कहानी--*झबलू - द जर्मन शेफर्ड डॉग*
चन्द्रहास साहू
मो 8120578897
"चलो ! ...और कितना टाइम लगेगा ? कब से भौक रही हूँ लेकिन तुम्हारे कान में जूँ तक नही रेंगता ।"
"हाव बस निकलत हावव ।"
मिसेज गुप्ता के गोठ ला सुनके किहिस डॉ गुप्ता हा फोन ला पटकत ।
"अब्बड़ मुड़ पिरवा होथे यार ये माईलोगिन मन । हलाकान कर डारथे ..।''
शहर के नामी डॉक्टर आय डॉ गुप्ता हा। सांस छोड़त, अटियावत फुसफुसाइस । आज इतवार आय । सब बन्द रहिथे आज के दिन। ओपीडी बन्द राखे के घला नियम हावय फेर ... डॉ साहब अपन घर मा असकटाथे । अस्पताल अऊ दारू भट्टी के कपाट खुलत देरी लागथे । ग्राहक के का कमी ..? चार झन पेशेंट ला देखिस उत्ता धुर्रा । ....अऊ मोबाइल मा फेर गेम खेले लागिस। तीन पेशेंट अभीन फेर आइस हे । डॉ साब मोबाइल मा भले गेम खेल लेवय फेर झटकुन इलाज नइ करे । थोकन बइठ के पीरा मा दंदरही तभे तो जानही डॉक्टर बिजी रहिथे कहिके....। कम्पोण्डर साहू जानथे तभे बइठार के राखे हावय । सण्डे क्लोज्ड के बोर्ड ल देखिस । सुघ्घर... अब्बड़ सुघ्घर केबिन मा नजर मारे लागिस । पीओपी ले बने इंटीरियर डिजाइन बने । नीला दुधिया लाइट । सुघ्घर कांच । हरा परदा । दवाई भरे अलमारी बड़का मोट्ठा किताब , स्टेथोस्कोप , स्केपुला । मुसुर - मुसुर मुचकाये लागिस कोठ मा चिपके लइका महतारी के हाँसत मुचकावत फोटो ला देख के। अब टेबल के नेम प्लेट मा नजर थिरागे डॉ के. आर. गुप्ता एमबीबीएस डीसीएच । गाँव के खेदा राम आज शहर के नामी डॉक्टर हावय। खुलखुल हाँसे लागिस । अब आँखी ला रमजत आरो करिस।
"पेट अब्बड़ अगियाथे साहब ! भूख नइ लागे । अमरचुहकी डकार आथे।''
अधेरहा पेशेंट बताये लागिस।
"सब बने हो जाही कका ! "
डॉक्टर पेट पाट ला टमरत किहिस।
कम्प्लीट ब्लड टेस्ट एंडोस्कोपी अऊ यूरिक एसिड जांच कराए बर लिखिस।
"बाकी ला जांच के पाछु रिपोर्ट देखाबे तहान बताहू । रतीभर संसो झन कर कका !"
डॉक्टर के गुरतुर गोठ ले आधा बीमारी ठीक हो जाथे ।
"अरे साहू ! फीस के नियम बता ।"
"जनरल डे के दो सौ फीस । छुट्टी के दिन, तिहार-बार, इतवार के चार सौ फीस अऊ रात-बिकाल के या डॉक्टर साहब घर ले स्पेशल आही तब छे सौ पचास रुपिया लागही।"
मेहा फीस के नियम बताए लागेव।
पेशेन्ट थर्रागे ।
"मेहा तो चार सौ भर धरे हव बाबू !"
" ले बने हे। फीस पटादे तहान दवाई गोली ला पाछु बीसा लेबे।"
पूजवन के बोकरा कस उदास होगे बपरा पेशेन्ट हा ।
एक झन मरीज तो फीस के नियम ला सुनके भगा गे।
"काली आहू ददा ! रात भर पीरा ला अऊ सही लेथो का होही.....?"
