Sunday 13 November 2022

व्यंग्य- अच्छे दिन के तलाश

व्यंग्य- अच्छे दिन के तलाश


          अच्छे दिन कब आही गा ? लइका अपन बाप ला पूछत रहय । बाप बतइस – आही बेटा । अभी उँकर मन घर म अच्छे दिन हा पहिली गेहे जेमन कहत रिहिन अऊ जेमन ला ओकर जादा आवश्यकता रिहिस । उँकर समस्या के समाधान हो जही तब हमर कोति अच्छे दिन हा रुख करही । लइका फेर पचारिस – हमर समस्या ले घला रोंठ अऊ काकरो समस्या हो सकत हे का बाबू ? बाप किहिस – हमर काये समस्या हे तेमा बाबू .. हम कमावत हन तब खावत हन ... पहिरत हन .. ओढ़हत हन । समस्या उँकर मन घर म हाबे बाबू जेमन दूसर के कमई ला खावत भुकरत हे .. तेकर सेती अच्छे दिन ला ओकरे मन घर जाये बर मजबूर होय ला परे हे । 

          चार दिन पाछू ... लइका हा अपन बाबू ला फुरसत म देख पूछ पारिस – अच्छे दिन के अवई लकठियागे हे अइसे अभी अभी सुने म आहे बाबू .. । कतेक धुरिहा म आये हाबे ते .. लाने ला जावँव का । बपरा हा रद्दा मद्दा झन भटक जाये । बाप किथे – तैं काये करबे जी अच्छे दिन ला .. मारो मारो खेती किसानी के दिन म ओकरे पाछू परे हस । लइका किथे – तैं नइ जानस गा । हमर घर अवइया अच्छे दिन ला अऊ कोनो झन लेग जाय कहिके ओला लाने बर चल देतेंव सोंचथँव । कति मेर अमरे होही बपरा हा ते ... । बाबू किथे – हमर घर के नाव म अच्छे दिन हा बीते पछत्तर बछर ले निकले हे । फेर ओला भेजइया मन देखावटी भेज के अपने तिर लुकाके राख लेथे । बेटा किथे – उहीच ला तो महूँ कहत हँव बाबू .. तेकरे सेती लाने बर चल देतेंव । एक बेर हमरो घर आतिस .. हमरो दुख दरद ला देखतिस अऊ समाधान करतिस । बाबू किथे – अच्छे दिन हमर मन घर नइ आवय बेटा । हमर मनके घर म का समस्या हे तेमा ... ? सरी समस्या ला देश के चलइया चारों खुरा मन ओढ़के खुसरे हे । समस्या ला अपन बाहाँ म पोटारके धरे हे .. । जब समस्या हा उँकर तिर म हाबे त अच्छे दिन तो उँकरे तिर म रहिबेच करही । अच्छे दिन के प्रादुर्भाव हा समस्या के निपटारा बर होय हे .. बिगन समस्या के हमर तिर काबर आही बपरा हा ? लइका किथे – हमर तिर समस्या कइसे निये कहिथस बाबू .. न खाये बर पेट भर अनाज .. न तन भर कपड़ा .. न रेहे बर बने असन कुरिया । बाबू किथे – येहा कोनो समस्या नोहे बाबू । हमन केवल अपन बर सोंचथन । हमर तिर काँही नइये तेमा कोनो बात नइये । पारा मोहल्ला गाँव म अऊ काकर काकर तिर काये काये नइहे ... इही ला सोंचना हा समस्या आय अऊ इही सोंच सोंच के बपरा मन पचास ले सौ किलो हो जावत हे । तेकर सेती अच्छे दिन हा ओकरे कोति रुख अख्तियार कर लेथे । 

