Friday 9 April 2021

मोर नजर मा ऑनलाइन परीक्षा-नीलम जायसवाल

 *मोर नजर मा ऑनलाइन परीक्षा*


  कोनो कुछ भी कहय, समय के संग म चले च बर परथे। कभू खुशी खुशी, त कभू मजबूरी म। इही बात ऑनलाइन पढ़ाई अउ ऑनलाइन परीक्षा बर घलो लागू होथे। देखे जाय त ऑनलाइन परीक्षा बाढ़त तकनीकी के एक उदाहरण आय। जेमा परीक्षार्थी मन कम्प्यूटर के माध्यम ले घर या परीक्षाहाॅल ले बिना कागज कलम धरे बटन दबा के परीक्षा देवत हें, ये हर ओइसने हरे जइसन कि आघू वोट देय बर कागज म मुहर लगाय ल पड़ै, अउ अब मशीन ले बटन दबा के वोट देवा जात हे।

      ऑनलाइन परीक्षा के अबड़ अकन नफा नुकसान हो सकथे। मगर सबले पहिली सवाल ये हर उठथे कि ऑनलाइन परीक्षा काबर ? जवाब घलो कई ठन हो सकथे। जइसे कि पर्यावरण बचाए बर, कागज के बर्बादी रोके बर, समय के बचत बर, कतको लोगन के अनावश्यक श्रम बचाए बर, जाँच प्रकृया मा पारदर्शिता बर, अइसे कतको कारण हो सकथे, जेखर पाय के ऑनलाइन परीक्षा के जरूरत महसूस किये जात हे। मगर वर्तमान समय के बात किए जाय त, देश म ही नहीं बल्कि पूरा विश्व म कोरोना महामारी बगरे हे। अइसन म स्कूल कालेज मन बंद हवँय, ये हर आज के जरूरत घलो हे,अउ मजबूरी तको हे। त लइका मन के भविष्य ल ध्यान म रख के स्कूल कालेज म ऑनलाइन पढ़ाई शुरू किये गे। जेमा लइका मन घर बइठे मोबाइल के माध्यम ले,अपन कक्षा ले जुड़ के पढ़ाई करेन,नोट्स बनाएन,अउ स्कूल कालेज म असाइनमेंट के रूप म जमा घलो करेन। त ये प्रकृया पूर्ण रूप ले ऑनलाइन नइ रहिगे, एमा ऑफलाइन काम घलो  जुड़गे। तभो ले जब पढ़ाई च ह ऑनलाइन होइस तो परीक्षा त आनलाइन करे च ल लागही। अउ खास कर के तब ,जब कोरोना महामारी हा कम होए के नामे नइ लेत हे। दिन प्रतिदिन स्थिति गंभीर ले भयावह होते जात हे। अइसन मा हम अपन देश के भविष्य, अपन नौनिहाल लइका मन के जिनगी के संग खिलवाड़ तको नइ कर सकन। त हमन ला  ऑनलाइन परीक्षा के स्वीकृति देये च द लागही। लइका मन ल साल दू साल पढ़ाई ले दुरिहा रखना भी उँखर बर ठीक नइ हे।  

     पढ़ाई-लिखाई जइसे जरूरी चीज घलो जिनगी के कीमत म नइ कराए जा सकै। काबर कि कहे गे हे -जान हे त जहान हे। अइसना मा सबले पहिली प्राथमिकता निर्विवाद रूप ले जिनगी ही होही। पढ़ाई कतको जरूरी हे, जिनगी ल बचाना ओखर ले जरूरी हे। त सवाल फेर वहीं आगे, कि पढ़ाई के का होही। त एखर जवाब के रूप म हाजिर हे, ऑनलाइन परीक्षा। जबकि एखर अपन कतको खामी घलो हे। तभो ले वर्तमान समस्या के सबसे बड़े निदान इही हर  दिखथे। 

       फेर कई ठन सवाल खड़ा हो जाथे कि,लइका मन पढ़ाई ले दुरिहा जावत हें, परीक्षा म कड़ाई नइ होय ले,घर के कुकरी दार बरोबर हो गे हावय,  प्रतिभावान विद्यार्थी के नुकसान अउ, कमजोर या साधारण विद्यार्थी मन के फायदा होत हे। यहू म कई स्वरूप म परीक्षा होत हे, कहूँ, घर ले लिख के जमा करना हे तो कहूँ किताब धर के उत्तर लिखना हे। त न्याय कहाँ ले हो सकही।

       ये सब सही आय, मगर देखे जाय त हमीं कइथन कि परीक्षा के डर लइका मन के विकास म बाधक हे। हमीं कइथन कि परीक्षा च हा सब कुछ नो हरे, जिनगी बहुत बड़े हे, परीक्षा के असफलता ले मायूस नइ होना चाही। ये आखिरी नो हे। त फेर हमीं काबर अतका संसो म हन कि लइका मन के जिनगी ये ऑनलाइन परीक्षा ह बिगाड़त हे। 

   मोर मति ले, अउ मोर विचार ले, मोर नजर मा ऑनलाइन परीक्षा ह, वर्तमान काल के जरूरत हे, अउ मजबूरी घलो हे। हमला एला स्वीकार करें च ल लागही। समय बदलही, कोरोना काल के बाद जब सामान्य समय आ जाही, त ऑनलाइन परीक्षा के स्वरूप बदले जा सकथे। या जरूरत मुताबिक बंद घलो करे जा सकथे। या ज्यादा पारदर्शिता अउ ज्यादा इमानदारी से लागू करे जा सकथे। तब तक खातिर हमन ला ऑनलाइन परीक्षा ल ओखर इही वर्तमान स्वरूप म स्वीकारे ल  पड़ही। इही म हम सबके भलाई हे। आज के स्वरूप म एला यही समझे जाय कि जना मना सबला जनरल प्रमोशन  हर मिलत हे। हमला थोकिन उदार बने च ला परही। इही समय के माँग हे, इही जरूरत।


नीलम जायसवाल

भिलाई, दुर्ग, छत्तीसगढ़।

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