Thursday 15 April 2021

संस्मरण"*-अजय अमृतांशु


 

*"संस्मरण"*-अजय अमृतांशु


*अड़बड़ सुरता आही मुकुंद कौशल ....*


"कवि सम्मेलन के मंच केवल हाँसी ठिठोली बर नइ होवय, मंच के माध्यम ले कवि संदेश देथे समाज ला अउ चोट करथे बुराई ऊपर । कवि के काम देश अउ समाज ल दिशा दे के होथे। कवि समाज सुधारक होथे ....

            अइसन उद्गार मुकुंद कौशल जी अपन कवि सम्मेलन के मंच म अक्सर देवय। विनोदी स्वभाव के मुकुंद कौशल जी हास्य व्यंग्य के माध्यम ले बड़े बड़े बात कहि देवयँ । कौशल जी साहित्य जगत म कोनो परिचय के मोहताज नइ रहिन। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी कौशल जी एक गीतकार, चिन्तक, विचारक, कवि अउ गज़लकार के रूप में जाने जात रिहिन। जब भी कवि सम्मेलन के मंच पर उन जातिन श्रोता मन के अपार मया मिलय । 

              बात लगभग 20 बछर पुराना होही,तब भाटापारा लोकोत्सव म कवि सम्मेलन के कार्यक्रम आयोजित रहिस । रात के लगभग 10 बजगे रहिस अउ श्रोता मन कवि सम्मेलन ला अगोरत रहिन। ये कवि सम्मेलन मा काव्य पाठ खातिर  मुकुंद कौशल जी घलो आये रिहिन। भाटापारा मा उन अपन भाँचा रमेश श्रीमाली जी के घर मा ठहरे रहिन। लोकोत्सव के पदाधिकारी मन कौशल जी ल स्टेज तक लाये के जिम्मा मोला दिन। मैं मुकुंद जी ला लाने बर रवाना हो गेंव। खुशी ये बात के रहिस कि मुकुल जी से साक्षात मोर ये पहली मुलाकात रहिस। हालांकि कवि सम्मेलन मा उन ला मैं कई बेर सुन डरे रहेंव। मैं थॉरिक घबरात रहेंव काबर अपन बाइक मा उनला बइठार के लाना रहय। उन हैवीवेट अउ मोर वजन लगभग उँकर आधा।  

              मोला डर ये बात के रहिस कि उनला बइठार के लानत खानी मोर बाइक हा अनबैलेंस झन हो जाय। मैं दरवाजा के कॉलबेल  दबायेव। भीतर ले कोट अउ टाई कसे दमदार व्यक्तित्व के हेवी वेट मनखे निकलिन अउ कहिन- ले चल मैं तियार हँव। उँन ला देखते साट मैं अपन मन के बात कहि देंव- मैं आप मन ला ले बर आ तो गेंव फेर मोर पोटा काँपत हवय कि बाइक ह कहूँ अनबैलेंस झन हो जाय। मुकुंद जी मुस्कुराइन अउ कहिन-  अरे तोर बाइक में बैइठे मा जब मोला डर नइ लागत हे तब तैं काबर डरात हस, चल चला। 

मोर हिम्मत बाढ़िस अउ उन ला बइठार के मंच तक लायेंव। 

             प्रारंभिक संचालन करत मैं उँकर पर्सनालिटी ऊपर चार लाइन बोल के  कवि सम्मेलन के संचालन करे खातिर उनला आमंत्रित करेंव।  माइक संभालते ही कौशल जी कहिन- अभी-अभी एक दुबला पतला आदमी माइक पर आके मोर बारे में बहुत कुछ कहिन, चूँकि आदमी दुबर पातर हवय अउ रात के 10 बज गे हवय । रात के दूबर पातर मनखे ल छेड़ना बने नइ होवय। उँकर बस अतके कहना रहिस कि दर्शक दीर्घा ठहाका अउ ताली ले गूँज गे।


            उँकर संग मंच साझा करे के सौभाग्य मोला मिलिस । कवि सम्मेलन के मंच मा अपन चुटीला व्यंग्य मा उन बड़े बड़े बात कहि दँय। अउ श्रोता मन के वाहवाही लूट लँय। दूसर उपर व्यंग करके हँसाना अलग बात हे फेर कौशल जी अपन उपर व्यंग्य करके घलो मनखे मन ला हँसा दँय। एक कवि सम्मेलन में जब उन ये कहिन कि - वजन करे के मशीन मा मैं चढ़ेंव,मशीन में सिक्का डारेंव। मशीन ले टिकट निकलिस ओमा लिखे रहिस कृपया क्षमता ले जादा वजन झन रखे करव..... बस श्रोता मन लोटपोट होगे। 


