Tuesday 1 September 2020

लहू -व्यंग्य

 लहू -व्यंग्य(हरिशंकर गजानंद देवांगन  छुरा)

                    लोकतंत्र के हालत बहुतेच खराब होवत रहय । खटिया म परे परे पचे बर धर लिस ।  सरकारी जगा के बड़े जिनीस बिलडिंग म ....... ये खोली ले ओ खोली , ये जगा ले वो जगा खटिया सुद्धा भटकत रिहीस ....... । बपरा हा लहू के कमी ले जूझत ....... जे खोली म निंगे तिंहे के कोंटा म ...... परे सरत बस्साये बर धर लेवय । तभे चुनाव के घोसना होगे । जम्मो झिन ला लोकतंत्र के सुरता आये लगिस । चरों मुड़ा म खोजाखोज मातगे के लोकतंत्र कतिहां हे ? अपनेच बिलडिंग म ...... पोट पोट करत लोकतंत्र ला देख , हरेक मनखे ओकर अइसन हालत बर , एक दूसर ला जुम्मेवार ठहराये लगिन । कइसनो करके लोकतंत्र ला फिर से ठड़ा करे के भरोसा जनता ला देवाय लगिन । लोकतंत्र के लहू अतका कमतियागे रहय के , बपरा हा सांस नी ले सकत रहय । ओला तुरते लहू चइघाये के आवसकता परगे रहय । 

                     चुनाव तिहार के समे रहय ...... लहू देबर कतको मनखे लकलकागे । हरेक मनखे अपन लहू देके लोकतंत्र ला बचाये के सनकलप करे लगिन । लोकतंत्र ला लहू चइघाये के पहिली .... लहू के मिलान करना जरूरी रिहीस । बारी बारी ले मनखे मन अपन अपन लहू के सेमफल दे लगिन । पहिली दिन कुछ पुजेरी मनखे मन , अपन लहू हा सबले पबरित आय कहिके , हसपताल के आगू म , लहू मेच कराके दान करे बर लइन लगगे । मेच सुरू होगे । फेर लोकतंत्र के बड़ दुरभाग्य रिहीस । काकरो लहू हिंदू निकलगे , काकरो मुसलमान । काकरो इसाई निकलय , त काकरो हा सिख । फेर मेच हो सकइया , भारतीय लहू , एको झिन के नी निकलिस । 

                    दूसर दिन दूसर किसिम के मनखे मन लहू देबर लइन लगइन । काकरो लहू के ग्रुप मेच नी करिस । लोकतंत्र के लहू के ग्रुप हा ओ प्लस रहय । जतका झिन दे बर सकलाये रिहीन तेमा ..... कन्हो के ओ प्लस नी निकलिस । जम्मो झिन के एबी ग्रुप निकलिस जेहा सिरीफ लेवइया ग्रुप आय ..... देवइया नोहे । जेकर ग्रुप कन्हो काल म मिलीच जाय त यहू म लफड़ा हो जाय । ओकर मन के लहू के रंग , थोक थोक बेर म , कपड़ा ओढ़ना कस , लीडर बदलते साठ , बदल जाय । कन्हो कन्हो मनखे मन चलाकी करके , लहू देके नाव कमाये बर , अपन लहू के ग्रुप ला , अपन परभाव देखाके , ओ प्लस लिखवा डरिन । फेर आगू के जांच म पता चलिस के , अइसन लहू के भितर स्वेत रक्त कणिका के जगा , स्वेत झूठ कनिका के भारी मातरा रहय । ये रक्त कनिका हा अपन सरीर के भितरी के बिमारी ले नी लड़य बलकी , दूसर मनखे ला बिमार बनाके लड़वा देवय । अइसन लहू ला लड़ केनसर के बिमारी घेरे रहय । काकरो लहू म , हीमोग्लोबिन के जगा लूटोग्लोबिन के मातरा बहुतायत म पाये गिस । प्लेटलेट के जगा , लालचलेट के कण कीरा कस बिलबिलावत रहय । कतको लहू म भरस्टाचार के बिसाणु रहय त , कतको म बईमानी के कीटाणु । दूसर दिन घला लहू नी मिल पइस लोकतंत्र ला । 

                    तीसर दिन , तीसर परकार के मनखे मन अपन लहू देबर लइन लगइन । इंकर लहू के ग्रुप ओ प्लस रिहीस फेर अतेक पतला के पानी असन । भूख गरीबी अऊ लाचारी हा लहू के हरेक बूंद म हीमोग्लोबिन बनके छा जाये रहय । परेम अऊ भाईचारा म रहवइया जीव म , अपन बिमारी अऊ बेकारी ले लड़त लड़त , स्वेत रक्त कनिका सिरा चुके रहय । प्लेटलेट हा इंकर हिम्मत कस अतका कमतियागे रहय के , कटे फिटे ले लहू के थक्का नी जमय बलकी , धारे धार आंखी डहर ले आंसू बनके लहू हा निथर जाय । इंकर लहू के एक अऊ खासियत निकलगे के , जेकर लबारी के मिठ मिठ बात म फंस जाये तेकरे कस , लहू के रंग बदल जाय । लोकतंत्र ला लहू नी मिलिस । एकदमेच छटपटाये लगिस । 

                   तभे खभर अइस के देस के सुरकछा करइया एक झन जवान के लहू भुंइया म टपकगे ।  लहू हा जइसे धरती म गिरके सनइस तइसने बिगन कन्हो मसीनी उपाय के , लोकतंत्र के देंहें म उही जवान के सनाये लहू हा रग रग रग रग दऊंड़े लगिस । लोकतंत्र के देंहे म गरमी आगे । खटिया ले उठके बिगन काकरो सहायता के अपने अपन खड़ा होगे लोकतंत्र हा । 

 हरिशंकर गजानंद देवांगन  छुरा

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