Friday 4 September 2020

लोक जीवन म पितर देवता के महत्तम*

 *लोक जीवन म पितर देवता के महत्तम*


     छत्तीसगढ़ राज के चिन्हारी इहाँ के लोक संस्कृति, लोक संगीत,लोक मान्यता,परम्परा अउ रीत रिवाज ले हावय। लोक जीवन ह ए चिन्हारी मन ले आनंद के अनुभव करथे। दुख पीरा ल बिसराय म बड़ मददगार हे। छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया कहावत इहाँ के लोक जीवन के सरल सहज सुभाव ले जिए अउ सबो ला अपने माने, कोनो ल बिरान नइ जाने के फल आय।इही लोक जीवन म एक ठन पुरखौती रिवाज तइहा ले चले आत हे।जेन म पितर देवता मन ला मान दे जाथे। उनखर हमर ऊपर करे उपकार ला माने के परब होथे पितर पाख। जउन हा कुंवार महीना के अँधियारी पाख म एकम के दिन ले शुरू करे जाथे। अउ पंद्रह दिन ले सरलग माने जाथे । एमा पितर देवता मन ला श्रद्धा भाव ले सुरता करत उनखर बताय बात सिखौना ला सुरता कर अपन जिनगी ला जिए के कोशिश भी करथन।

     पहिली दिन जेन ला पितर बइसकी कहे जाथे, अपन सबो पुरखा मन ल आहवान करे जाथे ,नेवता दे जाथे। घर के मुँहाटी मा चउक पूरके , फूल पान अउ लोटा मा पानी रख के स्वागत करे जाथे। लोक जीवन मा मान्यता हे कि हमर परलोकी ( स्वर्गवासी ) पुरखा मन जउन तिथि मा ए दुनिया ले जाय रहिथे , पितर पाख के उही तिथि अपन बाल बच्चा मन ला देखे अउ आशीर्वाद देहे बर आथे। चाहे जउन बात होय फेर एक ठन बड़का बात तो ए हावय कि इही बहाना हम अपन पुरखा मन के सुरता करथन।श्रद्धा भाव ले भर के उन ला शीष नवाथन ।उनखर उपकार ला मान, परोपकार करे के भाव अपन मन मा जगाथन। उनखर जिनगी जिए के अनुभव ला सुरता कर नवा रद्दा गढ़थन। नारी जाति के मान बढ़ाए जम्मो पुरखा माई मन ला एक दिन नवमी तिथि के पितर माने जाथे। कतको मन कहिथे पुरूष प्रधान समाज के व्यवस्था हरे।कुछ मन सोचथे महतारी तो सबो एक आय कोनो मा भेद नइ करे जा सकै।ते पाय के उन मन ला एक दिन पितर माने जाथे।श्रद्धा अउ समर्पण भाव ले नहा धो के अँजलि मा पानी भर पुरखा मन ला अर्पण करे जाथे। इही ह सराध के नाँव ले जाने जाथे।

      जिनगी मा हमर तीन ऋण / करजा माने गेहे, पितृ ऋण, देव ऋण अउ ऋषि ऋण। पितृ ऋण जेमा दाई ददा के हम ला जनम देहे, पालन पोषण करे, शिक्षा दीक्षा के बेवस्था करे अउ अपन मिहनत ले सिरजोय जमीन जायदाद देके बात आय। जेकर ले हम कभू उऋण नइ हो सकन। अइसन लोक जीवन मा मान्यता घलाव हे। ओकरे ले उऋण होय के आस्था अउ बिश्वास घला पितर परब हा आय। जउन मा तरिया मा स्नान करके तरोई पाना, कुश/दूबी ला हाथ मा ले उरिद दार , चाँउर, तिली,जवाँ ले रोज पुरखा मन ला सराध करे जाथे। जेखर ले पानी मा रहइया जीव जंतु अउ मछरी मन ला भोजन मिलथे। पुरखा मन ला सुरता कर पूजा करे के बाद घर मा बने रोटी पीठा ला छानही मा छीत कौआ ल भोग कराय जाथे। मान्यता हावय कि कौआ के भोग करे ले पुरखा मन तर जाथे।एकर दूसर पक्ष ए भी हे कि पुरखौती मा मिले जिनीस ल बाँट के खाय मा मन के शाँति घलाव हे। पारा परोस के हितवा मन ल भी भोजन कराय जाथे। कतको मन अपन माई पितर के दिन दान घला करथे। ए परम्परा के पाछू के पवित्र भावना भी हे कि हम साल के साल अपन पुरखा के सुरता कर प्रकृति के संग जुड़े राहन।जीव जंतु के संरक्षण करन। नदिया तरिया ला बचा के राखन। उन ला सुरता कर उनखर आशीष लेत राहन।

