Tuesday 8 September 2020

लघुकथा -मथुरा प्रसाद वर्मा

 लघुकथा -मथुरा प्रसाद वर्मा


*चोर चिल्हाट*


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रतिहा  के लगभग बारा बजत रहय । फिरंता गाड़ी टेसन के बाहिर बइठे सवारी के अगोरा करत हे। जाड़ के मारे हाथ गोड़ दुनों काँपत रहय। जाड़ भगाये बर तीर तखार के झिल्ली अउ रद्दी कागज ल जरा के हाथ ला सेके के उदिम करय ,तब ले जाड़ ह रकसा कस पोटार के धर ले रहय। खीसा म बाँचे आखरी बीड़ी ल सिपचवत सोंचे लागिस भगवान घलो दु ठन होथे। गरीब के आने अउ अमीर के आने। नइ तो का बुढत काल म ये झमेला करे लागतिस? 

बहुत होंगे । अब घर जा के सोना चाही। नहीं त ये जाड़ ह परान ले के छोडही। वइसे भी संझा ले अभी तक 100 रुपिया तो कमाच डरे हँव। 

फेर आखरी गाड़ी आने वाला हे । रात के बेर जाड़ के मारे कोनो दूसर रिक्सा वाला तो रहय नही। बने सवारी मिल जथे। सौ-पचास के लालच म बुढ़वा फिरँता ये जीवलेवा  जाड़ ल सहत बइठे हे।

 डोकरी घेरी-बेरी बरजथे - झन जा डोकरा आज कल चोर चिल्हाट के बहुत डर हे। कोन जनी कोन मेर लूट लिही।तब ले मरता काय नइ करता। दिन म तो अब कोनो ओखर रिक्सा म बइठय नहीं। रतिहा डराबे त पेट कइसे चलही। कोनो पोसइया  रहितिस त का ये उमर अउ बिमराहा जागर ल रिक्सा चलाये बर परतिस।  बीड़ी घलो ह गरीब के आस सही टप ले बुता गे। धियान घलो टूट गे।


 तभे कोनो आवाज दिस -  ये रिक्सा वाला।

 आवाज ल सुन के सियान के आँखी चमके लागिस।  तुरते उठ के जगर-बगर देखीस 

आघु म हवलदार साहब खड़े रहय  

चल सामान उठा ! सिविल लाइन जाना हे। 

हव साहब !

साहब रिक्सा म बैठगे ।  जाड़ म ठूठरत बिचारा  कतेक जोर से रिक्सा चलतीस। फेर हवलदार साहब  के डर मा जइसे तइसे हफरत- हफरत रिक्सा ल ओटत  सिविल लाइन पहुँचगे। साहब रिक्सा ले उतरिस अउ अपन घर जाए लगिस। पइसा के नाव तक नइ लिस। 

 फिरँता  डरावत डरावत किहिस 

साहब पइसा ? 

हवलदार साहब ऊपर ले नीचे तक वोला देखिस जइसे वो कोनो बड़का जुलुम कर डारे हे।

फेर किहिस -'पुलिस वाले से पइसा माँगता है। सुबह आना थाने में दूँगा।"

हवलदार के गोठ ल सुन के बिचारा ठाड सुखागे।

हारे जुआरी सहीं घर कोती आवत आवत डोकरी के गोठ सुरता आय लागिस 'आजकल चोर चिल्हाट मन के बहुत डर हे। कोन जनी कोन मेर लूट लिही।'




✍🏻मथुरा प्रसाद वर्मा

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