Friday 10 June 2022

प्रेमचंद---निर्मला (छत्तीसगढ़ी अनुवाद)


 

प्रेमचंद---निर्मला (छत्तीसगढ़ी अनुवाद)



अनुवादक

- दुर्गा प्रसाद पारकर






छत्तीसगढ़ी

म अनुवाद के उजोग


कथा साहित्य के संसार के बड़का नाव आय-मुंशी प्रेमचंद। उन दर्जन भर उपन्यास रचिन अउ अनगिनत कथा-कहानी लिखिन। उँकर सिरजे संसार म जुग-जिनगी ह संघराय हे ओमा का शहर, का गँवई, का खेती, का रंक, का राजा, का साहेब, का संतरी, का रानी अउ नौकरानी सबो के दरस हो जाथे। उँकर कथा संसार ह जतेक विराट हे ओतेक गइहर, ओमा जिनगी के खोजार हे। प्रेमचंद के कहानी मन हमर समाज के सबो कोति जाथे, बतियाथे, मितान बनाथे अउ जबर जिनगी के आरो लेथे। ओकर नजर ले आप सम्मे के सूरत ला देख सकथव। मनखे के दुख-दर्द ल जानना बुझना होवय त प्रेमचंद के कथा संसार के फेरा ले लेवव। आप जान जाहू-कोन रद्दा रेंगत हे ए संसार ह, कोन ठउर-ठिकाना म अरझे हे, ओकर जिनगी के बेवहार ह। कहुँ-कहुँ मनखे जूझत घलो हवय अउ बिक्खर जिनगी के जंजाल ले मुक्ति घलो पा लेवत हवय। प्रेमचंद मनखे के मान मढ़इया कथाकार आय। ओह मनखे मन के मान-गउन करैया मन के खोज-खबर लेथे अउ बढ़ियन जिनगी के बिचार-बेवहार ला बगराथे। प्रेमचंद ल आप मनखे अउ ओकर संसार के हित-मीत महान रचनाकार जानव, जेकर जस ह ए जग म जुग-जुग ले जीयत हे, बगरत हे, महमहावत हे। अमर कथाकार आय प्रेमचंद, भारत भुइयाँ के महान कलमकार आय प्रेमचंद। आज ए दुनिया के बड़का कथाकार के आसन म उन बिराजमान हवय, देश-दुनिया म ओकर सनमान हवय। उपन्यासकार प्रेमचंद के निर्मला, सेवा-सदन, कर्मभूमि, रंगभूमि, गबन, गोदान के अब्बड़ प्रचार एकर सेती हावय कि उन उपन्यास मन के कथा-किस्सा ह पढ़इया मन ला जाने, चिन्हे लगथे। उन जब कथा ल गढ़थे त जिनगी के माटी ले अउ ओमा मया के पानी ले परान डारथे, तब्भे तो कथा म जान आथे। कहिथे कि प्रेमचंद के उपन्यास के मनखे मन छुछिंदहा अपन रद्दा म रेंगे लगथे। प्रेमचंद ह उपन्यास बर कथा सृजन फेर सृजन के संसार ल स्वतंत्र कर देथे, कोनो बँधना म बाँध के राखय निही। ते पाय के ओकर उपन्यास मन सहीच जान परथे। सबके विश्वास के हकदार बनथे। ओकर कथा मन के सन्देश घलाव समाज बर मंगलकारी होथे। 

प्रेमचंद के उपन्यास मन मा नारी जीवन के दुख-दर्द के उपर भरपूर ध्यान दिहे गइस हावय। नारी ह महतारी होथे नर के जननी, जनम दात्री। पुरुष सँचरथे ओकर कोख म पलथे ओकर गोद म। फेर मनखे दूध के करजा ल उतारथे कतेक? कतकोन बेर ओह नारी-महतारी के जिनगी ला नरक बना देथे, काबर? सोचे बर परथे। कथाकार प्रेमचंद ह ए विषय म सोचे बहुत हे फेर ओला चितेरे हे अपन उपन्यास मन के जीयत जागत संसार म। हमर देखे परखे म निर्मला अउ सेवा-सदन म नारी मन के जिनगी के जब्बर आरो लिहे गइस हवय। लगथे कि प्रेमचंद ह ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः‘ के मान ला मढ़ाय के मंगल कारज म भीड़े रहिस। 

छत्तीसगढ़ी के साहित्य-साधना दुर्गा प्रसाद पारकर के ए ‘निर्मला‘ उपन्यास के छत्तीसगढ़ी उल्था (अनुवाद) ह हमन के हाथ म हावय। एकर हिन्दी म लिखइया हवय मुंशी प्रेमचंद जी अउ छत्तीसगढ़ म उल्था करइया दुर्गा प्रसाद पारकर जी। ए उपन्यास के उल्था करे के पहिली उन छत्तीसगढ़ के महान नारी अवतारी ‘बिलासा देवी केवट‘ के महिमा के उपर अपन लेखनी के साध अउ सकत देखा डारिन हवय। पारकर जी छत्तीसगढ़ के उज्जर इतिहास के, पुरखौती विरासत के बनेच जानकार आय। उन हिरदे ले कवि अउ करम ले रंगकर्मी आंय, ते पाय के उँकर सब्बो रचना मन मा कहन के कथाधार ह खलखलावत बोहावत दिखथे, पढ़इया मन के पढ़न-पियास ला पूरा करथे, फिलो देथे अंतस के उजास बर। पारकर जी के चेत ह ‘निर्मला‘ के उल्था करे म काबर गइस, एहू ला जान लेइन। ओकर मानना हवय कि नारी ह सदानीरा सिरतोन म निर्मला होथे। ओह अपन जनम-जिनगी ले, धरम-करम अउ मरम ले मयातुरा होथे। सकल संसार लउही सिरजथे अउ संस्कारथे घलाव। नारी-जगत के मान राखे के काज ला आखिर एही समाज ल, परिवार-परिजन मन ला करना परही, तभे गृहस्थी के गाड़ी ह चलही, नइते एके चक्का के छकड़ी कहाँ पलट जाही, पता नइ चलही। पारकर जी निर्मला के ए उल्था के जरिया ले समाज के धरम-करम ला छत्तीसगढ़ी जुबान म उजागर करथे।

कोनो महान रचना के उल्था करे के काम एकर सेती होथे कि रचना के संदेशा ह उल्था के भाखा-भूमि म हबर जावय। उल्था के कारज ह जागरन के जोत जगई तो आय न। अंजोर बगराय के उजोग आय, ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय‘ नइते मरत-झरत समाज जिही कइसे ‘मृत्योर्मा अमृतो गमय‘। समाज के सद्गति बर ‘असदो मा सद्गमय‘ बर बढ़ियन साहित्य के, रचना मन के उल्था करना ह चेत जागे गुनी-गियानी मनखे मन के जिम्मेदारी आय। मंय मानथंव ए उल्था के काज ल करके दुर्गा प्रसाद पारकर जी ह अपन रचनाकार के धरम ला पूरा करत हावय। हमन ए कठिन काम के सराहना एकर सेती करत हावन कि उल्था करई के काज ह निच्चट सरल नइ होवय। मूल रचनाकार के भाव ल कोनो भाखा म उतार देना हँसी के खेल नइ होवय। उल्था करैया कलमकार ल एकर बर धियान, धारण अउ समाधि तको-तक जाय बर, हबरे बर परथे। मूल रचना के भाखा अउ उल्था के माई भाखा के समझ अउ मान ल एके करना परथे। तब्भे रचना के अउ रचनाकार के मान-ईमान रहिथे। 

‘निर्मला‘ ह तिरिया चरित के उपन्यास आय। नार अउ नारी म फरक घलो कहाँ हे? नार-नदी ह पहार ले ओगरथे, निकरथे, झर-झर बोहाथे, भुइयाँ-भाठा ल पलोथे-फिलोथे अउ हरियाली लाथे-मानुख जिनगी ला खुशहाल कर देथे। वइसने नारी महतारी ह घलो होथे। फेर जुग-जिनगी म का मान हे, सब्बो जानत हन। गंगा ल कतेक गंदा करे हे जमाना, जेकर सफाई के उजोग करे बर परथे भगीरथ मन सब देखत हन। भगीरथ ह सरगे ले उतारिस गंगा ल, त ओला सागर तक हबराय के जिम्मा ओकरेच होही का? जुग जिनगी ला सोचे बर परही।

निर्मला के जिनगी के कथा ल, ओकर जनम ले मरन के बियथा ल बिथबिथा ला ‘तिरिया जनम झनि देय‘ के आरत उचार ला-छत्तीसगढ़ी भाखा म पहुँचाय के जबर जोम बूता ला दुर्गा प्रसाद पारकर जी ह करे हे। मोला लगथे ए हा छत्तीसगढ़ी म उपन्यास उल्थाय (अनुवाद) के पहिली कारज आय, एकर बर उनला हिरदे के अंतस ले बनेच बने बधाई। ए कारज ह छत्तीसगढ़ी भाखा के कोठी ल आखर-अन्नपूरना ले भरही, हमर विश्वास हे। छेवर म, छत्तीसगढ़ी-महतारी के ए चरन म, पाँव म चघे ए पूजा के फूल के सम्मान होवय, एही मंगल कामना के संगे संग छत्तीसगढ़ी भुइयाँ अउ भाखा ले मया करैया दीदी-बहिनी भाई-भतीजा सबो ला जय छत्तीसगढ़, जय जोहार।


- डॉ. बिहारीलाल साहू




निर्मला


ओइसे तो बाबू उदयभानुलाल के परिवार म कतनो झिन सदस्य रिहिस हे। कोनो फूफा रिहिस, कोनो भांचा रिहिस त कोनो भतीजा रिहिस, फेर इहां इंकर कोई मतलब नइ हे। ओहा बढ़िया वकील रिहिस, लक्ष्मी मइया खुश रिहिस अउ कुटुम्ब के गरीब परिवार मन ल आश्रय देना ओकर जिम्मेदारी रिहिस। हमर सम्बन्ध तो सिरिफ ओकर दुनो बेटी ले रिहिस हे जेमा बडे़ के नाम निर्मला अउ छोटे के कृष्णा रिहिस। अभी तक दुनो बहिनी मिल के गुड्डा-गुड्डी के खेल खेलत रिहिन हे। निर्मला ह पन्द्रा बच्छर के रिहिसे अउ कृष्णा ह दस बच्छर के तभो ले इंकर सुभाव म कोनो किसम के अन्तर नइ आय रिहिस हे। दुनो झिन बिक्कट चंचल रिहिन हवय। खेल कुद अउ घुमई-फिरई म तो जी परान दे देवत रिहिन हे। दुनो झिन गुड्डी के बिहाव ल बड़ा धूमधाम ले करय, जब देखते तब घर के काम बूता करे बर बहाना मार देवय। काम बूता बर जी चोरावय। महतारी बलावत राहय फेर इमन नइ आवय। दुनो झिन कोठा म लुका के बइठे राहय। कोन जनी का बूता बर बलावत होही कहिके। दुनो झिन अपन-अपन भाई मन संग लड़त राहय। नौकर मन ल खिसियावत राहय अऊ कहूं बाजा के आवाज ल सुनतिन ताहन मुहाटी म आके खड़ा हो जतिन फेर आज एक ठन अइसे बात हो गे जउन ह बड़े ल बड़े अउ छोटे ल छोटे बना दे हे। कृष्णा के सुभाव जइसने के तइसने हे फेर निर्मला के चंचलतापन खतम होगे। गुमसुम अउ लजकुरहिन होगे। ए डाहर बाबू उदयभानुलाल ल बहुत दिन होगे रिहिस हे। निर्मला के बिहाव बर गोठबात चलावत। आज ओकर मेहनत सफल होइस। बाबूभालचन्द्र सिन्हा के बड़े बेटा भुवन मोहन सिन्हा बर बात ह पक्का होगे। दूल्हा के पिता ह कहि दे हे कि आप जानो दहेज देबे कि नइ देबे मोला ओकर परवाह नइ हे। हां, बारात म जउन भी बराती जाही उंकर आदर सत्कार बढ़िया ढंग ले होना चाही। जेकर ले तोरो अउ मोर फधित्ता (जग-हंसाई) झन होवय। बाबू उदयभानुलाल वकील भले रिहिस फेर रुपिया सकेले बर कभू नइ जानिस। दहेज ओकर बर बड़े समस्यिा रिहिस। इही पाय के जब दूल्हा के पिताजी ह खुदे कहि दे रिहिस कि मोला दहेज के परवाह नइ हे ताहन एला सहारा मिलगे रिहिस। पहिली तो डर्रावत रिहिस हे कोन जनी काकर-काकर करा हाथ फैलाए बर पर जही तिही पाय के दु-तीन झिन महाजन (करजा देवइया) मन ले पहिली ले बात कर डरे रिहिस हे। ओकर अंदाजा रिहिस कि कतनो कंजूसी करबे तभो ले बीस हजार ले कम खरचा नइ होही। दूल्हा के पिता आश्वासन पाके बिक्कट खुश रिहिस हे।

बिहाव के खबर ह अनजान नोनी ल घर के कोंटा म मुंहु तोप के बइठार दे हे। ओकर अंतस म अलकरहा शंका समागे, रोम-रोम म अनजान डर ह दउंड़े बर धर लिस, कोन जनी का होही? ओकर मन म कोनो किसम के उमंग नइ रिहिस। जउन सज्ञान नोनी के आँँखी म तिरछी नजर बनके, ओठ म मधुर मुस्कान अउ तन म आलस्य बनके प्रगट होथे। ओकर अंतस म कोनो किसम के आसा नइ रिहिसे। उहां तो सिरिफ शंका, फिकर अउ फोकट के कल्पना भर रिहिस हे। यौवन के अभी तक ले पूरा अंजोरी घलो नइ आय रिहिस।

कृष्णा ह थोर बहुत ल जानत रिहिसे फेर सबो ल नइ जानय। ओहा अतना जानत रिहिस हे कि दीदी ल बढ़िया-बढ़िया गहना गुरिया मिलही, दुआरी म बाजा बाजही, सगा मन आही, नाचा कुदा होही, ये सब जानके बिक्कट खुश रिहिस हे अउ यहू जानत रिहिस हे कि दीदी ह सब संग भेंट लाग के रोही, इहां ले रोवत-रोवत बिदा होके जाही, मँय अकेल्ला रहि जहूं-ये सब ल जान के दुखी रिहिस हे फेर यहू जानत रिहिस हे कि ए सब काबर होवत हे, दाई अउ ददा ह काबर दीदी ल घर ले निकाले बर अतेक उत्सुक हे। दीदी ह तो कोनो ल कुछु नइ केहे हे, काकरो संग लड़ई-झगरा नइ करे हे, का अइसने एक दिन महूं ल घलो इमन घर ले निकाल दिही। महूं ह अइसने कोंटा म बइठ के रोहंू अउ कोनो ल मोर उपर दया घलो नइ आही? इही पाय के ओहा डर्रावत रिहिस हे।

संझा के बेरा रिहिस, निर्मला ह छत म जा के अकेल्ला बइठे आकाश डाहर ल आशा के नजर म देखत रिहिस हवय। मन ह अइसे लागत रिहिस हवय जानो-मानो पांख होतिस ते फुर्र के उड़ जतिस ताहन ए सब्बो झंझट ले छूट जतिस। अब तो दुनो बहिनी कभू-कभू घूमे-फिरे बर चल देवय। घोड़ा गाड़ी (बग्घी) ह खाली नइ राहय त बगीच्चा म टहलत राहय। इही पाय के कृष्णा ह ओला एती ओती खोजत राहय। जब कोनो मेर नइ पइस ताहन छत म अइस। ओला देख के हांस के किहिस-तँय इहां आके लुकाके बइठे हवस अउ मँय ह तोला खोजत फिरत हवं। चल, घोड़ा-गाड़ी ल तैयार करा के आये हवं।

निर्मला ह उदास होके किहिस-तँय जा, मँय नइ जावंव। 

कृष्णा    - नही, तोला जाय बर परही, तँय मोर अच्छा दीदी अस न। देख, कइसन जुड़-जुड़ पुरवाही चलत हवय।

निर्मला    - मोर मन नइ करत हे, तँय चल दे।

कृष्णा के आँखी ह रोनहू हो गे। भरभराय भाखा म किहिस-आज तँय काबर नइ जावत हस? मोला काबर नइ बतावत हस? काबर एती ओती लुकावत हस? मोर जीव ह अकेल्ला बइठे-बइठे घबराथे। तँय नइ जाबे ते महूं नइ जावंव। इही मेर तोर संग बइठे रहूं।

निर्मला    - अउ जब मँय इहां ले चल दुहूं त कइसे करबे? तब काकर संग खेलबे अउ काकर संग किंजरबे, बता तो?

कृष्णा    - महूं तोर संग जाहूं। अकेल्ला मँय इहां नइ रहि पाहूं।

निर्मला मुस्कुरा के किहिस-दाई ह तोला जावन नइ देवय।

कृष्णा    - ओइसन म महूं ह तोला जावन नइ देवंव। तँय ह दाई ल काबर कहि नइ देस कि मँय नइ जावंव कहिके। 

निर्मला    - काहत तो हवं, फेर कोई मोर सुनथे का।

कृष्णा    - त एह तोर घर नोहे का?

निर्मला    - नोहे, मोर घर होतिस, त कोनो काबर जबरन निकालतिस?

कृष्णा    - त का अइसने महूं ल घलो एको दिन ए घर ले निकाल दिही का?

निर्मला    - अऊ नही त का तँय बइठे थोरे रहिबे। हम्मन बेटी अन, हमर घर दुसर जघा होथे।

कृष्णा    - चन्दर ल घलो निकाल दे जाही का?

निर्मला    - चन्दर तो लड़का आय, ओला कोन निकालही?

कृष्णा    - त बेटी मन बिक्कट खराब होवत होही न?

निर्मला    - खराब नइ होतिन, त घर ले भगातिन काबर?

कृष्णा    - चन्दर अत्तेक बदमास हे तभो ले ओला काबर नइ भगावय। हम्मन तो कुछु बदमासी घलो नइ करन।

उदुप ले चन्दर ह धम-धम करत छत म पहुंच गे, उहां निर्मला ल देख के कथे-अच्छा! तँय इहां बइठे हवस। अब बिक्कट मजा आही, घर म बाजा बाजही, दीदी दुल्हिन बनही, पालकी चघही। चन्दर के पूरा नाम चन्द्रभानु सिन्हा रिहिस। निर्मला ले तीन बच्छर नान्हे(छोटे) अउ कृष्णा ले दु बच्छर बड़े रिहिस।

निर्मला - चन्दर तँय मोला चिढ़ाबे ते अभी जाके दाई ल बता दुहूं।

चन्द्र - त चिढ़थस काबर? तहूं बाजा सुनबे। ओ. हो-हो। अब तँय दुल्हन बनबे। कइसे कृष्णा तँय बाजा सुनबे न? ओइसन बाजा तँय ह कभू सुने नइ होबे।

कृष्णा - त का बैण्ड बाजा ले घलो बढ़िया होही? 

चन्द्र - हव-हव, बैण्ड ले घलो बढ़िया, हजार गुना बढ़िया, लाख गुना बढ़िया। तँय काला जानबे? एक घांव का बैण्ड सुन लेस तोला अइसे लागथे ओकर ले बढ़िया बाजा होवत नही होही। बाजा बजइया मन लाल-लाल ड्रेस अउ करिया-करिया टोपी पहिरे रही। अतेक सुन्दर लागही कि तोला बतावंव काला। बिक्कट आतिशबाजी घलो होही, ओकर चिकमिकी मन (हवाइयां) ह आकाश म उड़ा जही उहां ओहा चंदैनी मन कर लागही ताहन लाली, पिंयर, हरियर अउ नीला रंग के तारा बन-बन के गिरही। अब्बड़ मजा आही।

कृष्णा - अउ का-का होही चन्दर, बता न मोर भाई?

चन्द्र - मोर संग घूमे बर चल ताहन रद्दा म सरी बात ल बता दुहूं। अइसे-अइसे तमासा होही कि तँय ह देखते रहि जबे। हवा म उड़इया परी मन कस लागही बिलकुल परी कस।

कृष्णा - अच्छा त चल, कहूं तंय मोला नइ बताबे, त तोला पीटहूं।

चन्द्रभानु अउ कृष्णा ह दुनो झिन चल दिन, फेर निर्मला ह अकेल्ला बइठे रहिगे। कृष्णा के जाय ले ए समय ओला भारी दुख होइस। कृष्णा जेला अपन प्राण ले जादा मया करय, आज अतेक निष्ठूर होगे। मोला अकेल्ला छोड़ के चल दिस। बात ह कुछु नोहे फेर दुखी जीव ह तो आंसू बोहावत आँखी आय, जेमा हवा ले घलो पीरा होथे। निर्मला बिक्कट बेर ले रोवत बइठे रिहिस हे। भाई-बहिनी दाई-ददा सबो झिन अइसने बिसर डरही, सब झिन मोर ले दुरिहा जही ताहन शायद इमन ल देखे बर मोर आँखी ह तरस जही।

  फूलवारी म चरचिर ले फूल फूले रिहिस हवय। बढ़िया महमहावत रिहिस हवय। चइत के सुग्घर जुर पुरवाही चलत रिहिस हवय।

आकाश म चंदैनी मन छिटके रिहिन हे। निर्मला इही सब दुखी बात मन ल गुनत-गुनत सुतगे ताहन नींद परे के बाद ओकर मन ह सपना देखे बर धर लिस। निर्मला ह सपना म देखथे कि आघु म एक ठन नदिया के करार म बइठे डोंगा के बाट जोहत रिहिस हे। संझा के बेरा रिहिस। अंधियारी ह कोनो भयंकर जानवर कस बाढ़त जावत हे, ओहा घोर चिंता म परे हे कि मंय ए नदिया के ओप्पार कइसे पहुंचहूं। जादा रतिहा झन हो जाय कहिके गुनत रोवत हे, जादा रात हो जही त इहां मंय अकेल्ला कइसे रहूं। उदूप ले ओला एक ठन सुग्घर डोंगा ल घाट डाहर आवत दिखथे। देख के बिक्कट खुश हो जथे। डोंगा ह घाट म जइसने पहुंचथे, ओहा तुरते डोंगा म चढे बर धरथे। जइसने डोंगा म पांव ल रखे बर धरथे, केवट ह ओला कहि देथे-तोर बर इहां जघा नइ हे। ओहा केवट करा खूब कलौली करथे, ओकर पांव परथे फेर ओहा घेरी बेरी कहि देवत रिहिस हवय, तोर बर इहां जघा नइ हे। थोकन देर बाद डोंगा ढिला जथे। ओहा गोहार पार-पार के रोवत रहिथे। सुन्ना नदिया के करार म रात भर कइसे रहूं, अइसे सोच के नदिया म कूद के डोंगा ल पकड़ना चाहथे ठउंका ओतके बेर कहूं डाहर ले आवाज आथे-रुक जा, रुक जा नदिया बिक्कट गहिरी हे, बुड़ जबे। ओहा तोर बर नोहे, मँय आवत हंव, मोर डोंगा म बइठ जबे। मंय तोला ओप्पार पहुंचा दुहूं। ओहा डर के मारे एती ओती देखथे कि ये आवाज ह कहां ले अइस हवय? थेकिन देर के बाद एक ठन नानकुन डोंगा आवत दिखिस। ओमे न पाल रिहिस, न पतवार अउ न पाल ल बांधे बर डोरी रिहिस। डोंगा के पेंदी ह फूटे रिहिस हे, पटनी मन टूटे रिहिस, डोंगा म पानी भरे रिहिस हे, ओ पानी ल एक झिन मनखे ह सींच-सींच के निकालत रिहिस हे। ओहा ओला कहिथे-ए ह तो टूटे हे, कइसे पार होही? केवट कथे-तोर बर इही ल भेजे गे हे, आ के बइठ जा! वोहा थोकिन गुनथे-एमा बइठंव कि नइ बइठंव? आखिर म ओहा तय करथे-बइठ जथंव कहिेके। इहां अकेल्ला पड़े रेहे ले डोंगा म बइठ जाना जादा अच्छा हवय। कोनो भयंकर जन्तु के पेट म जाये ले तो बढ़िया हे कि नदिया म बुड़ जंव। कोन जाने, डोंगा पार लगा दिही। ये सोच के ओहा डर्रावत-डर्रावत डोंगा म बइठगे। कुछ देर बाद डोंगा ह डगमगाय बर धर लेथे। डोंगा म पानी ह भुलका मन डाहर ले भरते जाय। निर्मला घलो मल्लाह के संग पानी सींचे बर धर लिस। पानी सींचत-सींचत इंकर हाथ ह थक जथे फेर पानी ह भरत जाथे, आखिर म डोंगा ह चक्कर खाय बर धर लेथे। अइसे लागत रिहिस हवय कि डोंगा ह अबक-तबक बुड़इया हे। तब ओहा काकरो ले सहारा माँगे बर अपन दुनो हाथ ल फैलाथे, डोंगा ह नीचे ले खिसक जथे अउ ओकर गोड़ ह अधर म हो जथे। ओहा जोर से चिल्लाथे। चिल्लावत-चिल्लावत ओकर नींद खुल जथे। देखथे त ओकर दाई ह ओकर खांघ ल धर के हलावत रिहिस हवय।


दू


बाबू उदयभानुलाल के मकान ह तो बाजार बरोबर लागत हवय। परछी म सोनार के हथौरी अउ कुरिया म दर्जी के सुई ह चलत हवय। आघु म नीम पेड़ के खाल्हे म बढ़ई ह खटिया बनावत हवय। खपरा छानी वाले जघा म हलवाई मन बर चूल्हा कोडे़ गे हवय। सगा मन बर अलग से एक ठन कुरिया ल साफ सुथरा करे गे रिहिस हे, अइसे व्यवस्था करे जावत हवय कि सबो पहुना मन बर एक-एक ठन खटिया, एक-एक ठन कुर्सी अउ एक-एक ठन टेबुल होवय। तीन-तीन झिन सगा मन बर एक-एक झिन कहार रखे बर तैयारी चलत हे। अभी बारात आय म एक महीना हे फेर तैयारी अभी ले होवत हे। बारात के अइसे सम्मान करे जाय कि कोनो ल बोले के मौका झन मिलय। वहू मन सुरता रखे कि इंकर घर बारात गे रेहेन कहिके। एक ठन पूरा मकान बरतन-भाड़ा ले भराय हवय। कप-प्लेट के सेट हे, नास्ता बर प्लेट, थाली, लोटा अउ गिलास। जउन मन रोज खटिया म बइठ के हुक्का पीयत राहय उमन अपन बूता म मन लगा के लगे रिहिन। अपन जरुरत महसूस करवाये बर असइन बढ़िया मौका फेर इमन ल बहुत दिन बाद मिलही। जिहां एक झिन मनखे ल जाना राहय उहां पांच झिन दउँड़य। बूता कम होवय हुल्लड़ जादा। नान-नान बात म घंटो बहस होवय आखिर म वकील साहब ल आके निर्णय करे बर परय। एक झिन काहय, घी खराब हे त दुसर ह काहय कि एकर ले बढ़िया कहूं घी मिल जही ते मोर नाम बदल दुहूं, तीसर ह कथे-एमा तो बास आवत हवय। चौथा कथे-तोर नाक ह सर गे हे, तँय का जानबे घी काला कथे? इहंे जब ले आय हवस तब ले तंय घी खावत हस नही ते तोला तो घी के दरसन घलो नइ होवत रिहिस हे। ए बहस म लड़ई-झगरा बाढ़ जावय ओकर बाद वकील ल झगड़ा ल शांत करे बर परय।

रतिहा नौ बजे रिहिस। उदयभानुलाल भीतरी म बइठे खरचा बर अंदाजा लगावत रिहिस। ओहा रोज रोज खरचा बर लेखा जोखा करय फेर ओमा कुछु न कुछु बदलाव करे बर परय। कभू कम करे बर परय त कभू जादा करे बर परय। आघू म कल्याणी ह भौंह ल सिकोड़ के खड़े रिहिस। बाबू साहब ह बहुत देर बाद अपन मुड़ी ल उठा के किहिस-दस हजार म काम नइ होवय बल्कि शायद अउ बढ़ जही।

कल्याणी-दस दिन म पांच ले दस हजार होवत हे। अइसन म तो एक महीना म शायद एक लाख के नौबत आ जही।

उदयभानुलाल - त का करंव, जग हंसई ह तो घलो बने नोहे। कोनो किसम के कमी-बेसी होही ते लोगन मन कही, नाम बडे़ दरसन छोटे। फेर जब ओहा मोर से दहेज म एक पाई नइ लेवत हे त मोरो जिम्मेदारी बनथे कि बराती मन के स्वागत-सत्कार म कोनो किसम के कमी झन राहय।

कल्याणी - जब ले ब्रम्हा ह संसार के रचना करे हवय, तब ले आज तक कभू कोनो ह बराती मन ल खुश नइ कर सकय। उमन ल दोष निकाले के अउ चारी-निदा करे बर कोनो न कोनो ओखी मिल जथे। जेला घर म सुक्खा रोटी नइ मिलय वहू ह बारात म जा के शेखी बघारत रथे। तेल ह महमहावत नइहे, सस्ता साबुन ला कोन जनी कहां ले बिसाय हवय, कहार मन बात नइ सुनय, कण्डिल ह धुआं देवथ हे, कुर्सी मन म ढेकना हवय, खटिया रिच-रिच करत हवय, जनवास ह हवादार नइ हे। अइसने-अइसने हजारों शिकायत होवत रथे। उमन ल कहां तक रोकबे? कहूं ए मौका नइ मिलही त कोनो अऊ दुसर एब निकाल दिही। अरे भई ए तेल ह तो मटमटहीन मन बर लगाय के तेल आय, हमला तो सादा तेल चाही। महोदय ह ए साबुन ल नइ भेजे हे बल्कि अपन अमीरी के शेखी बघारत हवय। जानो मानो हमन साबुन देखेच्च नइ हन। ये कहार नो हे बल्कि यमदूत आय, जब देखबे त मुड़ी म सवार रहिथे। कण्डिल अइसे भेजे हे कि आँखी ह चमकथे, कहूं दस पांच दिन एकर अंजोर म बइठे बर पर जही ते आँखी फूट जाय। ए ह जनवासा नोहे बल्कि अभागा मन के भाग्य आय, जिहां चारो डाहर ले हवा आथे। मंय ह तो तोला फेर इही कहूं कि तंय ह बाराती मन के नखरा सहे के बिचार ल छोड़ दे।

उदयभानु - त आखिर तँय मोला का करे बर कहिथस?

कल्याणी - काहत तो हवं, पांच हजार ले जादा खरचा नइ करंव कहिके किरिया खा ले। घर म तो फूटहा कौड़ी नइ हे, करजा के ही तो भरोसा हे, त अतना करजा काबर लेवन जेला जिनगी भर छूट नइ पाबोन। आखिर मोर अऊ लइका मन तो घलो हे, उंकरो मन बर तो कुछु चाही।

उदयभानु - त आज मँय मर जथंव?

कल्याणी - जीयई-मरई के हाल ल कोनो नइ जानय।

उदयभानु - त तंय तो बइठे-बइठे इही गुनत रहिथस न?

कल्याणी - एमा खिसियाय के कोनो बात नइ हे। एक दिन तो सब ल मरना हे। कोई इहां अमर होके थोड़े आय हवय। आँखी मूंदे ले होवइया बूता ह थोरे टरही। मँय तो रोज देखथंव, बाप के देहान्त हो जथे, ओकर बाद ओकर लइका मन गली-गली धक्खा खावत किंजरत रहिथे। आदमी अइसन बूता करे काबर?

उदयभानु ल बात बानी लगगे ताहन किहिस - अच्छा त अब मंय समझ लेवंव कि मोर मरे के दिन लक्ठा गे हे, इही तोर भविष्यवाणी आय? सुहाग ले माईलोगन मन के जी ल उबत नइ सुने रेहेंव फेर आज एहा नवा बात जाने बर मिलिस। बिना गोसइन के कोनो सुख घलो होवत होही!

कल्याणी - तोला दुनिया के कोनो भी बात ल कहिबे त तँय ह जहर उगले बर धर लेथस। काबर कि तँय तो जानत हस कि येह कहां जाही, मँय कमा के लावत हंव उही रोटी ल खावत परे हे या फेर अऊ कुछु बात हे। जहां कुछु-कांही केहे ताहन खिसिया जथस, जानो मानो मंय घर के लइका अवं मोर नाता तो सिरिफ रोटी अउ कपड़ा लत्था ले हवय। जतने मँय दबथंव ओतने दबाथस। फोकट म माल उड़इया मन माल उड़ावय, कोनो बोले मत, दारु-मांस म रुपया लुटे, कोनो जुबान तक झन उलाय। ये सबो कांटा मन ल तो मोरे लइका मन बर बोंवत हवस।

उदयभानुलाल - त का मंय तोर गुलाम हंव?

कल्याणी - त का मंय तोर लइका अंव?

उदयभानु - अइसन पुरूष कोनो अउ होही, जउन ह माईलोगन मन के इशारा म नाचत होही।

कल्याणी - अइसनो माईलोगन कोनो होही, जउन ह पुरूष के ताना अउ मार ल सहत होही।

उदयभानु - मंय कमा के लाथंव, जइसन चाहंव खरचा कर सकथंव। बोले के कोनो ल अधिकार नइ हे।

कल्याणी - त आप अपन घर-कुरिया ल सम्हालंव। अइसन घर ल मोर दुरिया ले सलाम हे, जिहां कोनो पूछ परख नइ हे। घर म जतना तोर अधिकार हे, ओतना मोरो हे। एकर ले राई भर कम नही। कहूं तँय अपन मन के राजा अस, त महूं अपन मन के रानी अंव। तोर घर तोला मुबारक, मोर पेट बर रोटी के कमी नइ हे। तोर लइका आय, मारस चाहे बचावस। जब आंखी ले देखंहू नही तब पीरा घलो नइ होही। आंखी फूट गे, पीरा चले गे।

उदयभानु - तंय का समझथस कि तंय नइ सम्हालबे त का मोर घर नइ सम्हलही? मँय अइसन-अइसन दस घर सम्हाल सकथंव।

कल्याणी - कोन सम्हालही तेला देखथंव? कहू ‘आज ले महीना भर म ओहा माटी म नइ मिल जही, त कहिबे कोनो काहत रिहिसे।‘

        अइसे काहत-काहत कल्याणी के चेहरा ह तमतमागे, ओहा खिसिया के उठके मुहाटी डाहर चल दिस। 

   वकील साहब ह तो मुकदमा म तो खूब गलती निकालय फेर माईलोगन के स्वभाव के बारे म थोर बहुत जानकारी रिहिस हे। इही एक ठन अइसे विधा आय, जेला समझे बर आदमी ह डोकरा होय के बाद घलो कोरा रहि जथे। कहूं वोहा कल्याणी ल मना के हाथ ल धर के बइठार लेतिस, ते शायद ओहा रुक जतिस, फेर ओकर ले ए हो नइ सकिस, उल्टा जावत-जावत एक ठन अउ पीरा दे दिस।

बोलिस - मइके के घमण्ड होही?

कल्याणी ह मुहाटी करा रुक के अपन गोसइया ल गुर्री-गुर्री देखिस। देखे के बाद खिसिया के किहिस-मइके वाले मन मोर तकदीर के साथी नोहे अउ न मँंय अतना कूटही हंव कि मइके म खावत बइठे राहंव।

उदयभानु - त कहाँ जावत हवस?

कल्याणी - ए पूछइया तँय कोन होथस? भगवान के बनाय संसार म कतनो जीव बर जघा हे, त का मोर बर नइ होही?

अइसे कहिके कल्याणी ह कुरिया ले बाहिर निकलगे। अंगना म आके एक घांव आकाश डाहर देखथे, जानो-मानो चंदैनी मन ल बतावत हे कि ए घर ले मोला कतेक दुख दे के निकालत हवय। घर म सन्नाटा छा गे हे। दुनो बेटा के खटिया ओकरे कुरिया म राहय, ओहा अपन कुरिया म आके देखथे, त चन्द्रभानु ह सुते हे अउ नान्हे बेटा सूर्यभानु ह खटिया म उठ के बइठे हे। महतारी ल देख के तोतरावत पूछथे-तंय तहां तल दे रेहे दाई?

कल्याणी दुरिहा ले ही खड़े-खड़े बोलथे-कहूं नही बेटा, तोर ददा करा गे रेहेंव। 

सूर्यभानु - तँय तले गे रेहेस ताहन मोला अतेल्ला बिक्कट दर लागत रिहिस हे तंय ताबर तल दे रेहे, बता न?

अइसे कहिके लइका ह गोदी म बइठे बर अपन दुनो हाथ ल फैलइस। कल्याणी अब अपन आप ल नइ रोक सकिस। ममता के अमरित धारा ह दुखी हिरदे ल सराबोर कर दिस। हिरदे के कोंवर पौधा ह जउन ह क्रोध के ताव ले अइला गे रिहिसे ओह फेर हरियर होगे। आंखी डबडबा गे। ओहा लइका ल गोदी म उठा लिस ताहन छाती म चिपका के किहिस-तंय चिल्ला के बलाय काबर नही, बेटा?

सूर्यभानु - तिल्लावत तो रेहेंव फेर तेंह थुनत तहां रेहेस, बता अब कभू नइ दावस न?

कल्याणी - हव बेटा, अब नइ जावंव। 

अइसे कहिके कल्याणी ह सूर्यभानु ल धर के खटिया म लेट जथे। महतारी के हिरदे ले लिपटे के बाद लइका ह बेफिकर सुत गे। कल्याणी के मन उथप-पुथल होए बर धर लिस, पति के गोठ के सुरता आवय त मन होवय-घर ल छोड़ के भाग जवं फेर लइका मन के मुंहु ल देखय, त ममता जाग जय। लइका मन ल काकर सहारा छोड़ के जावंव? मोर बेटा मन ल कोन पोसही, इमन काकर हो के रहि? कोन इमन ल बिहनिया हलवा खवाही अउ इंकर संग सुतही अउ इंकर संगे संग उठही। मोर दुलरूवा, मंय तुमन ल छोड़ के नइ जावंव। तुंहर मन के सेती सब कुछ सहि लुहूं। मारपीट, चारी-निंदा कस कतनो अत्याचार ल तुंहर खातिर सहि लुहूं।

कल्याणी ह तो लइका मन के संग सुत गे, फेर बाबू साहब ल नींद नइ अइस। ओह ताना मरई ल बड़ मुश्किल से भुलावय। अरे एकर अइसन गरम मिजाज! जानो मानो मंय एकर गोसइन अवं। कुछु बोलना मुश्किल हे। अब का मंय येकर गुलाम होके रहंव। घर म येह अकेल्ला रिही, बाकि सब अपन पराया आय, सब ल निकाल दे जाय। मोर ले जलत रहिथे। ओह सोचथे कि मंय ह कइसनो करके मरँव ताहन अपन ह बिना पति के अकेल्ला मस्त आराम करय। दिल के बात ह मंुहु ले निकल ही जथे चाहे कोनो ह कतनो लुकावय। बहुत दिन होगे देखत हवं अइसने करु-करु सुनावत रथे। मइके के घमण्ड होही, फेर उहां कोनो नइ पूछय, अभी सब मान-सम्मान करथे। जब जाके घर म बइठ जही तब दार-पिसान के भाव मालूम हो जही। रोवत-रोवत आही। वाह रे घमण्ड! ओह सोचथे कि मंय ह अकेल्ला घर गृहस्थी चलाथंव। अभी चार दिन बर कोनो करा चल दुहूं, तब मालूम चल जही, सबो सेखी ह खत्म हो जही। एक घांव एकर घमण्ड ल टोर दंव। जरा विधवा (राड़ी) होय के मजा ल घलो बता दंव। कोन जनी एकर हिम्मत कइसे होथे कि जब देखबे तब मोला कोसत रहिथे। मोला अइसे लागथे, मोर मया म बंधाय नइ हे या ए समझत होही कि घर ले अतना चिपके हे कि एला कतनो दुत्कारहूं तभो ले अपन मुख टारे के नाम नइ लिही। इही बात आय न, फेर इहां ले चिपक के रहवइया जीव मंय नो हंव। जहन्नुम म जाये अइसन घर, जिहां अइसन जीव मन ले पाला परे। घर आय ते नरक आय? आदमी ह बाहिर ले थके-मांदे आथे त ओला घर म आराम मिलथे। मोर मृत्यु बर उपवास रहिथे। इही आय पच्चीस बच्छर के गृहस्थी जीवन के अन्त! लगथे, चल दंव। बाद म देखहूं जब इंकर सरबस घमण्ड ह धूर्रा म मिल जही अउ इंकर मिजाज ह जुड़ा जही ताहन लहुटहूं। चारे-पांचे दिन ह काफी होही। तब, तहूं सुरता करबे कि काकर पाला म परे रेहेंव। 

इही सोचत बाबू साहब ह उठिस, रेशमी चद्दर ल टोटा (गला) म अरोइस, थोर बहुत रुपया धरिस, अपन कार्ड ल हेर के दूसरा कुर्ता के थैली म रखिस, लउठी(छड़ी) उठइस ताहन चुपचाप बाहिर निकलगे। सब्बो नौकर-चाकर सुते रिहिन। कुकुर ह आरो(आहट) पाके चौंक गे ओकर बाद ओकर संग चल दिस।

फेर एला कोन जानत रिहिस हे कि ये सब्बो लीला ल ब्रम्हा ह अपन हाथ म रचे हे। जीवन रंगशाला के ओ निर्दयी सूत्रधार कोनो एकदम गुप्त जघा म बइठ के अपन जटिल खतरनाक खेल ल देखावत हवय। येला कोन जानत रिहिस हे कि नकली ह असली होय बर धर ले हे, अभिनय ह सिरतोन के रुप देखाने वाला हे।

अंधियारी ह अंजोरी ल हरा के ओकर उपर राज करे बर धर ले रिहिस हवय। उपद्रवी सेना ह प्रकृति म आतंक मचा चुके रिहिस हे। सुमति ह मुंहु लुकाये रिहिस हे अउ कुमति ह जीत के खुशी मनावत किंजरत रिहिस हे। जंगल म जानवर मन शिकार के खोज बर बिचार करत रिहिन अउ शहर म नर-पिशाच मन गली म घूमत रिहिन हवय।

बाबू उदयभानुलाल ह लुहलुगांवत गंगा डाहर जावत रिहिस हवय। ओह अपन कुर्ता ल घाट के तीर म मड़ा के पांच दिन बर मिर्जापुर जाय बर परन करे रिहिस हे। ओकर कुर्ता ल देख के गंगा म बुड़ गे होही कहिके भरोसा हो जही, कार्ड कुर्ता के थैली म रिहिस हवय। आरो (पता) लगाय बर कोनो ल दिक्कत नइ हो सकतिस। देखते-देखते खभर ह शहर भर म बगर जही। आठ बजत-बजत पूरा शहर हमर दुआरी म जमा हो जही, तब देखथंव देवी जी ह का करथे?

इही ल गुनत बाबू साहब ह गली म आगू डाहर जावत रिहिस हे, अचानक ओला अपन पीछू कोनो दूसर आदमी के आय के भुसभुस होइस, समझिस कोनो होही। आगू डाहर चल दिस फेर जउन गली म ओह मुड़य उही गली म ओ मनखे घलो मुड़य। तब कहूं जा के बाबू साहब ल शक होइस कि कोनो मोर पीछा करत हवय। अइसे लागत रिहिस हे कि एकर नीयत साफ नइ हे। ओह तुरते टार्च ल निकालिस ताहन ओकर अंजोर ले ओ मनखे ल देखिस। एक झिन हिस्ट-पुस्ट मनखे ह खांध म लउठी रख के आवत रिहिस हे। येहा शहर के नामी बदमाश रिहिस। तीन बच्छर पहिली ओकर उपर चोरी के मुकदमा चले रिहिस हे। उदयभानु ह ओ मुकदमा म सरकार कोती ले पैरवी करके ओ बदमाश ल तीन बच्छर के सजा देवाये रिहिस। उही समे ले ओह एकर खून के प्यासा होगे रिहिस हे। कालिच्च ओह जेल ले छूट के आय रिहिस। आज अचानक बाबू साहब ह रतिहा अकेल्ला दिखत हवय, तिही पाय के ओह सोचिस कि बदला चुकाये बर इही ह बढ़िया मौका आय। अइसन मौका शायद फेर कभू नइ मिलही। तुरते ओकर पीछा करे बर धर लिस, लउठी म मरइच्च रिहिस ठउंका ओइसने म बाबू साहब टार्च जलइस। बदमाश ह ठिठक के किहिस-कइसे बाबूजी मोला चिन्हथस? मैं मतई अंव बाबू साहब ह खिसिया के किहिस-तेंहा मोर पीछू-पीछू काबर आवत हस?

मतई - काबर, कोनो ल रद्दा म रेंगे बर मना हे का? ए गली ह तोर ददा के आय?

बाबू साहब ह अपन जवानी म कुश्ती लड़े रिहिस हे, अभी घलो हट्टा कट्टा मनखे रिहिस। दिल के घलो कमजोर नइ रिहिस। छड़ी (लउठी) ल संभाल के किहिस-अभी तोर मन ह नइ भरे हे तइसे लागथे। ए दरी सात साल बर जाबे।

मतई - मंय सात बच्छर बर जावंव चाहे चौदह बच्छर बर फेर तोला जिन्दा नइ छोड़ंव। हां कहूं तैं मोर गोड़ म गिरके किरिया खाबे कि अब कोनो ल सजा नइ करवावंव, त भले छोड़ दुहूं। बोल मंजूर हे?

उदयभानु - तोर रई (सामत) तो नइ आ गे हे?

मतई - रई मोर नही तोर आय हे, बोल खावत हस किरिया-एक!

उदयभानु - तैं हटबे ते नइ हटस कि पुलिस ल बलावंव।

मतई - दू!

उदयभानु - (गरज के) हट जा मतई, मोर आघु ले। 

मतई - तीन!

मुंह ले तीन काहते-काहत बाबू साहब के मुड़ी ल लउठी म अइसे जोर से मारिस कि ओह बेहोश हो के गिर गे। मुंहु ले बस अतने निकलिस अरेद ददा रे! मार डरिस!

मतई ह तीर म आके देखिस त मुड़ी ह फूट गे रिहिस हे अउ खून के धार बोहावत रिहिस हे। नाड़ी जुड़ा गे रिहिस। समझगे काम तमाम होगे। ओह कलाई ले सोना के घड़ी ल खोल लिस, कुर्ता ले सोना के बटन ल निकाल लिस, अँगरी ले मुंदरी ल उतारे के बाद अपन रद्दा चल दिस, जानो मानो कुछु होयेच्च नइ हे। हां, अतना दया जरुर करिस कि लाश ल रद्दा ले घसीट के किनारा म रख दिस। हाय बिचारा ह का सोच के चले रिहिस होही अउ का होगे। जिनगी, तोर ले कमजोर घलो ए दुनिया म अऊ कोनो जिनिस हे? का ओह ओ दीया बरोबर जल्दी बुतइया नोहे। जउन ह हवा के एक झोंका म बुझा जथे। पानी के एक ठन बुलबुला ल देखथौं, जिनगी के कोनो ठिकाना नइ हे। सांस के का भरोसा अउ इही मरइया शरीर बर इच्छा के कतेक अकन महल बनावत रहिथन। नइ जानन, खाल्हे जवइया सांस ह ऊपर आही कि नही, फेर अतेक दूरिहा के सोचथन जानो-मानो हम्मन अमर हवन।


तीन


बिहाव के दुख अउ अनाथ मन के रोना सुना के पाठक मन के दिल ल नइ दुखावंव। जेकर उपर आथे ओह रोथे, विलाप करथे, पटकनी खाथे। येहा कोनो नवा बात तो नोहे। हां यदि आप चाहव ते कल्याणी के मानसिक पीड़ा के अनुमान लगा सकथव, जउन ओला ए विचार ले होवत रिहिस हे कि मंय अपन गोसइया के हत्यारिन अवं। ओ वाक्य जउन ह गुस्सा म अपने अपन मुंहु ले निकलगे रिहिस हे, अब ओह ओकर हिरदे ल तीर कस बेधत रिहिस हे। कहूं पति ह दुख-तकलीफ पावत ओकर गोदी म परान ल तियागे रहितिस, ते ओला संतोष होतिस कि मंय गोसइन के धरम ल निभाये हवं कहिके। दुखी हिरदे ल एकर ले जादा सुकुन अउ कोनो बात ले नइ होतिस। ओला ए विचार ले कतना संतोष मिलतिस कि मोर स्वामी ह मोर ले खुश हो के गे हे, आखिरी समे तक ओकर हिरदे म मोर बर मया बने रिहिस। कल्याणी ल एकर संतोष नइ रिहिस। ओहा रहि-रहि के गुनत रहय-हां! मोर पच्चीस बच्छर के तपस्यिा बेकार होगे। मंख आखिरी बखत म अपन पति परमेश्वर के प्रेम ले दूरबाहिर (वंचित) हो गेंव। कहूं मेंह अइसन करु बात नइ केहे रहितेंव ते ओहा कभू रात म अकेल्ला नइ जाय रहितिस। कोन जनी ओकर मन म का का बिचार अइस होही? ओकर मन के भाव ल गुन-गुन के अपन अपराध ल बढ़ा-चढ़ा के अपन आप ल आठो पहर कोसत रहय। जउन लइका मन उपर अपन परान ले जादा मया करय अब उही लइका मन के थोथना देखे के ओकर मन नइ करय। इंकरे मन के सेती मोला अपन स्वामी ले दुश्मनी मोल ले बर परिस। इही मन मोर दुश्मन आय। जिंहा आठो पहर कचहरी कस लागत रिहिस उंहा अब धूर्रा उड़ात हे। ओ मेला ही उसरगे। जब खिलौनावाला ही नइ रिहिस त खवइया मन कइसे रेहे रहितिस। धीरे-धीरे एक महीना के भीतरे-भीतर सबो सगा-सोदर मन झर गे। जउन मन दावा करय कि हम पानी के जघा खून बोहइया अन, वहू मन सरपट्टा अइसे भागिन कि पीछू डाहर लहूट के नइ देखिन। जउन लइका मन ल देख के मया करे के मन करय उंकर चेहरा उपर माछी झूमत रहय। कोन जनी ओ चमक कहां गे?

धीरे-धीरे दुख ह कम होवत गिस ताहन निर्मला के बिहाव के समस्यिा खड़ा होगे। कुछ लोगन मन सलाह दिन कि बिहाव ल ए बच्छर रोक दिये जाये, फेर कल्याणी किहिस-अतेक अकन तैयारी के बाद बिहाव ल रोक देबोन त सब करे-धरे माटी म मिल जही ताहन पउर साल फेर इही तैयारी करे बर परही, जेकर कोनो आशा नइ हे। बिहाव करना ही अच्छा हे। जादा कुछ लेना-देना तो है नही। बाराती मन के सेवा-सत्कार बर बहुत अकन सामान हो चुके हे, देरी करे ले घाटा ही घाटा हे। एकर बाद महाशय भालचन्द्र ल शोक-सूचना के संग यहू खभर भेजवा दे गिस। कल्याणी अपन चिट्ठी म लिखिस-ए अनाथिन उपर दया करके मोर डूबत डोंगा ल पार नहकावव। स्वामी जी के मन म बड़े-बड़े इच्छा रिहिस फेर भगवान ल कुछ अऊ मंजूर रिहिस हे। आज मोर लाज ह आपके हाथ म हे। बेटी आपके हो चुके हे। मंय लोगन मन के सेवा सत्कार करई ल अपन सौभाग्य समझथंव, तभो ले कहूं एमा कोनो किसम के कमी होही, कुछु गलती होही त मोर दशा उपर दया करके माफी दे के किरपा करहू। मोला भरोसा हे कि आप ए अनाथिन के फधित्ता नइ होवन दुहू।

कल्याणी ह ए चिट्ठी ल डाक म न पठो के पुरोहित ल किहिस-आप ल थोकिन तकलीफ तो होही फेर आप खुद जाके ए चिट्ठी ल दे के मोर कोती ले बिनती करबे कि जतना कम आदमी आही, ओतने बढ़िया रही। इहां कोनो व्यवस्था करइया नइ हे।

पुरोहित ह ए खबर ल धर के तिहान दिन (तीसरे दिन) लखनऊ पहुंचिस। संझा के बेरा रिहिस। बाबू भालचन्द्र ह बइठक खोली के आघु आरामी कुर्सी म बइठे-बइठे हुक्का पीयत रिहिस हे। बहुत मोठ-डाठ अउ ऊंच पूर मनखे रिहिस हे। अइसे लागे कोनो बिलवा देव आय या फेर कोनो बिरबिट करिया मनखे ल अफ्रीका ले पकड़ के लाने होही। गोड़ ले मुड़ी तक एके रंग-करियच्च-करिया। चेहरा अतना करिया रिहिस हे कि पतच्च नइ चलय कि माथा के अंत कहां ले होवत हे अउ मुड़ी के शुरुआत कहां ले होवत हे। बस कोइला के एक ठन सजीव मूर्ति रिहिस। ओला बिक्कट गर्मी लगय। दु झिन मनखे ह खड़े-खड़े पंखा झेलत रिहिन हे, ओकर बाद घलो पछीना ह तरतीर-तरतीर बोहावत रिहिस हे। थम्हे के नाम नइ लेवय। आप आबकारी विभाग म बड़े पद म रेहेव। पांच सौ रुपिया वेतन मिलत रिहिस। ठेकादार मन ले खूब घूस लेवय। ठेकादार मन दारु के नाम म पानी ल बेचय, दुकान ल दिन रात खुल्ला रखय, आप ल सिरिफ खुश रखना काफी रिहिस। सब्बो कानून आपके खुसी रिहिस। अतेक डरावना भयंकर मूर्ति रिहिस कि अंजोरी रात म घलो लोगन ओला देख के अचानक चाैंक जावत रिहिन। लइका अउ माईलोगन म नही बल्कि बेटा जात मन घलो डर्रा जावय। अंजोरी रात एकर सेती केहे गिस कि अंधियारी रात म तो ओला कोनो नइ देख सकय। काबर कि ओकर करिया रंग ह अंधियार संग मिंझर जात रिहिस हे। ओकर आंखी के रंग भर ह लाल रिहिसे जइसे पक्का दरूवहा ह चार-पांच घांव दारु पीथे, ओइसने आपो चार-पांच घांव दारु पीयय। फोकट के दारु मरत ले पीयय फेर आप तो दारु के ही अधिकारी रेहेव, जतना चाहे, पी लव, रोकने वाला कोनो नइ रिहिस। जब प्यासा लगे त पानी के बदला म दारु पीयय। जइसे कुछ रंग मन म आपसी मेल मिलाप हे ओइसने कुछ रंग मन म एक-दुसर मन के विरोध म हे। लाली रंग के जुड़े ले करिया रंग ह अऊ भयंकर हो जथे।

बाबू साहब ह पंड़ित जी ल देखते भार कुर्सी ले उठके किहिस-आहह...! आप अव? आव-आव। धन्य भाग। अरे कोनो हव। कहां चले गेव सब के सब, झगडू, गुरदीन, छकौड़ी, भवानी, रामगुलाल, कोनो हव? का सब-के-सब मर गे हव। आवव रामगुलाल, भवानी छकौड़ी, गुरदीन, झगडू। कोनो नइ हुंकव भूंकव, सब झिन मर गे हव। दर्जन भर मनखे फेर मौका म काकरो थोथना नजर नइ आवत हवय, कोन जनी सब कहां गायब हो गे हे। पहुना बर कुर्सी लावव।

ये पांचो झिन ल घेरी-बेरी बलइस, फेर ए नइ होइस कि पंखा धुंकइया दुनो मनखे मे से कोनो ल कुर्सी लाने बर कहि देतिस। तीन-चार मिनट बाद एक झिन कनवा मनखे ह खांसत-खांसत आके किहिस-सरकार, अतना म मंय नौकरी नइ कर सकव। मांगत-मांगत बेसरम हो गेन।

भालचन्द्र - चिल्ला झन, जा के कुर्सी लान। जब कुछु बूता तियारबे ताहन रोय बर धर लेथस। कहो पंडित जी, उहां सब बने-बने हवे न?

मोटेराम - का बने-बने ल काहौं बाबू जी, अब ओ कुशल कहां। सब खुशी ह माटी म मिंझर गे हे।

अतने म कहार ह आके एक ठन टूटहा लकड़ी के सन्दूक लान के रख दिस अउ किहिस- कुर्सी टेबल ह मोर ले नइ उठत हे। पंडित जी ह लजावत डर्रावत-डर्रावत ओमा बइठिस कहूं टूट झन जाय कहिके ताहन कल्याणी के चिट्ठी ल बाबू साहब के हाथ म दे दिस।

भालचन्द्र - अब अऊ कइसन माटी म मिलही? एकर ले बड़का अऊ का संकट आ जाही?