जवनहा ला स्ट्रेचर मा सुताके लानिस । पेट पीरा मा ब्याकुल रिहिस । लाहर - ताहर होगे हाबे। डॉक्टर जांचीस परखिस । पीरा अऊ नींद के सूजी लगाइस।
भौ ....भौ .....कुकुर भूके के आरो आइस । तीन मंजिला मकान के ऊपर मा डॉक्टर मन रहिथे अऊ खाल्हे के दुनो मंजिल मा नर्सिंग होम हावय-तीस बिस्तर के। जम्मो अस्पताल हा झनके लागिस कुकुर भूके के आरो ले । मखमली लुगरा मा लपेटाये पातर कनिहा वाली सुघ्घर बरन अऊ खांध मा झूलत खुल्ला बाल ,डिजानर पोलखा,आधा पीठ उघरा गुलाबी के नेट वाली लुगरा मा लपेटाये मोटियारी ......सुघ्घर दिखत हावय। एक हाथ मा मंहगा सोनहा रंग के पर्स अऊ दूसर हाथ मा झबलू के स्टील के चैन ला धरे हाबे।
झबलू, बड़का-बड़का चुन्दी वाला करिया भुरवा छिटही रंग। दु तीन फीट के मोठ डांट । चालीस पचास किलो के अब्बड़ टन्ननक, अब्बड़ फुर्तीला कुकूर आय । सरलग भूकत हे, सूँघत हे, हफरत हे हइफो - हइफो । आधा जीभ बाहिर कोती निकले जइसे आने कुकूर मन रहिथे । लार टपकात उतरत हावय। मेडम के तन जइसे महंगा परफ्यूम ले ममहावत हावय वइसने कुकूर घला ममहावत हावय सोला सौ वाला बॉडी स्प्रे ले ।
मेरा लल्ला ..! मेला बाबू ..! बेबी ..शोना ...कहिके दुलार करके लगाये रिहिस मिसेस गुप्ता हा। तीन मंजिला सीढ़ी ले उतरके खाल्हे आगे अब।
छत गिर जाही अइसे झन्नावत रिहिस कुकूर के गुर्राए ले, भूके ले ।
"अले अले मेला शेर आ गया....। मेला बाबू ...! आ गया ...।''
डॉक्टर तोतरा नइ रिहिस फेर कुकुर संग गोठियाथे दुलारत तब तोतरा बन जाथे।
कुकूर हाव हाव.... करत डॉक्टर ऊपर चढ़े परे । आगू के दुनो गोड़ ला उठा के कूदे लागे तब कभू कुई - कुई करत गोड़ हाथ ला चाटे लागे। डॉक्टर दुलारत कुकूर ला पोटार लिस अऊ पीठ मा हाथ फेरे लागिस । पेशेन्ट के परिजन मन मोहाटी ले ठाड़े होके राम भरत मिलाप ला देखे लागिस । अस्पताल परिसर मा जइसे धारा 144 लगगे। जम्मो कोती शांत कलेचुप।
"चलो !"
"अरे साहू ! गाड़ी निकाल।"
मिसेस गुप्ता के गोठ ला सुनके किहिस। मेहा गाड़ी निकालेव । दु झन पेशेन्ट के तुरते शंका समाधान करिस अऊ कतको झन तो चिचियाते रहिगे डॉक्टर साहब......।
ओमन चल दिस मार्केट । अब कुकूर के चैन मोर हाथ मा रिहिस । कुकूर घला अब थोकन शांत होइस फेर भूकई अभी सरलग चलते हावय। कुकूर भूकथे तभे ओला कुकूर कहिथन। अऊ मइनखे ... ? मइनखे घला भूकथे तब गरीब कही देथन । कुकूर के भूके के भाखा ला कुकूर समझ जाथे । फेर मइनखे के भूकई ला मइनखे नइ जान सकय। गुनत- गुनत कुकूर ला उप्पर लेग के छोडेव।
"यह बॉलीवुड की सबसे महंगी फ़िल्म हैं। बजट एक हजार करोड़ रुपये। अच्छा हुआ चार दिन पहले बुक करवा ली थी। फर्स्ट डे फर्स्ट शो का मजा ही कुछ और होता है डॉक्टर साहब ! बाहुबली फ़िल्म से हीरो ऐसा चमका कि सारी दुनिया दीवाने हो गए। क्या बॉडी ,क्या लुक, क्या हेयर स्टाइल, क्या हाइट पर्सनैलिटी ,क्या सिक्स पैक....वाव प्रभास आई लव यू सो मच। "
मिसेस गुप्ता के मुँहू बाजत रिहिस चपड़ - चपड़ । पतिदेव घला डबकत हावय । कभू मोर तारीफ नइ करे । कभू आई लव यू नइ कहाय।
"चलो यार ! स्पीड चलाओ। बैलगाड़ी जैसा मत चलाओ।"
"...अऊ कतका स्पीड चलाओ ..? चाक्कर सड़क ला घला बैपारी मन सुल्लु कर डारथे अपन पसरा लगाके । नाम के राजधानी रायपुर ,फेर सड़क मा गाय बछरू पगुरावत रहिथे। कहाँ ले गाड़ी स्पीड मा चलही..,? जगा जगा गड्डा तौन अलग। कतको गड्डा तो कुआं बनगे हावय । नेता अधिकारी बेपारी सब जिम्मेदारी ले भागने वाला हे इहाँ। सब बेईमान हावय।"
"अपना काम बनता भाड़ में जाय जनता ऐसी सोच रखते है।"
मिसेस गुप्ता घला पंदोली दिस। मिसेस गुप्ता के भाषण उरके नइ रिहिस अऊ ये..दे....ये...... सड़क के कुकूर झपाये परत हावय ।
".....ये दाई ...... !"
