छत्तीसगढ़ अउ सन्त कबीर साहेब -एकजई आलेख,,
लेखकगण- सरला शर्मा जी, बलदाऊ राम साहू जी, चोवाराम वर्मा बादल जी, ग्याप्रसाद साहू जी, अजय अमृतांशु जी, पोखन लाल जायसवाल जी,वासन्ती वर्मा जी, मोहन डहरिया जी, जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया जी
सरला शर्मा: छत्तीसगढ़ अउ कबीर दास
******
भक्ति कालीन संत कवि मन के बीच कबीर दास ल निर्गुण सम्प्रदाय के ज्ञानाश्रयी शाखा के कवि माने जाथे । डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी कबीर दास ल संत , समाजसुधारक , फक्कड़ , अवधूत कवि मानथें । कबीर के दोहा सबले जादा प्रसिद्ध होइस , उंकर रचना मं आंखी देखे सच के संग समाज के गरीब गुरबा ,पिछुवाए , जनजाति , छुआ छूत , अंधविश्वास असन विषय मन उपर सवालिया निशान घलाय लगाए गए हे जेहर आजो दगदगावत हे ।
कबीर दास के समय देश मं मुगल शासन के त छत्तीसगढ़ मं मराठा शासन के सुरुआत समंगल नइ होए पाए रहिस । छत्तीसगढ़ मं जनजातीय अउ मैदानी क्षेत्र मं कबीर के बानी के बोलबाला रहिस लगभग एक तिहाई मनसे कबीर पंथ के अनुयायी रहिन ।
मुक्ता मणि साहेब बांधवगढ़ ले कोरबा आए रहिन ,एकर बाद ही कुदुरमाल मं गद्दी के स्थापना होए रहिस । 1690 मं रतनपुर मं गुरु गद्दी स्थापित होइस । सन 1992 मं 14 वां गुरु प्रकाश मुनि साहेब होइन । दामाखेड़ा आश्रम ले कबीर मंशूर ग्रन्थ प्रकाशित होए रहिस । नवा पारा गोबरा मं पारख पंथी आश्रम हे फेर हाटकेश्वर मं जौन गद्दी हे उहां गुरु परम्परा नइये । खरसिया मठ मं विरक्त संत मन के गुरु परम्परा हे । सेलूद ( पाटन ) के कबीर आश्रम प्रमुख सुकृत दास साहेब विद्वान प्रवचनकर्ता के रूप मं प्रसिद्ध हें ।
छत्तीसगढ़ मं लगभग 121 कबीर आश्रम संचालित होवत हे , गरब करे लाइक बात एहर आय के लगभग 28 आश्रम के आचार्य पद मं विदुषी , सेवाभावी महिला मन प्रतिष्ठित हें ।
कबीर दास के छत्तीसगढ़ मं प्रभाव उपर विचार करत खानी जे बात हर सबले पहिली ध्यान खींचते ओहर आय के कबीर के विचार धारा हर निवृत्ति अउ प्रवृत्ति दूनों के बीच के रस्ता आय जेला विद्वान मन मध्यम मार्गी विचार कहिथें इही विचार हर मनसे के कल्याण बर , समाज मं बगरे दुआ भेद ल घुंचाये बर गृहस्थ धर्म के पालन करे बर कहिथे माने तपस्या करे बर जंगल जाए , मंदिर देवाला मं धूनी रमाये , तिरिथ बरत करे , मूर्ति पूजा करे के विरोध करके घर परिवार मं रहिके सहज जीवन जिए , मानवता उपर विश्वास करे के प्रेरणा देथे ।
दूसर प्रभावशाली बात के कबीर के उपदेश , उंकर रचना के भाषा आम आदमी के बोल चाल के भाषा आय जेला हरेक मनसे गुन समझ सकथे । फेर एहू बात ल माने बर परही के उंकर रहस्यवादी रचना , उलटबासी मन गूढ़ चिंतन के सेतिर चिटिक दुरूह हो गए हें । कबीर दास के भाषा ल डॉ श्याम सुंदर दास पंचमेल खिचड़ी कहे हंवय काबर के खड़ी बोली , राजस्थानी , अवधी , पंजाबी , उर्दू संग स्थानीय बोली के शब्द मन जगर मगर करत हें । ओ समय काशी हर व्यापार , धर्म अउ राजनीति के केंद्र रहिस ते पाय के यहां के भाषा हर मिंझऱा रहिस ।
हमर छत्तीसगढ़ मं कबीर दास के विचार अउ रचना मन लोकप्रिय उंकर सरल बोधगम्य भाषा के कारण होइस । जेन भाषा मं आने बोली भाषा के शब्द मन ल अपनाए के गुन होथे उही भाषा हर आम आदमी के कंठ मं ओतके जल्दी बस जाथे । इही देखव न भक्ति कालीन साहित्य के दू झन जगमगावत संत कवि कबीर अउ तुलसी ल हमर छत्तीसगढ़ मं जतका मान्यता मिलिस ओतका सूरदास अउ मीरा ल नइ मिल पाए हे ।
कबीर साहित्य दोहा , साखी , सबद अउ रमैनी के रूप मं बगरे हे । बुधियार लिखइया मन सो बिनती हे के कबीर दास के सामाजिक , सांस्कृतिक , भाषिक तत्व मन के बारे मं लिखयं ।
सरला शर्मा
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐 जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: सन्त कवि कबीरदास जी अउ छत्तीसगढ़
संत कवि कबीर दास जी के नाम जइसे ही हमर मुखारबिंद म आथे, त ओखर जीवन-दर्शन, साखी-शबद अउ जम्मों सीख सिखौना नजर आघू झूल जथे। *वइसे तो कबीरदास जी के अवतरण हमर राज ले बाहिर होय रिहिस, तभो ले, सन्त कवि कबीर दास जी अउ ओखर शिक्षा दीक्षा हमर छत्तीसगढ़ म अइसे रचबस गेहे, जेला देखत सुनत कभू नइ लगिस कि कबीरदास जी आन राज के सिध्द रिहिन।* कबीर दास जी के नाम छत्तीसगढ़ भर म रोज सुबे शाम गूँजत रहिथे। इहाँ के बड़खा आबादी कबीरपंथी हें, जेला कबीरहा घलो कहिथें,येमा कोनो जाति विशेष नही, बल्कि सबे जाति धरम के मनखे मन कबीर साहब के पंथ ल स्वीकारे हें। छत्तीसगढ़ ल कबीरमय करे म कबीर दास जी के पट चेला धनी धरम दास(जुड़ावन साहू) जी के बड़खा योगदान हे। सुने म मिलथे कि , एक बेर कबीरदास जी नानक देव संग पंथ के प्रचार प्रसार बर छत्तीसगढ़ के गौरेला पेंड्रा म अपन पावन पग ल मढ़ाये रहिस हे, उही समय ,जुड़ावन साहू जी कबीरदास जी ले अतका प्रभावित होइस कि अपन जम्मों धन दौलत ल कबीरदास के चरण कमल म अर्पित कर दिन, अउ ओखर दास बनगिन(जुड़ावन ले दीक्षा पाके धरम दास होगिन)। अउ हमर परम् सौभाग्य कि धनी धरम दास जी महाराज अपन गद्दी छत्तीसगढ़ म बनाइन, अउ इँहिचे रहिके कबीरपंथ ल आघू बढ़ाइन, अउ छत्तीगढ़िया मन अड़बड़ संख्या म जुड़िन घलो। धनी धरम दास जी ह कबीर के मुखाग्र साखी शब्द मन ल अपन कलम म ढालिस, ओ भी हमर महतारी भाषा छत्तीसगढ़ी म। वइसे तो कबीरदास जी के भाषा ल पंचमेल खिचड़ी या सधुक्कड़ी कहे जाथे, तभो ओखर प्रकशित पोथी म छत्तीसगढ़ी के प्रभाव दिखतेच बनथे--
धर्मदास के कुछ छतीसगढ़ी पदः-
मैं तो तेरे भजन भरोसो अविनाशी
तिरथ व्रत कछु नाही करे हो
वेद पड़े नाही कासी
जन्त्र मन्त्र टोटका नहीं जानेव
नितदिन फिरत उदासी
ये धट भीतर वधिक बसत हे
दिये लोग की ठाठी
धरमदास विनमय कर जोड़ी
सत गुरु चरनन दासी
सत गुरु चरनन दासी
**
आज धर आये साहेब मोर।
हुल्सि हुल्सि घर अँगना बहारौं,
मोतियन चऊँक पुराई।
चरन घोय चरनामरित ले हैं
सिंधासन् बइ ठाई।
पाँच सखी मिल मंगल गाहैं,
सबद्र मा सुरत सभाई।
**
संईया महरा, मोरी डालिया फंदावों।
काहे के तोर डोलिया, काहे के तोर पालकी
काहै के ओमा बाँस लगाबो
आव भाव के डोलिया पालकी
संत नाम के बाँस लगावो
परेम के डोर जतन ले बांधो,
ऊपर खलीता लाल ओढ़ावो
ज्ञान दुलीचा झारि दसाबो,
नाम के तकिया अधर लगावो
धरमदास विनवै कर जोरी,
गगन मंदिर मा पिया दुलरावौ।"
ये पद मन पूर्णतः कबीरदास जी ले ही प्रभावित हे,
धनी धरम दास जी के जनम घलो छत्तीसगढ़ ले इतर मध्यप्रदेश(उमरिया) म होय रहिस, फेर वो जुन्ना समय म मध्यप्रदेश के मेड़ो तीर के गांव सँग गौरेला पेंड्रा के जम्मो इलाका बिलासपुर के सँग जुड़े रहय, तेखर सेती धनी धरमदास जी म छत्तीगढ़िया पन कूट कूट के भरे रिहिस। अउ जब कबीर के साखी शबद रमैनी मन ल धनी धरम दास जी पोथी म उतारिन, त वो जम्मों छत्तीगढ़िया मनके अन्तस् म सहज उतरगे।
धनी धरम दास जी के परलोक गमन के बाद, ओखर सुपुत्र चूड़ामणि(मुक्तामणि नाम साहेब) साहब घलो छत्तीसगढ़ म ही कबीर पंथ के गद्दी ल सँभालिन, अउ कोरबा जिला के कुदुरमाल गाँव म अपन गद्दी बनाइन, कुदुरमाल के बाद कबीर गद्दी परम्परा आघू बढ़त गिस अउ रतनपुर, मण्डला, धमधा, सिंगोढ़ी, कवर्धा म घलो गुरुगद्दी बनिस। चूड़ामणि साहेब के बाद ओखर सुपुत्र सुदर्शन नाम साहेब रतनपुर म गुरुगद्दी परम्परा के निर्वहन करिन, तेखर बाद कुलपति नाम साहेब, प्रमोध नाम साहेब, केवल नाम साहेब -----आदि आदि गुरु मनके सानिध्य म कबीरपंथ छत्तीसगढ़ म फलन फूलन लगिस। *गुरुगद्दी के 12वा गुरु महंत अग्रनाम साहेब ह दामाखेड़ा म धनी धरम दास जी महाराज के मठ सन 1903 म स्थापित करिन, जिहाँ आजो कबीरपंथी मनके विशाल मेला भराथे।* वइसे तो कबीर पंथ के मुख्यालय सन्त कवि कबीरदास जी के नाम म बने जिला कबीरधाम जिला म हे, फेर कबीर पंथी मन छत्तीसगढ़ के चारो मुड़ा म समाये हें।
धनी धरम दास जी ल दक्षिण के गुरुगद्दी के कमान सौपत बेरा कबीरदास जी भविष्यबानी करे रिहिन कि, धरम दास जी के नेतृत्व म कबीरपंथ खूब फलही फुलही, अउ उही होइस घलो। *धनी धरम दास जी, कबीर पंथ के 42 गुरुगद्दी के स्वामी मनके नाम लिख के चल देहे। वर्तमान म 14 वाँ गुरुगद्दी के स्वामी प्रकाशमुनि नाम साहेब जी हे।* छत्तीसगढ़ के कबीरपंथी मन कबीरदास जी महाराज के नीति नियम ल हृदय ले स्वीकार करथें, अउ सुख दुख सबे बेरा कबीरदास जी महाराज के नाम लेथें। छत्तीसगढ़ म कबीरपंथी समुदाय म चौका आरती के परम्परा हें, जेमा कबीर साहेब के साखी शबद गूँजथें। कबीरपंथी छत्तीसगढ़ के उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम चारो मुड़ा सहज मिल जथे, अउ जेमन कबीर पंथी नइहे उहू मन कबीरदास जी के सीख सिखौना ल नइ भुला सकें। सबे जाति वर्ग समुदाय म कबीरदास जी महाराज के छाप हे। छत्तीसगढ़ भर म कबीर जयंती धूमधाम ले मनाये जाथे। जघा जघा मेला भराथे। *दामाखेड़ा, कुदुरमाल, कवर्धा, सिरपुर* आदि जघा कबीरपंथी मनके पावन तीर्थ आय, जिहाँ न सिर्फ कबीर पंथी बल्कि जम्मो जाति समुदाय सँकलाथे।
कबीरदास जी दलित मनके मसीहा, पीड़ित मनके उद्धारक, दबे कुचले मनके आवाज रिहिन, समाजिक अन्याय अउ विषमता के घोर विरोधी अउ न्याय संग समता के संस्थापक रिहिन। तेखरे सेती न सिर्फ हिन्दू मन बल्कि मुस्लिम अउ ईसाई मन घलो कबीरदास जी के अनुसरण करिन। कबीरदास जी के दोहा, साखी सबद न सिर्फ कबीरपंथी बल्कि छत्तीसगढ़ के घरों घर म टीवी रेडियो टेप टेपरिकार्डर के माध्यम ले मन ल बाँधत सरलग सुनाथे। कबीरदास जी महराज धनी धरम दास जी कारण छत्तीसगढ़ के कण कण म विराजित हे। कबीरदास जी के दोहा साखी सबद मनके कोनो सानी नइहे, विरोध के सुर के संगे संग जिनगी जिये के सार जम्मो छत्तीगढ़िया मन ल अपन दीवाना बना लेहे। पूरा भारत भर म छत्तीसगढ़ म ही कबीर पंथ के सबले जादा आश्रम अउ गद्दी संस्थान हे। कतको छत्तीगढ़िया मन आपस म *साहेब* कहिके अभिवादन करथें। अउ जादा का लिखँव महूँ, कबीरहा आँव।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
अजय अमृतांशु- *छत्तीसगढ़ अउ कबीरदास*
(भाग-1)
विश्व वंदनीय सद्गुरु कबीर के जन्म विक्रम संवत १४५५ (सन १३९८ ई ० ) के काशी (वाराणसी) मा माने जाथे। कबीरदास जी के नाम निर्गुन भक्तिधारा के कवि मा सबले ऊँचा माने जाथे,उन हिंदी साहित्य के महिमामण्डित कवि आय । कबीर दास जी जतका बात कहिन सब अकाट्य हे वोला मानेच ल परही, काबर कबीर हमेंशा यथार्थ के बात कहिन। कोरा कल्पना या सुने सुनाये बात उँकर साहित्य म कोमो मेर नइ मिलय।
छत्तीसगढ़ के संदर्भ मा जब हम कबीर के बात करथन तब धनी धर्मदास के नाम सबले पहिली आथे। वइसे तो कबीर के सैकड़ों शिष्य होइन जेमन अपन अपन हिसाब से कबीर के विचारधारा के प्रचार प्रसार करिन फेर धर्मदास के नाम के छत्तीसगढ़ के संदर्भ मा सबले जादा मायने रखथे। माने जाथे कि धर्मदास जी वैष्णव सम्प्रदाय के रहिंन परन्तु जब उँकर मुलाकात कबीर से होइस तब कबीर के उपदेश ले उन बहुत जादा प्रभावित होइन अउ कबीर के शरण मा आगिन। तदुपरांत धर्मदास अपन सारा संपत्ति (तब लगभग 64 करोड़) ल कबीर पंथ के विस्तार खातिर लगा दिन। कबीर पंथ म ये मान्यता हवय कि धनी धर्मदास के द्वितीय पुत्र मुक्तामणिनाम ल संत कबीर अटल 42 वंश होय के आशीर्वाद दे रहिन जेकर कारण प्रथम वंश गुरु के रूप मा पंथ श्री मुक्तामणिनाम साहब कुदुरमाल म सुशोभित होइन अउ छत्तीसगढ़ मा कबीर पंथ के विस्तार होय लगिन। अब तक के वंश गुरु ये होइन -
1. पंथ श्री मुक्तामणिनाम (वि.सं 1570 से वि.सं. 1638 कुदुरमाल)
2. पंथ श्री सुदर्शन नाम (वि.सं 1630 से वि.सं. 1690 रतनपुर)
3. पंथ श्री कुलपतिनाम ( वि.सं 1690 से वि.सं. 1750 कुदुरमाल)
4. पंथ श्री प्रबोधगुरु (बालापीर) नाम ( वि.सं 1750 से वि.सं. 1775 मंडला)
5. पंथ श्री केवलनाम ( वि.सं 1775 से वि.सं. 1800 धमधा)
6. पंथ श्री अमोलनाम (वि.सं 1800 से वि.सं. 1825 मंडला)
7. पंथ श्री सुरतिसनेहीनाम (वि.सं 1825 से वि.सं. 1853 सिंघोड़ी)
8. पंथ श्री हक्कनाम (वि.सं 1853 से वि.सं. 1890 कवर्धा)
9/ पंथ श्री पाकनाम (वि.सं 1890 से वि.सं. 1912 कवर्धा)
10/ पंथ श्री प्रगटनाम ( 1912 से वि.सं. 1939 कवर्धा)
11. पंथ श्री धीरजनाम (1936 में गद्दीशीन होय के पूर्व लोक गमन)
12. पंथ श्री उग्रनाम ( वि.सं 1939 से वि.सं. 1971 दामाखेड़ा)
13. पंथ श्री दयानाम ( वि.सं 1971 से वि.सं. 1984 दामाखेड़ा)
14. पंथ श्री गृन्धमुनिनाम साहब ( वि.सं 1995 से वि.सं. 2048 दामाखेड़ा)
15. पंथ श्री प्रकाशमुनिनाम ( वि.सं 2046 से आज पर्यन्त....)