          लइका के मन हा अच्छे दिन ले मिले खातिर बड़ चुटपुटावत रहय । दू दिन नहाकिस तहन फेर पूछ पारिस – हमर घर अच्छे दिन कइसे आही गा ? बाबू बतइस – बड़ मेहनत करे बर लागथे बेटा । लइका किथे – तैं अऊ बबा .. अतेक मेहनत करत हव  .. फेर अच्छे दिन के दर्शन हमर घर कभू नइ होइस । बबा किथे – हमन अपन संग दुनिया के धोंध भरे बर मेहनत करथन बेटा .. । अइसन मेहनत म अच्छे दिन भगवान हा खुश नइ होवय गा । अच्छे दिन ला अपन घर लाने बर चुनाव लड़े बर परथे अऊ जीते बर परथे अऊ जीत के सरकार बनाये बर परथे । जेकर जेकर सरकार बनथे .. तेकरे मन घर अच्छे दिन हा खुसरथे । पछ्त्तर बछर ले देखत हन .. हमर गाँव गोढ़हा म चुनाव लड़के जतका झन जीतिन अऊ सरकार बनइन .. सब अच्छे दिन ला कब्जिया डरिन । 

          लइका फेर पचारिस – त महूँ चुनाव लड़हूँ अऊ अच्छे दिन ला अपन घर म लानहूँ । बबा हाँसिस – तैं जीतबे थोरेन तेमा .. । मानलो कोनो काल के जीतिस गेस तब ... जब सरकार बनाबे तब अच्छे दिन हा तोला सुंघियाही बेटा । फकत जीत जाय म अच्छे दिन हा तोला नइ पूछय । लइकाफेर किहिस – जीत जहूँ तहन दूसर घर के समस्या ला जाके बहुत तिर ले देखहूँ ... तहन जगा जगा पचारहूँ .. तब चाहे सरकार म रहँव या विरोध म .. अच्छे दिन ला हमर कुरिया म आयेच ला परही । बबा किथे – निचट भोला अस जी । अभू तैं कच्चा हस । तोला जनाकारी नइहे । काकरो समस्या तभे दिखथे .. जब सरकार विरोधी चश्मा चघथे । सरकार म आये के पाछू .. ओकर आँखी के आगू समस्या नंदा जथे अऊ अच्छे दिन तिरिया जथे । मोर बेटा किहिस – जेला समस्या नइ दिखय तेकर घर .. अच्छे दिन हा काबर खुसरथे ? बबा बतइस – बेटा .. । सरकारी चश्मा जेला लग जथे .. ओकरे स्मार्टनेश देख .. अच्छे दिन हा ओकरे घर खुसरे बर मोहा के बइहा जथे अऊ बिगन मौका के तलाश करे बरपेली ओकरे मन के घर म खुसर जथे । 

          अच्छे दिन के चाह म लइका के मन बहुत उद्वेलित होवत रहिथे । ओहा सवाल उचइस – धँवावत का बबा ? बबा किहिस – का धँवाहूँ बेटा ... धँवा सकतेंव त हमरो घर अभू तक अच्छे दिन हा खुसर चुके रहितिस । काकरो समस्या ला कन्नेखी देख .. तहन तुरते सरकारी चश्मा पहिर .. तहन निवारण कर डरेन कहिके .. जगा जगा पचारत किंजर .. तब अच्छे दिन हा आके खुदे तोला घेर लिही ।  समस्या जस के तस हाबे कहत फकत चिचियावत रहिबे तब .. अच्छे दिन ला थोरेन पाबे । लइका हा बबा ला पूछिस – में ओला लाने बर जाहूँ .. तैं ओकर पता तो बता बबा । बबा हाँसत कहि दिस –   अच्छे दिन उही तिर म रहिथे बेटा जेकर धरती अऊ आकाश के मिलन होथे ।  

          लइका हा अच्छे दिन के अड्डा खोजत .. आकाश अऊ धरती के मिलन स्थान देखे बर बाहिर खुल्ला मैदान म निकलगे । हरेक दिन ओला लगय के अच्छे दिन के बहुत तिर पहुँच चुके हे ... फेर सांझ होवत ले जुच्छा के जुच्छा ... । कति तिर आकाश अऊ धरती के मिलन होथे ... अऊ कतका धूरिहा ओला रेंगे बर लागही ... तब अच्छे दिन ला अमराही .... ?  

 

हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

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