जिनगी मिलथे, रात गये ही भोर निकलथे||38


*य*

यज्ञ बरोबर मारग सच के, चलिहौ संतो तुम बच बच के|

कठिन परीक्षा पग पग मिलथे, फूल सफलता के तब खिलथे||39


*र*

रंग रचे बस सादा तन मा, नाम सुमर गुरु के जीवन मा|

अइसे कर लौ खुद के करनी, तर जाहू संतो बैतरनी||40


*ल*

लगन लगा कर माटी सेवा, मिलही धाम परम सुख मेवा|

येखर गोदी सरग समाना, संत गुनी गुन करे बखाना||41


*व*

वाणी गुरु के अमरित जइसे, सत्य ज्ञान हे पबरित जइसे|

जग जन हित संदेश दिये हे, मानवता परिवेश दिये हे||42


*श*

शंख बजे सतनाम सबद जब, मिट जाये दुख संत दरद सब|

मन कर चंगा भरे उमंगा, जब जब बाजे झाँझ मृदंगा||43


*ष*

षड़यंत्र करे जे सगा बिरादर, नइ पावय वो जग मा आदर|

छल कपटी ले बच के रइहू, नइ तो पग पग दुख ला सइहू||44


*स*

समय बड़ा बलवान हवे जी, सुख दुख के पहिचान हवे जी|

कदर करे जे मान कमाये, समय गवायें वो पछताये||45


*ह*

हँसी खुशी धर जिनगी जीना, चमके श्रम के माथ पसीना|

हीन भाव तज आगू बढ़ना, नव विकास के सिढ़ही गढ़ना||46


*क्ष*

क्षमा प्रेम ज्ञानी के गहना, दूर द्वेष कुंठा ले रहना|

समरसता के पाठ पढ़ावय, भला करे जग पाँव बढ़ावय||47


*त्र*

त्रास मिटे सतनाम जपन मा, फूल खिले सुख हिया चमन मा|

गा लौ संतो सतगुरु महिमा, जेन बढ़ावय जग जन गरिमा||48


*ज्ञ*

ज्ञान कभू नइ बिरथा जावय, मान सदा वो जग मा पावय|

धीर विवेक रखे ये मनखे, सच ला जाने सच ला परखे||49


*ढ़*

ढूँढ़ फिरे मन अंदर बाहिर, सत के महिमा जग हे जाहिर|

सत मा धरती खड़े अकासा, बात कहे गुरु घासीदासा||50


*ड़*

हाड़ मांस के देह बने हे, छुआछूत धर लोग सने हे|

खून अलग नइ बहे शरीरा, एक सबो के सुख अउ पीरा||51


*श्र*

श्रवण करौ सतगुरु के बानी, सँवर जही मानुष जिनगानी|

धर चलिहौ बावन उपदेशा, मिट जाही संतो सब क्लेशा||52


सतनामी कोई जाति विषय नोहय सत के मानने वाला गुरु जी के बताये राह मा चलने वाला हर कोई सतनामी ये। वइसने ही अभिवादन में सतनाम बोले से कोई व्यक्तिगत इष्ट के सम्बोधन नइ होवय। सत के अभिवादन ही सतनाम ये। गुरु घासीदास जी ढ़ोंग आडम्बर रूढ़िवाद के पक्षधर नइ रहिस। ये सब कुरीति ला गुरु जी घुन्ना के समान समझत रहिस जे मानव समाज ला धीरे धीरे नष्ट कर देथे।

आज भी गुरु घासीदासा जी के अनुयायी सिर्फ छत्तीसगढ़ में ही नही वरन देश के कोना कोना मा निवास करथे। गुरु घासीदास जी ला गुरु के दर्जा प्राप्त हे अउ गुरु के दर्जा तो सब ले श्रेष्ठ हे। आज भी उँखर वंशज गुरु रूप मा विराजमान हे।

अइसे श्री गुरु के चरण में कोटि कोटि नमन हे।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