उपर उल्लेखित समस्त वंश गुरु मन धर्मदास के वंशज रहिन अउ अपन अपन कार्यकाल मा के कबीर पंथ के खूब प्रचार प्रसार छत्तीसगढ़ मा करिन। छत्तीसगढ़ के कुदुरमाल, रतनपुर, धमधा, कवर्धा अउ दामाखेड़ा कबीर पंथ के प्रमुख केन्द्र बनिस ।
अजय अमृतांशु, भाटापारा
*सरलग ...2...*
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
अजय अमृतांसु: *छत्तीसगढ़ अउ कबीरदास*
( भाग-2 )
निःसंदेह छत्तीसगढ़ मा कबीरपंथ के सबले जादा अनुयायी दामाखेड़ा गद्दी से हवय। इहाँ के अधिकांश आश्रम दामाखेड़ा ले ही सम्बद्ध हवय परन्तु फिर भी दामाखेड़ा ले इतर भी कई कबीर आश्रम के निर्माण होइस अउ कबीर के ज्ञान के खूब प्रचार छत्तीसगढ़ मा होइस। गला मा कंठी, माथा म सफेद तिलक अउ श्वेत वस्त्रधारी साधु, संत,महंत साध्वी मन कबीर के विचार ला समूर्ण छत्तीसगढ़ मा फैलाइन।
कबीर पंथ मा वंश परंपरा के अनुसार प्रथम पुत्र वंश गद्दी के हकदार होथे अउ बाकी पुत्र ल गुरु गोसाई के दर्जा मिलथे। गुरु गोसाई मन ला चौका आरती करें के पूरा अधिकार होथे। वंश विस्तार के सँग गुरु गोसाई मन घलो कबीर पंथ के विस्तार खातिर जघा-जघा कबीर आश्रम बनाइन अउ पंथ के विधान के अनुसार चौका आरती करिन अउ आजौ करत हवय। दामाखेड़ा मा वंशगुरू दयानाम साहेब के जब कोई संतान नइ होइस तब दयानाम साहेब के सतलोक गमन के बाद गुरुमाता कलाप देवी ह गृन्धमुनि नाम साहेब ल गोद लिन जो कि गुरु गोसाई के सुपुत्र अर्थात वंशज ही रहिन। लेकिन तत्कालीन कबीरपंथी समाज,कुछ साधु महंत मन येकर विरोध करिन अउ नाराज होके काशीदास जी ल गृन्धमुनि नाम निरूपित करके खरसिया मा गुरु गद्दी बना के बइठार दिन। तब से ले के आज पर्यन्त खरसिया मा भी वंश परंपरा चले आते हे ।
लेकिन खरसिया के गद्दी मा जो भी वंश गुरु विराजमान होथे वो योग्यता के अनुसार होथे न कि दामखेड़ा सरिक वंश कुल मा जन्म के अनुसार। वर्तमान में अर्धनाम साहब खरसिया गद्दी मा हवय। ये गद्दी मा विराजमान वंशगुरु निहंग होथे येमन धर्मदासी नादवंश कहे जाथे। खरसिया गद्दी से उदितमुनी नाम साहेब काशी म भव्य सतगुरु कबीर प्राकट्य धाम के निर्माण करे हवय अउ कबीर पंथ के प्रचार छत्तीसगढ़ ले बाहिर घलो करत हवय जे हमर बर गरब के बात हवय।
दामाखेड़ा मा वंश परम्परा टूट गे ये मान के कई महंत अपन अपन अलग-अलग कबीर आश्रम बना लिन जेमा- पंचमदास जी ग्राम-किरवई में कबीर आश्रम के स्थापना करिन। अइसने ग्राम-नादिया (राजनाँदगाँव/दुर्ग) मा घलो
कबीर आश्रम की स्थापना कर उत्तराधिकारी मन प्रचार प्रसार करत हवय।
*छत्तीसगढ़ म बीजक अउ पारख सिद्धांत*
मूलतः बीजक ही कबीर के सर्वमान्य ग्रंथ माने गे हवय जेमा निहित कबीर के वाणी (मूलतः साखी,सबद,रमैनी ) के रूप म संग्रहित हवय। कबीर के शिष्य मा अनेक संत हवय जेन 42 बंश के मान्यता ला एक सिरा से खारिज करथे। इमन बीजक के सिद्धांत ल ही मानथे अउ बीजक के प्रचार प्रसार करथे। येकर मानने वाला संत मन पारखी संत कहे जाथे। चौका आरती के परंपरा पारख सिद्धांत मा कहीं नइ हे। पारख मा चरण बन्दग़ी के मनाही हवय बंदगी दूर से ही करे जाथे।
पारखी संत परंपरा मा अभिलाष दास जी प्रकाण्ड विद्वान होइन । लगभग 80 किताब के रचना उन करिन । महासमुंद, राजिम आदि जघा मा पारखी संत के कबीर आश्रम बने हवय जिहाँ कबीर साहित्य के अध्ययन के सुविधा हवय।
अभिलाष दास जी कबीर के संदेश के प्रचार प्रसार खातिर इलाहाबाद में भव्य कबीर आश्रम बनाइन जिहाँ अध्ययन अउ अध्यापन दूनो के व्यवस्था हवय। अभिलाष दास जी मन छत्तीसगढ़ के पोटियाडीह में भी कबीर आश्रम के स्थापना करिन जिहाँ केवल साध्वी महिला मन ही रहिथे अउ कबीर के उपदेश के प्रचार करथें।
संत असंग साहेब (खीरी, उ.प्र) घलो छत्तीसगढ़ आइन अउ ग्राम-सरखोर मा नदी किनारे कबीर आश्रम बना के आज पर्यन्त कबीर वाणी के प्रचार प्रसार करत हवँय। इँकर अनुयायी काफी संख्या मा हवय।
*सरलग...3...*
अजय अमृतांशु,भाटापारा🙏
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
कवि बादल: *साहेब बंदगी साहेब*
🙏🙏🙏
*विषय-- छत्तीसगढ़ अउ कबीर दास*
हिंदी साहित्य के स्वर्णकाल जेला भक्तिकाल कहे जाथे म जन्म लेये(अवतरित) विश्व के सबले बड़े क्रांतिकारी, आडम्बर द्रोही, निर्गुण काव्यधारा के महान संत कवि, प्रथम हिंदी गजलकार अउ गोस्वामी तुलसीदास, गुरुनानक देव आदि के समकालीन पूज्यनीय कबीरदास जी के उपदेश के हमर धर्मधुरी पावन छत्तीसगढ़ म अबड़ेच प्रभाव हे। ये पावन भुँइया म कबीर पंथी सम्प्रदाय के जेमा सबो जात के मनखे शामिल हें, बहुत जादा जनसंख्या म निवास करथें। फेर कबीर पंथ ल मानने वाला म मुख्य रूप ले तेली (साहू) अउ पनिका (मानिकपुरी) मन के गिनती होथे।
छत्तीसगढ़ अउ कबीरदास जी ल समझना हे त सबले पहिली धनी धर्मदास जी ल जाने ल परही।
*धनी धर्मदास*--- छत्तीसगढ़ी के आदि कवि,छत्तीसगढ़ी कबीर पंथ के दामाखेड़ा म संस्थापक धनी धर्मदास जी (सन् 1433--1543 अनुमानित) के जन्म वर्तमान मध्यप्रदेश के बाँधवगढ़ म वैष्णव धर्म के मानने वाला कसौधन वैश्य परिवार म धनवान पिता मनमहेश अउ धर्मिन माता सुधर्मावती के घर होये रहिस हे। इनकर बचपन के नाम जुड़ावन प्रसाद रहिस। धनी धर्मदास नाम तो कबीरदास जी ह धराये रहिन।
धनी धर्मदास जी के पत्नी के नाम सुलक्षणावती रहिस जेला आमिन माता के नाम ले पुकारे जाथे अउ जेला विद्वान मन छत्तीसगढ़ी के प्रथम कवियत्री कहिथें। धनी धर्मदास जी के पुत्र के नाम चुड़ामणि रहिस जेन ह मुक्तामणि नाम ले कबीर पंथ के प्रथम गुरुगद्दी म बइठिन।
*छत्तीसगढ़ म कबीर पंथ, कबीरदास जी शिक्षा के प्रसार-प्रचार म धनी धर्मदास जी के योगदान*--- एक पइत जुड़ावन प्रसाद (धनी धर्मदास) ह तीर्थयात्रा म काशी गे रहिस उँहे वोला कबीर दास जी के दर्शन होइस अउ पावन सत्संग करे के मौका मिलिस। कबीरदास जी के अलौकिक उपदेश ह जुड़ावन प्रसाद के अंग-अंग म पोहगे । सतसंगति के अइसने असर तो होबे करथे। वोकर अंतर ज्ञान जागगे अउ संत कबीरदास जी ले दिक्षा लेके वोकर शिष्य बनगे। तहाँ ले अपन गुरु कबीरदास जी ल अनुनय विनय करके बाँधवगढ़ बला लिस। कुछ दिन पाछू कबीरदास ह बाँधवगढ़ आके अपार जन समुदाय के बीच जुड़ावन प्रसाद ल अपन प्रमुख शिष्य घोषित करत धनी धर्मदास नाम धरके ,बियाँलिस वंश तक कबीरपंथ के गुरुवाई के आशीर्वाद देइस। लाखों छत्तीसगढ़िया उही दिन कबीरपंथ ल अपना लिन।
धनी धर्मदास ह अपन पूरा सम्पत्ति ल कबीरदास जी के चरण म अर्पित कर दिस। अब भला कबीरदास जी जइसे फक्कड़ साधू ह वो धन ल का करतिस? वो कहिस--हे धनी धर्मदास ये धन ल दीन दुखी के सेवा म अउ सत के काम ल लगा दे।
संत कबीरदास जी के चार झन प्रमुख शिष्य--- चतुर्भुज,बंके जी, सहते जी अउ धनी धर्मदास जी रहिन। ये मन अपन गुरु के आदेश पाके भारतवर्ष के चारों दिशा म घूम-घूम के कबीरदास जी के उपदेश के प्रचार-प्रसार अउ शिक्षा देये ल धरलिन।
धनी धर्मदास जी ह अपन कर्मभूमि छत्तीसगढ़ ल चुनके इहाँ अपन सात प्रमुख शिष्य - बेटा चूड़ामणि ( अटल बियालिस वंश के प्रथम गुरु वंश), नाती कुलपति ,पत्नी सुलक्षणावती(आमिन माता), जागू, भगत, सूरत, गोपाल अउ साहिब दास मन संग गुरु आदेश के पालन करत कबीर पंथ के धजा फहरादिन।
धनी धर्म दास जी ह कबीर दास जी के उपदेश ल जनभाखा छत्तीसगढ़ी म मंगल, होली ,बसंत, बधावा, सोहर अउ चौका आरती के रूप म लिपिबद्ध करिन। अइसे भी ये जग विख्यात हे कि कबीर दास जी के उपदेश ल बीजक (सबद, साखी, रमैनी, उलटबांसी) के रूप म संकलित अउ लिपिबद्ध धनी धर्मदास जी ह करे हें।
*हमर छत्तीसगढ़ बर बहुतेच गौरव के बात ये के -- प्रश्नोत्तर अउ संवाद शैली म धनी धर्मदास जी के लिपिबद्ध मौलिक पांडुलिपि ---सदगुरु कबीर-धर्मदास संवाद के रूप म दामाखेड़ा के गुरुगद्दी सो उपलब्ध हे।*
*ओइसने परम विद्वान गुरुवंशी आचार्य गृंधमुनि नाम साहेब द्वारा संम्पादित---"धनी धर्मदास जी साहेब और आमिन माता की शब्दावली" वर्तमान के सर्व प्रमुख कबीर पंथ के केंद्र दामाखेड़ा म उपलब्ध हे।
छत्तीसगढ़ म सिगमा नगर ले 10 कि. मी. दूरिहा म स्थित छोटे से गाँव दामाखेड़ा ह आज कबीर पंथ के प्रमुख केंद्र हे जिहाँ भारी मेला भराथे जेमा महिना भर ले सत्संग चौका आरती होवत रहिथे।विश्व के लोगन जिहाँ गुरुदर्शन बर आके अपन ल धन्य कर लेथें। दामाखेड़ा म आके सतलोकी गुरवंश के बने मठ मन के दर्शन करके अपन भाग ल सँहराथें।
वर्तमान म 15 वां गुरुवंश प्रकाशमुनि नाम साहेब जी दामाखेड़ा म गुरु गद्दीनसीन हें।अउ 16 वां गुरुवंश उदित मुनि नाम साहेब के आविर्भाव होगे हे।
धन्य हे अइसन छत्तीसगढ़ के माटी जिहाँ सत के अँजोर सदा बगरे रहिथे अउ बगरे रइही।धन्य हे धनी धर्मदास जी, धन्य हे पावन तीर्थ दामाखेड़ा। धन्य हे कबीर पंथ।
साहेब बंदगी साहेब।
चोवराम वर्मा"बादल"
हतबन्ध
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
अजय अमृतांसु: *छत्तीसगढ़ अउ कबीरदास*
( भाग-3)
*कबीर पंथ अउ चौका आरती*
यद्यपि कबीरदास जी के गुरु रामानंद स्वामी सगुण उपासक रहिन फेर कबीरदास जी अपन गुरु ले इतर निर्गुण ब्रम्ह के उपासना म जोर दिन अउ निर्गुण पंथ के स्थापना करिन। निर्गुण भक्तिधारा के उन प्रंथम कवि रहिन। चौका आरती के संबंध म अलग अलग विद्वान मन के अलग अलग मान्यता हवय। कुछ के मतानुसार तात्कालीन समय म हिन्दू समाज मे बलि प्रथा चरम मा रहिस।
कबीर के विचारधारा ले जब मनखे मन प्रभावित होके कबीर पंथ अपनाये लगन तब उँकर मन ले बलि प्रथा ल हटाये खातिर चौका आरती के विधान शुरु करे गिस, जेमा बलि के जगह नारियल आहुति दे गिस।
एक मान्यता यहू हवय कि धर्मदास के सतलोक वासी होय के उपरांत संत कबीर स्वयं धर्मदास जी के सुपुत्र मुक्तामणि नाम ल 42 वंश के आशीर्वाद दे के अउ चौका आरती करके गुरुगद्दी मा बिठाईन। लेकिन पारखी संत येकर खण्डन करथे। उँकर कहना हवय कि एक महान संत जेन निर्गुण ब्रह्न के उपासना करें के बात कहिथें उन चौका आरती के बात कइसे कहि सकथे। जो भी हो चौका आरती के परंपरा छत्तीसगढ़ मा सैकड़ो साल ले चले आवत हे अउ हजारों महंत वंशगुरु ले पंजा ले के चौका आरती अउ कबीर पंथ के प्रचार करत हवय।
*उलटबासी अउ कबीर*
उलटबासी मा कबीर ल महारत हासिल रहिस । दुनिया मा सबले जादा उलटबासी कबीर ही लिखे हवय। उलटबासी पढ़े अउ सुने म तो उटपटांग अउ निर्थक लागथे फेर जब गहराई मा जाबे तब येकर गूढ़ अर्थ समझ आथे। पंडित मन के अहंकार ल टोरे खातिर ही कबीर उलटबासी लिखिन जेकर अर्थ ल बड़े बड़े पंडित मन घलो बूझ नइ पात रहिन । कबीर अउ गुरु गोरखनाथ समकालीन रहिन। गोरखनाथ के अहंकार ल कबीरदास जी टोरिन अउ अंत मा गुरु गोरखनाथ ला हार माने ल परिस। छत्तीसग़ढ़ी के वरिष्ठ गीतकार श्री सीताराम साहू "श्याम " द्वारा रचित ये कालजयी गीत ल आप सबे जानत हव जेन कबीर के उलटबासी ऊपर आधारित हवय -
बूझो बूझो गोरखनाथ अमरित बानी
बरसे कमरा फीजे ल पानी जी .....
