Monday 28 September 2020

छत्तीसगढ़ी अउ आत्मकथा*

 *छत्तीसगढ़ी अउ आत्मकथा*

        साहित्य चाहे कोनो भी भाषा के होय, गद्य साहित्य के सूची थोरिक लम्बा हो जथे। कहानी, उपन्यास, नाटक, एकांकी मन शुरुआती गद्य रहिन। निबंध लिखे गिस। निबंध के विषय अउ लेखन शैली ले अउ कतको विधा मन ल स्वतंत्र विधा के रूप म पहचान मिलिन।अउ स्थापित घलो होइस।जेमा संस्मरण, यात्रा वृत्तांत, डायरी, ललित निबंध, जीवनी, आत्मकथा, पत्र लेखन प्रमुख हें। साहित्य म जीवनी लेखन अउ आत्मकथा लेखन दूनो म प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व के चरित्र वर्णन रहिथे। अइसे बताय के  । डायरी म दैनिक जीवन के खास बात रोज लिखे जाथे। आत्मकथा म अपन पूरा जीवन के महत्वपूर्ण घटना मन ल ईमानदारी के संग लिखे जाथे। 

         मनखे दुख पीरा म रहे ले अपन हितवा मितवा मन ले अपन रामकहानी कहिथे। कहे जाथे दुख बाँटे ले मन हल्का होथे। सुख बाढ़थे त दुख घटथे। शारीरिक अउ मानसिक दुख  खाय पीए के चीज बरोबर बँटै तो नइ फेर मन हरू जरूर हो जथे। फेर कतको झन के मानना हे, अपन दुख ल बता जना के दूसर ल का दुखी करना। कतको मन सुने बर तियार नइ होय, कहे लगथे तोर राम कहानी ल राहन दे। बड़े बुजुर्ग अउ सुजानिक मन के कहना हे, अपन राम कहानी अउ कोनो ल जतका गारी गुफ्तार करना हे तउन ल कागज म लिख डारव, मन के पूरा भड़ास निकाल लव। जब मन शांत हो जही त कागज ल चीर दौ नइ त लेस दौ। एकर ले काकरो ले संबंध नइ बिगड़ै। जीवन के सँझौती के  बात सुने बिहनिया अउ मँझनिया तिर समय नइ राहय। जीवन नदिया कस ए। बहत हे त अस्तित्व हे। सुक्खा नदिया देखे कोनो नइ जाय। पूरा आय नदिया ल देखे कतको आथे। उतरती नदिया देखे नइ जाय। सुर ताल के रहिते जीवन हे। थमे लगिस त पुछारी नइ होय। थमिस त जै राम जी की। इही तरह जीवन के सँझौती म कतको अपन मन के बात ल सुरता करथे। छोटे बड़े सबो घटना बेरा बेरा म आँखीं म झूले लगथे। कतको मन लिखे के उदीम करथे अउ लिखथे घलो। कतको मन स्वांतःसुखाय लिखथे। कतको समय अउ सोच दूनो के कमी ले  नइ लिखैं। कतको मन जीवन के उतार चढ़ाव ल पूरा ईमानदारी के संग लिखे के उदीम करथे। इही तरह ले आत्मकथा चलन म आय होही। मोर मन म विचार आथे। आत्मकथा शब्द ऊपर विचार करे म यहू लगथे कि आत्म अउ कथा दूनो मिले ले आत्मकथा बने हे। आत्म याने खुद अउ कथा याने कहना या कथन। अपन स्वयं के बारे म कहना ही आत्मकथा ए। इहाँ कहना या कथन विस्तार ले हुए हे। व्यापकता समोए। खुद के जीवन के जम्मो उतार चढ़ाव ले भरे समय के बारे म लिखना ही आत्मकथा ए। आत्मकथा के लेखक एक तरह ले हीरो होथे। खुदे अपने बारे म लिखना आत्मकथा ए, त विश्वसनीयता अउ वास्तविकता के प्रश्न खड़ा जरूर होथे। पूरा ईमानदारी के साथ लिखना रहिथे। ए ला लिखे म कल्पना बर कोनो जगह नइ राहै। अपन अच्छाई के सं बुराई ल भी लिखना पड़थे। एक तरह ले आत्मकथा खुद के विश्लेषण करना घलो आय। 