बाबू उदयभानुलाल तो मोर जुन्ना संगवारी रिहिस। मनखे नही, हीरा रिहिस। बड़ा दिलदार अउ बिक्कट हिम्मतवाला रिहिस (आंखी पोंछ के) मोर तो जइसे जेउनी हाथ कटागे। मोर उपर भरोसा कर, जब ले ये खबर ल सुने हवं, तब ले मोर आंखी म अंधियारी छा गे हे। खाय बर बइठथंव त मुंहु म कौरा नइ जावय। ओकर चेहरा ह मोर आंखी म झूलत रहिथे। भात ल जूठा करके उठ जथंव। कोनो काम बूता म मन नइ लगय। भाई के मरे के दुख घलो एकर ले कम रिहिस हवय। आदमी नही हीरा रिहिस।

मोटेराम - सरकार, नगर म अब अइसन कोनो सज्जन आदमी नइ बांचिस।

भालचन्द्र - मंय खूब जानथंव, पंडित जी आप मोला का बतावत हव। अइसन मनखे लाख-दू-लाख म एकाद झिन रहिथे। जतना मंय ओला जानत रेहेंव ओतना कोनो दुसर नइ जान सकय। दुए-तीन घांव के मुलाकात म मंय ओकर भक्त होगे रहेंव अउ आखिरी सांस तक रहूं। आप समधिन ल कहि दुहू-मंय अंतस ले बिक्कट दुखी हवं।

मोटेराम - आप ले अइसने आशा रिहिस। आप जइसे सज्जन मनखे के दर्शन बहुत कम होथे। नही ते आज के समे म कोन ह अपन बेटा के बिहाव बिना दहेज के करथे।

भालचन्द्र - पंडित जी, दहेज के गोठ बात अइसन सज्जन पुरुष ले नइ करे जाय। उंकर ले सम्बन्ध होवई ह लाखो रुपिया के बरोबर आय। मंय तो इही ल अपन अहोभाग्य समझथंव। हव! कतना दयालु आत्मा रिहिस, रुपया ल तो ओह कुछु समझबे नइ करिस, तिनका के बरोबर घलो परवाह नइ करिस। बेकार रिवाज आय, बेहद बेकार। मोर बस चले, ते दहेज लेवइया अउ देवइया दुनो ल गोली मार दँव ताहन भले मोला फांसी काबर झन हो जाय। आप लड़का के बिहाव करथव कि ओला बेचथव? कहूं तोला लड़का के बिहाव म दिल खोल के खरचा करना हे, त शौक से करौ, फेर कुछु तो करौं अपन बल म। ए का बात होइस कि कन्या के पिता जी के गला ल रेतौ। नीचता आय, घोर नीचता। मोर बस चले ते अइसन लुच्चा मन ल गोली मार दवं।

मोटेराम - धन्य हो सरकार! भगवान आप ल बिक्कट बुद्धि दे हे। येह धरम के परताप आय। मालकिन के इच्छा हे कि बिहाव के तिथि ह उही रहय बाकि सब्बो ल तो चिट्ठी म लिख दे हे। अब तो आपे उबारहू त हम्मन उबर सकथन। अइसे तो बारात म जतना बाराती मन आही, उंकर सेवा सत्कार तो हम्मन करबोन ही फेर परिस्थिति ह अब बहुत बदल गेहे सरकार, कोनो करइया-धरइया नइ हे। बस अइसे बात करव कि वकील साहब के नाम म कोनो दाग झन लगै।

भालचन्द्र ह एक मिनट तक आंखी मूंद के बइठे रिहिस ताहन जोर से सांस खींच के बोलिस-ईश्वर ल मंजूर ही नइ रिहिस कि ओ लक्ष्मी ह मोर घर आतिस, नही ते का ए बज्र गिरतिस? सब्बो सपना ह माटी म मिल गे। बिक्कट खुश रेहेंव कि ओ शुभ अवसर तिरियावत हवय कहिके, फेर कोन जानत रिहिस हे कि ईश्वर के दरबार म कुछु अउ षड़यंत्र रचे जावत हे। मरइया के सुरता ह रोय बर काफी हे। ओला सोचके दुख ह अऊ भारी हो जही। ओइसन दशा म कोन जनी का कर बइठंव। एला गुण समझौ या फेर  दोष, एक घांव कहूं काकरो ले दोस्ती होगे ताहन ओकर सुरता ह दिमाग ले हटबे नइ करै। अभी तो बस अतने भर हे कि ओकर चेहरा ह आंखी के आघू म नाचत रहिथे। फेर कहूं ओ नोनी ह घर म आ गे ताहन मोर जिन्दा रहवई ह भारी मुश्किल हो जही। सिरतोन काहत हवं, रोवत-रोवत मोर आंखी फूट जही। जानत हवं रोना-धोना सब व्यर्थ हे। जउन ह मरगे हे ओह लहूट के तो नइ आ सकय। धीरज रखे के सिवाय अऊ कोनो उपाय नइ हे फेर मंय मजबूर हवं। ओ अनाथ नोनी ल देख के मोर हिरदे ह फट जही। 

मोटेराम - अइसन झन काह सरकार। वकील साहब नइ हे त का होइस, आप तो हव। अब आपे ओकर पिता बरोबर अव। ओह अब वकील साहब के बेटी नही बल्कि आपके बेटी आय। आपके हिरदे के भाव ल तो कोनो जानै नही, लोगन इही समझही, वकील साहब के देहान्त होय के बाद आप अपन जुबान ले मुकर देव। येमा आपके बदनामी होही। आप अपन चित्त (मन) ल समझावव अउ हंसी-खुशी कन्या के पाणिग्रहण करा लेवव। हाथी मरही तभो ले नौ लाख के। कतनो संकट आय हे तभो ले मालकिन ह आप मन के सेवा-सत्कार म कोनो किसम के कभी नइ करै।

बाबू साहब ह समझगे कि पंडित मोटेराम ह कोरा पोथी भर के पंडित नइ रिहिस, बल्कि व्यवहार नीति म घलो चतुर रिहिस हे। बाबू साहब किहिस-पंडित जी, किरिया खा के काहत हौं, मोला ओ लड़की ले जतना प्रेम हे, ओतना अपन सगे लड़की ले घलो नइ हे फेर जब ईश्वर ल मंजूर नइ हे, त मंय का कर सकथौं? ओ मुत्यु ह तो एक किसम के अमंगल के सूचना आय, जउन ह विधाता कोती ले हम्मन ल मिले हे। येह कोनो अवइया मुसीबत के आकाशवाणी आय। विधाता साफ-साफ काहत हे कि ये बिहाव ह मंगलमय नइ होही। अइसन दशा म येह कहां तक उचित हे। आप तो गुनी मनखे अव। गुनौ, जउन बूता के शुरुआत अमंगल ले होही, ओकर समापन घलो अमंगल ले ही हो सकथे। कहूँ जान बूझ के माछी ल खाय नइ जाय। समधिन ल समझा के कहि देबे मंय ओकर बिनती ल माने बर तैयार हवं, फेर एकर परिणाम अच्छा नइ होही। स्वार्थ के खातिर संतान संग अइसन अन्याय नइ कर सकंव। 

ए तर्क ह पंडित जी ल निरुत्तर कर दिस। फरियादी ह अइसे तीर छोडे़ रिहिस जेकर काट नइ रिहिस। बैरी ह ओकरे हथियार ले ओकर उपर वार करे रिहिस हे जेकर कोनो जवाब नइ रिहिस। ओह कोनो जवाब सोचत रिहिस हे कि बाबू साहब ह फेर नौकर मन ल बुलाना शुरु कर दिस-अरे, तुमन फेर गायब हो गेेव-झगडू, छकौड़ी, भवानी, गुरुदीन, रामगुलाम! कोनो नइ सुनव सबके सब मर गेव। पंडित जी बर पानी-कांजी के चिन्ता-फिकर हे कि नही? कोन जनी इमन ल कोन समझाये। इमन ल कतनो समझाबे तभो समझे नही। देखत हवं कि एक झिन महाशय ह दुरिहा ले थके-मांदे चले आवत हे, फेर कोनो ल थोरको परवाह नइ हे। लाओ पानी-वानी ला के रखो। पंडित जी, आप बर सरबत बनवावं ते फल-फूल अउ मिठाई मंगवा दवं।

मोटाराम जी ह मिठाई बर कुछु परहेज नइ करय। ओकर मानना रिहिस कि घी के सब्बो जिनिस ह पवित्र हो जथे। बेसन के लाडू ह ओला बिक्कट पसंद रिहिस, फेर सरबत ह ओला रुचे नही। पानी ले पेट भरई ह ओकर नियम के खिलाफ रिहिस। लजावत किहिस-सरबत पीये के तो मोर आदत नइ हे, मिठाई खा लुहूं।

भालचन्द्र - फल-फूल घलो मंगवा दौं।

मोटेराम - फल-फूल खाय के तो मोर मन नइ हे।

भालचन्द्र - सही बात तो इही आय। छुआ-छूत सब ढकोसला आय। मंय खुदे नइ मानव। अरे अभी तक कोनो नइ आये हव? छकौड़ी, भवानी, गुरुदीन, रामगुलाम, कोनो तो बोलो!

अभी घलो उही डोकरा ह खांसत-खांसत आके खड़ा हो के किहिस-सरकार मोर इच्छा खतम होगे। अइसन नौकरी मोर ले नइ होवय। कहां ले दउंड़व, दउड़त-दउड़त गोड़ पिरावत हे। 

भालचन्द्र - बूता कुछु करव या झन करंव फेर इच्छा पहिली पूरा होना चाही। दिन भर बइठे-बइठे खांसत राह, तोर इच्छा तो बाढ़त हवय। जाके बाजार ले एक आना के ताजा मिठाई लान। दउंड़त-दउंड़त जा।

कहार ल तियार के बाबू साहब ह घर म जा के अपन गोसइन ल किहिस-उहां ले एक झिन पंडित आय हे। ए चिट्ठी धर के लाये हे, थोकिन पढ़ तो। 

गोसइन के नाम रंगीली बाई रिहिस। गोरी-नारी हसमुख नारी रिहिस। रंग रुप अउ यौवन ह ढले बर धर ले रिहिस, कोनो प्रेमी संगवारी कस मचल-मचल के तीस बच्छर तक जेकर गला म घंटी कस बंधाये रिहिस ओला छोड़त नइ बनत रिहिस। 

रंगीली बाई बइठे-बइठे पान लगावत रिहिसे। सुन के किहिस-कहि दे हवं न, हमला उहां बिहाव करना मंजूर नइ हे। 

भालचन्द्र - हव, कहि ते दे हवं, फेर संकोच के मारे मुहुं ले बोली नइ निकलत रिहिस। झूठ-मूठ के होरा भूंजे बर परिस। 

श्रंगोली बाई - साफ-साफ गोठियाये बर का के संकोच? हमर इच्छा, नइ करन। काकरो कर ले कुछु तो ले नइ हन? जब दुसर जघा दस हजार नगदी मिलत हे त, इहां काबर करव? ओकर लड़की ह कोनो सोना के थोरे आय। वकील साहब जीयत रहितीस ते लजावत-लजावत पन्द्रह-बीस हजार दे देतिस। अब उहां का रखे हे?

भालचन्द्र - एक घांव जुबान देके मुकर जाना बन बात नो हे। कोनो कुछु भले मत कहे, फेर बदनामी होय बिना नइ रहय फेर तोर जिद के आघू म मजबूर हवं।

रंगीली बाई पान खाके चिट्ठी खोल के पढे़ बर धरिस। हिन्दी के अभ्यास तो बाबू साहब ल थोरको नइ रिहिस ओइसे रंगीली बाई घलो शायद ही कभू किताब पढ़त रिहिस होही फेर एकाद कनी चिट्ठी-उट्ठी पढ़ लेवत रिहिस। चिट्ठी ल पढ़ते-पढ़त आँखी ह डबडबा गे ताहन चिट्ठी ल पढ़े बर बंद कर दिस, ओकर आंखी ले आंसू बोहावत रिहिस, एक-एक शब्द ह करुणा के रस म डूबे रिहिस। एक-एक अक्षर ले गरीबी टपकत रिहिस। रंगीली बाई के कठोरता ह पथरा ले नही बल्कि मोम ले बने रिहिस, जउन ह एके आंच म पिघल जथे। कल्याणी के दुख भरे शब्द ह रंगीली बाई के स्वार्थ म समाय हिरदे ल पिघला दिस। भरभराये स्वर म बोलिस-अभी ब्राम्हण बइठे हे न?

भालचन्द्र ह अपन गोसइन के आंसू ल देख-देख के दुखी होवत रिहिस हे। अपने उपर झल्लावत रिहिस हे कि फोकट येला चिट्ठी ल देखायेंव। एकर जरुरत का रिहिस ? अतेक बड़े गलती एकर ले कभू नइ होय रिहिस हे। शक के भाव ले बोलिस शायद बइठे होही मंय ह तो जाये बर कहि दे रेहेंव। रंगीली ह खिड़की ल झांक के देखिस। पंडिट मोटेराम ह बगुला कस धियान लगाये बाजार डाहर के रद्दा ल देखत रिहिस हे। लालसा म व्याकुल हो के कभू येह विचार बदले, त कभू ओह। एक आना के मिठई ह तो आशा के कनिहा ल टोर दे रिहिस वहू म अतना देरी, बड़ दुखदायी दशा रिहिस। ओला देख के रंगीली बाई ह किहिस-हवे हवे, अभी हवे, जा के कहि दव हम बिहाव करिंगे, जरुर करिंगे। बिचारी बिक्कट मुसीबत म हे।

भालचन्द्र - तेह कभू-कभू लइका मन कस गोठियाय बर धर लेथस, अभी ओला कहिके आये हवं कि मोला अभी बिहाव करई ह मंजूर नइ हे। बड़े जन लम्बा-चौड़ा भूमिका बांधे बर परिस फेर अब जाके ये संदेश ल कहूं, त ओकर दिल म का गुजरही, कुछु सोचे हस? येह बर-बिहाव के मामला आय। येहा लइका मनके खेल नो हे, अभी एक बात केहे ताहन मुकर दे। एहा सज्जन आदमी के बात नो हे, दिल्लगी होइस। 

रंगीली बाई - ले रे भई, तैं अपन मुंह ले कुछु झन काह, ओ पंडित ल मोर करा भेज दे, मंय अइसे समझा दुहूं कि तोरो बात घलो रहि जय अउ मोरो बात ह रहि जय। येमा तो तोला कोनो आपत्ति नइ होही। 

भालचन्द्र - तैंह अपन सिवाय पूरा दुनिया ल बुद्धु समझथस। तंय काहस या मैं काहव, बात तो एके आय न। जउन बात तय होगे हे, मने होगे हे, अब मंय ओला फेर नइ उठाना चाहत हवं। तिही ह तो घेरी-बेरी काहस हस कि मंय उहां नइ करंव कहिके। तोर सेती तो मोला बोले बर परिस। अब तंय फेर रंग बदलत हस। येह तो मोर छाती उपर मूंग दरई आय। आखिर कुछ तो मोर मान-अपमान के खियाल रखना चाही। 

रंगीली बाई - ओला का मालूम रिहिस कि विधवा के दशा ह अतेक खराब होगे हे। तिही ह तो केहे रेहे कि ओ ह अपन गोसइया के सबो पूंजी ल लुका के रखे हे अउ गरीबी के ढोंग रचके अपन काम निकलवाना चाहत हवे। बहुत हुशियार माईलोगन आय। तंय ह जउन केहे, उही ल मंय मान लेंव। काकरो भलाई करके बुराई करे म तो संकोच लागबे करही। कहूं तंय ह ‘हव कहिके आय रहितेस अउ मंय ह नही‘ देतेंव त तोर संकोच ह जायज रिहिस हवे। ’नही’ करे के बाद ‘हा’ कहई ह तो अपन बड़प्पन आय।

भालचन्द्र - तोला बड़प्पन लागत होही, फेर मोला तो लुच्चापन ही लागत हवे फेर तंय ह ये कइसे मान लेस कि वकीलाइन के विषय म जउन बात केहे रेहेंव ओह सब लबारी आय! का ओ चिट्ठी देखके? तंय ह जइसन सरल हवस, ओइसने दुसर मन ल घलो सरल समझथस।

रंगीली बाई - ए चिट्ठी ह बनावटी नइ लगै। बनावटी बात ह दिल म नइ चुभे। ओमा बनावटी के गंध जरुर रहिथे। 

भालचन्द्र - बनावट के बात तो अइसे चुभथेे कि ओकर आघू म सिरतोन ह घलो फीक्का लागथे। ए किस्सा कहानी लिखइया मन के जिंकर किताब ल पढ़-पढ़ के तंय घण्टो रोथस, का उमन सिरतोन बात ल लिखथे? सरासर लबारी के पुल बांधथे। यहू ह एक ठिन कला आय।

रंगीली बाई - कइसे जी, तंय मुही ल बुद्धू बनाथस, दाई करा पेट लुकाथस? मंय तोर बात ल मान जथंव ताहन तंय समझथस येला चकमा दे दे हवं। फेर मंय तोर एक-एक ठन नस ल जानथंव। तैं अपन गलती ल मोर मुड़ी म थोप के बेदाग बचना चाहत हस। बोल, मंय कुछु लबारी मारत हवं का। जब वकील साहब ह जीयत रिहिस, तब का तंय सोचे रेहे कि रुकावट के जरुरत ही का हे, ओह खुदे जतना उचित समझही, दे दिही, बल्कि बिना ठहराव के तो अउ जादा मिले के आशा रिहिस हवे। अब जब वकील साहब के देहांत होगे, तब एती-ओती के गोठ गोठियाये बर धर लेस। येह भलमनसी नही, बल्कि छोटेपन आय, एकरो इलजाम घलो तोर मुड़ी म हवय। अब मैं बर बिहाव के तीर घलो नइ जावंव। तोर जइसन इच्छा हवय, कर। ढोंगी मनखे ले मोला चिढ़ हवय। जउन बात हे ओला साफ-साफ कहना चाही, बने रहय चाहे गिनहा। हाथी के दांत खाये के अउ देखाये के दांत अलग वाले नीति म चलना तोला शोभा नइ देवय। बोलव, अब घलो उहां बिहाव करबे कि नही?

भालचन्द्र - जब मंय बेईमान, धोखादार अउ लबरा अँव, त मोर ले पूछथस काबर? फेर खूब पहिचानथस आदमी मन ल। माने बर परही, तोर सूझबूझ के कोनो जवाब नइ हे।

रंगीली बाई - बड़ लजकुरहा तो हवस, फेर अभी घलव नइ लजावत हवस। ईमान से बता, मंय ह बात ल परख ले रेहेंव कि नही?

भालचन्द्र - ए बात ल छोड़न, कोनो दुसर माईलोगन होतिस ते पुरुष मन ल चिन्ह डरतिस। अब तक मंय इही समझत रेहेंव कि माईलोगन मन के नजर ह बड़ पारखी होवत होही कहिके, फेर आज मोर भरोसा उठ गे ओकर बाद तो महात्मा मन माईलोगन मन के बारे म जउन बात लिखे हवय, ओला माने बर परिस। 

रंगीली बाई - थोकिन अपन थोथना ल आईना म देख के आ, तोला मोर किरिया हवे। थोकिन देख ले, कतना झेंपे हस।

भालचन्द्र - सच कहिबे कतना झेंपे हवं? 

रंगीली बाई - अइसे जतना कोनो भलमानस चोर ह चोरी खुले ले झेंपथे।

भालचन्द्र - खैर, मंय झेंपे ही सही हवं, फेर बिहाव उहां नइ होवय।

रंगीली बाई - मोर बिचार से, तंय जिहां चाहस उहां कर। कइसे, भुवन ले एक घांव काबर पूछ नइ लेते।

भालचन्द्र - ठीक हे, पहिली जउन बात केहे रेहेंव उही फैसला म अडिग हवं।

रंगीली बाई - एको कनिक इशारा झन करबे।

भालचन्द्र - तंय का समझे हस, मंय ओकर डाहर देखंव घलो नही।

संयोग ले ठउंका ओतके बखत भुवनमोहन घलो आ गे। अइसन सुग्घर, हिष्ट-पुष्ट लड़का कालेज मन म बहुत कम देखे बर मिलथे। बिल्कुल महतारी उपर गे रिहिस हवय। ओइसने गोरा-नारा, ओइसने गुलाब के पत्ता कस ओठ, ओइसने चाकर माथ, ओइसने बड़े-बड़े आंखी, बाप कस ऊंच पूर रिहिस। सूट-बूट अउ टोपी म खूब फभत रिहिस हवय। हाथ म एक ठन हाकी के स्टीक रिहिस। चाल म जवानी के रौब रिहिस, आँखी म आत्म गौरव।

रंगीली बाई - आज तंय ह बिक्कट देरी कर देस? ये देख तोर ससुरार ले चिट्ठी आये हवय। तोर सास ह लिखे हे। साफ-साफ बता दे, अभी बिहनिया के बेरा आय। तोला उंहा बिहाव करना हे कि नही?

भुवनमोहन - बिहाव तो करना चाही दाई, फेर मंय नइ करंव।

रंगीली बाई - काबर?

भुवनमोहन - कहूं अइसे जघा बिहाव करवाव जिंहा ले बिक्कट अकन रुपिया मिलै। जादा न सही फेर एक लाख के तो बण्डल होवय। उहां अब का रखे हवय। वकील साहब तो रिहिस नही, डोकरी करा अब का होही? 

रंगीली बाई - तोला अइसन गोठ गोठियावत लाज नइ आवय।

भुवनमोहन - येमा लाज के का बात ए? रुपया कोन ल नइ चाबे। लाख रुपया तो मंय जिनगी भर म जमा नइ कर पाहूं। ए साल पास घलो हो जहूं, तभो ले पांच बच्छर तक रुपया के सकल नइ देख पाहूं। ओकर बाद सौ-दू सौ रुपया महीना कमाये बर धरहूं पांच-छै साल तक पहुंचत-पहंुचत उमर के तीन चौथाई भाग ह सिरा जही। रुपया जमा करे के नौबत ही नइ आही। दुनिया के कुछ मजा उड़ा नइ पाहूं। कोनो धनवान के बेटी संग बिहाव हो जतिस ते, जिनगी ह चैन से कटतिस। मंय जादा नइ चाहंव, बस एक लाख रुपया हो या फिर कोनो जमीन जायदाद वाली रानी मिल जतिस, जेकर एके झिन लड़की हो। 

रंगीली बाई - चाहे औरत कइसनो मिलय।

भुवनमोहन - धन ह सबो एब ल छुपा देथे। मोला ओह कतनो गारी बखाना दिही तभो ले मंय ओला कुछु नइ काहंव, मुड़गड़ा बन के रहूं। दुहानू गाय के लात ह कोन ल बेकार लगथे?

बाबू साहब ह संहरावत किहिस-मोला उंकर मन उपर दया आवत हवय अउ मोला अब्बड़ दुख हवय कि भगवान उमन ल संकट म डारे हवय तेकरे सेती दिमाक ले काम ले बर परही। हम कतनो गरीबी हालत म जावन फेर बाराती मन ह तो बिक्कट अकन जाही। उहां भोजन के घलो ठिकाना नइ दिखत हवय। देखके लोगन मन हांसही अउ नतीजा कुछु नइ निकलही।

रंगीली बाई - तुम दुनो बाप बेटा एके थारी के चट्टे-बट्टे अव। दुनो झिन ओ गरीबिन लड़की के गर(गला) म छूरी चलाना चाहत हव।

भुवनमोहन - जउन गरीब हवय, उमन ल गरीब मन घर रिश्ता जोड़ना चाही। अपन हैसियत ले बढ़के...।

रंगीली बाई - चुप घलो रहिबे, आय हवस उहां ले हैसियत लेके। तंय कहां के धन्ना सेठ अस? कोनो मनखे दुवार म आ जही, ते एक लोटा पानी बर तरस जही। बड़ा हैसियत वाले बने हस।

अतना ल कहिके रंगीली ह उहां ले उठ के रंधनी खोली म रांधे-गढ़े बर चल दिस।

भुवनमोहन - मुस्कुरावत अपन खोली म चल दिस ओकर बाद बाबू साहब मेछा म ताव देवत बाहिर अइस कि मोटेराम ल अपन आखरी निर्णय सुना दे। फेर ओकर कहूं करा अता-पता नइ रिहिस।

मोटेराम जी ह कुछ देर तक कहार ल देखत रिहिस, जब ओकर अवई म देरी होइस, त ओह असकटाय बर धर लिस। सोचिस इहां बइठे-बइठे काम नइ चलय, कुछु उपाय करना चाही। भाग्य के भरोसा इहां अड़ियाय बइठे रहूं, ते भूख मर जहूं। इहां तोर दार गलइया नइ हे। कलेचुप लउठी ल उठइस ताहन जे डाहर ओ कहार गे रिहिस, उही डाहर चल दिस। बाजार जादा दुरिहा नइ रिहिस, तिही पाय के जल्दी पहुंचगे। देखिस, त एक झिन डोकरा ह हलवाई के दुकान म बइठे चिलम पीयत रिहिस। ओला देख के बिना संकोच के किहिस-अभी कुछु बने नइ हे का सेठ? दुकान के मालिक ह उहां बइठे-बइठे चिल्लावत रिहिसे-कहां गे इमन ह, जा के सुत गे नही ते ताड़ी पीये बर धर लेहे। मंय ह केहेंव-मालिक अइसन बात नोहे, सियान आदमी, धीरे-धीरे आवत होही। यहू बड़ा बिचित्र जीव आय। कोन जनी इहां नौकर मन कइसे टिकथे।

कहार - मोला छोड़के आज तक कोनो दुसर ह नइ टिके हे, अऊ न टिकय। साल भर ले पगार (वेतन) नइ मिले हवय। कोनो ल पगार देवय नही। कहूं कोनो पगार मांगिस ताहन ओला खिसियाय बर धर लेथे। बिचारा नौकरी छोड़ के भाग जथे। ओ दोनो आदमी जउन मन पंखा झेलत रिहिन हे, उमन सरकारी नौकर आय। सरकार ह ओला दू झिन सेवा करइया दे हवय। इंकरे ले सेवा करवावत पड़े हे। महूं सोचथंव, जइसने तोर बनावट हे ओइसने मोर करनी। दस बच्छर होगे हवय, साल दु साल अइसने अऊ कट जही।

मोटेराम - त का तिहीं अकेल्ला हस? नाम तो अऊ कतनो कहार मन के लेथे। 

कहार - ओ सब झिन मन दू तीन के भीतर अइन ताहन छोड़-छोड़ के चले गे। येह अपन रौब जमाये बर उंकर मन के नाम ल जपत रहिथे। कहूं नौकरी देवाबे, चलंव तोर संग। 

मोटेराम - अजी, नौकरी बहुत हवय। कहार तो आजकल खोजे म नइ मिलय। तंय तो जुन्ना आदमी अस, तोर बर नौकरी के का कमी हवय। इहां कुछु ताजा चीज हवय? मोला किहिस-खिचड़ी बनवाबे या रोंठ (बाटी, आटे का गोलाकार लोंदा) बनाही? मंय ह कहि देंव-सरकार ओह डोकरा मनखे आय, रात कुन ओला मोर बर भोजन बनाये बर तकलीफ होही। मंय कुछु काहीं बाजार ले ही खा लुहूं। एकर आप फिकर झन करव। किहिस-बने बात आय, कहार ह आप ल दुकान म मिलही। बोलो शाह जी, कुछु रसदार माल तैयार हवे? लड्डू तो ताजा मालूम होवत हवय, तौल दे एक सेर (सोला छटाक) आ जौं उही करा उप्पर म? 

अइसे कहिके मोटेराम जी ह हलवाई के दुकान म जा के बइठ गे। बइठे के बाद रसदार माल खाय बर धरिस। खूब छक के खईस। ढाई-तीन सेर सफाचट कर दिस। खावत जावय अउ हलवाई के तारीफ घलो करत जावय-शाह जी, तोर दुकान के जइसन नाम सुने रेहंेव ओइसने मिठई घलो पायेंव। बनारस वाले मन अइसन रसगुल्ला नइ बना पावय, कलाकन्द बढ़िया बनाथे फेर तोरो कलाकन्द ह उंकर मन ले कोनो कम नइ हे। बढ़िया-बढ़िया जिनिस डारे ले बढ़िया चीज नइ बन जावय, विधा घलो चाही।

हलवाई - कुछु अऊ लेवव महराज। थोकिन रबड़ी मोर तनी ले लेवव।

मोटेराम - इच्छा तो नइ हे, तभो ले दे-दे पाव-भर।

हलवाई - पाव भर ह का होही? चीज बढ़िया हवय, आधा सेर तो बिसा लव।

खूब मनमाफीक भोजन करके पंडित जी ह थोकिन देर बाद बाजार ल घूमिस ताहन नव बजे मकान पहुंचिस। इहां एकदम सन्नाटा छाय रिहिस। एक ठन कण्डिल जलत रिहिस। आपो चबूतरा म जठना जठा के सूत गेव।

बिहनिया अपन नियम के मुताबिक लगभग आठ बजे उठिस, उठे के बाद देखथे कि बाबू साहब ह टहलत रिहिस। ओला जागे देख के पांव परत किहिस-महराज, आप रतिहा कहां चल दे रेहंेव? मंय ह बिक्कट रात ले आपके रद्दा जोहत रेहेंव। भोजन के सबो जिनिस ल बहुत देर तक रखे रहेंव फेर आप नइ आयेव ताहन रखवा दे गिस। आप कुछु भोजन करे रेहेंव कि नही? 

मोटेराम - हलवाई के दुकान ले कुछु काहीं खाके आ गे रेहेंव। 

भालचन्द्र - अजी सोंहारी (पुड़ी), मिठाई म ओ आनंद कहां, जउन रोंठ (बाटी) अउ दार म हे। दस-बारा आना खरचा होगे होही, तभो ले पेट ह नइ भरे होही, आप मोर पुहना अव, जतना पइसा लगे होही ओला ले लेहू।

मोटेराम - आप ही के हलवाई के दुकान म खाय रेहेंव, ओ जउन नुक्कड़ (कोना) म बइठथे। 

भालचन्द्र - कतना पैसा दे बर परिस?

मोटेराम - आपके हिसाब म लिखवा दे हंव।

भालचन्द्र - जतना अकन मिठाई ले होहू, ओला मोला बता दव, नही ते पीछू कोती ले बेईमानी करे बर धर लिही। एके झिन तो ठग हवे।

मोटेराम - उही करीब ढाई सेर मिठाई रिहिस अउ आधा सेर रबड़ी।

बाबू साहब ह गुर्री-गुर्री देखत किहिस, मानो कोनो अच्म्भा के बात सुनिस होही। तीन सेर तो कभू इहां महीना भर के टोटल घलो नइ होवत रिहिस हे अउ ए महाशय ह एके घांव म चार रुपया के माल उड़ा लिस। कहूं एकाद दिन अउ रही, त तो हमर भट्ठा बइठ जही। पेट आय कि मसान के कब्र? अरे बाप रे, तीन सेर। अब तो कोनो ठिकाना नइ हे। परेशान होके अन्दर जाके रंगीली बाई ल किहिस-कुछु सुनत हस, ये महाशय तो काली तीन सेर मिठाई सफाचट कर दिस। तीन सेर पक्का तौल। रंगीली बाई ह सन्न होके किहिस-अजी नही, तीन सेर कइसे खा सकही! आदमी ए कि बइला? 

भालचन्द्र - तीन सेर तो अपन मुंहु ले काहत हवय। चार सेर ले कम नइ होही, पक्का तौल! 

रंगीली बाई - पेट म दरीद्री हे का? 

भालचन्द्र - आज अऊ रही जही ते छै सेर ल साफ कर दिही।

रंगीली बाई - त आज काबर रही, चिट्ठी के जवाब जउन देना हे देके बिदा कर। कहूं रही त साफ-साफ कहि दे कि हमर इहां मिठाई ह फोकट म नइ मिलय। खिचरी बनाय बर हे त बनवावय नही ते अपन रद्दा नापे। जिहां अइसन पेटलू मन ल खवाय ले मुक्ति मिलत होही उमन खवावय, हमला अइसन मुक्ति नइ चाही।

फेर पंडित तो जाए बर तैयार बइठे रिहिस, तिही पाय के बाबू साहब ल दिमाक से काम लेके जरुरत पड़िस।

पूछिस - कइसे तैयारी कर डरे महराज?

मोटेराम - हव सरकार, अब जाहूं। नौ बजे के गाड़ी मिलही न?

भालचन्द्र - आज अऊ रहि जतेव पंडित जी।

अइसे काहत-काहत बाबू जी ल डर घलो लागत रिहिस हे कि सिरतोन म तो नइ रही जही, इही पाय के बात ल साधत किहिस-हां, उहां घलो सब झिन आपके रद्दा देखत होही।

मोटेराम - एक-दु दिन बर तो कोनो बात नइ रिहिस अउ मोरो विचार इही रिहिस कि त्रिवेणी म स्नान करहूं, फेर बुरा नइ मानहूं त तो कहूं-आप मन म ब्राम्हण के प्रति एको कनी श्रद्धा नइ हे। हमर जजमान उहां, उमन हमर मुंह जोहत रहिथे कि पंडित जी कुछु आज्ञा दे, ते ओकर तुरते पालन करन। हम उंकर दुवार पहुंच जथन त उमन अपन भाग्य समझथे अउ घर के सबो झिन छोटे से ले के बड़े तक सेवा सत्कार म मगन हो जथे। जिहां अपन आदर नही, उहां एक क्षण भी रुकना मुश्किल हवय। जिहां ब्राम्हण के आदर नइ हे, उहां कल्याण नइ हो सकय। 

भालचन्द्र - महराज, हमर मन से तो अइसन अपराध नइ होय हे।

मोटेराम - अपराध नइ होय हे अउ अपराध काला कहिथे? अभी तो आप ही तो घर म जाके केहेंव कि ये महाशय ह तीन सेर मिठाई ल सफाचट कर देहे, पक्का तौल। आप अभी खवइया देखे कहां हव, एक घांव खवाहू ते तुंहर आंखी ह बग्ग ले बर जही। अइसे-अइसे महान पुरुष हवय, जउन पसेरी भर मिठाई खाये के बाद घलो डकार तक नइ मारय। एक-एक ठन मिठाई खाय बर हमर चिरौरी करथे, रुपया देथे। हम बिखारी ब्राम्हण नो हन जउन आपके दुआरी म पडे़ राहन। आपके नाम सुनके आये रेहेंव, ए नइ जानत रेहंेव कि इहां खाय बर घलो तरसे बर परही। जावव, भगवान आपके कल्याण करे।

बाबू साहब के मुंह ले संकोच के मारे बाते नइ निकलिस। जिनगी भर म कभू ओला अइसन फटकार नइ मिले रिहिस। बहुत बात बनाय के कोशिश करिस-आपके गोठ नइ रिहिस, एह दुसर मनखे के गोठ रिहिस तभो ले पंडित जी के क्रोध ह शांत नइ होइस। ओह सब कुछ सहि सकत रिहिस हे फेर अपन पेट के चारी निंदा नइ सहि सकत रिहिस हे। माईलोगन मन ल जतना बुरा उंकर रुप के निंदा लगाथे, ओकर ले कहूं जादा बुरा पुरुष मन ल अपन पेट के निंदा लगथे। बाबू साहब मानत तो रिहिस हे फेर डर्रावत घलो रिहिस हे कि रूक झन जाय कहिके। ओकर कंजूसी के परदा खुल गे रिहिस हे।

अब एमा कोनो एक नइ रिहिस हवय। ओ परदा ल तोपना जरुरी रिहिस हे अपन कंजूसी ल तोपे बर कुछु नइ किहिस-काबर जउन होना रिहिस ओह होगे रिहिसे। पछतावत रिहिस हे कि कहां फालतू घर म ए गोठ ल कर परेंव वहू उंचा स्वर म। यहू दुष्ट घलो कान टेका के सुनत रिहिस, फेर अब पछताय ले का हो सकत रिहिस? कोन जनी काकर मनहुस थोथना ल देखे रेहेंव कि ए विपत्ति आगे। कहूं ए बखत इहां ले रिसा के चल दिही ताहन उहां जाके बदनाम करही ओकर बाद मोर सबो पोल-पट्टी खुल जही। अब तो एकर मुंह ल बंद करे बर ही परही।

अइसन सोच विचार करके ओह घर म जाके रंगीली बाई ल किहिस-ए दुष्ट ह हमर दुनो झिन दे गोठ बात ल सुन डरे हवे। रिसा के जावत हवय। 

रंगीली बाई - जब तंय जानत रेहे कि ओह दुवार म खडे़ हे त धीरे-धीरे काबर नइ बोले?

भालचन्द्र - विपत्ति आथे, त अकेल्ला नइ आवय। मंय थोरे जानत रेहेंव कि ओह दुवार म कान टेका के बइठे हवय।

रंगीली बाई -कोन जनी काकर मुंहु ल देखे रेहेंव?

भालचन्द्र - उही दुष्ट ह आघू म ढलगे रिहिस हे। जानत रहितेंव ते ओ डाहर देखतेंव घलो नही। अब तो येला कुछु काही दे-दुआ के राजी करे बर परही।

रंगीली बाई - ऊंह, जावन दे ना। जब तोला उहां बिहाव ही नइ करना हे, त का के परवाह करना? जो चाहे समझे, जो चाहे कहे।

भालचन्द्र - अइसन म परान नइ बांचय। दस रुपया लान तो बिदाई के बहाना दे देथंव। ईश्वर फेर ये मनहुस के चेहरा ल झन देखावय।

रंगीली बाई ह पछतावत-पछतावत ले दे के दस रूपया निकालिस, बाबू साहब ह ओला पंडित जी के चरण म जाके रख दिस। पंडित जी ह दिल से किहिस-निच्चट मक्खी चूस आय कहिंके। तोला अइसे रगड़ेंव कि सुरता रखबे। तंय समझत होबे कि दस रुपया दे के एला उल्लू बना लुहूं। ए धोखा म झन रहिबे। मंय तोर नस-नस ल पहिचानथंव। रुपया ल थैली म रखे के बाद असीस दे के चल दिस। 

बाबू साहब बहुत देर ले खड़े होके गुनत रिहिस-कोन जनी अभी घलो कंजूस ही समझत होही या ओ अयेब दब गिस होही। कहूं ए रुपया ह घलो पानी म तो नइ गिर गिस होही।


चार


कल्याणी के आघु म अब एक ठन विषम समस्या आ के खड़े होगेे। गोसइया के गुजरे के बाद ओला अपन दुर्दशा के पहिली अउ बहुत कड़ुवा अनुभव होइस। गरीबिन विधवा के एकर ले बडे़ अउ का विपत्ती हो सकथे कि जवान बेटी के जिम्मेदारी जेकर मुड़ी म हो? टूरा मन खोर्रा पांव पढे़ बर जा सकत हवय चौका बर्तन घलो अपन हाथ ले करे जा सकत हवय, रूखा सूखा खाके घलो अपन जिंदगी बीता सकत हवय। कुंदरा म दिन काटे जा सकत हवय फेर बेटी ल तो घर म बइठार के राखे नइ जा सकय। कल्याणी ल भालचन्द्र उपर अइसे गुस्सा आवत रिहिस हवय कि खुदे जाके ओकर मुंह म केरवस पोत दंव, मुड़ी के चूंदी ल तीर दंव, कहूं तंय अपन बात ले मुकर देबे, ते तंय अपन बाप के बेटा नो हस। पंडित मोटेराम ह ओकर कपट-लीला के सबो समाचार ल साफ-साफ बता दे रिहिस हवय।

ओह गुस्सा म बइठे रिहिस हे ठउंका ओतके बेर कृष्णा ह खेलत-खेलत अइस अउ किहिस कि दिन म बारात आही दाई? पंडित तो आ गे हवय।

कल्याणी - बारात के सपना देखत हवस का?

कृष्णा - उही चन्दर तो काहत रिहिस हवय कि दू-तीन दिन म बारात आही कहिके, का  बारात नइ आय दाई?

कल्याणी - एक घांव तो बता दे हवय, भेजा ल काबर खावत हस?

कृष्णा - सबके घर तो बारात आवत हे, हमर घर काबर नइ आवय?

कल्याणी - तुंहर इहां जउन बारात अवइया रिहिसे, ओकर घर म आगी लग गे हवय। 

कृष्णा - सही म दाई! तब तो सबो घर ह जरगे होही। कहां राहत होही? दीदी कहां जाके सुतही?

कल्याणी - अरे पगली! तंय तो बाते ल नइ समझस। आगी नइ लगे हवे। ओह हमर घर बिहाव नइ करय।

कृष्णा - अइसे काबर दाई? पहिली तो उहें बिहाव पक्का होगे रिहिस न?

कल्याणी - बहुत अकन रुपया मांगत हवय। मोर करा ओला दे बर रुपया नइ हे।

कृष्णा - का उमन बिक्कट लालची हे दाई?

कल्याणी - लालची नइ हे त अउ का हे। पूरा कसाई, निर्दयी अउ दगाबाज।

कृष्णा - तब तो दाई, बहुत बढ़िया होइस कि उंकर घर दीदी के बिहाव नइ होइस। दीदी उंकर संग कइसे रहितिस? येह तो खुश होय के बात आय दाई, तंय नाराज काबर होवत हस?

कल्याणी ह अपन बेटी ल स्नेह के भाव ले देखिस। येकर कथन कतना सिरतोन हवय? नोनी के बोली-बचन म समस्या के कतेक बढ़िया हल हवय? सिरतोन म ए तो खुश होय के बात आय कि अइसन बेकार मनखे मन ले सम्बन्ध नइ होइस, दुख के कोनो बात नइ हे। अइसन तपइया मनखे के घर म बिचारी निर्मला के कोन जनी का गति होतिस, अपन किस्मत म रोतिस। दार म कहूं एक कनिक जादा घींव डरा जतिस, ते पूरा घर म हल्ला मच जतिस, कहूं भात ह गिल्ला हो जतिस ते सास ह दुनिया भर ढिंढोरा पिटतिस। लड़का घलो बिक्कट लालची आय। बने होगे नही ते बिचारी ल उमर भर रोय बर पड़तिस। कल्याणी इहां ले उठिस, त ओकर हिरदे ह हल्का होगे रिहिस। फेर बिहाव तो करना ही रिहिस अउ हो सके ते इही साल, नही ते अवइया बच्छर फेर नवा ढंग ले तैयारी करे बर परही। अब तो बढ़िया घर के जरुरत रिहिस न बने वर के जरुरत रिहिस। अभागिन ल अच्छा घर अउ अच्छा वर कहां ले मिलतिस। अब तो बस मुड़ी के बोझा ल उतारना रिहिस, कोनो किसम ले लड़की ल पार लगाना रिहिस, ओला तो कुआं म ढकेलना रिहिस। येह सुन्दर हवय, गुनवन्तिन हवय, सीधी-साधी हवय, त का मतलब, दहेज नइ हे त ओकर सबो गुन ह अवगुन आय अउ दहेज हे त सबो अवगुन ह गुन आय। मनखे के कुछु कीमत नइ हे, सिर्फ दहेज के कीमत हवय। कतेक विषम भाग्यलीला हवय।

कल्याणी के दोष घलो कमती नइ रिहिस। अबला अउ विधवा होवई ह ओला दोष ले मुक्ति नइ देवा सकय। ओला तो बेटा ह बेटी मन ले जादा प्यारा लगत रिहिस। बेटा ह नांगर के बइला आय, भूसा अउ खली उपर पहिली हक ओकर आय। ओकर खाये ले थोर बहुत बांच जाये ओह गाय मन के आय। मकान रिहिस, कुछ नगदी रिहिस, हजारो के गहना रिहिस हवय फेर ओला अभी दू झिन लड़का मन के लालन-पालन करना रिहिसे, उमन ल पढ़ाना-लिखाना रिहिसे। एक झिन बेटी ह घलो चार पांच बच्छर बाद बिहाव करे के लइका हो जही। इही पाये के ओह जादा बडे़ रकम दहेज म नइ दे सकत रिहिस हे, आखिर लड़का मन बर तो घलो कुछ चाही। ए मन का जानही कि हमर कोनो बाप रिहिस हवय।

पंडित मोटेराम ल लखनऊ ले लहूटे पन्द्रह दिन बीत चुके रिहिस। लहूटे के बिहान दिन ले ही ओह वर खोजे बर निकले रिहिस हवय। ओह किरिया खाये रिहिस हवय कि लखनऊ वाले मन ल देखा दुहूं कि तुहीं मन अकेल्ला नइ हव, तुंहर जइसन अउ कतनो परे हवय। कल्याणी ह रोज दिन गिनत रहय। आज ओह ओला चिट्ठी लिखे बर परन करिस अउ कलम दवात धर के चिट्ठी लिखे बर बइठे भर रिहिस हवय ठउंका उही बखत मोटेराम के आना होइस।

कल्याणी - आवव पंडित जी, मंय तो आप ल ही चिट्ठी लिखे बर धरत रेहेंव, कब लहूटेव?

मोटेराम - लहूटे बर तो बिहनिया ले लहूटे रेहेंव फेर इही समे एक झिन सेठ के नेवता आ गे। कई दिन होगे रिहिस चासनी वाले मिठाई खाये बर नइ मिले रिहिसे। मंय ह सोचेव लगे हाथ यहू ल निपटा लेथंव। अभी उही डाहर ले लहूटत आवत हंव, लगभग पांच ब्राम्हण मन के पंगत रिहिस हवय। 

कल्याणी - कुछु काम सिद्ध होइस कि भइगे धुमते रेहेव।

मोटेराम - बूता ह काबर सिद्ध नइ होही? भला यहू कोनो बात होइस? पांच जघा गोठ बात करके आये हंव। पांचो के फोटो घलो लाये हंव। ओमा ले आप जउन ल पसंद करौ। देखौ ए लड़का के बाप ह डाक विभाग म सौ रुपया महीना के नौकरी करथे। लड़का अभी कालेज म पढ़त हवय फेर नौकरी के भरोसा तो हवय, घर म कुछु जमीन जायदाद नइ हे। लड़का होनहार लागत हवय। खानदान घलो बढ़िया हवय, दू हजार म बात तय हो जही। मांगत तो हे उमन तीन हजार।

कल्याणी - लड़का के अऊ भाई हवय?

मोटेराम - नही फेर तीन झिन बहिनी हवय अउ तीनो ह कंुवारी हे। महतारी जीयत हवय। ठीक हे, अब दुसर फोटो ल देखो। ये लड़का ह रेल विभाग म पचास रुपिया महीना पाथे। दाई-ददा नइ हे। बहुत ही सरल अउ तन ले खूब हट्टा-कट्टा कसरत करइया जवान आय। फेर खानदान बने नइ हे, कोई कहिथे ओकर महतारी ह दुसर जात के रिहिस हे। बाप कोनो रियासत के मुखतार रिहिस। घर म थोर बहुत जमींदारी हवय फेर वहू म कई हजार के खरचा हवय। उहां कुछु ले-दे बर नइ परय। उमर उही करीब बीस बच्छर के होही।

कल्याणी - खानदान म कोनो दाग नइ रहितिस ते मंजूर कर लेतेंव। देख सुन के तो माछी ल नइ खाय जाये न।

मोटेेराम - तिसरइया फोटो देखव एक झिन जमींदार के लड़का आय, करीब एक हजार सलाना नफा(फायदा) हवय। एकाद कनिक खेेती-बारी घलो हवय। लड़का पढ़े लिखे तो लगथे फेर कछेरी-अदालत के काम म बड़ चतुर हवय। दुजहा आय, बिहई ल मरे दु बच्छर होगे हवय। ओकर कोनो संतान नइ हे, फेर रहन सहन ओतेक अच्छा नइ हे। पीसई - कुटई घरे म होथे।

कल्याणी - कुछ दहेज मांगथे?

मोटेराम - एक बाते झन पूछ। चार हजार बताथे। अच्छा ये चौथा फोटो ल देखव। लड़का वकील हवय, उमर लगभग पैतीस साल के होही। तीन चार सौ के आमदनी हवय। पहिली पत्नी ह मरगे हवय, ओकर तनी ले तीन झिन टूरा हवय। अपन खुद के घर बनवाये हवय। कुछ जायदाद घलो बिसाय हवय। इहां लेन-देन के कुछु झगरा नइ हे।

कल्याणी - खानदान कइसे हवय?

मोटेराम - बहुत ही उत्तम जुन्ना रईस आय। अच्छा ए पांचवा फोटो ल देखव। बाजू म प्रिंटिंग प्रेस हवय। लड़का पढ़े तो बी.ए. तक हवय फेर उही प्रिंटिंग प्रेस म काम करथे। उमर ह अट्ठारा बच्छर के होही प्रेस अउ घर के सिवाय कोई जायजाद नइ हे फेर काकरो करजा मुड़ी म नइ हे। खानदान न बहुत बढ़िया हे न बुरा। लड़का सुन्दर अउ चरित्रवान हवय। फेर एक हजार ले कम म मामला तय नइ होही, ओइसे तो मांगत हे उमन तीन हजार। अब बतावव आप कोन से वर ल पसंद करहू?

कल्याणी - आप ल सबो झिन म कोन पसंद हवय?

मोटेराम - मोला तो दु झिन वर पसंद हवय। एक ओ जउन ह रेलवे म हवय अउ दूसरा जउन प्रिंटिंग प्रेस(छापाखाना) म काम करथे।

कल्याणी - फेर पहिली वाले के खानदान म तो दोष बताये हवस?

मोटेराम - हव, ये दोष तो हवय। छापाखाना वाले ल ही फायनल करव।

कल्याणी - इहां एक हजार रुपया दे बर कहां ले आही? एक हजार तो आपके अनुमान आय, शायद ओह अउ मुहु खोलय। आप तो ए घर के हालत तो देखते हव, दु बखत के खान मिल जाय उही बहुत हे। रुपया कहां ले आही? जमींदार साहब चार हजार सुनाथे, डाक बाबू ह दु हजार के सवाल करथे इमन ल राहन दव। बस वकील साहब ही बच सकत हवय। पैतीस साल के उमर ह कोनो जादा नइ हवय। इही ल फायनल कर लेथन। 

मोटेराम - आप खूब सोच बिचार लव। मंय तो आपके मर्जी के आज्ञाकारी अवं। जिंहा कहिबे उहें मंय बात पक्का कर के आ जहूं। फेर आप हजार रुपया ल झन देखव, प्रिंटिंग प्रेस (छापाखाना) वाला लड़का हीरा आय हीरा। ओकर संग कन्या के जिनगी सफल हो जही। जइसे एह रुप अउ गुन के खान आय त ओइसने ओ लड़का ह सुन्दर अउ सीधा-साधा हवय। 

कल्याणी - पसंद तो महूं ल घलो उही हवय महराज, फेर रुपया काकर घर ले आवय। कोन देने वाला हवय। हवय कोनो दानी! खवइया मन तो खा बोज के चले गे। अब काकरो सूरत घलो नइ दिखय, बल्कि मुही ल बुरा कहिथे कि हमला तो निकाल देहे कहिके। जउन बात हमर बस ले बाहिर हवय ओकर बर हाथ काबर लमावंव? संतान कोन ल प्यारा नइ लगय? कोन ओला सुखी नइ देखना चाहे फेर जब अपन सकऊ होवय। आप भगवान के नाम ले के वकील साहब बर रिश्ता तय करके आ जावव। उमर थोकिन जादा हवय, फेर मरना जीना तो विधि के हाथ म हवय। पैतीस साल के आदमी ह डोकरा नइ कहावय। कहूं लड़की के भाग म सुख भोगना लिखाये होही त जिंहा जाही उहां सुखी रही, दुःख भोगना होही त जिंहा जाही उहां दुख भोगही। हमर निर्मला ल लइका मन ले प्रेम हवय। ओेकर लइका ल अपन लइका समझही। आप शुभ मुहूर्त देखके रिश्ता तय करके आ जा।

पांच


निर्मला के बिहाव होगे। ससुरार आ गे। वकील साहब के नाम रिहिस मुंशी तोताराम। सांवला रंग के मोटा-ताजा आदमी रिहिस। उमर ह तो अभी चालीस ले जादा नइ रिहिस फेर वकालत के कठिन परिश्रम ह मुड़ी के बाल ल सफेद कर दे रिहिस हवय। कसरत करे बर ओला छुट्टी नइ मिलत रिहिसे। इहां तक ले ओह कभू घूमे बर घलो नइ जावय तिही पाये के ओकर पेट ह बाढ़ गे रिहिस हवय। पेट के बाढ़े ले आये दिन कोनो न कोनो तकलीफ आवत रहय। पाचन अउ बवासीर के तो ओकर जिनगी भर बर नता जुड़ गे रिहिस हवय। ओकर तीन झिन टूरा रिहिस बड़े मंसाराम ह सोलह बच्छर के रिहिस, मंझला जियाराम ह बारह अउ छोटे सियाराम ह सात बच्छर के रिहिस हवय। तीनो अंग्रेजी पढ़त रिहिन। घर म विधवा बहिनी के सिवाय अउ कोनो माईलोगन नइ रिहिस। उही ह घर के मालकिन रिहिस। ओकर नाम रुक्मिणी अउ ओकर उमर ह पचास ले जादा होगे रिहिस हे। ससुरार म कोनो नइ रिहिन। स्थायी ढंग ले इहें राहत रिहिसे।

तोताराम दम्पत्ति-विज्ञान म कुशल रिहिसे। निर्मला ल खुश रखे बर ओमा जउन स्वाभाविक कमी रिहिसे ओला ओह जेवर ले पूरा करना चाहत रिहिस हवय। ओइसे ओह कम खर्चिला रिहिस हवय, फेर निर्मला बर कुछु-न-कुछु तोहफा रोज लावत रिहिस हवय। मौका म धन के परवाह नइ करत रिहिस हवय। बेटा मन बर थोर बहुत दूध आवत रिहिस हवय फेर निर्मला बर तो मेवा, मुरब्बा कस कतनो मिठाई लावय। कोनो चीज के कमी नइ रिहिस हवय। अपन जिनगी म कभू घूमे-फिरे बर खेल तमाशा देखे बर नइ गे रिहिस हवय फेर अब तो छुट्टी के दिन निर्मला ल सिनेमा, सर्कस अउ थियेटर देखाय बर लेगय। अपन कीमती समे के कुछ हिस्सा ल ओकर संग बइठ के ग्रामोफोन बजाये म समय बितावत रिहिस हवय।

फेर कोन जनी निर्मला ल तोताराम संग बइठे अउ हांसे गोठियाय बर संकोच होवय। एकर ए मतलब नइहे कि अब तक अइसने एक झिन मनखे ह ओकर पिताजी रिहिस, जेकर आघू म ओह मुड़ी गड़िया के, कलेचूप निकलत रिहिस, अब ओकरे अवस्था के एक आदमी ह ओकर पति रिहिस, ओह ओला प्रेम के वस्तु नही बल्कि सम्मान के वस्तु समझत रिहिस। ओला देख के एती ओती भागत रहय, ओला देख के ओकर चेहरा के हांसी ह नंदा जावत रिहिस हवय। 

वकील साहब ल ओकर दम्पत्ति-विज्ञान ह सिखाये रिहिस कि युवती के आघू म बिक्कट प्रेम से बात करना चाही। दिल निकाल के रख देना चाही, इही ह मोहे बर मुख्य मंत्र आय। एकरे सेती वकील साहब ह मया करे बर कोनो कसर नइ बचावत रिहिस हवय, फेर निर्मला ल ए बात मन ले घृणा होवत रिहिस। उही गोठ, जेला कोनो युवक के मुंह ले सुनके ओकर हिरदे ह मया म मात जावय, वकील साहब के मुंह ले निकलके ओकर हिरदे म बरछा-भाला कस अघात पहुंचावय। ओमा रस नइ रिहिस न उमंग रिहिस, न तो आकर्षण रिहिस, न हिरदे रिहिस सिरिफ बनावटी रिहिस, धोखा रिहिस अउ बेकार देखावटी मया के बोली रिहिस। ओला इत्र (सेंट) अउ तेल ले बुरा नइ लगय, घूमई-फिरई ले बुरा नइ लगय, बनाव-सिंगार ले घलो ओला बुरा नइ लगत रिहिस, बुरा लगत रिहिस सिरिफ तोताराम के तीर बइठना। ओह अपन रुप अउ यौवन ओला नइ देखाना चाहत रिहिस हवय काबर कि उहां देखइया आंखी नइ रिहिस। ओह ओला रस के स्वाद ले के योग्य नइ समझत रिहिस। कली तो बिहनिया के हवा के छुये ले फूलथे। दुनो म एक जइसे चमक कहां ले रिहिस हवय। निर्मला बर ओह बिहनिया के हवा कहां रिहिस।

पहला महीना पूरा होय के बाद तोताराम ह निर्मला ल अपन खजांची बना लिस। कछेरी (कचहरी) ले आके दिन-भर के कमाई ल ओला दे देवय। ओकर ख्याल रिहिस कि निर्मला ह ए रुपया ल देख के खुश होवय। निर्मला बड़ा शौक से ए पद के जिम्मेदारी ल निभावय। एक-एक पैसा के हिसाब लिखय, कहूं कभू रुपया कम मिलतिस ते पूछतिस आज कम कइसे हे? गृहस्थी के सम्बन्ध म ओकर ले बिक्कट बात करय। इही सब बात के लइक ओला समझत रिहिस। कभू ठट्ठा-दिल्लगी के बात कहूं ओकर मुंह ले निकल जतिस ते निर्मला के चेहरा ह उतर जतिस।

निर्मला जब सिंगार करके आइना के आघू म खड़ा हो के अपन सुंदरता ल देखय, त ओकर हृदय ह प्यासा कामना ले तड़प् उठे। ओ समे ओकर हिरदे म मसाल कस उठय। मने करय कि घर म आगी लगा देवंव। अपन महतारी उपर बिक्क्ट गुस्सा आवय, कहूं ओकर ले जादा क्रोध ओ बिचारा तोताराम उपर आवय। ओह सदा एकर ताव ले जलत रहय। अनोखा अउ सुंदर सवार ल कमजोर घोड़ा उपर सवार होवई ल कोन पसंद करही, भले ओला पैदल चले बर पर जवय? निर्मला के दशा ह ओइसने सुन्दर सवार कस रिहिस। ओह ओकर उपर सवार होके उड़ान चाहत रिहिस हवय, ओ बिक्कट उछाह ले बिजली के गति कस आनंद उठाना चाहत रिहिसे। घोड़ा के हिनहिनई अउ कान खड़ा करई ले ओला का के आशा होतिस? लइका मन के संग म हांसत खेलत ओह थोकिन बेर बर अपन दशा ल भूला जतिस, एकाद कनिक मन ह हरियर हो जतिस, फेर रुक्मिणी देवी ह लड़का मन ल ओकर तीर म ओधन नइ देवय, मानो ओह राक्षसीन आय उमन ल लील डरही। रुक्मिणी देवी के स्वभाव ह पूरा संसार ले निराला रिहिस, ये पता लगाना मुश्किल रिहिस हवय कि ओह कोन बात ले खुश होवत रिहिस हवय अउ कोन बात ले नाराज। एक घांव जउन बात ले खुश हो जावत रिहिस हे, दुसर घांव उही बात ले नाराज हो जावत रिहिस हवय। कहूं निर्मला ह अपन कुरिया (खोली कमरा) म बइठे रहय त रुक्मिणी ह कहितिस कि कोन जनी कहां ले मनहुस ह हमर घर म आ गे हवय। कहूं ओह कोठी म खड़े रहितिस नइ ते कामवाली बाई मन संग गोठियातिस अउ कभू छाती पीटे बर धर लेतिस-न लाज हे न शर्म, बेसरम ह लाज ल भूंज के खा डरे हवय। अब का कुछ दिन के बाद हाट-बाजार म नाचही। जब ले वकील साहब ह निर्मला के हाथ म रुपया-पैसा देके शुरु करे रिहिस हवय, तब ले ओकर चारी निंदा म लगे रहय। ओला अइसे लगे कि प्रलय होय म अब जादा समे नइ रहिगे हवय। लड़का मन ल घेरी-बेरी पैसा के जरुरत परय। जब तक रुपया के खुद मालकिन रिहिस तब तक, उमन ल बहला फुसला देवत रिहिस हवय। अब सीधा निर्मला कर भेज देवय। रुक्मिणी ल तो अब ताना मारे के मौका मिल जवय-अब तो मालकिन होगे हवय, लड़का मन कइसे जिही। बिन महतारी के लइका मन ल कोन पूछही? पहिली कतनो रुपया के मिठाई खा लेवत रिहिन अब तो नानकुन बर तरसथे। निर्मला कहूं चिढ़ के कोनो दिन बिना पूछे पैसा दे देवय ताहन तो देवी जी ह दुसर आलोचना करय-एला का, लड़का मन मरे या जिये, एकर राहत ले महतारी के बिना कोन समझाये कि बेटा, जादा मिठाई झन खाये करव। कम जादा होही त मोरे उपर आही, एला का? इहें तक रहितिस त बात ल निर्मला ह शायद सहि जतिस, फेर देवी जी ह तो खुफिया पुलिस के सिपाही कस निर्मला के पीछा करत रहय। कहूं ओहा कोठा म खड़े हे, त जरुर ओह कोनो ल देखत होही, कामवाली संग गोठियावत रहितिस, त ओह जरुर ओकर चारी-निंदा करत होही। बाजार ले कुछु मंगवातिस, त जरुर कुछु आनंद के जिनिस होही। येह बराबर ओकर चिट्टी ल पढ़े के कोशिश करय। लुका लुका के बात सुनय। निर्मला ओकर दु धारी तलवार ले कांपत राहय। इहां तक ले ओह एक दिन अपन गोसइया ल किहिस-आप थोकिन दीदी ल समझा देवव, काबर मोर पीछू परे रहिथे।

तोताराम ह गुस्सा होके किहिस-तोला कुछु किहिस का? रोजे कहिथे। मोर तो गोठियाना मुश्किल होगे हवय। कहूं ओला ए बात के जलन होवत होही कि येह मालकिन काबर बने हे त आप उही ल रुपया-पैसा दे दे करव, मोला नइ चाही, उही ह मालकिन बने रहय। मंय तो सिरिफ अतना चाहथंव कि कोई मोला ताना-वाना झन मारय। अइसे काहत-काहत निर्मला के आंखी ले आंसू बोहाये बर धर लेथे। तोताराम ल तो अपन मया देखाये बर बढ़िया मौका मिले रिहिस हे। किहिस-आजे मंय ह ओला मजा चखावत हंव। साफ-साफ कहि दुहूं, मुंह बंद करके रहना हे त राह, नही ते अपन रद्दा म जा। ए घर के मालकिन ओह नोहे, तंय अस। ओह सिरिफ तोर सहायता बर हवय। कहूं सहायता करे के बदला म तोला तंग करथे, त ओला इहां रेहे के जरुरत नइ हे। मंय ह सोचे रेहंेव कि विधवा हवे, अनाथ हवे, पाव भर पिसान खाही अउ पड़े रही। जब अऊ नौकर-चाकर मन खावत हवय, त ओह तो मोर बहिनी आय। लड़का मन के देखे खातिर एक झिन माईलोगन के जरुरत घलो रिहिसे, तिही पायेे के रख लेंव। एकर ए मतलब नइहे कि ओह तोर उपर राज करे।

निर्मला फेर किहिस-बेटा मन ल सिखो देथे कि जा के अपन महतारी करा पैसा मांगव कहिके, कभू कुछु कथे त कभू कुछु। बेटा मन आ के मोर परान खाथे। घड़ी भर लेटना मुश्किल हो जथे। उमन ल खिसियाथंव त ओह मोर बर तमतमावत आथे। मोला कहिथे तंय ह लड़का मन ल देखके जलथस। भगवान जानत होही कि लइका मन ले मंय ह कतना मया करथंव। आखिर मोर लइका तो आय। मोला उंकर मन बर काबर जलन होही?