चीख निकलगे ।
कुकूर ला बचाये के चक्कर मा तीन झन नोनी मन ला ठोक दिस डॉक्टर गुप्ता के महंगा गाड़ी हा । मइलाहा कपड़ा पहिरे पीठ मा प्लास्टिक बोरी बोहे अपन साइड मा रेंगत रिहिस नोनी मन।
"छोटे कुत्ते को बचाने के चक्कर में पूरा कुत्ते की फैमिली चपेट में आ गयी.....। क्या करे..?
मिसेस गुप्ता बड़बड़ाये लागिस। ठोसरा मारिस ।
बड़का नोनी मुड़ भसरा गिरीस माथ फुटगे । लहू के धार फुटगे । दुसरइया एकंगी गिरीस कोहनी छोलागे । तिसरइया गिरीस फेर कमती लागिस । दस बारा अऊ पन्दरा बच्छर के तारा सिरा लइका जम्मो लाहर - ताहर होगे।
"गाड़ी ला तो कुछु नइ होइस न ।"
गाड़ी ला धीरे करत गाड़ी ला ठाड़े करे लागिस।
"लाखो की महंगी गाड़ी को तुड़वाना फोड़वाना है क्या..? गाड़ी तो छोड़...हम लोगो को भी नही छोड़ेंगे। मार डालेंगे काट डालेंगे ये लोग। भीड़ की कोई जाति धर्म नही होती। "
मिसेस गुप्ता बम्बीयाये लागिस।
आजू - बाजू के दुकान वाला मन घला सकेलाये लागिस ।
"चलो अभी रोड भी क्लीयर है ..।"
"फेर लइका मन ल......?
"अरे पॉलिथीन बीनने वाले तो है ... कोई कलेक्टर के बच्चे थोड़ी ना है ...कुछ नही होगा.। इन लोगो को खुद को पता नही कौंन किसके बच्चे है, और कौन किसके पेरेंट्स ...धरती के बोझ है स्सा.... । चल खिसक ले रोज की घटना है ।"
मिसेस गुप्ता जुड़ सास लेवत बखानत किहिस ।
"लेकिन...मेहां डॉक्टर आवव । देख लेथो कतका लागे हावय तेला ।
" ये भीड़ और कोर्ट कचहरी डॉक्टर का तेल निकाल देंगे ...। याद रख ।"
मिसेस गुप्ता अब गुर्राइस।
गाड़ी फेर दउड़े लागिस। दुकान वाला मन लइका मन ला पानी पियावत रिहिस । कतको झन मन आरो करिस ।
"गाड़ी वाला ला पकड़ो।''
फेर गाड़ी वाला मन तो छू लम्बा होगे। .....अउ अब सिटी माल मा थिराइस गाड़ी हा ।
"ते बने केहेस जतका जादा बिलम, ततका फँसना होतिस । ओ कोती सीसीटीवी कैमरा घला नइ लगे हावय। नइ जान सके घटना ला ।"
मल्टीप्लेक्स टाकीज मा जुड़ सास लेवत किहिस डॉ गुप्ता हा।
"वाह क्या सीन है दुबई ऑस्ट्रेलिया सिंगापुर सब फॉरेन लोकेशन का शूटिंग । यू ट्यूब में साढ़े तीन लाख मिलियन फ़ॉलोअर्स है । प्रभास यु आर हेंडसम ....अट्रैक्टिव ...फायर.. किलर लुक...। लव यू... लव यू ..सो मच।''