ये गीत के लोकप्रियता ये बताथे कि कबीर के सन्देश छत्तीसगढ़िया जनमानस मा कतका लोकप्रिय हवय।
*कबीर के संबंध म मान्यता*
पानी से पैदा नहीं, स्वांसा नहीं शरीर।
अन्नहार करता नहीं, ताका नाम कबीर।।
कबीर पंथ के अनुयायी मन के ये मान्यता विधि के विधान के विपरीत प्रतीत होथे। येमा कहीं न कहीं भक्ति भाव के अधिकता के कारण अतिसंयोक्ति वर्णन होय प्रतीत होथे। ठीक वइसने काशी के लहरताल मा कमलपुष्प मा कबीर साहेब के प्रकट होना भी कहीं न कहीं भक्तिभाव के अधिकता दर्शाथे।
*गुरु शिष्य के सुग्घर परंपरा*
कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥
कबीर कहिथे कि वो मनखे जेन गुरु के महिमा ला नइ संमझ सकय तेन अंधवा अउ मूरख दोनों हवय, काबर यदि भगवान ह रिसागे त गुरु सो जाय के जघा हवय । फेर कहूँ गुरु रिसागे तब फेर कोनो मेर जघा नइ हे। न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि सम्पूर्ण भारतवर्ष के कबीरपंथी समुदाय मा भगवान ले पहिली दर्जा गुरु ल दे गए हवय। छत्तीसगढ़ मा चौका आरती के उपरांत कान फूंका के कंठी माला धारण करे जाथे, संगे संग शुद्ध सात्विकता के पालन के वचन गुरु ल दे जाथे। गुरु बनाये के सुग्घर परम्परा आज भी हमर इँहा प्रचलित हवय।दुख अउ दुःख के समस्त काम गुरु के द्वारा ही सम्पन्न कराये जाथे।
*उपसंहार -*
कबीर के अर्थ महान होथे। कबीर के संदेश हा दोहा,साखी,सबद,रमैनी अउ निर्गुणी भजन के रूप मा छत्तीसगढिया जन मानस म रचे बसे हे। छत्तीसगढ़ मा कबीर पंथ के अनुयायी लगभग 50 लाख हवय जेमा ज्यादातर पिछड़ा,अउ शोषित वर्ग के हवय। अभी भी अभिजात्य वर्ग में कबीर के उपासक कम ही मिलथे । धर्मदास जी ला छत्तीसगढ़ी के पहिली कवि अउ उँकर पत्नी आमीन माता ल प्रथम कवियित्री माने गे हे। उँकर लिखे पद मन आज भी छत्तीसगढ़ मा श्रद्घा के संग गाये जाथे। कबीर के अनुयायी मन में गजब के सहजता, सरलता अउ एक दूसर के प्रति सम्मान देखे बर मिलथे। आडम्बर अउ कर्मकांड ले कोसों दूर कबीरपंथी मन उपर ये दोहा सटीक बइठथे-
चाह मिटी चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह।
जिसको कुछ ना चाहिए, वो ही शहंशाह।।
सद्गुरु कबीर युग प्रवर्तक रहिन। हिंदी साहित्य के 1200 बछर के इतिहास म कबीर जइसन न तो कोनो होइस अउ न अवइया बेरा म कोनो हो सकय । कबीर अद्वितीय रहिन ये बात सब ल स्वीकारे बर परही ।
---अजय अमृतांशु, भाटापारा
🙏🙏🙏🙏
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
विषय छत्तीसगढ़ आऊ कबीरदास
कबीरदास जी भक्तिकाल निर्गुण विचारधारा के महान कवि चिंतक अवु विचारक रहीस कबीरदास के जनम उत्तरप्रदेश के तीर्थ नगरी काशी म विक्रम संवत 1455 माने जाथे कबीरदास जी के लालन पालन नीरू नीमा नाम के माता पिता द्वारा करे रहीस कबीरदास जी अल्हड़ कवि विचारक रहीस कबीरदास जी का वाणी निरगुन रहीस भक्ति काल म ढोंग आडंबर बहुत चरम सीमा म रहीस जे मनखे मन ल फटकार लगाया कबीरदास के वाणी अतेक सटीक हे जेला कोनो काट नहीं सका कबीरदास जी पढे लिखे नहीं रहीस फिर वोकर वाणी अचूक है जैसे
मसी कागद छुवो नहीं कलम गहियो नहीं हाथ ।
कबीरदास जी हिन्दू मुसलमान किसी को नहीं छोड़ा
जैसे
पाथर पुजे हरी मिले तो मै पुजू पहाड़ ,वा ते तो चाकी भली जो पिस खाय संसार ।
काकर पाथार जोर कर मसजिद लई बनाय , ता पर मूल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय ।
कबीरदास जी कबीर पंथ चलया
उत्तरप्रदेश से धर्म प्रचार करते मध्यप्रदेश पहुंचे उनके कई अनुयायि बने कबीरदास धरम प्रचार म निकले तो कहे
कबीरा खड़े बाज़ार मे लिए लुआठी हाथ , जो घर फूंके आपना चलो हमारे साथ ।
कबीरदास जी का पहला शिष्य धनी धरम दास जी थे जिसने कबीर साहब को अपना सब कुछ अर्पण कर दिए धनी धरम दास जी बांधवगढ़ के थे बाद में छत्तीसगढ़ के सीमा मे बसगे रहीस धनी धरम दास के जनम सवत 1452माने जाथे
धनी धरम दास जी के धरम पत्नी आमीन माता से मुक्तामणि नाम साहब प्रकट होए हे मुक्ता मणि नाम साहब से ही 42 वंश गिने जा थे ,जैसे
निराकार निज रूप है प्रेम प्रीति सो देव, जो चाहे आकार को प्रत्यक्ष सतगुरुदेव ।
अतः मुक्ति के लिए कोनो न कोनो पंथ माराग पकड़ेला पड़ाही
ब्यालिस वंश की गिनती सुदर्शन नाम साहब के प्रथम वंश से गिने जा थे अतः वंश पंथ दामाखेड़ा गद्दी आसीन की पूजा की जाती हैं
कबीर पंथ के अनुयायि न ही छत्तीसगढ़ म बल्कि भारत के दुसर प्रांत म भी हावय
कबीर पंथ के मानने वाले मान सादा जीवन सादा खान पान सादा पूजा पाठ चौका आरती कर्थे मस्तक कान म सफ़ेद तिलक लगा थे पंथ के मानने वाले म कातका प्रेम हे एक दूसरे से मिल थे त साहेब बंदगी कहिके अभिवादन कर थे आज छत्तीसगढ़ बहुत कबीर आश्रम हावय
साहेब बंदगी
मोहन डहरिया
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
बलदाऊ राम साहू- शोषित समाज के प्रतिनिधि हरे कबीर
कबीर हर साहित्यकार के संगे-संग समाज सुधारक घलो रहिस। कबीर के साहित्य हर मा धर्म, दर्शन, आध्यात्म हे ऊँहीं सामाजिक चिंतन के धारा हर घलो दिखथे। बल्कि ये कहे जा णम सकथे कबीर के साहित्य हर सामाजिक चिंतन अउ सामाजिक सरोकार के उपज आय। तत्कालीन समाज मा फैले बुराई हर रचनाकार ल अपन बात कहे बर उत्प्रेरित करथे। जब समाज हर गलत दिशा मा जावत हे, समाज ल रूढ़ी परंपरा हर जकड़ ले हे, समाज मा आपसी कलह हे धर्म के नाम मा अंधविश्वास अउ कट्टरता हे तब एक रचनाकार के दायित्व होथे ओमा अपन बात कहे। समाज ल इशारा करय। कबीर दास जी इहाँ एक चेतना ले सराबोर रचनाकार दिखथे। जब हिंदू मन ल मूर्ति पूजा के आडंबर मा फँसे देखथे तब कहिथे-
पाहन पूजे हरि मिले ,मैं तो पूजूं पहार
याते चाकी भली जो पीस खाए संसार ।
कबीर ल हम आज के नीचे तबके के प्रतिनिधि रचनाकार घलो कहि सकत हन। काबर कबीर हर तत्कालीन समाज के ठेकेदार मन ल जम के लतियाय हे। संत परंपरा के कवि मन मा कबीर अकेल्ला अइसन कवि आय जउन हम धर्म, जात-पात ले उप्पर उठ के अपन बात कहे हें। ओहर अपन समे के समाज मा घूँस के जउन देखिस ओला बिना लाग लपेट के सोझ-सोझ कहि दिस।
एकनि दीना पाट पटंबर एकनि सेज निवारा॥
एकनि दोनों गरै कुदरी एकनि सेज पयारा॥
कबीर अपन धर्म, दर्शन अउ आचरन ले समाज ल अंधविश्वास अउ पाखंड ले मुक्ति के रद्दा देखाय हे। वो हर निर्भय हो के आँखी ले आँखी मिला के बात कहे हें।
मध्यकालीन समाज मा आराजकता ये ढंग ले फैल चुके रहिस जिहाँ धर्मांधता अउ पाखंड हर विषबेल हो गे रहिस। ओ समाज मा कबीर समाजिक समरसता, विद्वेष रहित समाज के कल्पना करत आस्था अउ परेम के संचार करके समाज ल जोड़े के उदमी करत दिखथे। उन कहिथे-
जाति न पूछो साधु की, पूछि लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
उहीं सामंत अउ उच्च कुल मा जनम धरे नीच मन सीधा ललकालरथे -
ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊँची न होय ।
सुवर्ण कलश सुरा भरा, साधू निंदा होय ।
धार्मिक कठमुल्लों मन ल भी कबीर हर ऊँकरे भाषा मा बिना कौनो डर भय सोझ कहे हे।
कांकर पाथर जोरि के ,मस्जिद लई चुनाय।
ता उपर मुल्ला बांग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय।।
अउ थोरिक आगू कबीर धर्म के नाम मा¨हिंसा, बलि जइसे अमानवीय हरकत ल देखकर व्यथित होथे अउ कहिथें कि यह सब झूठी बंदगी, बिरिया पांच निमाज।
सांचहि मारै झूठ पढि़, काजी करै अकाज।
कबीर मानव जाति के मानवकृत सबो दुर्दशा ले मुक्त कराया के बीड़ा उठाय रहिस। कबीर के उप्पर बात करना सूरुज ल दीया देखाना हे। ये पाय के बस अतकी ।
-बलदाऊ राम साहू
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: कबीरदास जी अउ छत्तीसगढ़-खैरझिटिया
कबीरदास जी महाराज निर्गुण भक्ति धारा के महान संत, समाज सुधारक दीन दुखी मनके हितवा रिहिन, अउ बेबाक अपन बात ल कहने वाला सिद्ध पुरुष रिहिन। उंखर दिये ज्ञान उपदेश न सिर्फ छत्तीसगढ़, बल्कि भारत भर के मनखे मनके अन्तस् मा राज करथें। कबीरदास जी अउ छत्तीसगढ़ के ये पावन प्रसंग म,मैं उंखर कुछ दोहा, जेन छत्तीसगढ़ के मनखे मनके अधर म सबे बेर समाये रहिथे, ओला सँघेरे के प्रयास करत हँव, ये दोहा मन आजो सरी संसार बर दर्पण सरीक हे, ये सिर्फ पढ़े लिखें मनखे मनके जुबान म ही नही, बल्कि जेन अनपढ़ हे तिंखरो मनके अधर ले बेरा बेरा म सहज बरसथे-----
जब जब हमर मन म कभू कभू भक्ति भाव उपजथे, अउ हमला सुरता आथे कि माया मोह म अतेक रम गे हन, कि भाव भजन बर टेम नइहे, त कबीरदास जी के ये दोहा अधर म सहज उतर जथे-
*लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट।*
*पाछे फिर पछ्ताओगे, प्राण जाहि जब छूट ।।*
(देवारी तिहार म जब राउत भाई मन दफड़ा दमउ के ताल म, दोहा पारथे, तभो ये दोहा सहज सुने बर मिलथे।)
कबीरदास जी के ये दोहा, तो लइका संग सियान सबे ल, समय के महत्ता के सीख देथे, अउ आज काली कोनो कहिथें, त इही दोहा कहे अउ सुने बर मिलथे-
*काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।*
*पल में प्रलय होएगी, बहुरी करेगा कब ।।*
लोक मंगल के भाव जब अन्तस् म जागथे, त कखरो कमी, आफत -विपत देख अन्तस् आहत होथे, त हाथ जोड़ छत्तीगढ़िया मनके मुख ले इही सुनाथे-
*साईं इतना दीजिये, जा के कुटुम्ब समाए ।*
*मैं भी भुखा न रहू, साधू ना भुखा जाय ।।*
मनखे के स्वभाव हे सुख म सोये अउ दुख म कल्हरे के, कहे के मतलब सुख के बेरा सब ओखर अउ दुख आइस त ऊपर वाला के देन। फेर जब समय रहत ये दोहा हमला याद आथे, त सजग घलो हो जथन, अउ अपन अहम ल एक कोंटा म रख देथन। सुख अउ दुख हमरे करनी आय। गूढ़ ज्ञान ले भरे, कबीर दास जी के ये दोहा काखर मुख म नइ होही---
*दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय ।*
*जो सुख मे सुमीरन करे, तो दुःख काहे को होय ।।*
कहूँ भी मेर कुछु भी चीज के अति होवत दिखथे त सबे कथे- अति के अंत होही। कोनो भी चीज के अति बने नोहे। कतको मनके मुख म, कबीर साहेब के यहू दोहा रथे---
*अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,*
*अती का भला न बरसना, अती कि भलि न धूप ।*
मनखे ल आन के बुराई फट ले दिख जथे, अउ जब वोला कबीरदास जी के ये दोहा हुदरथे, त वो लज्जित हो जथे।कबीर साहेब कथे-
*बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,*
*जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय ।*
छत्तीसगढ़ का सरी संसार मया के टेकनी म टिके हे। मनखे पोथी पढ़े ले पंडित नइ होय, मया प्रेम मनखे ल विद्वान बनाथे। यहू दोहा जम्मो लइका सियान ल मुखाग्र याद हे-
*पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय*
*ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ।*
मनखे के सही अउ देखावा म बहुत फरक होथे, तभे तो हमर सियान म हाना बरोबर कबीर साहेब के ये दोहा ल कहिथें-
*माटी का एक नाग बनाके, पूजे लोग लुगाय।*
*जिन्दा नाग जब घर में निकले, ले लाठी धमकाय ।।*
तन के मइल ल धोय ले जादा जरूरी मन के मइल ल धोना हे, मन जेखर मइला ते मनुष बइला। यहू दोहा ल सियान मन हाना बरोबर तुतारी मारत दिख जथे-
*मल मल धोए शरीर को, धोए न मन का मैल ।*
*नहाए गंगा गोमती, रहे बैल के बैल ।।*
बोली ल गुरतुर होना चाही, तभे बोलइया मान पाथे। छत्तीसगढ़ के चारो मुड़ा इही सुनाथे घलो, चाहे राउत भाई मनके दोहा म होय, या फेर लइका सियान मनके जुबान म,
बने बात बोले बर कोनो ल कहना हे त सबे कहिथें--
*ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोए।*
*औरन को शीतल करे , आपहु शीतल होए ।।*
हम छत्तीगढ़िया मनके आदत रहिथे बड़ाई सुनना अउ बुराई म चिढ़ना, फेर जब वोला कबीर साहेब के ये दोहा सुरता आथे त रीस तरवा म नइ चढ़े, बल्कि सही गलत सोचे बर मजबूर कर देथें-
*निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय*
*बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।*
मनखे के शरीर म माया मोह अतेक जादा चिपके रहिथे, कि तन सिराये लगथे तभो माया मोह ल नइ छोड़ पाय, त कबीर साहब के ये दोहा सबके मुखारबिंद म सहज आ जथे-
*माया मुई न मन मुवा, मरि मरि गया सरीर।*
*आसा त्रिष्णा णा मुइ, यों कही गया कबीर ॥*
कबीरदास जी के बेबाकी के सबे कायल हन, कोनो जाति धरम ल बढ़ावा न देके सिरिफ इंसानियत ल बढ़ाइस-
*हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमान,*
*आपस में दोउ लड़ी मुए, मरम न कोउ जान।*
दोस्ती अउ दुश्मनी ले परे रहिके, सन्त ह्रदय कस काम करे बर कोनो कहिथे त, इही सूरता आथे-
*कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर*
*ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर।*
गुरु के महत्ता के बात ये दोहा ल छुये बिन कह पा सम्भव नइहे-
*गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय ।*
*बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय॥*
आजो कोई यदि अपन आप ल बड़े होय के डींग हाँकथे, त सियान का, लइका मन घलो इही कहिके तंज कँसथें-
*बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर ।*
*पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ।*
निर्गुण भजन *बिरना बिरना बिरना---* श्री कुलेश्वर ताम्रकार जी के स्वर म सीधा अन्तस् ल भेद देथे,वो भजन म ये दोहा सहज मान पावत हे, अउ इही दोहा हमर तुम्हर जिनगी के अटल सत्य घलो आय।
*माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे ।*
*एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ।*
घर म गुर्रावत जाँता, वइसे तो दू बेरा बर रोटी के व्यवस्था करथे, अउ कहूँ कबीरदास जी के ये दोहा मन म आ जाय, त अंतर मन सुख दुख के पाट देख गहन चिंतन म पड़ जथे-
*चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोय ।*
*दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय ।*
लालच बुरी बलाय, अइसन सबे कथें, फेर काबर कथें तेला कबीरदास जी महाराज जनमानस के बीच म रखे हे, अउ जब लालच के बात आथे,या फेर मन म लालच आथे, त इही दोहा मनखे ल हुदरथे-
*माखी गुड में गडी रहे, पंख रहे लिपटाए ।*
*हाथ मले औ सर धुनें, लालच बुरी बलाय ।*
कबीरदास जी के दोहा संग जिनगी के अटल सत्य सबे के मन म समाहित रथे, मनखे जीते जियत ही राजा रंक आय, मरे म मुर्दा के एके गत हे, भले मरघटी तक पहुँचे म ताम झाम दिखथे।
*आये है तो जायेंगे, राजा रंक फ़कीर ।*
*इक सिंहासन चढी चले, इक बंधे जंजीर।*
मनुष जनम ल ही सबे जीव जंतु के जनम ले श्रेष्ठ माने गेहे, अउ हे घलो, आज मनखे सब म राज करत हे। फेर जब कबीरदास जी के ये दोहा अन्तस् ल झकझोरथे, तब समझ आथे, मनखे हीरा काया धर कौड़ी बर मरत हे।
*रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।*
*हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ।*
धीर म ही खीर हे, इही बात ल कबीरदास जी महराज घलो केहे हे, जे सबके अधर म समाये रथे, अउ मनखे ल धीर धरे के सीख देथे-
*धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।*
*माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ।*
कबीरदास जी के ये दोहा मनखे ल इन्सानियत देखाय के, बने काम करे के शिक्षा देवत कहत हे, कि भले जनम धरत बेरा हमन रोये हन अउ जमाना हाँसिस, फेर हमला अइसे कॉम करना हे, जे हमर बिछोह म जमाना रोय।
*कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये,*
*ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये।*
काया के गरब वो दिन चूर चूर हो जथे जब हाड़, मास, केस सबे लकड़ी फाटा जस लेसा जथे। अइसन जीवन के अटल सत्य ले भला कोन अछूता हन-
*हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी, केस जलै ज्यूं घास।*
*सब तन जलता देखि करि, भया कबीर उदास।*
"अब पछताये होत का जब चिड़िया चुग गई खेत" काखर जुबान म नइहे। अवसर गुजर जाय म सबला कबीर साहेब के इही दोहा सुरता आथे-
*आछे दिन पाछे गए हरी से किया न हेत ।*
*अब पछताए होत क्या, चिडिया चुग गई खेत ।*
आत्मा अउ परमात्मा के बारे म बतावत कबीर साहेब के ये दोहा, मनखे ल जनम मरण ले मुक्त कर देथे-
*जल में कुम्भ कुम्भ में जल है बाहर भीतर पानि ।*
*फूटा कुम्भ जल जलहि समाना यह तथ कह्यौ गयानि ।*
छत्तीगढ़िया मन आँखी के देखे ल जादा महत्ता देथन, इही सार बात ल कबीरसाहेब घलो केहे हे-
*तू कहता कागद की लेखी मैं कहता आँखिन की देखी ।*
*मैं कहता सुरझावन हारि, तू राख्यौ उरझाई रे ।*
आज जब चारो मुड़ा कोरोना काल बनके गरजत हे, मनखे हलकान होगे हे, तन का मन से घलो हार गेहे, त सबे कोती सुनावत हे, मन ल मजबूत करव, काबर की "मनके हारे हार अउ मनके जीते जीत"। पहली घलो ये दोहा शाश्वत रिहिस अउ आजो घलो मनखे के जीये बर थेभा हे, मन चंगा त कठोती म गंगा हमर सियान मन घलो कहे हे-
*मन के हारे हार है मन के जीते जीत ।*
*कहे कबीर हरि पाइए मन ही की परतीत ।*
"जइसे खाबे अन्न , तइसे रइही मन" ये हाना हमर छत्तीसगढ़ म सबे कोती सुनाथे, कबीर साहेब घलो तो इही बात ल केहे हे- संग म पानी अउ बानी के बारे म घलो लिखे हे-
*जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय।*
*जैसा पानी पीजिये, तैसी बानी सोय।*
कबीरदास जी महाराज जइसन ज्ञानी सिद्ध दीया धरके खोजे म घलो नइ मिले, उंखर एक एक शब्द म जीवन के सीख हे। अन्याय अउ अत्याचार के विरोध हे। सत्य के स्थापना हे। दरद के दवा हे। केहे जाय त भवसागर रूपी दरिया बर डोंगा बरोबर हे। धन भाग धनी धरम दास जी जइसे चेला जेन, कबीर साहेब जी के शब्द मन ल पोथी बनाके हम सबला दिन। अउ धन भाग हमर छत्तीसगढ़ जेला अपन पावन गद्दी बनाइन। उंखरे पावन कृपा ले आज सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ कबीरमय हे।
साहेब बन्दगी साहेब
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
अजय अमृतांशु: *छत्तीसगढ़ मा कबीरपंथी मन के रीति रिवाज*
*चौका आरती -*
छत्तीसगढ़ के कबीरपंथी समाज म चौका आरती के परंपरा सैकड़ो साल से चले आवत हे। यह भी सत्य हवय कि कबीर पंथ म आये के बाद व्यक्ति निर्गुण विचारधारा के हो जाथे अउ सगुण विचारधारा के परम्परा जइसे - भागवत, कथा, रामायण, जग जँवारा आदि दूरिहा जाथे। कहीं न कहीं येकर भरपाई चौका आरती से होथे काबर की ये पंथ म चौका आरती ल सात्विक यज्ञ के संज्ञा दे गे हवय । इही कारण से सुख/ दुख के बेरा म चौका आरती के विधान हवय। चौका आरती कराये ले घर के शुद्धि होथे अउ आस पास के वातावरण घलो सकारात्मक होथे। चौका आरती ल महंत के द्वारा ही सपन्न कराये जाथे।
*महंत* -
वंश गुरु द्वारा जेन व्यक्ति ला चौका आरती के विधि विधान बताके पूर्णतः प्रशिक्षित करे के उपरांत ही अधिकृत करे जाथे वो व्यक्ति महंत (कड़िहार) कहलाथे। अर्थात वंशगुरु के दरबार में पूर्ण रूप से प्रशिक्षण के उपरांत चौका आरती के लिए अधिकृत करना ला *पंजा देना* कहिथे। पंजा मिले के उपरांत व्यक्ति ला *महंत* के दर्जा मिलथे अउ चौका आरती के साथ साथ पंथ के प्रचार प्रसार के जिम्मा भी होथे। महंत के द्वारा पंजा के दुरुपयोग / कबीर पंथ विरोधी गतिविधि/ अनैतिक कार्य के शिकायत मिले म पंजा वंश गुरु द्वारा छीन लिए जाथे। हालांकि अइसन स्थिति नहीं के बराबर ही आथे।
*देवान* -
चौका आरती ल कबीर पंथ मा सात्विक यज्ञ माने गे हवय। महंत के सहयोगी ला *देवान* कहे जाथे। चौका पूरे के काम देवान के होथे। चौका म जो भी सामग्री लगना हवय, चौका के दौरान यजमान मन ल दिशा निर्देश दे के काम देवान के होथे। चौका के दौरान अन्य साधु संत भी सहयोग करथे।
*नारियल भेंट करना*
चौका आरती के दौरान उपस्थित लोगन नारियल अउ पान ले के यथासंभव रुपिया पइसा के संग महंत ला भेंट करके सतगुरु से कामना करे जाथे। बाद में इही नारियल ल तोड़ के प्रसाद वितरित करे जाथे।
*कान फूँकवाना*-
चौका आरती के समय जेन ला भी गुरु बनाना हवय वो नारियल अउ पान ले के महंत के पास जाथे। महंत द्वारा वो मनखे ला तिनका धराये जाथे। महंत द्वारा व्यक्ति के कान मा मंत्रोच्चार के साथ वचन लिये जाथे। दोनों हाथ से तिनका टोर के गुरु बना लिए जाथे अउ महन्त द्वारा कंठी पहिरा के आशीर्वाव दे जाथे। ये पूरा प्रक्रिया ला कान फूँकवाना कहे जाथे।
*बन्दग़ी* -
बन्दग़ी मतलब प्रार्थना ले हवय, साहेब के संबंध सीधा सतगुरु कबीर ले हवय अर्थात जब कोनो एक दूसर ल *साहेब बन्दग़ी* कहिथे माने अभिवादन के संग सीधा सतगुरु ला सुरता करथे। जहाँ जहाँ कबीरपंथी मन समूह मिलथे साहेब बन्दग़ी के स्वर चारो डहर गूँजत रहिथे।
*परघाना*
जब भी कोई वंश गुरु के आगमन होथे तब उनला सीधा सीधा कार्यक्रम स्थल तक नइ ला के शहर/गाँव के बाहिर ही रोक लिये जाथे । वहीं से उनला परघाट हुए लाये जाथे। समाज के मनखे मन फूल,गुलाल अउ फटाका के संग पहिली स्वागत करथे । उपरांत सबसे आगे पुरुष वर्ग मन बाजा-गाजा,झाँझ,मृदंग के साथ आघु बढ़थे। महिला मन वंशगुरु /महंत के काफिला के ठीक आघु म आरती सजा के सोहर मंगल गात हुए सतगुरु के आराधना करथे। विशेष बात ये रहिथे कि सात्विक यज्ञ स्थल के आत तक महिला मन वंशगुरु ला पीठ नइ देखावय, अउ पाछू सरकत गुरु ल सामने देखत हुये सोहर गीत/भजन गात आथे । परघाये के प्रक्रिया कोनो कम गौरवशाली नइ रहय। ये दौरान लइका,सियान अउ युवा जबो उत्साहित नजर आथे। आजकल परघाये के बेरा महिला/युवती मन के द्वारा भारी संख्या मे रास्ता के दोनों ओर कलश ले के चले के शुरुआत घलो होगे हवय।
*कबीर पंथ म चौका आरती के प्रकार -*
*1. आनंदी चौका-*
जब भी घर परिवार म खुशी के माहौल बनथे, बर,बिहाव, छठी आदि अवसर मा आनंदी चौका के विधान हवय। कभू कभू खुशी के अवसर नइ भी रहय तभो लोगन परिवार के सुख शांति बर आनंदी चौका कराथे। आंनदी चौका के लिए सोम, बुध,गुरु,शुक्र ये दिन ला उपयुक्त माने जाथे।
*2. चलावा चौका -*
परिवार म जब ककरो निधन हो जाथे तब दिवंगत आत्मा के शांति खातिर जेन चौका आरती होथे वोला चलावा चौका कहिथें । शनि,रवि,मंगल के दिन ल चलावा चौका के लिए उपयुक्त बताय गे हे।
*3 सोला सूत चौका -*
ये आनंदी चौका के ही बड़े रूप आय जेला परिवार के सुख शांति के लिये करे जाथे। ये चौका मा 16 महंत बइठथे, 16 जोत के स्थापना होथे अउ 16 भजन गाये जाथे।
*4 एकोत्तरी चौका*
आनंदी चौका के ही ये दूसरा बड़े रूप आय लेकिन एकोत्तरी चौका ल केवल वंशाचार्य ही कर सकथे। ये चौका करे के अधिकार महंत या गुरु गोसाई ल नइ हे। चौका आरती के समय 101 महन्त बइठथे, 101 जोत के स्थापना होथे अउ 101 भजन के गायन होथे। एकोत्तरी चौका गुरुगद्दी स्थल या कहीं बड़े भारी सार्वजनिक स्थल म ही सम्पन्न होथे काबर कि येमा खर्च भी काफी आथे।
*जन्म संस्कार* -
लइका के जन्म मा नामकरण संस्कार गुरु के द्वारा ही करे जाथे। हर परिवार/खाप के कोई न कोई गुरु अवश्य होथे जेन अइसन अवसर मा नवागन्तुक शिशु के नामकरण करथे। छठी म चौका आरती, भजन अउ ग्रंथ के आयोजन भी होथे। माई मन के द्वारा सोहर मंगल अउ ग्रंथ मण्डली के द्वारा कबीर के निर्गुणी भजन उत्साह के संग गाये जाथे।
*विवाह संस्कार -*
विवाह के समय कबीरपंथी मन 7 फेरा तो जरूर लेथे लेकिन फेरा के बेरा अग्निकुंड रखे विधान नइ हे। अग्निकुंड के जघा चौका के आरती (जोत) ही होथे जेकर फेरा लिए जाथे। महंत के द्वारा नव दम्पत्ति ल 7 फेरा करवाये जाथे। आरती ल ही अग्नि के रूप मा साक्षी माने जाथे अउ सात फेरा ले जाथे। विवाह के समय महंत द्वारा वर -बधु के कान फूँके जाथे याने वर वधु द्वारा गुरु बनाये जाथे। सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए साकोचार के पाठ महंत ही करथे अउ 7 भाँवर में 7 वचन एक दूसर ल वर-वधु द्वारा दिए जाथे । ये प्रकार ले विवाह संपन्न होथे।
*मृत्यु संस्कार*-
मृत्यु मतलब जीवन के अंतिम सत्य। कोई भी कबीरपंथी मृत्यु ले नइ डराय काबर कबीर साहब पहली से ही उन ल आगाह कर चुके हवय -
आये हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर ।
एक सिंहासन चढ़ि चले,एक बँधे जंजीर ॥
दिवंगत मनखे ल *सतलोकवासी* कहे जाथे। मृत्यु उपरांत कबीर पंथ मा मृत शरीर ला दफनाये के परम्परा हवय। मृतक ला देवान अउ संत समाज के द्वारा भजन गात हुए झाँझ मजीरा के साथ श्मशान घाट ले जाये जाथे जिहाँ विधि विधान के साथ दफना दिए जाथे। मृत्यु संस्कार भी महंत द्वारा ही सम्पन्न कराये जाथे। कबीर के ये मानना रहिस कि शरीर ले आत्मा निकले के उपरांत शरीर के कोई औचित्य नइ हे। जलाव, दफ़नाव या गंगा म बहाव येकर ले कोनो फरक नइ परय। आत्मा तो तुरते दूसर देह धारण कर लेथे।
नहावन के अंतिम दिन महिला मन तालाब ले स्नान के बाद भजन गावत हुए घर आथे ये परम्परा केवल छत्तीसगढ़ म देखे बर मिलथे अउ केवल कबीरपंथ मा । प्यारेलाल गुप्त जी अपन किताब म ये बात के उल्लेख करत हुए लिखे हवय कि "कबीरपंथ ने एक नया संस्कार दिया है मृत्यु संस्कार।"
*सात्विकता के गारंटी*-
कोनो भी कबीरपंथी परिवार माने सौ प्रतिशत सात्विकता के गारंटी। कबीरपंथी परिवार म माँस मदिरा के सेवन पूर्णतः प्रतिबंधित होथे। कोनो भी व्यक्ति के शिकायत मिले मा वो मनखे ल परिवार/समाज से बहिष्कृत कर दे जाथे। आचार विचार खान पान म सात्विकता के पालन करने वाला मनखे ही विशुद्ध रूप कबीरपंथी माने जाथे। ये बात अलग हवय कि ग्लोबिलजेशन अउ उपभोकतावादी संस्कृति के चलते कबीरपंथी परिवार म घलो कुछ विकृति आ गे हवय लेकिन येकर संख्या बहुत कम हवय ।
*माघी पुन्नी मेला के उत्तपत्ति कबीर पंथ ले*
कबीर पंथ में माघी पुन्नी मेला के शुरुआत 15 वीं शताब्दी म ही कुदुरमाल मा होगे रहिस। बाद म पुन्नी मेला छत्तीसगढ़ के अन्य हिस्सा म बगरिस।
येकर उल्लेख भोजली गीत म घलो मिलथे-
जल्दी जल्दी बाढ़व भोजली
जाबों मेला कुदुरमाले....
कुदुरुमाल म बकायदा पुन्नी मेला भरावत रहिस जिहाँ कबीरपंथी मन सकलाय। वइसे भी कबीरपंथ मा पूर्णिमा के खासा महत्व हवय।
छत्तीसगढ़ मा कबीरपंथी समाज के रीति-रिवाज,परम्परा अउ संस्कृति तो विस्तृत हवय येला केवल एक प्रारम्भिक परिचय ही कहि सकथंव ।
*सादर साहेब बन्दग़ी साहेब*
🙏🙏🙏
अजय अमृतांशु,भाटापारा
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
अजय अमृतांशु: *छत्तीसगढ़ के लोक जीवन म कबीर*
छत्तीसगढ़िया मन के नस नस म कबीर समाय हवय कइहँव त ये बात अतिशंयोक्ति नइ होही। जेन छत्तीसगढ़ मा कबीरपंथ के लगभग 50 लाख अनुयायी हो उँहा कबीर के लोकप्रियता के अंदाजा आप अइसने लगा सकथव। कबीर के दोहा, साखी, सबद रमैनी, निर्गुण भजन, उलटबासी छत्तीसगढ़ म सैकड़ों बछर ले अनवरत प्रवाहित होत हवय।
एक डहर कबीर भजन के हजारों ऑडियो, वीडियो उपलब्ध हवय उन्हें दूसर डहर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जुग म यू ट्यूब म आप घर बइठे कबीर के अमृतवाणी के पान कर सकथव। छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिया जी अपन जीवनकाल में कबीर उपर बहुत काम करिन। कबीर उपर उँकर कई आडियो /वीडियो आप मन ला मिल जाही। सही मायने म उन कबीर के बहुत बड़े फालोवर रहिन येकरे कारण उँकर वाणी भी कबीर के जइसे खरा रहय। उन जब भी बात करय बिना लाग लपेट के खरी खरा कहँय। उँकर एक प्रसिद्ध गीत जेन आज भी लोगन के मुँह ले निकल जाथे -
हम तोरे संगवारी कबीरा हो ...
येकर अलावा - माया तजि ना जाय.....