तोताराम ह उंकर मन बर बगिया के किहिस-तोला जउन लड़का ह तंग करथे ओला पीट दे कर महूं देखथंव टूरा मन के कतेक गरमी चढ़े हे तेला। मंसाराम ल तो मंय बोर्डिंग हाउस म भेज दुहूं। बाकि दु झिन ल तो आजे ठीक कर देथंव।

ओतका बेर तोताराम ह कछेरी (कचहरी) जावत रिहिस, खिसियाये बर मौका नइ रिहिसे, फेर कछेरी ले लहूटे के बाद ओह रुक्मिणी ल किहिस-कइसे बहिनी, तोला ए घर म रहना कि नही? अगर रहना हे त चुपचाप राह। ए का बात होइस दुसर के रहना मुश्किल कर दे हस।

रुक्मिणी समझगे कि बहू ह चुगली करे हवय, फेर ओह दबाव म अवइया माईलोगन नइ रिहिस हवय। एक तो उमर म बड़े, ओकर बाद घलो ए घर के सेवा करत-करत अपन जिनगी काटत रिहिस हवय। काकर मजाल रिहिस कि ओला घर ले हटा सकय। ओला अपन भाई के गलत व्यवहार ले अचरज तो होइस। किहिस-त का दासी बनाके रखबे? दासी बन के रहना हे त ए घर के दासी नइ बनव। कहूं तोर ए इच्छा होही कि कोनो ह घर म आगी लगा दे अउ मंय खड़े देखत रहंव, कोनो ल गलत रद्दा म रेंगत देख के चुप रहि जंव, जउन ल मनमानी करा हे ओह करे अउ मंय ह ओला माटी के मूर्ति बनके देखत रहंव, त येह मोर ले नइ होवय। तोला का होगे, जेमा अतेक घुस्सा करत हवस? निकलगे सबो हुशियारी, काली के टूरी ह तोर माई चुटई ल धर के नचाये बर धर लिस। कुछु पूछना न ताछना, भइगे ओह तार खिचिस ताहन लकड़ी के सिपाही कस तलवार धरके निकलगेस।

तोताराम - सुने हवव कि तंय ह हमेशा गलती निकालत रहिथस, बात-बात म ताना देवत रहिथस। मान ले सीख देना रहिथे, त ओला प्यार से, गुरतुर बोली म देना चाही। ताना ले सीख मिले के बदला उल्टा जीव जले बर धर लेथे।

रुक्मिणी - त तंय ये चाहत हवस कि मंय ह कोनो बात म झन बोलंव। इही सही हे, फेर ये झन कहिबे, कि तंय ह घर म बइठे रेहेस, काबर सलाह नइ देस। जब मोर बात ह जहर लागथे, त का मोला कुकुर चाबे हवय, जउन ओला बोलव? कहावत हवय न अफीम के खेती, बहुरिया के घर। महूं देखथंव, बहुरिया कइसे घर चलाथे? अतना म सियाराम अउ जियाराम स्कूल ले आ गे। आते भार दुनो झिन बुआजी करा जाके खाये बर मांगे बर धरिन।

रुक्मिणी ह किहिस - जाके अपन नवा दाई करा काबर नइ मांगव, मोला बोले के हक नइहे।

तोताराम - कहूं तुमन ओ घर म पांव रखेव ते तुंहर टांग टोर दुहूं। बदमाशी करना बंद करव।

जियाराम थोकिन तेज रिहिस। किहिस-ओला तो आप कुछु नइ काहव, हमी मन ल धमकाथस। कभू पैसा नइ देवय।

सियाराम ह ए बात के समर्थन करत किहिस-कहिथे, मोला तंग करहू ते तुंहर कान ल काट दुहूं। कहिथे कि नइ काहय जिया?

निर्मला अपन खोली ले किहिस-मंय ह कब केहे रेहंेव कि तुंहर मन के कान काट लुहूं। अभी ले लबारी मारे बर धर लेव।

अतना सुनिस ताहन तोताराम ह सियाराम के दुनो कान ल पकड़ के उठा दिस। लड़का ह जोर से चिल्ला के रोए बर धर लिस। 

रुक्मिणी ह दउंड़ के लड़का ल मुंशी के हाथ ले छोड़ाके किहिस-भइगे बहुत होगे, लइका ल मार डरबे का, कान ह लाल होगे। सिरतोन केहे हवय नवा गोसइन पाके आदमी अंधरा हो जथे। अभी ले ए हाल हे, त तो ए घर के तो भगवाने ह मालिक हे। 

निर्मला ह अपन जीत म मने मन मगन होवत रिहिसे, फेर जब मुंशी जी ह लड़का के कान ल धर के उठइस त ओकर ले रहि नइ गिस। छोड़ाये बर दउंड़िस, फेर रुक्मिणी ह पहिली ले पहुंचगे रिहिस हवय। किहिस-पहिली आगी लगा देस, अब बुझाये बर दउंडे़ हवस। जब तोर खुद के लड़का होही तब तोर आँखी खुलही। दुसरा के दुख ल तंय का जानबे?

निर्मला - खड़े तो हावय, पूछ ले न, मंय ह का आगी लगाये हंव? मंय ह अतने केहे रेहेंव कि लड़का मन पइसा बर मोला घेरी-बेरी तंग करथे। एकर सिवाय अउ कुछु केहे होहूं ते मोर आँखी फूट जाये। 

तोताराम - मंय खुदे ए टूरा मन के हरकत ल देखत रहिथंव, अंधरा थोरे हंव। तीनो टूरा ल तो हॉस्टल म भेजहूं।

रुक्मिणी - अब तक तोला इंकर शरारत ह नइ दिखिस, आजे कइसे तोला दिखे बर धर लिस?

तोताराम - तिंही ह तो इमन ल अतना चढ़ा के रखे हस।

रुक्मिणी - त का मिही ह जहर के गठरी अँव। मोरे सेती तोर घर ह चौपट होवत हवय। ले मंय जावत हंव, तोर लड़का आय, मारस चाहे काटस, कुछु नइ काहंव।

अइसे कहिके ओह उहां ले चले गे। निर्मला लड़का ल रोवत देख के पिघल गे। ओह ओला छाती म लगा लिस ओकर बाद गोदी म पा के अपन कुरिया म लेग के चुप करावत रिहिस। फेर लइका ह अऊ सिसक-सिसक के रोये बर धर लिस। ओकर बाल हृदय ए मया म महतारी के ममता नइ पावै, जेकर ले भगवान ह ओला अभागा बना दे रिहिसे। येह मया नइ रिहिस बल्कि दया रिहिस। येह ओ जिनिस रिहिस, जेकर उपर ओकर कोनो अधिकार नइ रिहिस, जेला सिरिफ भीख बरोबर ओला देवत रिहिसे। पिता ह पहिली घलो एक-दु घांव मारे रिहिस, जब ओकर महतारी जिंदा रिहिस, तब ओ समे ओकर महतारी ह छाती म लगा के रोय नही। ओहा रिसा के ओकर ले गोठियाये बर छोड़ देवय, इहां तक कि ओह खुदे थोरिक देर बाद सब ल बिसर के फेर महतारी करा दउंड़त चल देवत रिहिस। उल्टा पुल्टा बूता करे के बदला म सजा पवई तो ओला समझ आवय, फेर मार खाये के बाद प्यार से चुप करई ओला समझ म नइ आवय। महतारी के प्रेम म घुस्सा राहय फेर ओमा मया ह मिले राहय। ए मया म दया तो रिहिसे, फेर ओ कड़क नइ रिहिस जउन ह अपनापन के कलेचुप एहसास कराथे। फेर उही अंग ह जब कोनो कष्ट होय के मया करे बर धरथे, त ओला ठेस अउ धक्का ले बचाये के उदीम करे जाथे। निर्मला के रोवई ह बालक ल ओकर अनाथ होय के खबर देवत रिहिस हवय। ओ बहुत देर तक निर्मला के गोदी म बइठे रोवत रिहिस अउ रोवत रोवत सुतगे। निर्मला ओला खटिया म सुताना चाहिस, त लड़का ह नींद म अपन दोनो कोमल बांह मन ल ओकर गला म डार दिस अउ अइसे चिपट गे, जानो मानो खाल्हे म कोनो गड़ढा हवय। शक अउ मया ले लड़का ह डर्रा गे। निर्मला फेर बालक ल गोद म उठा लिस, ओकर बाद फिर से ओला खटिया म नइ सुता सकिस। ए समे बालक ल गोदी म पोटारे ओला ओ खुशी अनुभव होवत रिहिस, जउन ह अब तक कभू नइ होय रिहिसे। आज पहिली घांव अन्तस म पीड़ा होइस, जेकर बिना आंखी नइ खुलय, अपन जिम्मेदारी के रद्दा नइ दिखय। ओह अब दिखे बर धर लिस।

छह


ओ दिन अपन बिक्कट मयारु होय के सबूत दे के बाद मुंशी तोताराम ल उम्मीद रिहिस कि निर्मला के अंतस म मोर सिक्का जम जही, फेर ओकर ए उम्मीद ह एक-कनिक घलो पूरा नइ होइस, बल्कि पहिली तो ओह कभू-कभू ओकर संग हांस गोठिया लेवत रिहिस हवय, अब तो लइका मन के लालन-पालन म ही व्यस्त होय बर धर लिस। जब घर आवय त लइका मन ल ओकर तीर म बइठे पावय। कभू देखय कि उमन ल खवावत हवय, कभू कपड़ा पहिरावत हवय, कभू खेल खेलावत रहय, अउ कभू कहानी सुनावत रहय। निर्मला के प्यासे हिरदे ह मया डाहर ले निराश हो के ए सहारा ल ही अपन भाग्य समझत रिहिस, लइका मन के संग हांसे-गोठियाये म ही ओकर महतारी बने के कल्पना ह सन्तुष्ट हो जावत रिहिस हवय। गोसइया संग हांसे-गोठियाय म ओला संकोच होवय, ओकर संग मन नइ मिलय इहां तक ओह लजा के उहां ले उठ के भागे बर गुनय, ओकर बदला म लइका मन के सच्चा अउ सरल स्नेह ले खुश हो जावत रिहिसे। पहिली मंसाराम ह ओकर करा आये बर झिझके, फेर अब वहू ह कभू-कभू आ के बइठय। ओह निर्मला के उमर के बराबर रिहिस, फेर मानसिक विकास म पांच साल छोटे। हाकी अउ फुटबाल ह ओकर संसार, ओकर कल्पना के आजादी अउ कामना के हरियर बगीचा रिहिस। दुबला पतला चुस्त फूर्तिला, सुन्दर, हसमुख, लजकुरहा लड़का रिहिस जेकर घर म सिरिफ भोजन भर के नाता रिहिस, बाकि दिन भर कोन जनी कहां धूमय। निर्मला ओकर मुंह ले खेल के गोठ सुनके, कुछ समे बर अपन चिंता-फिकर ल भूला जावत रिहिस अउ मने मने गुनय कि एक घांव फेर उही दिन आ जतिस, जब ओहा गुड्डी-गुड्डा के खेल खेलय अउ उंकर बर-बिहाव करय, जेला पश्चाताप करत बहुत कमे दिन होय रिहिस।

मुंशी तोताराम ह अकेल्ला सेवा करइया मनखे मन कस जियइया जीव रिहिस। कुछ दिन तक ले तो ओह निर्मला ल सैर-तमाशा देखावत रिहिस, फेर जब देखिस कि ओकर कुछु फल नइ मिलिस, ओकर बाद अकेल्ला जीये बर धर लिस। दिन भर कठिन मानसिक मेहनत के बाद ओकर मन हांसे कुलेक बर ललचा जाय, फेर जब ओह आनंद वाटिका म आवय अउ उहां के फूल मन ल मुरझाये, पौधा मन ल सुखा अउ क्यारी मन म धूर्रा देखे, त ओकर मन ह करय कि काबर ए फूलवारी ल नइ उझार दंव? निर्मला ओला काबर पसंद नइ करय, एकर रहस्य ओकर समझ म नइ आवय। दम्पत्ति-शास्त्र के सबो मंत्र ल प्रयोग कर डेर रिहिस, फेर मनोरथ (मन के इच्छा) पूरा नइ होइस। अब का करना चाही, तेह ओकर समझ म नइ आवत रिहिस।

एक दिन ओह इही चिंता म बइठे रिहिसे कि ओकर संगवारी नमन सुखराम बइठगे। राम रमउव्वा करे के बाद मुस्कुरा के किहिस-आजकल तो खूब हंसी मजाक चलत होही। नवा गोसइन के संग बिक्कट ही ही ठिठोली करत होबे। बड़ा भागमानी अस रिसाये उमर ल मनाये बर एकर ले बढ़िया उपाय कुछु नइहे कि नवा बिहाव हो जाय। इहां तो जिनगी ह झंझट होगे हवय। पत्नी जी ह अइसे जमके चिमटे हवे कि संग छोड़े के नामे नइ लेवत हवय। मंय तो दुसर बिहाव करहूं कहिके सोचत हंव। कोनो करा तोर नजर म होही ते ठीक-ठाक कर दे। बदला म तोला ओकर हाथ के बने पान खवाहूं।

तोताराम ह गम्भीर भाव म किहिस-तहूं अइसन गलती झन करबे, नइ ते पछताबे। लड़की मन तो लड़का मन ले खुश रहिथे। हम्मन अब उंकर काम के लइक नइ रेहेन। सच काहत हंव कि मंय तो बिहाव करके पछतावत हंव, बेकार आफत ल टोंटा म अरो परे हंव। सोचे रेहेंव, दु-चार बच्छर अऊ जिनगी म मजा लुहूं कहिके फेर सब उल्टा होगे।

नयनसुख - तंय का बात करथस। लड़की मन ल हमर अपन बस म करना कोनो मुश्किल बूता थोरे आय जरा धुमा फिरा दे, खेल तमाशा देखाके उंकर रंग-रुप के बड़ाई कर दे, बस ताहन रंग जम गे। 

तोताराम - ये सब कुछ करके हार गे हंव। नयनसुख अच्छा, कुछ इत्र तेल, फूल पत्ता, चाट के घलो मजा चखाये हस? 

तोताराम - अजी, ये सब कर चुके हंव। दम्पत्ति शास्त्र के सबो मन्त्र मन के परीक्षा ले चुके हंव, सब फेल होगे। 

नयनसुख - अच्छा, त अब मोर एक ठन सलाह मान। अब अपन सूरत ल ठीक करवा ले। आजकाल इहां एक झिन बिजली के डॉक्टर आये हवय, जउन ह बुढ़ापा के सबो चिन्हा ल मेटा देथे। का मजाल हे कि चेहरा म एको झुर्री अउ मुड़ी म पक्का चूंदी दिखय। कोन जनी का जादू कर देथे कि मनखे के चोला ही बदल जथे। 

तोताराम - फीस कतना लेथे?

नयनसुख - फीस तो सुने हौं, शायद पांच सौ रुपिया लेथे। 

तोताराम - अजी, कोनो पाखण्डी होही, बुद्धु मन ल लूटत होही। कुछु रंग लगाके दु-चार दिन बर चेहरा ल चिक्कन कर देवत होही। अइसन विज्ञापन वाले डॉक्टर मन उपर तो मोर भरोसा नइ हे। दस-पांच रुपया के बात होतिस, ते कहितेंव, चलो दिल्लगी ही सही फेर पांच सौ रुपया बहुत बड़े रकम आय।

नयनसुख - तोर बर पांच सौ रुपया कोनो बड़े बात थोरे आय। एक महीना के आमदनी आय। मोर करा तो भाई पांच सौ रुपया रहितिस, ते सबले पहिली काम इही करतेंव। जवानी के एक घंटा के कीमत पांच सौ रुपया ले कहूं जादा हवय। 

तोताराम - अरे यार कुछु सस्ता तरीका बता, कोनो फकीरी जड़ी बूटी जेमा हर्रा लगे न फिटकरी अउ रंग घलो चोखा लग जाये। बिजली अउ रेडियम ल बड़े मनखे मन बर राहन दे, उही मन ल मुबारक हो। 

नयनसुख - त फेर रंगीलापन के नाटक कर ए सब ढिल्ला-ढाल्ला कोट ल फेंक, बढ़िया बंद गला के कोट, चुन्नटदार पाजामा, गला म सोना के हार, मुड़ी म जयपुरी साफा बांधे आंखी म काजर अउ चूंदी म हिना के तेल लगे रहय। पेट ह फूले हवय ओला ओसकना जरुरी हवय। दोहरा टाई बांध। थोकिन तकलीफ तो होही फेर लंबा गोल गला के कोट ह तोला बने फभही। बाल ल करिया करे बर रंग मंय लान दुहूं। सौ पचास गजल याद कर ले अउ मौका-मौका म पढ़े कर। गोठ म रस भरे कर। अइसे मालूम होवय कि तोला दीन अउ दुनिया के कोनो फिकर नइ हे, बस जो कुछ हे, पत्नी ही आय। बहादुर पुरुष अउ साहस के बूता करे बर मौका खोजत राह। रात कन झूठ-मूठ के चिल्लाये कर चोर चोर ओकर बाद खुदे तलवार धर के उमन ल पकड़े बर अपन जान के बाजी लगा दे कर। हां, जरा मौका देखे लेबे, अइसे न हो कि सिरतोन म कोनो चोर आ जाये ओकर बाद घलो तंय ओकर पीछू पकड़े बर दउंड़ते रहिबे, नही ते सबो पोल खुल जही ताहन फोकट म उल्लू बन जबे। ओ बखत तो बहादुरी इही म हवय कि तंय ह हिम्मत करके खड़े रहिबे, जेकर ले ओह समझे कि तोला पता नइ चले हे, फेर जइसे ही चोर भाग ही, तहूं ह उछल के बाहर निकलबे ओकर बाद तलवार ल निकाल के कहां? कहां? काहत दउंड़बे। जादा नही एक महीना मोर बात के परीक्षा ले के देख ले। कहूं ओह तोर गुन नइ गाही, त तंय ह जउन सजा देबे ओला भोगे बर तैयार हवं।

तोताराम ह ओ समे तो ये बात ल हंसी म उड़ा दिस, जइसे कि एक व्यवहार कुशल मनखे ल करना चाही, फेर येमा के कुछ बात मन ह ओकर मन म बइठ गे। उंकर असर पड़े बर थोरको सक नइ रिहिसे। धीरे-धीरे रंग ल बदले बर धर लिस, जेकर ले कोनो ल खटके झन। पहिली चूंदी ले शुरु करिस, ओकर बाद काजल के बारी अइस, इहां तक ले एक-दु महीना म ओकर तन के रुप रंग बदल गे। गजल याद करे के प्रस्ताव तो हंसी के विषय रिहिसे, फेर बहादुरी के सेखी बघारे म कोनो नुकसान नइ रिहिस। 

ओ दिन ले ओह रोज बहादुरी के कोनो-न-कोनो बात जरुर बतावय। निर्मला ल सक होय बर धर लिस कि कहूं एला पागलपन के बीमारी तो नइ होवत हवय। जउन आदमी मूंग के दाल अउ मोटा आटा के चापाती खाके घलो काला नमक बर मोहताज होवय, ओकर छैलापन उपर पागलपन के शक होवय, त कोनो अचरज नइ रिहिस? निर्मला उपर ये पागलपन के अउ का रंग जमतिस? अतना जरुर हे कि अब निर्मला ल ओकर उपर दया आय बर धर लिस। घुस्सा अउ घीन (घृणा) के भाव गायब होगे। घुस्सा अउ घीन उंकर उपर होथे, जउन ह अपन होश म होवय, पागल आदमी ह तो दया के ही पात्र होथे। ओह बात-बात म ओकर खिल्ली उड़ावय, ओकर मजाक उड़ावय, जइसे लोगन पगला मन संग करथे। हां, एकर धियान जरुर रखय कि ओह समझ झन जाये। ओह सोचय, बिचारा ह अपन पाप के प्रायश्चित करत हवय। ए सबो नाटक ह सिरिफ एकर बर आय कि ओह अपन दुख ल बिसर जावव। आखिर अब तो भाग्य ह बदल नइ सके, ए बिचारा ल काबर चिढ़ावंव?

एक दिन रात के नौ बजे वीर जवान बने घूम के लहुटिस ताहन निर्मला ल किहिस आज तीन झिन चोर मन ले सामना होगे। थोकिन शिवपुर डाहर चल दे रेहेंव। अंधियार रिहिस। जइसने रेलवाही तीर सड़क म पहुंचेंव ताहन तीन झिन मनखे तलवार धरे पता नही कोन ड़ाहर ले निकलिस। मोर बात ल मान, तीनो झिन करिया देवता रिहिन। मंय बिल्कुल अकेल्ला, मोर करा सिरिफ एक ठन लकड़ी भर रिहिसे। ओती उमन तीनो तलवार धरे रिहिन, देख के मोर होश उड़ा गे। मंय समझ गेंव कि भइगे जिन्दगी के इहें तक साथ हवय, फेर मंय गुनेंव मरंव भी त वीर मन कस काबर नइ मरंव? अतने म एक झिन मनखे ह ललकर के किहिस रख दे तोर करा जउन भी होही अउ कलेचुप इहां ले चले जा। 

मंय छड़ी सम्हाल के खड़ा हो गेंव, ओकर बाद केहेंव-मोर करा तो सिरिफ ए छड़ी भर हवय, अउ एकर कीमत एक आदमी के मूड़ी हे।

मोर मुहूं ले अतना निकलना रिहिस ताहन तीनो तलवार निकाल के मोर उपर चढ़ई कर दिन। मंय उंकर तलवार के वार ल छड़ी ले रोके बर धर लेंव। तीनो खिसिया-खिसिया के वार करत रिहिन। खटाक के आवाज होवय अउ मंय बिजली कस झपट के उंकर वार ल काट देवत रेहेंव। करीब दस मिनट तक तीनो झिन ह खूब तलवार के करतब देखइन फेर मोर उपर खरोच तक नइ अइस। मजबूरी इही रिहिस कि मोर हाथ म तलवार नइ रिहिस। कहूं तलवार होतिस त एको झिन ल जिंदा नइ छोड़तेंव। खैर कहां तक तोला बतावंव? ओ समे तो मोर हाथ के कमाल ह देखे के काबिल रिहिस। मोला खुदे अचरज होवत रिहिसे कि अतेक चंचलता मोर म कहां ले आ गे। जब तीनो झिन देखिस कि इहां दाल गलने वाला नइ हे ताहन तलवार ल म्यान म रख लीन अउ मोर पीठ ल ठोक के किहिस-तोर असन वीर आज तक ले नइ देखे रेहेन। हम तीन-तीन सौ उपर भारी पड़थन। गांव गांव म ढोल बजा-बजा के लूटथन फेर आज तंय ह हम्मन ल नीचा देखा देस। हम्मन तोर वीरता ल मान गेन। अइसे कहिके तीनो मोर नजर ले गायब होगे। 

निर्मला ह गम्भीर भाव ले मुस्कुरा के किहिस-ए छड़ी म तो तलवार के कतनो चिन्हा बने होही? मुंशी जी ह ए शक बर तैयार नइ रिहिस, फेर जवाब देना जरुरी रिहिस, किहिस-मंय उंकर वार ले छड़ी ल थोरको लगन नइ देवं। दु-चार चोट छड़ी उपर परिस वहू ह हल्का पुल्का, जेमा कोनो निशान नइ पर सकत रिहिस। 

अभी ओकर मुंहु के सबो बात ह घलो नइ निकले रिहिस कि अचानक रुक्मिणी देवी ह दउड़त अइस अउ हफरत किहिस-तोता, तोता हवस कि नही? मोर कुरिया म सांप निकले हवय। मोर खटिया के खाल्हे बइठे हवय। मंय ह उठके भागेंव। ओह दू गज के होही। फन काट के फुस्कारत हवय, थोकिन चल तो! डंडा धर के चलबे। 

तोताराम के चेहरा के रंग उड़गे, ओह डर के मारे घबराये बर धर लिस मगर मन के भाव ल लुका के किहिस-सांप इहां कहां ले आही? तोला धोखा होइस होही। कोनो डोरी होही।

रूक्मिणी - अरे मंय अपन आंखी ले देखे हवं, थोकिन चल के तो देख। सांप आय सांप। मर्द हो के डर्राथस।

मुंशी जी घर ले तो निकलिस फेर परछी म ही ठिठक गे। ओकर पांव उठबे नइ करत रिहिस, कलेजा ह धक-धक करत रिहिसे। सांप बड़ा क्रोधी जानवर आय। कहूं चाब दिही ते मोफत म जान ले हाथ धोय बर परही। किहिस-डर्रावंव नही। सांपे तो आय शेर थोरे आय सांप उपर लउठी के प्रभाव नइ परय, कोनो ल भेजहूं ओहा जा के काकरो घर ले भाला लावय।

अइसे कहिके मुंशी जी ह लपकत बाहिर चल दिस। मंसाराम बइठ के खाना खावत रिहिसे। मुंशी जी तो बाहिर चल दिस, एती मंसाराम ह खाना ल छोड़ के, अपन हाथी के डंडा ल हाथ म धर के कुरिया (कमरा) म खुसरे के बाद तुरते खटिया ल खींचिस। सांप ह मस्त रिहिस, भागे के बल्दा उल्टा फन काट के खड़ा होगे। मंसाराम ह खटिया के चद्दर ल उठा के सांप के उपर फेंक के तीन-चार डंडा कस के पीट दिस। सांप ह चद्दर के भीतर म तड़प के रहिगे। ओकर बाद ओह डंडा म उठा के बाहिर जावत रिहिसे। ओतके बेर मुंशी जी ह कतनो झिन मनखे मन ल संग म धर के आवत रिहिस हवय। मंसाराम ल सांप ल लउठी म लटका के आवत देख के अचानक ओह जोर से चिल्लाइस फेर अपन आप ल सम्हालत किहिस-मंय तो आते रेहेंव, तंय ह जल्दी काबर करे? दे दे, कोनो ह फेंक के आ जही।

अइसे कहिके बहादुरी के साथ रुक्मिणी ह कुरिया के मुहाटी करा जाके खड़ा होगे ओकर कुरिया ल चारो कोती देख के मूंछ म ताव देवत निर्मला करा जा के किहिस-मंसा मोर आये के पहिली मार डरिस। नासमझ लड़का लउठी धर के दउंड़ गे। सांप ल हमेशा भाला ले मारना चाही। इही तो लड़का म खराबी हवय। मंय ह अइसन-अइसन कतनो सांप ल मारे हंव। सांप ल खवा-खवा के मारथंव। कतनो ल तो मुठा म धर के रमंज दे हंव। 

मुंशी झल्ला के किहिस-अच्छा राहन दे, मंय डरपोकना ही सही, तोर ले कुछु इनाम थोरे मांगत हंव। जाके रसोइया ल काह, खाना निकाले।

मुंशी ह तो भोजन करे बर चल दिस अउ निर्मला ह दुवार के चौखट म खड़ा हो के गुनत रिहिसे-भगवान ! का एला सिरतोन म कोनो गंभीर बीमारी होवत हवय? का मोर दसा ल अउ कठिन करना चाहत हस? मंय येकर सेवा कर सकथंव, सम्मान कर सकथंव, अपन जिनगी ल येकर चरन म सौंप सकथंव, फेर मंय ओ नइ कर सकय जउन मोर ले नइ हो सकय। उम्र के अंतर ल मेटाना मोर बस के बात नइ हे। आखिर येह मोर ले का चाहथे-समझ गेंव! अच्छा, ए बात ल आघू ले नइ समझे रेहेंव, नही ते एला काबर अतेक तपस्या करे बर परतिस, काबर अतेक नाटक करे बर परतिस।


सात


ओ दिन ले निर्मला के रंग-ढंग ह बदले बर धर लिस। अपन आप ल कर्तव्य उपर सौंपे बर किरिया खइस। अब तक ले निराशा के सन्ताप म ओह कर्तव्य उपर धियान देबे नइ करे रिहिसे। ओकर हिरदे म तो हलचल मचाने वाला ज्वाला दहकत राहय, जेकर भारी पीरा ह ओला बेसुध जइसे कर दे रिहिसे। अब ओ पीरा के गति ह शांत होय बर धर लिस। ओला पता चलिस कि मोर बर जीवन के कोनो आनन्द नइ हे। ओकर सपना देखके काबर ए जिनगी ल खतम करंव। संसार के सबो जीव ह सुख के कोमल बिछौना म ही तो नइ सुते? महूं ह उंकरे मन कस अभागा मे से हवं। महूं ल विधाता ह दुख के गठरी ल ढोए बर चुने हवय। ओ बोझा ह मुड़ी ले उतर ही नइ सकय। ओला फंेकना चाह हूं तभो ले नइ फेंक सकंव। ओ गरु वजन ले भले आँखी म अंधियारी छा जाये, चाहे गला (टोटा, गर्दन) टूटे बर धर लेवय, चाहे गोड़ के उठना मुश्किल हो जाये, फेर ओ गठरी ल तो ढोए बर परही। उमर भर के कैदी कब तक ले रोही? रोही तभो ले ओला कोन देखही? कोन ल ओकर उपर दया आथे? रोए ले काम बूता म रुकावट होय के सेती ओला उपराहा म पीरा ल ही तो सहे बर परथे।

दुसर दिन वकील ह जब कछेरी ले अइस त देखथे-निर्मला के साक्षात मूर्ति ह अपन कुरिया के मुहाटी म खड़े हे। ओह सुंदर चेहरा ल देखके ओकर आंखी ह सुख पइस। आज बहुत दिन के बाद ओला ए कमल ह फूले दिखाई देवत हवय। कमरा म एक ठन बड़े जन दर्पण कोठ (दीवार) म टंगाय रिहिसे। वकील साहब ह कुरिया म पांव रखिस, त दर्पण उपर नजर परिस। अपन चेहरा ल साफ-साफ देखिस। ओला अपन आप म थोकिन बेकार लगिस। दिन भर के मेहनत के बाद चेहरा के चमक ह कम होगे रिहिसे। किसम-किसम के पौष्टिक पदार्थ खाये के बाद घलो गाल के झुर्री मन साफ-साफ दिखत रिहिसे। पेट ह घोड़ा के पेट कस बाहिर निकले रिहिसे। दर्पण के आघु म दुसर कोती ल देखत निर्मला ह खड़े रिहिसे। दुनो के सूरत म कतेक फरक रिहिसे। एक ठिन ह रत्न ले जड़े बड़े राजमहल, दुसरा टूटहा-फूटहा खंडहर। ओह ओ आईना डाहर नइ देख सकय। अपन ये हीनता के भाव ल ओह सहि नइ सकत रिहिसे। ओह आईना के आघु ले हट गे, ओला अपने सूरत ले घीन होय बर धर ले रिहिस। फेर ए रुपवती नारी के ओकर ले घीन करई ह अचरज के बात नइ रिहिस। निर्मला डाहर देखे के घलो ओकर हिम्मत नइ होइस। निर्मला के अतेक सुंदर चेहरा ह वकील साहब के हिरदे के घाव बन गे। निर्मला ह किहिस-आज अतेक देरी कइसे लगायेस? दिन भर रद्दा देखत देखत आँखी पीरा गे।

तोताराम ह खिड़की डाहर देखत जवाब दिस-मुकदमा मन के मारे सांस ले के फुरसद नइ मिलय। अभी एक मुकदमा अउ रिहिसे, फेर मंय ह मुड़ी पीरा के ओखी करके घर आ गेंव। 

निर्मला - त काबर अतेक मुकदमा लेथस? काम ओतने करना चाही जतना आराम से हो सकय। प्राण दे के थोरे ही काम करे जाथे। मत करे कर जादा मुकदमा। मोला रुपया के लालच नइ हे। तंय आराम से रहिबे त, रुपया बहुत मिल जही।

तोताराम - अरे भई, आवत लक्ष्मी ल तो घलो लात नइ मारे जाय। 

निर्मला - लक्ष्मी कहूं खून अउ मांस के भेंट चघाये के बाद आथे, त ओकर नइ आना ही अच्छा हे। मंय धन के भूखी नइ हवं। 

इही समे मंसाराम घलो स्कूल ले लहूटिस। घामे-घाम रेंगे के सेती मुंहु म पसीना आ गे रिहिसे, गोरा (पड़रा) चेहरा ह ललहूं-ललहूं दिखत रिहिस हवय, आँखी ले ज्योति निकलत हवय तइसे लागत रिहिसे। दुवारी म खड़ा हो के किहिस-अम्माजी, दे ना, कुछु खाये बर, मोला खेले बर जाना हे।

निर्मला जाके गिलास म पानी लइस अउ एक ठन प्लेट म मेवा राख के मंसाराम ल दिस। मंसाराम जब खाके चले बर धरिस, तब निर्मला ह पूछिस कब तक आबे?

मंसाराम - कहि नइ सकंव, गोरा (अंग्रेज) मन संग हाकी के मैच हवय। मैदान इहां ले बिक्कट दुरिहा हवय।

निर्मला - जल्दी आबे। खाना जुड़ा जही ताहन कहिबे मोला भूख नइ लागत हे कहिके। 

मंसाराम ह निर्मला डाहर सरल स्नेह भाव ले किहिस-मोला देरी हो जही ते समझ जबे कि मंय उहे खावत हंव। मोला देखत बइठे रेहे के जरुरत नही हे।

ओह चले गे, ओकर जाये के बाद निर्मला किहिस-पहिली तो घर आबे नइ करय, मोर संग गोठियाये बर लजावय। कोनो चीज के जरुरत होवय, त बाहिर ले ही मंगवा लेवय। जब ले मंय बला के केहेंव, तब ले आय बर धर लेहे।

तोताराम ह चिढ़ के किहिस-येह तोर करा खाये-पीये के चीज मांगे बर काबर आथे? दीदी करा काबर नइ मांगय?

निर्मला ह ए बात ल वाहवाही पाये के लोभ ले केहे रिहिसे। ओह ए देखना चाहत रिहिसे कि मंय तोर लड़का मन ले कतना मया करथंव। येह कोनो बनावटी प्रेम नइ रिहिस। ओला लड़का मन ले सिरतोन के स्नेह रिहिसे। ओकर चरित्र म अभी तक लइका मन कस भाव रिहिसे। लइका मन कस आनंद, चंचलपन अउ हंसी मजाक रिहिसे तभे तो लइका मन के संग ये सबो लइकापन के आचरन ह दिखय। पत्नी कस जलन (ईर्ष्या) अभी तक ओकर मन म नइ जागे रिहिसे। फेर पति ह खुश हो के बदला नाक कान ल सिकोड़े के मतलब जाने बिना किहिस-मंय का जानव, ओकर ले काबर नइ मांगय? मोर करा आथे, त भगा थोरे देवंव। कहूं अइसन करहूं त इही होही कि येह तो लइका मन ल देखके जलथे।

मुंशी जी एकर कुछु जवाब नइ दिस, फेर आज ओह अपन मुवक्किल (अपन वकील करइया) मन ले बात नइ करिस, बल्कि सीधा मंसाराम करा गिस ओकर परीक्षा (इम्तहान) लेबर धर लिस। येह जीवन के पहिली मौका रिहिसे कि ओह मंसाराम या कोनो लड़का के पढ़ई के प्रगति बर अतना दिलचस्पी देखाये रिहिस होही। ओला तो अपन काम ले मुड़ी उठाये के मौका नइ मिलत रिहिस। ओला ए विषय मन ल पढ़े लगभग चालीस बच्छर हो गे रिहिसे। तब ले उंकर मन डाहर आंखी उठा के नइ देखे रिहिसे। ओहा कानूनी किताब अउ चिट्ठी मन के सिवाय कुछु अउ दुसर पढ़बे नइ करत रिहिसे। ए सब समय नइ मिलत रिहिसे, फेर आज उही विषय मन म मंसाराम के परीक्षा लेवत रिहिसे। मंसाराम बुद्धिमान रिहिसे अउ संगे-संग मेहनती घलो रिहिस। खेल के टीम म कप्तान होय के बाद घलो वोह कक्षा म प्रथम आवत रिहिसे। जउन पाठ ल एक घांव देख लेतिस, पथरा के लकीर हो जतिस। रटा जावत रिहिसे। मुंशी जी ल उतावलापन म अइसे कठिन प्रश्न तो सूझिस नही, जेकर उत्तर दे बर हुशियार लड़का ल कुछु सोचे बर परतिस, मंसाराम ओकर प्रश्न ल अटखेली (चुटकी) म उड़ा दिस। कोनो सिपाही अपन बैरी मन उपर वार खाली जावत देखके जइसे झल्ला-झल्ला के अउ जोर-जोर से वार करथे उही किसम ले मंसाराम के जवाब ल सुन-सुन के वकील साहब घलो झल्लावय। अब कोनो अइसे प्रश्न पूछना चाहत रिहिसे, जेकर जवाब मंसाराम ह झन दे सकय। देखना चाहत रिहिसे कि एकर कमजोरी का आय। ये देखके अब ओला संतोष नइ हो सकत रिहिस हे कि ओह का करथे। ओह ये देखना चाहत रिहिसे कि येहा का नइ कर सकै। कोनो अनुभवी परीक्षा लेवइया ह मंसाराम के कमजोरी ल बड़ा आसानी ले पकड़ डरतिस, फेर वकील साहब ह अपन पचास साल के भूले बिसरे शिक्षा के आधार उपर अतेक सफल कइसे होतिस? आखिरी म ओला अपन घुस्सा उतारे बर कोनो बहाना नइ मिलिस त किहिस अब मंय तोला देखथंव, तंय ह दिन भर एती-ओती मटरगस्ती करत फिरत रथस, मंय तोर चरित्र ल तोर बुद्धि ले पढ़के समझथंव अब तोर ये आवारा घुमई ल मंय बरदास्त नइ कर सकंव।

मंसाराम ह बिना डरे किहिस-मंय संझा कना एक घंटा खेले बर जाये के सिवा दिन भर अऊ कहूं नइ जावंव। आप अम्मा नही ते फूफूजी ले पूछ लव। मोला खुदे अइसन घुमई फिरई ह पसन्द नइहे। हां, खेले बर हेड मास्टर साहब कलौली (आग्रह, बिनती) करके बलाथे, त मजबूरन जाना परथे। कहूं आप ल मोर खेले बर जवई ह पसंद नइ हे, त काली ले नइ जावंव।

मुंशीजी ह देखिस कि बात ह दुसर डाहर जाय बर धरत हे, खिसिया के चिल्ला के किहिस- मोला ए बात के भरोसा काबर नइ होवत हवय कि तंय ह खेले के सिवा कहूं धूमे बर नइ जावस? तोर शिकायत बराबर मोर करा आवत रहिथे।

मंसाराम घलो घुस्सा के किहिस-कोन मनखे ह आप करा शिकायत करथे, महूं तो सुनव।

वकील - कोनो होवय, एकर ले तोला कोनो मतलब नइ हे, तोला अतना भरोसा होना चाही कि मंय फोकट आरोप नइ लगावंव।

मंसाराम - कहूं मोर आघू म कोनो आ के कहि दे कि एले कहूंचो धूमत-फीरत देखे हंव, त मंय अपन थोथना नइ देखावंव।

वकील - कोनो ल अइसे का गरज परे हे कि तोर आघू म तोर शिकायत करके तोर से दुश्मनी मोल लेवय? तंय अपन दु-चार झिन संगवारी मन संग मिलके उंकर घर के खबरा-छानी फोरत किंजरत रहिबे। मोला अइसन किसम के शिकायत एक आदमी ह नही बल्कि कतनो आदमी ह करे हे अउ दुसर कोनो कारण घलो नइ हे कि मंय अपन संगवारी मन के बात उपर भरोसा नइ करंव। मंय चाहथंव कि तंय स्कूल म ही रेहे कर।

मंसाराम ह मुंहु ओथार के किहिस-मोला उहां रेहे म कोनो आपत्ति नइ हे, जब कहिबे तब चल दुहूं।

वकील - तंय ह मुंहु ल काबर ओथराए हस? का उहां रहना तोला अच्छा नइ लगय? अइसे लागथे, मानो उहां जाये के डर ले तोर आजी दाई मरत हवय। आखिर का बात आय, उहां तोला का के तकलीफ होही?

छात्रावास म रेहे बर मंसाराम के मन ह नइ रिहिसे, फेर जब मुंशीजी ह ए बात ल कहि दिस अउ ओकर कारण पूछिस, उही पाये के मन ल मढ़ाय खातिर खुश होके किहिस मुंहु ल काबर ओथराहूं? मोर तो जइसे घर ओइसने बोर्ड़िग हाउस। मोला उहां रेहे बर तकलीफ घलो नइ हे अउ कहूं हो भी जही तेला सहि सकथंव। मंय काली चल दुहूं। हां, कहूं उहां जघा खाली नइ होही त ओह मजबूरी होही। मुंशीजी वकील रिहिसे। ओह समझ गे कि ये टूरा ह अइसे बहाना खोजत हवय, जेकर ले मोला उहां जाय बर घलो झन परे अउ इल्जाम (दोष) घलो अपन मुड़ी म झन आये। किहिस-सब टूरा मन बर जघा हवय, तोर भर बर काबर जघा नइ होही?

मंसाराम - कतनो लड़का मन ल जघा नइ मिले हे अउ उमन बाहिर किराया के मकान म राहत हवय। अभी बोर्डिंग हाउस म एक झिन लड़का के नाम कटगे रिहिसे, त ओ जघा बर पचासो आवेदन आये रिहिसे।

वकील साहब ह गोठबात ल जादा बढ़ाना उचित नइ समझिस। मंसाराम ल काली तैयार रेहे बर कहि के अपन घोड़ा गाड़ी (बग्घी) ल तैयार करा के घूमे बर निकल गे। एती ओह कुछ दिन ले संझा कन प्रायः घुमे बर जावत रिहिसे। कोनो अनुभवी आदमी बताये रिहिसे कि जिनगी बर एकर ले बढ़िया मन्त्र नइ हे। ओकर जाये के बाद मंसाराम रुक्मिणी ले किहिस-फूफूजी, बाबूजी काली ले मोला स्कूल म रेहे बर केहे हे।

रुक्मिणी अनजान बनके पूछिस-काबर? 

मंसाराम - मंय का जानव? काहत रिहिसे कि तंय ह इहां आवारा मन कस एती-ओती घुमत-फिरत रहिथस।

रुक्मिणी - तंय केहे नही कि मंय कहंुचो नइ जावंव।

मंसाराम -केहेंव, फेर ओह माने जब।

रुक्मिणी - तोर नवा महतारी के किरपा होही अउ का?

मंसाराम - नही, फूफूजी मोला ओकर उपर शक नइ हे, ओ बिचारी ह तो भूल के घलो कभू कुछु नइ काहय। कुछु जिनिस मांगे बर जाथंव त तुरते उठा के दे देथे।

रुक्मिणी - तंय ये तिरिया-चरित्तर ल का जानबे, एह ओकरे लगाये आगी आय! देख, मंख जाके पूछथंव।

रुक्मिणी तमतमावत निर्मला करा पहुंचिस। ओला परेशान करे के, कांटा म घसीटे के, ताना ले छेदे के अउ रोवाये के सुग्घर मौका ल ओह कभू हाथ ले जावन नइ देवय। निर्मला ओकर आदर करै, ओकर आघु म मुड़ी गड़िया के खड़े राहय, ओकर बात के जवाब नइ देवय। ओह चाहे कि येहा मोला सिखोवय, कुछु कही भुलावंव त ओला बतावय, सब काम बूता के देखरेख करत रहय, फेर रुक्मिणी ह ओकर बर तमतमाते राहय।

निर्मला खटिया ले उठके किहिस-आवव दीदी, बइठव। रुक्मिणी ह खड़े-खड़े किहिस-मंय पूछथंव का तंय ह ए घर ले सब ला निकाल के अकेल्ला रहना चाहत हस?

निर्मला ह डर्रावत किहिस-का होगे दीदी जी? मंय तो काकरो करा कुछु नइ केहेंव।

रुक्मिणी - मंसाराम ल घर ले निकालत हवस, उपराहा म काहत हवस मंय तो कुछु नइ केहेंव, का तोर ले अतनो नइ देखे जावत हवय?

निर्मला - दीदी जी, तोर पांव परके खाहत हवं, मंय कुछु नइ जानव। मोर आंखी फूट जाय कहंू ए विषय म अपन मुंहु खोले होहंू।

रुक्मिणी - फोकट के काबर किरिया खावत हस। अब तक ले तोताराम कभू लड़का मन ल कुछु नइ काहय। एक हफ्ता बर मंसाराम अपन ममा गाँव चल दे रिहिसे, ते अतना घबराए रिहिसे कि खुदे जा के लान लिस। अब इही मंसाराम ल घर ले निकाल के स्कूल म रखे बर सोचत हे। कहूं लड़का के बाल भी बांका होइस, त एकर जवाबदार तंय रहिबे। ओह कभू बाहिर नइ रिहिस, ओला न खाये के सुध रहिथे, न पहिने ओढ़े के जउन करा बइठथे उही करा सुत जथे। केहे बर तो जवान होगे हे फेर सुभाव तो लइका मन कस हे। स्कूल म ओकर मरना हो जही। उहां कोन करही फिकर एह खाये हे कि नही, कते मेर कपड़ा उतारे हे, कते करा सुतत हवय। जब घर म कोनो पूछइया नइ हे त बाहिर कोन पूछही। मंय ह तो चेता दे हंव, एती तंय जान अउ तोर काम जाने।

अइसे कहिके रुक्मिणी ओ मेर ले चले गे।

वकील साहब ह घूमकर लहूटिस निर्मला ह तुरते ओला अपन बात ल कहना शुरु करिस-मंसाराम ले ओह आजकल थोकिन अंग्रेजी पढ़त रिहिसे। ओकर चले जाये ले ओकर पढ़े के कोनो मतलब नइ रही? दुसर कोन पढ़ाही? वकील साहब ल अब तक ले ए बात के जानकारी नइ रिहिस। निर्मला ह सोचे रिहिसे कि जब कुछु अभ्यास हो जही ताहन वकील साहब ल एक दिन अंग्रेजी म गोठबात करके अचम्भा म डार दुहूं। एकाद कनी गियान तो ओला अपन भाई मन ले घलो होगे रिहिसे। अब ओह सरलग पढ़त रिहिसे। वकील के दिमाग खराब होगे, खिसिया के किहिस-ओह कब ले पढ़ावत हवय तोला? मोला तंय ह कभू नइ बताये।

निर्मला ह ओकर ये रुप ल सिरिफ एक घांव देखे रिहिसे, जब ओह सियाराम ल मार-मार के ओकर हालत खराब कर दे रिहिसे। ओ रुप ले अउ जादा विकराल रुप दिखिस। डर्रावत किहिस-ओकर पढ़ई-लिखई म तो येकर ले कोनो फरक नइ परय, मंय ओकर ले उही बखत पढ़थंव जब ओला फूरसत मिलथे। पूछ लेथंव कि तोला पढ़ाये बर कोनो हर्ज होवत होही, त जा। ओइसे जादातर जब ओह खेले बर जावत रथे, त दस मिनट बर रोक लेथंव। मंय खुद चाहथंव कि ओकर नुकसान झन होवय।

बात ह कुछु नइ रिहिस फेर वकील साहब ह हताश हो के खटिया म गिर गे अउ माथ म हाथ रख के चिन्ता करे बर धर लिस। ओह जतना समझे रिहिसे, बात ह कहूं ओकर ले जादा बाढ़ गे रिहिसे। ओला अपन उपर बिक्कट घुस्सा अइस कि मंय ह पहिली ले ही ए टूरा बर बाहिर म रेहे के प्रबंध काबर नइ करेंव। आज कल ए महारानी अतना खुश नजर आथे, एकर रहस्य अब समझ म अइस। पहिली कभू कुरिया ह अतना सजे-सजाये नइ राहय, जादा सिंगार घलो नइ करत रिहिसे, फेर अब देखथंव, काया पलट कस होगे हे। जी म अइस कि इही समे जा के मंसाराम ल धर के निकाल दे, फेर सुलझे दिमाक समझइस कि ए समे म क्रोध के जरुरत नइ हे। कहूं एह भांप लिही, त गड़बड़ हो जही। हां, थोकिन एकर मन के भाव ल जानना चाही। किहिस-ये तो मंय जानथंव कि तोला दु-चार मिनट पढ़ाये ले ओला परेशानी नइ होवय, फेर आवारा लड़का आय, अपन बूता ल नइ करे बर ओला एक ठन बहाना मिल जथे। काली कहूं फेल हो जही, त साफ कहि दिही - मंय तो दिन भर पढ़ावत रेहेंव। तोला पढ़ाये बर मंय ह मास्टरीन रख दुहूं। जादा खर्चा घलो नइ होही। तंय ह मोला पहिली कभू कहिबे नइ करे। येह भला तोला का पढ़ावत होही, दु-चार ठिन शब्द पढ़ा के भाग जावत होही। अइसन म तो तोला कुछु नइ आही।

निर्मला तुरते ए आरोप के खण्डन करिस-नही, अइसे बात नोहे। ओह मोला मन लगा के पढ़ाथे अउ ओकर पढ़ाये के तरीका घलो बढ़िया हे जेकर ले पढ़े के मन घलो करथे। आप जरा एक दिन ओकर पढ़ाये के तरीका ल देखहू। मोर तो मानना हे कि मास्टरीन ह अतेक धियान दे के नइ पढ़ा पाही।

मुंशीजी बड़ा चालाकी से मेछा म ताव देवत किहिस-दिन म एके घांव पढ़ाथे या कई घांव पढ़ाथे।

निर्मला अभी घलो एकर सवाल के मतलब नइ समझिस। किहिस-पहिली तो संझा कन पढ़ा देवत रिहिसे, अब तो कई दिन म एक घांव आ के लिखई ल घलो देखे लेथे। ओ तो कथे मंय कक्षा म सबले बढ़िया हंव। अभी परीक्षा म इही ह प्रथम आय रिहिसे, फेर आप कइसे समझथव कि पढ़ई म ओकर मन नइ लगय? मंय ए पाय के अऊ कहिथंव कि दीदी ह समझही, इही ह आगी लगाये हे। फोकट म मोला ताना सुने बर परही। अभी थोकिन पहिली मोला धमका के गे हे।

मुंशीजी ह मने मने किहिस-खूब समझथंव। तंय काली के छोकरी मोला उल्लू बनाये बर चलेस! दीदी के बहाना ले के अपन मतलब पूरा करना चाहथस। किहिस-मंय नइ समझंव, बोर्डिंग के नाम सुन के टूरा के चेहरा ओथर जथे। दुसर टूरा मन होतिस ते खुश होतिस कि अपन संगवारी मन संग रहिबोन कहिके, एह उल्टा रोवत हवय। अभी कुछ दिन पहिली तक मन लगा के पढ़य, येह उही मेहनत के नतीजा आय कि ओह क्लास म सबले बढ़िया हवय, फेर एती कुछ दिन ले एकर घुमई-फिरई म चस्का बाढ़ गे हवय। कहूं अभी ले एला रोके नइ जाही, ते बाद म कुछु करत धरत नइ बनही। तोर बर मंय एक झिन मास्टरीन रख दुहूं।

बिहान दिन मुंशीजी ह बिहनिया कपड़ा लत्था पहिर के बाहिर निकलिस। दीवानखाने (घर म वकील के बइठक रुम) म कतनो मुवक्किल बइठे रिहिन हे। एमा एक झिन राजा साहब घलो रिहिस, जेकर करा ले कई हजार रुपया सालाना मेहनताना मिलय, फेर मुंशीजी ह उहे उमन ल बइठे छोड़ के दस मिनट म आवत हंव कहिके वादा करके घोड़ा गाड़ी (बग्घी) म बइठ के स्कूल के हेडमास्टर करा पहुंचिस। हेडमास्टर बड़ा सज्जन पुरुष रिहिस। वकील साहब के आदर-सत्कार करिस। फेर ओकर इहां एक लड़का बर घलो जघा खाली नइ रिहिसे। सबो कमरा भरे रिहिसे। इन्सपेक्टर साहब के कड़ा आदेश रिहिसे कि स्कूल के तीर-तखार के लड़का मन ल पहिली जगह दे के बाद शहर ले दुरिहा रहवइया लड़का मन ल जघा दे जाय। इही पाय के कोनो जघा खाली होही, तभो ले मंसाराम ल जघा नइ मिल पाही काबर कि कतनो बाहरी लड़का मन के प्रार्थना-पत्र रखाय हे। मुंशीजी वकील रिहिस, रात-दिन अइसन प्राणी मन के सपेड़ा (मुलाकात) पड़त राहय, जउन मन लोभवश असंभव ल घलो संभव, असहाय ल घलो सहाय बना सकथे। समझिस कुछ दे-दुआ के काम बन जही, दफ्तर के क्लर्क (बाबू) संग ए संबंध म कुछु गोठियाना चाहिस, फेर ओह हांस के कहि दिस मुंशी जी एह कछेरी नोहे, स्कूल आय, हेडमास्टर साहब के कान म एकर थोरको भनक लग जही ते घुस्सा से तलमला के मंसाराम ल खड़े-खड़े निकाल दिही। हो सकथे, आफिसर मन करा तोर शिकायत घलो कर देवय बिचारा मुंशीजी ह उदास होगे। दस बजत-बजत मुंहु ल ओथरा के घर लहुटिस। मंसाराम उही बखत घर ले स्कूल जाये बर निकलिस। मुंशीजी ओला घूर के देखिस, जानो मानो ओकर कट्टर दुशमन (बैरी) आय, ओकर बाद ओह घर के अंदर चले गे।

एकर बाद दस-बारह दिन तक वकील साहब के इही नियम रिहिस कि कभू बिहनिया न कभू संझा, कोनो न कोनो हेडमास्टर ले मिलय अउ मंसाराम ल बोर्डिंग हाउस म दाखिल करे बर कोशिश करय फेर कोनो स्कूल म जघा नइ रिहिस। सबो जघा कोरा जवाब मिल गे। अब दुए ठन उपाय रिहिसे-या तो मंसाराम ल अलग किराये के मकान म रख दे जाये नही तो कोनो दुसर स्कूल म भर्ती करा दिये जाय। इही दुनो बात आसान रिहिस। नगर के आस-पास (मुनिस्पिल) के स्कूल मन म अक्सर जघा ह खाली राहय, फेर अब मुंशीजी के सक्की हृदय ह शांत होगे रिहिसे। ओ दिन ले ओह मंसाराम ल कभू घर ले जावत नइ देखे रिहिसे। इहां तक ले कि अब ओह खेले बर घलो नइ जावय। स्कूल जाये के पहिली अउ आये के बाद बराबर अपन कुरिया म बइठे राहय। गर्मी के दिन रिहिस, खुल्ला मैदान म घलो तन ले पछीना के धार चुचवावत राहय, ओकर बाद घलो मंसाराम अपन कुरिया ले बाहिर नइ निकलय। ओकर आत्म स्वाभिमान आवारापन के आरोप ले मुक्त होय बर छटपटावत रिहिसे। ओह अपन आचरन ले ए कलंक ल मेटा देना चाहत रिहिसे।

एक दिन मुंशीजी ह बइठ के भोजन करत रहिसे ठउंका ओतके बखत मंसाराम घलो नहा खोर के खाये बर अइस। मुंशीजी ए डाहर ओला कतनो दिन ले उघरा बदन नइ देखे रिहिसे। आज ओला देखिस ते ओकर होश उड़ागे। हाड़ा के ढांचा आघु म खड़े हे। मंुहु म अभी घलो ब्रम्हचर्य कस तेज रिहिस, फेर तन ह सूखा के कांटा होगे। पूछिस - कइसे आजकल तोर तबीयत अच्छा नइ हे, का? अतेक कइसे दुबरा गे हस?