            कवि सम्मेलन म भाग ले बर उन कई बेर भाटापारा आइन। भाटापारा के आयोजन म कवि मन के खातिरदारी के जिम्मा मोरे रहय। उँकर ले जुड़े एक मजेदार वाकया मोला अभो सुरता आथे।

 चाय नाश्ता करे खातिर कवि मन के संग मुकुंद कौशल जी ला ले के मैं पलटन हॉटल गेंव। हॉटल में बड़ा बनत रहय। मुकुंद जी के सूक्ष्म नजर कड़ाही म डबकत बरा ऊपर परगे। बड़ा बनत देख उन तपाक ले दू लाइन कहि दिन- "देखो अजय बड़ा बनना आसान है, लेकिन बड़ा बनाना बहुत मुश्किल है " बस फेर का हम सब ठहाका मार के हँसे लगेन ।

               कवि सम्मेलन मा एक बार जब उन भाटापारा आय रहिन,अउ रेस्ट हाउस म ठहरे रहिन, उही समय उँकर नवा किताब "मोर गजल के उड़त परेवा" प्रकाशित होय रहिस फेर विमोचन नइ होय रहिस। अपन किताब के एक प्रति उन मोला दिन। मैं कहेंव दादा ये किताब के अभी विमोचन नइ होय हे मैं विमोचन के बाद ले लेहूँ। तब उन कहिन - "अरे विमोचन को मारो गोली वह होते रहेगा तुम इत्मीनान से इस किताब को पढ़ो । "विमोचन ले पहिली अपन किताब मोला देना मोर लिए गरब के बात रहिस । आज जब उन हमर बीच नइ हे तब ये सबो बात रहि रहि के सुरता आथे। 

              एक जमाना रहिस जब सत्तर-अस्सी के दशक म आकाशवाणी म छत्तीसगढ़ी गीत मन के क्रेज रहिस, तब मनखे मन छत्तीसगढ़ी गीत के दीवाना रहिन। लोगन अपन कामकाज ल छोड़ के रेडियो मेर दते रहय। वो समय मुकुंद जी के- 

धर ले कुदारी ग किसान ,चल डीपरा ल खन के डबरा पाट डबों रे....

बैरी-बैरी मन मितान होंगे रे हमर देश मा बिहान होगे रे ....

मोर भाखा सँग दया मया के सुग्घर हवै मिलाप रे..

ये बिधाता गा मोर कइसे बचाबो परान ...

तैंहा आ जाबे मैना,उड़त उड़त तैंह आ जाबे....

महर–महर महकत हे, भारत के बाग......

आदि गीत मन धूम मचात रहिस। बचपन मा अइसन कालजयी गीत ल सुनना सुखद एहसास रहिस। तब यह तो पता नइ रहिस कि ये गीत के गीतकार कोन आय फेर ये जम्मो गीत मन सोझ अंतस मा उतरय । 

              उँकर निधन के लगभग 15  दिन पहली  मुकुंद कौशल जी से मोर गोठ-बात होय रहिस। तब उन बिल्कुल स्वस्थ रहिन। अउ सुग्घर ढंग ले उँकर सो मोर गोठ-बात होइस। भाटापारा में उन अपन भाँचा इहाँ आवय। मैं उँकर ले निवेदन करेंव कि ये दारी जब भी आप आहू मोला दर्शन जरूर देहू। तब उन सहजता से कहिन- मैं भाटापारा आहूँ  अउ तोला नइ बताहूँ ये नइ हो सकय, मैं तोला जरूर फोन करहूँ।  फेर नियति के आघु हम सबो नतमस्तक हन। मोला नइ मालूम रहिस कि उँकर ले ये मोर अंतिम गोठ-बात होही। छत्तीसगढ़ी भाखा के जाने माने गीतकार, कवि अउ ग़ज़लकार मुकुंद कौशल जी के जाना निश्चित रूप से साहित्य जगत बर अपूरणीय क्षति आय। 


अजय अमृतांशु 

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

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