करम गति टारे नहीं टरे...., बीजक मत परवाना... आदि कई कबीर भजन के गायन मस्तुरिया जी करिन। हालांकि येकर मूल्यांकन आज पर्यन्त जतका होना रहिस नइ हो पाय हवय।
छत्तीसगढ़ के गीतकार मन कबीर के महत्ता ल न केवल स्वीकार करिन बल्कि अँगीकार भी करिन। बेरा-बेरा अलग-अलग गीतकार मन अपन-अपन हिसाब से कबीर के साखी,दोहा अउ भजन ल अपन गीत मा उतारिन। कबीर के कई कालजयी भजन मूल रूप म मिलथे त कई छत्तीसगढ़ी म अनुदित भी । अइसने एक भजन देखव-
रहना नहीं देश बिराना हो रहना नहीं...
यह संसार कागज के पुड़िया
बून्द परे घुर जाना हे, रहना नहीं ......
ये भजन ल छत्तीसगढ़ मा आज पर्यन्त न जाने कतका गायक गाइन होही अउ आज भी गावत हे येकर गिनती संभव नइ हे।अइसन अनेकों भजन छत्तीसगढ़ के लोक जीवन म रचे बसे हे। कभू भी मुँह से अनायास कोनो भी भजन प्रवाहित होय लगथे।
पण्डवानी के नाम सुनते साठ हमर आँखी के आघू म पाँचो पाण्डव के कथा चलचित्र सरिक चले लागथे । पण्डवानी मा आप पाँच पाण्डव /महाभारत के ही कथा सुने होहू फेर अब विगत कम से कम 40 बछर ले पण्डवानी शैली म कबीर के जीवन दर्शन भी गाये जावत हे। येहू ला श्रोता मन ओतके आनन्दित होके सुनथे जतका उन महाभारत के कथा ल सुनथे। पण्डवानी शैली मा कबीर भजन के गायन म त्रिवेणी साहू काफी लोकप्रिय होइन। पहिली इंकर माँ गायन करत रहिन।
खंझेरी तो नंदागे फेर पहिली खंझेरी मा कबीर के निर्गुण भजन के लॉजवाब भजन मन सुने ल मिलय। आकाशवाणी से कबीर निर्गुण भजन के प्रसारण भी होवय। लोगन अपन कामकाज निपटात रहय अउ दूसर डहर भजन चलत रहय।
छत्तीसगढ़ लोकगायक मन कबीर के कई भजन ल ज्यों के त्यों गाइन त उँहे दूसर डहर भजन के छत्तीसगढ़ी /अपभ्रंश रूप घलो मिलथे। बावजूद ओकर लोकप्रियता म कोनो कमी नइ आइस।
झीनी झीनी रे झीनी बीनी चदरिया...
झीनी रे झीनी रे....
कि राम नाम रस भीनी चदरिया .....
कबीर के हजारों दोहा में से सैंकड़ो लोकप्रिय दोहा मन इँहा के मनखे ल मुँहजुबानी याद रहिथे अउ जेन मनखे यदि ये कहि दिस के ये दोहा ल मैं नइ सुने हँव तो वो हँसी के पात्र भी बनथे। कबीरपंथी समाज म एक अनूठी परम्परा हवय - जब भी सामूहिक पंगत होथे त खाना पोरसे के बाद भोजन पोरसने वाला ह कबीर के दू-तीन ठिन साखी पढ़थे ओकर उपरांत ही खाये के शुरुआत करे जाथे। मतलब खाना से लेके सोये तक कबीर के साखी/भजन इँहा के लोक जीवन म आज भी देखे जा सकथे। छत्तीसगढ़ के लोक जीवन मा रचे बसे कुछ प्रसिद्ध भजन देखव -
कुछ लेना ना देना मगन रहना....
मोर हीरा गँवागे कचरा में ........
तोर गठरी मा लागय चोर बटोहिया....
कैसा नाता रे फुला फुला फिरे जगत में..
कोन ठगवा नगरिया लूटल हो .....
मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे मैं तो तेरे......
मन लागा मेरो यार फकीरी में ....
पानी बीच मीन पियासी संतो....
संतो देखत जग बौराना ......
अइसन अनेक भजन छत्तीसगढ़ के लोक जीवन म रचे बसे हवय। ये भजन ल आप कोनो भी मनखे करा पूछ लव न केवल बता दिही बल्कि व्याख्या भी कर देही।
कबीर के शिष्य धनी धर्मदास के पद-
आज मोरे घर मा साहेब आइन हो.......
अउ आमीन माता के पद -
उठो हो सुहागिन नारी झारि डारो अँगना.....
जइसन कर्णप्रिय भजन मन इँहा के नर-नारी मन ला कंठस्थ रहिथे। कोनो भी सुअवसर मा गाये बर तियार रहिथे।
छत्तीसगढ़ के आम जनमानस म दोहा के लोकप्रियता के का कहना। हर अवसर मा हर प्रकार के कबीर के दोहा मनखे मन चल-फिरत बोल देथे। देवारी मा राउत मन के दोहा काय कहना । होली मा फाग गीत बेरा कबीर के दोहा कहे बाते कुछ अलग रहिथे। कबीर के दोहा हा फाग गीत म चार चाँद लगाए के काम करथे।
रामायण के मंच मा भी कबीर भजन प्रस्तुत करके बड़े बड़े भजनहा मन मनखे मन के दिल जीत लेथे,ये कबीर के लोकप्रियता के ही परिचायक हवय।
वरिष्ठ गीतकार सीताराम साहू "श्याम " द्वारा रचित ये कालजयी गीत जेला लइका सियान सबो जानत हवय ये कबीर के उलटबासी ऊपर आधारित हवय -
बूझो बूझो गोरखनाथ अमरित बानी
बरसे कमरा फीजे ल पानी जी .....
*नाचा म कबीर के संदेश*
नाचा छत्तीसगढ़ के पहिचान आय अउ नाचा म कबीर के संदेश नाचा म प्राण फूँके काम करथे।जोक्कड़ मन के द्वारा एक दूसर से नोक झोंक करत हुए कबीर के दोहा/साखी के माध्यम ले संदेश देना नाचा के प्रमुख प्रस्तुत्ति होथे। जोक्कड़ मन धारदार व्यंग्य के साथ कबीर के दोहा भी कहिथे। कबीर के उलटबासी ल छत्तीसगढ़ी मा मजेदार अंदाज म प्रश्न करथे अउ जब दूसरा जोक्कड़ वोकर उत्तर नइ जानय तब मजेदार अंदाज मा सही उत्तर बताथे। ये दौरान दर्शक मन आनन्दित होके देखथे अउ कबीर के कहे बात सीधा उँकर अंतस मा उतरथे।
माटी कहे मोला धीरे धीरे रौंदबे जी कुम्हरा....
एक दिन अवसर बीतही रे कुम्हरा...
जब मैं रौंदहँव तोला ...
अरे बिरना बिरना रे चोला...
साखी (दोहा) की परंपरा नाचा में खड़े साज से प्रारंभ होकर आज भी बैठक साज में विद्यमान है। ऐसा भी नहीं है कि साखी की यह परंपरा नाचा में ही है - डॉ. पी.सी.लाल यादव।
सादा वस्त्र, सात्विक विचार, सात्विक भोजन अउ मृत्यु उपरांत कफ़न भी सादा। ये कबीर के ही देन आय जेन छत्तीसगढ़ मा सदियों से चले आत हे।
कुल मिला के कबीर के रचे साहित्य के धारा छत्तीसग़ढ़ के लोक जीवन मा अनेक रूप मा बोहावत हे। कहूँ उपदेश या प्रवचन के रूप मा त कोनो मेर भजन/साखी/दोहा के रूप म। कबीर के साहित्य छत्तीसग़ढ़ मा आसानी से उपलब्ध हवय।दामाखेड़ा के साथ साथ अनेक कबीर आश्रम में कबीर साहित्य के विशाल संग्रह मिल जथे। समय समय म अनेक विद्वान ये पावन धरा मा कबीर के विचारधारा के प्रचार प्रसार के लिए आवत रहिथे जिंकर वाणी के श्रवणपान यहाँ के लोगन करत रहिथे। सीधा सादा जीवन छत्तीसगढ़िया मनखे के पहिचान बन गे हे।
साहेब बन्दग़ी साहेब🙏
*अजय अमृतांशु*,भाटापारा
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
चित्रा श्रीवास: *कबीर दास अउ सामाजिकता*
कबीर शब्द एक फारसी शब्द आय जेखर अर्थ होथे *महान्*।एक महान संत,महान निर्गुण उपासक,महान समाज सुधारक,कमजोर मनखे के सबले बड़े हितवा,हर रूप मा कबीर विशेष हें।भक्ति काल के निर्गुण उपासक कवि मन मा कबीर दास के नाम हा सोनहा अक्षर मा जगमगावत हे।पं.रामचंद्र शुक्ल मन कबीर के बारे मा लिखे हावय-"प्रतिभा उनमें काफी प्रखर थी।"कबीर के समय मा समाज मा आडम्बर ,पाखंड ,शोषण, हिन्दू मुस्लिम वैमनस्यता कूट कूट के भरे रहिस जेखर विरोध कबीर दास जी करिन अउ सबला फटकार लगाइन। इही कारण ये कि कबीर के समाज सुधारक रूप हा मोला सबले जादा पसंद हवे काबर कि समाज के भलाई हा पूरा मानवता के भलाई होथे।
कबीर दास जी धार्मिक पाखंड के विरोध करिन अउ कहिन-
कस्तूरी कुण्डली बसे,मृग ढूँढ़े बन माहि।
ऐसे घटि घटि राम है,दुनियाँ देखे नाहि।।
नाभि मा कस्तूरी हवे तभो मिरगा हा जंगल मा घूम घूम के वोला खोजत रहिथे ओइसने कण कण मा राम बसे हवे जेला दुनिया नइ देख पावय।
माला फेरत जुग गया, गया ना मनका फेर।
कर का मनका डारि के,मन का मनका फेर।।
माला जपत कई साल बीत गिस फेर मन के मइल साफ नइ होइस।हाथ के माला छोड़ के मन के मइल ला साफ कर।
काँकर पाथर जोड़ के ,मस्जिद दियो बनाय।
ता चढी़ मुल्ला बाग दे,बहरो भयो खुदाय।।
काँकर अउ पथरा ला जोड़ के मस्जिद बनाइस जेमा चढ़के कुकरा कस बाग देवत हावय।खुद हा भैरा हावय का।
कबीर दास मूर्ति पूजा के घलौ विरोध करिन।
पाथर पूजे हरि मिले तो मै पूजूँ पहार।
याते तो चाकी भली,पीस खाय संसार।
पत्थर के पूजा करे ले भगवान मिलही ता मै पहाड़ के पूजा करिहवँ ।येखर ले बढ़िया तो जाँता हावय जेमा पिसान पीस के दुनिया हा खाथे।
मूक मासूम जीव के हत्या ला घलौ कबीर दास जी अच्छा नइ मानयँ।
बकरी पाती खात हे,ताकी काठी खाल।
जो नर बकरी खात हे,तिनकों कौन हवाल।।
प्रेम ,करुणा,दया के भावना ला कबीर दास जी सबले बड़े माने हे।येखर बिना पढ़ाई के कोनो मोल नइ है।
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया ना कोय।
ढाई आखर प्रेम का ,पढ़े सो पंडित होय।।
जाँति - पाँति,ऊँच-नीच के भाव हा समाज के कोढ़ आय अउ समाज के उन्नति मा बाधक घलौ आय।येखर बर कबीर दास जी कहें हें।
जाति ना पूछो साधु की,पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तलवार की,पड़ी रहन दो म्यान।
कबीर दासजी गुरु के महत्तम ला बताय हावय
सतगुरु की महिमा, अनंत किया उपकार।
लोचन अनंत उघाड़िया,अनंत दिखावण हार।।
गुरु ला कबीर दास जी परमात्मा ले घलौ बड़े माने हे।
गुरु गोविंद दोऊ खड़े,काके लागी पाँव।
बलिहारी गुरु आपकी, गोविंद दियो बताय।
कबीर कइथें कि जनम ले कोनो छोटे बड़े नइ होय
जो तू बाँभन बंभनी जाया,तो आन वाट है क्यों नही आया।
जो तू तुरक तुरकनी जाया,तो भीतर खतना क्यों ना कराया।।
धन संपत्ति ला जोरे के कुछु फायदा नोहय कबीर दास जी के इही कहना हे-
पूत कपूत ता का धन संचय।
पूत सपूत ता का धन संचय।।
बेटा कुपात्र हे ता धन जोरे ले का फायदा वोहा सब धन ला बरबाद कर डारही अउ बेटा सुपात्र रइही ता खुदे धन कमा डारही।
दुनिया के भलाई ,कल्याण,बंधुत्व बर पाखंड अउ बुराई के नाश के भाव कबीर दास जी के रचना मा हावय
हिन्दू के दया नहीं, मेहर तुरक के नाहि।
कहे कबीर दोनों गये,लख चैरासी माहि।।
दीन हीन ला परेशान करे ले कबीर दास जी मना करें हें।
दुर्बल को ना सताइये,जाकी मोटी हाय।
मुई खाल की साँस सो,लौह भस्म हो जाय।।
कबीर दास क्षण भंगुर जिनगी ला पानी के बुलबुला कस कहें हावयँ।
पानी केरा बुदबुदा, अस मानुष की जात।
आते ही छिप जायगा, ज्यो तारा परभात।।
अइसन समाज सुधारक, युग पुरुष जेहा शोषित पीड़ित उपेक्षित मनखे के पीर ला समझिस अउ शोषक शासक वर्ग ला अपन रचना के माध्यम ले फटकार लगाइस। अन्याय अत्याचार के खुलके विरोध करिस ,उपेक्षित समाज के अवाज बन गिस।इही कारण ये कि छत्तीसगढी़ समाज के जन जन मा कबीर साहित्य हा बसे हावय जइसे देश के आउ भाग मा बसे हावय। हमर छत्तीसगढ़ खेती प्रधान राज हवे इहा के जादा लोगन खेती मजूरी के काम करथे।बाहरी लोगन इहाँ आके राज करत हावयँ अउ इहाँ के जंगल अउ जमीन मा अपन कब्जा करे हावे ।अपने राज मा छत्तीसगढ़िया शोषित अउ उपेक्षित हे इही कारण ये कि वोहर कबीर ले जुड़ाव महसूस करथे।अउ छत्तीसगढ़ मा जनम नइ लेहे के बावजूद कबीर अउ कबीर पंथ हा छत्तीसगढ़ मा लोकप्रिय होइस ।
चित्रा श्रीवास
बिलासपुर
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
वासन्ती वर्मा: *समाज ला सत् अउ अहिंसा के रद्दा बतोईया - सद्गुरु कबीर*
*भाग- 1*
सद्गुरु कबीर साहब के लाखों अनुयायी मन छत्तीसगढ़ म रइथें। जेनमन खेती-किसानी के संग छोटे-मोटे काम-धंधा करत जीवनयापन करथें अउ सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करत कबीर साहब के बताये- सत् अउ अहिंसा के रद्दा म चले के कोशिश करथें। कबीरपंथी समाज मा माँस-मदिरा सेवन के निषेध हे। कबीरपंथी मन कबीर साहब ला भगवान के रूप म पूजथें। ओमन के मानना हे कि कबीर साहब प्रकाश रूप म धरती म अवतरित होइन अउ तरिया के भीतर पुराइन पान के बीच खोखमा फूल के उपर प्रगट होय रहिन।अइसे मान्यता हे कि सद्गुरु कबीर साहेब के जनम सन् 1398 के जेठ पुन्नी के दिन होत रहिस, ते पाय के जेठ पुन्नी के दिन *कबीर जयंती* मनाय जाथे। फेर कबीरपंथी मन के मानना हे कि कबीर साहब के जनम एखर पन्द्रह दिन पहिली जेठ अमावस्या के दिन होय रहिस।एही दिन कबीर साहेब हा तरिया के भीतर पुराइन पान के बीच खोखमा फूल के ऊपर प्रगट होय रहिन। ते पाय के कबीरपंथी मन जेठ अमावस्या के दिन *बरसाइत उपास* रहि के *प्रगट दिवस* मनाथें। एखर बाद कबीर साहेब 120 बछर धरती म प्रगट रूप मा रहिन।
कबीरपंथ के अउ बड़े-बड़े कतकोन विद्वान मन के मानना हे कि सद्गुरु कबीर जइसन ज्ञानी पुरुष पाछू के दू हजार बछर मा ए जगत मा कोनो पैदा नई होय हे। सद्गुरु कबीर के बानी ह मनखे मन के जीवन मा गहरा प्रभाव डाले हे। जिनगी के डोरी मा उनखर विचार ह माला कस गुथाँय हवय। धर्म अउ समाज के जम्मो पक्ष मा उनखर विचार ह- प्रश्न मन के विवेकपूर्ण समाधान प्रस्तुत करे हे। समाज अउ मनखे, राजा अउ रंक, नगर अउ गाँव, मानव अउ पशु जगत, चेतन अउ जड़, आत्मा अउ परमात्मा सबो के बात ला कबीर साहेब हा सुग्घर अउ सरल ढंग ले बरनन करे हें। एकरे सेथी कबीरपंथ मा संत कबीर ला ' *सद्गुरु* ' के दर्जा मिले हवय।
कबीरपंथ- गृहस्थ धर्म के पंथ हे। एमा जंगल-पहार म जाके पूजा-पाठ करे के विधान नि हे बल्कि गृहस्थ धर्म के पालन करत घर-परिवार के संग सामान्य पूजा-अर्चना के विधान हे जेमा लोग-लइका, स्त्री-पुरुष सब्बो शामिल होथें फेर घर-परिवार के स्त्री मन के भूमिका सर्वोपरि रहिथे। पुरुष मन से जादा नारी मन कबीर साहेब के संदेश ला ग्रहण करे हें।
सद्गुरु कबीर साहेब- मांस , मदिरा सेवन, वेश्यावृति, जुआ चोरी जइसन सामाजिक बुराई ला जड़ से खतम करे के उपदेश दिए हें-
माँस भखै मदिरा पिवै,धन वेस्या सों खाय।
जुआ खेलि चोरी करै,अन्त समूला जाय।।
सद्गुरु कबीर के दृष्टि मा जेन मनुष्य के हिरदे म प्रेम अउ जीव के प्रति करूणा के संचार नि होय, ओहा मुरदा समान हे-
जा घट प्रेम न संचरै,सो घट जानु मसान।
जैसे खाल लुहार के,स्वांस लेत बिनु प्रान।।
सद्गुरु कबीर समाजवादी अउ समतावादी महापुरुष रहिन। उनखर विचार मा जौन व्यक्ति ऊँच-नीच के भेद नि करे वोहा भगवान के समान हे-
लोहा,कंचन सम करि जाना,
ते मूरत होवय भगवाना।
सरलग........
