Wednesday 2 September 2020

साहित्य लेखन म बड़े कठिन विधा : व्यंग्य विधा*

 *साहित्य लेखन म बड़े कठिन विधा : व्यंग्य विधा*

        साहित्य के कोनो भी विधा म लिखना न काली सरल अउ आसान रहिस हे, न आज हवै अउ न काली सरल अउ आसान रही। सृजन कभू सरल अउ आसान नइ रहिस त का अब आसान रही? कहे गे हवै कि *यदि गद्य कवियों की कसौटी है, तो निबंध गद्य की कसौटी है।* कोनो भी विषय  ल लेके कतको विचार लिखे जा सकत हे, जे मनखे ते विचार देखे पढ़े मिलथे। इही विचार ले बंधाय रचना निबंध कहलाथे। आज भलुक व्यंग्य ह साहित्य म एक अलग विधा के रूप म स्थापित होगे हवै। फेर  ए हर निबंध के श्रेणी के रचना आय। जउन म पारम्परिक विषय ले हट के समाज म जन जागरूकता लाय बर समाज म व्याप्त विसंगति, कुरीति, बेवस्था म कमी(भेदभाव) ऊपर वैचारिक डंडा चलाय जाथे। विचार ल शब्द मोती ले अइसे सजाय जाथे कि कतको असली चेहरा ल उघारे के काम व्यंग्य ले होथे। जेन म प्रतीक मन ले काम चलाय जाथे। कखरो नाँव ल लिए बिना इशाराच ले शोषक मन के पोलपट्टी खोले कलम चलथे। *कहीं पे तीर कहीं पे निशाना* एखर सब ले बड़े विशेषता आय।

      समय के संग कतको मन मनोरंजन खातिर हास्य ले भरे रचना के रचना करे लगिन। जेन हास्य रस के चासनी म पागे रसगुल्ला कस मिठाथे तो फेर शोषित, उपेक्षित अउ पीड़ित बर कोनो काम के नइ होय। शोषित मन कभू मिठई खाय के सोंच नइ सकै। दुखी मनखे भला हाँसही कइसे? एक मंजे रचनाकार कोनो भी जगा ले हास्य खोज के निकाल लेथे। जइसे *.....आज के बने मरघटी ल देख के मरे के मन करथे।*      

       आज हास्य अउ व्यंग्य ल सँघरा लेके चले के चलन बाढ़गे हवै। कोरोना काल के पहली कतको साहित्यिक आयोजन म हास्य व्यंग्य के अखिल भारतीय सम्मेलन हास्य बस के पुट देखे सुने मिलथे।व्यंग्य के दूरिहा-दूरिहा ले कोनो पता नइ रहै। हास्य के नाँव म द्विअर्थी चुटकुलाबाजी रातभर  मंचासीन कवयित्री के सहमति ले चलथे।साहित्य के दुर्गति हास्य व्यंग्य के नाँव ले रोज चलै। ए दुर्गति करैया मन हास्य अउ व्यंग्य म फरक नइ जानै,अइसे नइ ए। अखिल भारतीय सम्मेलन म साहित्य खोजे नइ मिलै। कई ठो अखिल भारतीय सम्मेलन अइसे होथे जउन म सबो कवि मन एके क्षेत्र या परदेश के रहिथे। 

         साहित्य समाज ल दिशा देथे, ओखर दशा ल सुधारथे, कहूँ लेखन म स्वार्थ हमाय जै त समाज कल्याण के कामना बेकार आय। व्यंग्य के जउन सरूप अउ उद्देश होथे, उँखर ले तो व्यंग्य लेखन बहुतेच कठिन काम आय, अउ ए बात के गवाही ए विधा म लिखाय रचना अउ रचनाकार के संख्या ह देथे। कहानी, गीत, कविता तो चित्रात्मक वर्णात्मक होय ले ओतका कठिन नइ हे जतका व्यंग्य हवै। इही बात ल मान के ऊपर कहे हँव कि व्यंग्य लेखन कभू आसान नइ रहिस हे। व्यंग्य विधा म भाषा के प्रयोग व्यंजना के बिना नइ चलै, सँगेसंग भाषा लालित्य अउ प्रांजल होना जरूरी रहिथे। कहीं कहीं हास्य भी हो सकत हे, फेर जरूरी नइ हे कि हास्य मिलै।


पोखन लाल जायसवाल

पलारी बलौदाबाजार

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