Sunday 26 June 2022

नानकीन किस्सा बड़का सुख- डॉ शैल चन्द्रा

 नानकीन किस्सा

                बड़का सुख

               समारू ह नवा फसल के धान के बोरी मन ल कुरिया भीतरी कोठी म रखवावत रहाय। तभे ओखर मितान बुधारू आगे।

बुधारू ह घलोक धान के बोरी मन ल ट्रेक्टर ले उतारे म सहायता करे  ल लागिस।

      जम्मो धान के बोरी मन कोठी म भरागे त समारू ह फेर तीन ठिंन बोरी ल कोठी भीतर ले निकलवा बर कहिस।

     तब बुधारू कहिस-"अभिच्च त धान के बोरी मन ल लटपट राखे सके हवन फेर काबर तैंहा धान के बोरी मन ल निकलवावत हस?"

       समारू कहिस-"हव गा मितान, भुला गे रहेंव। मेंहा हर साल धान के तीन बोरी ल आरुग राखथंव।एक बोरी धान ल चिरई चिरगुन मन बर राखथंव,एक बोरी ल मंगइया भिखमंगा मन बर राखथंव अउ एक बोरी ल सगा-मितान मन ल चौऊर पिसान के रोटी खाये बर देथंव। अईसने अपन फसल के धान के तीन बोरी ल देथंव त मोला बड़ सुख मिलथे।देहे के सुख बड़का होथे मितान, अउ हमन कोनो ल का देहे सकथन ?"

        समारू के ये गोठ ल सुन के बुधारू  कहिस-" वाह!मितान, तैं तो बड़ सुघ्घर पुन्न के काम करथस।तैंहा छोटे किसान होके भी अपन फसल के कुछ हिस्सा ल बांट के खाथस।ये बहुत बढ़िया आय।आज बड़े-बड़े लोग मन बेईमानी करके दूसर के हक ल घलोक खा देथे। अईसे में तोर ये काम ह लोगन मन बर प्रेरणा हवय।"    अइसन कहत  बुधारू ह समारू के पीठ ठोकिस अउ ओखर गला ले लिपट गिस।

                 डॉ. शैल चन्द्रा

                 रावण भाठा,नगरी

                 जिला-धमतरी

                 छत्तीसगढ़

सम्प्रति

प्राचार्य

शासकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय टाँगापानी

तहसील-नगरी

जिला-धमतरी

छत्तीसगढ़

आदरणीय सम्पादक जी,   

                         सादर नमस्कार! 

            उक्त लघुकथा मौलिक अप्रकाशित है।

                     डॉ. शैल चन्द्रा

                     मोबाइल नंबर-9977834645

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