- वसन्ती वर्मा
बिलासपुर
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
वासन्ती वर्मा: *समाज ला सत् अउ अहिंसा के रद्दा बतोईया - सद्गुरु कबीर*
*भाग- 2*
सद्गुरु कबीर जब ए धरती मा अवतरित होईन ओ समय स्त्री मन अर्धगुलामी के जीवन जीयत रहिन।ओमन के बलात् धर्म- परिवर्तन कराए जात रहिस। सद्गुरु कबीर साहेब, स्त्री-मन के गुलामी के विरोध करिन ता उन ला पंडित, मौलवी, सामंत-राजा मन के जबरजस्त विरोध झेलना परिस।सद्गुरु कबीर सबो ला समझावत कहिन-
*नारी निन्दा मत करो,नारी नर की खान।*
*नारी से नर होत है,ध्रुव, प्रह्लाद समान।।*
सद्गुरु कबीर साहेब के मानना रहिस कि समाज मा न जादा गरीब होना चाहिए न जादा अमीर। उखर विचार मा जादा संचित धन ला जरुरतमंद मन-ला बाँट देना चाही-
*जो जल बाढ़य नाव में,घर में* *बाढ़य दाम।*
*दोनों हाथ उलीचिए,यही सयानों काम।।*
सद्गुरु कबीर के सबले बड़े ज्ञान के बात ए रहिस कि ओमन गृहस्थ अउ विरक्त दुनों ला मुक्ति के अधिकारी मानिन। कबीरपंथ मा घर-परिवार छोड़ के जंगल-पहार मा परमात्मा ला खोजे बर नी कहे गे हे, न ही यज्ञ-हवन करे बर, न ही माला जपे बर कहे गे हे। कबीरपंथ मा सहज उपासना पूजा-पाठ के विधान हावय, जेला स्त्री-पुरुष दोनों कर सकत हें। *वास्तव म कबीरपंथ ला पारिवारिक धर्म पंथ कहे जाय त कोई अतिशयोक्ति नि होही।*
सद्गुरु कबीर के जीवन-दर्शन के महात्मा गाँधी उपर बहुत प्रभाव परिस। कबीर साहेब अहिंसा अउ सत् के रद्दा मा चले के उपदेश जीवन भर दीन। एती गाँधीजी हा सत् अउ अहिंसा ला स्वराज के लड़ाई म अपन हथियार बनाईन, भलेहि ओखर जान चल दिस फेर ए रद्दा ला गाँधीजी अन्त समय तक नि छोड़िन। कबीर साहेब के पालन-पोषण जुलाहा परिवार म होय रहिस, ते पाय के सूत काते के चरखा ह जीवन भर ओखर साथ रहिस। गाँधीजी घलो चरखा ला अपनाईस अउ स्वराज के लड़ाई म चरखा ला लेके संगे-संग चलिन। *वास्तव म चरखा मा लगातार कर्म करे के मर्म छुपे हे।* लइका, जवान, बुढ़ा, स्त्री-पुरुष सबो कोई चरखा मा सूत कात सकत हें- दिन मा घलो अउ रात मा घलो। एमा बहुत जादा श्रम के आवश्यकता नि रहे। फेर ओला सबो कोई लगातार चला सकत हें।
सद्गुरु कबीर साहेब हा छै सौ बरस पहिली मनुष्य जाति के उत्थान बर जो उपदेश दे रहिन, ओहा आज घलाव वइसनेच प्रासंगिक हे। समस्त मानव समाज हा हमेशा सद्गुरु कबीर के रिणी रहीं।
*सद्गुरु हम सू रीझि करि,एक* *कहा परसंग।*
*बरसा बादल प्रेम का, भीग* *गया सब अंग।।*
🙏🏻🌷🙏🏻🌷🙏🏻🌷🙏🏻
- वसन्ती वर्मा, बिलासपुर
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
/छत्तीसगढ अउ संत कबीरदास जी
*(संत कबीरदास जी-भक्त कवि एवं समाज सुधारक)*
----------------------------------------
संत कबीरदास जी के संबंध म मोर जैसे मंद मति अनुसार कुछ लिखना-"सूर्य ला दीपक दिखाए जैसे होही |" विक्रम संवत १४५५,ई.सन् १३९८ म वाराणसी के लहरतारा तालाब में एक ऐसे दिव्य बालक जेकर दाई-ददा के अता-पता नइ रहिस |लावारिस हालत में पड़े रहिस,तऊने नवजात लईका ला एक मुसलमान दंपत्ति नीरू अउ नीमा ह उठा के अपन घर ले लानिस, काबर के ऊंकर कोई संतान नइ रहिस, तेकरे सेती ये बालक ला अपने औलाद मान के पालन-पोषण करिन | स्वामी रामानंद जी के अनुसार :-
*काशी में परगट भए, रामानंद चेताय*
संत कबीरदास जी के शिक्षा-दीक्षा कोई स्कूल मदरसा या आश्रम में नइ होय रहिस |
*मसि कागद छुयो नहीं,कलम गही नहीं हाथ*
संत कबीरदास जी हा वैष्णव मार्गी स्वामी रामानंद जी ला गुरू बनाना चाहत रहिन, लेकिन स्वामी रामानंद जी ह अपन चेला स्वीकार नइ करिन, तब आप स्वयं स्वामी रामानंद जी ला गुरू मान के अपन विचार,चिंतन ला मौखिक रूप से कुछ मनखे तिर व्यक्त करते रहेव |आपके अनमोल, समाज उपयोगी अउ आम जनमानस बर सदा कल्याणकारी प्रवचन ला सुन-सुन के कई लोगन बहुत प्रभावित होईन, तऊने मन आप ला गुरू माने लगिन | आपके प्रमुख चेला धनी धरमदास जी (जुड़ावन साहू जी) ह आप से अत्तेक जादा प्रभावित होईन के अपन सारी जायजाद जऊन वोही समय लगभग ६४ करोड़ के संपत्ति रहिस,तऊन सब संपत्ति ला संत कबीरदास जी ला न्योछावर कर देहिन | मूलतः उमरिया जिला अविभाजित मध्यप्रदेश निवासी धनी धरम दास जी ह संत कबीरदास जी के प्रवचन,साखी, शबद,रमैनी ला सुन-सुन के पांडुलिपि तैयार करिन फेर किताब छपवा के आम जनमानस ला पढ़े के मौका प्रदान करिन | छत्तीसगढ के कोरबा जिला के कुदुरमाल म सद्गुरू कबीर आश्रम बनाईन,तेकर बाद रतनपुर करैहापारा के लहुरीकांशी म कबीर आश्रम बनाईन,इहां साहित्यिक सांस्कृतिक आध्यात्मिक कार्यक्रम होवत रहिथे,कई बार सत्संग करे के अवसर महू ला मिले हवय | एकर अलावा मंडला,धमधा,कवर्धा (कबीरधाम), दामाखेड़ा, खरसिया में भी सदगुरू कबीरदास आश्रम बनाईन | ए किसम छत्तीसगढ के अधिकांश तेली,पनिका समाज के मनखे मन"कबीरपंथ" के अनुयायी बनते गईन |
कोई भी पंथ, संप्रदाय के स्थापना कोनो महापुरुष, समाज सुधारक के दिव्य तेजस्वी विचार से प्रभावित हो के ऊंकर अनुयायी मनके मन बनाथैं,जैसे :-संत कबीर के अनुयायी-कबीरपंथ,संत घासीदास के अनुयायी सतनाम पंथ,रविदास पंथ,ओशो पंथ,राधास्वामी पंथ आदि |
कबीर पंथी मन सफेद कपड़ा,सफेद तिलक, सफेद ध्वजा,तुलसी माला के कंठी धारण करथैं, साथ ही मांस मदिरा से दूर अउ जीव हिंसा के त्याग करके सात्विक भोजन सात्विक आचार-व्यवहार अपनाथैं |
*हमर कुल परिवार ह "देवतहा" (जोंत-जंवारा वाले) कहाथन, हमन शक्ति के पूजा अउ सगुण साकार उपासक हवन | तेकरे सेती "कबीर पंथी के संबंध में जादा जानकारी नइ हवय, लेकिन मोर ससुराल परिवार मन "कबीर पंथी" आय | ओमन निर्गुण निराकार ब्रह्म के उपासक,चौका आरती करथैं | मृतक शरीर ला "दफनाथैं", ऊंकर गुरू महंत हा मृतक शरीर ला मरघट म दफनाए के पहिली "परवाना" (बीरापान म लौंग-इलायची) देथैं,जेकर से ओ आत्मा ह सीधा "सतलोक" चले जाथे | संत घासीदास जी के अनुयायी भी अईसनेच रीति-रिवाज अपनाथैं*
*"देवतहा" मनखे मन मृतक शरीर के"दाह संस्कार" करथैं | तीसरा दिन (तीजनहावन) मरघट म जा के अस्थि ला बीन के घर लाथैं अउ कुल-परिवार द्वारा विधिवत पूजा अर्चना करके संझा बेरा इलाहाबाद,राजीम,या शिवरीनारायण जा के "पिंडदान" करके अस्थि प्रवाह करथैं,तभे वो आत्मा के सद्गति होथे | दसवां दिन "दसगात्र" अउ तेरहवां दिन"तेरही" के क्रियाकर्म करे जाथै, फेर गुरू महराज,भांचा ला दान-पुण्य करके मृतक आत्मा के नाम से साल भर के लिए दार-चाऊर के दान करे जाथै*
*कबीर पंथ परिवार मन मृतक आत्मा के शांति खातिर "चलावा चौका-आरती" करथैं | चौका आरती करैया गुरू साहेब,महंत जी के दर्शन करैया जम्मो माई लोगन अउ पुरुष मन महंत जी के दुनो चरण तरी अपन दुनो हाथ के अंगुरिया ला राखथैं फेर साहेब के नजर से नजर मिला के "साहेब वंदगी साहेब,सकल हंस को साहेब" कहिथैं | महंत जी के दसों अंगुरिया से अपन हाथ के दसों अंगुरिया ला छू के नजर से नजर मिला के "साहेब वंदगी साहेब कहिथैं,तेकर मतलब होथे-"अपन दसों इंद्रियों ला संयमित करे से महंत जी हा आशीर्वाद देथे | जऊन मनखे "कबीरपंथी" नइ रहैं,ऊंकर शिष्टाचार से ही महंत जी ला जानकारी हो जाथे-"ये मनखे कबीर पंथी नोहय |*
*कबीरपंथ के मुख्य आधार-अहिंसा, मांस-मदिरा, दुराचार से दूर रहि के प्रेम दया भाव अउ सात्विक आचार-व्यवहार अपनाए जाथै | हमर दाई के मइके परिवार सीपत (एन.टी.पी.सी.) ले लगभग २० कि.मी. दूर ग्राम "मड़ई" हवय | उहां कट्टर कबीरपंथी तेली समाज हवंय | आज ले लगभग पचास साल पहिली हमर दाई के ममा जेला "बड़े साहेब" कहत रहिन,ऊंकर तालाब म अत्तेक बड़े-बड़े मछरी रहंय,तऊन ला देखे बर पंचकोसी,दसकोसी के मनखे जावत रहिस | वो बखत मैं लगभग आठ साल के रहेंव,वो तालाब म स्नान करे गए रहेंव, फेर मुखारी घिंसत बेरा बड़े-बड़े असंख्य मछरी के झुंड ला देख के स्नान करे के हिम्मत नइ होईस*
*कबीरपंथी मनखे मांस-मदिरा से सख्त दूरिहा रहिथैं,तेकरे सेती हमन एक नियम बनाए रहेन-"कोई भी तेली घर कुकरी पालन सख्त प्रतिबंध रहिही | कोई भी तेली घर कुकरी पाले या दारू सेवन के जानकारी होही,तब सख्त कार्रवाई करे जाही | लेकिन ये कठोर नियम अब धीरे-धीरे शिथिल होवत जाथै*
*शिक्षित बेरोजगारी, मंहगाई,भौतिक विलासिता के असीम वस्तु के इच्छा अउ गरीबी हालत म घर-गृहस्थी चलाए के घोर समस्या के कारण अब जातिगत व्यवसाय,वर्ण व्यवस्था,आहार,आचरण,रोटी-बेटी के लेना-देना,विवाह संस्कार,मृतक संस्कार आदि सब नियम म तेजी से बदलाव आवत जाथै | जाति,वर्ण,पंथ, संप्रदाय, धर्म-कर्म के सब रीति-रिवाज बहुत आश्चर्यजनक ढंग से बदलाव होवत जाथै ! अब कई कट्टर कबीर पंथी मनखे मन मांस-मदिरा,दुर्व्यसन अपनावत जाथैं अउ कबीर पंथी के एक अलग परिभाषा देवत हवंय-"कभी रहा,कभी नही रहा !"*
*वर्ण व्यवस्था ह हमर पूर्वज के बनाए एक सामाजिक व्यवस्था आय , वो समय जऊन मनखे जऊन व्यवसाय करत रहिन,तेकरे आधार म "जाति प्रथा"स्वयं निर्धारित होवत गईस | पंथ,संप्रदाय अउ "वाद" के निर्माण कोई महापुरुष,समाज सुधारक,प्रवचनकर्ता के ओजस्वी उद्बोधन सुन-सुन के ऊंकर अनुयायी द्वारा निर्माण करे गए हवय*|
**लेकिन "हिन्दू धर्म" के निर्धारण आदिकाल से सनातन रूप से चलत आवत हवय, हिन्दू धर्म ला कोन मनखे,कब निर्धारित करिस ? तेकर उत्तर देना असंभव हवय | स्वयं ब्रम्हा जी,विष्णु जी,शिवजी, आदिशक्ति भवानी जी,अउ वेद-पुराण ला ही "धर्म" के मूल आधार माने जाथे*
*
*सब्बो धर्म के मूल आधार-प्रेम,दया,करूंणा, परोपकार,सदाचार,संहिष्णुता,उदारता ही माने गए हवय | संत तुलसीदास जी ह "धर्म" के परिभाषा खूब सरल,अउ सर्वमान्य लिखे हवंय :-*
*परहित सरिस धर्म नहिं भाई*
*पर पीड़ा सम नहि अधमाई*
*संत कबीरदास जी के वाणी "पथरा के लकीर सहीं सदैव अकाट्य हवंय":-*
*पोथी पढ़ पढ़ जग युवा*
*पंडित भया न कोय*
*ढाई आखर प्रेम का*
*पढ़े सो पंडित होय*
संत कबीरदास जी भारतीय साहित्य के सबसे प्रमुख आलोचक, व्यंग्यकार,अउ समाज सुधारक रहिन :-
*पाहन पूजे हरि मिले*
*तो मैं पूजौं पहार*
*या ये तो चाकी भली*
*पीस खाय संसार*
संत कबीरदास जी-सामाजिक विसंगतियों, कुरीतियों, कर्मकाण्ड,आडम्बरों के घोर विरोधी रहिन -
*जाति न पूछो साधु की*
*पूछ लीजिए ज्ञान*
*मोल करो तलवार का*
*पड़ी रहन दो म्यान*
*मुड़ मुड़ाए हरि मिले*
*तो मैं लेऊं मुड़ाय*
*बार-बार के मुड़ते*
*भेंड़ ना बैकुंठ जाय*
*संत कबीर के अटपट बानी*
*बरसे कमरा,भींगे पानी*
संत कबीरदास जी निर्गुण निराकार परम ब्रह्म "राम" के महान अराधना-साधना करत रहिन, लेकिन कबीर पंथी भाई मन ये गूढ़ रहस्य ला नइ समझ पाईन,तेकरे सेती राम, कृष्ण,दुर्गा माता के पूजा-आराधना नइ करैं ! जबकि संत कबीरदास जी ह परम ब्रह्म परमेश्वर"रमता राम" के सदैव ध्यान-आराधना में अनन्य भाव से तल्लीन रहत रहिन :-
*हरि मोर पिउ,मैं राम की बहुरिया*
*हरि जननी,मैं बालक तोरा*
*जब मैं था तब हरि नहीं*
*हरि है,अब मैं नाहि*
*प्रेम गली अति सांकरी*
*ता में दोऊ न समाहि*
*जल में कुंभ,कुंभ में जल है*
*बाहिर-भीतर पानी*
*फूटा कुंभ,जल जलही समाना*
*यह तथ्य कथौ ग्यानी*
*हेरत-हेरत हे सखि*
*रह्या कबीर हेराय*
*बूंद समानी समुंद में*
*सो कत हेरी जाय ?*
संत तुलसीदास जी ह "रामचरित मानस"
म लिखे हवंय,निर्गुण-सगुण में कोई भेद नही है :-
*सगुनहि-अगुनहि नहि कछु भेदा*
*गावहिं मुनि पुरान बुध वेदा*
*अगुन अरूप अलख अज जोई*
*भगत प्रेम बस सगुन सो होई*
*जो गुन रहित,सगुन सोई कैसे?*
*जलु हिम उपल बिलग नहि जैसे*
*// विशेष तथ्य//*
===========
*जातिगत क्रिया कर्म,संस्कार, अनुष्ठान,पंथ,संप्रदाय,वाद आदि मुक्तिदायिनी गंगा केअलग-अलग घाट कहे जा सकत हे*
*"धर्म" ला मनखे ले इंसान अउ इंसान ले भगवान बनाए के "गंगा जी" के स्वरूप कहे जा सकथे*
*"अपन-अपन आराध्य देव"-ह अनंत विशाल समुद्र भांति कहे जा सकथे*
*दुनिया के कोई भी पंथ,संप्रदाय,धर्म के पालन करते हुए सब्बो आत्मा हा "महासागर रूपी एक ही परमात्मा में जा के समाहित हो जाथैं*
*निर्गुण निराकार उपासक मन मिथ्या भ्रमवश कहिथैं- हम सगुण साकार ईश्वर ला नइ मानन ?
