Tuesday 1 September 2020

छ्त्तीसगढ़-व्यंग्य

 छ्त्तीसगढ़-व्यंग्य(हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा)

                    एक गांव म स्वस्थ सिसु प्रतियोगिता कराये के घोसना होइस । येमा सरत ये रिहीस के जे लइका हा बिगन खाये पिये स्वस्थ रइहि ..........  सिरीफ उही येमा भाग ले सकत हे । इनाम अऊ सनमान के लालच म कतको मनखे अपन अपन लइका ला धरके पहुंचगे । 

                    पहिली लइका स्टेज म अइस । ओला देखके कन्हो ला बिसवास नी होइस के ..... बिगन खाये पिये ...... कन्हो अतेक स्वस्थ हो सकत हे । मंच तरी खड़े मनखे मन सवाल उठा दिन । ओकर ददा बतइस – मोर लइका हा सहींच म कुछ नी खावय फेर को जनी कइसे सनसनऊंवा बाढ़त हे । तुरते ….. तहकीकात करे गिस । ओमा पता लगिस के लइका के बाप सेठ आय । जेहा दिन भर सिरीफ जमाखोरी करथे । जबले प्रतियोगिता के घोसना होय हे तबले ...... सेठ हा अपन लइका के नाव ला महंगई राख देहे ...... तबले लइका एकदमेच स्वस्थ रहत सनसनऊंवा बाढ़त हे । 

                    दूसर लइका अइस ........। मुहुं म कुछ चभलावत रहय । येहा तो खावत हे कहिके ...... तरी म ठाढ़हे मनखे मन हल्ला करिन । फेर लइका जब मुहुं ला फारिस त ...... कंन्हो ओकर मुहुं म कहींच नी पइन । स्टेज म ओकर ददा चइघगे अऊ बताये लगिस – हमन न खुद खावन  न कन्हो ला खावन देवन । काबर फोकटे फोकट आरोप लगाथव जी ..... ? तहकीकात मे पाये गिस – लइका के बाप बड़े जिनीस साहेब आय । येमन खाथे तो बहुत लेकिन कन्हो सबूत नी छोंड़य ..........। ये साहेब हा अपन लइका के नाव ला जबले भस्टाचार धरे हे तबले ....... लइका हा ......... चभलावत तो दिखथे फेर ओकर मुहुं के भितर खाये के समान नी दिखय । भस्टाचार नाव धरे ले लइका म को जनी काये हमागे ..... ओहा दिन दूना रात चउगुना बढ़हे लागिस ।   

                    तीसर लइका स्टेज म चइघिस । हाथ म खाये के धरे रहय ...... मुहुं म घला गोंजाये रहय । जनता देखत रहय जरूर फेर ........ काकरो मुहुं ले बक्का नी फुटिस । येकर पहिली जनता हा ...... साहेब के लइका उपर खाये के इलजाम लगाके देख डरे रहय ....... जेमा जनताच के थुवा थुवा होय रहय । ये दारी ..... कन्हो के मुहुं ले ....... बिरोध के कंठ नी फूटिस । लइका एकदमेच स्वस्थ रहय । तहकीकात मे पता लगिस ये लइका ........ देस के भविस्य आय । ये नेता के बेटा आय ........ जेमन कतको खाथे ... तेला जानथे अउ देखथे सब्बो झिन ....... फेर आघू म ...... कन्हो डर भय के मारे ......... त कन्हो सुवारथ के मारे ........ कहि नी सकय । केहे के लइक मनखे मन के मुहुं अऊ आंखी ........ पद अऊ पदवी के लालच म तोपाये रहिथे । ये लइका के नाव जबले मुफतखोर धरे रहय ...... तबले येहा नेता के पइसा कस ........ बिगन ज्ञात स्रोत के बाढ़त रहय । 

                  बिजेता के नाव पुकारे बर निर्णायक ले आज्ञा पाके ..... मंच के संचालक जइसे माइक ला धरिस ..... तइसने म तरी ले अवाज अइस - थोकिन रूकव ...... मोरो लइका आवत हे । घोसना रूकगे । ओ मनखे हा अपन लइका धरके चइघिस । लइका दिखत नी रहय । मोटरी म गंठियाके लाने रहय ...... लइका ला । संचालक पूछीस –  लइका ला मोटरी म काबर बांध के राखे हस ? ओ किथे – बाहिर म राखे म डरराथंव के ...... कन्हो कुछु खवा झिन दे साहेब ........ । मोर लइका ला टुंहुं देखइया मनखेमन ....... प्रतियोगिता के घोसना के पाछू ...... जबरन नानमुन चंटाये बर लुहुर टुपुर करत तिरे तिर म ओधत हे । दूसर मन खाथे ते भले नी दिखय ..... फेर मोर लइका हा खाये के समान कोती कननेखी घला देख दिही न ....... त तोर प्रतियोगिता म सामिल होये के पात्रता खो दिही । ओ मनखे हा मोटरी ले लइका ला बाहिर निकालिस .... निच्चटेच दुब्बर पातर ..... हाड़ा हाड़ा दिखत देहें ...... एकदमेच गरहन तिरे कस दिखत रहय । चिखला माटी म सनाये हाथ गोड़ म ...... अतेक घाव गोंदर ...... तेकर ठिकाना निही ..... घाव ले रहि रहि के ....... पिप बोहावत रहय । हाथ ले लहू के धार फूटत रहय । चुंदी मुड़ी छरियाय ..... देंहे ले पछीना के बास म नाक दे नी जावत रहय ।  

