Friday 18 September 2020

छत्तीसगढ़ी के मानकीकरण के जरूरत मोर नजर म*

 *छत्तीसगढ़ी के मानकीकरण के जरूरत मोर नजर म*

        कोनो भी क्षेत्र के मनखे अपन विचार व्यापार बर जेन सांकेतिक अउ ध्वन्यात्मक साधन के उपयोग करथे, उही उँखर भाषा होथे। मनखे के छोड़ आने जीव जनावर भी भाषा ल समझथे अउ बउरथे। हमर पाले गाय गरु अउ आने कोनो भी जीव हमर संग राहत हमर भाषा ल समझथे। दुलार अउ फटकार म फरक घला जानथें। चिरई चिरगुन मन अपन आने-आने आवाज ले अपन भाव व्यापार कर अपन संगी साथी ल संदेश देथें। मनखे अइसे प्राणी हरे जेन सांकेतिक अउ ध्वन्यात्मक दूनो भाषा ल बउरथे। सांकेतिक रूप के उपयोग बहुतेच कम होथे। भाषा के ध्वन्यात्मक रूप के बिना जिनगी के कल्पना मन ल कँपा देथे। घर म कुछु गोठ-बात ल लेके अपन हितवा मयारुक ले नइ गोठियाय ले कइसे लागथे हमीं कल्पना कर देख लन। ए तरह ल कहे जाय त भाषा जिनगी बर मदरस होथे। नता रिश्ता बर चुंबक होथे। 

       हर भाषा के दू प्रकार उपयोग होथे, पहिली मौखिक अउ दूसरइया लिखित। मौखिक रूप ल हम आमजीवन म सुख-दुख बाँटे बउरथँन। काम बुता तियारे अउ करे बर भी  इही रूप ले काम चलाथँन। मनखे नता-गोता के हिसाब ले भाषा के शब्द चयन कर गोठ बात करथे। ठठ्ठा मढ़ाय बर घला अलग अलग नता ले अलग अलग भाषा उपयोग करथे। ठठ्ठा दिल्लगी म कतको मरम के बात सहज ढंग ले कहि देथे। समझइया समझगे तो बात बन जथे। इहें शब्द शक्ति  देखे जा सकथे। मर्यादा म रहिके बात करे के नता ले सावचेत रहिके बात करथें। एक तरह ले कहे जा सकथे कि मनखे अपन भाषा ल एक मानक रूप बना के बोलथें। लोकजीवन के भाषा मौखिक होथे। ए भाषा मौखिक रूप म एक पीढ़ी ले दूसर पीढ़ी ल तइहा ले मिलत आवत हे, अउ ए क्रम सरलग चलही भी। ए बीच भाषा म बदलाव भी स्वाभाविक रही। छत्तीसगढ़ के सीमा चारों मुड़ा आने आने भाषा बोली के प्रदेश मन ले जुड़े हे, संगेसंग इहाँ के बनावट अउ बसाहट अइसे हे कि  थोरिक दूर जाय ले बानी, घाट घाट के पानी कस बदल जथे।  ए स्थिति म छत्तीसगढ़ के सबो जगा भाषा के एके रूप नइ हो सकै। मौखिक रूप म तो कल्पना बेकार हे।

          *विविधता ले भरे भाषा के एक निश्चित रूप अउ स्वरूप म स्वीकार्यता ल ही भाषा के मानकीकरण कहे जाथे।* सर्वमान्य शब्द मन के प्रयोग ले विचार व्यापार करना लोकजीवन बर बहुतेच कठिन हो जही। उत्तर अउ दक्षिण के, पूरब अउ पश्चिम के बोलचाल के भाषा म फरक ल देखे जा सकथे।

       भाषा के मानकीकरण के जरूरत अउ उपयोग देखे जाय त लिखित रूप म हे। *सरकारी काम-काज के पत्र-व्यवहार अउ साहित्य लेखन मानक रूप म ही होना चाही।* साहित्य अपन समय के समाज के एक लिखित दस्तावेज होथे। जे ल समाज के बुधियार जन मन अपन कल्पना ले विस्तार दे, अपन समय के आर्थिक, सामाजिक अउ राजनीतिक विसंगति के संग रीति-रिवाज अउ लोकजीवन के मान्यता मन ल लिखे के उदीम करथें। मानकीकरण के अभाव म विविधता रहे ले पूरा क्षेत्र के एकरूपता समझे म दिक्कत हो सकथे। सब ले बड़े बात भाषा ल राजनीतिक संरक्षण नइ मिले। शासन के अनदेखी के शिकार होय ले नुकसान का होथे? अवधी अउ भोजपुरी जइसे अउ आने भाषा के विकास ले समझे जा सकथे। मानकीकरण बर लिपि के जरूरत होथे। छत्तीसगढ़ी के लिपि तो देवनागरी चले आवत हे, एखर चिंता करे के जरूरत नइ हे। एखर बड़े गुण हे, जइसे बोले जाथे, वइसे लिखे जाथे।

        भाषा विज्ञानी अउ विद्वान मन मानकीकरण के संबंध भाषा के व्याकरण ले जुड़े मानथें।  छत्तीसगढ़ी के व्याकरण हीरालाल काव्योपाध्याय जी मन बहुतेच पहिली लिख के हमर बर बड़े काम कर दे हे। हमर दुर्भाग्य रहिस कि ऊँखर बरोबर उपयोग छत्तीसगढ़ नइ कर पाइस। फायदा नइ उठा पाइस। फेर आज  छत्तीसगढ़ अउ समय दूनो कलथी मारे हे। आज व्याकरण सम्मत रचना लिखे जावत हे।रस, छंद, अलंकार ले पद्य सृजन होत हवै त मुहावरा लोकोक्ति हाना के संग शब्द शक्ति ले साहित्य के गद्य खजाना घरो भरावत हें।

      आज सरकारी मुँह ताकत बइठे के बेरा नइ हे, छत्तीसगढ़ी के आरो पा ऊँखर कान म जूँ रेंगे धर लेहे। हम ल अपन काम (साहित्य सृजन) ईमानदारी ले करे परही। ए बात के भी ध्यान राखे परही कि मानकीकरण के उदीम हमीं ल अपन लेखन ले करे परही। अपन रचना म कोनो भी शब्द ल आने आने प्रकार म झन लिखँन। हमर खुद के लेखनी म एक रूपता हम लावँन। उदाहरण स्वरूप दू चार ठन शब्द के गोठ करत हौं  ----

तँय / तैं, मँय / मैं,

मं/म/मा

ल/ला

ह/हर (तें ह/ तें हर)

करौ/करव

करौं/करँव

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     अइसन शब्द बर हम ल पथरा होय ल परही, छंद म मात्रा मिलाय बर कोनो भी ल उपयोग करना उचित नइ मानौं। कम से कम एक रचना म एके शब्द के आने आने रूप बउरे ले जरूर बाँचना चाही। हमर सबो रचना म ए शब्द मन एके रूप होय, त वो जादा बने रही।

      

     पोखन लाल जायसवाल

पलारी १८/९/२०२०

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