Thursday 3 September 2020

दिलीप वर्मा की कलम से

 दिलीप वर्मा की कलम से

कलम धरे बनके हुसियार। 

करत ब्यवस्था ऊपर वार।  

जाने काला दिही उतार। 

बनही काखर बर पतवार।  

 

येखर नजर ले कोनो छेत्र ह नइ बाँचय।सब कोती गिधवा कस नजर गड़ाये देखत अउ परखत रहिथे।जहाँ कोनो मेर अब्यवस्था दिखिस तहाँ निकालथे अपन हथियार अउ दे दनादन गोली चला देथे। 

     येला ओखर से कोनो लेना देना नइ रहय कि येखर चलाये हथियार ले कोन कोन ल मिर्ची लगही। ये तो अपन म मगन रहिथे।तोर ब्यवस्था तँय जान।जे करना चाहे ते सहीं तरीका से नइ करे ते तोर गलती। जब तोला जवादारी दे हे अउ तें करे बर सधाय हस त कर, सिरिफ अपन खीसा भरे के उदिम करना कहाँ तक उचित हे। 

         अइसे देखबे त एखरो काम बढ़िया हे।न कखरो ले लड़य न कखरो ले सीधा भिड़य पर ढेला अइसे मारथे की काहत बन जथे कि मँय तोला नइ मारे हँव।अउ ढेला तको अइसे की उहिच ल परथे जेला परना रहिथे।अइसे लागथे जनामना कम्प्यूटर म प्रोग्राम करके मिसाइल दागे गे हे।

    जेला परथे तिलमिला के रहि जथे।न लीलत बनय न उगलत बनय।बिचारा चुरमुरा के रहि जथे। 

     अइसे ये ह ठांय ठेंगवा ढेलच भर नइ मारय।कभू कभू तो बने नहला धुला के बने तेल लगा के अस टेम्पा म ठठाथे की झन पूछ, दे फटाफट दे फटाफट कुटकुट ले छर डरथे।पर हावय बहुत हुसियार मारथे तेखर रोल बाहिर म नइ दिखय पर भीतर मा साबर गड़े कस घाव बन जथे।

  सच कहिबे त हम येखर आभारी हाबन।काबर की अब्यवस्था ऊपर येखर चलाये हथियार के परिणाम हरे की कई जगा पहिली ले सुधार दिखत हावय। 

  आखरी म हम तो इही कहिबो येखर हथियार के धार दिनों दिन बाढ़त राहय अउ जिहाँ अब्यवस्था दिखय तिहाँ अपन हथियार चलाये बर झन हिचकिचावय। 


व्यंग बाण मारत रहय, करके बढ़िया धार। 

करे ब्यवस्था ठोंस जी, झन मानय ओ हार। 


दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

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