Saturday 11 June 2022

व्यंग्य- बोदा बइला

व्यंग्य- बोदा बइला

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महेतरू हा अपन लइका सुदेश ला "बोदा बइला " कहिके मनमाड़े खिसियावत राहय। लइका बपुरा ले अतके गलती होगे रहिस के जब महेतरू हा पीये बर पानी माँगिस ता वोहा करसी के ठंडा पानी लोटा भर लान के दे दिस। वोला भला बिन बताये का पता कि ददा ला बिहनिया ले थोकुन रसरसासी लागत हे। वो तो मनमाड़े तफर्रा के दिन हे सोच के बने समझदारी देखाये रहिसे। बोदा जइसे काम तो वोकर ददा महेतरू के रहिसे---वोला खुद कुनकुना नहीं ते ताजा पानी मँगाना रहिसे। फेर का कहिबे "उल्टा चोर कोतवाल ला डाँटै" के किस्सा सबो जगा हे।

    महेतरू के डाँट फटकार ला कोठा मा सुक्खा कोटना तीर बँधाये बलहा अउ कबरा बइला के जोड़ी हा सुनत अउ समझत राहयँ। समझहीं कइसे नहीं ? मनखे के भाखा अउ भाव ला तो पशु-पक्षी,जनावर अउ गढ़े मूर्ति तको मन समझ जथें।मनखेच हा अइसे निसमूढ़ प्रानी आय जेन इँकर भाखा-भाव ला कभुच्च नइ समझय।

    बलहा बइला हा बनेच गुसियावत कबरा ला कहिच--"देखत हस संगवारी ये अत्याचारी ला बोदा बइला कहिके हमर बइला मन के अपमान करत हे।"

वोकर बात ला सुनके कबरा हा मूँड ला डोलावत कहिच--"सिरतो काहत हस संगवारी। मोर मन तो करत हे के अभीच्चे एकर पेट ला सिंग मा भोंग के बाना के लिमउ जइसे टाँग दँव।"

 "हाँ संगी कुछु अइसनेच करे ला परही।फेर मोला तो वो मनखे बर जादा गुस्सा आवत हे जेन पहिली पइत 'बोदा बइला' कहिस होही।अरे वो हा 'मिहनती बइला', 'हुशियार बइला ' या फेर 'सुंदर बइला' जेन सच बात आय--कहि देतिच ता वोकर का जातिच।"बलहा हा कहिस।

  "हाँ ! सँगवारी ये मनखे के जात अइसनेच होथें गा।सच कहाँ बोलथें?झूठ हा इँकर सच ये---सच बोले के किरिया खाके झूठ के जहर उछरथें।" थोकुन लम्बा साँस लेके कबरा हा कहिस ।

   "हमन हुशियार हन के बोदा तेला संझा कुन ये गुनहरामी मनखे ला देखा देथन । रात दिन मिहनत करथन तभो ले भलाई नइये---। काली जुवर सुने हँव के एक झन निच्चट बोदा मनखे हा काहत रहिसे के सीता मइया के चीर हरन होये रहिसे।वो अंधा के बेटा जिरजोधन ला अतको पता नइये के काकर चीर हरन होये रहिसे। ये दुनिया मा अइसने महा बोदा मनखे मन के भरमार हे। कुछु के काँही बोल लेथें तहाँ ले जुबान फिसलगे कहि देथें।" गुस्सा मा अपन पूछी ला घुमावत बलहा कहिस।


   "काला गोठियाबे संगी--एक बोजहा पैरा अउ एक मूठा कोंड़हा हा तको बने कस नइ मिलय--- समस्या तो कतेक हे फेर अभी 'बोदा बइला' मुद्दा उपर बात करथन।ये हा खातू गाड़ी फाँदे बर हमन ला साँझकुन लेगबे करही।उही समे दूनों झन हूबेल के एला पटकबो अउ पल्ला हो जबो तहाँ ले एकर सब हुशियारी निकल जही अउ 'बोदा बइला'  कहे ला भुला जही।" अपन थोथना ला फूलो के सनफिन-सइया करत कबरा कहिस।

"हाँ--हाँ अइसनेच करबो" कहिके बलहा चुप होगे। तहाँ ले थोकुन पिछू बोलिस-- "हमन तो भलुक अपमान के बदला लेके भाग जबो फेर हमर पूरा बइला जात उपर 'बोदा' के ठप्पा लगे हे तेकर का होही?"

 एकर एक उपाय हे जेकर आइडिया मोला इही बोदा मनखे जात ले मिले हे। जेन दिन हमन बरदी मा ढिलाबो ,उही दिन उहाँ गोपनीय मिटिंग करबो । तहाँ ले एकजूट  होके रैली निकालबो। दुकान-बजार सब बंद करवा देबो। एके ठन माँग रइही अउ एके ठन नारा रइही--बंद करो ,बंद करो --बोदा बइला कहना बंद करो। संदेश भेज के आनो गाँव के बइला मन ला तको बला लेबो। गाँव-गली ,बारी-बखरी, खेत-खार सब जगा ला गइरी कस मता देबो। रस्ता मा मिलहीं ते मन ला खूँद-खूँद के लहू लुहान कर देबो। जब ये मनखे मन खुद रैली निकाल के ,सड़क ला युद्ध के मैदान बना के ,मनमाड़े तोड़-फोड़ करके ,अपने नुकसान कर लेथें ता हमरो करे नुकसान ला सहि लेहीं। अउ कहूँ हमर एके बार के उत्पइत मँचाये मा चेत चढ़ जही ता 'बोदा बइला' कहना छोड़ देहीं।"

बलहा के बात ला सुनके कबरा हा सहमति मा अपन मूँड़ ला हलाइच।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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