अब मिसेस गुप्ता पूरा पिच्चर मा बुड़गे रिहिस ।
"अभी तो इंटरवल भी नही हुआ और पैसा छूटा गया।''
"ओ एक्सीडेंट वाली टुरी मन के का होइस संसो होवत हावय ओ ।"
"छोड़... ओ सब । लेट्स एन्जॉय दि मूवी ।''
मिसेस गुप्ता हा डॉ गुप्ता के मुँहू मा समोसा ठुसत किहिस। डॉ गुप्ता घला पिच्चर मा अब रमगे।
नर्सिंग होम मा सबले सीनियर आवव । अट्ठारा बच्छर चार डॉक्टर करा बुता करे के अनुभव हावय । फेर आज मोर सूजी दवाई बुता नइ करत हावय । जवनहा के पेट पीरा फेर बाढ़गे । लाहर - ताहर होगे। अगिया बेताल होगे जवनहा हा । पेट पीरा के दवाई देयेव सब अबिरथा होगे। नींद के दवाई देयेव तभो ले.. छटपटावत रिहिस । बचा ले भगवान ये जवनहा ला गाँव के लीम तरी के हनुमान जी ला सुमर डारेव। डॉक्टर साहब तो भइगे.....। फोन नइ उठावत हे । दस बारा बेरा होगे, न फोन उठाये न कोनो जवाब मिले। जवनहा अब लाहर - ताहर होगे। गोसाइन घला खिसियाये लागिस। कभू हाथ जोर के बिनती घला करिस।
"मोर गोसाइया ला बचा ले कम्पोण्डर बाबू ..! डॉक्टर करा फोन मार जल्दी बला .... ।"
जवनहा के गोसाइन अब रोवत रिहिस ।
फोन लगाए के उदीम करेंव । अब्बड़ बेरा मा लगिस।
"पेशेंट सीरियस होवत हाबे सर जी !''
सब ला बताएव चेताएव डॉक्टर साहब ला । ले आवत हव किहिस अऊ टू टू... फोन कटगे।
कचाकच भीड़ ले भरे हाल मा सीटी अऊ हूटिंग चलत हावय । परदा में घटत घटना ले लोगन मन के मनोभाव बदलत हावय दुख क्रोध आक्रोश हँसी ठिठोली ..सब ।
"मेहा जावत हावव पेशेंट सीरियस होगे हे , देखना जरूरी हावय।"
डॉक्टर साहब अपन कुर्सी ले ठाड़े होगे ।
"अभी तो क्लाइमेक्स बाकी है। बस पंद्रह मिनट की बात है। हीरो अपना प्रभास अभी मूर्छित है। मरेगा कि बचेगा..? हीरोइन हीरो का प्यार ठुकरायेगी कि असेप्ट करेगी..? बस पन्द्रह मिनट....! अपना साहू कम्पोण्डर सम्भाल लेगा ।"
गोसाइन मिसेस गुप्ता कहे लागिस।
"तेहा ऑटो ले आ जाबे मेहा जावत हावव।"
"नही .... बैठ चुपचाप । तुमको शर्म नही आती । इतने बड़े डॉक्टर की बीबी और ऑटो में... लोग क्या कहेंगे ?"
