Friday 18 September 2020

हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी भाषा के अंतर्संबंध*

 *हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी भाषा के अंतर्संबंध*

-बलराम चंद्राकर 


जहाँ जहाँ हिन्दी के प्रभाव हे, उहाँ छत्तीसगढ़ी हे।'सास गारी देथे ननद मुहुं लेथे, देवर बाबू मोर' हिन्दी सिनेमा मा जब आइस त दिल्ली अउ लंदन मा बसैया हिंदुस्तानी मन ला घलो ठूमकत देखे हन।छत्तीसगढ़ी मा अतका तरलता हे कि छत्तीसगढ़ के सीमा पार कर के खुसरे खुसरे हे।महाराष्ट्र के सीमावर्ती इलाका मन मा, उड़ीसा के कतको गांव हे जेमन भाषायी समानता के कारण छत्तीसगढ़ उपर आश्रित हे। सहडोल मंडला बालाघाट सिवनी अनुपपुर मन मा स्थानीय भाषा के साथ - साथ छत्तीसगढ़ी के बरोबर प्रभाव हे। चेतन देवांगन जब पंडवानी गाथे मुंबई मायानगरी के प्रतिष्ठित मुम्बईया मन के कार्यक्रम- जलसा मा तब हर मिनट वाह - वाह होथे, ताली बजथे। हबीब तनवीर छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़ी कलाकार के बलबूता देश- दुनिया मा परचम फहरइन। तीजन बाई अपन बोली- भाखा के बल मा पद्मश्री, पद्मभूषण, डाक्टरेट सब होगे, दुनिया घूम डारिन। सुरेंद्र दूबे जी करिथें कि वाइट हाऊस मा छत्तीसगढ़ी कविता पढ़े हंव, सिरतो अमेरिका कई बार गे हें। अमेरिका मा हमर छत्तीसगढ़ के हिंदी अग्रेजी के माहिर प्रवासी मन 'नाचा' नाव के संस्था के गठन करे हें। असम के बहुत बड़े हिस्सा मा छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़िया मन के प्रभाव हे, तभे तो उहाँ विधायक, मंत्री, सांसद सबो बनत आवत हें।छत्तीसगढ़ के बेटी करुणामयी मिनी माता असम ले आके पुन:छत्तीसगढ़ के पूजनीय बन गे । ये जम्मो कहूँ न कहूँ हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी के अंतर्संबंध ला देखाथे कि हम इहाँ रहन या बाहिर, हिंदी के संग छत्तीसगढ़ी ला घलो जिंदा रखेन तभे हमर पहिचान सुरक्षित रहिन। हिंदी के अपन कोनो कल्चर नइ हे। जम्मो हिंदी बोली- भाषी क्षेत्र के  कल्चर येकर धरोहर हरे, कल्चर हरे। हिंदी महासागर हरे त छत्तीसगढ़ी सागर हरे। सागर- सागर मिल के महासागर हो जथे, कोनो सीमा रेखा खींचना मुश्किल हो जथे। गजब देश हे। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश ले सरकत - सरकत बहुत अकन बोली मन स्वतंत्र रूप पा गे। छत्तीसगढ़ी घलो करवट लेवत हे अपन अस्तित्व बताय बर। छत्तीसगढ़ी के नाव मा छत्तीसगढ़ बन गे। छत्तीसगढ़ी घलो संवरत हे अपन लोक ला शास्त्र मा ढाले बर।हर आदमी इहाँ के मुखर होना चाहत हे। अपन मन के भाव ला सहजता देना चाहत हे। प्रवाहमान होना चाहत हे। राज मिले के बाद अब अपन बोली - भाखा, संस्कार, तीज- तिहार ला सहेजे बर छटपटावत हे। विद्वान मन ए इशारा ला समझौ, भला होही।

          कृष्ण लोक के प्रतीक हरे जब गोकुल बृंदाबन मा रहिथे। कृष्ण शास्त्र के प्रतीक हे जब मथूरा अउ द्वारिका वासी हो जथे। इही मेर हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी के अंतर्संबंध ला बूझे ला पड़ही। राधा अउ रुक्मिणी ला जाने ला पड़ही।चक्र अउ मुरली के एके व्यक्तित्व मा वास ला ग्राह्य करे ला लगही ।तभे, तभे पार पाबो। मुरली अउ चक्र में से एक ला बाहिर कर के कृष्ण के व्यक्तित्व के परख कर पाना सम्भव नइ हे। 

छत्तीसगढ़िया मनखे मन ला हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी दोनों ला साधे ला परही।हिंदी तो परिपक्व होके आपके साथ खड़े हे फेर छत्तीसगढ़ी?


छत्तीसगढ़िया के रूप मा ही हमर पहिचान हे। हमर तीज तिहार संस्कार सब छत्तीसगढ़ी। बोली तक छत्तीसगढ़ी। लेकिन देश दुनिया ले संपर्क मा आय के बाद समझ मा आथे अउ संसार के सफ्सो विद्वान मन एक सूर ले कहिथे कि प्रारंभिक शिक्षा अपन महतारी भाषा मा होना चाही। तब ये छत्तीसगढ़ी हमर महतारी बोली ला का भाषा के पूर्ण रूप दे बर हमर विद्वान - विदुषी मन ला पीछु रहना चाही? मन मा टेक ला हटा के नवा पीढ़ी ला प्रशिक्षित करे मा जीवन समर्पित कर देना चाही। किंतु परन्तु त्याग छत्तीसगढ़ी बर जतके खड़े दिखहीं, ये प्रांत के प्रभाव अउ सुभाव वोतके मजबूत होही, अउ दुनिया मान देही।आप के विद्वता ले बाहिर के दुनिया मा आप ला व्यक्तिगत मान मिल सकथे फेर छत्तीसगढ़ के आम मनसे ला स्वाभिमान के साथ जीयत देखना हे त छत्तीसगढ़ी बर बीड़ा उठायेच ला पड़ही ।अगर लइका अपन महतारी भाषा ले शिक्षित- प्रशिक्षित होही तो हिंदी अग्रेजी के प्रति ग्राह्य क्षमता अपने आप कई गुणा बढ़ जाही।

हिन्दी जइसे समृद्ध भाषा के संरक्षण मा छत्तीसगढ़ी दिन- दुनी रात- चौगुनी तरक्की करही, बस गुनी मन ला अपन मन के गांठ ला थोकन ढिल्ला करे बर लागही ।मन हर्षित हे आज बहुत अकन सकारात्मक रूख दिखत हे। भाषा उपर चिंतन सतत चलत हे। सरकार के घलो रूझान हा दिखत हे। फेर कोनो सरकार होय उंकर रूझान जनता के दबाव उपर निर्भर करथे।विद्वान मन दरबारी हो के तटस्थता छोड़ देथे त नुकसान घलो संभव हे। हमर दबाव नइ रइहीं त बहुत अकन नकारात्मक कारण मन राजधानी मा घूमरत हे। ए बात ला आप अउ नवा पीढ़ी गांठ बांध के रख लौ, समझ लौ। 

आज, जे मन हिंदी के विद्वान रहे हें, अंग्रेजी के जानकार  हें, उन मन अपन मया पलो के छत्तीसगढ़ी बर जमीन ला नित उपजाऊ बनावत हे।ताकि हमर जुबान हमर बोली, हमर भाषा पोषित होवै, घपटै- फूलै- फलै।निश्चित ही भारत माता के बेटी छत्तीसगढ़ी महतारी घलो   सर ऊंचा करके देश-देशान्तर मा गोठियावत एक दिन दिखही, विश्वास हे।


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