Thursday 1 April 2021

अप्रैल फूल के तिहार-अरुण कुमार निगम*


 


*अप्रैल फूल के तिहार-अरुण कुमार निगम*


हमर देस मा तिहार मनाये के गजब सऊँख। सब्बो किसिम के तिहार ला हमन जुरमिल के मनाथन। तमाम जातपात, धरम-सम्प्रदाय के तिहार मन ला एकजुट होके मनाये के कारण सांप्रदायिक सदभाव अउ एकता के नाम मा हमर दुनिया मा अलगेच पहिचान हे। तिहार मनाये बिना हमर बासी-भात तको हजम नइहोवय। तिहार मनाये के सऊँख मा हमन प्रगतिशील होगेन। बिदेस के तिहारो ला नइ छोड़न। भूमंडलीकरण के जमाना मा नवा पीढ़ी हर "वेलेन्टाइन-तिहार" मनाये बर पगलागे। "वेलेन्टाइन-तिहार",  मया करइया जोड़ा के बिदेसी तिहार आय। एमा पुलिस संग "रेस-टीप" खेल के अपन मया ला जग-जाहिर करे के पवित्र भावना कूट कूट के भरे रहिथे। कभू कभू तो कुटकुट ले मार घला खाना परथे तिही पाय के ये तिहार मा बरा, सोंहारी, ठेठरी, खुरमी बनाय-खाय के परम्परा नइ रहय। रद्दा साफ मिलगे तो कोन्हों-कोन्हों  मन अपन जोड़ी-संगवारी ला चीन-देस के आनीबानी के नुन्छुर्रा चिजबस के भोग लगाथें। ये भोग दीखे मा गेंगरवा साहीं दिखथे। पताल के लाल-लाल झोर डार के येखर रंग ला घला लाल कर डारथें। कोन्हों-कोन्हों भोग अंगाकर रोटी साहीं घला दिखथे फेर अंगाकर जैसे वोमा दम नइ रहाय। एला पीज्जा कहिथें फेर खाथें।"वेलेन्टाइन-तिहार" हमर देस मा नवा-नवा आये हे।


जुन्ना बिदेसी तिहार मा "अप्रैल फूल के तिहार" हमर देस मा अप्रैल महिना के पहली तारीख के मनाये जाथे।" अप्रैल फूल के तिहार" के माई-भुइयाँके बारे में कोन्हों बिद्वान मन इंगलैंड बताथे तो कोन्हों मन फ़्रांस देस बताथे। हमला येखर माई-भुइयाँ से का लेने देना? बिदेसी तिहार हे, त सगा बरोबर मन सम्मान तो मिलबे करही। ये तिहार मा लोगन मन ला बुद्धू बनाये जाथे। पहिली के जमाना मा मोबाइल-टेलीफोन नई रहिस तब बैरंग लिफाफा मा कोरा कागद भेज के बुद्धू बनाना, झुठ्हा समाचार दे के हलकान करना, जीयत मनखे के मरे के झुठ्हा खबर दे के परेशान करना, नौकरी लगे के झुठ्हा खबर देना, अइसन कई प्रकार के हरकत करके तिहार के मजा लूटे जात रहिस। यहू तिहार मा पकवान बनाय-खाय के रिवाज नई हे। जुन्ना बिदेसी तिहार होये के कारण अप्रैल फूल के महक साल भर बगरे रहिथे। चपरासी मन बाबू ला, बाबू मन साहेब ला, साहेब मन बड़े साहेब ला, बड़े साहेब मन, अउ बड़े साहेब ला बुद्धू बनावत हें। एखर महक के बिना न भाषण लिखे जा सकथे, न पढ़े जा सकथे। कश्मीर ले कन्याकुमारी तक, अटक ले कटक तक अप्रैल फूल के महमही महसूस करे जा सकथे। बुरा लगे के बाद भी बुरा नई मानना, मामूली बात नोहय। "बुद्धू बनात हे" जान के भी चुप्पेचाप रहिना सहनशीलता के निशानी आय। अप्रैल फूल के तिहार अपन दुःख पाके दूसर ला सुख देना के संदेस देथे कि अपन सुख बर दूसर ला दुःख देना के समर्थन करथे, ये भेद अभीन ले सुलझे नइ हे। खैर, तिहार ला तिहार के नजर मा देखना चाही तब्भे मजा आही।


मजा लूटना, जिनगी मा आनंद लाना तिहार के खास लच्छन होथे। चार दिन के जिनगी मा कतिक टेंसन पालबो। इही सोच के हम हर दिन तिहार मनाये के बहाना खोजत रहिथन। १ अरब ३५ करोड़ मनखे ला कोन खुशी दे सकथे? मनखे ल अपन खुशी के रद्दा ला खुद निकालना पड़थे। मँय घर मा खुसरे खुसरे अपन जुन्ना बियंग ला नवा पैकिंग मा परोस के तिहार मनाए के रद्दा निकाल डारे हँव, आपो मन कुछु बहाना सोचव


*अरुण कुमार निगम*


(जबलपुर के संगी राजेश ह एक दिसम्बर दू हजार दस के एक ब्लॉगर मीटिंग के बेरा मा मोर कार्टून स्केच करे रहिस )

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