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संत गुरु घासीदास जी अ उ छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ के माटी संत महात्मा ऋषि मुनि तपस्वी मन के धरती आय ईही माटी म आज से करीब ढाई सौ बच्छर पहले जोंक नदी के तीर बसे एक छोटे से गांव गिरौदपुरी म सन सत्रह सौ छप्पन

माता अमरौतिन के कोख़ से पैदा होए है पिता के नाम महगू दास दादा मेदनी दास रहीस वो समय गिरौदपुरी घोर जंगल के बीच बसे रहीस  आज भी बारनवापारा अभ्यारण्य म आ थे इतिहास म पढे से पता चल थे की बाबा गुरु घासीदास के पूर्वज उत्तर भारत से आए रहिन प्राचीन भारत के इतिहास ल खोल के देख थन त पता चल की सन सोलह सौ बहत्तर म औरंगजेब के साथ सतनामी यो का विद्रोह हुआ था औरंगजेब इस्लाम धर्म स्वीकार करने दबाव डाला जिसका सतनामी यो ने विरोध किया बहुत सारे सतनामी मारे गए अतः विद्रोह के बाद जो बचे सतनामी अन्य प्रांतों में शरण लेने लगे लिहाजा आज सतनामी उ,प्र, हरियाणा गुजरात राजस्थान पंजाब गुजरात एवं छत्तीसगढ़ में बस गए अन्य प्रांतों म रहिया सतनामी साध सतनामी कहलाथे सतनामी साध सतनामी दोनों मन के खान पान वेशभूषा पूजा पाठ म समानता हावय

गुरु घासीदास जी के ऊपर माता अमरौतिन के संस्कार के प्रभाव खूब पड़िस गुरू बाबा के मन गृहस्थी म नहीं लगे गृहस्थ जीवन ल त्याग करके बाबाजी छाता पहाड़ म विशाल शीला म बैठ के तपस्या करिन अवू सतनाम के ज्ञान प्राप्त होए हे  बाबाजी के समय छुआ छूत ढोंग आडंबर बहुत रहीस जैला देख के बाबाजी के मन विचलीत होगे ओ कुरूती ल दूर करे के बीड़ा उठाया

बाबाजी सतनाम पंथ चलाया सत के रस्ता म चलने वाला जो सत म नामी हे सतनामी कहलाए  

बाबाजी के सात प्रमुख संदेश हे

,१. मन खे मन खे एक हे

मन खे मन खे एक हे मन खे हो त समान,

रकत रंग सब एक हे सब म एक ही जान

२ सदा सच बोलो

३. नशा पान मत करो

४. दोपहर म नागर मत जोतो

५. पराई नारी को माता समझो

६. मूर्ति पूजा मत करो

७. जीव हत्या मत करो

बाबाजी का ये सात संदेश प्रमुख हे

बाबाजी को मानने वाले सतनामी समाज के अलावा अन्य जाति के लोगन मन पूजा करथे

गुरु घासीदास जी धरम के प्रचार पूरा छत्तीसगढ़ अवी उड़ीसा म करीस 

बाबाजी कहिन

मंदिरावा का करे ल जाबो

आपन घट ही देव ल मनाबो

कहवा ल लावव हो आरूग फुलवा

गाय के दूध ल बछुरा जूठारे

नदिया के पानी ल मछरी जुठारे

गुरु घासीदास जी ने हमे सत्य अहिंसा प्रेम भाई चारा का पाठ पढ़ाया

ऐसे छत्तीसगढ़ के महान संत के चरणों को मै नमन करता हू

मोहन डहरिया

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*छत्तीसगढ़ अउ गुरु घासीदास*


धरम करम अउ मानवता के जिहाँ जुग जुग ले जोत जलथे वो पावन महतारी छत्तीसगढ़ के कोरा म *सतनाम धर्म* के अलख जगइया  ,सतनाम धर्य के प्रवर्तक संत गुरु घासीदास बाबा खेले हे।

