Thursday 15 April 2021

पुस्तक समीक्षा


 पुस्तक समीक्षा

साहित्य ल समाज के दर्पन कहे गे हे। साहित्य म समाज के दर्शन करे जा सकत हे। साहित्यकार पहिली एक मनखे आय, ओकर पाछू साहित्यकार। मनखे के समाज ले सोज-सोज जुड़ाव रहिथे। समाज के जम्मो घटना ल अपन आघू घटत देखे रहिथे। चिंतन शील अउ गुनान मनखे समाज म व्याप्त विसंगति, कुरीति अउ रूढ़ीवादिता ल मेटे के उदीम करथे। कोनो समाज सेवा म जुड़के चेतना लाथे, त कोनो साहित्य के लेखन ले समाज सुधार म अपन योगदान देथे। साहित्य सिरीफ मनोरंजन के बूता नइ करय। मनोरंजन के संग सामाजिक चेतना, व्यवस्था म सुधार, अउ मनखे ल नवा दृष्टि दे के बूता करथे। चाहे ए साहित्य पद्य साहित्य होवय,चाहे गद्य साहित्य। 

         छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य के भंडार भरइया साहित्यकार श्री रामनाथ साहू जी के योगदान भविष्य म खच्चित सराहे जाही।  आप के छत्तीसगढ़ी म पाँच ठन उपन्यास जेमा कका के घर, भुइँया.. अउ दू नाटक 'जागे जागे सुतिहा गो' अउ दू ठी कहानी संग्रह गति-मुक्ति, दूध के पूत प्रकाशित हो चुके हे। छत्तीसगढ़ी कवि मन ल प्रोत्साहित करे बर कतको कवि के छंद अउ मुक्त छंद के कविता मन के अँग्रेजी अनुवाद करे के आप सरलग नवा उदीम करथव। आपके छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह 'गति-मुक्ति'  छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के सहयोग ले वैभव प्रकाशन ले प्रकाशित होय हे। जेमा छोटे छोटे चौदह कहानी बहत्तर पेज म समाहित हवै।

       जम्मो कहानी मन हमर तिर तखार के घटे घटना मन ल सिला बरोबर सिलहोय हे कस जनाथे। इही हर रचनाकार के सामाजिक सरोकार ल प्रमाणित करथे। कहानी मन म प्रयोग हाना/मुहावरा अउ पात्र मन के संवाद(मुँहाचाही) बिल्कुल अपन देशकाल अउ वातावरण के पहचान करा देथें।  कहानी के भाषा म सरल सहज अउ प्रवाह हे। मानवीय मूल्य ल सहेजे म आपके कहानी नवा पीढ़ी बर मील के पत्थर(पथरा) बनही।कोनो भी कहानी पढ़े म मन नइ थकय, उचाट नइ लगय। ए अलग बात ए कि कहानी मन घलव जादा लम्बा नइ हे। इही पाय के कहानी मन के मुख्य पात्र के चरित्र ह बने उभर नइ पाय हे। पात्र मनके मुताबिक संवाद लिखे म कहानीकार ल महारत हासिल हे, कहे जा सकत हे। 

     ऊपर म साहित्य के चिन्हाय बूता म रामनाथ साहू जी के लेखन पूरा पूरा खरा उतरथे। कहूँ कहूँ कहानी म व्यंग्य के लहजा घलव मिलथे। " बड़े सरकार तो उप्पर मा ठीकेच्च करत हे फेर तरी के ये छोटे सरकार मन के मन आही तब न चम्पा।"

        पहिली कहानी 'छानही' म बाँटे भाई परोसी होय, तीन भाई के  समय के संग छानही के विकास अउ पीरा ल उद्गार दे हे। बने बात यहू के भाई मन म परेम अगाध हे।

      "पक्का छत के ओइरछा ल खपरा के छानही थोरे झोंके सकिही।....." कहानी के छेवर ए लाइन के संग होय हे  "...खपरा छानही के धार ल करईन हर थोरहे झोंके सकिही।"

       दूसरइया कहानी ' बीज' व्यवस्था म व्याप्त भ्रष्टाचार के कहानी हरै, जिहाँ गरीबहा के मरना हे। जेमा ग्रामसेवक के संलिप्तता ओकर कथन ले प्रमाणित होवत हे-

   " अरे... अरे तैं कोन.... बीज हर तो एके बोरी आय रिहिस... अउ तुमन के सेटिंग नइ रिहिस...बस्स!"

        वर्तमान व्यवस्था म गरीब के मरे बिहान हे। यहू ल ए कहानी बताय म सक्षम हे।

         एकर बाद के कहानी 'चक्का जाम' ,चक्का जाम म फँसे फायर ब्रिगेड के लेटलतीफी म होय नुकसान ल उजागर करे हे। त दूसर कोति तमाशबीन बने भीड़ के चरित्र उजागर करथे। कहानी बताथे कि परोसी दरी साँप नइ मरै।

"तुमन के पाँव परत हौं ,आगी ल बुताय लागौ। मोर बइला मन ल बचाय लागौ।" 

"को जानी गाड़ी कै बजे आही.....पाँव परत हावौं।"

"बई!धीरज धर...। गाड़ी आतेच्च होही।"

"फेर तुमन बुताय नइ लागौ।"