                    संचालक किथे – तोर लइका तो एकदमेच चुंहके कस ....... बिमरहा हे ..... तैं काबर स्टेज म चइघगे होबे ? ओ मनखे किथे – मोर लइका हा अमीर के लइका थोरेन आये साहेब ...... जेहा बिगन खाये स्वस्थ रहि .... ? येकर सुवांस चलत हे ... इही कन्हो कमती बात आय का ….. ? बिगन खाये कन्हो गरीब के लइका येकर से अच्छा जी सकत हे का ........ तिहीं बता भलुक ? संचालक पूछत रहय – तैं कहत हस के तोर लइका खाये निये कहिके फेर एकर हथेरी ला सूंघ के देख ..... रोटी के महक आवथे । ओ मनखे किथे – हमर घर म रोटी के कारखाना हे साहेब ...... फेर ...... हमन सिरीफ बनाथन ......। खा नी सकन ...... बनथे तहन ........ हमर हाथ ले नंगा के लेग जथे .........। हमन गरीब किसान मजदूर बनिहार भुतिहार आवन साहेब ....... जेकर हाथ म आखिरी म सिरीफ जुच्छा कटोरा बांच जथे । हमन न खा सकन ...... न अपन लइका ला खवा सकन । अन्न उपजइया हमन , जिनगी भर दाना दाना बर लुलवावत फिरत रहिथन । जेला बेंच के खा सकन ..... तइसन ....... हमर तिर बेंचें के लइक ....... न जमीर ...... न ईमान ...... न देस ....... न धरम ........ ।

                    तैं काबर स्टेज म आके हमर टेम खराब करत हस जी – संचालक फेर पचारिस ? ओ किथे - मेहा सुने रेहेंव के ....... नाव धरे ले ........ भारी बिकास होथे ....... महूं अपन लइका के नाव धरके ........ जीत के लालच म चइघ पारेंव ...... । संचालक किथे – स्टेज म चइघे के पहिली ..... अपन लइका के हालत ला नी देखतेस गा ..... ? निचट सोसित पीड़ित कुपोसित अधमरहा दिखत हे ? अइसन हालत म काबर लानेस तेमा .... ? ओ किथे – मेहा सोंचत रेहेंव के बिगन खाये एकर ले जादा स्वस्थ कन्हो नी होही कहिके । फेर इंहे आके देखेंव अऊ जानेव के बिगन खाये घला ..... कन्हो अतेक स्वस्थ रहि सकत हे । तोला का बतावंव साहेब ...... मोर लइका पहिली अइसन नी रिहीस हे । पहिली हमर तिर खाये बर सिरीफ कनकी ...... पिये बर पसिया ....... ओढ़हे बर गोदरी अऊ रेहे बर छितका कुरिया रिहीस हे ....... फेर ओ समे मोर लइका बड़ स्वस्थ रिहीस हे । फेर जबले येकर नाव धरे हंव तबले ...... येकर गोड़ म नक्सलवाद के कोढ़ उपजगे ....... हाथ म नांगर के जगा बनदूक आगे । अपन पछीना के कमाये चीज ला ....... नंगाके खावत देखथे तब ..... लुटेरा मन के भोरहा म अपने मनखे के लहू मा .... अपन हांथ ला बुक डारथे । जब नी सकय तब ....... लार चुचवावत बइठे रहिथे ....... । बपरा हा आगू बता नी सकिस .......... रो डरिस । संचालक पूछथे – तोर लइका के काये नाव धर डारे , जेकर सेती अतेक दुरगति होगे .... । ओ किथे – छत्तीसगढ़ नाव धरे हंव साहेब .........। दरअसल मे ....... जगा जगा इही गोठ सुने रेहेंव के ......... जबले हमर राज के नाव छत्तीसगढ़ धराये हे तबले ........ ओहा खूब फलत फूलत हे ......... बिकास करत हे । मे बड़ जिनीस गलती कर पारेंव साहेब ........ में का जानव ये लबारी आय कहिके ........ । मोरो लइका नाव धराये के पाछू छत्तीसगढ़ कस बिकास कर डरिस साहेब ...... । में बहुत पछतावत हंव ......... ओकर नाव ....... छत्तीसगढ़ धरके ..............। रोवत रोवत ददा हा किथे – मोर बेटा के पहिली ........ जतका सुंड मुसुंड पिला अइन तहू मन ...... वासतव म मोर लइका के नाव छत्तीसगढ़ धरे के पाछू भोगइन हे साहेब ।                    

                    संचालक अऊ निर्णायक मन ...... लइका के नाव छत्तीसगढ़ सुन के थथमरागे । सबो झन के बुध पतरागे । ओमन सोंचे लगिन के छत्तीसगढ़ नाव के लइका ला नी जिताबो त ....... जम्मो झिन सोंचही के ........ छत्तीसगढ़ के विकास के बात लबारी आय । जितइया के घोसना करत हाथ अऊ मुहुं कांपे लगिस ...... अपन कका ददा ला खुस करे बर ...... लोगन ला एक बेर फेर भरमाये बर अऊ अपन आप आका के बात ला सच साबित करे बर ...... उही बिमार पोटपोट करत छत्तीसगढ़ नाव के लइका ला ........ बिजेता घोसित कर दिन । बिमार लइका ला ...... नाव के सेती ........ विजेता होय के नाव मिलगे । इनाम अऊ सनमान ...... न तो छत्तीसगढ़ पइस न ओकर बाप ....... बलकि ओला बाकी तीनों लइका के बाप मन झोंकिस । ठेंगवा चांटत ...... छत्तीसगढ़ ....... सिरीफ ओतके म खुस हे अऊ मलई ला आज घलो दूसर मन चांटत हे ................।     

  हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

No comments:

Post a Comment