Monday 14 September 2020

छत्तीसगढ़ी अउ हिंदी के अंतर संबंध : एक विमर्श*

 *छत्तीसगढ़ी अउ हिंदी के अंतर संबंध : एक विमर्श*

       भाषा या बोली अपन विचार ल व्यक्त करे के साधन हरे। जउन  सांकेतिक अउ ध्वन्यात्मक दूनो रूप म होथे। भाषा बोली ले हमर संस्कार, रीति-रिवाज अउ परम्परा के पोषण होथे। भाषा बोली के बिगन संस्कृति ल बचाय नइ जा सकै। एकरे सेती साम्राज्य विस्तारवादी मन कहे  हे- कोनो संस्कृति अउ सभ्यता ल समूल नाश करना हे त उँखर साहित्य ल समाप्त कर दौ, दिशाहीन बना दौ। आज जम्मो बड़े शहर म अपन मातृभाषा ले जादा  अँग्रेजी माध्यम म पढ़ाई करे जउन परिवार मिलही, उँहें जादा ले जादा परिवार के बीच म घला अकेल्ला के जिनगी जीयत मनखे दिखथे। विचार करे म हम पाथन वृद्धाश्रम इँहे पनपे हे। इही संस्कार अउ परिवार के विनाश आय। एती बर चर्चा करना मूल विषय ले भटकना हो जही।

     भाषा के पोषण अउ रक्षण वो भाषा के साहित्य करथे। जइसे बर्तन ल माँजे ले बर्तन म चमक आथे अउ बर्तन माँजना बर्तन बउरइया के साफ सफाई के प्रति जागरूकता ल बताथे, वइसने भाषा अउ बोली ल साहित्य माँंजे के काम करथे। साहित्य ले भाषा के स्तर सुधरथे। 

      हर भाषा के अपन एक लिपि होथे, लिपि म ही वो भाषा के साहित्य लिखे जाथे। एके लिपि कई भाषा के लिपि हो सकथे। छत्तीसगढ़ी के लिपि देवनागरी लिपि हरे जउन ह संस्कृत अउ हिंदी के लिपि घलो ए। ए लिपि के खास बात ए आय कि जइसे बोले जाथे, वइसे लिखे जाथे। हिंदी वर्ण के उच्चारण वैज्ञानिक हे। मोर मानना हवै कि हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी म जइसन बोलथन वइसन लिखन। हिंदी के कोनो भी अक्षर ल छत्तीसगढ़ी म अपनाय ले कोनो दिक्कत नइ होना चाही। हिंदी के तुलना म छत्तीसगढ़ी अपन विकास यात्रा म लम्बा समय ले मौखिक रूप म चलत रहिस। यहू एक ठन बड़े कारण रहिन कि छत्तीसगढ़ी के साहित्य भंडार नइ भर पाइस। फेर आज पद्य साहित्य म चिंता के ओतेक बात नइ हे। उच्च कोटि के अउ छंद बद्ध पद्य भंडार दिनोंदिन पद्य साहित्य ल भरत जात हे। हिंदी ले प्रेरित हो के सबो प्रकार के पद्य साहित्य सृजन सरलग चलत हे। गद्य साहित्य म कहानी अउ निबंध के संगेसंग उपन्यास अउ आने विधा मन म लेखनी अपन मंजिल ल जान डरे हे। छत्तीसगढ़ी के उत्पत्ति अउ विकास हिंदी ले ही होय हवै। हिंदी के कतको शब्द मन ल छत्तीसगढ़ी म जइसे के तइसे लिखे अउ उपयोग करे जाथे। *धन्यवाद* शब्द आज समय के संग छत्तीसगढ़ी म समा गेहे। कतको विद्वान मन मानैं कि छत्तीसगढ़ म आशीष दे के रीत रहिस, कोनो भी परोपकार के बदला म धन्यवाद के जगह *भगवान तोर भला करै* या *जुग जुग जी...* कहे के चलन रहिस। आजकाल अब धन्यवाद कहे जात हे। अपन दैनिक जीवन म कतको शब्द हें जेन हिंदी के आय अउ छत्तीसगढ़ी म उपयोग करे जाथे। ए शब्द मन ल लिखना अउ बताना जादा जरूरी नइ हे। हाथ, दाँत ,चप्पल, टेबल,नींद, मुकुट,सड़क, गाड़ी ,नदी ,अइसन कतको शब्द हे जे दूनो म समान रूप ले उपयोग होथे। हिंदी के बड़े बड़े  साहित्यिक रचना म छत्तीसगढ़ी के शब्द भी मिलथे। ए स्पष्ट करथे कि हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी म आपसी अंतर संबंध तब ले हे । ए म तब न भेद रहिन हे अउ न आज घला कोनो भेद अउ विवाद हे। हिंदी शब्द संसार समृद्ध हे। पूर्वी हिंदी के रूप म छत्तीसगढ़ी शब्द भंडार म कोनो कमी नइ हे। *घाट-घाट म पानी बदले अउ कोस-कोस म बानी।* इही किसम ले छत्तीसगढ़ी हल्बी, सरगुजिहा, खल्हाटी जइसन अउ बोली मन ले समृद्ध होय हे। विश्वास ल छत्तीसगढ़ी जनमानस म बिस्वास सुने बर मिलथे। एकर मतलब हे *व* अउ *ब* दूनो के चलन जनमानस म हे। जनमानस कहूँ परानी काहत हे परानी लिखन ,जरूरी नइ ए कि प्राणी लिखन। हाँ जब कोनो नाम हो गे त जरूर हिंदी के मानक रूप म लिखन। जइसे प्राणीशास्त्र सही हे। परानीसास्तर गलत हे।  मानकीकरण करे ले सहूलियत जरूर हो जही। अभी तो लेखक मन ल अपने बर एक मानक रूप बना के लिखे के जरूरत हे। मानकीकरण जब होही तब होही।

       मानकीकरण ल ले के कुछ शब्द जे मन ऊपर अपन विचार लिखना हे, सोचे रेहेंव। ऊँखर चर्चा बलराम भैया ह बने ढंग ले कहि डरे हे।


*पोखन लाल जायसवाल*

पलारी

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