     अकर्मण्य भीड़ के आघू बइला मन के संग पुरानमती घलव आगी म जर के भगवान ल प्यारा हो जथे। का भीड़ आज अतेक संवेदनहीन होगे हे, सोच के मन सिहर जथे। एक समय रिहिस जब जेठ के महीना म आगी लगे म गाँवभर मिल के बुझाय लगै।

       बिन वारिश के पुरानमती के मुआवजा बर नवा तमाशा शुरू हो जथे।

      काकर शहर काकर घर कहानी आजकाल सड़क तिर व्यवसाय बर अतिक्रमण के कहानी आय। जिहाँ जेकर लाठी तेकर भइँस के कहनउ राज चलथे। फेर सड़क चौड़ीकरण म जम्मो चीज के भेंट चढ़ जाना, एक नवा संदेश देथे।

     गणित के पाठ कहानी दू तरफा फायदा देखइया सुनील चंद जइसन मन के चालबाजी के पोल खोलथे।

      'पूजा-आरती' सऊँहत दाई ददा के उपेक्षा करके जस कमाय बर देखवटी कथा पुरान के आयोजन करइया पापी अधर्मी मन के पाप ल उजागर करथे।

        रामायण के आयोजन म दूरिहा दूरिहा जवइया भक्ति भाव के लहरा म संगीत दे रावण के जिनगी जियइया मन ऊपर बरसत कहानी 'टिकट' हे। इहाँ के संवाद देखते बनथे-

फेर ये का!....रमायन गवइया.... सबले बदनाम जगहा म।...नोट... दूकानदार ल देवत हे।

मैं तो रामनाम... टिकट कटाय हौं रे बाबू...तैं...का टिकट कटावत हस...तें जान।

     अठवइया नंबर के कहानी गति-मुक्ति जेकर ले संग्रह के नाँव रखे गे हे। एमा राम-सुग्रीव अउ कृष्ण-सुदामा के मितानी बरोबर हमर राज म मितानी के चलन ल दिगाय गे हे। ए अलगे बात ए कि मानसाय अउ बोधराम मितान बदे नइ रिहिन। बोधराम गंगा अस्नान बर कुंभ मेला चल दे रहिथे। एती मानसाय मितानी निभात बोधराम के खेत म अकरस नाँगर चला पसीना ले गंगा असनान करना चाहथे। जेमा धरमिन घलव संग देत कहिथे - "चला अगुवावा मैं कलेवा धर के आतेच्च हों।" कलेवा एक प्रतीक हे मन के उछाह के, सेवा भाव ले करे बूता के खुशहाली के।

         नउकरी एक अइसे कहानी हे जेन चपरासी के नउकरी पाय बेटी के अपन महतारी ले दगाबाजी अउ चालाकी ल दिखाथे।

         गँवतरी कहानी मुख्य पात्र के चरित्र संग पूरा नियाव करत दिखथे। संग्रह के ए कहानीमोर नजर म सबले बढ़िया कहानी आय। तिसरइया पीढ़ी के बहू परमेसरी अपन बूढ़ी सास बर जउन मया दिखाथे ओकर जतका प्रशंसा करे जाय कमतीच होही। ए कहानी समाज बर एक ठन थाती आय।

      'कोचई पान के इड़हर' पारा-परोसी संग लेन-देन के हमर समाज ले नँदावत रिवाज ऊपर हे। बूढ़त खानी मन म लालच ह स्वाभाविक ए। चार बेटा के बाप के पीरा ल देखव..."कलजुग के चार ठन बेटा के चार लात....ए उम्मर म चुल्हा चुकिया..।.. सहाजी माल किरा जाय..।"

        'ददा बेटा' आजकाल के हमर समाज के घटत नवा पीढ़ी के चरित्र ल उजागर करत हे। आज के बिडम्बना देखव.."माने.. तुमन...अलगे बिलगे होबो काहत.. हावा?"

"कहत नइ हन ददा, हो गएन।"

अउ मैं.. गम नइ पाये।

     कहानी के छेवर बड़ सुख पहुँचाथे। बेटा ल बाप के चिंता होथे, अउ बेटा ल छोड़ खवाय बर धरा-पसरा लहुट आथे।

         छाया अउ अगास बेटा बेटी के भेदभाव ऊपर हवै। छेवर म छाया के कहना, हिरदे ल चीर देथे।

   "जा अगास...तोर उड़े बर तो पूरा के पूरा अगास हे...मैं तो छाया अँव..मोर जगहा घर के भीतर हे..न।"

"जा ..जा ..भई..।फेर मोर बिहाव म जरूर आबे।"

       अइसे तो कुछ कहानी लघुकथा के सरीख हे। पन्ना के बदलत बदलत कहानी मन घलव कहानी के कलेवर म आवत गे हे। ए संग्रह म भूमिका अउ कहानीकार के  अपन लेखकीय के कमी झलकिस। हो सकत हे  रामनाथ साहू जी मन अपन बात सिरीफ कहानी ले पहुँचाना चाहे होही। कहानी विधा म ए लेखन नवा रचनाकार मन ल रस्ता दिखाय के बूता करही। नवा लिखइया मन ल कहानी लिखे बर प्रेरित करही, ए आशा करत हौं।


पोखन लाल जायसवाल

पलारी

बलौदाबाजार छग.

1 comment:

  1. छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह के समीक्षा के पहिली प्रयास ल गद्य खजाना म जगहा दे बर धन्यवाद गुरुजी

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