डॉ गुप्ता फेर बइठगे । पिच्चर मा हीरो घला अब जागगे रिहिस अऊ हीरोइन घला हीरो के प्यार ला असेप्ट कर लिस। सीटी चिल्लाई ताली अऊ हूटिंग के आरो आये लागिस। डॉक्टर साहब के फोन कतको बेरा घरघराइस फेर ...गोठ बात नइ होइस। डॉक्टर-डॉक्टरिन फर्स्ट डे फर्स्ट शो देखत हावय बिधुन होके।
"भैया ! डॉक्टर साहब नइ आवय ते हमन ला आने अस्पताल जाये बर छुट्टी दे दे। "
मरीज के गोसाइन किहिस मोला।
" डॉक्टर साहब आतेच हावय ..। वो हा निकलगे हावय...।"
आधा पौन घंटा ले अइसने काहत हावव मेहा ।
फेर फोन करेंव ।
"आ जाओ साहब ! मरीज के हालत नाजुक होवत हावय। अब अटियावत कराहत घला नइ हावय। भलुक मूर्छित होवत हे । वोकर गोसाइन हा आने अस्पताल लेगे के बात कहत हे...।
"नही, बिलकुल भी नही....? पेशेन्ट ला जाये ला झन देबे अऊ फीस मन ला जमा करवा के राख ले रहा । डाक्टरी फील्ड में जादा भावुक होये ले नइ बने। बिलमा के राख । फूलदान अऊ भगवान के नानकुन मूर्ति बिसाहू नर्सिंग होम के रिसेप्सन बर अऊ डाक्टरीन गुपचुप खाही अतकी बुता हावय । बस आतेच हावव....।"
डॉक्टर के फोन कटगे।
सिरतोन बिलमा डारेव मरीज ला। अब अऊ कतका बिलमावव .... अब शांत होगे । निच्चट शांत। चालीस बियालिस बच्छर के जवनहा के लाश परे रिहिस। संगमरमर लगे चमचमाती बिल्डिंग सुसकत हावय। करेजा फाटगे गोसाइन बेटी-बेटा अऊ सियान दाई-ददा के रोये ले ।
सेवा सदन नर्सिंग होम के बोर्ड ले छिंनमिनासी लागे लागिस आज महु ला।
अब भीड़ दिखत हावय । जम्मो कोती उग्र भीड़ । अइसे भीड़ जेखर न कोनो जाति धरम हावय न कोनो बरन हावय । नर्सिंग होम मा खुसरे के उदीम करिस फेर भौ ..भौ ...झबलू कुकूर अइसे डटे हावय जइसे बी एस एफ वाला जवनहा मन सीमा मा डटे रहिथे । सौ डेढ़ सौ के भीड़ ला अपन फुर्ती खुंखार पन अऊ भूकई ले थाम डारिस झबलू हा। सब मरीज मन अपन कुरिया मा खुसर गे । भीड़ नइ खुसर सकिस ते का होइस लाठी बेड़गा ईटा कोहरा चले लागिस । लट्टू झूमर सब टुटगे। कब तक ले सम्हालही झबलू हा....। एक ठन बड़का पथरा मुड़ी मा परिस अऊ लहू के धार फुटगे। कुई - कुई करत गिरीस ते उठबे नइ करिस। अब तो पुलिस बल घला आगे कण्ट्रोल करे बर।
डॉक्टर गुप्ता आइस सेवा सदन नर्सिंग होम मा अऊ देखिस सब टूट फुटगे रिहिस । एक एक जिनिस के आकलन करे लागिस ।
"सब ला मेडिकल बिल मा जोड़बे तभे लाश ला देबे । ...भलुक बढ़ा चढ़ा के बिल बनाबे । एस पी साहब ले बात होगे हे। काखरो दादागिरी नइ चले इहाँ।"
डॉक्टर छाती फूलोवत किहिस।
फेर ...अब तो जइसे छाती फाटगे जब झबलू ला देखिस दहाड़ मारके रोए लागिस।
"मोर शोना बाबू ....! मोर बेटा ...! मोर शेर ...! मोर झबलू ..।"
डाक्टरीन घला अधमरहिन होगे रिहिस झबलू के वियोग मा।
"मेरा झबलू...! मेरा जर्मन शेफर्ड डॉग... ।"
इंसान बर कोनो संवेदना नही अऊ कुकूर बर अतका मया, अतका रोना गाना ।
आज सेवा सदन नर्सिंग होम ले घिन घिनासी लागिस। अब कोनो आने नर्सिंग होम मा जाके अपन कागज पाती सर्टिफिकेट संग अनुभव ला बताए लागेव मेहा।
चन्द्रहास साहू
धमतरी
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समीक्षा
आज मनखे दिन-ब-दिन सुवारथ के गाड़ी म सवार होके कोन जनी कति जाना चाहत हे, ओकर अंतस् जानय अउ भगवान जानँय। मन के बात गड़रिया जाने। ए सुवारथ म भुलाय मनखे मानवीय मूल्य मन ल खूंटी म टाँग के पइसा के पीछू दउड़त भागत हे। संवेदना नाँव के चिरई तो उँकर अंतस् ले कब के कहाँ उड़ागे हे?
