Wednesday 2 September 2020

व्यंग्य रचना-आशा देशमुख

 व्यंग्य रचना-आशा देशमुख


पितर नेवता


आवव पितर हो आज तुंहर बर बरा सोंहारी तसमई बने हे ,का होइस पहिली तुमन ला खाय बर नइ मिलिस त आज खा लेवव ।जीयत के दुःख ला भुला जावव वो समे के बात अलगे रिहिस दाई ददा हो ,जवानी म तुंहर बहु के मूड़  तुमन ला देखत पिरावय अउ तियासी बासी अउ चार दिन के भरे पानी ला देवय पर अब बने होंगे हे,तुंहर बर फुलकसिया थारी लोटा अउ पीढ़ा मा रोजे आरुग पानी मढ़ाथे ।

अउ बोली भाखा हा घलो बने होगे हे ,डोकरी डोकरा ले अब सियान सियानिन कहे लग गेहे ।

अब गारी नइ देवय गा इँहा तो पंडित ल बुलाके भागवत भी करात हावन ।

अब्बड़ अकन दान पुन बर जिनिस बिसाय हावन।

पहिली के बात ला भुला जावव दाई ददा हो,

भले तुमन एक एक चीज बर तरसे हव पर आज वो चीज मन ला पूजा मा चढ़ावत हावन।

तुमन जीयत रहेव त तुमन ल देखइया आवय पहुना मन हा तुमन ला बीमार हे कहिके तब उचाट लागे ग ,पर अब हमन हा पहुना नेवते हावन तुंहर पितर मान बर ।अउ तुंहर चिरहा दसना ल फेंक के तुहंर बर फूल के बिछौना बनाय हावन ।

                   आ जावव दाई ददा हो ,मोर लइका हा ये पितर मान ला देख देख के खुश होवत हे । मोर ददा बढ़िया हे कहिके ।

आ जावय।


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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