Monday 26 April 2021

विपदा म धीर कइसे धरन*- पोखन लाल जायसवाल

 *विपदा म धीर कइसे धरन*- पोखन लाल जायसवाल


       जिनगी म ऊँच-नीच तो सदा दिन लगे रहिथे। सुख के चाह म जिनगी ह समे के अँगना म घाम-छाँव के खेल खेलत रहिथे। कोनो ह काकरो ऊपर बीस परथे। अउ एक छिन म हाथ के रेती बरोबर सलंग जथे। बाम्बी मछली सही बिछलके भाग जथे। अइसन म जिनगी ले कोनो ल कभू कोनो किसम के रिस नइ रहय। तव मनखे मन भर मन लगा के अपन-अपन बूता काम म भुलाय रहिथे। मन मुताबिक आवा-जाही करत सामाजिक जिनगी जीयत रहिथें। छोटे मुटे दुख-पीरा ल अइसनहे भुला के जिनगी आनंद खुशी ले बितात आगू बढ़थे। फेर कभू-कभू अइसे घलव होथे कि ओसरी-पारी जिनगी म दुख ऊपर दुख आतेच रहिथे। बने जात के एक ठन घाव भराय नइ राहय अउ समे हर हमर ले मजाक कर जाथे। हमर मुड़ी म बड़का बोजहा पटक देथे। हम कुछु कर नइ पावन। हाथ धरे बइठे भर रही जथन। समे निर्दयी बने हमर परछो लेथे कि का? उही जाने अउ ऊपर वाला जानँय। 

         कहे जाथे विपदा कभू बता के नइ आवय।  विपदा के घड़ी कतको आइस अउ चल घलो दिस। वो विपदा चाहे बौराय नदी मन के पूरा होवय, बरफ के चट्टान धसके के बात होवय, सुनामी के बात होवय, चाहे अउ कोनो किसम के होवय। सब ल पार पाएँन। सब ले उबर गेंन। विपदा जब कभू आथे, बड़ोरा कस आथे, अउ बहुत अकन हमर ले छीन के अपन संग लपेट के ले जथे। गँवाय जिनिस के सोग करे म काम नइ चलय। सोग करे बइठ ले बेरा ढरकथे, जिनिस वापिस नइ आय। गँवाय के डर अउ सोग करे म मन कमजोर होथे। अइसन म मन धीर नइ बाँध पावय। विपदा ले उबरे बर धीर धरना जरूरी हवय। मन के डर ल विश्वास के खुँटी म टाँगे ल परही। वो विश्वास जेकर ले हम विपदा ले पार पाय के हिम्मत पावन। ए विश्वास ले हम ल पाछू के विपदा मन ले निपटे के उदीम ले लेना हे। अउ वो विश्वास के नाँव हे विज्ञान। विज्ञान तब ओतका तरक्की नइ करे रहिस जतका आज कर ले हे। कतको आपदा मन के वैज्ञानिक मन कोति ले मिले चेतवना अउ भविष्यवाणी ले अब होवइया नकसान ल कम करे जा चुके हे। 

          ए दरी के आपदा ह जीपरहा कस रमड़ियाके बइठ गेहे। जना मना मनखे ले कोनो बदला ले हे बर खोभ खाय हे। अइसन घलव नइ हे कि एकर ले निपटना मुश्किल हे। आन आपदा मन ले एहर थोरिक दूसरा भले हे। दुख पीरा बाँटे बर तिर म बइठन नइ देत हे। मनखे ल मनखे ले दूर कर दे हे। फेर हारे के बात नइ हे। वैज्ञानिक अउ डॉक्टर मन जउन उपाय बताय हवय तेकर पालन जरूरी हे, एकरे ले मनखे के कल्याण हे। धीर म खीर हे, सियान मन के कहना आय। हम ल बिपत के ए घड़ी के बिलमे के अगोरा घर म बइठ के करना चाही। जब एला कोनो आश्रय नइ मिलही, खुदे मिट जही।

   ए बखत कोनो भ्रम म पड़के अकड़ दिखाय के बखत नइ हे। अकड़ सदा दिन काम नी आय। अभियो ए बात के सुरता रखे के बेरा ए। घर म बइठ के हरि भजन म धियान लगान। मन ल शांति मिलही अउ मन म धीरज आही। मन जभे दुख पीरा ल धरे बइठे रहिथे, तभे भटकथे। कोनो मेर थाह नइ पाय। भटकत मन न शांति पावय, न धीर धरय। मन हार जथे। हारे मन म धीर बर जगहा नइ बाँचय। 

         ए विपदा म कतको झन, मन ले हार के जिनगी ल हार जवत हें। हम सब ल सुरता रखना चाही कि कोनो विपदा के घड़ी बड़ लाम नइ रेहे हे, त एकर कइसे हो सकिही। यहू जल्दी सिराही। बस अतका धीर धरे के जरूरत हे कि हम अपन हिम्मत ले अपन अउ अपन परिजन के हिम्मत बढ़ा सकन अउ विपदा ले मिले दुख सहे बर धीरज बँधा सकन।


पोखन लाल जायसवाल

पलारी बलौदाबाजार छग.

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