     विद्वान मन बताथें के सन् 1672 म हरियाणा के नारनौर म वीरभान अउ जोगीदास नाम के दू भाई रहिन जेन मन सतनामी साध मत के सिद्धांत बनाइन अउ वोकर प्रचार-प्रसार करिन। सतनामी साध मत के अनुसार सत्य ह सर्वोत्तम अउ सर्वोपरि होथे। साधमत के मानने वाला मन स्वाभिमानी अउ जुझारू होथें।वोमन सबके सम्मान करथें फेर गुलामी म ककरो आगू सिर नइ झुकावयँ। ये विशेष गुण आज तको सतनामी म देखे जाथे।

   वो समे मुगल शासक औरंगजेब के शासन रहिस। वो सतनामी मन ल अपन गुलामी स्वीकार करे ल कहिस फेर सतनामी साध मत के अनुयायी मन स्वीकार नइ करिन अउ भारी लड़ाई छिड़गे। वीरभान अउ जोगीदास के अगुवाई म सतनामी मन मुगल सेना के छक्का छुड़ा दिन। बहुत दिन ले लड़ाई होइस।वीरभान अउ अधिकांश सतनामी मन वीरगति ल प्राप्त कर लिन। बाँचे मन नारनौल ल छोड़ के पंजाब, उड़ीसा, मध्यप्रदेश मा बगरगें।

    उही में के कुछ परिवार तत्कालीन मध्यप्रदेश अउ वर्तमान छत्तीसगढ़ के चंद्रपुर होवत सोनाखान के डोंगरी,पहाड़ ,जंगल म आके बसगें। जेमा गुरुघासीदास के दादा (बबा) मेदिनीदास गोंसाई के परिवार तको रहिस। सोनखान के दयालु जमींदार रामराय (वीर नारायण सिंग के पिताजी) ह वोमन ल बसन दिस।

*गुरु घासीदास जी के जन्म*----- सोनाखान जमींदारी वर्तमान म बलौदाबाजार जिला के पावन भुइयाँ  गिरौदपुरी धाम म पिता मंहगूदास अउ माता अमरौतिन  के कोरा म 18 दिसम्बर सन् 1756 म दिव्य बालक के जन्म (अवतार) होइस जेन आगू जागे सतपुरुष संत गुरु बाबा घासीदास के नाम ले जग विख्यात होइस।

     पूत के पाँव पालना म दिखे ल धर लेथे। बालक घासीदास बड़ चमत्कारी अउ अध्यात्मिक प्रवृत्ति के रहिसे।बिना कोनो स्कूली शिक्षा के तको वोकर मेधा तेज रहिसे।

  वो समे समाज म व्याप्त छुआछूत, जाति प्रथा, ऊँच-नीच (मनखे-मनखे म भेद), शोषण अउ अत्याचार ल देख के वो ह विचलित हो जवय। मन में विचार करके वो घर त्याग दिस अउ सोनाखान के घन जंगल म ध्यान लगा के घोर तपस्या करे लगिस। एक दिन  गिरौदपुरी के नजदीक छाता पहाड़ म औंरा-धौंरा बिरछा के तरी दिव्य सत्य ज्ञान के दर्शन अउ प्राप्ति होइस।

     जइसे के हर संत अउ अवतार के जन्म के सार्थकता   समाज म व्याप्त बुराई, असत्य अउ अधर्म के नाश करके सत्य धर्म के स्थापना करे बर ,मनखे के बीच जाके शिक्षा देये म,जागृति लाये म होथे। 

  इही सेती सत्य ज्ञान ल प्राप्त करके गुरु घासीदास ह जन मानस के बीच आके सन् 1820 म ए सृष्टि म , छत्तीसगढ़ के पावन भुँइया म *सतनाम धर्म(सतनामी पंथ)* के स्थापना करके सत के अँजोर बगराइस। गुरु बाबा के सत के संदेश जेन सब ग्रंथ अउ धर्म के सार ये देखते देखत फइल गे ।जात-पात के बँधना ल छोड़के सत्य प्रेमी मन गुरु घासीदास के अनुयायी बनगें।

   वो समे सन्1901 के जनगणना अनुसार लगभग 4 लाख सतनामी छत्तीसगढ़ म रहिन अब तो लगभग 15-18% आबादी सतनामी होहीं। ये सत के प्रभाव तेजी ले बगरत हे।