मंसाराम ह घोती ल ओढ़ के किहिस-तबीयत तो बिल्कुल ठीक हे।

मुंशीजी - फेर अतेक कइसे दुबरा गे हस?

मंसाराम - दुबला-पतला नइ हंव, मंय एकर ले जादा मोटा कब रेहेंव?

मुंशीजी - वाह, आधा देह घलो नइ हे अउ कहिथस मंय दुबलाय नइ हंव? कइसे दीदी, येहा अइसने रिहिस?

रुक्मिणी अंगना म खड़े तुलसी म पानी चघावत रिहिसे, किहिस-दुबला काबर होही, अब तो बहुत बढ़िया ओकर लालन-पालन होवत हवय। मंय गंवारिन रेहेंव, लड़का मन ल खवाये-पियाये बर नइ जानत रेहेंव। खजानी खवा-खवा के इंकर मन के आदत ल बिगाड़ दे रेहेंव। अब तो पढ़े लिखे, गृहस्थी के बूता म चतुर माईलोगन कोमल पत्ता मन कस जतन करत हवे न, दुबला होवय ओकर दुशमन।

मुंशीजी - दीदी, तंय बड़ा अन्याय करथस। तोला कोन ह काहत हे कि लड़का मन ल बिगाड़त हस कहि के। जउन बुता दुसर ले नइ हो सकय ओला तोला खुदे करना चाही। ए नही कि घर ले कोनो नाता मत रखो। जउन अभी खुदे लड़की हे, ओह लड़का मन के देख रेख कइसे करही? ये सब तोर काम आय।

रुक्मिणी - जब तक मंय अपन समझत रेहेंव, करत रेहेंव। जब तंय ह गैर समझ लेस, त मोर का गरज परे हे कि मंय तुंहर मन बर बोझा बनंव? पूछ ओला, के दिन ले कुछु नइ पिये हे। जाके कुरिया म देख ले, नाश्ता बर जउन मिठाई भेजे गे रिहिसे ओह सरत परे हवय। मालकिन समझथे कि मंय तो खाना के सामान रख दे हंव, कोनो नइ खाही त ओकर मुंहु म जबरन डार थोरे दंव? त भइया, अइसने किसम ले लड़का मन दुबरावत जाही, जउन मन कभू मया दुलार के सुख ल देखेच्च नइ हे। तोर लड़का मन ल पहिली बराबर खान पान मिलत रिहिसे, अब अनाथ मन कस रहि के सुखी नइ रहि सकय। मंय तो साफ-साफ बात कहिथंव। कोनो बुरा मान जही त मोर का करही? उपराहा म सुनत हंव कि लड़का मन ल स्कूल म रखे बर प्रबंध करे जावत हे। बिचारा ल घर तक आये बर घलो मनाही हे। मोर करा आये बर घलो डर्राथे अउ फेर मोर करा रखे ही का रथे, जेला जा के उमन ल खवावंव।

अतना म मंसाराम ह दु कौंरा खाके उठ गे। मुंशी जी ह पूछिस - कइसे तंय खा डरेस? अभी बइठे तोला एक मिनट ले जादा होय नइ हे, तंय ह कतना खाय हस, दुए कौंरा तो खाय हस।

मंसाराम ह सकुचावत किहिस-दार अउ रोटी तो घलो रिहिसे, जादा खा डरथंव त गला म जलन होय बर धर लेथे। अम्मट-अम्मट ढकार आये बर धर लेथे।

मुंशीजी जब भोजन करके उठिस त बहुत चिंता म रिहिस। कहूं अइसने दुबरावत जाही त ओइसन म कोनो भयंकर रोग धर लिही। ओला रुक्मिणी उपर ए समे बहुत क्रोध आवत रिहिसे। ओला जलन हे कि मंय ए घर म मालकिन नो हंव। ओला मालकिन बने के का अधिकार हे? जेला रुपया के हिसाब तक नइ आवय, ओह घर के मालकिन कइसे हो सकथे? बने तो रिहिसे मालकिन, एक पाई के बचत नइ कर पावत रिहिसे। अतना आमदनी म रुपकला ह दु-ढाई सौ रुपया बचा लेवत रिहिसे। एकर राज म तो ओतके आमदनी म घर चलना मुश्किल होवत रिहिसे। कोई बात नही, मया-दुलार ह ए लड़का मन ल चौपट कर देहे। अतना बड़े-बड़े लड़का मन ल का जरुरत रिहिसे कि जब कोनो खवावय त खाये। इमन ल तो अपन फिकर खुदे ल करना चाही। मुंशीजी दिन भर इही सोच बिचार करत रिहिसे। दु-चार झिन संगवारी मन करा घलो जिक्र करे रिहिसे। लोगन मन किहिन-ओकर खेलकूद म बाधा झन डार, अभी ले ओला कैद झन कर, खुल्ला हवा म एकर बिगड़े के संभावना कम हे जतना बंद कि बंद कमरा म हे। गलत संगति ले जरुर बचावव, फेर एकर मतलब ए नइ हे कि ओला घर ले निकलन ही न दे जाये। युवावस्था म अकेल्लापन ह चरित्र बर बहुत ही हानिकारक हे। मुंशीजी ल अब अपन गलती के पता चलिस। घर लहूट के मंसाराम करा गिस। ओह अभी स्कूल ले आये रिहिसे अउ बिना कपड़ा उतारे, एक ठन किताब ल आघू म खोले के खिड़की डाहर ल देखत रिहिसे। ओह एक झिन भिखारिन ल देखत रिहिसे, जउन ह अपन लइका ल गोदी म पा के भीख मांगत रिहिसे। लइका अपन महतारी के गोद म बइठे अइसे खुश रिहिसे जानो मानो ओह राज सिंहासन म बइठे हे। मंसाराम ओ लइका ल देख के रो डरिस। ओ लइका ह का मोर ले जादा सुखी नइ हे? ए अनंत विश्व म अइसे कोन से वस्तु हे, जेला ओह ए गोदी के बदला पा के खुश होवय? ईश्वर अइसन वस्तु के सृष्टि नइ कर सकय। ईश्वर अइसन लइका मन ल जनम ही काबर देथे, जेकर भाग्य म महतारी के विरह के दुख भोगना बदे हे? आज मोर ले अभागा ए संसार म अउ कोन हे? कोन ल मोर खवई-पियई, मरई-जियई के सुध हे। कहूं मंय आज मर घलो जहूं, काकर दिल ल दुख पहुंचही! पिताजी ल अब मोला रोवाये म मजा आथे, ओह मोर सूरत घलो नइ देखना चाहय, मोला घर ले निकाले के तैयारी चलत हवय। हे महतारी! तोर दुलारूवा बेटा आज आवारा कहावत हे? उही पिताजी जेकर हाथ म हमर तीनो भाई के हाथ ल पकड़ाये रे हे, आज मोला आवारा अउ बदमाश काहत हे। मंय ए लायक घलो नइ हंव कि ए घर म रहि सकंव। इही सब बात ल गुनत-गुनत मंसाराम आपार पीरा ले फूट-फूट के रोवत रिहिसे।

ओतके बेर तोताराम कमरा म आ के खड़ा होगे। मंसाराम ह धकर लकर आंसू ल पोंछ के मुड़ी गड़िया के खड़े होगे। मुंशीजी शायद ए पहिली घांव ओकर कमरा म कदम रखे रिहिस। मंसाराम के जीव ह घबरावत रिहिसे कि कोन जनी आज का आफत अवइया हवय। मुंशी जी ह ओला रोवत देखिस, त बेटा बर ओकर वात्सल्य ह जाग गे। घबरा के किहिस-काबर रोथस बेटा, कोनो ह कुछु केहे हे?

मंसाराम मुश्किल से बोहावत आंसू ल पोंछ के किहिस-जी नही, रोवत तो नइ हंव।

मुंशीजी - तोर अम्मा ह तो कुछु नइ केहे हे?

मंसाराम - का करंव बेटा, बिहाव तो इही पाय के करे रेहेंव कि लइका मन ल महतारी मिल जावय, फेर ओ आशा ह पूरा नइ होइस त का बिल्कुल नइ बोलय?

मंसाराम - बिल्कुल नही, महीना भर होगे हे बोले नइ हे।

मुंशीजी - विचित्र स्वभाव के माईलोगन आय, पता ही नइ चलय कि ओह का चाहथे, मंय जानत रहितेंव कि एकर अइसन मिजाज होही, त कभू बिहाव नइ करतेंव। रोज एक न एक बात ल धर के खड़ा हो जथे, उही ह मोला केहे रिहिसे कि येह दिन भर कोन जनी कहां गायब रहिथे। मंय ओकर दिल के बात ल का जानत रेहेंव? मंय समझेंव तंय ह कुसंगति म पड़ के शायद दिन भर घूमत होबे। अइसे कोन से पिता हे जेला अपन संतान ल आवारा घूमत देख के रंज नइ लागही? इही पाय के मंय तोला बोर्डिंग हाउस म रखे बर सोचे रेहेंव। बस, अउ कोनो बात नइ रिहिसे, बेटा। मंय तोर खेलना कूदना बंद नइ करना चाहत रेहेंव। तोर ये दशा ल देख के मोर दिल दुखी हो जथे। काली मोला पता चलिस कि मंय भ्रम म रेहेंव। तंय सउंख से खेल, संझा बिहनिया मैदान चले जाय कर। शुद्ध हवा ले तोला फायदा होही। जउन चीज के तोला जरुरत होवय मोला कहि दे कर, ओला केहे के जरुरत नइ हे। समझ ले कि ओह घर म है ही नही। तोर महतारी ल छोड़ के चले गे हे त मंय तो हंव।

बालक के सरल हिरदे ह पिता के प्रेम खुश होगे। अइसे लागिस जानो-मानो साक्षात भगवान खड़े हवय। निराशा अउ व्याकुलता ले घबरा के ओह अपन मन म पिता ल निष्ठुर अउ न जाने का का समझ डरे रेहेंव। सौतेली माता ले ओला कोनो शिकायत नइ रिहिसे। अब ओला पता चलिस कि मंय ह अपन देवतुल्य पिता के संग कतना अन्याय करे हंव। पिता भक्ति के लहरा हिरदे म उठिस अउ ओह पिता के चरण म सिर रखके रोए बर धर लिस। मुंशीजी रहम के मारे अशांत होगे। जउन बेटा ल क्षण भर आँखी ले दुरिहा देख के ओकर हिरदे परेशान हो जावत रिहिसे, जेकर सरलता, बुद्धि अउ चरित्र के अपन-पराया सबो करा बड़ाई करत राहय? ओकरे बर ओहर ह्दय ह अतेक कठोर काबर होगे रिहिसे। ओह अपने ही बेटा ल बैरी समझेे बर धर ले रिहिसे, ओला घर ले निकाले बर तैयार होगे रिहिसे। निर्मला पुत्र अउ पिता के बीच दीवार बनके खड़े रिहिसे। निर्मला ल अपन डाहर आकर्षित करे बर ओकर हिसाब से गोठियाय बर परय तिही पाय के पिता अउ पुत्र म अन्तर बाढ़त जावय। फलतः आज ये दशा होगे कि अपन प्रिय पुत्र ले ओला अतेक अकन छल करे बर परगे। आज बहुत सोचे के बाद ओला एक ठन उपाय सूझिस, जेकर ले आशा  होवत रिहिसे कि निर्मला ल बीच ले निकाल के अपन लइका मन ल अपन मया म बांध लिही। ओह ए उदीम के शुरुआत घलो कर दे हे फेर एह कतना सफल होही ते नइ होही, एला कोन जानथे। 

जउन दिन ले तोताराम ह निर्मला के बहुत मना करे के बाद घलो मंसाराम ल बोर्डिंग हाउस म भेजे बर तय करिस, उही दिन ले ओह मंसाराम ले पढ़े बर छोड़ दे रिहिसे। इहां तक ले बोलत घलो नइ रिहिसे। ओला अपन स्वामी के ए अनभरोसी जल्दीबाजी के कुछ-कुछ आभास होगे रिहिसे। ओ हो! अतेक सक्की मिजाज! भगवान ही ए घर के लाज रखे। एकर मन म अइसे-अइसे गलत बिचार भरे हवय। मोला येह अतना गे गुजरे समझथे। ये सब बात मन ल सोच सोच के ओह कतनो दिन ले रोवत रिहिसे। तब ओह सोचना शुरु करिस, एला का अइसे शक होवत हवय? मोर अइसे कोन से बात हे, जउन ह एकर आंखी म खटकथे। बहुत कुछ सोचे के बाद घलो अपन म कोनो अइसे बात नजर नइ अइस। त का ओकर मंसाराम ले पढ़ना, हंसना बोलना ही येकर शक के कारण आय, अइसन म मंय पढ़ई-लिखई छोड़ दुहूं, भूल के घलो मंसाराम ले नइ बोलंव, ओकर सूरत नइ देखंव।

फेर ए तपस्या ओला मुश्किल लगत रिहिसे। मंसाराम से हांसे-गोठियाये ले आनंद के कल्पना बाढ़य अउ सुख मिलय। ओकर ले बात करे ले ओला अपार सुख के अनुभव होवय। जेला ओह शब्द म बखान नइ कर सकत रिहिसे। मंसाराम बर गलत विचार कभू आयेच्च नइ रिहिसे। ओह सपना म घलो मंसाराम संग प्रेम के बात कभू नइ सोच सकत रिहिसे। सबो जीव म अपन हमजोली मन संग हांसे गोठियाये के जउ स्वाभाविक इच्छा रहिथे, उही सुख के यह अनजान साधना रिहिसे। अब ओ प्यासे तृष्णा ह निर्मला के हिरदे म दीपक कस बरत रिहिसे। रहि रहि के ओकर मन ह कोनो अनजान वेदना ले दुखी होवत रिहिसे। गंवाये कोनो अज्ञात जिनिस के खोज म एती ओती घूमय-फिरय, जे करा बइठे ओ करा बइठे रहि जावय। कोनो काम बूता म मन नइ लगय। हां, जब मुंशी जी आ जावय त अपन सबो तृष्णा ल निराशा म बढ़ो क,े ओकर ले मुस्कुरा के एती ओती के गोठ गोठियावय।

काली जब मुंशीजी ह भोजन कर के कचहरी (कछेरी) चल दिस, ओकर बाद रुक्मिणी ह निर्मला ल खूब ताना मारिस-जानत तो रेहे कि इहां लइका मन के पालन-पोषण करे बर परही, त काबर अपन मइके वाले मन ल नइ कहि देस कि उहां मोर बिहाव झन करो? जिंहा जाते उहां पुरुष के सिवाय कोनो नई होतिस। वहू ह तोर चेहरा मोहरा अउ सिंगार ल देख के अपन भाग्य ल संहरातिस। इहां डोकरा आदमी तोर रंग रुप, अउ हाव-भाव उपर का मोहाही? ये ह तो इही लइका मन के सेवा करे बर तोर संग बिहाव करे हे, भोग-विलास बर नही। ओह बहुत बेर तक घाव म नून छिड़कत रिहिस, फेर निर्मला चूं तक नइ करिस। ओह अपन सफाई पेश करना चाहत रिहिसे, फेर नइ कर सकत रिहिस। अगर कहितिस कि मंय तो उही करत हंव, जउन मोर स्वामी के इच्छा हवय, त ये घर के भण्डा फूटही। अगर ओह अपन भूल स्वीकार करके ओकर सुधार करही। डर हे कि कोन जनी ओकर का परिणाम होही? ओइसे तो ओह बड़ा साफ-साफ कहइया नारी रिहिस, सच केहे म ओला संकोच या डर नइ होवय, फेर ए नाजुक दौर म ओला मुंह ल बंद रखे बर परिस। एकर सिवा दुसरा उपाय नइ रिहिस। ओह देखत रिहिसे, मंसाराम ह बहुत दुखी अउ उदास राहत रिहिसे। ओह यहू देखत रिहिसे कि दिनो दिन दुबरावत घलो हे, फेर ओकर जुबान अउ कर्म दुनो उपर तारा लगे रिहिसे। चोर के घर चोरी हो जाय ले ओकर जउन दशा रहिथे, उही दशा ए समे निर्मला के होवत रिहिसे।

आठ


जब कोनो बात हमर आशा के उल्टा होथे, तभे दुख होथे। मंसाराम ल निर्मला ले कभू ए बात के आशा नइ रिहिसे कि ओकर शिकायत करही। इही पाये के ओला भारी पीरा होवत रिहिसे। ओह काबर मोर शिकायत करथे? का चाहथे? इही न कि ओह मोर पति के कमई खाथे, एकर पढ़ई-लिखई म खरचा होथे, कपड़ा पहिरथे। ओकर इही इच्छा होही कि येह घर म झन राहय, मोर नइ रेहे ले ओकर रुपया बच जही। ओह मोर ले बहुत खुश रहिथे। कभू मंय ह ओकर मुंहु ले करु(कटु) बानी नइ सुनेंव। का येह सब ओकर हुनर (कौशल) आय? हो सकथे, चिरई ल जाल म फंसाये के पहिली शिकारी दाना छितथे। ओह! मंय नइ जानत रेहेंव कि दाना के खाल्हे म फांदा(जाल) हे, ये महतारी प्रेम मोर बर घर निकाले के उपाय आय।

अच्छा, मोर इहां रहना काबर बुरा लगथे? जउन ओकर गोसइया आय, का ओह मोर पिता जी नोहे? का बाप-बेटा के सम्बन्ध ह स्त्री-पुरुष के सम्बन्ध ले का कम घनिष्ट हे, मोला ओकर घर के मालकिन होय म थोरको जलन नइ होवय, ओह जउन चाहे करय, मंय मुहुं नइ खोल सकंव, फेर ओह मोला पिता के प्रेम ले काबर दूर रखना चाहत हे? ओह अपन साम्राज्य म काबर मोला एक आंगुर भुइयां घलो नइ देना चाहत हवय। आप पक्का महल म रहिके मोला पेड़ के छइंया म काबर बइठे नइ देख सकय।

हां, ओह समझत होही कि ओह बड़े होके मोर सम्पत्ति के स्वामी हो जही, इही पाये के अभी ले निकाल देना अच्छा हे। मंय ओला कइसे विश्वास देवावंव कि मोर डाहर ले शक झन करय। ओला काबर बतावंव कि मंसाराम जहर खा के प्राण त्याग दिही, एकर पहिली कि ओकर अहित करे। ओला चाहे कतनो तकलीफ सहे बर परय ओह ओकर हिरदे के घाव नइ बनही। वइसे तो पिता जी ह मोला जनम देहे अउ अभी घलो मोर उपर ओकर दुलार कम नइ हे, फेर का मंय अतना भी नइ जानव कि जउन दिन पिताजी ह ओकर संग बिहाव करे हे, उही दिन ओह हमला हिरदे ले बाहर निकाल देहे। अब हम इहां अनाथ मन कस परे रहि सकथन, ए घर म हमर कोनो अधिकार नइ हे। ओ बात अलग हे कि पहिली के संस्कार के सेती इहां दुसर अनाथ मन के दशा थोकिन अच्छा हवय, फेर हन तो अनाथ ही। हम उही दिन अनाथ हो गेन, जउन दिन महतारी ह परलोक सिधारिस। जउन थोर बहुत कसर बांचे रिहिसे ओला ए बिहाव ह पूरा कर दिस। मंय तो पहिलीच्च एकर ले खास सम्बन्ध नइ रखत रेहेंव। अगर उही दिन पिता जी ले मोर शिकायत करे होतिस, ते शायद मोला अतना दुख नइ होतिस। मंय तो ओ आघात बर तैयार बइठे रेहेंव। संसार म का मंय मजदूरी घलो नइ कर सकतेंव। फेर खराब समय म मोला चोट दे हे। हिंसक पशु घलो मनखे ल बेसूध पा के हमला करथे। इही पाय के अतना आवभगत होवत रिहिसे। खाना खाये बर आय म देरी हो जय ते बुलावा उपर बुलावा आवत रिहिसे, नाश्ता बर बिहनिया गरम हलुवा बनाये जावत रिहिसे, घेरी बेरी पूछय रुपया के जरुरत तो नइ हे? एकरे सेती ओह सौ रुपया के घड़ी मंगवाय रिहिसे।

मगर का येला कोनो दुसरा शिकायत नइ सूझिस, जे मोला आवारा किहिस? आखिर ओह मोर का आवारागी देखिस, ये कहि सकत रिहिसे कि येकर मन पढ़े-लिखे बर नइ लगे, कुछु न कुछु चीज बर रोज रुपया मांगत रहिथे। इही एक ठिन बात ओला काबर सूझिस। शायद इही पाय के इही ह सबले कठोर आघात आय, जेला मोर उपर कर सकत रिहिसे। पहिली ही घांव म ओह मोर उपर अग्नि बाण चला दिस जेकर ले कोनो बांचे नइ सकय। एकरे सेती न कि ओह पिता के नजर ले गिर जाये। मोला बोर्डिंग-हाउस के रखई ह तो एक बहाना रिहिसे। ओकर मकसद इही रिहिस कि एला दूध ले माछी कस निकाल दे जाये। दु-चार महीना के बाद चाहे मरे या जिये। अगर मंय जानतेंव कि ए प्रेरणा एकर डाहर ले होय हे त कहूंचो जघा नइ मिलतिस तभो ले निकल जतेंव। नौकर मन के खोली म तो जघा मिलतिस। खैर अभी तो बिहनिया हे। जब स्नेह नइ रिहिस, त सिरिफ पेट भरे बर इहां परे रहना बेवकूफी आय। येह अब मोर घर नोहे। इही घर म पैदा होय हंव, इहें खेले-कूदे हंव फेर अब येह मोर नोहे। पिता जी मोर पिता नोहे। मंय ओकर बेटा अंव फेर ओह मोर पिता नोहे। संसार के सबो रिश्ता प्रेम के नाता आय। जिंहा स्नेह नही हे, उहां कुछु नइ हे। हे मां, ते कहां हस?

अइसे सोच के मंसाराम ह रोय बर धर लिस। जइसे जइसे महतारी के मया के सुरता आवय, ओकर आंखी ह डबडबा जावय। ओह कतनो घांव दाई, दाई कहिके आवाज लगावय, मानो ओह खड़ा हो के सुनत हवय। महतारी हीनता के दुख के आज पहिली घांव अनुभव होवत रिहिसे। ओह आत्म स्वाभिमानी रिहिस, साहसी रिहिस, फेर अब तक सुख के गोद म लालन-पालन होय के सेती ओह ए समे अपन आप ल निराधार समझत रिहिसे।

रतिहा दस बज गे रिहिसे। मुंशी जी आज कहूचो दावत खाये बर गे रिहिसे। दु घांव नौकरानी ह मंसाराम ल भोजन करे बर बलाये बर आ चुके रिहिसे। मंसाराम ह पहिली घांव झुंझला के कहि दे रिहिसे-मोला भूख नइ हे, कुछु नइ खावंव। घेरी-बेरी आ के मुड़ी म काबर सवार हो जथस। तिही पाये के निर्मला ह फेर ओला बलाये बर भेजना चाहिस फेर ओह नइ गिस।

किहिस - बहू जी, ओह मोर बलाये ले नइ आवय।

निर्मला - आही काबर नही? जा के कहि दे, खाना ह जुड़ावत हवय। दुये-चार कौंरा खा लेवय।

नौकरानी - मंय ये सब कहिके हार गे हंव, नइ आवय।

निर्मला - तंय ह ये केहे रेहे कि ओह बइठे हवय।

नौकरानी - नही बहू जी, ये तो मंय नइ केहे हंव, लबारी काबर मारहूं।

निर्मला - अच्छा त जा के ये कहि दे, ओह बइठे तोर रद्दा देखत हवय। तंय नइ खाबे ते ओह रसोई ल समेट के सुत जही। मोर मूंगी (सहेली) सुन, एक घांव अउ चले जा। हांस के नइ आही त ओला गोदी म उठा के लानबे।

मूंगी नाक भौं सिकोड़त गिस, फेर एके क्षण म लहूट के आ के किहिस-अरे बहूजी ओह तो रोवत हे। कोनो ह कुछु केहे हे का?

निर्मला ह अइसे चौक के उठिस अउ दु तीन पग आगू बढ़िस, जानो मानो अपन बेटा ल कुंआ म गिरे के खबर पाये हे, फेर ओह ठिठक गे अउ मूंगी ले किहिस-रोवत हे? तंय पूछे नही, काबर रोवत हवय? 

मूंगी - नही बहू जी, ये तो मंय ह नइ पूछे हंव, लबारी काबर मारहूं?

ओह रोवत हवय। ए सुनसान रतिहा म अकेल्ला बइठे रोवत हवय। महतारी के सुरता अइस होही? कइसे जा के ओला समझावंव? हाय, कइसे समझावंव, इहां तो छिंक देबे ते नाक कटाये बर परथे। ईश्वर तंय ह साक्षी हवस, अगर मंय ओला घोखा से भी कुछु केहे होहूं, त मोला बतावव। मंय का करंव? ओह दिल म समझत होही कि इही ह पिता जी ले मोर शिकायत करे होही। मंय कइसे भरोसा देवावंव कि मंय ह कभू तोर खिलाफ एको शब्द नइ निकाले हंव? अगर मंय अपन देव कुमार जइसे चरित्र वाले युवक बर बुरा सोचहंू ते मोर ले बढ़के राक्षसी संसार म कोनो नइ होही।

निर्मला देखत रिहिसे कि मंसाराम के तबीयत ह दिनो-दिन बिगड़त जावत हवय, ओह दिनो-दिन दुबरावत जावत हे, ओकर चमकत चेहरा ह फीका परत रिहिसे, ओकर गठिला बदन कमजोर होवत जावत हे। एकर कारण घलो ओकर ले छीपे नइ रिहिसे फेर ओह ए विषय म अपन स्वामी ले कुछु नइ कहि सकत रिहिसे। ये सब ल देख-देख के ओकर हिरदे ह दुखी होवत रिहिसे, फेर ओकर जुबान नइ खुलत रिहिसे, कभू-कभू मने मन गुनय कि मंसाराम काबर एकक कनि बात म अतना दुखी होथे? का एकर आवारा केहे ले का ओह आवारा होगे? मोर बात अलग हे, एक कनि शक ह घलो मोर सत्यानाश कर सकथे फेर ओला अइसन बात के परवाह नइ रिहिसे।

ओकर मन म बिक्कट इच्छा होइस कि जाके ओला चुप करावंव अउ लान के खाना खवा दंव। बिचारा रात भर लांघन भूखन परे रहि। हाय! मंय ए उपद्रव के जड़ अंव। मोर आये के पहिली ए घर म शान्ति के राज्य रिहिसे। पिता लड़का मन उपर पूरा धियान देवत रिहिसे, लड़का मन अपन पिताजी ले प्यार करय। मोर आते भार सबो बाधा आके खड़ा होगे। एकर परिणाम का होही? एला तो भगवाने जाने। भगवान मोला मौत घलो नइ देवय। बिचारा अकेल्ला लांघन-भूखन परे हे! ओतका बेर घलो मुंह जूठा कर के उठ गे रिहिसे, अउ ओकर आहार ही कतना हे? जतना ओह खाथे, ओतना तो साल-दु-साल के लइका ह खा जथे।

निर्मला ह पति के खिलाफ गिस। जउन ह नता म ओकर बेटा रिहिसे, ओला मनाये बर जावत ओकर हिरदे कांपत रिहिसे। ओह पहिली रुक्मिणी के कुरिया डाहर ल देखिस, ओह खाना खा के बेसूध सुतत रिहिसे, ओकर बाद बाहिर के कुरिया डाहर गिस। उहां सन्नाटा रिहिस। मुंशीजी अभी नइ आये रिहिसे। ये सब देख-सुन के मंसाराम ह एक ठन किताब ल आघू म रख के टेबल उपर मुड़ी गड़िया के बइठे रिहिसे, जानो मानो दुख अउ चिन्ता फिकर के जीयत जागत मूर्ति आय। निर्मला ह पुकारना चाहत रिहिसे फेर ओकर गला ले आवाज नइ निकलिस।

एकाएक मंसाराम ह मुड़ी उठाके मुहाटी डाहर ल देखिस। निर्मला ल देख के अंधियार म नइ चिन्ह सकिस। झकना के किहिस-कोन?

निर्मला ह कांपत स्वर म किहिस-मंय तो अंव। खाना खाये बर काबर नइ आवत हस? अतेक रात होगे।

मंसाराम ह मुंहु मोड़ के किहिस-मोला भूख नइ हे।

निर्मला - येला तो मंय तीन घांव ले भूंगी ले सुन डरे हंव।

मंसाराम - त चौथइया घांव मोर मुंहु ले सुन ले।

निर्मला - संझा कन तो घलो कुछु नइ खाये रेहेस, भूख कइसे नइ लगिस?

मंसाराम ह ताना मारत किहिस-भूख नइ लागही, त आही कहां ले?

अइसे काहत-काहत मंसाराम ह कुरिया के दरवाजा ल बंद करना चाहिस, फेर निर्मला ह किवाड़ ल हटाके कुरिया म चल दिस ओकर बाद मंसाराम के हाथ ल पकड़ के सुसकत विनती करत मीठ बोली ले किहिस-मोर केहे ले चलके थोकिन खा ले। तंय नइ खाबे, त महूं ह नइ खावंव। दुये कौरा खा लेबे। का रात भर मोला भूख ले मारना चाहत हस?

मंसाराम सोच म पर गे। अभी तक ले भोजन नइ करे हे, मोर अगोरा म बइठे हे। येह स्नेह वात्सल्य अउ विनय के देवी आय या ईर्ष्या अउ अमंगल के मायाविनी मूर्ति? ओला अपन महतारी के सुरता आ गे। जब ओह रिसा जावय, त वहू ह अइसने मनाय बर आवत रिहिसे अउ जब तक ओह नइ जावय तब तक उहां ले नइ उठत रिहिसे। ओह ए बिनती ल मना नइ कर सकिस। किहिस मोर सेती, आप ल अतना तकलीफ होइस, एकर मोला खेद हवय। मंय जानतेंव कि मोर इन्तजार म बिना खाये बइठे हस, त उही समे खा के आ जय रहितेंव।

निर्मला ह तिरस्कार भाव ले किहिस-येला ते कइसे समझ सकतेस कि तंय बिना खाय रहिबे अउ मंय ह खा ले रहूं। का मौसी दाई के नाता होय ले ही मंय अतेक स्वार्थिनी हो जहूं।

अचानक कुरिया ले मुंशी जी के खांसे के आवाज अइस। अइसे मालूम होइस कि ओह मंसाराम के कुरिया डाहर आवत हे। निर्मला ह तो डर्रा गे। ओह तुरते कुरिया ले निकलिस अउ भीतर जाये के मौका नइ पाके कठोर स्वर म किहिस मंय कोनो दासी नो हंव जउन ह अतेक रात तक ले काकरो बर रंधनी खोली के मुहाटी म बइठे राहंव। जेला नइ खाना राहय, ओह पहिली ले बता दे करे।

मुंशी जी ह निर्मला ल उहां खडे़ देखिस। अइसन गलती! ये इहां का करे बर आय हे। किहिस-इहां का करत हवस?

निर्मला ह गुनगुनावत किहिस-अउ काय करहूं, अपन भाग्य उपर रोवत हंव। बस सबो बुराई के जड़ मिही अंव। कोनो एती रिसाये हे, कोनो ओ डाहर मुंहु ल फुलोये खड़े हे, कोन-कोन ल मनावंव अउ कहां तक मनावंव! मुंशी जी अकचका के किहिस-बात का हे? निर्मला - भोजन करे बर जावय नही अउ का बात आय? दसो घांव कामवाली ल भेजेंव, आखिर मंय खुदे दउंड़े आयेंव। एला तो अतका कहि देना आसान हे, मोला भूख नइ हे, इहां तो घर भर के दासी अंव सरि दुनिया ह कलंक के स्याही पोते बर तैयार हवय। कोनो ल भूख नइ लागे, फेर कहवइया मन ल कोन रोकही कि ए भूतनी ह कोनो ल खाना नइ देवय।

मुंशी जी मंसाराम ले किहिस-खाना काबर नइ खा लेवस जी? जानत हस कतेक टाईम होगे हे।

मंसाराम खंभा कस खड़े रिहिसे। ओकर आघू म एक अइसे रहस्य होवत रिहिसे, जेकर मरम ल ओह खुदे नइ समझ सकत रिहिसे। जेकर आँखी म एक समे विनय के आंसू भरे रिहिसे, ओमा अचानक जलन के ज्वाला कहां ले भपके बर धर लिस? जेकर ओट ले एक समे अमरित बरसत रिहिसे, ओह जहर कइसे उगलत रिहिसे? इही उथल-पुथल के दशा म किहिस-मोला भूख नइ हे।

मुंशी जी खिसिया के किहिस-काबर भूख नइहे? भूख नइ रिहिसे, त संझा बेरा काबर नइ बता देस? तोर भूख के अगोरा म कोन ह सरी रात बइठे रही? तोर म तो पहिली अइसन आदत नइ रिहिसे। रिसाये बर कब ले सीख गेस? जा के खाले।

मंसाराम जी नही, मोला थोरको भूख नइ हे। तोताराम ह दांत कटरत किहिस-बने बात आय, जब तोला भूख लगही तब खाबे। अइसे कहिके ओह अन्दर चले गे। निर्मला घलो ओकर पीछू चले गे। मुंशी जी लेटे बर चले गे, ओह साग भात ल समेट दिस अउ कुल्ला कर के मुस्कुरावत मुंशी जी करा पहंुच गे। मुंशी जी ह पूछिस खाना खा लेस न?

निर्मला - त का करतेंव, काकरो बर अन्न जल छोड़ दवं? 

मुंशी जी - एला कोन जनी का होगे हे, कुछु समझ म नइ आवय? दिनो दिन दुबरावत जावत हे, दिन भर उही कुरिया म खुसरे रहिथे।

निर्मला कुछु नइ किहिस-ओह चिन्ता के अपार सागर म डुबकी लगावत रिहिसे। मंसाराम ह मोर भाव परिवर्तन ल देखके मन म का का सोचिस होही? का ओकर मन म ये सवाल उठिस होही कि पिता जी ल देखिस ताहन ओकर तेवर काबर बदलगे? एकर कारण घलो का ओकर समझ म आ गिस होही? बिचारा खाये बर आवत रिहिसे, तब तक ले ये महाशय ह कोन जनी कहां ले टपकगे? ए रहस्य ल ओला कइसे समझावंव? समझाना संभव घलो हे? मंय कइसन विपत्ति म फंस गेंव?

बिहनिया ओह उठके काम बूता म लग गे। अचानक नौ बजे मुंशी ह आके किहिस मंसा बाबू ह तो अपन कागज-पातर ल घोड़ा गाड़ी म लादत हवय।

मंूगी - मंय ह पूछंेव, त किहिस अब स्कूल म ही रहूं।

मंसाराम बिहनिया उठके अपन स्कूल के हेडमास्टर साहब करा गे रिहिसे उहे अपन रेहे के बेवस्था करके आये रिहिसे। हेडमास्टर साहब ह पहिली तो किहिस-इहां जघा नइ हे, तोर ले पहिली कतनो लड़का मन के प्रार्थना-पत्र पड़े हे, फेर जब मंसाराम ह किहिस मोला जघा नइ मिलही त कोनो भी हालत म मोर पढ़ई नइ हो पाही अउ परीक्षा म संघर भी नइ सकवं ताहन हेडमास्टर साहब ल हार मानना परही।

मंसाराम के प्रथम श्रेणी म पास होय के आस रिहिसे। अध्यापक मन ल भरोसा रिहिसे कि ओह स्कूल के नाम ल रोशन करही। हेडमास्टर साहब अइसन लड़का मन ल कइसे छोड़ सकत रिहिसे? ओह अपन दफ्तर के कमरा ल ओकर बर खाली कर दिस। इही पाये के मंसाराम ह उहां ले आये के बाद अपन सामान ल घोड़ा गाड़ी म जोरत रिहिस।

मुंशी जी किहिस - अभी अइसे का जल्दी हे? दु-चार दिन म चले जाबे। मंय चाहत हंव कि तोर खातिर बढ़िया रसोइया तय कर देथंव।

मंसाराम - उहां के रसोइया बहुत बढ़िया खाना बनाथे।

मुंशीजी - अपन तबियत के धियान रखबे। अइसे झन होवय कि पढ़ई लिखई के मारे अपन तबीयत ल बिगाड़ डरबे।

मंसाराम - उहां नौ बजे के बाद कोनो नइ पढ़ पावय, सब ल उहां नियम म रेहे बर परथे। 

मुंशीजी - बिस्तर काबर छोड़त हस? सुतबे कामे? 

मंसाराम - कंबल धर के जावत हंव, बिस्तर के जरुरत नइ हे।

मुंशीजी - कहार ह जब तक तोर सामान ल जोरत हवय, तब तक जा के कुछु खा ले। रतिहा तो घलो कुछु नइ खाये रेहेस!

मंसाराम - उहें खा लुहूं। रसोइया ल भोजन बनाये बर कहिके आये हंव। रेहे खाय बर धरहूं ते देरी हो जही।

घर म जियाराम अउ सियाराम घलो भाई के संग जाये बर जिद करत रिहिन हे, निर्मला ओ दुनो झिन ल भुलवारत रिहिसे-बेटा, उहां नान्हे लइका मन नइ राहय, सब काम बूता ल खुदे ल करना परथे।

एकाएक रुक्मिणी ह आके किहिस-तोर हिरदे ह तो पथरा बरोबर हे महारानी! लड़का ह रात म घलो कुछु नइ खाये हे, अभी घलो बिना खाये-पिये जावत हे अउ तंय लड़का मन ल धर के गोठियावत हस? ओला तंय जानस नही। ये समझ ले कि ओह स्कूल नइ जावत हे बल्कि बनवास जावत हे, लहूट के फेर नइ आवय। ये ओ लड़का मन कस नइ हे, जउन ह खेल म मार ल भूला जथे। बात ह ओकर दिल म पथरा के लकीर हो जथे।

निर्मला रोनहू आवाज म रिहिस-का करौं, दीदी जी? ओह काकरो सुनबे नइ करय। आप थोकिन जा के बला लव, आपके बलाये ले आ जही। 

रुक्मिणी - आखिर होय का हे? जेमा भागे जावत हे? घर ले ओकर मन कभू उबे नही। ओला तो अपन घर के सिवा दुसर जघा ह बने लागबे नइ करत रिहिसे। तिंही ह ओला कुछु केहे होबे या फेर ओकर कुछु शिकायत करे होबे। काबर अपन बर कांटा बोवत हवस? तंय ह घर के सत्यानाश करे बिना चैन से नइ बइठ पावस तइसे लागथे।

निर्मला ह रोवत-रोवत किहिस-मंय ह ओला कुछु केहे होहंू त मोर जबान कट जाये। हां, सौतेली दाई होय के सेती बदनाम तो हंव ही। आपले बिनती करत हंव, थेकिन जाके ओला बला के लानबे। 

रुक्मिणी ह चिल्ला के किहिस-तंय काबर बला के नइ लावस? का छोटे हो जबे? अपन होतिस त का अइसने चुप बइठे रहिते? 

निर्मला के दशा ह बिना पांख के चिरई कस होवत रिहिसे, जउन सांप ल अपन डाहर आवत देख के उड़ना तो चाहथे फेर उड़ नइ सकय, उछलथे ताहन गिर जथे, पांख ल फड़फड़ावत रहि जथे। ओकर हिरदे ह भितरे भितर तड़फत रिहिसे, फेर बाहिर नइ जा सकत रिहिसे। अतना म दुनो लड़का आ के किहिस-भइयाजी चले गे।

निर्मला ह मूर्ति कस खड़े रिहिस जानो मानो ओमा प्राण नइ होही तइसे। चले गे? घर म अइस तक नही, मोर संग मिलिस घलो नही। चले गे! मोर ले अतेक नफरत! मंय ओकर कोनो न सही फेर ओकर फूफू तो रिहिसे। ओकर ले तो मिले बर आना रिहिसे? मंय इहां रेहेंव न। भीतर म गोड़ कइसे रखतिस? मंय देख लेतेंव न। इही पाये के चले गे।

नौ


मंसाराम के जाये ले सुन्ना होगे। दुनो छोटे लड़का उही स्कूल म पढ़त रिहिसे। निर्मला उंकर मन करा ले रोज मंसाराम के हाल पूछय। आशा रिहिसे कि छुट्टी के दिन ओह आही, जब छुट्टी के दिन गुजर गे फेर ओह नइ अइस ताहन निर्मला के जीव ह घबराये बर धर लिस। ओह ओकर बर मूंग के लाड़ू बना के राखे रिहिसे। सोमवार के बिहनिया मूंगी ल लड्डू दे के स्कूल भेजिस। नौ बजे मूंगी लहूट गे। मंसाराम लड्डू ल जइसने के तइसने लहूटा दिस।

निर्मला ह पूछिस-पहिली ले कुछ टन्नक होय हे, ते? 

मूंगी - टन्नक-वन्नक कुछु नइ होय हे बल्कि पहिली ले अउ सुखा गे हे।

निर्मला - कइसे अच्छा नइ हे का?

मूंगी - ये तो मंय नइ पूछे हंव बहू जी, काबर लबारी मारहू? उहां के कहार ह मोर देवर आय। ओह काहत रिहिसे कि तोर बाबू जी (मंसाराम) के खुराक ह कम हवय। दु कौंरा खाके उठ जथे, ओकर बाद दिन भर कुछु नइ खावय। हमेशा पढ़त रहिथे।

निर्मला - तंय पूछे नही, लड्डू ल काबर लहूटावत हस कहिके?

मूंगी - येला तो नइ पूछे हंव बहू जी, लबारी काबर मारवं? ओह किहिस-येला लेग जा इहें रखे के कोई मतलब नइ हे। मंय धर के आ गेंव।

निर्मला - अऊ कुछू नइ किहिस? पूछे नही काली काबर नइ आय? छुट्टी तो रिहिसे। 

मूंगी   - बहू जी, लबारी काबर मारहूं! येला पूछे के तो मोर सुधे नइ रिहिसे। हां, ये काहत रिहिसे कि अब तंय इहां कभू झन आबे, न मोर बर कोनो चीज लाबे अउ अपन बहू ले कहि देबे कि मोर करा कोनो किसम के चिट्ठी झन भेजे। लड़का मन करा घलो मोर बर कोनो खबर झन भेजय, उपराहा म एक ठन अइसे बात किहिस कि मोर मुंह ले नइ निकल सकय ताहन रोये बर धर लिस।

निर्मला - का बात आय, बता तो? 

मूंगी - काला बतावंव बहू जी, काहत रिहिसे मोर जिनगी ल धिक्कार हे? इही कहि के रोये बर धर लिस।

निर्मला के मुंह ले उपर संसी सांस निकलिस। अइसे मालूम होइस, जानो मानो कलेजा बइठे जावत हे। ओकर रोम-रोम दुखी होगे। ओह ओ मेर बइठ नइ सकिस। जा के बिस्तर म मुंहु ढ़ांक के लेट के फूट-फूट के रोय बर धर लिस। ओकर अंतस म आवाज गुंजे बर धर लिस। भगवान अब का होही? जउन शक के आगी म ओह भस्म होवत रिहिसे, अब तो सौ गुना तेज धधके बर धर लिस। ओला अपन कोनो फिकर नइ रिहिसे। जीवन म अब सुख के आशा कहां रिहिस, जेकर ओला लालसा रहितिस? ओह अपन मन ल ए बिचार ले समझाये रिहिसे कि येह मोर पहिली जनम के करम के प्रायश्चित आय। कोन प्राणी अतेक बेशरम होही, जउन ह अइसन दशा म बहुत दिन तक जी सकही? कर्तव्य के यज्ञ म अपन जीवन अउ सबो इच्छा ल होम कर दिस। हिरदे रोवत राहय फेर चेहरा म हंसी के रंग भरे बर परय। जेकर मुंहु ल देखे के इच्छा नइ करय ओकर संग हांस हांस के गोठियाये बर परय। जउन तन के छुये ले ओला सांप ल छुये कस लागय, ओकर संग गृहस्थ जीवन के धरम ल निभाय के बेर जतना घीन, जतना पीरा होवय, ओला कोन जान सकत रिहिसे? ओ समे ओकर इही इच्छा रिहिस कि धरती फट जाये अउ मंय ओमा समा जावंव। फेर ए सबो विडम्बना अब तक अपने तक ही रिहिसे। अपन फिकर करना ओ छोडे़ दे रिहिसे, फेर ओ समस्या ह अब एकदम भयंकर होगे रिहिसे। ओह अपन आंखी ले मंसाराम के आत्म पीड़ा नइ देख सकत रिहिसे। मंसाराम जइसे समझदार, साहसी युवक उपर ए आरोप के जउन असर पड़ सकत रिहिसे, ओकर कल्पना मात्र ले प्राण ह कांप उठत रिहिसे। अब चाहे ओकर उपर कतनो संदेह काबर न हो, चाहे ओला आत्महत्या ही काबर न करे बर परे, फेर ओह कलेचुप नइ बइठ सकय। मंसाराम के रक्षा करे बर ओह व्याकुल होगे। ओह संकोच अउ लज्जा के चद्दर ल उतार के फेंके बर ठान लिस।

वकील साहब भोजन करके कछेरी (कचहरी) जाये के पहिली एक घांव जरुर मिलत रिहिस। ओकर आये के समे होवत रिहिसे। आते होही, अइसे सोच के निर्मला ह मुहाटी (द्वार) म खड़ा हो के ओकर रद्दा जोहत (इन्तजार) रिहिसे फेर ये का? ओह तो एती आबे नइ करत हे अउ सीधा बाहर जावत हे। त का आज नइ आवय, बाहिरे बाहर चले जाही। नही, अइसन नइ होवय। ओह मूंगी ल किहिस-जा के बाबू जी ल बला के लान। कहिबे एक ठिन जरुरी बूता हवय, सुन लेवव।

मुंशी जी ह जवइया रिहिसे। ए खबर पाके अन्दर अइस, फेर कुरिया म नइ आके दूरिहा ले ही पूछिस का बात ए भई? जल्दी बता, मोला एक ठन जरुरी काम ले जाना हे। अभी थोरिक देर पहिली हेडमास्टर साहब के एक ठिन चिट्ठी आये हे कि मंसाराम ल बुखार आ गे हे, बेहतर होही कि आप घर म ओकर इलाज करव। इही पाये के उही डाहर ले होवत कछेरी (कचहरी) जाहूं। तोला कोनो खास बात तो नइ कहना हे।

निर्मला उपर मानो पहाड़ गिर परिस। आंखी ले आंसू के धार अउ गला के दुखी स्वर म घोर संग्राम होये बर धर लिस। अपन-अपन ले दुनो पहिली निकले बर तुले हवय। दुनो म से कोनो एक कदम पीछू हटना नइ चाहत रिहिसे। गला के स्वर के दुर्बलता अउ आंसू के सबलता देख के ये तय करना मुश्किल होवत रिहिसे कि कुछ समे तक लड़ई चलत रही त कोन ह जितही। आखिर दुनो एक साथ निकलिस, फेर बाहिर आये के बाद बलवान ह कमजोर ल दबा लिस। बस अतने मुंहु ले निकलिस-कोनो खास बात नइ रिहिस। आज तो ओ डाहर जाते हवंव।

मुंशीजी - मंय लड़का मन करा पूछे रेहेंव, त उमन काहत रिहिन हे, काली तो बइठ के पढ़त रिहिसे, आज कोन जनी का हो गे

निर्मला ह घुस्सा म कांपत किहिस, ये सब आप करत हव।

मुंशीजी ह खिसिया के किहिस-मंय करत हंव? मंय का करत हंव?

निर्मला - अपन दिल ले पूछ?

मुंशीजी - मंय ह तो इही सोचे रेहेंव कि इहां ओकर पढ़ई म मन नइ लगय, उहां लड़का मन के संग म पढ़बेच्च करही। येह तो बेकार के बात नइ रिहिसे, अउ मंय ह का करतेंव? 

निर्मला - खूब सोचो, इही पाये के आप ओला उहां भेजे रेहंेव? आपके मन म कोई अऊ बात नइ रिहिस।

मुंशीजी - थोकिन हड़बड़इस अउ अपन कमजोरी ल दबाये बर मुस्कुराये के नाटक करत किहिस अउ का बात हो सकथे? भला तिंही सोच।

निर्मला - खैर, इही सही। अब आप किरपा करके ओला आजे धर के लाहू, उहां रेहे ले ओकर बीमारी बढ़े के डर हे, इहां दीदी जी देखभाल करही ओतना दुसर नइ कर सकय।                     थोकिन देर बाद मुड़ी गड़िया के किहिस-मोर सेती नइ लाना चाहत होबे त मोला मइके भेज दे। मंय उहां आराम से रहूं।

मुंशीजी एकर कुछु जवाब नइ दिस बाहिर चल दिस अउ एक क्षण म ओकर गाड़ी ह स्कूल डाहर चल दिस। मन, तोर गति कतना विचित्र हे, कतना रहस्य ले भरे हे, कतना कठोर हे। तंय कतना जल्दी रंग बदलथस? ए कला म तंय माहिर हस। आतिशबाजी के चरखी ल घलो रंग बदले बर कुछ समे लगथे, फेर तोला रंग बदले बर थोरको समे नइ लगे। जिहां अभी वात्सल्य रिहिस, उहां फेर शक ह आसन जमा लिस।

ओह गुनत रिहिसे-कहीं ओह बहाना तो नइ करे हे?

दस


मंसाराम दु दिन तक भारी चिंता म डूबे रिहिसे। घेरी बेरी अपन महतारी के सुरता करय, न खाय के मन करय न पढ़ई म मन लगय। ओकर तो काया पलट होगे रिहिसे। दु दिन गुजर गे छात्रावास म रहि के घलो ओ काम ल नइ करे रिहिस हे, जेला स्कूल के मास्टर मन घर ले कर के लाने बर दे रिहिसे। ओकर अवेजी (बल्दा, परिणम स्वरुप) ओला बेंच म खड़े रेहे बर परिस। जउन बात कभू नइ होय रिहिसे, ओह आज होगे। अइसन भारी अपमान घलो ओला सहे बर परिस।

तीसर दिन ओह इही सब चिंता फिकर म अपन मन ल समझावत रिहिसे-का संसार म अकेल्ला मोर महतारी मरे हे। का सबो सौतेली महतारी अइसने किसम के होवत होही। मोर संग कोनो नवा बात नइ होवत हवय। अब मोला पुरुष मन कस दुगुना परिश्रम ले अपन काम करना चाही, जइसन म माता-पिता खुश राहय ओइसने उमन ल खुश रखना चाही। ए साल मोला कोनो छात्रवृति मिल जही, ते मोला घर ले कुछु ले के जरुरत नइ परही। कतनो लड़का हे जउन खुद के मिहनत ले बड़े-बड़े डिग्री पा लेथे। विपत्ती म विजय पाना अउ अवसर देख के काम करना मनखे के कर्तव्य आय। भाग्य के नाम ले रोये अउ कोसे ले का होही।

ओतके बेर जियाराम आ के खड़ा होगे। मंसाराम ह पूछिस-घर के का हाल चाल हे जिया? मौसी दाई तो बहुत खुश होही? 

जियाराम - ओकर मन के हाल तो मंय नइ जानंव, फेर जब ले तंय आये हवस, ओह एको जुवार बने ढंग ले खाना नइ खाये हे। जब देखबे, रोवत रहिथे। जब बाबूजी आथे त एकाएक हांसथे। तंय चले आये त महूं ह संझा कन अपन किताब कापी मन ल बांध डरे रेहेंव। इहें मंय ह तोर संग रहना चाहत रेहेंव। मूंगी चुडै़ल ह जाके माताजी ल बता दिस। बाबूजी बइठे रिहिसे, ओकर आघु म ही माताजी ह आके किताब कापी ल झटक लिस ताहन रो के किहिस-तहुं ह चल देबे, त ए घर म कोन ह रही? अगर मोर सेती तुमन घर छोड़-छोड़ के भागत हव, त लेव मिहीं ह कहूं चल दथंव। मंय तो झल्लाये रेहेंव, उहां अब बाबूजी घलो नइ रिहिसे, खिसिया के केहेंव, आप काबर कहूंचो जाहू! आपके तो घर आय, आप आराम से राहव। गैर तो हमी मन अन, हम्मन नइ रहिंगे ताहन तो आराम ही आराम रही। 

मंसाराम - तंय ह बहुत बढ़िया केहे। एकर बाद तो ओह अऊ झल्लइस होही अउ बाबूजी करा जा के शिकायत करिस होेही। 

जियाराम - नही, ये सब कुछ नइ होय हे। बिचारी भुइयां म बइठ के रोये बर धर लिस। महूं ल दया आ गे। महूं रो डरेंव, ओह अपन अचरा (आंचल) ले मोर आंसू ल पोंछिस अउ किहिस-जिया, मंय ईश्वर ल साक्षी मान के काहत हंव कि मंय ह तोर भइया के विषय म तोर बाबूजी ले एक शब्द भी नइ केहेंव। मोर भाग म कलंक लिखे हे, उही ल भोगत हंव। फेर नइ जाने अउ का-का किहिस, जउन ह मोर समझ म नइ अइस। कुछ बाबूजी के बात रिहिस।

मंसाराम ह पूछिस-बाबूजी के विषय म का किहिस, कुछ सुरता हे? 

जियाराम - बात मन हो मोला सुरता नइ आवत हे। मोर मेमोरी (याददाश्त) कमजोर हे। फेर ओकर बात करे के मतलब ले अइसे लागत रिहिसे कि ओह बाबू जी ल खुश रखे बर ए सब नाटक (स्वांग) करे बर परत हे। न जाने धर्म-अधर्म के कइसे बात करत रिहिसे, जउन जेला मंय बिलकुल नइ समझ सकेंव। अब तो मोला पूरा भरोसा होगे कि ओकर इच्छा तोला इहां भेजे के नइ रिहिसे।

मंसाराम - तंय ए सब चाल के मतलब नइ समझ सकस। ये ओकर बड़े चाल आय।

जियाराम - तोर समझ म होही, मोर समझ म नइ हे।

मंसाराम - जब तंय रेखा गणित नइ समझ सकस, त ये सब बात मन ल का समझ सकबे? ओ रात कन जब मोला खाना खाये बर बलाये बर आये रिहिसे तब ओकर बिनती म मंय जाये बर तैयार होगे रेहेंव, ओ समे बाबूजी ल देख के ओह पाला (बात) बदलिस, ओला का मंय कभू बिसर सकथंव?