      आत्मकथा के बारे म

*डॉ. श्याम सुंदर घोष जी* मन कहे हे *"आत्मकथा समय प्रवाह के बीच तैरने वाले व्यक्ति की कहानी है। इसमें जहाँ व्यक्ति के जीवन का जौहर प्रकट होता है, वहाँ समय की प्रवृत्तियाँ और विकृतियाँ भी स्पष्ट होती है।इन दोनों घात प्रतिघात से ही आत्मकथा में सौंदर्य और रोचकता का समावेश होता है। "*

       आज साहित्य जगत ह पाठक के कमी ले जूझत हे। एकर कारण पाठक के संगेसंग साहित्यकार भी हो सकत हे। अभी ए ऊपर चर्चा करे बेरा नइ हे। पाठक आज उही आत्मकथा पढ़ना चाही जेकर लेखक के बारे म ओ पहिली ले जानथें। जीवनी अउ आत्मकथा दो अइसे विधा ए, जेला पाठक संबंधित ले पहिली परिचित होय म ही पढ़े के सोचथे। ए दूनो विधा म सफल सामाजिक कार्यकर्ता, राजनेता, अभिनेता, साहित्यकार, खिलाड़ी, उद्योगपति जइसे चर्चित व्यक्तित्व के जीवन वृत्त प्रकाशित होथे। कतको चर्चित व्यक्तित्व मन खुदे लिखे म सक्षम नइ रहे ले लिखवा लेथे, तब जीवनी कहाथे। जीवनी लेखक एक कलम के धनी होथें। उहें आत्मकथा के लेखक कलम के धनी होना जरूरी नइ राहै। वो अपन कर्मक्षेत्र म सफल रहिथे। भाषा शैली आत्मकथ्यात्मक ही रहिथे। भाषा सहज सरल अउ बोधगम्य होना चाही। 

       एक आत्मकथा  देश दुनिया अउ समाज बर उपयोगी होथे। देश दुनिया अउ समाज ल प्रेरणा देथे। नवा दिशा देथे। नवा विचार देथे। एक ऊँचाई प्रदान करथे। भीड़ म एक अलग पहचान देथे।

       आजकल देखे सुने मिलथे कि कई झन मन अपन आत्मकथा ले विवाद म आ जथे। चर्चित होय अउ बिक्री के चक्कर म भी अइसन  लिख जाथे, जेकर खंडन ओकर समकालीन व्यक्ति अउ सहयोगी ले करे जाथे। ए तब होथे जब लिखे गे बात सच्चाई ले कोस भर दूरिहा रहिथे। वास्तविकता ले कोनो संबंध नइ रहै। अपन चरित्र ल उज्जर बताय अउ कोनो आन ल अपन ले कम बताय के फेर म घला अइसन होथे। आत्मकथा लेखन बर ईमानदारी अउ वास्तविकता दो मूल जरूरी तत्व हे। एकर बिना आत्मकथा बेमानी हो जथे। आत्मकथा म लिखे विषय अइसे होना चाही कि विवाद ल जन्म झन दै। विवादित विषय लिखे जाना जरूरी हे तब पूरा साक्ष्य के साथ होना चाही। नइ तो आप के समकालीन ओकर खंडन कर सकथे।अउ आपके लेखन के मोह ले आपके बने छवि म दाग लग सकत हे।

      छत्तीसगढ़ी साहित्य म आत्मकथा के दिशा अउ दशा का हे, जानकारी के अभाव म कुछु कहना मुश्किल हे। ए विषय म ए लेखन केवल गद्य लेखन म आत्मकथा लिखे बर एक रस्ता अउ प्लाट तियार करना भर आय।


पोखन लाल जायसवाल

पलारी

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