     गुरुघासीदास के कहना रहिस के सत्य(सत) ल घर गृहस्थी म तको पाये जा सकथे ।शर्त अतके हे के सतनामी धर्म के सात मूल सिद्धांत अउ बिंयालिस अमृतवाणी के पालन करे जाय। बौद्ध धर्म के समान उन मूर्ति पूजा ल त्यागे के शिक्षा देवत संन्यास के अपेक्षा गृहस्थ जीवन ल तको श्रेष्ठ बतावत गृहस्थी म रहिन।

*मंदिरवा म का करे जइबो, हम घट ही के देव ल मनइबो*

      गुरु घासीदास के अर्धांगिनी के नाम माता सफुराबाई रहिस।जेकर ले  पाँच गुरुवंशी संतान --सहोद्रा माता,गुरु अमरदास, गुरु बालकदास,गुरु आगरदास ,गुरु अड़गड़िहा दास होइन।

     गुरु बाबा घासीदास ह ये धरती म सतनामी धर्म(सतनाम पंथ) के स्थापना करके, जन जन म सत के अलख जगाके सन् 1850 (कोनो-कोनो विद्वान मन सन्1830 म कहिथें) भंडारपुरी धाम म समाधि ले लिन।


*गुरु घासीदास बाबा के उपदेश, सतनाम पंथ के सार* ,----

कहे गे हे--

*सत्यं सम: नास्ति तप:।*

      अउ

सत्यहीना वृथा पूजा,  सत्यहीनो वृथा जप:।

सत्यहीनं तपो व्यर्थ,मूषरे वपनं यथा।

       छत्तीसगढ़ के पावन भुँइया म जन्मे(अवतरे) महान संत, सत्यदृष्टा,युग प्रवर्तक गुरु बाबा घासी दास जेन *मनखे-मनखे एक समान* के अटल सत्य के जयघोष करिन के शिक्षा ल सतनामी के सात सिद्धांत अउ बियालिस अमृतवाणी ल, जेन हजारो हजार विश्व प्रसिद्ध *पंथी गीत अउ नृत्य* म समाये हे, ग्रहण करे जा सकथे। सतनाम पंथ के केंद्र गिरौदपुरी, भंडार पुरानी ,तेलासीधाम , खँड़ुवा धाम ( सिमगा, दामाखेड़ा के पास जिहाँ ले मिनीमाता संबंधित रहिन) आदि म जाके  सत के उर्जा ग्रहण करे जा सकथे।

   पंथी गीत के अमर गायक *(स्व०) देवदास बंजारे* जी के गाये  पंथी गीत ले ,सतनामी चौका आरती ले, सत के महिमा अउ  गुरु बाबा घासीदास के शिक्षा ल जाने जा सकथे। सादा झंडा अउ सादा जैतखाम ले सादगीपूर्ण जिनगी जिये के सार तत्व प्राप्त करे जा सकथे

*सतनामी धर्म(सतनाम पंथ) के सात वचन*---

1सतनाम म विश्वास करना।

*सत मा धरती टिके, सत मा टँगे अगास हो*

2जीव हत्या नइ करना(अहिंसा)---सबो हंसा एक समान होथे।सत्य ह ईश्वर ये अउ ईश्वर ह सत्य ये।

3 मांसाहार नइ करना।

4चोरी जुआ ले दूर रहना।

5 नशा सेवन नइ करना।

6 जात-पात अउ ऊँच-नीच ल नइ मानना--भेदभाव अउ शोषण के विरोध।

7 व्यभिचार नइ करना।

*सार संक्षेप*--

      धन्य हे परम पूज्य संत गुरुघासीदास बाबा। इही ह तो असली धर्म के सार ये। अभो संसार के कोनो भी तथाकथित धर्म मन  ये सत्य सार के ही बखान करे हें। इही असली मानव  धर्म ये।इही असली मानवता ये।  सत्यमेव जयते के उद्घोष ये।