जियाराम - इही बात ह मोर समझ म नइ आवय। अभी काली ही मंय ह इहां ले गेंव त ओह तोर हाल पूछत रिहिसे। मंय ह केहेंव, ओ तो काहत रिहिसे कि अब कभू ए घर म कदम नइ रखंव कहिके। मंय कुछु लबारी तो नइ मारे हंव, तंय तो मोला केहे भी रेहे। अतना सुनिस ताहन फूट-फूट के रोये बर धर लिस? मंय मने मन पछतायेंव कि कहां कहां ले बात ल कहि परेंव। घेरी बेरी इही काहत रिहिसे, का ओह मोर सेती घर छोड़ दिही? मोर ले अतेक नाराज हवय? चल दिस अउ मोर ले मिलिस घलो नही। खाना तैयार रिहिसे, खाना खाय बर घलो नइ अइस। मंय कइसे बतावंव, कइसन विपत्ती म हंव। अतने म बाबूजी आगे ताहन आंसू ल पोंछ के मुस्कुरावत ओकर कर चल दिस। ये बात मोर समझ म नइ आवय। आज मोर ले बिक्कट कलौली (अरजी, बिनती) करे हे कि ओला संग म लाबे। आज मंय तोला खींच के लेगहूं। दु दिन म ओह कतना दुबरा गे हे, तोला ये देख के बिक्कट दया आही। त चलबे न?

मंसाराम ह कुछु जवाब नइ दिस। ओकर गोड़ ह कांपत रिहिसे। जियाराम ह तो हाजिरी के घंटी सुन के भागिस, फेर ओह बेंच उपर लेट गे ओकर बाद अतेक जोर से सांस लिस, मानो बहुत देर ओह सांस नइ लेहे। ओकर मुंह ले भारी दुख म डुबे शब्द निकलिस, हे भगवान! ए नाम के सिवा ओला अपन जीवन निराधार मालूम होवत रिहिसे। एकर आह (उपर छोड़े जाने वाली सांस) मरई म कतना निराशा रिहिस, कतना संवेदना, कतना करुणा कतना दीन प्रार्थना भरे हुए रिहिस, एकर कोन अनुमान लगा सकत रिहिसे। अब सबो रहस्य ह ओकर समझ म आवत रिहिसे अउ घेरी बेरी ओकर दुखी हिरदे गोहार लगावत रिहिसे-हाय ईश्वर! अतेक बड़े घोर कलंक! का जीवन म एकर ले बड़े विपत्ती के कल्पना करे जा सकत हे? का संसार म एकर ले घोर नीचता के कल्पना करे जा सकत हे? आज तक ले काकरो पिता ह अपन पुत्र उपर अतना बेकार कलंक नइ लगाये होही। जेकर चरित्र के सबो प्रशंसा करय, जउन दूसर लड़का मन बर आदर्श समझे जावत रिहिसे, जेह कभू अपवित्र विचार ल अपन करा भटकन नइ देवय, ओकरे उपर अतेक घोर कलंक! मंसाराम ल अइसे मालूम होवत रिहिसे, जानो मानो ओकर दिल ह फटे जावत हे।

दुसरइया घंटी घलो बाज गे। लड़का मन अपन-अपन कमरा म गिन, फेर मंसाराम ह हथेली उपर गाल रख के एक टक भुइयां डाहर ल देखत रिहिसे, जानो मानो ओकर सबो ह जल मग्न होगे हवय। मानो ओह अब कोनो ल मुंहु देखाय के लइक नइहे। स्कूल म गैरहाजिर हो जही, जुर्माना हो जही, एकर ओला चिन्ता नइ रिहिस, जब ओकर सबो लुटगे, तब सब छोटे-मोटे बात मन ले का के डर? अतेक बड़े कलंक लगे के बाद घलो जियंव, त मोर जियई ह धिक्कार हे।

ओह दुखी हालत म चिल्लाइस माताजी! तंय कहां हवस? तोर बेटा, जेला अपन प्राण ले जादा चाहस, जेला अपन जीवन के आधार समझस, आज ओह घोर संकट म हे। ओकरे पिता ह ओला छुरी म रेतत हे। हाय, तंय कहां हस?

मंसाराम फेर शांत मन ले गुने बर धरिस-मोर उपर अइसन शक काबर होवत हवय? एकर का कारण आय? मोर म अइसे कोन से बात देखिस, जेकर ले ए शक होइस? ओह मोर पिता आय, मोर बैरी नोहे, जउन अपराध लगा दिही। जरुर ओह कोनो न कोनो बात देखे या सुने होही। ओकर मोर उपर कतना स्नेह रिहिसे। मोर बिना भोजन नइ करत रिहिसे, उही मोर बैरी हो जाये, ए बात उपर भरोसा नइ होवय।

अच्छा, ए शक के बीजा ल कोन दिन लगइस होही? मोला बोर्डिंग हाऊस म ठहराये के बात तो बाद के आय। ओ दिन रात कन मोर कुरिया म आके मोर परीक्षा लेवत रिहिसे, उही दिन ओकर तेवर बदले रिहिसे। ओ दिन अइसे कोन से बात होइस, जउन ह ओला बेकार लगिस होही। मंय नवा माताजी ले खाये बर कुछु मांगे बर गे रेहेंव। बाबूजी ओ समे उहां बइठे रिहिसे। हां, अब सुरता आवत हे, उही बखत ओकर चेहरा तमतमा गे रिहिसे। उही दिन ले नवा महतारी ह मोर ले पढ़े बर छोड़े रिहिसे। कहूं मंय जानतेंव कि मोर घर म आना-जाना माताजी ले कुछ गोठियाना बताना अउ पढ़ाना-लिखाना पिताजी ल बुरा लगथे, त आज काबर अइसन नौबत आतिस? अउ नवा माता! ओकर उपर का बीतत होही?

मंसाराम ह अब तक निर्मला डाहर धियान नइ दे रिहिसे। निर्मला के धियान आते भार ओकर रुंआ खड़ा होगे। हाय ओकर सरल स्नेहशील हिरदे ये आघात ल कइसे सहि सकही? आह! मंय कतेक भ्रम म रेहेंव। मंय ओकर स्नेह ल कौशल समझत रेहेंव। मोला नइ मालूम रिहिसे कि ओह पिताजी के शक ल शांत करे खातिर मोर संग अतेक कटु व्यवहार करे बर परथे। आह! मंय ह ओकर उपर कतेक अन्याय करे हंव। ओकर दशा तो मोरो ले जादा खराब होवत होही। मंय तो इहां आ गेंव, फेर ओह कहां जाही? जिया काहत रिहिसे-ओह दु दिन ले खाना नइ खाये हे। हरदम रोवत रहिथे। कइसे जा के समझावंव। ओह ए अभागा के खातिर अपन उपर विपत्ती ल काबर लेवत होही? ओह घेरी-बेरी मोर हाल पूछथे? काबर मोला घेरी-बेरी बलाथे? कइसे कहि दंव कि माता तोर ले थोरको शिकायत नइ हे, मोर दिल तोर बर बिल्कुल साफ हे।

ओह अभी घलो रोवत बइठे होही। कतेक बड़े अनर्थ हे। बाबूजी ल ये का होवत हे? का इही पाये के बिहाव करे हे? एक झिन लड़की (बालिका) के हत्या करे खातिर ही ओला लाये हे! ए कोमल फूल ल मसले बर ही टोरे रिहिसे।

ओकर उद्धार कइसे होही। ओ बिना अपराध के अपराधनी कइसे होगे। ओकर मुख कइसे उज्जर होही? ओला तो मोर संग स्नेह के व्यवहार करे खातिर ये दंड दिये जात हे। ओकर सरल सुभाव के ए उपहार मिलत हवय। मंय ओला ए किसम के बिना मतलब के दुख सहत देखत बइठे रहूं! अपन मान-रक्षा बर न सही, ओकर आत्म रक्षा खातिर ए प्राण के बलिदान करे बर परही। एकर सिवाय उद्धार के कोनो उपाय नइ हे। आह! दिल म कइसन-कइसन अरमान रिहिसे। ओ सबो ल माटी म मिलाये बर परही। इही पाय के ओकर उपर संदेह करे जावत हे, वहू मोर सेती! मोला अपन पूरा ताकत लगा के ओकर रक्षा करे बर परही, एह मोर जिम्मेदारी आय। इही ह सही के बहादुरी आय। माता, मंय अपन लहू ले ए शक रुपी करिया रंग ल धोहूं। इही म मोर अउ तोर दुनो के कल्याण हे।

ओह दिन भर इही विचार म डूबे रिहिसे। संझा कना ओकर दुनो भाई आ के घर चले बर बिनती करिन।

सियाराम - चलस काबर नही? मोर भइया जी, चल न संग म।

मंसाराम - मोला फुरसत नइ हे कि तोर केहे ले चल दुहूं।

जियाराम - आखिर काली तो इतवार घलो आय।

मंसाराम - इतवार के घलो काम हे।

जियाराम - अच्छा, काली आबे न?

मंसाराम - नही, काली मोला एक ठन मैच म जाना हे।

सियाराम - माता जी मूंग के लड्डू बनावत हे। नइ जाबे ते एको ठन नइ पाबे। हम दुनो झिन खा लिंगे।

जिया, एला नइ देवन।

जियाराम - भइया, अगर तंय कल नइ जाबे त हो सकथे माताजी इहें चले आही।

मंसाराम - सिरतोन, नही अइसन-काबर करही। इहां आही त बड़ा परेशानी होही तंय कहि देबे, ओह कहूंचो मैच देखे बर गे हे।

जियाराम - मंय लबारी काबर मारहूं। मंय कहि दुहूं, ओह मुंहु फुलो के बइठे रिहिसे। देख लेबे मंय ह ओला अपन संग लाहूं कि नही।

सियाराम - हम्मन कहि दिंगे आज ओह पढ़े बर नइ गे हे। दिन भर सुतत रिहिसे।

मंसाराम ह ए दुनो भाई मन ले काली आये के वादा करके अपन पीछा छोड़इस। जब दुनो झिन चल दिस, त फेर चिन्ता म डूब गे रात भर करवट बदल बदल के गुजारिस। छुट्टी के दिन ह घलो बइठे-बइठे कट गे, ओला दिनभर शंका होवत रिहिस कि कहूं माताजी ह सही म झन चले आये। काकरो गाड़ी के खड़खड़ाहट सुनय, त ओकर करेजा ह धक-धक करे बर धर लेवय, कहंू आ तो नइ गे?

छात्रावास म एक ठन नानकुन दवई दुकान रिहिसे। एक झिन डॉक्टर साहब ह एक घण्टा बर आ जाये करत रिहिसे। अगर कोनो लड़का बीमार रहितिस ते ओला दवई दे देतिस। आज ओह अइस त मंसाराम ह कुछ सोचत ओकर करा जा के खड़ा होगे। ओह मंसाराम ल बने ढंग ले जानत रिहिसे। ओला देख के अचरज होके किहिस-ये तोर का हालत हे जी? तंय तो मानो दुबरावत जावत हस। कहूं तोला बाजार के चस्का तो नइ पर गे? आखिर तोला होय काय हे? थोकिन इहां तो आओ। 

मंसाराम ह मुस्कुराके किहिस-मोला जिनगी के रोग हे। आप करा एकरो तो कोनो दवा होही?

डॉक्टर - मंय तोर पूरा टेस्ट (परीक्षण) करना चाहत हंव। तोर तो सूरत ही बदल गे हे, चिन्हावत घलो नइ हस।

अइसे कहि के, ओह मंसाराम के हाथ ल पकड़ लिस ओकर बाद, छाती, पीठ, आंखी अउ जीभ ल एकक करके देखिस। ओह चिन्तित हो के किहिस-वकील साहब ले मंय आजे मिलहूं। तोला थाइसिस होवत हे। सबो लक्षण ओकरे आय।

मंसाराम बड़ा खुश हो के किहिस-कतेक दिन म काम तमाम हो जही, डॉक्टर साहब? 

डॉक्टर - कइसे बात करथस जी। मंय वकील साहब ले मिल के तोला कोनो पहाड़ी जघा म भेजे बर सलाह दुहूं। ईश्वर ह चाहही ते बहुत जल्दी अच्छा हो जबे। बीमारी अभी पहिली स्टेज म हवय।

मंसाराम -  अइसन म तो साल दु साल लग जही तइसे लागत हे। मंय तो अतेक इन्तजार नइ कर सकंव। सुनव, मोला थायरिस वायसिस कुछु नइ हे, न कोनो दुसर शिकायत हे, आप बाबूजी ल जबरन के परेशानी म झन डारव। अभी मोर मुड़ी ह पिरावत हे, एकाद ठन दवा दे दव। कोनो अइसे दवा हावय जेकर ले नींद घलो आ जाये। मोला दु रात ले नींद नइ आवत हे।

डॉक्टर ह जहरीली दवाई मन के आलमारी खोलिस ओकर बाद थोकिन दवा निकाल के मंसाराम ल दे दिस। मंसाराम ह पूछिस-ये तो कोनो जहर आय। एला कोनो ह पी लिही तेह तो मर जही।

डॉक्टर - नही, मरे तो नही फेर मुड़ी म चक्कर जरुर आ जही। 

मंसाराम - कोनो अइसे दवा घलो हे एमे, जेकर पीते भार प्राण निकल जाये।

डॉक्टर - अइसन एक-दु ठन नही बल्कि कतनो दवा हे। ये जउन सीसी ल देखत हवस न, एकर एक बूंद घलो पेट म चल दिही ते जान चले जाही। आनन-फानन म मौत हो जाही।

मंसाराम - कइसे डॉक्टर साहब, जउन मन जहर खा लेथे, उमन ल बड़ा तकलीफ होवत होही।

डॉक्टर - सबो जहर म तकलीफ नइ होवय, ‘बाज‘ दवाई तो अइसे आय जेला पीय भर म नाड़ी ह ठंडा हो जथे। ए सीसी ह इही किसम के आय, एला पीते भार मनखे बेसूध हो जथे ओकर बाद ओला सुध आबे नइ करय।

मंसाराम ह सोचिस-तब तो प्राण देना बिक्कट आसान हे, फेर लोगन काबर डर्राथे? ए सीसी ह कइसे मिलही? अगर दवा के नाम पूछके शहर के कोनो दवा बेचइया ले बिसाना चाहहूं त ओह कभू नइ देवय। ऊंह, एकर मिलई म कोनो दिक्कत नइ हे। ये तो मालूम होगे कि प्राण के अन्त बड़ा आसानी ले करे जा सकत हे। मंसाराम अतना खुश होइस कि मानो कोनो इनाम पाये होही। ओकर दिल ले बड़े जन बोझा ह हट गे। चिन्ता के मेघ राशि जउन मुड़ी म मंडरावत रिहिसे, सब छिन्न-भिन्न होगे। महीनो बाद आज ओला टन्नक (स्फूर्ति) लगिस। लड़का मन थियेटर देखे बर जावत रिहिन हे, निरीक्षक ले आज्ञा ले ले रिहिन। मंसाराम घलो उंकर मन संग थियेटर देखे बर चल दिस। अइसे खुस रिहिसे, जानो-मानो ओकर ले जादा सुखी जीव संसार म कोनो नइ रिहिन। थियेटर म नाटक देख के हांसत-हांसत ओकर पेट फूल जय। घेरी-बेरी थपरी पीटई अउ ‘वन्स मोर‘ के हांका लगई म पहिली नम्बर ओकरे रिहिसे। गाना सुन के ओह मस्त हो जावत रिहिसे अउ ओ हो हो! कहिके चिल्लाय बर उठ जावत रिहिसे। दर्शक मन के नजर घेरी-बेरी ओकर डाहर चल देवय। थियेटर के पात्र मन घलो ओकरे डाहर देखय अउ जाने के कोशिश करय कि कोन महाशय आय जउन अतेक रसिक अउ भावुक हे। ओकर संगवारी मन ल ओकर हरकत ले अचरज होवत रिहिसे। ओह बहुत ही शांतचित, गम्भीर स्वभाव के युवक रिहिसे। आज ओह काबर अतेक हसमुख होगे हे, काबर अपन उपहास के परवाह नइ हे।

दु बजे रात कना थियेटर ले लहूटे के बाद घलो ओकर हंसी-मजाक कम नइ होय रिहिसे ओह एक झिन लड़का के खटिया ल पलट दिस, कतनो लड़का मन के कमरा के दरवाजा ल बाहिर ले बंद कर दिस अउ इहां तक ले छात्रावास के अध्यक्ष महोदय के नींद घलो हल्ला गुल्ला सुन के खुल गे अउ ओह मंसाराम के शरारत ले नाराज घलो होइस। कोन जानत रिहिसे कि ओकर अंतस म कतना भीषण क्रांति होवत हे? शक के निर्दयी आघात ह ओकर लज्जा अउ आत्मसम्मान ल रौंद डरिस। ओला अपमान अउ तिरस्कार के थोरको डर नइ हे। एह हंसी मजाक नो हे बल्कि ओकर आत्मा के करुण विलाप आय। जब अउ सब लड़का मन सुतगे ओकर बाद वहू ह खटिया म लेटिस फेर ओला नींद नइ अइस। एक छण के बाद ओह बइठिस अउ सबो किताब ल बांध के संदूक म रख दिस। जब मरना ही हे त पढ़े ले का होही? जउन जीवन म अइसे अइसे बाधा मन हे, अइसे-अइसे तकलीफ हे, ओकर ले तो मृत्यु बढ़िया हे।

अइसे सोचत-सोचत बिहनिया होगे। तीन रात ले ओह एक क्षण घलो नइ सुते रिहिसे। ए दरी जब ओह उठिस त ओकर गोड़ ह थर-थर कांपत रिहिसे अउ मुड़ी म चक्कर आवत रिहिसे। आंखी ह जलत रिहिसे अउ तन के सबो अंग ह शांत होवत रिहिसे। बेरा चढ़त जावत रिहिसे अउ ओमा अतना ताकत नइ रिहिसे कि उठके मुंह हाथ धो ले। एकाएक ओह मूंगी ल रुमाल म कुछु धरके एक झिन कहार संग आवत देखथे। ओकर करेजा सन्न रहिगे। हे भगवान! ओह आ गे। अब का होही? मूंगी ह अकेल्ला नइ आये होही? बग्घी (घोड़ा गाडी) जरुर बाहिर म खड़े होही? ओइसे तो ओह उठ नइ सकत रिहिसे, ओह मूंगी ल देख के दउड़िस अउ घबरा के किहिस-माताजी घलो आये हे, का? जब पता चलिस कि माताजी ह नइ आये हे, तब ओकर मन ह शांत होइस।

मूंगी ह किहिस भइया! तंय कल नइ गेस, बहूजी ह तोर रद्दा देखत रहीगे, ओकर बर काबर रिसाये हस भइया? कहिथे, मंय तो ओकर कुछु भी शिकायत नइ करे हंव। मोर करा आज रोवत किहिस-ओकर करा ये मिठाई ल धर के जा अउ कहिबे मोर सेती काबर घर छोड़ दे हे? कते करा रखंव ये थारी(थाली) ल?

मंसाराम ह घुस्सा हो के किहिस-ये थारी ल अपन मुड़ी म पटक दे चुड़ैल। उहां ले चले हस मिठई धर के। खबरदार-एकर बाद फेर कभू आबे! सौगात धर के आये हस। जाके कहि देबे, मोला ओकर मिठई नइ चाही। जाके कहि देबे, तोर घर आय, तंय राह, उहां ओह बड़ा आराम से हे। खूब खाथे अउ मौज करथे। सुनत हस, बाबूजी के आघु म कहिबे, समझ गेस? मोला काकरो डर नइ हे अउ ओह जउन करना चाहे कर डाले, जेकर ले ओकर दिल म कुछु अरमान झन बांचे रहि जाये। इहें ले इलाहाबाद, लखनऊ, कलकत्ता चल देहूं। मोर बर तो बनारस वइसने दुसर शहर आय। इहां का रखे हे?

मूंगी - भैया मिठई ल रख ले, नही ते रो-रो के मर जही। सिरतोन मान ओह रो-रो के मर जही।

मंसाराम ह आंसू के बोहात धार ल रोकत किहिस-मर जही ते, मरन दे, मोर बला से। कोन से मार मोला सुख दे हे, जेकर बर पछताहूं। मोर तो ओह सर्वनाश कर दे हे। कहि देबे, मोर करा कोनो खबर मत भेजय, कुछु जरुरत नइ हे। 

मूंगी - भैया, तंय तो कहिथस, इहां खूब खाथंव अउ मौज करथंव मगर देह तो आधा घलो नइ हे। जइसन आय रेहे, ओकरो ले आधा नइ रेहे।

मंसाराम - ये तोर आंखी के धोखा आय। देखबे दु-चार दिन म मोटाहूं कि नही। ओला यहू कहि देबे कि रोना धोना बंद कर दे। जउन मंय ह अभी सुनेंव कि रोथे अउ खाना नइ खावय, मोर ले बुरा कोनो नइ हे। मोला घर ले निकाले हे त अपन ह घर म चैन से राहय। चले हे बड़ा मया देखाये बर। मैं अइसन त्रिया-चरित्तर बहुत पढ़ के बइठे हंव।

मूंगी चल दिस। मंसाराम ल मूंगी ले बात करत-करत जाड़ लागे बर धर लिस। ये अभिनय करे बर अपन मन के भाव ल जतना दबाये बर परे रिहिसे, ओह ओकर बर असाध्य रिहिसे। ओकर आत्मसम्मान ह ओला ए कुटिल व्यवहार के जल्दी से जल्दी खतम करे बर मजबूर करत रिहिसे, फेर एकर परिणाम का होही? निर्मला का ए आघात ल सहि सकही? अब तक ओह मृत्यु के कल्पना करत समे कोनो दुसर प्राणी के विचार नइ करत रिहिसे, फेर आज एकाएक ज्ञान होइस कि मोर जीवन के संग म ए अउ प्राणी के जीवन-सूत्र ह घलो बंधाये हवय। निर्मला समझही कि मोर निठुर स्वभाव ह एकर जान लिस हवय। अइसन समझ के ओकर कोंवर (कोमल) हिरदे ह भारी दुखी हो जही? ओकर जीवन तो अभी घलो संकट म हवय। शक के कठोर पंजा म फंसे अबला ह का अपन आप ल हत्यारिणी समझ के बहुत दिन तक जीवित रही पाही?

मंसाराम ह खटिया म ढलंग के चद्दर ओढ़ लिस, तभो ले जाड़ म तन ह कापत रिहिसे। थोकिन देर बाद ओला जोर से बुखार चढ़गे, ओह बेहोश होगे। ये अचेत दशा म ओला आनी-बानी के सपना दिखे बर धर लिस। एकक-कनी के बाद ओह चौंक परे, आंखी खुल जतिस ताहन फेर बेसूध हो जतिस।

अचानक वकील साहब के आवाज सुन के ओह चौंकगे। हां, वकील साहब के ही आवाज रिहिस। ओह चद्दर ल फेंक दिस ओकर बाद खटिया ले उतर के खाल्हे म खड़ा होगे। ओकर मन म एक विचार उठिस कि इही समे एकरे आघु म प्राण त्याग दवं। ओला सही के खुशी होही। शायद इही पाये के ओह देखे बर आये हे कि मोर मरई म कतना देरी हे। वकील साहब हाथ पकड़ लिस जेकर ले ओह गिर झन जबे अउ पूछिस तबियत कइसे हे लल्लू, लेटे काबर नइ रेहे? ढलंग (लेट) जा, तंय खड़ा काबर होगे हस?

मंसाराम - मोर तबियत तो बहुत बढ़िया हे। आप ल बिना मतलब के तकलीफ होइस। मुंशीजी ह कुछु जवाब नइ दिस। लड़का के हालत देख के ओकर आंखी ले आंसू निकल गे। ओ हिस्ट-पुस्ट बालक जेला देख के मन ह प्रसन्न हो जावत रिहिसे, अब सूखा के कांटा होगे। पांच छै दिन म ही ओह अतना दुबरा गे रिहिसे कि ओला पहिचानना मुश्किल होगे रिहिसे। मुंशीजी ओला धीरे से खटिया म सुता दिस अउ चद्दर ल बढ़िया ढंग ले ओढ़ा के गुने बर धर लिस कि का करना चाही। कहू लड़का ह हाथ ले तो नइ निकल जही। अइसे सोच के ओह बिक्कट दुखी होइस। तीर म माढ़े स्टूल म बइठ के फफक-फफक (फूट-फूट) के रोये बर धर लिस। मंसाराम ह घलो चद्दर म मंुहु लपेट के रोवत रिहिसे। अभी कुछ दिन पहिली ओला देख के पिता के हिरदे गर्व ले फूल जवय, फेर आज ओकर अइसन दुखी दशा ल देख के घलो ओह सोचत हवय कि येला घर लेगंव कि नही। का इहां इलाज नइ हो सकय? मंय इहां चौबीसो घण्टा बइठे रहूं। डॉक्टर साहब इहां है ही। कोनो दिक्कत नइ होही। घर लेगे ले ओला बाधा ही बाधा दिखत रिहिसे, सबले बड़े भय ये रिहिसे कि उहां निर्मला ह एकर तीर हरदम बइठे रही अउ मंय मना नइ कर पाहूं, येला ओह सही नइ सकही।

अतना म अध्यक्ष ह आके किहिस-मंय तो समझथंव, आप एला अपन संग ले जावव। गाड़ी है ही, कोनो तकलीफ नइ होही। इहां अच्छा ढंग ले देखभाल नइ हो पाही। 

मुंशीजी - हां, आये तो रेहेंव महंू ह इही खियाल ले, फेर येकर हालत बहुत ही नाजुक मालूम होवत रिहिसे। एकाद कनी असावधानी होये ले मामला बिगड़े के डर रिहिसे।

अध्यक्ष - इहां ले एला जाये म थोकिन दिक्कत जरुर हे फेर येला तो आप खुद समझ सकथव कि घर म जउन आराम मिलही, ओह इहां कोनो भी तरीका ले नइ मिल सकय। एकर अलावा नियम के खिलाफ घलो हे। 

मुंशीजी कहिथे-त मंय हेडमास्टर ले आज्ञा ले लंव। मोला इहां ले ए हालत म लेगई ह कोनो भी तरह ले उचित नइ लगत हवय। 

अध्यक्ष ह हेडमास्टर के नाम सुनिस त ओला अइसे लगिस कि ये महाशय ह धमकी देवत हे। थोकिन ताव से किहिस-हेडमास्टर ह नियम के खिलाफ कोनो बात नइ कर सकय। मंय अतेक बड़े जिम्मेदारी कइसे ले सकथंव?

अब का करंव? का घर जाये बर ही परही? इहां रखे के तो एके बहाना रिहिसे कि घर ले जाये ले बीमारी बाढ़े के शक हे। इहां ले लेग के अस्पताल म भर्ती कराये बर कोनो बहाना नइ हे। जउन सुनही, ओहा इही कही कि डॉक्टर के फीस बचाये खातिर लड़का ल अस्पताल म फंेक दे हे, फेर अब लेगे के सिवाय अउ कोनो उपाय नइ रिहिसे। अगर अध्यक्ष महोदय ए समय घूस (रिश्वत) ले बर तैयार हो जतिस, त शायद दु-चार साल के वेतन ले लेतिस फेर कायदा से पाबंद मनखे मन म अतना बुद्धि अउ अतना चतुराई कहां! अगर ए समे मुंशीजी ल कोनो आदमी ए उपाय सुझा देतिस, जेकर ले मंसाराम ल घर लेगे बर नइ परतिस, त ओह ओकर आजीवन एहसान मानतिस। सोचे के समे घलो नइ रिहिसे। विवश हो के मुंशीजी ह दु झन मनखे ल बलइस अउ मंसाराम ल उठाये बर धरिस। मंसाराम ल अर्द्धचेतना के दशा म रिहिसे, चौंक के किहिस-का होगे?

कोन आव?

मुंशीजी - कोनो नोहे बेटा, मंय तोला घर लेगना चाहत हंव, आओ गोदी म उठा लेथंव।

मंसाराम - मोला काबर घर लेगबे? मंय उहां नइ जावंव।

मुंशीजी - इहां तो नइ रही सकस, नियम ही अइसे हे।

मंसाराम - कुछ भी हो जवय, उहां नइ जावंव। मोला कहूं अउ लेग जा, कोनो पेड़ के खाल्हे, कोनो कुंदरा म, आप जिंहा चाहव रखव, फेर घर मत लेगव।

अध्यक्ष ह मुंशीजी ले किहिस-आप एकर बात म धियान झन देबे, येह तो होश म नइ हे।

मंसाराम - कोन ह होश म नइ हे? का मंय होश म नइ हंव? कोनो ल गारी देथंव, कोनो ल दांत म काटथंव का? काबर होश म नइ हंव? मोला इहें पड़े रहान दव, जउन कुछ होना होही इहें होही अगर अइसे हे, त मोला अस्पताल ले चलव, मंय उहां पड़े रहूं। जीये बर होही, त जीहंू, मरना होही त मरहूं, फेर घर कोनो भी हाल म नइ जावंव।

थोकिन शकउ पाके मुंशीजी फेर अध्यक्ष ले बिनती करिस, फेर ओह नियम-धियम के पाबंदी आदमी कुछु सुनबे नइ करय। अगर कहूं छूत के बीमारी होही, अउ कोनो दुसर लड़का ल छूत लग जही, त कोन ह ओकर जवाबदारी लिही। ए तर्क के आघू त मुंशीजी के कानूनी दलील घलो काम नइ अइस।

आखिर मुंशी जी ह मंसाराम ले किहिस बेटा, तोला घर चले बर काबर एतराज होवत हे? उहां तो सबो किसम के आराम रही। मुंशीजी ह केहे बर तो कहि दिस फेर डर्रावत रिहिसे। कि कहूं सिरतोन म मंसाराम ह जाये बर राजी झन हो जही। मंसाराम ल अस्पताल म रखे बर कोनो बहाना खोजत रिहिसे अउ ओकर जिम्मेदारी ओह मंसाराम उपर ही डालना चाहत रिहिसे। येह अध्यक्ष के आघु के बात रिहिसे, ओह ए बात के गवाही दे सकत रिहिसे कि अपन जिद ले अस्पताल जावत हवय। मुंशी जी के एमा थोरको दोष नइ हे।

मंसाराम ह झल्ला के किहिस-नही, नही सौ बार नही, मंय घर नइ जावंव। मोला अस्पताल ले चलव अउ घर के सब आदमी मन ल मना कर देवव कि मोला देखे बर झन आवय। मोला कुछु नइ होय हे, बिल्कुल बीमार नइ हंव, आप मोला छोड़ देवव, मंय अपन गोड़ ले रेंगत जा सकथंव।

ओह उठ के खड़ा होगे अउ जोश म दरवाजा डाहर चलिस, फेर गोड़ ह लड़खड़ाये बर धर लिस। कहूं मुंशीजी ह नइ सम्हाले रहितिस ते ओला जादा चोट आय रहितिस। दुनो नौकर के मदद ले मुंशीजी ह ओला घोड़ा गाड़ी (बग्घी) करा लइन अउ भीतरी म बइठार दिन। गाड़ी ह अस्पताल डाहर चलिस। उही होइस जउन मुंशीजी चाहत रिहिसे। ए हालत म घलो ओकर मन ह खुश रिहिसे। लड़का अपन इच्छा ले अस्पताल जावत हे। का येह बात के प्रमाण नइ रिहिसे कि घर म एला कोनो स्नेह नइ करय? का एकर ले ए सिद्ध नइ होवय कि मंसाराम निर्दोष हवय? ओह ओकर उपर बिना मतलब के शक करत रिहिसे।

फेर थोकिन देर बाद मन म संतोष के बदला ग्लानि के भाव जाग गे। ओह अपन प्राण ले प्रिय दुलरुवा बेटा ल घर नइ ले जा के अस्पताल लेगत रिहिसे। ओकर विशाल भवन म ओकर बेटा बर जगह नइ रिहिसे, ए दशा म घलो जबकि ओकर जिनगी संकट म परे रिहिसे। अइसन विडम्बना आय। एक क्षण के बाद एकाएक मुंशीजी के मन म सवाल उठिस कहीं मंसाराम ह ओकर भाव ल ताड़ तो नइ लिस? इही पाये के ओला घर ले घृणा तो नइ होगे हे। अगर अइसे हे त तो गजब हो जही।

ओ अनर्थ के कल्पना ले ही मुंशीजी के रुंआ ह ठाड़ होगे अउ कलेजा ह धुकुर धुकुर करे बर धर लिस। हिरदे म एका एक धक्का जइसे लगिस। अगर ए बुखार के इही कारण आय त तो ईश्वर ही मालिक हे। ए समय ओकर दशा बहुत खराब रिहिसे। वो आगी जउन ल ओह अपन ठुनठुनावत हाथ ल सेंके बर जलाये रिहिसे अब ओकर घर म लगे बर धर ले रिहिसे। ए करुणा, शोक, पश्चाताप अउ शंका ले ओकर चित ह घबरा गे। ओकर गुप्त रोवई के आवाज ह बाहिर निकल जतिस, त सुनइया मन रो डरतिन। ओकर आंसू बाहिर निकल जतिस, ते ओकर तार बंध जतिस। ओह अपन बेटा के मुरझाये चेहरा ल वात्सल्यपूर्ण नेत्र ले देखिस, वेदना ले दुखी हो के ओला छाती ले लगा लिस ताहन अतना रोइस कि हिचकी बंध गे।

आघु म अस्पताल के फाटक दिखत रिहिसे।

 

ग्यारह


मुंशी तोताराम संझा के समे कचहरी (कछेरी) ले घर पहुंचिस, ताहन निर्मला ह पूछिस-ओला देखे हस, का हाल हे? मुंशीजी ह देखिस कि निर्मला के चेहरा म नाम मात्र के घलो शोक या चिंता के चिन्हा नइ दिखत हवय। ओकर बनाव सिंगार आन दिन ले अउ बढ़िया रिहिसे। जइसे ओह गला म हार नइ पहिरत रिहिसे फेर आज ओकर गला म शोभा देवत रिहिसे। झूमर ले घलो ओला बहुत प्रेम रिहिसे, फेर आज वहू ह बारिक रेशमी लुगरा के खाल्हे, करिया बाल के उपर कांच के दीया कस चमकत रिहिसे।

मुंशीजी ह मुंहु मोड़ के किहिस-बीमार हे अउ का हाल बतावंव?

निर्मला - तंय तो ओला लाने बर गे रेहेस?

मुंशीजी ह झुंझला के किहिस-ओह नइ आवंव कहिथे त का जबरन उठा के लातेंव? कतेक समझायेंव कि बेटा घर चल, उहां तोला कुछु तकलीफ नइ होवय, फेर घर के नाम ल सुनके ओला जइसे ओकर बुखार ह दुना हो जावत रिहिसे। केहे लगिस-मंय इहें मर जहूं फेर घर नइ जावंव। आखिर मजबूर हो के अस्पताल म पहुंचा के आयेंव अउ का करतेंव?

रुक्मिणी घलो बरामदा म आ के खड़ा होगे। किहिस-ओह जनम ले ढीठ (हठी) आय, इहां कइसनो किसम ले नइ आवय अउ यहू देख लेहू, उहां ठीक घलो नइ होवय?

मुंशीजी ह डर्राय स्वर म किहिस-तंय उहां दु चार दिन बर उहां चले जतेस ते बढ़िया होतिस, तोर रेहे ले ओला बने लागही। मोर बहिनी, मोर ए बिनती ल मान ले। अकेल्ला ओह रो-रो के प्राण दे दिही। बस हाय अम्मा! हाय अम्मा! ल रटत रोवत रहिथे? मंय उहें जावत हंव, मोर संग चल। ओकर दशा ह बने नइ हे। बहिनी, पहिली कस ओकर तन ह नइ हे। देखो, ईश्वर के का मरजी हे? 

अइसे काहत-काहत मुंशीजी के आंखी ले आंसू बोहाय बर धर लिस, फेर रुक्मिणी ह हिम्मत करके किहिस-मंय जाये बर तैयार हंव। मोर रेहे ले अगर मोर बेटा के प्राण बच जाये, ते मंय मुड़ी के बल दउंड़ के चले जहूं, फेर मोर कहना ल गांठ बांध ले भइया उहां वोह बने नइ होवय। मंय ओला बहुत अच्छा ढंग ले जानथंव। ओला कोनो बीमारी नइ हे, सिरिफ घर ले निकाले जाये के दुख हे। इही दुख ह बुखार के रुप म प्रगट होये हवय। तंय एक नही लाख दवा कर ले, सिविल सर्जन ल घलो देखाबे तभो ले कोनो दवा असर नइ करय।

मुंशीजी - बहिनी ओला घर ले निकाले कोन हे? मंय तो सिरिफ ओकर पढ़ई के ख्याल से ओला उहां भेजे रेहेंव।

रुक्मिणी - तंय ह चाहे जउन ख्याल ले भेजे होबे फेर ये बात ह ओला लग गे। मंय तो अब कोनो गिनती म नइ हंव, मोला कोनो बात म बोले के कोई अधिकार नइ हे। मालिक तंय, मालकिन तोर गोसइन। मंय तो सिरिफ तोर रोटी के टुकड़ा म पलत अभागिनी विधवा अंव। मोर कोन सुनही अउ कोन परवाह करही? फेर बिना बोले रहि नइ सकंव। मंसा तभे बने होही जब घर आही, जब तोर हिरदे पहिली कस स्नेही हो जही ताहन अपने आप मंसा ह ठीक हो जही।

अइसे कहिके रुक्मिणी ह उहां ले चले गे, ओकर आंखी के आघु म जउन भी बूता होवत रिहिसे, ओकर रहस्य ल ओह खूब समझत रिहिसे अउ ओकर सबो घुस्सा ह फोकटे-फोकटे निर्मला उपर निकले। यहू समय घलो ओह काहत-काहत रुक गे कि जब तक लक्ष्मी ए घर म रही, ए घर के हालत ह बिगडे़त जाही। साफ-साफ नइ केहे के बावजूद ओकर मतलब मंुशी ले छिपे नइ रिहिस। ओकर जाये के बाद मुंशीजी ह मुड़ी ल नवा के गुने बर धर लिस। अपन उपर ए समे अतेक घुस्सा आवत रिहिसे कि कोठ(दीवार) म मुड़ी पटक के अपन प्राण के अन्त कर दे। ओहा काबर बिहाव करे रिहिसे? बिहाव करे के का जरुरत रिहिसे? ईश्वर ह ओला एक झिन नही तीन-तीन झिन बेटा दे रिहिसे? ओकर उमर घलो पचास के लगभग पहुंचगे रिहिसे, फेर ओह काबर बिहाव करिस? का इही बहाना ईश्वर ल एकर सर्वनाश करना मंजूर रिहिसे? ओह मुड़ी उठा के एक घांव निर्मला के हिम्मत के निश्छल मूर्ति ल ताहन अस्पताल चले गे। निर्मला के हिम्मती चेहरा ओकर चित ल शांत कर दिस। आज कई दिन के बाद ओला शांति नसीब होय रिहिसे। मया बर तरसत (प्रेम-पीड़ित) हिरदे ह ए दशा म का अतना शांत अउ अविचलित कइसे रहि सकथे? नही कभू नही हिरदे के चोट ल बनावटी चेहरा ले नइ लुकाये जा सकय। अपन चित के कमजोरी उपर ए समे ओला भारी दुख होइस। ओह बिन मतलब के शक ल हिरदे म जघा दे के अतेक बड़े गलती करे हवय। मंसा डाहर ले घलो ओकर मन के शंका ह खतम होगे। हां, ओकर जघा अब एक ठन नवा शंका पैदा होगे। का मंसाराम समझ तो नइ गे? का समझे के बाद ही तो घर आये बर मना तो नइ करत हे? कहूं ओह समझ (भांप) गे होही, त महान अनर्थ हो जही। ओकर कल्पना ले ही ओकर मन दहल उठिस। ओकर तन के सबो हड्डी ह मानो ए हाहाकार उपर पानी डारे बर व्याकुल रिहिसे। ओह कोचवान (गाड़ी हकइंया) ल घोड़ा ल तेज चलाये बर किहिस। आज कई दिन के बाद ओकर हिरदे मंडल म घपटे बादर ह फटगे ओकर बाद प्रकाश के लहरा ह अन्दर ले निकले बर उतावला होवत रिहिसे। ओह बाहिर मुड़ी निकाल के देखिस, कोचवान सुतत तो नइ हे। घोड़ा के चाल ह अतेक धीरे कभू नइ होय रिहिसे।

अस्पताल पहुंच के ओह जल्दी लपक के मंसाराम करा गिस। देखिस त डॉक्टर ह ओकर आघु म चिन्ता करत खड़े हे। मुंशीजी ह घबरा गे। मुंहु ले कुछु कहि नइ सकिस। भरभराये स्वर म बड़ा मुश्किल से किहिस - का हाल हे, डॉक्टर साहब? अइसे काहत-काहत ओह रो डरिस अउ जब डॉक्टर साहब ल ओकर सवाल के जवाव दे बर एक कनि देरी होगे ताहन ओह डर्रा गे। ओह पलंग म बइठ के अचेत बालक ल गोदी म उठा लिस अउ लइका मन कस सुसक-सुसक के रोये बर धर लिस। मंसाराम के देह ह तवा कस जलत रिहिसे। मंसाराम ह एक घांव आंखी उघारिस। आह, कतेक भयंकर अउ ओकरे संग ही अतेक हीन दृष्टि रिहिस। मुंशीजी बालक ल गला ले लगाके डॉक्टर ल पूछिस का हाल हे साहब! चुप चाप काबर हव?

डॉक्टर ह संदेह के स्वर म किहिस-जउन हाल हे, ओला तो आप देखते हव। 106 डिग्री के बुखार हे अउ मंय का बतावंव? अभी बुखार के प्रकोप ह बाढ़ते जावत हे। मोर इलाज पानी करे ले कुछ हो सकथे ओ तो करतेच्च हंव। ईश्वर मालिक हे। जब ले आप गे रेहेव। भोजन घलो नइ कर सकेंव। हालत अतना नाजुक हे कि एक मिनट म का हो जही, नइ केहे जा सकय? येह महा ज्वर (बड़े बुखार) आय, बिल्कुल होश नइ हे। रहि रहि के डिलीरियम (एक किसम के बीमारी) के दौरा आ जथे। का घर म कोनो ह कुछु केहे हे, अम्मा जी (माता जी) तंय कहां हस! बस इही अवाज ह ओकर मुंहु ले निकले हे। 

डॉक्टर साहब अइसे काहते रिहिसे कि अचानक मंसाराम ह उठ के बइठ गे अउ धक्का दे के मुंशीजी ल खटिया के खाल्टे ढकेल के नाराज हो के किहिस-काबर धमकाथस, मार डर, मार डर, अभी मार डर। तलवार नइ मिलय, डोरी के फंदा हे या वहु घलो नइ हे। मंय अपन गला म फंासी लगा लुहूं। ए दाई वो, तंय कहां हस। अइसे काहत-काहत ओह बेसूध हो के गिर परिस।

मुंशीजी ह एक क्षण तक मंसाराम के खराब तबियत ल देख के दुखी नजर ले देखत रिहिसे, फेर एकाएक ओह डॉक्टर साहब के हाथ पकड़ लिस अउ बहुत विनती करत किहिस-डॉक्टर साहब, ए लड़का ल बचा ले, ईश्वर के खातिर बचा ले, नही ते मोर सर्वनाश हो जही, मंय अमीर भले नइ हंव फेर आप जउन कुछ भी कहूं ओला हाजिर कर दुहूं, एला बचा ले। आप बड़े ले बड़े डॉक्टर ल बलवा लेवव अउ उंकर ले राय लेवव मंय सब खर्चा कर दुहूं। एकर ए हालत ह ल अब मंय नइ देख सकंव। हाय, मोर दुलरवा बेटा। 

डॉक्टर साहब ह दुखी स्वर म किहिस-बाबू साहब, मंय आपसे सिरतोन काहत हंव, मंय ह एकर बर अपन डहार ले कोनो कसर नइ छोड़े हंव। अब आप दुसर डॉक्टर मन ले सलाह ले बर कहिथव। अभी डॉक्टर लाहिरी, डॉक्टर भाटिया अउ डॉक्टर माथुर ल बलावत हंव। विनायक शास्त्री ल घलो बला लेथंव, फेर मंय आप ल फोकट के आश्वासन नइ देना चाहत हंव, हालत नाजुक हे।

मुंशीजी ह रोवत किहिस-नही डॉक्टर साहब, ये शब्द ल मुुंहु ले झन निकाल। हाल एकर बैरी मन के नाजुक हो। ईश्वर मोर उपर अतेक बड़े क्रोध नइ करही। आप कलकत्ता अउ बम्बई के डॉक्टर मन ल खबर (तार) कर देवव, मंय जिनगी बर आपके गुलामी करहूं। येह मोर कुल के दीपक आय। इही मोर जिनगी के आधार आय। मोर हिरदे ह फटे जावत हे। कोई अइसे दवा देवव, जेकर ले येला होश आ जावय। मंय जरा अपन कान ले ओकर बात तो सुन के जानव तो सही कि ओला का तकलीफ होवत हवय। हाय मोर बच्चा। 

डॉक्टर ह मुंशीजी ल कथे-आप धीरज धरव। आप बुजुर्ग आदमी अव, अइसन हाय-हाय करई अउ डॉक्टर मन के फौज जमा करे ले नतीजा कुछु नइ निकलय। शांत हो के बइठव, मंय शहर के लोगन ल नही बलावत हंव, देखव इमन काये करथे? आप तो खुदे हिम्मत ल हारत हव।

मुंशीजी-अच्छा डॉक्टर साहब! मंय अब नइ बोलंव, गलती होगे। जुबान ल नइ खोलंव, आप जउन चाहे करव, बच्चा अब आपके हाथ म हे। आप ओकर रक्षा कर सकथव। मंय अतने चाहत हंव कि एला जरा होश आ जाये, मोला पहिचान ले, मोर बात ल समझे बर धर ले। का कोनो अइसन संजीवनी बूटी नइ हे? मंय एकर ले दु-चार बात कर लेतेंव।

अइसे काहत-काहत आवेश म आके मंसाराम ल किहिस-बेटा थोकिन आंखी खोल, कइसे हवस? मंय तोर करा बइठ के रोवत हवंव, मोला तोर ले कोनो शिकायत नइ हे, मोर दिल तोर डाहर ले साफ हे।

डॉक्टर - फेर फालतू बात करे बर शुरु कर देस। अरे साहब आप लइका नो हव, बुजुर्ग अव, थोकिन धीरज के काम लेवव।

मुंशीजी - अच्छा डॉक्टर साहब अब नइ बोलंव, गलती होगे। आप जउन चाहव करव, मंय ह सब कुछ आप उपर छोड दे हंव। कोई अइसे उपाय नइ हे, जेकर ले मंय येला समझा सकंव कि मोर दिल साफ हे? आपे कहि दव। डॉक्टर साहब, कहि दव, तोर अभागा पिता ह रोवत बइठे रोवत हे। ओकर दिल तोर डाहर ले बिलकुल साफ हे। ओला कुछु शक होये रिहिसे। अब ओह दूर होगे। बस अतने कहि दे। मंय अउ कुछु नइ चाहंव। मंय चुपचाप बइठे हंव जुबान तक नइ खोलंव, फेर आप अतना जरुर कहि देवव।

डॉक्टर - ईश्वर के खातिर बाबू साहब, जरा सब्र करो नही ते मोला मजबूर होके केहे बर परही कि घर जावव कहिके। मंय थोकिन दफ्तर म जा के डॉक्टर मन ल चिट्ठी लिखत हंव। आप चुपचाप बइठे रहूं।

निर्दयी डॉक्टर! जवान बेटा के ये दशा देखके कोन पिता ह, जउन ह धैर्य ले काम लिही? मुंशीजी ह बहुत गंभीर स्वभाव के मनुष्य रिहिसे। यहू जानत रिहिसे कि ए समे हाय-हाय मचाये ले कोनो मतलब नइ हे, तभो ले ए समे शांत बइठई ह ओकर बर असम्भव रिहिसे। कहूं मौसमी बीमारी होतिस, त ओह शांत हो सकत रिहिसे, दुसर मन ल समझा सकत रिहिसे, खुद डॉक्टर मन ल बलवा सकत रिहिसे, फेर का ये जान के घलो धीरज धर सकत रिहिसे कि ये सब आगी ह मोर लगाय आय? कोनो पिता अतेक कठोर हिरदे के हो सकथे? ओकर रोम-रोम ए समे ओला धिक्कारत रिहिसे। ओह सोचिस मोर मन म दुर्भावना काबर पैदा होइस? मंय ह काबर बिना कुछु प्रमाण के अइसन भीषण कल्पना कर डारेंव? अच्छा मोला ओ दशा म का करना रिहिसे। जउन कुछ ओह करिस ओकर सिवा अउ का करतिस, ओकर ओह निर्णय नइ ले सकिस। वाजिब म बिहाव के बंधन म पड़ना ही अपन गोड़ म टंगिया मरई बरोबर रिहिसे। हव, इही सब उपद्रव के जड़ आय।

मगर मंय ह ए कोनो अनोखी बात नइ करे हंव। सबो स्त्री-पुरुष बिहाव करथे। उंकर जिनगी आनंद ले कटथे। आनंद पाये के इच्छा ले ही हमन बिहाव करथन। मुहल्ला म सैकड़ो आदमी दुसरइया, तिसरइया, चौथइया इहां तक ले सात-सात बिहाव करे हे। वहू मोर ले जादा उमर म। उमन जब तक जिईस आराम से जिईस। यहू नइ होइस कि सबो झिन अपन गोसइन ले मर गिस होही। दुजहा तिजहा होय के बाद घलो कतनो मन फेर रंडुआ (विधुर) होगे। अगर मोर कस सबो के दशा रहितिस ते बिहाव के नाम कोन लेतिस? मोर पिताजी ह पचपन बच्छर के उमर म बिहाव करे रिहिसे अउ मोर जनम के बखत ओकर उमर साठ ले कम नइ रिहिसे। हां अतना बात जरुर हे कि तब अउ अब म कुछ अन्तर होगे हे। पहिली स्त्री मन पढ़े लिखे नइ राहत रिहिन हे। पति चाहे कइसनो राहय ओकर पूजा करत रिहिन। हो सकथे ये सब देख के उंकर मन ले लाज-शरम के काम लेवत रिहिन होही, अवश्य इही बात आय। जब जवान लड़का डोकरी संग खुश नइ रहि सकय त लड़की (युवती) कइसे कोनो डोकरा संग प्रसन्न रहि सकथे? फेर मंय तो अतेक डोकरा नइ रेहेंव। मोला देख के कोनो ह चालीस ले जादा उमर के नइ कहि सकतिस। कुछ भी हो जवानी ढले के बाद जवान औरत संग बिहाव कर के कुछ न कुछ निर्लज होय बर परथे, एमा शक नइ हे। स्त्री स्वभाव से लजकुरहीन होथे। गलत आदत वाले माईलोगन मन के बात अलग हे, फेर आमतौर ले स्त्री पुरुष ले जादा संयमी होथे। बराबर उमर (हमजोली) के पति पा के चाहे ओह दुसर पुरुष संग ठट्ठा-दिल्लगी कर ले, फेर ओकर मन ह शुद्ध रहिथे। बे जोड़ (उमर म जादा अन्तर) बिहाव होये ले ओ चाहे काकरो डाहर आंखी उठागे नइ देखही, तभो ले मन ह दुखी रहिथे। एहा ठोस दीवार आय येमा साबर के असर नइ होवय, अउ कच्ची दीवार ह तब तक खड़े रहिथे जब तक एकर उपर सबरी नइ चलाये जाये।

इही विचार म परे परे मुंशीजी ल एक कनिक झपकी आगे। मन के भाव तुरते सपना के रुप धारण कर लिस। ओ देखथे कि ओकर पहिली स्त्री ह मंसाराम के आघु म खड़ा हो के काहत हे-स्वामी ये तंय ह का करे? जउन बालक ल मंय ह लहू पिया-पिया के पालेंव, ओला तंय ह अतेक निर्दयता ले मार डारेस। अइसन आदर्श चरित्र वाले लड़का उपर तंय ह अतेक घोर कलंक लगा देस? अब बइठे-बइठे काबर पछतावत हस। तंय तो ओकर ले हाथ धो डरेस। ओह तोर हाथ ले गंवागे। मंय ह तोर निर्दय हाथ ले छीन के अपन करा ले आयेंव। तंय तो अतेक शक्की कभू नइ रेहेस। का बिहाव करते भार शक ल घलो गला म बांध के लान लेस। ए कोंवर (कोमल) हिरदे म अतेक कठोर आघात। अतेक बड़े कलंक। अतेक बडे़ कलंक सहिके जीने वाला कोनो बदमाश हो सकथे। मोर बेटा नइ सहि सकय। अइसे काहत-काहत ओह बालक ल गोदी म उठा के चल दिस। मुंशीजी ह रोवत ओकर गोद ले मंसाराम ल तीरे(छीने) बर हाथ बढ़इस ताहन आंखी खुल गे अउ डॉक्टर लाहिरी, डॉक्टर भाटिया कस आधा दर्जन डॉक्टर आघू म खड़े दिखई दिस। 

बारह


तीन दिन गुजर गे फेर मुंशीजी ह घर नइ अइस। रुक्मिणी दुनो बखत अस्पताल जावय अउ मंसाराम ल देख के आवय। दुनो लड़का मन घलो जावत रिहिन हे, फेर निर्मला कइसे जातिस? ओकर गोड़ म तो बेड़ी बंधाय रिहिसे। ओह मंसाराम के बीमारी के हालचाल ल जाने बर व्याकुल रिहिसे, कहूं रुक्मिणी ल कुछ पूछतिस त ओला ताना सुने बर मिलय अउ लड़का मन ल पूछतिस त बिना सिर-पैर के बात करे बर धर लेतिस एक घांव खुद जाके देखे बर ओकर मन ह व्याकुल होगे रिहिसे। ओला ये डर होवय कि कही शक ह मुंशीजी के पुत्र प्रेम ल ठंडा नइ कर दे होही, कही ओकर कंजूसी ह तो मंसाराम के ठीक होवई बर बाधक तो नइ बनत होही? डॉक्टर काकरो सगा नइ होवय, उमन ल तो अपन पइसा से मतलब रहिथे, मुर्दा नरक म जाये या स्वर्ग म। ओकर मन म प्रबल इच्छा होवय कि अगर अस्पताल के डॉक्टर ल एक हजार के थैली दे के कहे-एला बचा लव, ए थैली आपके भेंट आय, फेर ओकर करा न तो अतना रुपया ही रिहिसे। न अतना साहस ही रिहिसे। अभी घलो उहां पहुंच जतिस, ते मंसाराम ह अच्छा हो जतिस। ओकर जइसे सेवा जतन होना चाही ओइसन नइ होवत हे। नही ते का तीन दिन तक ले बुखार नइ उतरतिस? येह तन के बुखार नो हे बल्कि मानसिक बुखार आय। मन के शांत होय ले ही एकर प्रकोप उतर सकथे। अगर ओह उहां रात भर बइठे रहितिस अउ मुंशीजी थोरको अपन मन ल मैला नइ करतिस ते शायद मंसाराम ल विश्वास हो जतिस कि पिताजी के दिल साफ हे अउ फेर बने होय म समे इ लगतिस, फेर अइसन होही? का मुंशीजी ओला उहां देख के खुश रही सकही? का अब भी ओकर दिल ह साफ नइ होये हे? इहां ले जाये के बेरा तो अइसे लागत रिहिसे कि ओह अपन करनी उपर पछतावत हे। अइसे तो नइ होही कि उहां जाते भार मुंशीजी के शक ह फेर बाढ़ गिस होही अउ ओह बेटा के जान ले के ही छोड़ही?

इही दुविधा म पड़े-पड़े तीन दिन गुजर गे अउ न घर म चूल्हा जलिस न कोनो ह कुछु खइन। लड़का मन बर बाजार ले पूरी (सोंहारी) बिसा के लान लेवत रिहिसे, रुक्मिणी अउ निर्मला लांघत (भूखी) सुत जावत रिहिन हे। उंकर खाये के मन बिल्कुल नइ होवत रिहिसे।

चौथा दिन जियाराम ह स्कूल ले लहूटिस, त ओह अस्पताल होवत घर आये रिहिसे। निर्मला ह पूछिस कइसे बेटा, अस्पताल घलो गे रेहेस? आज कइसे हे? तोर भइया ह उठिस ते नही? 

जियाराम ह रोवत रोवत किहिस - माताजी, आज तो ओह कुछु बोलत चालत ही नइ हे। चुपचाप खटिया म परे परे हाथ-पांव पटकत रिहिसे। 

निर्मला के चेहरा के रंग उड़ गे। घबरा के पूछिस-तोर बाबूजी उहां नइ रिहिस का? 

जियाराम - काबर नइ रिही? आज ओह बहुत रोवत रिहिसे।

निर्मला के कलेजा ह धक-धक करे बर धर लिस। ओह पूछिस-डॉक्टर मन उहां नइ रिहिसे?