*अईसन तर्क करैया सिद्ध,योगी,महंत मन का आगी,पानी,हवा,धरती आकाश ले परे हवंय ?*
*चौका-आरती,विवाह संस्कार के समय "अग्नि" के सात फेरा नइ करके "मंगल कलश" के सात फेरे करवाथैं,तौ का मंगल कलश के ज्योति ह आगी ले भिन्न होथे ?*
*निर्गुण निराकार उपासक मन के खुद के देह हा का साकार रूप नोहय ?*
*आखिर एही देह रूपी मंदिर म हमर आत्मा ला "परमात्मा" के अनुभूति होथे,तब सगुग साकार ब्रम्ह के विरोध हम कैसे कर सकथन ?*
*ये "परम गूढ़ रहस्य"के चिंतन करके निर्गुण-निराकार,अउ सगुण-साकार में तिल मात्र भी भेद नहीं करना चाही*
*जै रमता राम"*
*जै सतनाम*
*साहेब वंदगी साहेब,सकल हंस को साहेब*
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
दिनांक-०५.०५.२०२१
*गया प्रसाद साहू*
"रतनपुरिहा"
(कवि,लेखक, गीतकार एवं गायक)
मुकाम व पोस्ट-करगी रोड कोटा जिला बिलासपुर (छ.ग.)
पिनकोड ४९५११३
मो.नं-९९२६९८४६०६
९१६५७२६६९६
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
*लोकजीवन म रचे बसे संत कबीर दास*
पोखन लाल जायसवाल
संत कबीर दास जी पैदाइशी छत्तीसगढ़ के नोहय, त का होगे? छत्तीसगढ़ के लोकजीवन म संत कबीर दास जी अइसे रचे बसे हे, कि संजीवनी बूटी के काम करथे। अपन दोहा साखी मन ले लोकजीवन म आशा के नवा संचार करथे। जिएँ के संबल देथे। उँकर प्रभाव अउ लोकप्रियता छत्तीसगढ़ के कोना-कोना म सहज ढंग ले देखे जा सकथे। संत कबीर दास जी मन सामाजिक चिंतन अउ सरोकार ले जुरे सरलग आँखों देखी ल अपन सृजन म जगहा दिन। जेकर परिणाम हरे के तत्कालीन समाज म चेतना अउ जागरण के स्वर मुखरित होइस। समाज म फइले कुरीति, रूढ़िवादी विचार, आडंबर, अंधविश्वास अउ धरम के नाँव म कट्टरता ल टोरे के दिशा म समाज सुधारक अउ संत महात्मा मन के बड़ भूमिका होथे। इही बात ल कबीरदास जी मन पूरा करिन। जाँत-पाँत अउ धरम के नाँव म बँटे मनखे ल एक सूत्र म बाँधे के कोशिश करिन। हिन्दू अउ मुस्लिम दूनो के रीति रिवाज अउ कट्टरता के घोर विरोध करिन। खंडन करिन। धर्मनिरपेक्ष कबीर दास जी सब ल आडंबर अउ पाखंड बर खूब लताड़िन। कोनो ल नइ छोड़िन। सब ल फटकारिन।
*कस्तुरी कुण्डली बसै,मृग ढूँढे बन माहिं।*
*ऐसे घटि घटि राम है, दुनिया देखे नाहिं।*
*लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट।*
*पाछे फिर पछतावगे, प्राण जाहिं जब छूट।।*
एक ठन म कबीर दास जी राम (अपन ईश्वर ) ल घट घट म मिल जाने वाला बताय हें, तव दूसर म जीव छूटे के पहिली राम नाम के सहारा ले जिनगी सार्थक करे के संदेश दे हे।
संत कबीर दास जी के राम दशरथनंदन राम नोहय। कबीर दास जी तो निर्गुण भक्ति धारा के कवि आयँ। उँकर राम निराकार हे। ए राम नाम के पाछू एक किवदंती प्रचलित हवै। एकर मुताबिक कबीर दास जी, वैष्णव आचार्य रामानंद जी ल अपन गुरु बनाना चाहिन, फेर रामानंद जी उन ल शिष्य(चेला) नइ स्वीकारिन। कबीर दास जी जिद म अड़गे। रामानंद जी के पास घेरी-भेरी विनती करिन। एक दिन स्नानकाल म आचार्यजी स्नान करे के बाद मंदिर के सीढ़िया ले उतरत रहिन, त कबीर दास जी (जउन आचार्य जी के अगोरा म बइठे रहिन )ऊपर उँकर पाँव पड़गे, मनखे जान के आचार्य रामानंद जी होय भोरहा बर पछतावा म *राम-राम* कहे लगिस। कबीर दास जी इही 'राम' नाम ल गुरु मंत्र आय मान के अंतस म गठिया लिन। संत कबीर दास जी ल रामानंद जी के चेताए चेला कहे जाथे।
आज छत्तीसगढ़ म संत कबीर दास जी के लाखों अनुयायी हवैं। जिंकर जिनगी संत कबीर दास जी के साहित्य म छिपे संदेश ले जगर-मगर होत हे। छत्तीसगढ़ के जनमानस ल कबीर दास जी के कतकोन दोहा साखी मुअँखरा याद हें। बखत परे इही दोहा मन ले अपन नवा पीढ़ी ल सीख घलव देथे।
संत कबीर दास जी भक्ति काल के निर्गुण भक्ति धारा के ज्ञान मार्गी कवि रहिन। इँकर रचना म भाषा सधुक्कड़ी रहिस। धनी धर्मदास जी के नेवता पाके छत्तीसगढ़ आइन अउ छत्तीसगढ़ म अपन संदेश ले मानव कल्याण बर दिन। आपके रचना मन के प्रभाव ल इहाँ के लोकगीत मन म देखे जा सकथे। नाचा पेखन म, दसगात्र कार्यक्रम म निर्गुण भजन, पंडवानी म प्रसंग के अनुकूल आपके दोहा मन ल बहुतेच सुने जा सकथे। राजकीय शोक के बेरा म आजो रेडियो म कबीर दास जी के निर्गुण भजन सुने ल मिलथे। फागगीत म आपके नाँव ....सुन ले मोर कबीर... के बिना फागुन के आनंद अधूरा रही जथे।
संत कबीर दास जी पढ़े लिखे नइ रहिस। खुद वोमन ए बात ल स्वीकार करे हे-
*मसि कागद छूयो नहीं, कलम गही नहिं हाथ।*
उँकर उपदेश अउ प्रवचन ल उँकर चेला मन लिखित स्वरूप दिन जउन आज घलव समाज बर उपयोगी हवै।
जउन कुछ देखे तउन ल दोहा म कहना चेतवना देना ओकर बर सहज प्रतीत होय।
मानव ल जात-पाँत ले उबरे बर संदेश देवत कहिन-
*जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।*
*मोल करो तलवार की, पड़ा रहन दो म्यान।।*
मनखे ल धीरज धर के उचित समे के अगोरा कर अपन काम करत रहना चाही-
*धीरे धीरे रे मना,धीरे सब कुछ होय।*
*माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।।*
नश्वर संसार म प्रेम के महत्ता स्थापित करत कहिन-
*पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।*
*ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पँडित होय।।*
अभियो जब सरी संसार एक अदृश्य ताकत के आगू नतमस्तक हे, घुटना टेके हे। चारों मुड़ा हाहाकार मचे हे। प्रकृति संग करे खिलवाड़ के सजा पावत हे। "वसुधैव कुटुम्बकम" के भावना के जरूरत महसूस होवत हे, तव कालाबाजारी, जमाखोरी अउ तरह तरह के शोषण ल भुला जुच्छा हाथ जाना हे धियान धरके मन म सेवा भाव जगाय बर सीख लेवन-
*साँई इतना दीजिए, जामे कुटुम्ब समाय।*
*मैं भी भूखा न रहूँ, साधु भुखा ना जाय।।*
मनखे ल अवसरवादी प्रवृत्ति छोड़े के संदेश भरे दोहा देखव, जउन म अपन अराध्य म मन लगाय ले दुख नइ होय के बात घलव कहे गे हे-
*दुख में सुमिरन सब करै, सुख में करे न कोय।*
*जो सुख में सुमिरन करै, दुख काहे को होय।।*
हाथ म धरे रेती कस खिसलत जात समे के निकले के पहिली अकर्मण्यता ल दूर भगा काम करे बर प्रेरित करत दोहा खेती-किसानी बर जादा प्रासंगिक लगथे। काबर कि खेती बूता समे म होय ले ही कोठी भरथे।
*काल करे सो आज कर, आज करे सो अब्ब।*
*पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब्ब।।*
समे निकले ले इही बात रहि जथे-अब पछताए क्या होत है, जब चिड़िया चुग गई खेत।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चित दुःखभाग भवेत्।
विश्व कल्याण के ए भाव ल पिरोए कबीर दास जी सबके हित म प्रवचन देवत फिरिन-
*कबीरा खड़ा बजार में, माँगे सबकी खैर।*
*ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।।*
मनखे-मनखे के प्रति प्रेम भाव रखत हुए अपन अराध्य म धियान अइसे लगावन कि लोगन मन ल कोनो प्रकार ले तकलीफ झन होय। उँकर मान्यता ल ठेस झन पहुँचय। दिखावा पाखंड ले बचना चाही।
हम ल सजग रहे के जरूरत हे, जागृत रहे के जरूरत हे। चाहे हमर अराध्य संत कबीर दास के निर्गुण ब्रह्म होय चाहे सगुण होय। आँखीं मूँद के लकीर के फकीर बने रहना घलव उचित नइ हे। समे के संग कदम मिला के चलन। यथार्थ म जीयन अउ सच्चाई ले मुख झन मोड़न। संत कबीर दास जी के ए बात म छिपे संदेश ल गाँठ बाँध लन-
*तू कहता कागद की लेखी, मैं कहता आँखिन देखी।*
*पोखन लाल जायसवाल*
पलारी बलौदाबाजार छग.
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
अजय अमृतांसु: *छत्तीसगढ़ के लोक जीवन म संत कबीर*
*लोक व्यवहार मा साहेब शब्द के व्यापकता*
छत्तीसगढ़ के लोक जीवन में "साहेब" अउ "साहेब बन्दग़ी" ये दूनो शब्द वोतके व्यापक हवय जतका "जय राम", सीता-राम या राम-राम हवँय। कबीर पंथी मन जब भी एक दूसर ले मुलाकात करही तब अभिवादन म सबले पहिली "साहेब बंदगी" कहिथे । जवाब में दूसर डहर ले भी साहेब बन्दग़ी मिलही। येकर उपरांत ही सुख दुख, अन्य हाल चाल पूछे जाथे। आम बोलचाल में मनखे मन एक दूसर के नाम भी नइ लेवय बल्कि नाम के जघा "साहेब" शब्द के ही प्रयोग होथे। उदाहरणार्थ -
कहाँ जाथव साहेब ? घर जाथंव साहेब।
सब बने बने साहेब ?
उत्तर-हव साहेब! सब साहेब के कृपा हवय।
हमर डहर आहू त दरस देहू साहेब..।
चौका आरती या बड़े बड़े सत्संग मा जब हजारों के संख्या मा साधु संत,महात्मा अउ आम मनखे मन सकलाथे तब चारो डहर साहेब अउ साहेब बन्दग़ी कान म गूँजत रहिथे। स्वेत वस्त्रधारी साधु संत के विहंगम दृश्य देखते ही बनथे। इँहा साधु संत मन एक दूसर ला "साहेब" शब्द से संबोधित करथेच इंकर अलावा आम आदमी अउ सत्संग के वालेंटियर मन घलो एक दूसर ल साहेब शब्द से ही संबोधित करथे। कभू कोनो ल पुकारना हवय तभो वोकर नाम नइ लेवय। जैसे -
आगे चलिये साहेब... आगे चलिये
आप मन ला का चाही साहेब ?
ये मेर भीड़ मत बढ़ाव साहेब?
साहेब के दर्शन अभी नइ हो सकय साहेब आदि...