   कलजुगिहा मनखे ह गुरु बाबा के बताये रास्ता म चलके, *सादा जीवन अउ उ्च्च विचार* ल अपनाके, पाखंड ल त्याग के जीते जी असीम सुख- शांति ल पा सकथे।अपन जिनगी म राम राज(सत के राज) ला सकथे।

 *होत है सकल पाप के क्षय, एक बार सब प्रेम से बोलो सत्यनाम के जय।*

*सत्यमेव जयते*।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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 वासन्ती: *छत्तीसगढ़ अउ संत गुरु घासीदास* 

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     संत सतनाम पंथ के प्रवर्तक गुरु घासीदास के जनम  अठारह दिसम्बर सतरा सौ छप्पन(1756) मा बलौदाबाजार जिला के गिरौदपुरी नामक गाँव म होय रहिस। एही कारण हे कि उँकर अवतरण दिवस के दिन 18 दिसम्बर के-  छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश सहित अनेक राज्य म राजकीय अवकाश रहिथे। पूरा भारत म गुरु घासीदास के लाखों-करोड़ों अनुयायी हें।

    *संत परंपरा ला आघू बढ़ाय म अनेक महापुरूष मन के योगदान हे, जइसे संत गुरु नानक, संत गुरु घासीदास, सद्गुरु कबीर आदि।* संत मन हमर मानव समाज बर काबर महत्वपूर्ण हें?- काबर कि ओमन गिरे-कुचले, दलित-शोषित, अन्याय के शिकार, असहाय अउ समाज के कमजोर मन के संग खड़े होइन अउ उन मन मा आत्मविश्वास अउ अपन व्यक्तित्व के पहिचान बर अन्याय ले जुझे के शक्ति के संचार करिन। *गुरु घासीदास सन् 1820 ईस्वी म सतनाम पंथ के स्थापना करिन* अउ जीवन-पर्यन्त अपन लाखों अनुयायी मन ला मानव धर्म के पालन करे के संदेश दीन। संत गुरुघासीदास के संदेश मा निम्न सात उपदेश प्रमुख रूप से शामिल हे-

1) मादक पदार्थ ले परहेज करव।

2) माँस अउ माँस जइसन वस्तु ले परहेज करव।

3) सामाजिक एकता के आचार संहिता के पालन करव।

4) मूर्ति पूजा बंद करव।

5) दोपहर के बाद गाय-बैल से हल जोतना बंद करव।( अइसे कहे जाथे कि ओ-समय गाय-मन ले घलो हल जोते के परंपरा रहिस।)

6) परनारी के मातृतुल्य सम्मान करव।

7) एकमात्र सतपुरूष सतनाम के निराकार रूप के उपासना, भजन अउ ध्यान करव।

    सदगुरु कबीर घलो प्रकाश रूपी सतपुरूष के निराकार रूप के उपासना के संदेश दे रहिन। *ए तरा कहि सकत हन कि सदगुरु कबीर के परंपरा ला गुरु घासीदास आघू बढ़ोइन अउ सतनाम पंथ के स्थापना करिन।*


संत गुरु घासीदास ला समर्पित मोर दोहा के कुछ लाइन मैं नीचे प्रस्तुत करत हौं-


   🌷🌷बाबा घासीदास🌷🌷

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माता अमरौतिन हवे,ददा महंगूदास ।

गिरौदपुरी मा जनमें,बाबा घासीदास ।।


जनमें दिसंबर अठरा,पंथ प्रवर सतनाम ।

घासीदास प्रसिध हुए,गिरौदपुरी म धाम ।।


औंरा धौंरा पेड़ के,तरी म पाइन ज्ञान ।

घासीदास बनिन गुरू,देइन सत के ज्ञान ।।


बाबा घासीदास जी,देंवय सत उपदेश ।

छोड़व मदिरा माँस ला,कहिन बने संदेश ।।


जैतखाम बड़का बने,गिरौदपुरी म धाम।

सादा झंडा ह फहरे,मान बढ़े सतनाम ।।


गुरूधाम गिरौदपुरी,भक्तन के हे भीड़ ।

पूजैं घासीदास ला,चेला मन के नीड़ ।।


👏👏👏वसन्ती वर्मा👏👏

                 बिलासपुर

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