जियाराम - डॉक्टर मन घलो खड़े रिहिन हे, अउ आपस म सलाह करत रिहिन हे। सबसे बड़े सिविल सर्जन ह अंग्रेजी म काहत रिहिसे कि मरीज के देह म कुछ ताजा खून डालना चाही। सुन के बाबूजी ह किहिस-मोर तन ले जतना खून चाहे ले लव। सिविल सर्जन ह हांसके किहिस-आपके ब्लड ले काम नइ चलय, कोनो जावन आदमी के ब्लड चाही। आखिरी म डॉक्टर ह कुछु दवा ल सुजी के माध्यम ले भइया के बांह म डार दिस। चार आंगुर ले कम के सुई (सूजी) नइ रिहिस होही, पर भैया ह उंह घलो नइ किहिस। मंय तो डर के मारे आंखी ल मूंद लेंव। बड़े-बड़े महान संकल्प जोश म ही जनम लेथे। कइसे तो निर्मला डर के मारे सुखावत रिहिसे, आज ओकर मुंह ले कठोर संकल्प (किरिया) के चमक झलके बर धर लिस। ओह अपन तन ले ताजा खून दे बर तय करिस अगर ओकर खून ले मंसाराम के प्राण बच जही त ओह खुश हो के अपन आखिरी बूंद तक दे डारही। अब जेकर जउन जी चाहे समझे, ओह काकरो परवाह नइ करय। ओह जियाराम ल किहिस तंय ह जल्दी एक ठन घोड़ा गाड़ी (तांगा) बला के लान, मंय ह अस्पताल जाहूं।

जियाराम - उहां तो अभी बहुत अकन आदमी होही। जरा रात होवन दे।

निर्मला - नही, अभी तंय ह तुरते घोड़ा गाड़ी बला के लान।

जियाराम - कहूं बाबू जी खिसियावय झन?

निर्मला - बिगड़न दे। तंय अभी जा के सवारी लान।

जियाराम - मंय कहि दुहूं, माताजी ह मोर करा ले सवारी मंगवाये रिहिसे।

निर्मला - कहि देबे।

जियाराम ओती तांगा लाने बर गिस, अतका समे म निर्मला ह मूड़ी ल कंघी म कोरिस, खोपा बांधिस, कपड़ा बदलिस, गाहना पहिरिस, पान खइस ओकर बाद दुवारी म आ के तांगा के रद्दा देखत रिहिसे। रुक्मिणी अपन कुरिया म बइठे रिहिसे। ओला ए तैयारी ले आवत देख के किहिस-कहां जाथस बहू?

निर्मला - थोकिन अस्पताल जावत हंव।

रुक्मिणी - उहां जा के काय करबे?

निर्मला - कुछ नही, का करहूं? करइया तो भगवान आय। देखे बर जी चाहत हे। 

रुक्मिणी - मंय कहिथंव, मत जा।

निर्मला ह विनती भाव ले किहिस-अभी चल दुहूं, दीदी जी। जियाराम ह काहत रिहिसे कि अभी ओकर हालत बने नइ हे। जी नइ मानय, आपो चलो न?

रुक्मिणी - मंय ह देख के आगे हंव। अतना समझ ले कि खून चढ़ाये लेही ओकर जिनगी के आसा हे। कोन ह अपन ताजा खून दिही अउ काबर दिही, वहू म तो प्राण जाये के डर हे।

निर्मला - इही पाये के तो मंय जावत हंव। मोर खून ले का काम नइ चलही?

रुक्मिणी - काबर नइ चलही, जवान के ही तो खून चाही, फेर तोर खून ले मंसाराम के जान बचे ओकर ले तो अच्छा हे ओला पानी म बोहा दिया जाये।

तांगा आ गे। निर्मला अउ जियाराम दुनो झिन जा के बइठ गे। तांगा चल दिस।

रुक्मिणी दुवार म खड़ा हो के बहुत देर तक ले रोवत रिहिसे। आज पहिली घांव निर्मला उपर दया आये रिहिसे। ओकर बस चलतिस ते ओह निर्मला ल बांध के रखतिस। करुणा अउ सहानुभूति के भाव ह ओला कहां ले के जावत हे, येला ओह अप्रगट रुप ले देखत रिहिसे। आह! येह दुर्भाग्य के प्रेरणा आय। येह सर्वनाश के रद्दा आय।

निर्मला अस्पताल पहंुचिस, त दीया जल चुके रिहिसे। डॉक्टर मन अपन सलाह दे के बिदा हो चुके रिहिसे मंसाराम के बुखार ह कुछ कम हो गे रिहिसे। ओह एक टक दुवार डाहर ल देखत रिहिसे। ओकर नजर ह खुला आसमान डाहर लगे रिहिसे, मोनो कोनो देवता के अगोरा करत हवय। ओह कहां हे, जउन दशा म हे ओकर ओला गियान नइ रिहिसे।

एकाएक निर्मला ल देखके ओह चौंक के उठ के बइठगे। ओकर समाधि भंग होगे। ओकर चेतना ह जाग गे। ओला अपन स्थिति के, अपन दशा के ज्ञान होगे, मोनो कोनो भुलाये बात के सुरता आ गे होही। ओह घूर के निर्मला डाहर ल देखिस अउ मुंहु ल मुरकेट लिस।

अचानक मुंशीजी ह ऊंचा आवाज म बोलिस-तंय इहां काबर आये हस?

निर्मला दंग रहिगे। ओह बताये कि काबर आये हे? अतना सीधा से सवाल के घलो का ओह जवाब दे सकिस? ओह का करे बर आय रिहिसे? अतना जटिल सवाल काकर आघू म आये होही? परिवार के सदस्य बीमार हे, ओला देखे बर आये हे, बात ल का बिना पूछे नइ जान सकत रिहिसे? फेर सवाल काबर? 

ओह हताश हो के खड़े रिहिसे, मानो बिना प्राण के मूर्ति कस होगे। ओह दुनो लड़का मन ले मुंशीजी के शोक अउ संताप के बात सुनके ये अनुमान लगाये रिहिसे कि अब ओकर दिल ह साफ होगे होही। अब पता चलिस कि ओह भ्रम रिहिसे। हां, ओह महसूस करत रिहिसे। मगर ओह जानत रहितिस कि आंसु के धार ह घलो संदेह के आगी ल शांत नइ करे हे, ते कभू आबे नइ करतिस। ओह घुट-घुट के मर जतिस फेर घर ले गोड़ नइ निकालतिस। मुंशीजी ह फेर उही प्रश्न करिस-तेंह इहां काबर आये हस?

निर्मला ह हिम्मत करके जवाब दिस-आप इहां काय करे बर आये हव?

मुंशीजी के नाक ह फड़के बर धर लिस। ओह झल्ला के खटिया ले उठिस अउ निर्मला के हाथ पकड़ के किहिस-तोर इहां आये के कोई जरुरत नइ हे। जब मंय बलाहूं तब आबे। समझ गेस?

अरे! ए का अनर्थ होइस। मंसाराम जउन खटिया ले हिल घलो नइ सकत रिहिस, उठके खड़ा होगे अउ निर्मला के पांव म गिर के रोवत किहिस माताजी, ए अभागा बर आप ल फोकट के अतेक कष्ट होईसे। मंय आपके स्नेह ल कभू नइ भुलावंव। ईश्वर ले मोर विनती हे कि मोर पुनर्जन्म आपके आपके कोख ले होवय जेकर ले मंय आपके रिन ले उरिन हो सकंव। ईश्वर जानथे कि मंय ह आप ल विमाता नइ समझेंव। मंय ह आप ल अपन माता समझत रेहेंव। आपके उमर मोर ले बहुत जादा भले नइ हे, फेर आप मोर महतारी के स्थान म हव। मंय आप ल हमेशा इही नजर ले देखंव.... अब अउ जादा नइ बोल सकंव माताजी, माफी देबे। येह आखरी भंेट आय। 

निर्मला ह आंसू के धार ल रोकत किहिस-तंय अइसन बात काबर करथस। दु-चार दिन म बने हो जबे।

मंसाराम ह उदास स्वर म किहिस-अब जीये के इच्छा नइ हे अउ न बोले के शक्ति हे।

अइसे काहत-काहत मंसाराम ह अशक्त हो के उही मेर भुइयां म लेट गे। निर्मला ह अपन पति डाहर गुरेर के देखत किहिस-डॉक्टर ह का सलाह दे हे?

मुंशीजी - सब के सब भांग खा के आये रिहिसे, काहत रिहिन हे ताजा खून चाही।

निर्मला - ताजा खून मिल जही, त ओकर जान बच जही?

मुंशीजी ह गुस्सा हो के निर्मला ल किहिस - मंय ईश्वर नो हंव अउ न डॉक्टर मन ल ईश्वर मानथंव।

निर्मला - ताजा खून क कोनो करा नइ मिलही, ये ह दुर्लभ चीज तो नो हे।

मुंशीजी - आकाश के चंदैनी घलो तो चीज नो हे। फेर कोनो लान सकथे का? मुंह के आघु म खाई का चीज आय?

निर्मला - मंय अपन खून दे बर तैयार हंव। डॉक्टर ल बलावव।

मुंशीजी हा आश्चर्य हो के किहिस-तंय! 

निर्मला - हां, का मोर खून ले काम नइ चलही? 

मुंशीजी - तंय अपन खून देबे? नही, तोर खून के जरुरत नइ हे। एमा प्राण जाये के डर हे।

निर्मला - मोर प्राण अउ कोन दिन काम आही।

मुंशीजी के आंखी डबडबा गे, आंसू पोछत किहिस-नही निर्मला, अब तोर कीमत ह मोर  नजर म बहुत बाढ़ गे हे। अब तक ले मोर नजर म तंय ह भोग के जिनिस रेहेस, फेर  अब ले मोर भक्ति के जिनिस बन गेस। मंय ह तोर संग बिक्कट अन्याय करे हंव, माफी देबे।

तेरह


जउन कुछ होना रिहिसे ओह होगे, काकरो कुछु नइ चलिस। डॉक्टर साहब ह निर्मला के देह ले खून निकाले के चेष्टा करत रिहिसे कि मंसाराम ह अपन उज्जवल चरित्र के आखिरी झलक देखा के ए भ्रम-लोक ले बिदा होगे। अइसे लागथे अतका बेर तक ओकर प्राण ह निर्मला के ही रद्दा देखत रिहिसे। ओला निष्कलंक सिद्ध करे बिना देह ल कइसे त्याग देतिस? अब ओकर उद्देश्य ह पूरा होगे। मुंशीजी ल निर्मला ल निर्दोष होये के विश्वास होगे, फेर कब? जब हाथ ले तीर ह निकल चुके रिहिसे जब मुसाफिर पायदान म पांव रख डरे रिहिसे।

पुत्र शोक म मुंशीजी के जीवन ह भार-स्वरुप होगे। ओ दिन ले ओकर ओट म हांसी नइ अइस। ये जीवन ह अब ओला बेकार लागत रिहिसे। कछेरी(कचहरी) जातिस, फेर मुकदमा के करे बर नही, बल्कि दिल बहला के घण्टा दू घण्टा म असकटा के वापिस चले आतिस। खाये बर बइठतिस ते कौरा ह मुंहु म नइ जावय। निर्मला ह बढ़िया ले बढ़िया चीज पकावय फेर मुंशीजी ह दु-चार कौरा ले जादा नइ खा सकय। अइसे लागय कि कौरा ह मुंहु ले बाहिर निकल आथे। मंसाराम के कमरा डाहर आवत देख के ओकर हिरदे ह टुकड़ा-टुकड़ा हो जावत रिहिसे। जिहां उकर आशा के दीपक जलय उहां अब अंधियारी छाये रिहिसे। ओकर दु झिन बेटा अब घलो रिहिसे, फेर दूध देवइया गाय मर गे, त बछिया के का भरोसा? जब फूलइया-फलइया पेड़ ह गिर गे त छोटे-छोटे पौधा मन ले का आशा? ओइसे तो जवान डोकरा सबो मरथे, फेर दुख ए बात के रिहिसे कि ओह खुदे लड़का के प्राण ले रिहिसे। जउन समय बात सुरता आवय, त अइसे मालूम होवय कि ओकर छाती ह चिरा जही जानो मानो हिरदे ह बाहिर निकल जही।

निर्मला ल पति ले सही के सहानुभूति रिहिसे। जिहां तक हो सकय, ओह ओला खुश करे बर फिकर करत राहय अउ भूला के घलो बीते बात ल जबान म नइ लावत रिहिसे। मुंशीजी ओकर ले मंसाराम के कोनो गोठ करत लजावत रिहिसे। ओकर कभू-कभू अइसे इच्छा होवय कि एक घांव निर्मला ल अपन मन के सबो बात ल कहि देवंव, फेर लाज ह ओला रोक लेवत रिहिसे। अइसे किसम ले ओला ओ सांत्वना घलो नइ मिलय जउन अपन व्यथा केहे ले, दुसर ल अपन गम शामिल म करे ले से मिलय। मवाद (पीप) बाहिर नइ निकल के भीतरे भीतर अपन जहर (विष) ल फैलावत जावत रिहिसे। दिनो दिन तन ह घुरत रिहिसे।

एती कुछ दिन ले मुंशीजी अउ ओ डॉक्टर साहब जउन ह मंसाराम के इलाज करे रिहिसे, दुनो म दोस्ती होगे रिहिसे। बिचारा कभू-कभू आ के मुंशीजी ल समझावत रिहिसे। कभू-कभू अपन संग म घुमे (हवा खवाय) बर खींच के लेग जावय। ओकर गोसइन घलो दु-चार घांव निर्मला ले मिले बर आये रिहिसे। निर्मला घलो कतनो घांव उंकर घर गे रिहिसे, मगर उहां ले लहूटे, त कई दिन ले उदास राहय। ओ जुग जोडी (दम्पत्ति) के सुखमय जिनगी ल देख के अपन दशा उपर दुख होये बिना नइ राहत रिहिसे। डॉक्टर साहब ल कुल दु सौ रुपिया मिलय, फेर अतने म ही दुनो आनन्द ले जिनगी बितावत रिहिन हे, घर म केवल एक झिन बरतन मंजइया (महरी) भर रिहिसे, गृहस्थी के बहुत अकन बूता माईलोगन मन ल अपन हाथ म करे बर परथे। गाहना घलो ओकर देह म बहुत कम रिहिसे, फेर दुनो म अतना मया रिहिसे कि ओकर ओह थोरको परवाह नइ करय। पुरुष ल देख के स्त्री के चेहरा खिल उठत रिहिसे। स्त्री ल देख के पुरुष ह मोहा जवत रिहिसे, गाहना ले ओकर तन ह तोपये रिहिसे, घर म कुछु बूता ल अपन हाथ म नइ करे बर परय। निर्मला बिक्कट सम्पन्न होय के बाद घलो दुखी रिहिसे अउ सुधा ह कम धन दौलत के बावजूद सुखी रिहिसे। सुधा करा कुछु अइसे जिनिस रिहिसे जउन ह निर्मला करा नइ रिहिसे जेकर आघू म अपन वैभव तुच्छ (कम) जान पड़त रिहिसे। इहां तक ले कि ओह सुधा के घर गाहना पहिर के जाये बर लजावय।

एक दिन निर्मला ह डॉक्टर साहब के घर अइस, त ओला उदास देख के सुधा ह पूछिस बहिनी आज बहुत उदास हवस, वकील साहब के तबियत तो बढ़िया हे न?

निर्मला - काला बतावंव, सुधा? ओकर हालत ह दिनो दिन खराब होवत जावत हे, कुछु काहत नइ बनय। कोन जनी ईश्वर ल का मंजूर हे?

सुधा - हमर बाबूजी तो कहिथे कि ओला कहूं हवा पानी (जलवायु) बदले बर कोनो जघा जाना जरुरी हे, नही ते, कोनो भयंकर रोग हो जही। कतनो घांव वकील साहब ल घलो कहि चुके हे, फेर ओह इही कहि देवत रिहिसे कि मंय तो बहुत बढ़िया हंव, मोला कुछु के शिकायत नइ हे। आज तंय ह कहिबे।

निर्मला - जब डॉक्टर के नइ सुनिस, त मोर ल का सुनही?

अइसे काहत-काहत ओकर आंखी ह डबडबा गे अउ जउन शंका, एती महीनो ले हिरदे म व्याकुल करत रिहिसे, मुंहुं ले निकल गे। अब तक ले ओह ओ शंका ल छिपाये रिहिसे, फेर अब नइ छिपा सकिस। किहिस-बहिनी मोला तो ओकर लक्षण कुछ अच्छा नइ मालूम होवय। देखव भगवान का करथे।

सुधा आज ओला खूब जोर दे के कहिबे कि तोला जलवायु बदलना चाही। दु-चार महीना बाहिर रेहे ले बहुत अकन बात ह अइसने भुला जही। मंय तो समझथंव कि शायद मकान बदले ले घलो ओकर कुछ शोक ह कम हो जही। तंय कहूं बाहिर जा घलो नइ सकबे। येह कोन से महीना आय?

निर्मला - आठवां महीना बीतत हे। ये चिन्ता ह तो मोला अउ मार डारथे। मंय ह तो एकर बर ईश्वर ले कभू बिनती नइ करे रेहेंव। ये अलहन ल मोर मुड़ी म कोन जनी काबर मढ़ दिस। मंय बड़ा अभागीन अंव बहिनी, बिहाव के एक महीना पहिली पिताजी के देहान्त होगे। ओकर मरते भार मुड़ी म शनीच्चर सवार होगे। जिंहा पहिली बिहाव बर बातचीत पक्का होय रिहिस, उमन जुबान ले मुकर दिस। बिचारी माताजी ल हार के मोर बिहाव ल इहां करे बर परिस। अब छोटे बहिनी के बिहाव होवइया हे। देखथन, ओकर डोंगा कते घाट जाही। 

सुधा - जिहां पहिली बिहाव बर बातचीत होय रिहिसे उमन मना काबर कर दिस?

निर्मला - येला तो उही मन जाने। पिताजी नइ रिहिस त सोना के गठरी कोन देतिस?

सुधा - ए तो नीचता आय। कहां के रहवइया आय। 

निर्मला - लखनऊ के। नाम तो याद नइ हे, आबकारी म कोनो बड़े अफसर रिहिसे। 

सुधा - ह गम्भीर भाव ले पूछिस-अउ ओकर लड़का काय करत रिहिसे।

निर्मला - कुछु नइ, कहूंचो पढ़त रिहिसे, फेर बड़ा होनहार रिहिसे।

सुधा - ह मुड़ी नवा के किहिस-ओह अपन पिता जी ल कुछु नइ केहे रिहिसे? ओ तो जवान रिहिसे, अपन बाप ल दबा नइ सकत रिहिसे। 

निर्मला - अब येला मंय का जानहूं बहिनी? सोना के गठरी कोन ला बने नइ लागय? जउन पण्डित हमर घर ले खबर ले के गे रिहिसे, ओह तो काहत रिहिसे कि लड़का ही ह मना करत हे। लड़का के महतारी भले देवी रिहिसे। ओह बेटा अउ गोसइया दुनो झिन ल समझइस फेर ओेकर कुछु नइ चलिस। 

सुधा - मोला ओ लड़का मिल जतिस ते ओला खूब मजा चखातेंव।

निर्मला - मोर भाग्य म जउन लिखाये रिहिसे ओह हो चुके हे। बिचारी कृष्णा उपर कोन जनी का बीतही?

संझा के समय निर्मला के जाये के बाद जब डॉक्टर साहब बाहिर ले अइस, त सुधा ह किहिस-कइसे जी, तंय ओ आदमी ल का कहिबे, जउन ह एक जघा बिहाव पक्का करे के बाद लालच के मारे दुसर जघा सम्बन्ध कर लेथे।

डॉक्टर सिन्हा ह स्त्री डाहर जिज्ञासा से देख के किहिस-अइसे नइ करना चाही अउ का?

सुधा - अइसे काबर नइ काहस कि ये घोर नीचता आय, ए तो सब ले बड़े कमीनापन आय।

सिन्हा - हव, अइसे केहे म मोला कोने इंकार नइ हे।

सुधा - काकर अपराध बड़े हे, वर या वर के पिता के।

सिन्हा के समझ म अब तक नइ आय रिहिसे कि सुधा के ए प्रश्न मन के का मतलब रिहिसे? सोच के किहिस-जइसे स्थिति हो, अगर ओह पिता के अधीन हे, त पिता के ही अपराध समझ। 

सुधा - अधीन होय के बाद घलो का जवान आदमी के अपन कोनो कर्तव्य नइ हे? अगर अपन बर कोट के जरुरत होही, त ओह पिता के विरोध करे के बाद घलो ओला रो-धो के बनवा लेथे त का अइसन महत्व के विषय म अपन आवाज पिता के कान तक नइ पहुंचा सकय? अइसे कहव कि वर अउ ओकर पिता दुनो अपराधी हे, फेर वर जादा। डोकरा आदमी सोचथे-मोला तो सबो खरचा ल सम्हाले बर परही, कन्या पक्ष ले जतना ज्यादा अइंठ सकंव, ओतने अच्छा। मगर वर के धर्म आय कि यदि स्वार्थ के हाथ म बिलकुल नइ बेचाये होही त अपन आत्मबल के परिचय देवय। अगर ओह अइसे नइ करे, त मंय कहूं कि ओह लोभी आय कायर घलो आय। दुर्भाग्य ले अइसने एक झिन प्राणी मोर पति आय अउ समझ म नइ आवय कि कोन ढंग ले ओकर तिरस्कार करंव! सिन्हा जी ह हिचकिचावत किहिस-ओह दुसर बात आय, लेन-देन के बात नइ रिहिस, बिल्कुल कोनो दुसर बात रिहिसे। कन्या के पिता के देहान्त होगे रिहिसे। अइसन दशा म हम्मन काय करतेन? यहू घलो सुने म आये रिहिसे कि कन्या म कुछु एब हवय। ओह बिल्कुल अलग बात रिहिसे, मगर तोर ले ये कथा ल कोन ह केहे हे।



सुधा - कहि दे कि ओ कन्या कानी रिहिसे या कुबरी रिहिसे या नवइन के पेट के रिहिसे या बदमास रिहिसे। अतने कसर ल काबर छोड़ देस? भला, सुनव तो, ओ कन्या म का एब रिहिसे?

सिन्हा - मंय ह देखे तो नइ रेहेंव, सुने बर मिले रिहिसे कि ओमा कोनो एब रिहिसे।

सुधा - सबसे बड़े एब इही रिहिसे कि ओह कोनो जादा रकम नइ दे सकत रिहिसे। एला काबर स्वीकार नइ करस? मंय तोर कान ल काट तो नइ दुहूं। अबर दु-चार ठन बात कहूं तेला एक कान ले सुन के दुसर कान ले निकाल देबे। जादा किटिर-काहर करहूं त छड़ी ले काम ले सकत हस। औरत जात एक डण्डा ले ही ठीक हो जथे। अगर ओ कन्या म कुछ एब रिहिसे, त मंय कहूं, लक्ष्मी घलो बिना एब के नइ रिहिसे। तोर तकदीर खोटी रिहिसे बस, अउ का? तोला तो मोर पाले पड़ना रिहिसे। 

सिन्हा - तोला कोन बताये हे कि ओह अइसन-वइसन रिहिसे? जइसे तंय ह काकरो ले सुन के मान लेस ओइसने हमु मन सुनके मान लेन।

सुधा - मंय ह सुनके नइ माने हंव। अपन आंखी ले देखे हंव। कतना जादा बखान करंव, मंय ह अइसन सुन्दर माईलोगन कभू नइ देखे रेहेंव।

सिन्हा ह व्याकुल हो के पूछिस-का ओह इहे कहूं करा हे? सच बता, ओला कहां देख हस! क तोर घर आय रिहिसे?

सुधा - हव मोर घर आय रिहिसे, एक घांव नइ कई घांव आ चुके हे। महूं ह ओकर घर कई बार जा चुके हंव, वकील के बीबी उही कन्या आय, जेला आप एब के सेती त्याग दे हस।

सिन्हा - सच। 

सुधा - बिल्कुल सच। आज अगर ओला पता चल जही कि आप उही महापुरुष अव त शायद फिर से ए घर म ओह कदम नइ रखही। अइसे सुशील, घर के बूता म निपूर्ण अउ अइसे परम सुन्दरी स्त्री ए शहर म दुए-चार झिन होही। तंय मोर बखान करथस, मंय तो ओकर पत्नी बने के योग्य नइ हंव। घर म ईश्वर के कृपा ले सब कुछ हे, फेर जब जुग जोड़ी के मेल नइ हे त सब चीज रहि के का करही? धन्य हे, ओकर धैर्य ल कि ओह डोकरा खूसट वकील के संग जिनगी के दिन काटत हे। मंय तो कब के जहर खा ले रहितेंव। मगर मन के दुख ह केहे भर ले थोरे प्रगट होथे, हांसथे, कपड़ा-गाहना पहिरथे, फेर रहि रहि के रोवत रहिथे। 

सिन्हा - वकील साहब के खूब शिकायत करत होही?

सुधा - शिकायत काबर करही? का ओह ओकर पति नो हे? संसार म अब ओकर बर जउन कुछ हे वकील साहब। ओह डोकरा हो या बिमरहा, पर आप तो ओकर स्वामी अव। कुलवंती नारी पति के निंदा नइ करय, ये सब कुलटा मन के काम आय। ओह ओकर दशा देख के कुढ़थे, फेर मुंहु ले कुछु नइ काहय। 

सिन्हा - ए वकील साहब ल काय सुझे हे, जउन ए उमर म बिहाव करे हे। 

सुधा - अइसन आदमी नइ होही त गरीब कुंवारी मन के डोंगा ल कोन पार लगाही? तंय अउ तोर संगवारी बिना भारी गठरी के बिना बात नइ करव, त ये बिचारी काकर घर जाये? तंय ह ये बड़ा भारी अन्याय करे हस अउ तोला येकर प्रायश्चित करे बर परही। ईश्वर एकर सुहाग अमर करे, मान ले वकील साहब ल कहूं कुछु होगे ताहन तो बिचारी के जिनगी नष्ट हो जही। आज तो ओह बहुत रोवत रिहिसे। तुमन वाजिब म बिक्कट निर्दयी हव। मंय तो अपन सोहन के बिहाव कोनो गरीब लड़की ले करहूं।

डॉक्टर साहब ह ये बात ल नइ सुन पइस। ओह घोर चिन्ता म परगे। ओकर मन म ये सवाल ह रहि रहि के उठ उठ के ओला व्याकुल करे बर धर लिस, कहीं वकील साहब ल कुछु होगे त? आज ओला अपन स्वार्थ के भयंकर रुप ह दिखत रिहिसे। वास्तव म येह ओकरे अपराध रिहिसे। अगर ओह पिताजी ल जोर देके केहे रहितिस कि मंय दुसर जघा बिहाव नइ करंव त का एकर इच्छा के खिलाफ ओकर बिहाव कर देतिस।

अचानक सुधा ह किहिस-कहिबे ते काली निर्मला ले तोर भेंट करवा दंव? वहू ह तोर सूरत ल देख लेवय। ओह कुछु बोलही तो नही, फेर मोला अइसे लागथे ए के नजर म ओह तोर अतना तिरस्कार कर दिही, जेला तंय कभू भूला नइ पाबे। बोल काली मिला दंव? तोर छोटकुन परिचय घलो दे देहूं। 

सिन्हा ह किहिस-नही सुधा, तोर हाथ जोड़त हंव, अइसन भूल के घलो झन करबे। नही ते सिरतोन काहत हंव, घर छोड़ के भाग जहूं।

सुधा - जउन कांटा बोये हस ओकर फर(फल) खाये बर काबर डर्रावत हस? जेकर टोटा (गला) म छूरी (कटार) रेते हस, थोकिन ओला तड़फत तो देख। मोर दादा (बबा) जी ह तोला पांच हजार रुपिया दे रिहिसे। अभी छोटे भाई के बिहाव म पांच छै हजार अउ मिल जही। ओकर बाद तो तोर बराबर धनी ए संसार म दुसर नइ रही। ग्यारह हजार रुपिया बहुत होथे। बाप रे बाप। ग्यारह हजार। उठा-उठा के रखबे, तभो महीनो लग जही। अगर लड़का मन उड़ाये बर धरही तभो ले कतनो पीढ़ी तक चलही। कोनो करा बात होवत हे कि नही?

ये हंसी-मजाक म डॉक्टर साहब अतना लजा गे कि मुड़ी तक नइ उठा सकिस। ओकर सबो गोठ के चतुराई ह गायब होगे। नानकुन मुंह होगे, मानो ओला मार पर गे हे। ठउंका इही समे कोनो ह डॉक्टर साहब ल बाहिर ले आवाज दिस। बिचारा प्राण बचा के भागिस। नारी ह हंसी मजाक म कतना कुशल होथे ओह आज पता चलिस। रात कना डॉक्टर साहब ह सुते के बेरा किहिस-निर्मला के तो कोई बहिनी हे न?

सुधा हव, आज ओकर गोठ करत रिहिसे। ओकर फिकर अभी ले होवत रिहिसे। अपन उपर जउन बीतना रिहिसे ओह तो बीत चुके रिहिसे। बहिनी के फिकर करत रिहिसे। महतारी करा तो अऊ कुछु बांचे नइ रिहिसे, मजबूरन कोनो अइसने डोकरा बबा के संग रिश्ता तय कर दे जाही। 

सिन्हा - निर्मला तो अपन महतारी के मदद कर सकथे।

सुधा ह तेज स्वर म किहिस-तहूं ह घलो कभू कभू बिना हाथ गोड़ के बात करे बर धर लेथस। निर्मला ह जादच्च करही त दु-चार सौ रुपिया दे दिही, अउ का कर सकथे। वकील के ए हाल होवत हे, ओला अभी पहाड़ असन उमर काटना हे। फेर कोन जाने ओकर घर के का हाल हे? एती छैः महीना ले बिचारा ह घर बइठे हे। रुपिया आकाश ले ही थोडे बरसथे। दस-बीस हजार होही घलो त वहू ह बैंक म होही, निर्मला करा कुछु रखाये नइ होही। हमर दु सौ रुपिया महीना भर के खरचा आय, त का इंकर चार सौ रुपिया महीना घलो नइ होही।

चउदह


दुनो बात ह एके संघरा होइस-निर्मला ह नोनी (कन्या) ल जनम दिस, कृष्णा के बिहाव तय होगे। एती मुंशी तोताराम के मकान नीलाम होगे। नोनी के जनम तो साधारण बात रिहिसे, अइसे भी निर्मला के नजर म येह ओकर जिनगी के सबले महान धरना रिहिसे, फेर बाकी दुनो घटना ह असाधारण रिहिसे।

कृष्णा के बिहाव ह अइसन सम्पन्न घराना म काबर तय होइस? ओकर करा तो दहेज देबर तो कौड़ी घलो नइ रिहिसे एती डोकरा सिन्हा साहब जउन अब पेंशन धर के घर आ गे रिहिसे। बिरादरी म महालोभी के नाम ले मशहूर रिहिसे। ओह अपन बेटा के बिहाव ल अइसन दरिद्र घराना म करे बर कइसे राजी होइस। कोनो ल एकाएक विश्वास नइ होवत रिहिसे। एकर ले भी बड़े आश्चर्य के बात मुंशीजी के मकान नीलाम होना रिहिसे। लोग मुंशीजी ल अगर लखपति नही ते बड़े आदमी जरुर समझे। ओकर मकान कइसे नीलाम होइस? बात ये आय कि मुंशीजी ह एक झिन महाजन ले कुछ रुपया करजा ले के एक गांव ल रेहन (रहन) म रखे रिहिसे। ओला आशा रिहिसे कि साल आधा साल म भारी रुपया कमा लिही, ताहन दस-पांच बच्छर म ओ गांव उपर कब्जा कर लिही। ओ जमींदार मूलधन अउ ब्याज के रुपया ल चुका नइ पाही। इही भरोसा म मुंशीजी ह ये मामला करे रिहिसे। गांव बहुत बड़े रिहिसे, चार-पांच सौ रुपिया फायदा होवत रिहिसे, फेर मन के सोचे मन म ही रहिगे मुंशीजी ह अपन दिल ल बहुत समझाये के बाद घलो कछेरी नइ जा सके। पुत्र शोक ह ओकर तन म काम करे के शक्ति ल ही नइ छोड़े रिहिसे। कोन अइसे हिरदे शून्य पिता आय, जउन बेटा के गर्दन म तलवार चलाके मन ल शांत कर ले? 

महाजन करा जब साल भर तक सूद नइ पहुंचिस अउ न ओकर घेरी बेरी बुलावा के बाद मुंशीजी ओकर करा नइ गिस। इहां तक कि पिछला घांव तो ओह साफ-साफ कहि दिस कि हम काकरो गुलाम नइ हन, साहू जी जउन चाहे कर ताहन साहू जी ल गुस्सा आगे। ओहा नालिस कर दिस। मुंशीजी ह पैरवी करे बर घलो नइ गिस एकाएक डिग्री(कुर्की) हो गे। इहां घर म रुपया कहां रिहिसे। अतने ही दिन म मुंशीजी के साख घलो उठ गे रिहिसे। लोगन ओकर उपर भरोसा करना बंद कर दे रिहिसे। ओह रुपिया के कोनो प्रबंध नइ कर सकिस। आखिर मकान के नीलाम होगे। निर्मला जेचकी के सेती अपन कुरिया म रिहिसे। दाई ह जच्चा अउ बच्चा के सेवा जतन करत रिहिसे। ए खबर ल सुनिस ते ओकर कलेजा ह सन्न होगे। जिनगी म कोनो सुख नइ होय के बावजूद धन के अभाव के चिन्ता ले ओह मुक्त रिहिसे। धन मनखे बर सब कुछ भले नो हे फेर बहुत कुछ आय। अब दुसर अभाव के संगे संग यहू चिन्ता ह ओकर मुड़ी म सवार होगे। ओह दाई करा संदेश भेजवा दिस कि सब गाहना गुरिया ल बेच के घर ल बचा लेवय फेर मुंशीजी ह ये प्रस्ताव ल थोरको नइ मानिस। 

ओ दिन के बाद मुंशीजी ह अऊ जादा चिन्ताग्रस्त रेहे बर धर लिस। जउन धन के सुख भोगे बर बिहाव करे रिहिसे अब ओह बीते समय के सुरता मात्र रिहिसे। ओह ग्लानि के मारे अब निर्मला ल अपन मुंह तक नइ देखा सकत रिहिसे। ओला अब ओ अन्याय के अनुमान होवत रिहिसे, जउन ओह निर्मला संग करे रिहिसे अउ कन्या (नोनी) के जनम ह तो रहे-सहे कसर ल पूरा कर दे रिहिसे, सर्वनाश कर डरिस।

बारहवंे दिन बरही निपटे के बाद निर्मला ह नवजात शिशु ल गोदी म घर के गोसइया करा गिस। ओह ए अभाव म घलो अतना खुश रिहिसे, मानो ओला कोनो चिन्ता नइ हे। नोनी ल हिरदे म लपटा के ओह अपन सरबस चिन्ता ल भुला गे रिहिसे। लइका के मुचमुच करत चेहरा अउ सुग्घर आँखी ल देख के ओकर हिरदे ह खुश होवत रिहिसे। मातृत्व के अइसन उद्गार ले ओकर सबो दुख पीरा ह मिटा गे रिहिसे। ओह नोनी ल पति के गोद म देके सन्तुष्ट हो जाना चाहत रिहिसे फेर मुंशीजी ह कन्या ल देख के सहम गे। गोदी म पाये बर ओकर मन म उमंग नइ रिहिसे, फेर एक घांव ओला करुण नजर ले देखिस ताहन मुड़ी ल झुका लिस, शिशु के चेहरा बिल्कुल मंसाराम ले मिलत रिहिसे।

निर्मला ह ओकर मन के भाव ल कुछ अउ ही समझिस। ओह बिक्कट स्नेह ले लड़की ल हिरदे ले लगा लिस मानो ओकर ले काहत हे-अगर तंय एकर बोझ ले दबे जात हवस त आज ले ही मंय एकर उपर मंय तोर छइंया नइ परन दंव। जउन रतन ल मंय ह अतेक तपस्या के बाद पाये हंव। ओकर अपमान करत तोर हिरदे ह फट नइ जतिस? ओह उही बखत शिशु ल गोद म चिपका के अपन कुरिया म जा के बहुत देर ले रोवत रिहिसे। ओह अपन पति के ए उदासीनता ल समझे बर थोरको इच्छा जाहिर नइ करिस, नही ते शायद ओह अतना कठोर नइ समझतीस। ओकर मुड़ी उपर उत्तरदायित्व के अतना बड़ा बोझ कहां रिहिसे, जउन ओकर पति उपर आ गे रिहिसे? ओह जाने के कोशिश करतिस, ते का अतना भी ओकर समझ म नइ आतिस?

मुंशीजी ल एक ही क्षण म अपन गलती मालूम होगे। माता के हिरदे प्रेम म अतना डुबे रिहिसे कि भविष्य के चिन्ता अउ बाधा मन थोरको भयभीत नइ करतिस। ओला अपन अंतस म एक अलौकिक शक्ति के अनुभव होवत हे, जउन ह बाधा मन ल ओकर आघू म हरा (पराजित) देवत रिहिसे। मुंशीजी दउड़त घर म अइस अउ लइका ल गोद म ले के किहिस-मोला सुरता आथे, मंसा घलो अइसने रिहिसे, बिलकुल अइसने।

निर्मला - दीदी जी घलो तो अइसने कहिथे। 

मुंशीजी - बिलकुल वोइसने बड़े-बड़े आँखी लाल-लाल ओंठ हवय। ईश्वर ह मोला मोर मंसाराम ल ए रुप म देहे। ओइसने माथ, ओइसने मुंह, ओइसने हाथ-पाव ईश्वर तोर लीला अपार हे।

एकाएक रुक्मिणी घलो आ गे। मुंशीजी ल देख के किहिस-देख बाबू, मंसाराम आय कि नही? उही आय हे। कोनो लाख कहे, मंय नइ मानव। मंसाराम ही आय। साल भर के लगभग हो घलो तो गे हे।

मुंशी जी - बहिनी, एक-एक अंग तो मिलथे। बस, भगवान ह मोला मोर मंसाराम दे दे हे। (शिशु से) कइसे रे, तंय तो मंसाराम ही अस, छोड़ के जाये के नाम झन लेबे, नही ते फेर तोला तीर के लान लुहूं। कइसे निष्ठुर हो के भागे रेहेस। आखिर पकड़ के लानेंव कि नही? बस, कहि दे हंव, अब मोला छोड़ के जाये के नाम झन लेबे, देख बहिनी कइसे टुकुर टुकुर देखत हे।

उही समे मुंशीजी ह फेर से अभिलाषा के भवन बनाना शुरु कर दिस। मोह ह ओला फेर संसार डाहर खींचिस। मानव जीवन तंय अतेक क्षणभंगुर हस, फेर तोर कल्पना के कतेक जादा उमर (दीर्घायु) हे। उही तोताराम जउन ह संसार ले दूर होवत रिहिसे, जउन ह दिन रात मृत्यु ल आव्हान करत करय, तिनका के सहारा पा के किनारा म पहुंचे बर पूरा ताकत ले हाथ पांव मारे बर धर लिस। मगर तिनका के सहारा पा के कोनो ह किनारा म पहुंचे हे?

पन्द्रह


निर्मला ल वोइसे भी अपन घर के झंझट ले छुट्टी नइ मिलत रिहिसे, फेर कृष्णा के बिहाव के खबर पा के ओह कइसनो करके रुक नइ सकिस। ओकर महतारी ह बहुत बिनती करके बलाये रिहिसे। सबले बड़े आकर्षण ये रिहिसे कि कृष्णा के बिहाव ह उही घर म होवत रिहिसे जिंहा निर्मला के बिहाव पहिली तय होय रिहिसे। अचरज इही रिहिसे कि ए दरी येमन बिना दहेज के कइसे बिहाव करे बर तइयार होगे। निर्मला ल कृष्णा के विषय म बड़ा फिकर होवत रिहिसे। समझत रिहिसे-मोर कस काकरो गला मढ़ दे जाही। ओह चाहत रिहिसे कि माता के कुछ सहायता करंव, जेकर ले कृष्णा बर कोनो योग्य वर मिलय, फेर एती वकील साहब के घर बइठ जाय ले अउ महाजन के नालिश कर दे लेे ओकरो हाथ घलो तंग रिहिसे। अइसन दशा म ये खबर पा के ओला बिक्कट प्रेम रिहिसे। छोड़बे नइ करत रिहिसे, इहां तक ले निर्मला के संग जाये बर तैयार होगे, फेर बिहाव के एक महीना पहिली ले ओकर ससुरार म जा के बइठई ह निर्मला ल उचित नइ मालूम होवत रिहिसे। निर्मला ह अब तक अपन माता ले अपन विपत्ति कथा नइ केहे रिहिसे। जउन बात होगे हे, ओकर रोना रो के माता ल तकलीफ दे के अउ रोवाये ले का फायदा? इही पाय के ओकर माता समझत रिहिसे, निर्मला बड़ा खुश हे। अब जउन निर्मला के चेहरा देखिस, त मानो ओकर हिरदे ल ठेस पहुंचिस। लड़की मन ससुरार ले कमजोर हो के नइ आवय, फेर निर्मला जइसे लड़की जेला सुख के सबो जिनिस मिले रिहिसे। ओह कतनो लड़की मन ल दूज के चंदा कस ससुरार जावत अउ पून्नी के चन्दा बनके आवत देखे रिहिसे। मन म कल्पना करत रिहिसे कि, निर्मला के रंग ह निखर गे होही, देह ह भर के सुडौल होगे होही, तन के सुन्दरता बाढ़ गे होही, चंचलता बाढ़ गे होही। अब जउन देखिस त ओह आधा घलो नइ रिहिस। न यौवन के ये चंचलता रिहिसे न ओ हसमुख चेहरा, जउन ह हिरदे ल मोह लेवत रिहिसे। ओ मनमोहनी यौवन, सुन्दरता जउन सरबस सुख सुविधा सम्पन्न जिनगी ले आ जाना रिहिसे, इहां नाम भर के नइ रिहिसे। चेहरा पींयर, उदास, रंग थके मांदे उन्नीस बच्छर म ही डोकरी दिखत हे। जब महतारी बेटी रो धोके शांत होइस, त माताजी ह पूछिस-कइसे रे, तोला उहां खाये बर नइ मिलय का? एकर ले बढ़िया तो तंय इहें रेहे। उहां तोला का तकलीफ रिहिसे?

कृष्णा ह हंस के किहिस-उहां मालकिन रेहे कि नही। मालकिन ल दुनिया भर के चिन्ता रहिथे, खाना कब खाये।

निर्मला - नही माताजी, उहां के पानी मोला रास नइ अइस, तबीयत थोकिन खराब रहिथे। 

माता - वकील साहब ह नेवता म आही न? तब पूछहूं कि आप मोर फूल कस लड़की ल ले जा के ओकर अइसन हालत बना डरेव। अच्छा, अब ये बता कि तंय ह इहां रुपया काबर भेजे रेहेस? मंय ह तो कभू नइ मांगे रेहेंव। कतनो गे गुजरे हंव फेर बैरी के धन खाये के नीयत नइ हे।

निर्मला ह अचरज हो के किहिस-कोन ह भेजे हे। मंय ह तो नइ भेजे हंव।

माता - लबारी झन मार। तंय ह पांच सौ रुपया के नोट नइ भेजे रेहेस?

कृष्णा - नइ भेजे रेहेस, त का आकाश ले उड़ा के आ गिस होही? तोर नाम लिखाय हे। मोहर घलो उहे के छपाये हे।

निर्मला - तोर चरन छू के काहत हंव, मंय ह रुपया नइ भेजे हंव। एह कब के बात आय?

माता - उही दु-अढ़ई महीना होय होही। अगर तंय ह नइ भेजे हस, त अइस कहां ले?

निर्मला - येला मंय का जानव? मगर मंय ह रुपया नइ भेजे हंव। हमर इहां तो जब ले जवान बेटा मरे हे, तब ले  कछेरी (कचहरी) घलो नइ जावय। मोर करा तो अइसने तंगी रिहिसे, रुपिया कहां ले आतिस?

माता - येह तो बड़ा अचरज के बात आय, उहां अउ कोई तोर सगा सम्बन्धी तो नइ हे? वकील साहब ह तोर ले लुका के तो नइ भेजे हे?

निर्मला - नही माताजी, मोला तो भरोसा नइ हे।

माता - इंकर पता लगाना चाही, मंय तो सबो रुपया ल कृष्णा के गहना अउ कपड़ा म खर्चा कर डरे हंव। इही बड़ा मुश्किल ले होइस हे।

दुनो लड़का म कोनो बात ल ले के लड़ई झगरा मात गे, उंकर फैसला करे बर कृष्णा ह चल दिस ताहन निर्मला ह माताजी ल किहिस-ए बिहाव ल सुन के मोला बड़ा अचरज होवत हे। येह कइसे होइस माताजी।

माता - इहां जउन ह सुनथे, दंग (आश्चर्य) रहि जथे। जउन मन जुड़े जुड़ाये रिश्ता तोड़ दे रिहिसे वहू थोकिन रुपया के लालच म उमन अब बिना कुछु ले बिहाव करे बर कइसे तैयार होगे हे, समझ म नइ आवय। मंय ह खुदे चिट्ठी लिखे रेहेंव। मंय ह साफ-साफ लिख दे रेहेंव कि मोर करा दे ले बर कुछु नइ हे, मोर सोला आना कन्या ह आपके सेवा भर कर सकथे। 

निर्मला - एकर कुछु जवाब नइ दिस?

माताजी - शास्त्री जी ह चिट्ठी पढ़ के गे रिहिसे। ओह तो इही काहत रिहिसे कि अब मुंशीजी ह कुछु लेबर तैयार नइ हे। अपन पहिली के वादा खिलाफी उपर थोकिन नखमरजी घलो हे। मुंशीजी ले तो अतना उदारता के आशा तो नइ रिहिसे, फेर सुनथव, ओकर बड़े बेटा ह बहुत सज्जन आदमी आय। ओह कहि के बाप ल बिहाव बर राजी करे हे।

निर्मला - पहिली तो वहू महाशय ह घलो थैली चाहत रिहिसे न?

माता - हां, मगर अब तो शास्त्री जी ह काहत रिहिसे कि दहेज के नाम ले चिढ़थे। काहत रिहिसे इहां बिहाव नइ करे ले पछतावत रिहिसे। रुपया खातिर रिश्ता ल तोडे़ रिहिसे, रुपया खूब पइस फेर स्त्री ह पसन्द नइ हे।

निर्मला के मन म ओ पुरुष ल देखे के प्रबल इच्छा रिहिसे, जउन ह ओकर अवहेलना (ओला छोड़ के) करके, अब ओकर बहिनी के उद्धार करना चाहत हे। प्रायश्चित सही, लेकिन कतनो अइसे प्राणी हे जउन अइसन ढंग ले प्रायश्चित करे बर तैयार हे? ओकर संग बात करे बर, ओकर तिरस्कार करे खातिर अपन अनुपम छवि देखा के ओला अउ जलाये बर निर्मला के हिरदे ह उतावला होवत रिहिसे। रतिहा दुनो बहिनी एके कुरिया म सुतिन। मुहल्ला म कोन-कोन लड़की के बिहाव होगे हे, कोन-कोन लइकोरी होये हे, काकर-काकर बिहाव धूमधाम ले होइस हवय। काकर-काकर गोसइया ह लड़की के इच्छा के मुताबिक मिले हे, कोन ह कतना अउ कइसन गहना चढ़ावा म लाने हे।

इही सब विषय म बिक्कट रात ले गोठियावत रिहिन हे। कृष्णा घेरी-बेरी चाहत रिहिसे कि दीदी के घर के कुछ हाल-चाल पूछंव फेर निर्मला ह ओला पूछे के मौका नइ देवत रिहिसे। जानत रिहिसे कि येह जउन बात ल पूछही ओला बताये बर मोला संकोच लागही। आखिर एक घांव कृष्णा ह पूछ डरिस-जीजा जी आही न?

निर्मला - आये बर तो केहें हवं।

कृष्णा - अब तो तोर संग राहत होही न नही ते अभी घलो उही पहिली कस हाल हे? मंय तो सुनत रेहेंव कि दुजहा पति ह स्त्री ल अपन प्राण ले जादा चाहथे, उहां तो बिल्कुल उल्टा बात देखेंव। आखिर तोर बर काबर नाराज रहिथे?

निर्मला - अब मंय काकरो मन के बात ल का जानव?

कृष्णा - मंय तो समझथंव, तोर रिसई ले ओह चिढ़त होही। तंय तो इहें ले बिन चाहे गे रेहे। उहां घलो ओला कुछु केहे होबे।

निर्मला - अइसन बात नोहे, कृष्णा मंय ह किरिया खा के काहत हंव, जउन मोर मन म ओकर बर थोरको मैल नइ हे। मोर ले जतना हो सकथे, ओकर सेवा करथंव, ओकर जघा कोनो देवता घलो होतिस, तभो मंय एकर ले जादा कुछ नइ कर सकतेंव। वहू मोला बिक्कट मया करथे। बराबर मोर मुंह ल देखत रहिथे, फेर जउन बात ओकर अउ मोर काबू के बाहिर हे, ओकर ओह का कर सकथे अउ मंय का कर सकथंव? न ओह जवान हो सकय न मंय डोकरी हो सकंव। जवान होय बर न जाने कतना रस अउ भस्म खावत रहिथे, मंय ह डोकरी होये बर दूध घी सब छोड़ दे हंव। सोचथे मोर दुबलापन ले ही उमर के अन्तर ह कुछ कम हो जावय, फेर न ओला पौष्टिक जिनिस ले कुछ फायदा होवय न मोला उपवास ले। जब ले मंसाराम के देहांत होगे हे, तब ले ओकर दशा अउ बिगड़े बर धर लेहे।

कृष्णा - मंसाराम ल तहूं बिक्कट प्यार करस?

निर्मला - ओ लड़का ही अइसे रिहिसे कि जउन देखतिस, प्यार करतिस। अइसन बड़े बड़े बढ़िया आँखी मंय ह अभी तक ले काकरो नइ देखे रेहेंव। कमल फूल कस चेहरा हरदम खिले राहय। अइसन साहसी लड़का मौका मिलतिस ते आगी म कूद देतिस। कृष्णा मंय तोला बतावत हंव, जब ओह मोर करा आके बइठ जवे त मंय अपन आप ल भूला जावत रेहेंव। मन करय, ओह हरदम मोर आघु म बइठे राहय अउ मंय ओला देखते राहंव। मोर मन म ओकर बर थोरको पाप नइ रिहिसे। अगर एको क्षण बर घलो मंय ह ओकर डाहर कोनो दुसर भाव ल देखे होहूं, ते मोर आँखी ह फूट जाये, फेर कोन जनी ओला तीर म देखे के बाद मोर मन ह खुश हो जवय। इही पाये के मंय ह पढ़े के नाटक (स्वांग) करेंव, नही ते ओह घर म आबे नइ करत रिहिसे। अतका मंय जानथंव कि ओकर मन म पाप होतिस, ते मंय ओकर बर सब कुछ कर सकत रेहेंव।

कृष्णा - अरे दीदी, चुप राह, कइसे बात मुंहु ले निकालथस। 

निर्मला - हां, ये सब सुने म बेकार लगथे अउ है भी बेकार, लेकिन मनखे के प्रकृति ल कोनो बदल नइ सकय। 

तिही बता एक पचास साल के मर्द से तोर बिहाव हो जही, त तंय का करबे?

कृष्णा - दीदी, मंय तो जहर खा के सूत जहूं। मोर ले तो ओकर थोथना ल घलो नइ देखत नइ बनही।

निर्मला - त बस इही समझ ले। ओ लड़का ह कभू मोर डाहर आँखी उठाके नइ देखिस, फेर डोकरा मन तो शक्की होथेस न, तोर भांटो(जीजा जी) ह ओ लड़का बर बैरी होगे आखिर ओकर प्राण लेके ही छोड़िस। जउन दिन ओला मालूम होगे कि पिताजी ह मोर उपर शक करथे कहिके ताहन उही दिन ले बुखार चढ़िस तेह प्राण ले के ही उतरिस। हाय! ओ आखिरी बखत के घटना ह आँखी ले हटबे नइ करत हे। मंय अस्पताल गे रेहेंव, ओह बेहोश परे रिहिसे, उठे के ताकत नइ रिहिसे, फेर जइसने मोर आवाज सुनिस झकना के उठके बइठ गे ताहन माता-माता काहत मोर पांव म गिर गे कृष्णा, ओ बखत अइसे मन करत रिहिसे कि अपन प्राण ल निकाल के ओला दे दंव। मोर पांव म ही बेहोश होगे ताहन फेर आँखी नइ उधारिस। डॉक्टर ह ओकर देह म ताजा खून डाले के प्रस्ताव रखे रिहिसे, इही सुनके मंय दउंड़त गे रेहेंव, फेर जब तक डॉक्टर मन खून दे के प्रकिया ल प्रारंभ करतीन, ओकर प्राण निकाल गे।

कृष्णा - शरीर म ताजा लहू के जाये ले ओकर जान बांच जतिस। 

निर्मला - कोन जानथे? फेर मंय तो अपन खून के आखिरी बूंद तक ल देबर तैयार रेहेंव, ओ बखत घलो ओकर चेहरा ह दीपक (दीया) कस चमकत रिहिसे। अगर ओह मोला देख के दउंड़ के मोर पाँव म नइ गिरतिस अउ एकर पहिली ओकर देह म कुछ लहू चल देतिस ते शायद ओकर प्राण बच जतिस।

कृष्णा - त तेंह ओतके बखत लेटा काबर नइ देस?

निर्मला - अरे पगली, तंय अभी तक बात नइ समझे! ओह मोर पांव म गिर के अउ महतारी-बेटा के सम्बन्ध देख के अपन बाप के दिल ल ओकर शक ल निकाल देना चाहत रिहिसे। सिरिफ एकरे सती ओह उठे रिहिसे। मोर पीरा ल मेटाये बर ओह अपन प्राण देहे अउ ओकर ओ इच्छा पूरा होगे। तोर भांटो ह उही दिन ले सुधर गे। अब तो ओकर दशा उपर मोला दया आथे। पुत्र शोक ओकर प्राण ले के छोड़ही तइसे लागथे। मोर उपर संदेह करके मोर संग जउन अन्याय करे हे, अब ओकर पछतावा करत हे। अबके ओकर सूरत ल देख के डर्रा जबे। डोकरा बबा होगे हे, कनिहा घलो थोर बहुत झुके बर धर लेहे।

कृष्णा - डोकरा मन अतेक शक्की काबर होथे, दीदी?

निर्मला - ये बात ल डोकरा मन करा जा के पूछ।

कृष्णा - मंय समझथंव, उंकर दिल म हरदम एके ठन चोर बइठे राहत होही कि ए युवती ल मंय खुश नइ रख सकंव।   

इही पाये के थोरिक-थोरिक बात म ओला शक होय बर धर लेथे। 

निर्मला - जानथस तो, मोर ले काबर पूछथस?

कृष्णा - इही पाये के बिचारा स्त्री ले दबत घलो होही। देखइया मन काहत होही कि येह बहुत मया करथे।

निर्मला - तंय अभी ले अतेक अकन बात कहाँ ले सीख गेस? ए बात मन ल राहन दे, बता तोला अपन वर पसन्द हे? ओकर फोटो तो देखे होबे?

कृष्णा - हव, फोटो आये तो हे, लावंव, का देखबे?

तुरते कृष्णा ह तस्वीर ल लान के निर्मला के हाथ म रख दिस।

निर्मला मुस्कुरा के किहिस तंय बड़ा भागमानी वाले अस।

कृष्णा - माता जी घलो बिक्कट पसंद करे हे।

निर्मला - तोला पसंद हे कि नही, तेला बता, दुसर के बात झन कर।

कृष्णा - (लजा के) शकल सुरत तो बने हे फेर स्वभाव ल तो भगवाने जाने। शास्त्री जी काहत रिहिसे-अइसन सीधवा अउ चरित्रवान युवक बहुत कम होही।

निर्मला - इहां ले तोरो तस्वीर घलो गे रिहिसे?

कृष्णा - हव, गे तो रिहिसे, शास्त्री जी ह तो लेगे रिहिसे।

निर्मला - ओला पसन्द अइस?

कृष्णा - अब मंय काकरो मन के बात ल का जानव? शास्त्री जी तो काहत रिहिसे, बहुत खुश होय रिहिसे।

निर्मला - अच्छा बता तोला का उपहार देवंव? अभी ले बात दे, जेला बनवा के रख दुहूं।

कृष्णा - जउन तोला बने लागे, दे देबे। ओला किताब ले बहुत प्रेम हे। बढ़िया-बढ़िया किताब मंगवा देबे।

निर्मला - ओकर बर नइ पूछत हंव, तोर बर पूछत हंव।

कृष्णा - अपनेच बर तो काहत हंव।

निर्मला - (तस्वीर डाहर ल देखत) कपड़ा सब खादी के लगाथे।

कृष्णा - हव, खादी के बड़ा प्रेमी हे, सुने रेहेंव कि पीठ म खादी के कपड़ा लाद के देहात मन म बेचे बर जाये करत रिहिसे। भाषण (व्याख्यान) दे बर घलो चतुर हे।

निर्मला - तब तो तहूं ल खादी पहिरे बर परही, तोला तो मोटा कपड़ा ले चिढ़ हे।

कृष्णा - जब ओला मोटा कपड़ा बने लागथे त मोला काबर चिढ़ होही, मंय ह तो चरखा चलाये बर सीख गे हंव।

निर्मला - सिरतोन, सूट बना डरथस?