"साहेब" शब्द म विनम्रता के भाव के संग सब कुछ समाय हे। साहेब कहे ले सीधा संबंध सद्गुरु कबीर ले होथे। जइसे "राम" ल आज तक कोनो परिभाषित नइ कर पाइन वइसने "साहेब" ल घलो आज पर्यंत कोनो परिभाषित नइ कर पाय हे। कहे जाथे न- हरि अनन्त हरि कथा अनंता।
*प्रसाद के अर्थ*
कबीरपंथ में प्रसाद के दू अर्थ होथे -
1 -प्रसाद माने चौका आरती के बाद, या सत्संग के बाद महंत द्वारा जो बाँटे जाथे। ये आटा से बनाये जाथे जेमा चौका के दौरान चढ़ाए गे नारियल, पान, काजू किसमिश आदि ल घलो मिक्स करके बनाये जाथे येला "प्रसाद" कहिथे।
2. - सत्संग मा पहुँचे जबो मनखे के लिए शुद्ध सात्विक भोजन के व्यवस्था रहिथे जेला प्रसाद कहे जाथे। कोनो ला भी भोजन कर लव कहिके नइ कहय। चलव प्रसाद पा लव कहिथे। कबीर पंथ से इतर इही ला प्रसादी कहे जाथे ।
*चरन पखारना*
छत्तीसगढ़ म ये परंपरा सदियों से चले आवत हे।घर मा जब भी कोनो साधु,संत, महंत आथे तब सबले पहिली चरण धोये जाथे। तदुपरांत साधु/ संत के अंगूठा ल धोये जाथे अउ धुले पानी ल थारी मा एकत्रित करे जाथे। ये एकत्रित जल चरनामृत (चरण से निकले अमृत) कहलाथे जेला घर परिवार के मन थोड़ा थोड़ा पीथे ।
*पंगत*
कबीरपंथ मा प्रसादी में रूप मा सामूहिक भोजन कराये जाथे जेला पंगत कहिथन। पंगत में भोजन जमीन म कतारबद्ध बइठार के ही खिलाये जाथे। पंगत मा खाना मनखे मन अपन सौभाग्य समझथे।
*दैनिक पूजा पाठ में संत कबीर*
छत्तीसगढ़ के कबीरपंथी मन अपन घर मा अनुराग सागर अउ मूल संध्या पाठ जरूर रखथे। धनी धर्मदास द्वारा संत कबीर से जीवन दर्शन के संबंध मे प्रश्न पूछे गिस, कबीर साहब द्वारा धर्मदास जी के प्रश्न के उत्तर दे गिस। धर्मदास के जबो शंका के समाधान संत कबीर के द्वारा करे गे हवय, ये समस्त बात पद्य रूप मा अनुराग सागर म संकलित हवय। धर्मदास ला पूरा जीवन दर्शन, आत्मा परमात्मा के बारे म विस्तृत उपदेश कबीर साहब द्वारा दे गे हवय ये समस्त बात अनुराग सागर म हवय। कबीरपंथ के धार्मिक आयोजन जइसे प्रवचन /ग्रन्थ पाठ मा अनुराग सागर म निहित संदेश ल बताये जाथे। लेकिन पारख सिद्धान्त वाले अनुयायी मन बीजक के पाठ करथे अउ प्रवचनकर्ता मन भी बीजक म निहित बात ल ही बताथे।
*मूल संध्या पाठ*
पंथ मा सद्गुरु कबीर के आराधना हेतु प्रतिदिन संध्या पूजा पाठ होथे। पूजा पाठ हेतु "मूल संध्या पाठ" पुस्तक के पाठ करे जाथे। मूल संध्या पाठ में अलग अलग छन्द में छन्दबद्ध पद हवय। प्रतिदिन संझा के आरती जलाये के उपरांत संध्या पाठ के साथ ही संत कबीर के आरती पूजा होथे।
*साधु संत के सत्कार*
साईं इतना दीजिए,जामे कुटुम्ब समाय।
मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु ना भूखा जाय।।
कबीर के ये साखी छत्तीसगढ़ के संदर्भ मा सटीक बइठथे। इँहा के मनखे जतका मिलगे वतका मा खुश रहिथे,जादा के चाह बिल्कुल नइ करय। छत्तीसगढ़ म साधु मन के सत्कार के अनुपम उदाहरण मिलथे। ककरो घर कहूँ 12 बजे रात के भी कोनो साधु आगे तभो वोकर स्वागत सत्कार करे जाथी । यथाशक्ति भोजन कराके विश्रांम के व्यवस्था करथे। साधु जतका दिन रइही खुशी-खुशी वोकर सेवा-सत्कार करथें अउ जाय के बेरा यथाशक्ति रुपिया पइसा दे के बिदागरी करथे। संगे संग निवेदन भी करथे कि अइसने दर्शन देवत रहू साहेब।
*सद्गुरु कबीर अउ गुरु गोरखनाथ प्रसंग*
छत्तीसगढ़ म संत कबीर ले जुड़े हुये कई क्षेपक कथा मिलथे जेमा एक कथा गुरु गोरखनाथ के मिलथे। गुरु गोरखनानाथ, नाथ परंपरा के गुरु मच्छेंद्र नाथ के शिष्य रहिन। गुरु गोरखनाथ महान सिद्ध योगी रहिन। येकर नाम से गोरखपुर शहर हवय। गोरखनाथ एक बार संत कबीर से शास्त्रार्थ करे खातिर गिन। संत कबीर से शास्त्रार्थ मन उन पराजित होगे। अब चूँकि उन हठी भी रहिन, तब पराजित होय के उपरांत गोरखनाथ जी कबीर ले कहिन कि मैं तालाब के पानी म जा के छिपत हँव मोला खोज के बताव। गोरखनाथ मेचका के रूप धारण करके हजारों मेचका के बीच जा के बइठगे। फेर संत कबीर अन्तर्यामी रहिन गोरखनाथ जी ल आसानी ले खोज लिन। अब बारी संत कबीर के रहिस, कबीर साहब पानी के रुप धारण करके पानी म जा के मिलगे। गुरु गोरखनाथ लाख उपाय करें के बाद भी कबीर ल नइ खोज पाइन अउ अंत मा संत कबीर से हार मान लिन।
छत्तीसगढ़ म संत कबीर के साखी, संदेश के रुप मा जघा जघा बगरे हवय। सबके उल्लेख करना तो संभव नइ हे फेर एक साखी जो मोला अंदर तक झकझोर देथे वो ये हवय -
तीन लोक नौ खंड में, गुरु से बड़ा न कोय्।
करता जो ना करि सकै, गुरु करे सो होय।।
भावार्थ:- तीनों लोक अउ नौ ग्रह मा गुरू ले बड़का कोनो नइ हे। करता (विधाता ) भी अपन विधान म बँधे होय के कारण कर्मफल ला बदल नइ सकय लेकिन सद्गुरु प्रारब्ध के कर्मफल ल घलो सुकृति में बदल देते हैं।
साहेब बन्दग़ी साहेब🙏
*अजय अमृतांशु* भाटापारा
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
गीता साहू: छत्तीसगढ़ अऊ कबीर दास
सकल संत को साहेब बंदगी साहेब
कहिके कोई सत्संग म अभिवादन होत हे त वो ह सदगुरु कबीर साहेब के सत्संग स्थल आए जिंहां संत समाज मतलब साधू अऊ भगत दोनों ही समाये हवे ,दूनो म कोई भेद नइ हे, ये कबीर के ही जीवन दर्शन आए जिंहा हां मनखे मनखे सब सामान हे "एक हाड एके त्वचा...... को ब्राम्हण कोन शूद्रा''या फेर ""को हिंदू को तुरूक कहावे एक जमीं पर रहिए " वास्तव मे ""कबीर
हिंदू तुरुक के बीच में मेरा नाम कबीर ""को सही सिद्ध कर आज भी प्रासंगिक बने हे।
कबीर एक सम्यक जीवन दर्शन आए जेन ला छत्तीसगढ़ के संदर्भ में कहू ता ये वोकर दर्शन के बूंद बरोबर केवल एक हिस्सा आए काबर की कबीर के बानी देश मा ही नहीं विदेश तक फइले हे पढ़ई - लिखई तक ही नहीं ये जीवन ल गढ़े से लेके सतलोक तक के यात्रा मा सुंदर मारग बनाये हे।
समाज भले ही कबीर ल एक कवि या समाज सुधारक के रूप में पढ़त- पढ़ात हे,पर अपन अनुयायी मन बर वो सद्गुरू आय ,एक संत महात्मा आए , जेकर महत्ता भगवान से भी जादा हे संत कबीर खुदे ""बलिहारी गुरु आपकी "" कहिके भगवान से जादा अपन गुरू पे बलिहारी हे। अइसन कर कबीर अपन कथनी अऊ करनी ल एके करे हे, इही तो कबीर म बिश्वास के आधार आय । धरम करम मा कि सांसारिक जीवन मा कौन्हो ज़गह हो ,ज्ञान के कोन्हो बात हो अऊ कबीर के बानी न हो अइसे संभव नइ हवे।
"मसि कागद छुओ " नहीं कहइया 'कबीर के बानी 'जग के धरोहर बनगे काबर कि जेन भी कहिस "आंखन देखी "कहिस बिना लाग लपेट के जस के तस जइसे वइसने अपन देह ल भी धर दिस ""ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया""
क्रमशः
श्रीमती गीता साहू 06.05.2021
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ अउ कबीर साहेब
वइसे तो कबीर साहेब छत्तीगढ़िया मनके अन्तस् म बसथे, तभो आज कबीर साहेब के महत्ता छत्तीसगढ़ के गाँव-शहर, गली-खोर म देखे के प्रयास करबों। हमर छत्तीसगढ़ का,भारत भर म अइसन कोनो मनखे नइ होही जेन कबीर साहेब नइ जानत होही। संत कबीर कोनो जाति समुदाय के नही बल्कि, थके हारे, दबे कुचले, दीन हीन मनखे के थेभा रिहिन। छत्तीगढ़ भर म कबीर दास जी के नाम म कतको लइका लोग अउ घर दुवार के नाम दिख जथे, संगे संग गली खोर, गांव शहर म कबीर चौक, कबीरचौरा, कबीर पारा आदि कतको ठन चौक चौराहा घलो दिखथे। रायपुर, बिलासपुर, राजनांदगांव, रायगढ़ जइसे बड़का शहर म घलो कबीर साहेब के नाम म पारा मुहल्ला घलो हे। *बालोद जिला के अंतर्गत कबीर साहेब के नाम म एक भव्य भवन हे, जेला ए डी सर जी ह जनसहयोग ले बनवाये रिहिस।* *कोरबा म कबीरदास जी के नाम म बड़का वाचनालय सुशोभित हे।* छत्तीसगढ़ म कबीर दास जी के कतका प्रभाव हे, ये कबीरधाम नाम के हमर जिला ले अंदाजा लगाये जा सकथे। कहे के मतलब कबीर के नाम म चौक, चौराहा ही नही बल्कि 28 ठन जिला म एक ठन जिला ही कबीरधाम नाम के हे, जेला कवर्धा घलो कथन। *सुने म आथे की अपन जीवन काल म कबीरदास जी महाराज सकरी नदी के तट म छत्तीसगढ़ पधारे रिहिन, अउ उही मेर धनी धरम दास जी अपन गद्दी स्थापित करिन, ते पाय के वो स्थान कबीरधाम कहिलाथे।*
मनखे मनखे नाम, घर दुवार, गली खोर अउ गाँव शहर मनके नाम म, कबीरदास जी रचे बसे हे, वइसनेच हमर राज के जुन्ना विधा नाचा म घलो कबीर साहेब के प्रभाव दिखथे। पहली समय म कम साधन अउ बिना साज सज्जा के खड़े साज के चलन रहिस। रवेली अउ रिंगनी नाच पार्टी वो बेरा म खूब देखे सुने जावत रिहिस, जेमा मुख्य रूप ले सन्त समाज अउ दर्शक दीर्घा ल कबीर भजन ही परोसे जाय। कबीर साहेब अउ नाचा के जब नाम आथे त *कबीर नाच पार्टी मटेवा* के कलाकार मनके चेहरा अन्तस् म उतर जथे। श्री झुमुक़दास बघेल अउ नाहिक दास मानिकपुरी के जुगल प्रस्तुति सबके मन ल लुभा लेवय। कबीर के दोहा,साखी शबद, भजन,अउ गीत मुख्य आकर्षण के क्रेंद रहय। नाचा म जोक्कड़ मनके जोकड़ई म दर्शक दीर्घा ल हँसाये बर, कबीर के उलटबन्सी अउ दोहा खूब रोचक लगे।छत्तीसगढ़ म रामायण अउ भजन मण्डली म घलो कबीर साहेब के प्रभाव दिखथे।
कबीर दास जी के भजन मन जुन्ना बेरा म जतका प्रभावी रिहिस वइसनेच आजो हे। जीवन दर्शन ऊपर आधारित कबीर साहेब के दोहा, साखी, शबद के कोनो सानी नइहे। *कहत कबीर सुनो भाई साधो, माया तजि न जाय, झीनी रे झीनी चदरिया, साहेब तेरा भेद न जाने कोउ, कुछु लेना न देना मगन रहना, रहना नही देश बिराना, भजले साहेब बन्दगी, लागे मेरो मन फकीरी में*---आदि कतको भजन सुनत ही मनखे ल परम् सुख सहज मिल जथे। स्वरांजलि स्टूडियो ले छत्तीसगढ़ के दुलरुवा कवि अउ गायक परम श्रध्देय मस्तुरिया जी *कबीर* नाम से एक कैसेट घलो निकाले रिहिस, जे भारी चलिस। जेमा कबीरदास जी के भजन ल अपन अंदाज म मस्तुरिया जी जनमानस के बीच रखे रिहिस। *बीजक मत पर माना, शबद साधना की जै, गुरु गोविंद खड़े, खबर नही आज, हमन है इश्क, माया तजि न जाय* कबीर दास जी के लिखे आदि भजन वी कैसेट म रिहिस। मस्तुरिया जी कबीर के नाम म खुद घलो कई ठन रचना करिन अउ वोला अपन स्वर दिन, जेमा हम तो तेरे साथी कबीरा हो, जइसे उम्दा भजन आजो मन ल मुग्ध कर देथे। कई लोक कलाकार मन घलो कबीरदास जी के भजन ल अपन स्वर दे हें।
कबीरपंथी समुदाय, कबीर गद्दी आश्रम, कबीर के अमृत वाणी, साखी शबद सबे दृष्टि ले हमर छत्तीसगढ़ कबीरमय हे। दामाखेड़ा, कबीरधाम, कुदुरमाल, खरसिया, नादिया,बालोद,जइसन कई कबीर तीर्थ अउ अनेक आश्रम, हमर छत्तीसगढ़ म बनेच संख्या म सुशोभित हे। कबीरदास जी महाराज छत्तीसगढ़ के कण कण म बिराजमान हे। सादा जीवन अउ उच्च विचार रखे, न सिर्फ कबीर पंथी बल्कि जमे छत्तीगढ़िया मन कबीर साहब के बताये रद्दा म चलही, त उंखर जीवन धन्य हो जाही।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
गीता साहू: भाग -2
छत्तीसगढ़ अऊ कबीर दास
सकल संत को साहेब बंदगी साहेब
"" साहेबसुनियो विनती मोरी ""कहि के धनी धर्मदास अपन अकूत संपदा संग सतगुरु कबीर साहिब के चरण शरण म छत्तीसगढ़ में कबीर के बानी ला बढ़ोये हवे ।जिंहां दामाखेड़ा वंश -परंपरा के प्रतिनिधित्व करत हवै ,वोही खरसिया अखाड़ा जेन कबीर के जन्म स्थल लहरतारा बनारस से जुड़े हवे, सन्यास आश्रम के प्रतिनिधित्व करत हवै ,ये दोनों सत्संग स्थल चौका आरती के संग में कबीर के बानी ला जन जन तक पहुंचावत हावे ।वही पारख सिद्धांत इलाहाबाद से जुड़े हैं म "भूखे भजन न होय गोपाला" कहीं के भजन भोजन के बाद करे के नियम हवे। इहां कबीर के ज्ञान भंडार ल देख के कहि सकत हो कि ढाई आखर प्रेम के संग पढ़े लिखे मन भी कबीर से जुड़े हवे ।
"सब की खैर मंगइया " कबीर ल आज के खुद म बटे मनखे संत महात्मा ल भी दलित और शोषित वर्ग से जोड़ बखान करत हे । अइसने कई बार कबीर साहेब के अनुयाई मन ऊपर प्रश्न होथे कि निर्गुण निराकार कबीर ला आज ऊमन साकार रूप म पूजत हवे ,त मोर अतना हि कहना हे कि जइसे गंगा जब गंगोत्री से आवत हे त ओकर रुप आन रथे पर जइसे जइसे आगू बढ़त हे ओकर रुप बदलत जाथे ,चारो मुडा के प्रभाव ले कोई अछूता कइसे रहि सकत हे ,फेर आस्था अऊ बिश्वास सबके अपन होथे तो प्रश्न काबर खड़े करन ।
क्रमशः
श्रीमती गीता साहू
07.05.2021
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
भाग -3
आज कोरोना काल में जब सब मंदिर मस्जिद के पट मन बंद हे ,सब किरिया करम के रूप बदल गे हे ,तो संत कबीर के बानी पहिली ले अऊ जादा प्रासंगिक होगे हवे.,....."मोको कहां ढूंढे बंदे ,मैं तो तेरे पास मे,ना मैं मंदिर ,ना मैं मस्जिद ,ना काबे कैलाश में.... कहे कबीर सुनो भाई साधो ,सब स्वांसो की स्वांस में "कालजयी हवे ।
संत कबीर के जन्म अउ मरण दूनों हा जन मानस म चमात्कारिक हे ,आपो मन तर्क कर सकत हव ,त मोर अतका हि कहना हे जइसे हमन जतका सहजता से सब्बो अवतारी मन के अवतार ल मान लेथन वइसने संत कबीर ल भी अवतारी मान ले मे काय नुकसान हे।
तात्कालिक समाज में धारणा रहिस कि काशी करवट लेय से स्वर्ग में स्थान मिलथे,ऐकर से कतकोन मनखे मन बिन काल के काल म समावत रहिस ।संत कबीर ये अंधविश्वास ला दूर करे बर मगहर में अपन देह त्याग करिस पर मान्यतानुसार वो देह ना हिंदू ला मिलिस अऊ न मुसलमान ला "तुम खोलो पर्दा है नहीं मुरदा ""कुछ बात तो रहीस हवे संत कबीर मां कि दूनों इहां एक है आज भी मगहर मां दो कदम के दूरी मां कबीर के मंदिर अऊ मस्जिद समन्वय वादी विचारधारा के साकार रूप म सजे हवे ।
सकल हंस को बंदगी, साहेब कहिके कोई सत्संग म अभिवादन होत हे त वो ह सदगुरु कबीर साहेब के सत्संग स्थल आए जिंहां *हंस* मतलब साधू अऊ भगत दोनों ही समाये हवे ,दूनो म कोई भेद नइ हे, ये कबीर के ही जीवन दर्शन आए जिंहा हां मनखे मनखे सब सामान हे "एक हाड एके त्वचा...... को ब्राम्हण कोन शूद्रा''या फेर ""को हिंदू को तुरूक कहावे एक जमीं पर रहिए " वास्तव मे ""कबीर
हिंदू तुरुक के बीच में मेरा नाम कबीर ""को सही सिद्ध कर आज भी प्रासंगिक बने हे।
कबीर एक सम्यक जीवन दर्शन आए जेन ला छत्तीसगढ़ के संदर्भ में कहू ता ये वोकर दर्शन के बूंद बरोबर केवल एक हिस्सा आए काबर की कबीर के बानी देश मा ही नहीं विदेश तक फइले हे पढ़ई - लिखई तक ही नहीं ये जीवन ल गढ़े से लेके सतलोक तक के यात्रा मा सुंदर मारग बनाये हे।
समाज भले ही कबीर ल एक कवि या समाज सुधारक के रूप में पढ़त- पढ़ात हे,पर अपन अनुयायी मन बर वो सद्गुरू आय ,एक संत महात्मा आए , जेकर महत्ता भगवान से भी जादा हे संत कबीर खुदे ""बलिहारी गुरु आपकी "" कहिके भगवान से जादा अपन गुरू पे बलिहारी हे। अइसन कर संत कबीर अपन कथनी अऊ करनी ल एके करे हे, इही तो कबीर म बिश्वास के आधार आय । धरम करम मा कि सांसारिक जीवन मा कौन्हो ज़गह हो ,ज्ञान के कोन्हो बात हो अऊ कबीर के बानी न हो अइसे संभव नइ हवे।
"मसि कागद छुओ " नहीं कहइया 'कबीर के बानी 'जग के धरोहर बनगे काबर कि जेन भी कहिस "आंखन देखी "कहिस बिना लाग *लपेट के जस के तस* ""ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया""
श्रीमती गीता साहू 06.05.2021
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
No comments:
Post a Comment