       आज के पीढ़ी के सोचे के तरीका बदले हे,कतको के मानना हे मरे के बाद कोनो जीव लहुट के नइ आवय,फेर ढकोसला काबर? आत्मा अजर अमर हे,तन माटी मा मिलगे हे। आत्मा नवा तन मा समा गे हे।

    कतको कहिथे जियत भर दाई ददा ला बूढ़त काल मा खाय पीये बर नइ पूछे, रहि रहि के सताए, ठठाए अउ मरे के बाद अइसन दिखावा काबर?

     पहिली वाला मन बर मोर कहिना हे कि शायद इही सोच के पुरखा तरिया मा चाँउर दार तिली देवय। छानही मा भात साग संग रोटी पीठा छीत कौआ चाँटी मन ला खवाये के सोचे रहिन होही। का जानी का जनम ले होही?

       आज के हमर सोच अउ हमर दो तीन पहिली के पीढ़ी के अपन दाइ ददा के प्रति के सोच जाने के कोशिश करन।ओखर बाद तइहा के भी सोचन हो सकथे आज हम ला अपने ऊपर लाज आही।खुद शर्मिंदा हो बो। अउ यहू सोंचन कि बूढ़त काल मा दाई ददा के सेवा करत राहय ए भावना ले एकर शुरुआत होय होही।आज हम अपन दाई ददा के संग जइसन करबो, हमर लइका हमरो संग वइसने करही।यहू बात के सुरता राखन।


     कुछ मन जे कहिथे का बरा सोहारी हमर पुरखा मन पाथे? एखर जुवाब सबो जानथँन। त परिवार समाज के आगू काबर दिखावा? लाँघन भूखन रहि के कोनो ल काबर खवाना? रिकिम रिकिम के खवाना हर फालतू खरचा आय। उन मन ले मोर एके ठन सवाल हे, तब तो महापुरुष अउ संत महात्मा (समाज सुधारक) मन के जयंती अउ पुण्य तिथि के दिन के आयोजन हर तो महादिखावा अउ फालतू आय। यहू म भीड़ जुटाय अउ उँखर बेवस्था बर बहुतेच खरचा होथे। माँ बाप ले भला अउ कोन हमर आदर्श हो सकथे। माँ बाप हर जउन करथे ओखर ले जादा कोनो नइ कर सकै। जेन महापुरुष मन के जयंती अउ पुण्य तिथि मनाथन अउ उँखर बताय सतमार्ग मा चले के संकल्प लेथन। वहू एक तरह ले पितर परब ले प्रभावित हे कहे जा सकत हे। जउन म पूरा समाज श्रद्धा ले उँखर मार्ग के अनुसरण करथे।

       हम चाहे जेन मानन हम ल तय करना हे। हम स्वतंत्र हन। फेर दूसर के श्रद्धा, मान्यता रीत - रिवाज अउ आस्था ल चोट झन करन। उँखर बिश्वास के हाँसी झन झन उड़ावन। सम्मान करन, तभे सम्मान पाबो। इही मोर मानना हे।


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पोस्ट कुसमी तहसील पलारी जि. बलौदाबाजार

छत्तीसगढ़

4 comments:

  1. बहुत सुग्घर पितर देवता

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    1. धन्यवाद निषाद जी

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  2. गज़ब सुग्घर आलेख

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  3. धन्यवाद ज्ञानू मानिकपुरी जी

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