कृष्णा - हव दीदी थोर बहुत सूत निकाल लेथंव, जब ओह खादी के उपर अतेक प्रेम करथे त चरखा घलो जरुर चलावत होही। मंय नइ चला पाहूं त मोला कतना शर्मिंदा होय बर परही।

इही सब गोठ बात करत करत दुनो बहिनी सुतिन। लगभग दु बजे रिहिस होही जब नोनी ह रोइस त निर्मला के नींद ह खुलिस। देखिस त कृष्णा के खटिया खाली परे हे। निर्मला ल अचरज होइस कि अतेक रात कना कृष्णा ह कहां गे होही। शायद पानी-वानी पीये बर गे होही। फेर पानी तो मुड़सरिया म रखे रिहिसे, फेर कृष्णा कहां गे? ओह दु तीन घांव कृष्णा के नाम ले के आवाज घलो लगइस, फेर कृष्णा के पता नइ चलिस ताहन तो निर्मला ह घबरा गे। ओकर मन म आनी बानी के शक पैदा होय बर धर लिस। अचानक ओला ख्याल अइस कि कहूं अपन कुरिया म तो नइ गे होही। लइका सुतगे ताहन ओह उठके कृष्णा के कुरिया के दरवाजा करा अइस। ओकर अंदाजा ठीक रिहिसे कृष्णा अपन कुरिया म रिहिसे। परिवार के सबो सदस्य सुतत रिहिन हे त ओह बइठे चरखा चलावत रिहिसे। अतना मन लगा के शायद ओतना तो ओह थियेटर घलो नइ देखे होही। निर्मला दंग रहिगे। अंदर म जा के किहिस-ये का करत हस कृष्णा! येह कहूं चरखा चलाये के समय आय?

कृष्णा झकना के उठ के बइठ गे अउ संकोच ले मुड़ी गड़िया के किहिस तोर नींद ह कइसे खुल गे? पानी-वानी तो मंय ह रख दे रेहेंव।

निर्मला - दिन म तोला समय नइ मिलय जेमा अतेक रात कना चरखा धर के बइठे हस।

कृष्णा - दिन म फुरसत नइ मिलय?

निर्मला - (सूत देख के) सूत तो बहुत पातर हे। 

कृष्णा - कहां दीदी, ये सूत तो मोटा हे। मंय बारीक सूत कात के ओकर बर साफा बनाना चाहत हंव। इही मोर डाहर ले उपहार होही।

निर्मला - बात तो तंय बढ़िया सोचे हस। एकर ले माहंगी वस्तु ओकर नजर म अउ का हो सकथे? अच्छा, अब उठ रात जादा होगे हे। कहूं बीमार पर जबे ताहन सब धरे के धरे रही जही।

कृष्णा - नही दीदी, तंय जा के सूत जा, मंय अभी आवत हंव।

निर्मला ह जादा बिनती नइ करिस, लेटे बर चल दिस। फेर थोरको नींद नइ अइस। कृष्णा के उछाह अउ खुशी ल देख के ओकर हिरदे ह बिना लक्ष्य के चाहत ले आन्दोलित होगे। ए समे ओकर हिरदे ह कतना खुश होवत हे। मया ह ओला कतना बही बना दे हे। तब ओला अपन बिहाव के सुरता अइस। जउन दिन रिश्ता पक्का होय के तिलक के नेंग रिहिसे, उही दिन ले ओकर सबो चंचलता सबो सजीवता ह खतम होगे रिहिसे। अपन कुरिया म बइठे-बइठे ओह अपन किस्मत ल कोसत रिहिसे अउ ईश्वर ले बिनती करत रिहिसेे कि एकर ले तो बढ़िया रहितिस प्राण निकल जतिस। अपराधी जइसे दंड के अगोरा करत रिहिसे-ओ बिहाव के जेमा ओकर जिनगी के सबो अभिलाषा माटी म मिल जही, जब मण्डप के नीचे बने हवन कुण्ड ओकर आशा जल के भस्म हो जही। 

सोलह महीना बीतत समे नइ लगिस। बिहाव के शुभ मुहुर्त आ गे। सगा सोदर मन ले घर ह भर गे। मुंशी तोताराम ह एक दिन पहिली आ गे रिहिसे। ओकर संग निर्मला के सहेली मन घलो आये रिहिन हे। निर्मला बहुत बिनती नइ करे रिहिसे, ओह खुदे आय बर उत्सुक रिहिसे। निर्मला के सबले बड़े उत्कंठा इही रिहिसे कि वर के बड़े भइया के दरसन करहूं अउ हो सके ते ओकर सद्बुद्धि बर धन्यवाद देहूं।

सुधा ह हंस के किहिस-तंय ओकर संग गोठिया सकबे?

निर्मला - काबर, बोले म का हानि हे? अब तो दुसरा ही सम्बन्ध होगे हे, मान ले मंय नइ बोल पाहू त तंय तो हई हस।

सुधा - नही भई, मोर ले ये नइ होवय। मंय ह पराया मरद ले नइ बोल सकंव। कोन जनी कइसन आदमी होही।

निर्मला - आदमी तो बुरा नइ हे अउ फेर ओकर ले बिहाव तो मोला करना नइ हे, थोकिन बोले गोठियाये म का हानि हे? डॉक्टर साहब इहां होतिस ते मंय तोला आज्ञा देवा देतेंव।

सुधा - जउन मनखे मन के हिरदे ले उदार रहिथे, का उंकर चरित्र घलो अच्छा रहिथे? पराई स्त्री ल घूरे म तो कोनो पुरुष ल संकोच नइ होवय।

निर्मला - अच्छा झन बोलबे, मिही ह गोठिया लुहूं, घूर लिही जतना घूरत बनही, बस अब तो राजी होगेस न।

अतना म कृष्णा आके बइठ गे। निर्मला ह मुस्कुरा के किहिस-सच बता कृष्णा तोर मन ह ए समे काबर उबासी लागत हे?

कृष्णा - भांटो बलावत हे, पहिली जा के सुन के आ, बाद मे गप्प मारबे, बहुत नाराज हे।

निर्मला - काबर खिसियावत हे, तय ह कुछु नही केहेस?

कृष्णा - कुछ बीमार कस लागत हे, बहुत दुबरा गे हे।

निर्मला - त थोकिन बइठ के ओकर मन ल बहला देतेस। इहां दउँड़त काबर चले आये? ये का ईश्वर तोर उपर बिक्कट किरपा करे हे, नही ते तहूं ल अइसने पुरुष मिल जतिस। थोकिन बइठ के ओकर संग गोठिया। डोकर मन मजादार बात करथे। जवान मन कस सेखी नइ बघारे। 

कृष्णा - नही दीदी, तंय ह जा मंय तो ओकर संग नइ बइठ सकंव।

निर्मला चले गे ताहन सुधा ह कृष्णा ले किहिस-अब तो बरात आ गे होही। द्वार पूजा काबर नइ होवत हे?

कृष्णा - कोन जनी दीदी, शास्त्री जी ह सामान सकेलत हे।

सुधा - सुने हंव, दूल्हा के भउजी ह बड़ा कड़क स्वभाव के नारी आय। 

कृष्णा - कइसे पता?

सुधा - मंय सुने हंव, इही पाये के चेतावत हंव, चार बात सुन के रहिबे।

कृष्णा - मोर लड़ाई-झगड़ा करे के आदत नइ हे, जब मोर डाहर ले कोनो शिकायत नइ आ पाही त बिना मतलब के काबर बिगड़ही। 

सुधा - हव, सुने तो अइसने हंव। झूठ-मूठ के घलो लड़थे कहि के।

कृष्णा - मंय तो सौ बात के एके बात जानथंव नम्रता ह पथरा ल घलो पानी कर देथे। एकाएक हल्ला होइस-बरात आवत हे। दुनो झन खिड़की के आघू म आके बइठिन।

तुरते निर्मला घलो ओ करा पहुंचगे।

वर के बड़े भाई ल देखे के ओकर बड़ा उत्सुकता रिहिसे।

सुधा ह किहिस-कइसे पता चलही कि बड़े भाई कोन आय?

निर्मला - शास्त्री जी ले पुछहूं ते पता चल जही। हाथी उपर तो कृष्णा के ससुर बइठे हे। अच्छा डॉक्टर साहब इहां कइसे आ पहुंचे हे। ओ घोड़ा म का हे, देखत नइ हस?

सुधा - हव, उही तो आय। 

निर्मला - उंकर मन से मित्रता होही। कोनो किसम के सम्बन्ध तो नइ हे। 

सुधा - अब भेंट होही त पुछहूं, मंय तो कुछु ल नइ जानव।

निर्मला - पालकी म जउन महाशय बइठे हे-ओह तो दूल्हा के भाई कस नइ दिखय।

सुधा - बिल्कुल नही। एह तो बिक्कट मोठ डाठ हे।

निर्मला - दूसर हाथी म कोन बइठे हे, समझ नइ आवत हे।

सुधा - कोनो होही, फेर दूल्हा के भाई नइ हो सकय। ओकर उमर ल नइ देखत हस-चालीस के उपर होही।

निर्मला - शास्त्री जी ल तो ए बखत दुआर पूजा के फिकर हे, नही ते ओकरे करा पूछतेंव।

संयोग से उही समे नाऊ ह आ गे। संदूक के कुची ह निर्मला करा रिहिसे। ए समे दुआर के नेंग जोग बर रुपया के जरुरत रिहिसे, ये नाऊ ह घलो पण्डित मोटेराम जी के संग तिलक धर के गे रिहिसे।

निर्मला किहिस - का अभी रुपया चाही?

नाऊ - हव दीदी, चल के दे दे।

निर्मला -अच्छा चलथंव। पहिली ए बता, तंय दूल्हा के बड़े भाई ल चिन्हथस?

नाऊ - चिन्हहूं कइसे नही, उही ताय जउन ह आघू म हे।

निर्मला - कहां मोला तो नइ दिखत हे?

नाऊ - अरे ओ ताय जउन घोड़ा म बइठे हे। उही तो आय।

निर्मला - अचरज हो के किहिस-का कहिथस, घोड़ा म दूल्हा के भाई बइठे हे! चिन्हथस या फेर अन्दाज ले काहत हस?

नाऊ - अवो दीदी, का अतेक भूला जहूं? अभी तो चाय नाश्ता देबर जाथंव।

निर्मला - अरे, ए तो डॉक्टर साहब आय। मोर परोस म रथे।

नाऊ - हव हव, उही तो डॉक्टर साहब आय।

निर्मला ह सुधा डाहर देख के किहिस-सुनत हस बहिनी, एकर गोठ ल? सुधा ह हंसी रोक के किहि-लबारी मारथे।

नाऊ - अच्छा लबारी ही सही, अब बड़े मन के मुंह कौन लगे। अभी शास्त्री जी ले पूछवा दुहूं तब तो मानबे?

नाऊ के आये म देरी होगे, मोटाराम खुद अंगना म आ के हल्ला गुल्ला करे बर धर लिस-ए घर के इज्जत रखई ह ईश्वर के ही हाथ म हे। नाऊ ह ल आये घण्टा भर होगे फेर अभी तक रुपया नइ मिले हे।

निर्मला - जरा इहां चले आवव शास्त्री जी, कतना रुपया के जरुरत हे निकाल दंव?

शास्त्री जी - गुनगुनावत, जोर-जोर से हांफत-हांफत उपर अइस अउ एक सस्सू सांस लेके किहिस, का ये? येह गोठ बात के समे नोहे, जल्दी से रुपया निकालव।

निर्मला - लेव, निकालत तो हंव। अब का मुंहु के भार गिर परंव? पहिली ये बता कि दूल्हा के बड़े भाई कोन आय?

शास्त्री जी - राम-राम अतने बात बर मोला आकाश म लटका देस। नाऊ ह का नइ चिन्हत रिहिसे?

निर्मला - नाऊ तो काहत रिहिसे कि ओ जउन घोड़ा म बइठे हे, उही ताय।

शास्त्री जी - त फेर अउ कोन ल बतातिस? उही तो आय।

नाऊ - बहुत बेर होगे काहत काहत, फेर दीदी ह मानबे नइ करय।

निर्मला ह सुधा डाहर स्नेह, ममता, विनोद अउ बनावटी तिरस्कार के नजर ले देख के किहिस-अच्छा त तिहीं ह अब तक मोर संग तिरिया-चरित्तर खेलत रेहेस। मंय जानतेंव ते तोला इहां बलाबे नइ करतेंव। अरे बाप रे पेट म बात ल पचाये के भारी ताकत हे। तंय ह कतनो महीना ले मोर संग शरारत करत चले आवत हस। कभू ए विषय उपर एको शब्द तोर मुंहु ले नइ निकलिस मंय तो दु-चार दिन म उगल देतेंव।

सुधा - तोला पता चल जतिस त तंय मोर घर आतेस काबर?

निर्मला - गजब होगे, मंय तो डॉक्टर साहब ले कतनो घांव गोठिया डरे हंव। तोरे उपर ए सबो पाप परही। देखे कृष्णा, तंय ह अपन जेठानी के शरारत। येह अइसन मायावी नारी आय, एकर ले डर के रहिबे।

कृष्णा - मंय तो अइसन देवी के चरण धो-धो के माथ म चढ़ाहूं। धन्य भाग कि एकर दर्शन होइस।

निर्मला - अब समझ गेंव। रुपया घलो तिंही ह भेजवाये होबे। अब हव कहिके मुड़ी हलाये त सिरतोन काहत हवं, तोला पीटे के मन करत हे।

सुधा - अपन घर बलाके मेहमान के अपमान नइ करे जाये।

निर्मला - अब देख तोला कइसे-कइसे हलाकान करथंव। मंय ह तोर मान रखे बर एक कनिक आय बर कहि दे रेहेंव त तंय सिरतोन के आ गेस। उहां वाले मन का-का काहत होही।

सुधा - सब ले कहिके आये हंव।

निर्मला - अब मंय तोर करा कभू नइ आवंव। अतना तो इशारा कर दे रहिते कि डॉक्टर साहब ले परदा रखबे कहिके।

सुधा - ओकर देखे ले ही कोन से पहाड़ टूट गे? नइ देखतिस त अपन किस्मत म रोतिस कइसे? लालच म पर के कइसन चीज ल खो दिस अब तो तोला देख के लालची हाथ मलके रहि जथे। मुंहु ले तो कुछु नइ काहय, फेर मने मन अपन गलती पर पछताथे।

निर्मला - अब तोर घर कभू नइ आवंव।

सुधा - अब पिण्ड नइ छूट सकय। मंय ह का तोर घर के रद्दा नइ देखे हंव का?

द्वार पूजा पूरा होगे रिहिसे। सगा-सोदर मन नाश्ता पानी करत रिहिन हे। मुंशीजी के बगल म डॉक्टर सिन्हा बइठे रिहिसे। निर्मला ह कुरिया के एक कोन्टा म लुका के देखिस ताहन करेजा थामके रहिगे। हिस्ट पुस्ट, यौवन अउ प्रतिमा के देवता रिहिस, फेर दूसरा एकर बारे म कहना ठीक नइ हे।

निर्मला डॉक्टर साहब ल सैकड़ो घांव देखे रिहिसे, फेर आज ओकर हिरदे म जउन विचार उठिस, ओह कभू नइ उठे रिहिसे। घेरी-बेरी इही जी चाहत रिहिसे कि बलाके खूब फटकारंव, अइसे-अइसे ताना मारंव कि ओह सुरता करे, रोवा-रोवा के छोड़व, फेर रहम करके रहि जात रिहिसे। बरात जनवास चल दे रिहिसे। भोजन के तइयारी होवत रिहिसे। निर्मला चांउर निमारत रिहिसे। अचानक (बरतन मंजइया, कहारिन) आ के किहिस-बेटी तोला सुधा रानी बलावत हे। तोर कुरिया म बइठे हे। 

निर्मला ह थारी ल छोड़ दिस अउ घबरा के सुधा करा गिस, मगर उहां जा के ओकर गोड़ ह ठिठक गे-उहां डॉक्टर सिन्हा खड़े रिहिसे।

सुधा ह मुस्कुरा के किहिस-ले बहिनी, बला दे हंव। अब जतना चाहस ओतना फटकार। मंय दरवाजा रोक के खड़े हंव, भाग नइ सकय।

डॉक्टर साहब ह गम्भीर भाव ले किहिस-भागत कोन हे? इहां त मुड़ी गड़ाये खड़े हंव।

निर्मला ह हाथ जोड़ के किहिस-अइसने सदा दया रखे रहिबे, भूला मत जबे। इही मोर बिनती हे।

सत्रह


कृष्णा के बिहाव के बाद सुधा चले गे अउ निर्मला ह मइके म रही गे। वकील साहब घेरी-बेरी चिट्ठी लिखय फेर ओह आये के नामे नइ लेवत रिहिसे। उहां जाये बर ओकर मन नइ करत रिहिसे। उहां अइसे कोनो जिनिस नइ रिहिसे जउन ह ओला खींच लेवय। इहां महतारी के सेवा अउ छोटे भाई मन के देखभाल म ओकर समे ह बड़ा आनंद ले कटत रिहिसे। वकील साहब खुद आतिस ते शायद ओह जाये बर राजी हो जतिस, फेर ए बिहाव म मुहल्ला के लड़की मन ओकर अइसे दुर्गति करे रिहिन हे कि बिचारा आये के नामे नइ लेवत रिहिसे। सुधा घलो कतनो घांव चिट्ठी लिखिस फेर निर्मला ह वहू ल जवाब नइ दिस। आखिर एक दिन सुधा ह नौकर संग खुदे आ गे।

जब दुनो गला मिल लिस ताहन सुधा ह किहिस-तोला तो उहां जाये बर मानो डर लागत हे।

निर्मला - हव बहिनी, डर तो लगथे। ब्याह के गेंव ते तीन बच्छर म मइके आयेंव, अब तो उहां उमर ह खतम हो जही, फेर कोन बलाये अउ कोन ह आय?

सुधा - आये बर का होही, जब मन करही आ जबे। उहां वकील साहब बहुत बेचैन होवत हे।

निर्मला - बहुत बेचैन, रात कना शायद नींद नइ आवत होेही।

सुधा - बहिनी मोर करेजा पथरा के आय। ओकर हालत देख के तरस आथे। कहिथे घर म कोई पूछइया नइ हे, न कोनो लड़का न गोसइन, काकर करा जी बहलाये? जब ले दूसर मकान म आये हे तब ले बहुत दुखी हे।

निर्मला - लड़का तो भगवान के दे दु-दु झिन हे।

सुधा - ओ दुनो झिन के तो बिक्कट शिकायत करय। जियाराम तो अब तो बाते नइ सुनय। उल्टा-पुल्टा जवाब देथे। रहिस बात छोटे के त वहू ह ओकरे हिसाब से चलथे। बिचारा बड़े लड़का के सुरता कर-कर के रोवत रहिथे।

निर्मला - जियाराम तो बिक्कट सिधवा रिहिसे, ओह बदमासी कब ले सीख गे? मोर तो एको ठन बात ल टालत नइ रिहिसे, इशारा म काम करत रिहिसे।

सुधा - का कहिबे बहिनी, सुने हंव तेला काहत हंव, आप ही तो भइया ल जहर देके मार डरे हस, आप हत्यारा अव। कतनो घांव तो तोर संग बिहाव करे खातिर ताना मार चुके हे। अइसे-अइसे बात करथे कि वकील साहब ह रो डरथे। अरे, अउ का काहंव, एक दिन तो पथरा उठा के मारे बर दउंड़े रिहिसे।

निर्मला ह गंभीर चिन्ता म परके किहिस ये लड़का तो बड़ा शैतान निकलिस। ओकर ले ये कोन केहे हे कि ओकर भाई ल ओह जहर दे दे हे।

सुधा - ओह तोरे से ठीक होही।

निर्मला ल ये नवा चिन्ता पैदा होइस। अगर जिया के इही तेवर हे, अपन बाप संग लड़े बर तैयार रहिथे, त मोर ले काबर डर्राही? ओह बिक्कट रात ले इही फिकर म बूड़े रिहिसे। मंसाराम के ओला आज बिक्कट सुरता अइस। ओकर संग जिनगी आराम से कट जतिस। ए लड़का के जब अपन पिता के आघू म ये हाल हे उंकर संग ओह कइसे जिनगी बिताही? अब तो घर ह हाथ ले निकल गे हे, थोर बहुत करजा अभी मुड़ी उपर होही घलो, आमदनी है नही। ईश्वर ही बेड़ा पार लगाही।

आज पहिली घांव निर्मला ल लइका मन के फिकर पैदा होइस। ए बिचारी के कोन जनी का हाल होही? ईश्वर ह ए संकट खड़ा कर दे। मोला तो येकर जरुरत नइ रिहिसे। जनम लेना ही रिहिसे त कोनो भाग्यवान के घर जनम लेतेंव। नोनी ह ओकर छाती म लिपटे सुतत रिहिसे। माता ह उमन ल अउ चिपका लिस, जानो मानो ओकर हाथ ले कोनो झटक के लेग जही।

निर्मला के तीर म ही सुधा के खटिया रिहिसे। निर्मला तो चिन्ता सागर म गोता लगावत रिहिसे अउ सुधा ह बढ़िया नींद के आनंद उठावत रिहिसे। का ओला अपन लइका के फिकर ह सतावत हे? मृत्यु तो डोकरा अउ जवान के भेद नइ करय, फेर सुधा ल कोनो चिन्ता काबर नइ सतावय? ओला तो कभू भविष्य म चिन्ता ले उदास नइ देखेंव।

अचानक सुधा के नींद खुलगे। ओह निर्मला ल अभी तक जागत देख के किहि-अरे तंय ह अभी तक ले सुते नइ हस?

निर्मला - नींदे नइ आवय।

सुधा - आंखी बंद कर ले, अपने आप नींद आ जही। मंय तो खटिया म आते भार सुत जाथंव। ओह जागथे तभो ले मेोला खबर नइ लगय। कोन जनी मोला काबर अतेक नींद आथे। शायद कोनो बीमारी होही।

निर्मला - हव बड़ा भारी बीमारी आय। येला राज-रोग कहिथे। डॉक्टर साहब ल काह-दवई शुरु कर देवय। 

सुधा - त आखिर जाग के काला सोचंव! कभू-कभू मइके के सुरता आजथे, त ओ दिन थोकिन देरी म नींद आथे।

निर्मला - डॉक्टर साहब के सुरता नइ आवय?

सुधा - कभु नही, ओकर सुरता काबर आही?

जब मंय ह जानत हंव कि टेनिस खेल के आये होही खाना खाये होही अउ आराम से लेटे होही।

निर्मला - ले मोहन घलो जाग गे। अब तंय जाग गेस त भला येह काबर सूतही।

सुधा - हव बहिनी, एकर अलकरहा आदत हे। मोरे संग सूतथे अउ मोरे संग जागथे। पहिली जनम के कोनो तपस्वी आय। देख एकर माथा म तिलक के निशान कइसे हे। बाहां म घलो अइसने ही निशान हे। जरूर कोनो तपस्वी आय।

निर्मला - तपस्वी मन तो चंदन तिलक नइ लगावय। ओ जनम के कोनो धूर्त पुजारी होही। कइसे रे तंय कहां के पुजारी रेहे, बता?

सुधा - एकर बिहाव तोर नोनी ले करहंू।

निर्मला - का गोठियाथस बहिनी, गारी देखस तइसे लागथे, बहिनी के संग भाई के बिहाव होथे का?

सुधा - मंय तो करहूं, चाहे कोनो कुछु काहय।

अइसन सुंदर बहू अउ कहां पाहंू। थोकिन देख तो बहिनी, एकर देह ह कुछ गरम लागत हे या मुही भर ल मालूम होथे।

निर्मला ह सोहन के माथ ल छू के किहिस-नही, नही देह तो गरम हे। ये बुखार ह कब ले आवत हे। दूध तो पीयत हे न?

सुधा - अभी तो सूते रिहिसे, तब तो तन ह ठंडा रिहिसे। शायद गरमी लग गे होही, ओढ़ा के सुता देथंव। बिहनिया तक ठीक हो जहीं। बिहनिया होइस त सोहन के दशा अउ खराब होगे। ओकर नाक बोहाये बर धर लिस। बुखार ह अउ बाढ़गे। आंखी चढ़गे अउ मुड़ी ह झुकगे। न ओह हाथ गोड़ हलावत रिहिसे, न हांसत बोलत रिहिसे, बस चुपचाप पड़े रिहिसे। अइसे मालूम होवत रिहिसे कि ए बखत काकरो बोलना ओला बने नइ लागत होही। ठुस-ठुस (कुछ-कुछ) खांसी आये बर धर लिस। अब तो सुधा ह घबरइस। निर्मला ह सलाह दिस कि डॉक्टर साहब ल बलाये जाये, फेर ओकर बुढ़ी दाई किहिस-डॉक्टर हकीम के इहां कुछु काम नइहे। मंय ह साफ देखत हंव कि लइका ल नजर लगे हे। भला डॉक्टर आके का करही?

सुधा - बुढ़ी दाई, भला इहां नजर कोन लगा दिही? अभी तक ले तो बाहिर कहूं गे घलो नइ हे।

बुढ़ी माता - नजर कोनो नइ लगावय बेटी, कोनो कोनो आदमी के नजर ह बुरा रहिथे कि अपने आप लग जथे। कभू-कभू तो महतारी बाप के नजर ह घलो लग जाथे। जब ले आय हे तब ले एको घांव रोये घलो नइ हे। नजर लगे लइका मन के इही पहिचान आय। मंय ओला हिचकत देख के घबरा गे रेहेंव, कुछु न कुछ अनहोनी होने वाला हे। आंखी ल देख न कतना चढ़गे हे। इही नजर के सबले बड़े चिन्हारी आय। बुढ़िया महरी (रउताइन, कहारिन) अउ पड़ोस के पंडिताइन ह एक कथन के समरथन कर दिस। बस महंगू ह आ के लइका के मुंह ल देखिस ताहन हांस के किहिस-मालकिन येह नजर डीठ आय अउ कुछु नोहे। जरा पातर पातर काड़ी (तीलियां) मंगव दव। भगवान चाहही ते संझा तक लइका हांसे बर धर लिही।


सरकण्डा (गांठदार सरपत का पौधा) के पांच ठन टुकड़ा लइस। महंगू ह ओला बराबर कर के एक ठिन डोरी ले बांध दिस। अउ कुछु फुसुर-फुसुर पढ़ (बुदबुदा) के उही हाथ ले पांच घांव सोहन के मुड़ी ल सहलइस। अब जउन देखिस त पांचो काड़ी ह छोटे-बड़े होगे राहय। सब माईलोगन येला देख के दंग रिहिगे। अब नजर बर कोन ल सन्देह हो सकत रिहिसे। महंगू ह फेर बच्चा ल काड़ी (तीलियो) मन ले सहलाये के शुरु करिस। अब काड़ी मन बराबर होगे। केवल थोकिन अन्तर रहिगे रिहिसे। ये सब ह ए बात के प्रयास रिहिसे कि नजर के असर ह अब थोकिन अउ बांचे हे। महंगू सब ल भरोसा देवा के संझा कना फेर आये के वादा करके चले गे। बालक के दशा दिन म अउ खराब होगे। खांसी अउ बढ़गे। संझा के बेरा महंगू ह आ के नजर उतारे बर फेर काड़ी वाले बूता ल फेर करिस। ए बखत पांचो काड़ी ह बराबर दिखिस। माईलोगन मन निश्चित होगे फेर सोहन ह सरी रात खांसत गुजारिस। इहां तक ले कतनो घांव ओकर आंखी उलट गे। सुधा अउ निर्मला दुनो झिन ह बइठे बइठे रात ल काटिस खैर रात तो कटगे। अब बुढ़ी दाई ह नवा रंग लईस महंगू ह नजर नइ उतार सकिस इही पाये के अब कोनो मौलवी ले फूंकवाना जरुरी होगे। सुधा एकर बाद घलो अपन पति ल खबर नइ कर सकिस। महरी सोहन ल एक ठन चद्दर म लपेट के मस्जिद म लेग के फूंकवा के लइस। संझा कना फेर फूंकवइस, फेर सोहन ह मुड़ी नइ उठइस। रात होगे, सुधा ह मन म निश्चय करिस कि रतिहा ह बने बीतही, ताहन बिहनिया पति ल तार कइ दुहूं।

फेर रात बने नइ बीत पईस। अधरतिया होवत-होवत लइका ह हाथ ले निकल गे। सुधा के जीवन सम्पति ह देखते देखते ओकर हाथ ले छिनगे।

उही ह बिहाव के दू दिन पहिली सब ल हंसवावत रिहिसे, आज सबो घर ल रोवावत हे। जेकर भोला भाला सूरत ल देख के माता के छाती फूल जावत रिहिसे, उही ल देख के आज माता के छाती ह फटट रिहिसे। घर भर के मन सुधा ल समझावय, फेर ओकर आंसू ह थमबे नइ करत रिहिसे। सब्र नइ होवत रिहिसे। सबले बड़े दुख ए बात के रिहिसे कि पति ल कइसे मुंहु देखाहूं। ओला खबर तक नइ दिस।

रतिहा ही तार दे दे रिहिसे। बिहान दिन डॉक्टर सिन्हा ह नौ बजत-बजत मोटर म बइठ के आगे। सुधा ह ओकर आये के खबर पइस, ताहन अऊ फूट-फूट के रोये बर धर लिस। लइका के जल क्रिया होइस, डॉक्टर साहब ह कई घांव अन्दर अइस, फेर सुधा ह ओकर करा नइ गिस। ओकर आघू म कइसे जातिस? कइसे मुंहु देखातिस? ओह अपन नादानी ले ओकर जीवन के रतन (रत्न) ल छीन के दरिया म डार दिस।

अब ओकर करा जाये के बखत छाती ह कुटका-कुटका हो जात रिहिसे। लड़का ल ओकर गोदी म देख के पति के आंखी चमक उठय। बालक ह पिता ल देख के ओकर गोदी म चले जावत रिहिसे। माता फेर बलातिस, त पिता के छाती ले अउ चिपट जावत रिहिसे, का अउ कतनो-दुलारे के बाद घलो बाप के गोद ल नइ छोड़य। तब महतारी काहय-बड़ा मतलबी हे। आज ओह कोन ल गोद म धर के पति करा जाही? ओकर सून्ना गोद ल देख के कहूं ओह चिल्ला के रो झन दे। पति के आघू जाये के अपेक्षा ओला मर जाना जादा आसान लागत रिहिसे। एक क्षण घलोे निर्मला ल नइ छोड़त रिहिसे कि कहूं पति ले सामना झन हो जाये।

निर्मला ह किहिस-बहिनी, जउन होना रिहिसे ओ हा हो चुके हे। अब ओकर ले कब तक भागत फिरबे। ओह तो रात म चल दिही कहि के माता जी काहत रिहिसे।

सुधा ह डबडबाये आँखी ले देखत किहिस-कोन से मुंह ले के ओकर कर जावंव? मोला तो डर लागत हे, ओकर करा जाते भार गोड़ ह लड़खड़ाये बर धर लिही अउ मंय ह गिर जहूं।

निर्मला - चल मंय ह तोर संग चलथंव, तोला सम्हाले रहूं।

सुधा - मोला छोड़ के भाग तो नइ जबे?

निर्मला - नही, नही, भागंव नही।

सुधा - मोर करेजा तो अभी ले धड़के बर धर लेहे। मंय अतेक बड़े घटना होये के बाद घलो बइठे हंव, मोला इही अचरज होवत हे। सोहन ल ओह बहुत मया करत रिहिसे बहिनी। कोन जनी ओकर का हालत होही। मंय ह ओला ढांढस कइसे बंधाहूं। मंय तो खुदे रोवत रहूं। का रतिहा ही चले जाही?

निर्मला - हव, माता जी तो काहत रिहिसे, छुट्टी नइ लेहे।

दुनो सहेली ह पुरुष मन के कुरिया डाहर चलिस फेर कुरिया के मुहाटी (द्वार) करा पहुंच के सुधा ह निर्मला ल लहुटे बर कहि दिस। अकेल्ला कुरिया (कमरा, रुम) म गिस।

डॉक्टर साहब ह घबरावत रिहिसे कि कोन जनी सुधा के का दशा होवत होही। आनी बानी के शंका मन म आवत रिहिसे। जाये बर तैयार बइठे रिहिसे फेर मन ह नइ करत रिहिसे। मने मन सोचत रिहिसे, अगर ईश्वर ल अतना जल्दी ये जिनिस ल दे के छीन लेना रिहिसे त फेर दिस काबर होही? ओह तो कभू संतान बर ईश्वर ले बिनती नइ करे रिहिसे। ओह जिनगी भर बिना संतान के रहि सकत रिहिसे, फेर संतान पाके ओकर ले वंचित हो जाना ओला सहि नइ सकत रिहिसे। का सचमुच मनखे ह ईश्वर के खिलौना आय? इही मानव जीवन के महत्व आय? येह सिरिफ लइका मन के घरघुंदिया आय जेकर बने के न कोई कारन हे न बिगड़े के? तभो ले लइका मन ल घलो अपन घरौंदा ले, कागज के डोंगा ले, अपन लकड़ी के घोड़ा ले ममता होथे। बढ़िया खिलौना मन ल तो ओह जान के पीछू लुका के रखथे। अगर ईश्वर बालक ही आये त तो बिचित्र बालक आये।

फेर दिमाक ह ईश्वर के ये रुप ल माने बर तैयार नइ हे। संसार के कर्ता-घर्ता उदण्ड बालक नइ हो सकय। हम ओला ओ सबो गुन ले विभूषित करथन, जउन हमर बुद्धि के पहुंच के बाहिर हे। खिलाड़ीपन ह तो ओ सब महान गुन म हे का? का हांसत खेलत लइका के प्राण हर लेना कोनो खेल आय। काई श्वर घलो अइसन भूतप्रेत कस खेल खेलथे? 

एकाएक सुधा धीरे-धीरे कुरिया म गिस। डॉक्टर साहब ह उठ के खड़ा होगे ओकर बाद ओकर तीर आ के किहिस-तंय कहां रेहे सुधा? मंय तोर रद्दा देखत रेहेंव। सुधा के आँखी म कुरिया ह तउंरत(तैरता) हे तइसे लागत रिहिसे। पति के गर्दन म हाथ डार के ओह ओकर छाती म सिर रख के रोये बर धर लिस, फेर ए आंसू के धार म ओला असीम धैर्य अउ सांत्वना के अनुभव होवत रिहिसे। पति के छाती म लिपटे ओह अपन हिरदे म एक अदभूत स्फूूर्ति अउ ताकत के संचार होवत पावत रिहिसे, मानो हवा ले थरथराये(झिलमिलावत) दीपक ह अंचरा के ओधा म आ गे हे।

डॉक्टर साहब ह सुधा के आंसू ले फिले गाल ल दुनो हाथ म थाम के किहिस-सुधा, तंय अतेक छोटे दिल काबर करथस? सोहन अपन जिनगी म जउन कुछ करे बर आये रिहिसे, ओह कर चुके रिहिसे, फेर ओह काबर बइठे रहितिस? जइसे कोनो पेड़ ह जल अउ प्रकाश ले बाढ़थे फेर हवा के तेज झोंका ले ही मजबूत होथे, उही किसम ले प्रणय घलो दुख के मार (आघात) ले ही विकास पाथे। खुशी म हंसइया बहुत मिल जथे, रंज म जउन रोवय, उही हमर सही के संगवारी आय। जउन प्रेमी मन ल साथ रोना नसीब नइ होइस, उमन मोहब्बत के मजा का जाने? सोहन के मृत्यु ह आज हमर एक-दुसर के दूरी ल मेटा दिस। आजे हम्मन एक-दूसर के सही स्वरुप ल देखे हन।

सुधा ह सिसकत किहिस-मंय नजर के धोखा म रेहेंव। हाय तंय ओकर मुंहु ल घलो नइ देख पाये। कोन जनी अतना समझ आज कल ओला कहां ले आ गे रिहिसे। जब जब ओह मोला रोवत देखे, त अपन पीरा ल भूला के मुस्कुरा देवय। तिसरइया दिन ही दुलरुवा बेटा के आँखी बंद होगे कुछ दवा पानी घलो नइ कर पायेंव। 

अइसे काहत-काहत सुधा के आंसू फेर गिरे बर धर लिस। डॉक्टर सिन्हा ह ओला छाती ले लगा के दुखी हो के किहिस-सुधा, आज तक कोनो अइसे बालक या डोकरा नइ मरे होही, जिंकर घर वाले मन के दवा-पानी के लालस पूरा होइस होही।

सुधा - निर्मला ह मोर बिक्कट मदद करिस। त एकाद झपकी ले घलो लेवत रेहेंव, फेर ओह झपकी घलो नइ मारत रिहिसे। रात रात पा के बइठे नही ते टहलत राहय। ओकर एहसान ल नइ भूलावंव। का तंय आजे जावत हस?

डॉक्टर - हव, छुट्टी ले के मौका नइ रिहिसे। सिविल सर्जन ह शिकार खेले बर गे रिहिसे।

सुधा - का ये सब हमेशा शिकार ही खेलत रहिथे?

डॉक्टर - राजा मन के कामे का हे?

सुधा - मंय तो आज नइ जावन देवंव।

डॉक्टर - जी तो मोरो नइ चाहत हे। 

सुधा - त मत जा, तार दे दे। महूं तोर संग जाहंू। निर्मला ल घलो संग म लेगहूं। सुधा उहां ले लहूटिस, त ओकर हिरदे के बोझा ह हल्का होगे रिहिसे। पति मया म पागे बानी ह ओकर सबो शोक अउ पीरा ल हर ले रिहिसे। प्रेम म असीम विश्वास हे, असीम धैर्य अउ असीम बल हे।

अठारह


जब हमर उपर कोनो बड़े विपत्ति आ पड़थे त ओकर ले सिरिफ हमला दुखे भर नइ होवय बल्कि, दुसर मन के ताना घलो सहे बर परथे। लोगन ल तो हमर उपर ताना मारे बर बढ़िया मोैका मिल जथे, जेकर बर ओह हमेशा बेचैन रथे। मंसाराम का मरिस, मानो समाज ल ओकर उपर आवाज उठाये बर बहाना मिलगे। भीतरी के बात ल कोन जानथे, जउन बात दिखत रिहिसे ओह ये आय कि ये सब सौतेली महतारी के करतूत आय, चारो डाहर इही गोठ चलत रिहिसे, ईश्वर न करे लड़का मन ल सौतेली दाई के पाला पड़े। जेला अपन बने बुनाये घर उजाड़ना हो, अपन दुलरुवा लइका मन के गर्दन म छुरी चलवाना (फेरना) हो, ओह लइका मन के सहत ले दूसरा बिहाव कर ले। अइसन कहूं नइ देखे हवन कि सौत के आये ले घर तबाह नइ होय होही। उही बाप जउन लइका मन ल अपन जान ले जादा मया करय उही ह सौत के आये ले लइका मन बर बैरी हो जथे। ओकर मति ह घलो बदल जथे। अइसन देवी जनम नइ धरे हे जउन ह सौत (सउत) के लइका मन ल अपन समझिस होही।

मुश्किल ये रिहिसे कि लोगन ताना मारे भर ले उंकर जीवन नइ जुड़ावय। कुछ अइसनो सज्जन घलो रिहिसे जेमन ल अब जियाराम अउ सियाराम ले खास लगाव होगे रिहिसे। उमन दुनो लड़का मन ले बिक्कट सहानुभूति प्रकट करय, इहां तक ले कि एक-दु झिन माईलोगन मन तो उंकर माता के गुन अउ स्वभाव के सुरता करके आंसू बोहाय बर धर लेवे। चू-चू! बिचारी का जानत रिहिसे कि ओकर मरते भार ओकर बेटा मन के ए दुर्दशा होही! अब दूध मक्खन कहां ले मिलत होही। 

जियाराम किहिस-मिलही काबर नही, हम्मन ल मिलथे।

माईलोगन कहिथे-मिलथे! अरे बेटा, मिलना घलो कतनो किसम के होथे। पानी वाले दूध मंगा के रख देवत होही, पीयो चाहे झन पीयो कोन पूछथे? ओ बिचारी ह तो नौकर ले दूध दुहवा के मंगवात रिहिसे। ओ तो चेहरा ह बता देथे। दूध के चेहरा ह छिपे नइ राहय, ओ चेहरा मोहरा नइ हे।

जिया ल तो अपन महतारी के समे के दूध के स्वाद के तो सुरता नइ रिहिसे, जेकर ले ए आरोप के उŸार देतिस अउ न ओ समे के अपन सूरत के सूरता रिहिसे, तिही पाये के चुप रहि जथे। ए सब बात मन के असर पड़ना घलो स्वाभाविक रिहिसे। जियाराम ल अपन घर वाले मन ले चिढ़ होवत जावत रिहिसे। मुंशीजी ह मकान के भी नीलामी हो जाये के बाद दुसर घर म आ गे रिहिसे, अब किराया के फिकर होय बर धर लिस। निर्मला ह मक्खन बंद कर दिस। ओ आमदनी ही नइ रिहिस, त खरचा कइसे करतिस। दुनो कहार (घर म बूता करइया) ल छोड़वा दिस। जियाराम ल ए सब बहुत बेकार लगय। जब निर्मला मइके चल दिस, त मुंशीजी ह दूध ल घलो बंद करवा दिस। नवजात कन्या के चिन्ता अभी ले ओकर मुड़ी उपर सवार होगे रिहिसे।

सियाराम ह बिगड़ के किहिस-दूध बंद करे ले तो आपके महल बनत होही, भोजन घलो बंद करवा दे।

मुंशीजी - दूध पीये के शौक हे त जाके दुहा के काबर नइ लानस? पानी के पइसा तो मंय नइ दे सकंव।

जियाराम - मंय दूध दुहाये बर जाहूं, कोनो स्कूल के लड़का देख लिही तब? 

मुंशीजी - देख लिही त का होही। कहि देबे अपन बर दूध लाये बर जाथंव। दूध लाना कोनो चोरी थोरे आय।

जियाराम - चोरी नोहे। आप ल कोनो ह दूध लावत देख लिही त, आप ल लाज नइ लागही? 

मुंशीजी - बिल्कुल नही। मंय ह इही हाथ ले पानी निकाले हंव, अनाज के गठरी डोहारे हंव। मोर पिताजी ह कोनो लखपति नइ रिहिसे।

जियाराम - मोर पिताजी ह तो घलो गरीब नइ हे, मंय काबर दूध दुहाये बर जावंव? आखिर आप कहार मन ल काबर जवाब दे देस।

मुंशीजी - का अब तोला अतना घलो समझ नइ आवय कि मोर आमदनी ह अब पहिली कस नइ रिहिस, अतना नादान तो नइ हस?

जियाराम - आखिर आपके आपके आमदनी काबर कम होगे?

मुंशीजी - जब तोर करा अक्कल नइ हे, त का समझावंव? इहां जिंदगी ले तंग आ गे हंव। मुकदमा कोन ले अउ ले भी ले तो तैयार कोन करे? ओ दिन घलो नइ रिहिस। अब तो जिंदगी के दिन पूरा करत हंव। सबो अरमान ह लल्लू के साथ चले गे। 

जियाराम - खुद के हाथ ले गे हे।

मुंशीजी ह चीख के किहिस-अरे बेसमझ। येह ईश्वर के मर्जी रिहिसे। अपने हाथ ले कोनो अपन गला ल काटथे।

जियाराम - ईश्वर तो आपके बिहाव करे बर नइ आये रिहिसे।

मुंशीजी अब जवाब नइ दे सकिस, तमतमावत (लाल लाल आँखी देखावत) किहिस-का तंय ह आज लड़े बर कमर कस के आये हस? आखिर काबर बिफड़त हस? मोला तो तंय पोसत नइ हस? जब ए काबिल हो जबे, त मोला उपदेश देबे। तब मंय तोर सुनहूं। अभी तोला मोला उपदेश दे के अधिकार नइ हे। कुछ दिन सम्मान अउ तमीज सीख। तंय मोर सलाहकार नो हस कि मंय जउन बूता करहूं ओकर बर तोर ले सलाह लेहूं। मोर कमाये धन दौलत आय, मंय जइसन चाहंव खरचा कर सकथंव। तोला जबान खोले के घलो हक नइ हे। अगर तंय ह फेर मोर ले अइसने बेज्जती से बात करबे, त नतीजा बुरा होही! जब मंसाराम जइसे रतन बेटा ल खो (गंवा) के मोर प्राण नइ निकलिस, त तोर बगैर मंय मर नइ जावंव, समझ गेस।

अतेक कड़क फटकार पाके घलो जियाराम उहां ले नइ हटिस। बिना डर्राये बोलिस-त आप का चाहथव कि हम्मन ल चाहे कतनो तकलीफ होवय फेर मुंह नइ खोलन? मोर ले तो ए होही नही। भाई साहब ल जउन अदब अउ तमीज के इनाम मिलिस, ओकर मोला भूख नइ हे। अइसन अदब ल दूरिहा ले प्रणाम करत हंव।

मुंशीजी - तोला अइसन बात करत शरम नइ आवय?

जियाराम - लड़का अपन बुजुर्ग मन के ही नकल करथे।

मुंशीजी के क्रोध ह शांत होगे। जियाराम उपर ओकर एको कनी असर नइ होवय, एकर ओला यकीन होगे। उठ के टहले बर चल दिस। आज ओला खबर मिलगे कि ए घर के अब सर्वनाश होने वाला हे। 

ओ दिन ले बाप-बेटा म कुछ न कुछु बात ल लेके झड़प हो जावत रिहिसे। मुंशीजी जतने समझाये के कोशिश करय जियाराम ओतने शेर होवत जात रिहिसे। एक दिन जियाराम ह रुक्मिणी ल इहां तक कहि डरिस-बाप आय कहिके छोड़ देथंव, नही तो मोर अइसे-अइसे संगवारी हे कि चाहंव ते भरे बाजार म पिटवा दंव। रुक्मिणी ह मुंशीजी ले कहि दिस। मुंशीजी ह हिम्मत तो देखइस, फेर ओकर मन म डर समा गे। संझा के बेरा घूमना छोड़ दिस। अब नवा चिंता सवार होगे। इही डर के मारे निर्मला ल घलो नइ लावत रिहिसे कि ए शैतान ह ओकरो संग घलो अइसने व्यवहार करही। जियाराम एक घांव दबे स्वर म कहि घलो दे रिहिसे-देखथंव, अब कइसे ए घर मा आही? दूरिहा ले भगा नइ दुहूं, ते मोर नाम जियाराम नही। डोकरा करही का लिही। मुंशीजी घलो समझ गे रिहिसे कि मंय एकर कुछु नइ कर सकंव। कोई बाहिर के आदमी होतिस ते, ओला पुलिस अउ कानून के अनुशासन ले कसतेंव। खुद के लड़का के का करे जाये? सिरतोन केहे हे- आदमी हारथे, त अपन लड़का ले ही। 

एक दिन डॉक्टर सिन्हा ह जियाराम ल बलाके समझाना शुरु करिस। जियाराम ओकर इज्जत करत रिहिसे। कलेचुप बइठ के सुनत रिहिसे। जब डॉक्टर साहब ह आखिरी म पूछिस, आखिर तंय का चाहथस? त ओह किहिस-साफ-साफ कहि दव न? बुरा तो न मानबे? 

सिन्हा - नही जउन कुछ तोर दिल म हे ओला साफ-साफ कहि दे।

जियाराम - त सुनव, जब ले भइया ह मरे हे तब ले मोला पिताजी के सूरत ल देख के घुस्सा आथे। मोला अइसे लागथे कि इही ह भइया के हत्या करे हे अउ एक दिन मौका पा के हम दुनो भाई के घलो हत्या करही। अगर ओकर ए इच्छा नइ रहितिस त बिहाव काबर करतिस?

डॉक्टर साहब ह बड़ा मुश्किल ले हंसी ल रोक के किहिस-तुंहर मन के हत्या करे बर ओला बिहाव करे के का जरुरत रिहिसे, ये बात मोला समझ म नइ अइस। बिना बिहाव करे घलो तो ओह हत्या कर सकत रिहिसे।

जियाराम - बिल्कुल नही, ओ समे तो ओकर दिल कुछ अउ रिहिसे, हमर मन उपर जान देवत रिहिसे, अब तो मुंहु तक देखना नइ चाहय। ओकर इही इच्छा हे कि अपन दुनो प्राणी के सिवा घर म अउ कोई मत रहे। अब जउन लड़का होही उंकर रद्दा ले हम्मन ल हटा देना चाहत हे, इही ओ दुनो मनखे के दिली इच्छा हे। हम्मन ल किसम-किसम के तकलीफ दे के भगा देना चाहत हे। इही पाये के आजकल मुकदमा नइ लेवय। हम दुनो भाई आज मर जबो ताहन देख उंकर जिनगी म कइसे बहार होही। 

डॉक्टर - अगर तुमन ल भगाना होतिस, त कोनो इल्जाम लगाके घर ले निकाल नइ देतिस। 

जियाराम - एकर बर तो पहिली ले तैयार बइठे हंव।

डॉक्टर - बता, का तैयारी?

जियाराम - जब मौका आही, देख लेबे।

अइसे कहि के जियाराम जाय बर आगू बढ़िस। डॉक्टर सिन्हा ह बहुत आवाज दिस, फेर ओह लहूट के नइ देखिस।

कतनो दिन बाद डॉक्टर साहब के जियाराम ले भंेट होगे। डॉक्टर साहब सिनेमा के प्रेमी रिहिस अउ जियाराम के तो प्राण ह सिनेमा म बसे। डॉक्टर साहब ह सिनेमा के आलोचना करके जियाराम संग गोठियावत गोठियावत अपन घर लान ले रिहिसे। भोजन के समय होगे रिहिसे, दुनो झिन संघरा खाये बर बइठिन। जियाराम ल उहां के भोजन बहुत स्वादिष्ट लगिस किहिस-हमर इहां तो जब ले महराज अलग होये हे खाना खाये के मजा ही नइ आवय। फूफू जी पक्का वैष्णवी (सादा) भोजन बनाथे। जबरदस्ती खा लेथंव, फेर खाना डाहर देखे के मन नइ करय।

डॉक्टर - हमर घर ले जब घर म खाना पकथे, त एकरो ले जादा स्वादिष्ट होथे। तोर फूफूजी ह तो गोंदली-लहसून नइ छूअत होही? 

जियाराम - हंव साहब, उबाल के रख देथे। लाला जी ल तो एकर थोरको परवाह ही नइ राहय कि कोन ह खाथे या नही। इही पाये के तो महराज ल अलग करे हे। अगर रुपया नइ हे, त गहना कहा ले बनथे? 

डॉक्टर -अइसन बात नोहे जियाराम, ओकर आमदनी सचमुच बहुत कम होगे हे। तंय ओला बहुत तंग करथस। 

जियाराम - (हंस के) मंय ओला तंग करथंव? मोर ले किरिया खवा ले, ओला कभू कुछु काही काहत होहूं ते। मोला बदनाम करे बर ओला बीड़ा उठा ले हे। बिना मतलब के मोर पीछू-परे रहिथे। इहां तक ले कि मोर संगवारी मन ले घलो ओला चिढ़ हे। आपे सोचो, संगवारी के बिना कोनो जिन्दा रहि सकथे? मंय कोई लुच्चा नो हंव कि लुच्चा मन संग संगत करंव, फेर ओह त मोर संगवारी मन के सेती ही रोज सताथे। काली तो मंय ह साफ कहि दे हंव-मोर संगवारी मन घर आही, कोनो ल अच्छा लगे या बुरा। जानवरः ह घनो हर बखत काकरो घौंस नइ सहि सकय।

डॉक्टर - मोला तो भई ओकर उपर बड़ा दया आथे। ये उमर ओकर आराम करे के रिहिसे। एक तो बुढ़ापा, उपर ले जवान बेटा के शोक, सेहत घलो अच्छा नही हे। अइसे आदमी का कर सकथे? ओह जउन भी थोर बहुत करथे, उही बहुत हे। तंय अभी अऊ कुछु नइ कर सकस, त कम से कम अपन आचरण ले तो ओला खुश रख सकथस। डोकरा मन ल खुश करना जादा कठिन काम नइ हे। यकीन कर, तुंहर हंसई बोलई ह ओला खुशा करे बर काफी हे। अतना पूछे ले तोर का खरचा होथे बाबू जी आपके तबीयत कइसे हे? ओह तोर ये उदण्डता देखके मने मन हलाकान रहिथे। मंय तोर करा सिरतोन काहत हंव, कतनो घांव रो चुके हे। ओह मान ले बिहाव करे म गलती करे हे यहू ल ओह स्वीकार करथे। फेर तंय अपन कर्तव्य ले काबर मुंहु मोड़थस? ओह तोर पिता आय, तोला ओकर सेवा करना चाही। एक बात भी अइसे मुंहु ले नइ निकालना चाही जेकर ले ओकर दिल ह पीरा पहुंचय। ओला ए खियाल करे के मौका ही काबर देना कि सब मोर कमई खाने वाला हे, बात पुछइया कोनो नइ हे। मोर उपर तोर ले कहूं जादा हे जिम्मेदारी हे जियाराम, फेर आज तक ले मंय ह अपन पिताजी के कोनो भी बात म जवाब नइ दे हंव। ओह आजो घलो मोला खिसियाथे, तभो ले मुड़ी गड़िया के सुन लेथंव। जानथंव, ओह जउन कुछ काहत हे, मोर भला बर काहत हे। माता-पिता ले बढ़ के हमर हितैषी कोन हो सकथे? उंकर रिन ले कोन उरिन हो सकथे

जियाराम बइठे रोवत रिहिसे। अपन करनी ओला साफ नजर आवत रिहिसे। अतना पछतावा ओला बहुत दिन ले नइ होय रिहिसे। रोक के डॉक्टर साहब ल किहिस-मोला बहुत लाज लागत हे। दूसर मन के बहकावा म आ गे रेहेंव। अब आप ल मोर एको कनिक शिकायत सुने बर नइ मिलय। आप पिताजी ले मोर अपराध के क्षमा देवा दव। मंय सचमुच बड़ा अभागा अंव। ओला मंय ह बिक्कट सताये हंव। ओला केहे के किरपा करबे मोर अपराध ल क्षमा कर देवय नही ते मंय ह मुंहु म कालिख (केरवस) पोत के कहूं निकल जहूं, डूब मरहूं।

डॉक्टर साहब ह अपन उपदेश के जियाराम उपर प्रभाव ल देख के खुश रिहिसे। जियाराम ल गला लगा के बिदा करिस। 

जियाराम घर पहुंचिस त ओतका बेर ग्यारह बज गे रिहिसे। मुंशीजी ह भोजन करके अभी बाहिर आये रिहिसे। ओला देखते भार किहिस-जानथस के बजे हे? बारह बजत हे। 

जियाराम बड़ा नम्रता ले किहिस-डॉक्टर सिन्हा मिल गे रिहिसे। ओकर संग उंकर घर चल दे रेहेव। ओह खाना खाये बर जिद करिस, मजबूरन खाना परिस। इही पाये के देरी होगे। 

मुंशीजी - डॉक्टर सिन्हा जी करा दुखड़ा रोये बर गे रेहे होबे या अउ कोई दूसर काम रिहिसे। 

जियाराम के नम्रता के चवन्नी भाग उड़ गे, किहिस-दुखड़ा रोये के मोर आदत नइ हे। 

मुंशीजी - एकोकनी नही, तोर मुंह म तो जुबान घलो नइ हे। मोर कर जउन मन तोर बारे म कहिथे त का उमन फोकटे फोकट बात बना के काहत होही?

जियाराम - दूसर दिन के बारे म मंय नइ काहंव, फेर आज डॉक्टर सिन्हा के घर कोई अइसे बात नइ केहे हंव जेला अभी आपके आघू म नइ कही सकहूं। 

मुंशीजी - बड़ खुशी के बात आय, बहुत खुशी होइस। आज ले गुरुदीक्षा ले ले हस का? 

जियाराम के नम्रता के एक चवन्नी अउ गायब होगे। मुड़ी उठा के किहिस-मनखे बिना गुरुदीक्षा ले घलो अपन अपन गलती बर लजा सकथे। अपन सुधार बर करे बर गुरु मन्त्र कोनो जरुरी चीज नोहे!

मुंशीजी - अब तो लुच्चा मन नइ संघरही?

जियाराम - आप कोनो ल लुच्चा काबर कहिथस, जब तक अइसन केहे बर आप करा कोनो सबूत नइ हे?

मुंशीजी - तोर संगवारी मन सब लुच्चा-लफंगा हे। एको झिन भला आदमी नइ हे। मंय तोर ले कतनो घांव कहि चुके हंव उमन ल इहां झन सकेले कर, फेर तंय ह सुने नही। आज मंय आखिरी घांव कहि देथंव कि अगर तंय ह ओ बदमाश मन ल जमा करबे, त मोला पुलिस के सहायता ले बर परही। 

जियाराम के नम्रता के एक चवन्नी अउ गायब होगे। खिसियाके किहिस-बने बात ए, पुलिस के सहायता ले ले। देखथन, पुलिस का करथे? मोर संगवारी मन म आधा ले जादा पुलिस के आफिसर मन के ही बेटा आय। जब आपे मोर सुधार करे बर तुले हव त मंय फोकट काबर कष्ट उठावंव?

अइसे काहत जियाराम ह अपन कुरिया म चले गे अउ एक क्षण के बाद हारमोनियम के मधुर स्वर बाहिर आये धर लिस।

अपन पिताजी बर आदर के जउन दीया जलाये रिहिसे ओह काटा कस ताना ले एक झोंका म बुझा गे। अड़े घोड़ा ल पुचकारे ले आगू बढ़े बर जार मारे बर धर लेथे फेर हण्टर के परते भार फेर अड़गे ताहन गाड़ी ल पीछू ढकेले बर धर लिस!

