Friday 9 April 2021

कठिन कारज-चोवराम वर्मा बादल

 कठिन कारज-चोवराम वर्मा बादल


पढ़ई-लिखई अउ पढ़ाई-लिखाई ल कई झन निच्चट सरल काम समझथें फेर सिरतोन म वो बड़ कठिन होथे। ये बात के परछो पाहड़ा रटत कोनो पढ़ंता बच्चा या अल्फाबेट लिखे ल सिखोवत मम्मी के चेहरा म उभरे तनाव के छँइहा ,नहीं ते माथा ले चुचवावत पछीना ल देखके करे जा सकथे।

     ये काम कतका दुखदाई अउ दुष्कर हे तेला 'करिया अक्षर भँइस बरोबर' पेंशनभोगी दादी माँ ल बैंक  म पइसा निकाले बर फार्म भरवाये बर घंटा भर ले एला-वोला गिड़गिड़ावत  देख के अच्छा से करे जा सकथे।अइसने हाल कतको झन सुटेड-बुटेड पढ़े लिखे वो नवजवान मन के तको दिखथे जेन मन कोनो फार्म ल भरे बर पेन ल चाबत एती वोती ल झाँकत रहिथें।

   का आप मन कभू छड़ीधारी,पढ़ावत-लिखावत समे रौद्र रूप धरके अपन श्री मुख ले बड़बड़ावत, ब्लड प्रेशर के दवा खावत कोनो मास्टर जी ल देखे हव?  अगर नइ देखे हव त ,पढ़ाई-लिखाई कोन चिड़िया के नाम ये कइसे समझ पाहू? समझ तो वो अहिंदी भाषी ल तको नइ आवय जेन 'नर्मदा नदी' ल अँग्रेजी म लिखवाके 'नरमादा नादी ' पढ़थे।

     एक दिन सपना म मोला वृत्तासुर महाशय दिखगे। मैं ह जानबूझ के वोला वोकर मृत्यु के कारण ल पूछ परेंव। वो ह भड़कत बोलिस---दुबारा मत पूछबे।  नइ जानस का -मैं ह मारन मंत्र ल गलत उच्चारण करत पढ़ परेंव जेकर सेती इंद्र के हाथ उल्टा खुदे मारे गेंव। सहीं सहीं उच्चारण करत पढ़े रहितेंव त इंद्र के खटिया लहुटे रहितिस। मैं ह सहमति म मूँड़ हलाके आँखी खोलेंव त बिहनिया होगे राहय।

      गलत पढ़ना ह खतरनाक तो होबे करथे भलुक वोकर ले जादा भयंकर गलत लिखना ह होथे। मैं ह दू दिन पहिली अपन एक झन मित्र ल मैसेज करेंव--आज संझा कुकुरा पार्टी हे। ठीक सात बजे घर चले आबे। फेर लिखे के बेरा अनर्थ होगे राहय जेकर मोला भनक नइ लगिस।  मैं ह *र* मा *आ* के मात्रा लगाये ल भुलागेंव जेकर ले *कुकुरा पार्टी* के जगा म *कुकुर पार्टी* लिखागे राहय। मित्र ह राइट टाइम म  आइस जरूर फेर डंडा धरके बजेड़े बर ।

   एक दिन मोला एक ठन पुरस्कार मिलिस, मंच म सम्मान होइस तहाँ ले का पूछना ? तुरंत तुकतुकाके फेस बुक म डारबे करेव। पाँचे मिनट म बधाई संदेश के ओरी लगगे। मैं फुलके फुग्गा बनगेंव फेर एक झन चेला चपाटी ह लिखे राहय तेला पढ़के चेहरा ओथरगे। वो लिखे राहय-- *गाड़ा-गाड़ा बधई हे गरुदेव।*

     मैं सोंच म पर गेंव के वोहा मोला बधाई देवत हे धन *गरुदेव* कहिके खिल्ली उड़ावत हे। मन नइ माढ़िस त वोला लिखेंव--कस बाबू तोर काय बिगाड़े हँव जेमा तोर बर बोजहा सहीं गरु होगे हँव। वो ह जवाब म लिखिस--छिमा करबे *गरुदेव* लिखे म चूक होगे। मैं ये देख के हाँस डरेंव के वोला लिखेच ल नइ आवय।

     हमर पान ढेला म उधारी पान -गुटका खाये के आदत हे। ईमानदारी ले सप्ताहिक पटा घलो देथँव। एक बखत चारे दिन म पटाये बर ठेला वाले कका ल जोड़े बर कहेंव त वो कहिस 1000 रू हे। हम अकबकागेन। कापी ल माँग के देखेंव त होय 100 रू  राहय फेर वो ह 100 के आगू म एक शून्य अउ लिख दे राहय। मैं कहेंव --तैं तो अइसने पहिली जमाना के साहूकार मन सहीं बढ़ा बढ़ा के लूटे होबे कका। वो कहिस पेन ताय बाबू फिसल गिस होही।

   मोला गाहे बगाहे वो चुटकिलानुमा किस्सा सुरता आ जथे। हमर पारा-परोस के बहुरिया जेकर नाम *कामिनी* हे तेन ह रिसा के अपन मइके भागगे रहिसे। वो समे ओकर गोंसइहा ह कमाये खाये ल बाहिर गे रहिसे। वो ह जब वापिस अइस त हमर जइसे दू-चार झन बुजुर्ग किस्म के बुद्धिजीवी मन ल संग म धरके अपन ससुरार गिस। बहुरिया ल रूठे के कारण पूछेन त वो ह एक ठन चिट्ठी ल फेंक के देवत कहिस--येला पढ़के देखव। पढ़ेन त वोमा लिखाय राहय--- *प्रिय कमिनी*। कारण समझत देर नइ लगिस। कइसनो करके मना-मुना के घर लायेन।

    हमर नानकुन जिनगी म अइसने बहुत अकन दुर्घटना घटे हे तेकर सेती पढ़ई- लिखई बड़ कठिन कारज लागथे।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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