Sunday 13 November 2022

व्यंग "तड़कफांस"

 व्यंग "तड़कफांस"

बरदीहा मन  पहाट ल बढ़ हियाव ले राखथे। पाहट म रंग बिरंगी नाना परकार के गाय गरु रहिथे।  अलग-अलग गली मोहल्ला के तभो ले चीन डारथे उंकर नजर कोनो नेता ले कम थोड़ी आए दूरियां ले जान डारथे ये  दे फलाना घर के हरही गाय आए। उंकर कामे काए जी? वहुमन ल बरदी चराए के एक्सपीरियंस रहिथे।  हर्रे थुर्रे काहत दिन भर पहा देथे, अउ जईसे संझा होथे गरुवा मन अईसे भागथे  जईसे कोनो नेता के रैली होथे,अउ आदमी मन पुड़ी सब्जी बर टूट पड़थे। बरदिहा मन के बढ़ ताकत एके ही इसारा काफी रहिथे। बारवाही के समे कतको  मरखडीं , हड़बड़ही राहय  सहिला -साहिला के दुहूं डारथे । फेर गरवा मन ऊपर आज बिपत आन पड़े हैं तरिया के पानी सूखागे,   खेतखार म चारा नई हे, गरवा मन बोंबीयावत हे। न तो बरदीहा छेंकत हे न गोसइया,। सब दूरिया ले  आंखी सेंकत हे।मोला लागते ये बीमारी तड़कफांस ले  जादा खतरा हे।

           फकीर प्रसाद   

            "फक्कड़"🙏

           २५-५-२०२०लाकडाउन

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