मनखे परहित बर सोचना भूलत हावय। सेवा के करम ले जुड़े मनखे सेवा धरम ल मुरसरिया म (ताक में) तिरिया डरे हे। आज चारों मुड़ा सेवा अउ धरम के आड़ म लूट मचे हे। दूब्बर बर दू असाड़ होगे हे। अँधरा खोजे दू आँखीं, सहीं सब मउका के रस्ता जोहत हें। अपन मरजी के मालिक बने बइठे हें। डॉक्टर जेन ल दुनिया म दुबारा जिनगी देवइया भगवान माने जाथे, वहू मन अब डॉक्टरी ल बेवसाय समझे लग गेहें। नर्सिंग होम के नाँव म मनमानी करत हें। उहाँ ले लहुटे मनखे के इही अनभो सुने ल मिलथे। उन कहिथें, " भगवान सबो ल अस्पताल जाय ले बचाय। उहाँ पइसा के भारी लूट हे।" अइसने अउ कतको जगा देखे ल मिलथे। वकील, पुलिस, राजस्व विभाग के चक्कर काटत मनखे के इहीच पीरा हे। कुल मिला के इही कहे जा सकत हे के पइसा के बाढ़त भूख के संग मनखे संवेदना अउ नैतिकता ल पचो डरे हे। पइसा लेना हे त लेना च हे। नइ मिले त काम ल लटका के रख दव। बुता ले आय मनखे के दुख पीरा अउ समस्या ले कोनो मतलब नइ राखय।
पइसा कमई के बुने जाल के उँकर दुनिया म मनखे बर कोनो रहम नइ हे। उही उपेक्षित मनखे के पइसा ले ही उँकर जिनगी म शान शौकत हे, यहू भुला जथे। नारी जउन ल ममता अउ त्याग के देवी के रूप म पूजे जाथे। सुवारथ जे ल छू नइ सकय, सोचे जाथे, वहू आज आधुनिकता के फेर म फँस गे हे। एकर जीता जागता उदाहरण मिसेज गुप्ता हे। जेकर भीतर के ममता अउ संवेदनशीलता पूरा दम टोर चुके हे। नारी जे समाज ल महतारी के रूप म बनाथे, उही नारी अपन दू पल के सुख के स्वार्थ पूर्ति बर भरमा सकथे अउ समाज ल खाई म ढकेल सकथे।
इही मरे संवेदना अउ नैतिक पतन के कथानक ले गढ़े सुग्घर कहानी आय 'झबलू-द जर्मन शेफर्ड डॉग'।
ए कहानी के विस्तार बड़ सुग्घर होय हे। बड़े मनखे जिंकर जिनगी म कोनो किसम के तकलीफ नइ राहय। उन मन अपन हर शौक कइसे पूरा करथें अउ आम आदमी के जिनगी ले कतेक मतलब रखथें, वोकर हुबहू फोटो ए कहानी म पढ़े ल मिलथे। पात्र मन के संवाद के भाषा पाठक के आगू चित्र उभारे म सक्षम हे। कहानी के भाषा शैली अंतस् म छाप छोड़थे। सिनेमा हाल अउ अस्पताल के एक सँघरा चित्रण बड़ सुग्घर हे।
ए कहानी म एके त्रुटि नजर आइस, वो हे व्याकरणिक त्रुटि। जउन पाठक अउ कहानी के बीच बाधा बनत हे। ए व्याकरण त्रुटि ले पाठक ल दू लाइन पीछू अउ पढ़े बर लगथे। तब कहूँ समझ पाथे के कोन ह बात करत हे।
"बाकी ला जाँज के पाछू रिपोर्ट देखाबे तहान बताहू। रत्तीभर संसो झन कर कका।"
बताहू के जगा बताहूँ सही शब्द आय। ए अलग बात आय के ए मेर कका शब्द के आय ले कहइया कोन ए पता चलत हे। फेर अउ आने जगा म ए बाधा परथे।
छत्तीसगढ़ी साहित्य म आधुनिकता के पाग ले पगे ए कहानी हर पाठक ल पढ़ना चाही। ए म लगे समय के कभू पछतावा नइ होही। बड़ सुग्घर कहानी लिखे बर चंद्रहास साहू जी ल बधाई।
पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह (पलारी)
बलौदाबाजार छग.
मो 8120578897
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