उन्नीस


अब तो सुधा के संग निर्मला ल घलो आना पड़िस। ओह तो मइके म कुछ दिन अउ रहना चाहत रिहिसे फेर दुखी सुधा ह अकेल्ला कइसे रहितिस। आखिर ओला आना ही परिस। रुक्मिणी ह मूंगी ल किहिस-देखत हस, बहू कइसे मइके ले निखर के आये हे। 

मूंगी ह किहिस-दीदी महतारी के हाथ के रोटी लड़की मन ल बहुत बढ़िया लगथे। 

रुक्मिणी - ठीक काहत हस मूंगी खवाये बर तो बस महतारी ह जानथे।

निर्मला ल अइसे लगिस कि घर के कोनो मनखे ओकर ले आये ले खुश नइ हे। मुंशीजी ह खुशी तो बिक्कट देखइस, फेर हिरदे के चिंता ल लुका नइ सकिस। नोनी (बच्ची) के नाम सुधा ह आशा रख दिस। ओह आशा के मुरती कस रिहिस घलो। ओला देख के सबो चिंता भाग जावत रिहिसे। मुंशीजी ह ओला गोद म लेना चाहिस, त रोये बर धर लिस, दउँड़ के महतारी ले लिपट गे, जानो मानो पिताजी ल चिन्हबे नइ करय। मुंशीजी ह मिठाई ले ओला भुलवारना चाहत रिहिसे। घर म कोनो नौकर तो रिहिस नही, जाके सियाराम ल दु आना के मिठई लाये बर किहिस।

जियाराम घलो बइठे रिहिसे, जियाराम ह अपन पिताजी के बात ल सुन के किहिस-हमर मन बर तो कभू मिठाई नइ आवय।

मुंशीजी ह झंुझलाके किहिस-तुमन लइका नइ हव।

जियाराम - त का डोकरा अन? मिठाई मंगवा के रख दे ताहन पता चल जही कि लइका अन ते डोकरा अन। निकाल चार आना, आशा के परसादे हमरो भाग खुल जही।

मुंशीजी मोर करा अभी पैसा नइ हे, जा सिया जल्दी जा।

जियाराम - सिया नइ जावे काकरो गुलाम नइ हे। आशा अपन बाप के बेटी आय, त वहू ह घलो अपन बाप के बेटा आय।

मुंशीजी - का फालतू के बात करथस। नानकुन नोनी के बराबरी करत तोला लाज नइ लागय? जा सियाराम ये ले।

जियाराम - झन जाबे सिया! तंय काकरो नौकर नो हस।

सिया बड़ा असमंजस म परगे। काकर कहना ल माने। आखिर म ओह जियाराम के कहना ल माने बर तय करिस। बाप जादा ले जादा खिसिया दिही, जिया ह तो मारही, ओकर बाद ओह काकर करा फरियाद ले के जाही। किहिस-मंय नइ जावंव।

मुंशीजी ह धमका के किहिस-अच्छा त सुन ले मोर करा कुछु चीज मांगे बर झन आबे। 

मुंशीजी खुद बाजार चले गे अउ एक रुपया के मिठाई खरीद के लहुटिस। दु आना के मिठाई मांगत ओला लाज लागिस। हलवाई ओला चिन्हत रिहिसे। दिल से का कही?

मिठाई ल धर के मुंशीजी ह भीतर चले गे। सियाराम ह मिठाई के एक बड़े से दोना देखिस ताहन बाप के कहना ल नइ माने के सेती ओला भारी दुख होइस। अब ओह कोन मुंहु ले मिठाई ले बर अन्दर जाही। बड़ा गलती होगे हे। ओह मने मन जियाराम के मार के डर अउ मिठाई के मिठास के तुलना करे बर धर लिस।

अचानक मूंगी ह दु ठन प्लेट (तश्तरियां) दुनो के आघू म लाके रख दिस। जियाराम ह खिसिया के किहिस-एला उठा के लेग जा।

मूंगी - काबर खिसियावत हस, का मिठाई बने नइ लागै?

जियाराम - मिठाई ह आशा बर आये हे, हमर मन बर नइ आये हे? लेग जा, नही ते मंय सड़क म फेंक दुहूं। हम्मन तो पइसा-पइसा बर तरसत रहिथन अउ इहां रुपया भर के मिठई आथे।

मूंगी - तंय खा ले सिया बाबू येह भले मत खावय।

सियाराम ह डर्रावत-डर्रावत हाथ बढ़ाये भर रिहिसे ओतने म जियाराम ह खिसिया के किहिस-मिठई ल झन छू, नही ते हाथ तोड़ के रख दुहूं। लालची कहीं के।

सियाराम ह जियाराम के घुस्सा ल देख के डर्रा गे, मिठई खाये के हिम्मत नइ होइस। निर्मला ह ए किस्सा ल सुनिस ताहन दुनो लड़का मन ल मनाये बर गिस। मुंशीजी जबरदस्त कसम रख दिस।

निर्मला - आप समझव नही, ये सबो घुस्सा मोर बर आय।

मुंशीजी - गलती होगे। ए सोच के जादा कड़ाई नइ करेव कि लोगन मन कही, बिना महतारी के लइका ल सतावत हे, नही ते एकर सबो शरारत ल मिनटो म निकाल दव।

निर्मला - इही बदमाशी के तो मोला डर हवे।

मुंशीजी - अब नइ डर्रावव, जउन ल जउन कहना हे कहे।

निर्मला - पहिली तो अइंसन नइ रिहिन हे।

मुंशीजी - सुनत हस, कहिथे कि आपके लड़का जब मौजूद रिहिसे त आप शादी काबर करेव। अइसन काहत घलो ओला संकोच नइ होवय कि आप मन मंसाराम ल जहर दे दे हव। एमन लड़का नोहे बल्कि बैरी आय।

जियाराम ह दरवाजा म लुका के खड़े रिहिसे। मिठई बर पति पत्नी के बीच म का बात होथे, इही ल सुने बर आये रिहिसे। मुंशीजी के आखरी बात ल सुनके ओकर ले रहि नइ गिस। किहिस-बैरी नइ होतिस, त ओकर पीछू काबर परतेस। जउन बात ल ए समे काहत ले समझ के बइठे हंव। भइया नइ समझे रिहिसे, तिही पाय के धोखा खा गे। हमर संग तोर दार नइ गलय। सरी दुनिया काहत हे कि भाई साहब ल जहर दे हे। मंय कहिथंव त आप ल काबर घुस्सा आथे?

निर्मला तो सन्न रहिगे। अइसे लगत रिहिसे कि कोनो ह ओकर देह म अंगारा डार दे हे। मुंशीजी ह खिसिया के जियाराम ल चुप कराना चाहिस, जियाराम बिना डर्राये खड़ा हो के ईंटा के जवाब पथरा ले देवत रिहिसे। इहां तक ले कि निर्मला ल घलो ओकर उपर घुस्सा आ गे। ये काली के छोकरा अइसे देखावत हे जानो मानो घर के पालन पोषण इही करत हे। भौं चढ़ा के किहिस-बस अब बहुत होगे जियाराम, जान डरेंव तंय ह बहुत गुनवान अस, बाहिर जा के बइठ। 

मुंशीजी अब तक तो थोर बहुत दब के बोलय अब तो निर्मला के सपोर्ट मिले बर धर लिस। एकर बाद तो दांत कटर के लपकिस अउ निर्मला ओकर हाथ ल पकड़तिस, एकर पहिली एक थपरा चला दिस। थपरा ह निर्मला के मुंहु ल परिस, थपरा परते भार गीर गे। माथा चकरा गे। मुंशीजी के सुक्खा हाथ म अतना शक्ति रिहिसे। मुड़ी धर के बइठ गे। मुंशीजी के क्रोध अऊ बाढ़ गे ताहन मुटका म मारिस फेर जियाराम ह ओकर हाथ ल धर लिस अउ पीछू डाहर ढकेल के किहिस-दूरिहा ले बात कर, काबर फोकट अपन बेइज्जती करवावत हस। माताजी के लिहाज करत हंव, नही ते देखा देतेंव।

अइसे काहत ओह बाहिर चले गे। मुंशीजी चुपचाप देखत खड़े रिहिसे! ए दरी अगर जियाराम उपर मुटका ह परतिस, तब शायद ओेला हिरदे ल आनंद होतिस जउन बेटा ल कभू गोद म धर के खुश हो जावत रिहिसे, उही बेटा बर आनी बानी के गलत-सलत कल्पना मन म आवत रिहिसे।

रुक्मिणी अब तक तो अपन कुरिया म रिहिसे। अब आ के किहिस-बेटा अपन बरोबर के हो जाये त ओकर उपर हाथ नइ उठाना चाही। 

मुंशीजी ह ओठ चबाके किहिस-मंय एला घर ले निकाल के ही छोड़हूं। भीख मांगे या चोरी करे मोला ओकर से कोई मतलब नइ हे। 

रुक्मिणी - नाक काकर कटही?

मुंशीजी - एकर चिन्ता नइ हे। 

निर्मला - मंय जानतेंव कि मोर आये ले तूफान खड़ा हो जही, ते मंय भूला के घलो नइ आतेंव। अब घलो समे हे, मोला भेज देवव। ए घर म मंय नइ रहि सकय।

रुक्मिणी - तोर बहुत लिहाज करथौं बहू, नही ते आज अनर्थ ही हो जतिस।

निर्मला - अब अउ का अनर्थ होही दीदी जी? मंय तो पांव फूंक-फूंक के पांव रखथंव तभो ले कोनो न कोनो गलती हो जथे। अभी घर म पांव रखत देरी नइ रिहिस कि ए हाल होगे। भगवान ही भला करे। रात कन भोजन करे बर कोनो नइ उठिन, अकेल्ला मुंशीजी भर ह खइस। निर्मला ल आज नवा चिन्ता होगे। जीवन कइसे पार लगही? अपने भर पेट रहितिस ते कोनो फिकर नइ रहितिस। अब तो एक ठिन नवा विपत्ति गला म पर गे रिहिसे। ओह गुनत रिहिसे-मोर नोनी (बच्ची) के भाग्य म का लिखे हस राम?

बीस


चिन्ता फिकर म नींद कहां ले आथे? निर्मला खटिया म करवट बदल रिहिसेे। कतना चाहत रिहिसे कि कइसनो करके नींद आ जाये, फेर नींद ह तो नइ आये बर किरिया खा ले रिहिसे। चिमनी ल बूझा दे रिहिसे, खिड़की के दरवाजा खोल दे रिहिसे, टिक टिक करइया घड़ी ल घलो दूसर कुरिया म रख के आगे रिहिसे, तभो ले नींद आये के नामे नइ लेवत रिहिसे। जतना बात सोचना रिहिसे, सब सोच डरे रिहिसे-चिन्ता फिकर के घलो अंत होगे रिहिसे, फेर पलक ह झपकी घलो नइ मारिस ताहन ओह फेर लेम्प जला के किताब पढ़े बर धर लिस। दु-चार ही पेज पढ़े रिहिसे होही ताहन झपकी आ गे। किताब खुले कि खुले रहि गे। 

अचानक जियाराम ह कमरा म कदम रखिस। ओकर पांव थर थर कांपत रिहिसे। ओह कुरिया म खाल्हे उप्पर ल देखिस। निर्मला ह सुते रिहिसे, ओकर मुड़सरिया करा एक ठन नानकुन पीतल के सन्दूक ल उठइस ताहन दउंड़त कुरिया ले बाहिर निकल गे। ठउंका उही समे निर्मला के आँखी खुल गे। चौंक के उठ खड़ा होगे दरवाजा करा आ के देखिस। कलेजा धक्क ले होगे। का येह जियाराम आय? मोर कुरिया म का करे बर आये रिहिसे। कहूं मोला धोखा तो नइ होय हे? शायद दीदी जी के कुरिया ले आये रिहिस होही। इहां ओकर का काम रिहिस होही? शायद मोर ले कुछु केहे बर आये रिहिस होही, फेर ए बखत का करे बर आये रिहिस होही? एकर नीयत का हे? ओकर दिल कांप गे।

मुंशीजी ह उपर छत म सुतत रिहिसे। छत म बाउंड्री (मुंडेर-घेरा) नइ होये के सेती निर्मला छत म नइ सुत सकत रिहिसे। ओह गुनिस आ के ओला जगा दंव, फेर उप्पर जाये के हिम्मत नइ होइस। सक्की आदमी आय, कोन जनी का समझ बइठही अउ का करे बर तैयार हो जही? लहूट के फेर किताब पढ़े बर धर लिस। बिहनिया पूछे ले अपने आप पता चल जही। कोन जाने मोला धोखा होय होही। नींद म कभू कभू धोखा हो जथे, बिहनिया पूछ के सोचे के बाद घलो ओला नींद नइ अइस।

बिहनिया ओह नाश्ता धर के खुदे जियाराम करा गिस, त ओह निर्मला ल देखे के चौक गे। रोज तो मूंगी ह आवत रिहिसे, आज एह काबर आवत हवे? निर्मला डाहर देखे के ओकर हिम्मत नइ होइस।

निर्मला ह ओकर उपर पूरा विश्वास करके देखत पूछिस-रात कना तंय मोर कुरिया (कमरा) म गे रेहेस? 

जियाराम ह अचरज होके किहिस-मंय, भला मंय रात कन का करे बर जातेंव? कोई गे रिहिसे का?

निर्मला ए भाव ले किहिस मानो ओला ओकर बात उपर भरोसा होगे-हव, मोला अइसे मालूम होइसे कि कोनो मोर कुरिया ले निकले हे। मंय ओकर मुंह तो नइ देखेंव फेर ओकर पीठ देख के अनुमान लगायेंव कि शायद तंय कुछु काम बर आये रेहे होबे। एकर पता कइसे चले कि कोन रिहिसे? कोई रिहिसे जरुर एमा कोनो शक नइ हे।

जियाराम अपन आप ल निर्दोष सिद्ध करे के इच्छा ले किहिस-मंय तो रात कन थियेटर देखे बर चल दे रेहेंव। उहां ले लहुंटेव त एक झिन संगवारी घर रुक गे रेहेंव। थोरिक बेर होय हे मोला लहूटे। मोर संग संगवारी मन घलो रिहिन हे। जेकर ले भी पूछे बर जी करे, पूछ ले। हां भई मंय बिक्कट डर्राथंव। कहूं अइसे झन होवय, कोनो चीज ह गायब होगे होही। ओकर इल्जाम मोर उपर लगे। चोर ल तो कोनो पकड़ नइ सकय, मोरे नाम होही। बाबू जी ल तो आप जानतेच हव। मोला मारे बर दउंडही। 

निर्मला - तोर नाम काबर लगही? अगर तिही होथे तभो तोर उपर चोरी के इल्जाम नइ लगतिस। चोरी तो दूसर के जिनिस के करे जाथे अपन चीज के कोनो चोरी नइ करय।

अभी तक निर्मला के नजर ह अपन सन्दूक उपर नइ परे रिहिसे। भोजन बनाये बर धर लिस। जब वकील साहब कचहरी (कछेरी) चल दिस ताहन ओह सुधा करा मिले बर चल दिस। एती कतनो दिन ले मुलाकात नइ होय रिहिसे फेर रात वाले घटना उपर बिचार घलो बदलना रिहिसे। मूंगी ल किहिस-कुरिया ले गाहना के बक्सा (सन्दूक) उठा के लान।

मूंगी लहूट के किहिस-उहां तो कोनो करा सन्दूक नइ हे। कते करा रखे रेहेस? निर्मला ह चिढ़ के किहिस-एक घांव म तो तोर संग कभू बूता होबे नइ करय। उहां ले अउ कहां जाही। आलमारी ल देखे रेहेस?

मूंगी - नही बहू जी, आलमारी ल तो नइ देखे हंव, लबारी काबर मार हूं?

निर्मला मुस्कुरा के किहिस-जा देख, जल्दी आ। एक क्षण म मूंगी फेर खाली हाथ लहूट के अइस-आलमारी म घलो नइ हे। अब जिहां कहिबे उहां ल देखहूं। निर्मला खिसियावत उठ के किहिस-तोला ईश्वर ह आँखी ल काबर देहे। देख, उही कुरिया ले लाथंव कि नही।

मूंगी घलो पाछू-पाछू कुरिया म गिस। निर्मला मुड़सरिया करा देखिस, आलमारी ल खोलके देखिस। खटिया ल झांक के देखिस ताहन कपड़ा के बड़े सन्दूक ल खोलके देखिस। बक्सा के कोनो करा पता नइ चलिस। अचरज होइस, आखिर बक्सा कहां गे?

अचानक रात वाले घटना ह बिजली कस ओकर आँखी म चमक गे। कलेजा ह धक्क ले करिस। अब तक ले निश्चिंत हो के खोजत रिहिसे। अब तो हड़बड़ाए बर धर लिस। उलट-पुलट के चारो डाहर ल खोजे बर धर लिस। कहूं पता नइ चलिस। जिहां खोजना रहिस उहां खोजिस अउ जिंहा नइ खोजना रिहिस वहू जघा ल खोजिस। अतना बड़े सुन्दर चद्दर ल घलो झर्रा के देखिस। एकक कनी म चेहरा के चमक ह कम होवत रिहिसे। सन्दूक ल कतनो खोजिस तभो ले नइ मिलिस। आखिर म उदास हो के ओह छाती म एक मुटका मारिस अउ रोये बर धर लिस। 

गहना नारी के पूंजी होथे। पति के अउ कोनो पूंजी उपर ओकर अधिकार नइ होवय। एकरे ओला ताकत अउ गौरव रथे। निर्मला करा पांच-छ हजार के गहना रिहिसे। जब ओला पहिर के निकलय, त ओतका समे तक खुशी ले ओकर हिरदे ह खिले रहय। एक-एक गहना मानो विपत्ति अउ बाधा ले बचाये खातिर एक-एक ठिन हथियार रिहिसे। आजे रात कन ओह सोचे रहिसे, जियाराम के नौकरानी बन के नइ रहय। ईश्वर न करे कि ओह काकरो करा हाथ फैलाये। इही पतवार ले ओह अपन डोंगा ल घलो पार लगा लिही अउ अपन नोनी (बच्ची) ल घलो कोनो न कोनो घाट पहुंच दिही। ओला कोन बात के चिन्ता हे। ओला तो कोनो ह ओकर ले नइ झटक(छीन) लिही। आज येह मोर सिंगार आय, काली इही ह मोर बर आधार बन जही। ए सोच के ओकर हिरदे ल कतना सान्तवना मिले रिहिसे। ओ सम्पत्ति आज ओकर हाथ ले निकल गे। अब ओह बिना आधार के होगे। संसार म ओकर बर कोनो आश्रय कोनो सहारा नइ रिहिसे। ओकर आशा के आधार ह जड़ ले कट गे, ओह फूट-फूट के रोये बर धर लिस। ईश्वर, तोला अतना घलो नइ देखे गिस? मोर असन दुखियारिन ल तंय ह अइसने अपंग बना दे रेहेस, अब आँखी ल घलो फोर देस। अब ओह काकर करा हाथ फैलाही, काकर दरवाजा म भीख मांगही। पछीना (पसीना) ले ओकर देंह ह भींग गे, रोवत-रोवत आँखी फूल गे रिहिसे। निर्मला ह मुड़ी झुका के रोवत रिहिसे। रुक्मिणी ओला धीरज देवावत रिहिसे, ओकर बाद घलो ओकर आंसू थम्हत (रुकत) नइ रिहिसे। दुख के ज्वाला कम नइ होवत रिहिसे। 

तीन बजे जियाराम ह स्कूल ले लहूटिस। निर्मला ओकर आये के खबर पाके पगली कस उठिस अउ ओकर कुरिया के दरवाजा म आके किहिस-बेटा, मजाक करे होबे ते दे दे। दुखियारिन ल सता के का पाबे?

जियाराम ह थोकिन देर बर डर्रा गे। चोर कला म ओकर एहा पहिली प्रयास रिहिसे। अइसन कठोरता, जेकर ले हिंसा म मनोरंजन होथे, अभी तक ओला मिले नइ रिहिस हे। मान ले ओकर करा सन्दूक रहितिस अउ अतना मौका मिलतिस ते ओला मुड़सरिया करा रख के आ जतिस, ओह कभू ए मौका ल नइ छोड़तिस, फेर सन्दूक ह ओकर हाथ ले निकल चुके रिहिसे। संगवारी मन ओला गहना के दुकानदार करा पहुंच के ओला औने पौने बेच घलो डरे रिहिसे। चोर मन के रक्षा लबारी के सिवा अउ कोन कर सकथे। किहिस-माताजी, मंय ह आप ले कहूं अइसन दिल्लगी करहूं? आप अभी तक मोर उपर शक करत आवत हस। मंय ह कहि चुके हंव कि मंय रात कन घर म नइ रेहेंव, तभो ले आप ल यकीन नइ आवय। बिक्कट दुख के बात आय कि मोला आप अतना नीच समझथस।

निर्मला आंसू पोछत किहिस-मंय तोर उपर शक नइ करंव बेटा, तोर उपर चोरी के इल्जाम नइ लगावंव। मंय ह समझेंव शायद दिल्लगी करे होबे। 

जियाराम उपर ओह चोरी के संदेह कइसे कर सकत रिहिसे? दुनिया वाले मन तो इही किही कि लड़का के महतारी ह मर गे हे, तिही पाय के ओकर उपर चोरी के इल्जाम लगावत हे। मोरो मुहुं म तो कालिख पोताही। 

जियाराम ह आश्वासन देवत किहिस-चल मंय देखंव, आखिर कोन ह लेगे हे? चोर कते रस्ता ले अइस?

मूंगी - भैया, तंय तो चोर मन के आये के बात करथस। उमन मुसुवा के बिला ले घलो खुसर जथे, इहां तो चारो डाहर खिड़की ही खिड़की हवय। 

जियाराम - बने ढंग ले खोजे हंव?

निर्मला - सबो घर ल तो छान मारे हंव, अब अउ कहां खोजे बर कहिथस?

जियाराम - आप मन तो मुर्दा बरोबर सुत घलो जाथव। 

चार बजे मुंशीजी ह घर अइस ताहन निर्मला के दशा देख के पूछिस-तबीयत कइसे हे? कहूं दरद पीरा तो नइ हे? काहत-काहत ओह आशा ल गोदी म उठा लिस। 

निर्मला ह कोनो जवाब नइ दे सकिस फेर रोये बर धर लिस।

मूंगी ह किहिस-अइसन कभू नइ होय रिहिसे। मोर सरी उमर इही घर म कटगे। आज तक ले एको पइसा के चोरी नइ होय हे। दुनिया इही कही कि सब मूंगी के काम आय, अब तो भगवाने ह मालिक हे। 

मुंशीजी ह कोट के बटन खोलत रिहिसे, फिर से बटन बन्द करत किहिस-का होगे? कोनो जिनिस के चोरी होगे का?

मूंगी - बहूजी के सबो गहना के चोरी होगे। 

मुंशी जी - कते करा रखे रिहिसे? 

निर्मला ह सुसकत रतिहा के सबो घटना के बयान कर दिस, फेर जियाराम कस चेहरा वाले आदमी ल अपन कुरिया (कमरा) ले निकल के बात ल नइ किहिस। मुंशीजी ह ठंडी सांस खीच के किहिस-ईश्वर घलो बड़ा अन्यायी आय। जउन मरे हे उही ल मारथे। अब अइसे लागथे अशुभ दिन आ गे हे। मगर चोर कोन डाहर ले अइस होही? कोनो करा दीवार म छेद (सेंध) नइ हे अउ कोनो डाहर ले आये के रद्दा घलो नइ हे। मंय ह तो कोनो पाप नइ करे हंव, जेकर मोला ये सजा मिलत हे। घेरी बेरी बरजत रेहेंव, गहना ल सन्दूक (लकड़ी के बक्सा) म मत राख कहि के, मगर कोन ह सुनथे। 

निर्मला - मंय का जानत रेहेंव कि अइसन पहाड़ टूट परही।

मुंशी जी - अतना तो जानत रेहे कि सबो दिन ह एके जइसे नइ राहय। आज बनवाये बर जाहूं त दस हजार ले कम नइ लगही। आजकाल अपन जउन हालत हे, ओह तोर ले छूपे नइ हे, ले दे के खरचा ह मुश्किल ले चलथे, गहना कहां ले बनही? जाथंव, पुलिस म रिपोर्ट लिखा के आथंव, फेर मिले के उम्मीद ल छोड़ दे।

निर्मला विरोध के भाव ले किहिस-जब जानत हस पुलिस म इत्तिला करे ले कुछु नइ होवय, त फेर काबर जावत हस?

मुंशीजी - दिल नइ माने अउ का? अतेक बड़े नुकसान उठा के कलेचूप तो नइ बइठे जा सके। 

निर्मला - मिलने वाला होतिस त जाते ही काबर? तकदीर म नइ रिहिसे, त कइसे रहितिस?

मुंशीजी - तकदीर म होही, ते मिल जही, नही तो हमर हाथ ले गे हे जान ले।

मुंशीजी ह कुरिया ले निकलिस। निर्मला ह ओकर हाथ पकड़के किहिस-मंय काहत हंव, मत जा कहूं अइसे झन हो, कि ले के बदला म देबर पर जाये।

मुंशीजी ह हाथ छोड़ा के किहिस-तहूं ह लइका मन कस जिद करत हस। दस हजार के नुकसान अइसने आय, जेला मंय अइसने उठा लवं। मंय रोवत नइ हंव, फेर जउन मोर हिरदे म बीतत हे, ओला महूं ह जानथंव। ये चोट मोर कलेजा म लगे हे। मुंशीजी अउ कुछु नइ कहि सकिस। समस्या ल हल करे बर परही। ओह कुरिया ले तेज रफ्तार म निकल के थाना चल दिस। थानादार ओकर बहुत लिहाज करय। एक घांव रिश्वत के मुकदमा म बरी करा चुके रिहिसे। थानादार के नाम अलायार खां रिहिस। 

संझा होगे रिहिसे। थानादार ह मकान के आघु-पाछू ल घूम-घूम के देखिस। अन्दर जाके निर्मला के कुरिया ल गौर से देखिस। उपर छत के जांच करिस। मुहल्ला के दू-चार मनखे मन ले कलेचूप बात करिस ताहन मुंशीजी ल किहिस-जनाब, खुदा के कसम, येह कोनो बाहिर के आदमी के काम नोहे। खुदा के कसम, अगर कोनो बाहिर के मनखे निकलही ते आजे ले थानेदारी करना छोड़ दुहूं। आपके घर म कोनो आदमी तो नइहे तेकर उपर आप ल शक होवय।

मुंशीजी - घर म तो आजकल सिरिफ एक झन काम करइया (महरी) हे। 

थानादार - अजी, ओह पगली हे। येह कोनो बड़े शातिर के काम आय, खुदा के कसम।

मुंशीजी - त घर म अउ कोन हे? मोर दुनो लड़का हे, गोसइन हे अउ बहिनी हे। ये मन म काकर उपर शक करंव?

थानादार - खुदा के कसम, घर ही के कोनो आदमी के काम आय, चाहे ओह कोनो होवय इन्शा अल्लाह, दु-चार दिन म मंय आप ल एकर खबर कर दुहूं। ये तो नइ कहि सकंव कि सबो माल ह मिल जही, फेर खुदा के किरिया खावत हंव, चोर ल जरुर पकड़ के देखाहूं।

थानादार चल दिस ताहन मुंशीजी ह आके निर्मला ले ओकर बात ल किहिस। निर्मला ह घबरा गे-आप थानादार ल कहि दव कि जाँच मत करय, आपके पांव जरत हंव।

मुंशीजी - आखिर काबर? 

निर्मला - अब काबर बतावंव, ओह काहत हे कि घरे के काकरो काम आय।

मुंशीजी ओला काहन दे।

जियाराम अपन कुरिया म बइठे भगवान के सुरता करत रिहिसे। ओकर मुंहु म डर समाये रिहिसे। सुने रिहिसे कि पुलिस वाला मन चेहरा ले जान डरथे। बाहिर निकले के हिम्मत नइ होवत रिहिसे। दुनो मनखे म का बात होवत हे, येला जाने बर ओह छटपटावत रिहिसे। जइसने थानेदार के जाये के बाद मूंगी कुछु काम ले बाहिर निकलिस। जियाराम पूछिस-थानादार का काहत रिहिसे मूंगी?

मूंगी ह तीर म आके किहिस-थानादार काहत रिहिसे, घर ही के कोनो आदमी के काम आय, बाहिर के कोनो नोहे।

जियाराम - बाबू जी ह कुछु नइ किहिस? 

मूंगी - कुछु तो नइ किहिस, खड़े हूं-हूं काहत रिहिसे, घर म एक झिन मूंगी ही हे जउन गैर ए अउ तो सब अपनेच आय।

जियाराम - महूं तो गैर अवं, तिही काबर?

मूंगी - तंय गैर काबर भइया?

जियाराम - बाबूजी ह थानादार ल नइ किहिस कि घर म काकरो उपर शक नइ हे।

मूंगी - कुछु तो काहत नइ सुने हंव बिचारा थानादार ह किहिसे-मूंगी तो पगली हे, ओ का चोरी करही। बाबूजी तो मोला फंसा दे ही रहितिस।

जियाराम - तब तो तहूं ह बांच गेस। अकेल्ला अब मिही ह बांचे हंव। तिही बता, तेह मोला ओ दिन घर म देखे रेहेस।

मूंगी - नही भैया तंय तो थियेटर देखे बर गे रेहेस। 

जियाराम - गवाही देबे न?

मूंगी - ये का काहत हस भइया? बहूजी जांच बंद करा दिही।

जियाराम - सिरतोन?

मूंगी - हव भैया, घेरी बेरी काहत हे जाँच मत कराओ। गहना गे हे जावन दे, फेर बाबूजी मानते नइ हे।

पांच छै दिन तक जियाराम ह भर पेट भोजन नइ करिस। कभू-कभू दु-चार कौरा खा लेवत रिहिसे, कभू कहि देवय, भूख नइ हे। ओकर चेहरा के रंग ह डर के मारे उडे़ राहत रिहिसे। रतिहा ह जागत-जागत कटय, हमेशा थानादार के शक के डर ह बने रहे। ओह यदि जानतिस कि मामला ह अतना तूल खींचही त कभू अइसन बूता नइ करतिस। ओह तो समझे रिहिसे कि कोनो चोर उपर शक होही। मोर डाहर काकरो धियान नइ जाही, फेर अब तो भण्डा फूटत दिखत हे। अभागा थानादार ह जउन ढंग ले छान-बीन करत रिहिसे ओकर ले जियाराम ल बड़ा शक होवत रिहिसे।

सात दिन बाद संझा घर लहुटिस त भारी चिन्ता म रिहिसे। आज तक ओला बांचे के थोर बहुत आशा रिहिसे। माल अभी तक कहूं बरामद नइ होय रिहिसे, फेर आज ओ माल के बरामद होये के खबर मिल गे रिहिसे। अब तो थानादार ह कांस्टेबल के संग आवत होही। बचे के कोनो उपाय नही। थानादार ल रिश्वत दे ले सम्भव हे मुकदमा ल दबा दे, रुपया हाथ म रिहिसे, फेर का बात ह छिपे रही। अभी माल बरामद नइ होये हे, तभो ले सबो शहर म अफवाह उड़ गे रिहिसे कि बेटा ह गहना ल चोराये हे। गहना मिले के बाद तो गली-गली बात ह बगर जही ताहन ओह कोनो ल मुंहु देखाये के लइक नइ रही।

मुंशीजी कचहरी ले लहूटिस त बहुत घबराये रिहिसे। मुड़ी थाम के खटिया उपर बइठ गे।

निर्मला किहिस-कपड़ा काबर नइ उतारत हस? आज तो अउ दिन ले देरी होगे हे। 

मुंशीजी - का कपड़ा उतरंव? तंय ह सुने?

निर्मला - का बात ए? मंय तो कुछु नइ सुने हंव?

मुंशीजी - माल बरामद होगे। अब जिया के बचना मुश्किल हे।

निर्मला ल आश्चर्य नइ होइस। ओकर चेहरा ले अइसे मालूम होवत रिहिसे, जानो मानो ओला ये बात मालूम रिहिसे। किहिस-मंय तो पहिली ले काहत रेहेंव कि थाना म इत्तला झन कर।

मुंशीजी - तोला जिया उपर शक रिहिसे?

निर्मला - शक कइसे नइ रहितिस, मंय ओला अपन कुरिया ले निकलत देखे रेहेंव।

मुंशीजी - त मोला बताये काबर नही?

निर्मला - ये बात मोर केहे के नइ रिहिसे। मंय आप ल बतातेंव त आपे के मन म ख्याल आतिस कि जलन म चोरी के आरोप लगावत हे। बता ए खयाल आतिस ते नइ आतिस लबारी झन मारबे।

मुंशीजी - सम्भव हे, मंय इंकार नइ सकंव। तभो ले ओ दशा म तोला मोला बता देना रिहिसे। रिपोर्ट के नौबत नइ आतिस। रिपोर्ट बर तंय ह मना करे, फिकर करे, फेर मंय ये नइ सोचे रेहेंव कि परिणाम का होही? मंय अभी थाना चल देथंव। अलायार खां आवत होही। 

निर्मला ह हताश हो के पूछिस-फेर अब? 

मुंशीजी आकाश डाहर ल देखत किहिस-फेर जइसे भगवान के इच्छा। हजार-दू-हजार रुपया रिश्वत दे बर होतिस ते शायद मामला दब जतिस फेर मोर हालत ल तो तंय जानते हस। किस्मत खराब हे, मोर करा कुछु नइ हे। पाप तो मंय करे हंव दण्ड कोन भोगही? एक लड़का रिहिस ओकर ओ दशा होइस दूसर के ये दशा होवत हे। नालायक रिहिसे, बदमास रिहिसे, कामचोर रिहिसे फेर रिहिस तो अपनेच लड़का, कभू न कभू सुधर जतिस। ये चोट ल अब मंय नइ सहि सकंव।

निर्मला - अगर कुछु दे देवा के जान बच जही, ते मंय रुपया बेवस्था कर दव।

मुंशीजी - कर सकथस? कतना रुपया दे सकथस? 

निर्मला - कतना ले काम चल जही?

मुंशीजी - एक हजार ले कम म तो शायदे हो पाही। मंय ह एक ठन मुकदमा म ओकर ले एक हजार ले रेहेंव। ओ कसर ल आज निकालही।

निर्मला - हो जही। अभी थाना जावव।

मुंशीजी ल थाना म बिक्कट देर लगिस। एकान्त गोठबात करे के मौका बहुत देर बाद मिलिस। अलायार खां बहुत पुराना घाघ रिहिस। बड़ा मुश्किल से बात बनिस। पांच सौ रुपया ले के घलो अहसान के बोझा मुड़ी म लाद ही दिस। काम होगे। लहूट के निर्मला ल किहिस-ले भई, जीत गेस, रुपया तंय ह दे रेहेस, फेर काम मोर जबान ह अइस। बड़ा मुश्किल ले राजी होइस। यहू सुरता रही। जियाराम भोजन कर चुके हे?

निर्मला - कहां, ओह तो अभी घूंम के लहूटे नइ हे।

मुंशीजी - बारह तो बजत होही। 

निर्मला - कतनो घांव जा के देख के आ गेंव। कुरिया ह तो अंधियार हे।

मुंशीजी - अउ सियाराम? 

निर्मला - ओ तो खा पी के सुते हे।

मुंशीजी - ओला पूछे नही-जिया कहां हे।

निर्मला - ओ तो काहत रिहिसे, मोला कुछु बता के नइ गे हे।

मुंशीजी - थोकिन शक होइस। सियाराम ल जगा के पूछिस-तोला जियाराम कुछु बताये नइ हे, कब तक लहुटही? कहां गे हे?

सियाराम - हां, मुड़ी ल खजुवावत अउ आँखी ल रमजत किहिस-मोला तो कुछु नइ बताय हे।

मुंशीजी - कपड़ा सब पहिन के गे हे?

सियाराम - जी नही, कुर्ता अउ धोती पहिर के गे हे। 

मुंशीजी - जाये के बखत खुश रिहिसे?

सियाराम - खुश तो नइ लागत रिहिसे। कतनो घांव अन्दर आये के कोशिश करिस फेर दुआरी ले ही लहूट गे बहुत बेर ले घर के छप्पन (झिपारी, साजन) म खड़े रिहिसे। जाये के बेर आँखी ल पोंछत रिहिसे। एती कतनो दिन ले अक्सर रोवत राहय।

मुंशीजी ह अइसे ठंडी सास लिस, मानो जिनगी म अब कुछु नइ रिहिस ताहन निर्मला ल किहिस-तंय तो जउन करे अपन समझ से भला खातिर, फेर कोनो बैरी घलो मोर उपर एकर ले कठोर पीरा नइ दे सकतिस। जियाराम के माता होतिस, त का ओह अइसन संकोच करतिस? कभू नही। 

निर्मला किहिस-थोकिन, डॉक्टर साहब के इहां काबर नइ चल देते? शायद उहां बइठे होही। कतनो लड़का रोज आथे, उंकर मन ले पूछव, शायद कुछ पता लग जाये। फंूक-फूंक के चले के बाद घलो दोष लग ही गे।

मुंशीजी ह मानो खुले खिड़की ले किहिस-हव, जावत हंव अउ का करहूं।

मुंशीजी बाहिर अइस त देखथे-डॉक्टर सिन्हा खड़े हे। चौंक के पूछिस-का आप बहुत देर ले खड़े हव?

डॉक्टर - जी नही, अभी आये हंव। आप अभी कहां जावत हव? साढे़ बारह बज गे हे।

मुंशीजी - आपे करा आवत रेहेंव। जियाराम अभी तक घूम के नइ आये हे। आपके डाहर तो नइ गे हे रिहिसे? 

डॉक्टर सिन्हा ह मुंशीजी के दुनो हाथ ल धर के अतना केहे पाये रिहिसे-भाई साहब, अब धैर्य से काम लेवव, कि मुंशीजी ह गोली खाये मनखे कस भुइयां म गिर गे।


इक्कीस


रुक्मिणी ह निर्मला ल खिसिया के किहिस-का बिना पनही के स्कूल जाही?

निर्मला ह नोनी के चूंदी ल गांथत किहिस-मंय का करंव, मोर करा रुपया नइ हे।

रुक्मिणी-गहना बनवाये बर कहां ले रुपया आथे। लड़का मन बर जूता (पनही) बिसाये बर रुपया म आगी लग जथे। दु झिन तो चले गे, का तीसरा ल घलो रोवा-रोवा के मारे के इरादा हे का?

निर्मला ह सांस खींच के किहिस-जेला जिना हे जिये, जेला मरना हे मरे। मंय कोनो ल मारे अउ जियाये बर नइ जावंव। आज कल एकक कनिक बात उपर निर्मला अउ रुक्मिणी म रोज झड़प हो जावत रिहिसे। जब ले सोना चोरी गे हे, निर्मला के स्वभाव बिल्कुल बदल गे हे। अब ओह एक-एक कौड़ी ल सकेले बर धर लिस। सियाराम रोवत-रोवत चाहे जान घलो दे दे फेर ओला मिठाई बर पइसा नइ मिलय। ये बर्ताव सिरिफ सियाराम ही बर नइ रिहिसे बल्कि निर्मला ह खुदे अपन जरुरत मन ल कम करत गिस। धोती जब तक चिरा के कुटका-कुटका नइ हो जतिस तब तक नवा धोती नइ आतिस। महीनो भर ले मुड़ी म चुपरे बर तेल नइ मंगवावत रिहिसे। पान खाये के ओला सउख रिहिसे, कतनो दिन तक पानदान खाली पड़े राहत रिहिसे, इहां तक ले कि नानकुन नोनी बर दूध घलो नइ आवत रिहिसे। नानकुन लइका के भविष्य के विराट रुप ल देख के गुनत बइठे राहय।

मुंशीजी ह अपन आप ल पूरा निर्मला ल सौंप दे रिहिसे। ओकर कोनो काम म दखल नइ देवत रिहिसे। कोन जनी काबर ओकर ले दबे राहय। अब ओह बिना नागा के कचहरी  जावय। अतना मेहनत ओह अपन जवानी म घलो नइ करे रिहिसे। आँखी खराब होगे हे, डॉक्टर सिन्हा ह रात कना पढ़े लिखे बर मना कर दे रिहिसे, पाचन शक्ति पहिली ले कमजोर रिहिसे, अब अउ खराब होगे, दमा के शिकायत घलो पैदा होगे, तभो ले बिचारा ह आधा आधा रात ले काम करय। काम करे बर जी चाहे या न चाहे, तबीयत बने राहय या झन राहय, काम तो करना ही पड़थे। निर्मला ल ओकर उपर थोरको दया नइ आवय। उही ह भविष्य के भारी चिन्ता ह ओकर अंतस के सद्भाव के सर्वनाश करत रिहिसे। कोनो कोनो भिखारी के आवाज सुने के झल्ला जवय। ओह एक कौड़ी घलो खरचा करना नइ चाहय।

एक दिन निर्मला ह सियाराम ल घी लाने बर बाजार भेजिस। मूंगी उपर भरोसा नइ रिहिस, ओकर ले अब कोनो खरीदारी नइ करवावत रिहिसे। सियाराम ल मोलभाव करे के आदत नइ रिहिसे। औने पौने करे बर नइ जानत रिहिसे। लगभग बाजार के सबो काम ल उही ल करे बर परय। निर्मला एक एक चीज ल तौले, जरा से भी कोनो जिनिस कम परे ते ओला लहुटा देवय। सियाराम के बहुत से समय इही मोलभाव म बीत जावय। बाजार वाले ओला जल्दी सामान नइ देवय। आजो घलो उही नौबत अइस। सियाराम अपन हिसाब से बहुत बढ़िया घी, कतनो दुकान ले देख सुन के लाने रिहिसे, फेर निर्मला ह ओला सूंघ के कहि दिस घी खराब हे, वापस कर दे। 

सियाराम ह झुंझला के किहिस-एकर ले बढ़िया घी बाजार म नइ हे, मंय सबो दुकान म देख के लाने हंव।

निर्मला - त का मंय लबारी मारत हंव?

सियाराम - ये तो मंय नइ काहत हंव, फेर बनिया अब घी ल वापिस नइ करय। ओह मोला केहे रिहिसे, जइसन देखना चाहस इहें देख, घी तोर आघू म हे। 

निर्मला ह दांत कटर (घीस कर) के किहिस-घी म साफ चखी मिले हे अउ तंय कहिथस, घी बढ़िया हे। मंय एला रंघनी खोली (रसोई) म नइ लेगंव, तोर मन करे ते लहुटा दे चाहे खा डर।

घी के हांडी छोड़ के निर्मला घर म चले गे। सियाराम ह क्रोध अउ व्याकुलता ले भयभीत होगे। ओह कोन मुंहु ले के लहुटाये बर जाही। बनिया साफ कहि दिही-मंय वापिस नइ लेवंव। तब ओह का करही? तरी-तखार के दस-पांच बनिया अउ सड़क म चलइया आदमी खड़ा हो जही। उंकर मन के आघु म लजाये बर परही। बाजार म अइसने कोनो बनिया ओला जल्दी सामान नइ देवय, ओह कोनो दुकान म खड़ा नइ हो पावय। चारो डाहर ले ओकर उपर लताड़ परही। ओह मने मन झंुझला के किहिस-पड़े राहन दे घी ल, मंय वापिस करे बर नइ जावंव।

बिना महतारी के बालक कस, दुखी प्राणी संसार म दूसर कोनो नइ होवय। दूसर दुख ल भूल जथे। बालक ल महतारी के सुरता अइस महतारी होतिस, ते का आज मोला ये सब सहना नइ पड़तिस? भइया चले गे, जियाराम घलो चले गे, मिही ह अकेल्ला ये विपत्ति ल सहे बर काबर बांचे हवं? सियाराम के आँखी म तो आंसू के शिवनाथ बोहाय बर धर लिस। ओकर दुख भयभीत गला ले एक गहरा सांस के संग मिल के शब्द निकल गे-माता जी, तंय मोला काबर भूला गेस, मोला काबर नइ बला लेते?

एकाएक निर्मला ह फेर कुरिया डाहर अइस। ओह समझे रिहिसे, सियाराम ह चले गे होही। ओला बइठे देखिस ताहन घुस्सा हो के किहिस-तंयं अभी तक बइठेच हवस, आखिर खाना कब बनही?

सियाराम आँखी पोछ डरिस। किहिस-मोला स्कूल जाये बर देरी हो जही। 

निर्मला - एक दिन देरी ही हो जही त का फरक पर जही, यहू तो घरे के काम आय?

सियाराम - रोज तो इही काम धन्धा लगे रहिथे। बखत म स्कूल नइ पहुंचव। घर म घलो पढ़े के समे नइ मिलय। कोनो सौदा दू चार घांव लहुंटाये बिना ले नइ सकय। डांट तो मोला खाये बर परथे, शर्मिंदा तो मोला होय बर परथे, आप ल का?

निर्मला - हव मोला का? मंय तो तोर बैरी अंव। अपन होतिस त ओला दुख होतिस। मंय तो ईश्वर ले बिनती करत रहिथंव कि तंय पढ़-लिख झन सकस। मोर म तो गलतीच गलती हे, तोर कोनो कसर नइ हे। सौतेली माता के नाम ही बुरा होथे। अपन महतारी ह जहर खवाही तभो ले ओह अमृत आय, मंय अमृत पियाहूं वहू ह जहर बन जही। तुंहर मन के सेती मंय माटी म मिल गेव, रोवत-रोवत उमर काटत हंव। पता ही नइ चलिस कि भगवान ह मोला काबर जनम दे रिहिसे तोर समझ म तो मंय खुश हंव। तोला सताये म मोला मजा आथे। भगवान घलो नइ पूछय नही ते सरी विपत्ति के अन्त हो जतिस।

अइसन काहत-काहत निर्मला के आँखी डबडबा गे! ताहन अन्दर चले गे। सियाराम ओला रोवत देख के सहम गे। दुखी तो नइ होइस, ये शक जरुर होइस कि कोन जनी कोन से सजा मिलही। कलेचूप हांडी (हड़िया) ल उठा के घी ल लहूटाये बर चल दिस, अइसे जइसे कोनो कुकुर ह कोनो नवा गांव म जाथे। उही कुकुर कस ओकर अन्तस के दुख ह ओकर एक-एक भाव म दिखत रिहिसे। ओला देख के साधारण बुद्धि के मनखे घलो अनुमान लगा सकत रिहिसे कि ओह अनाथ हे। 

सियाराम जइसे-जइसे आगू डाहर बढ़त रिहिसे अवइया संग्राम के डर ले ओकर हिरदे के धड़कन ह बाढ़त जावत रिहिसे। ओह तय करिस कि यदि बनिया ह घी ल वापिस नइ रखही त ओह घी ल उही करा छोड़ के लहुट जही। झख मार के बनिया ह खुदे बलाही। बनिया ल खिसियाये बर शब्द घलो सोच डरे रिहिसे। ओह किहि-कइसे साहू जी, आँखी म धूल झोकथस? देखाथस चोखा माल अउ देथस रद्दी माल? फेर अइसे निश्चय करे के बाद घलो ओकर गोड़ ह धीरे-धीरे उठत रिहिसे। वोह ये नइ चाहत रिहिसे, बनिया ह ओला आवत देखे, ओह अचानक ओकर आघू पहंुच जाना चाहत रिहिसे। इही पाये के ओह चक्कर काट के दूसर गली ले बनिया के दुकान म गिस।

बनिया ह ओला देखते भार किहिस-मंय तो कहि दे रेहेंव कि सौदा वापिस नइ लेवंव। बोल, केहे रेहेंव कि नही। 

सियाराम ह बिफड़ के किहिस-तंय ओ घी कहां दे हस जेला देखाये रेहेस? देखाये चोखा माल अउ दिये नकली माल वापिस कइसे नइ लेबे? कइसे कतेक लुटबे?

साह - एकर ले चोखा घी बाजार म मिल जही ते तंय जइसन चाहबे ओइसन जुर्माना दुहूं। उठा ले हड़िया (हांडी) ल अउ दु-चार दुकान देख के आजा।

सियाराम - मोर करा अतना फुर्सत नइ हे। अपन घी ल तंय लहुटा ले।

साह - घी ल वापिस नइ रखंव।

बनिया के दुकान म एक झिन जटाधारी साधू बइठे ये तमाशा ल देखत रिहिसे। उठके सियाराम करा अइस अउ हांडी के घी ल सूंघ के किहिस-बच्चा, घी तो बहुत बढ़िया लागत हे।

साह ह शंकउ पा के किहिस-बाब जी हम्मन जब आप ल घटिया माल नइ देवत हन त का खराब माल ल जाने सुने गिराहिक ल दे जाथे। 

साधू - घी ल लेग जा बच्चा बहुत बढ़िया हे।

सियाराम रो डरिस। घी ल खराब सिद्ध करे बर ओकर करा अब का प्रूफ (प्रमाण) हे। किहिस-उही तो कहिथे घी अच्छा नइ हे, वापिस कर दे। मंय तो काहत रेहेंव कि घी अच्छा हे।

सुधा - कोन कहिथे?

साह - एकर महतारी काहत होही। कोनो सौदा ओकर मन ल भावय नही।

बिचारा लड़का ल घेरी बेरी दउंड़ावत रहिथे। सौतेली माँ आय न। अपन सग महतारी होतिस त कुछु खियाल घलो करतिस। 

साधू ह सियाराम ल दया के भाव ले देखिस-जानो मानो ओकर बचाव करे खातिर ओकर हिरदे ह व्याकुल होवत हे। तब उदास भाव ले किहिस-तोर महतारी के इंतकाल होय कतेक दिन होय हे बच्चा?

सियाराम - छै साल होवत हे। 

साधू - तब तो तंय ओ बखत छोटे रेहे होबे। भगवान तोर लीला कतना बिचित्र हे। ए दूध मुंहा लइका ल तंह मातृ प्रेम ले अलग कर देस। बिक्कट अनर्थ करथस प्रभु। छै साल के लइका अउ राक्षसी सौतेली माता के पाला पड़े। धन्य हो दयानिधि। साह जी बालक उपर दया करो, घी ल वापिस कर ले, नही ते एकर महतारी ह एला घर म राहन नइ दिही। भगवान के कृपा ले तोर घी जल्दी बेचा जही। मोर असीस तोर संग रही। साह जी ह रुपया वापिस नइ करिस। आखिर लड़का फिर से घी लेबर आयेच बर परही। कोन जनी दिन म के घांव चक्कर लगाये बर परही अउ कोन बदमाश के पाला परही। ओकर दुकान म जउन घी सब ले बढ़िया रिहिसे ओला सियाराम ल दे दिस। सियाराम दिल म सोचत रिहिसे बाबा जी कतना दयालु हे, येह सिफारिस करतिस, ते साह जी ह काबर बढ़िया घी देतिस। सियाराम घी धर के चलिस, संग म बाबा जी घलो चलिस। रास्ता म गुरतुर-गुरतुर बात करे बर धरिस। बच्चा मोरो महतारी ह मोला तीन साल के उमर म छोड़ के परलोक सिधारे रिहिसे। तभे ले मंय बिना महतारी के लइका ल देखथंव त मोर हिरदे ह फटे बर धर लेथे। सियाराम ह पूछिस-आपके पिताजी ह घलो दुसर बिहाव करे रिहिसे का?

साधु - हव बच्चा, नही ते आज साधू काबर होतेंव? पहिली तो पिताजी बिहाव नइ करत रिहिसे तब मोला बहुत प्यार करे, फेर कोन जनि कइसे मन बदल गे, बिहाव कर लिस। साधु अंव करु बचन मुंह ले नइ निकालना चाही फेर मोर सौतेली मा जतना सुन्दर रिहिसे ओतने कठोर रिहिसे। मोला दिन-भर खाये बर नइ देवय, रोवंव त मारय। पिताजी घलो मोला मया करे बर छोड़ दिस। अब तो मोर सूरत ले घीन होय बर धर लिस। मोर रोवई ल देख के मोला पीटे बर धर लेवय। आखिर म मंय एक दिन घर ले निकल गेंव। 

सियाराम के मन म घलो घर ले निकल के भागे के बिचार कई घांव होये रिहिसे। अभी घलो येकर मन म इही बिचार उठत रिहिसे। बड़ा उत्सुक हो के पूछिस-घर ले निकल के आप कहां गेव?

बाबा जी हस के किहिस-उही दिन मोर सबो दुख पीरा के अन्त होगे जउन दिन घर के मोह बन्धन से छूटेंव अउ डर ह मन ले निकल गे, उही दिन मानो मोर उद्धार होगे। दिन भर मंय ह एक ठन पुल के खाल्हे म बइठे रेहेंव। संझा कन मोला एक झिन महात्मा मिलगे। ओकर नाम स्वामी परमानन्द जी रिहिस। ओह बाल ब्रम्हचारी रिहिसे। मोर उपर ओह दया करिस अउ अपन संग मोला रख लिस। ओकर संग मंय देश भर घूमत रेहेंव। ओह बड़ा अच्छा योगी रिहिस। महूं ल ओह योग विद्या सिखइस। अब तो मोला अतना अभ्यास होगे हे कि जब इच्छा होथे, माताजी के दर्शन कर लेथंव, ओकर ले बात कर लेथंव। सियाराम ह अचरज हो के पूछिस-आपके माताजी के तो देहान्त होगे हे न?

साधु - त का होइस बच्चा, योग विद्या म ओ शक्ति हे जउन मृत आत्मा ल घलो, बला ले।

सियाराम - मंय योग विद्या सीख जहूं त महूं ल मोर महतारी के दर्शन हो जही?

साधु - अवश्य, अभ्यास से सब कुछ हो सकथे। हां योग्य गुरु चाही। योग ले बडे़-बड़े सिद्धि मिल जथे। जतना धन चाहो, तुरते बरतन म मंगा सकथस, कइसनो बीमारी होवय, ओकर दवई बता सकथस।

सियाराम - आपके जघा कहां हे?

साधु - बच्चा, मोर कोनो जघा नइ हे, रमता जोगी बहता पानी कस देश भर म घुमत रहिथंव। अच्छा बच्चा अब तंय जा मंय ह स्नान-धियान करके जाहूं।

सियाराम - चलव, महू ह उही डाहर नाहहूं। आपके दर्शन ले जी नइ भरे हे। 

साधु - नही बच्चा, तोला पाठशाला जाये बर देरी होवत हे। 

सियाराम - फेर आपके दर्शन कब होही?

साधु - कभू आ जहूं बच्चा, तोर घर कहां हे?

सियाराम खुश हो के किहिस-चलव हमर घर? बहुत नजदीक हे। आपके बड़ा किरपा होही।

सियाराम कदम बढ़ाके आगू-आगू जाय बर धरिस। घर के आघू पहुंच के किहिस-आवव, थोकिन बइठव।

साधु - नही बच्चा, बइठव नही। फेर काली परन दिन कोनो समय आ जहूं। इही तोर घर आय?

सियाराम - काली कतेक बेर आहू?

साधु - पक्का तो नइ कहि सकंव कोनो बखत आ सकथंव।

साधु आगू बढ़िस ताहन थोकिन दूरिहा म ओला एक झिन दुसर साधु मिलिस। ओकर नाम रिहिस हरिहरानन्द। परमानन्द ह पूछिस-कहां कहां के सैर करे हस? कोनो शिकार फंसिस?

हरिहरानन्द - एती चारो डाहर घूम के आयेंव, कोनो शिकार नइ मिलिस। एकाध मिलिस त वहू ह मोर हंसी उड़ाये बर धर लिस।

परमानन्द - मोला तो एक झिन मिलही तइसे लागत हे। फंस जही तभे जानहूं।

हरिहरानन्द - तंय अइसने काहत रहिथस। ओह आथे, दु एक दिन म निकल के भाग जथे। 

परमानन्द - ए पइत के ह नइ भागे, देख लेबे। एकर महतारी मर गे हे। बाप ह दूसर बिहाव कर लेहे। सौतेली महतारी सताथे। घर ले उब गे हे। 

हरिहरानन्द - हव, ये मामला ये त जरुर फंसही। लासा लगा देहस न?

परमानन्द - बहुत बढ़िया ढंग ले। इही तरकीब सबले अच्छा हे। पहिली येकर पता लगा लेना चाही कि मुहल्ला मे काकर-काकर घर सौतेली महतारी हे! डही घर मन म फन्दा डालना चाही।

बाईस


निर्मला ह बिगड़ के किहिस-अतेक देर कहां लगाये?

सियाराम ह घलो ढीठ हो के किहिस-रास्ता म एक जघा सुत गे रेहेंव।

निर्मला - अइसन तो मंय नइ काहत हंव, फेर जानत हस के बजे गे हे? दस कब के बज गे हे। बाजार दूरिहा तो घलो नइ हे।

निर्मला - सीधा काबर नइ काहस? अइसे बिगड़त हवस, जइसे मोर कोनो काम करे बर गे रेहेस।

सियाराम - बिना मतलब के बकवास काबर करथस? खरीदे सौदा ल लहूटाना का आसान काम आय? बनिया ल घंटो हुज्जत करे बर परगे, ओ तो एक झिन बाबा जी ह समझा-बुझा के वापिस करवा दिस नही ते कइसनो कर लेतेंव वापिस नइ लेतिस। रद्दा म कोनो करा एक मिनट घलो नइ रुकेंव, सीधा चले आये हंव। 

निर्मला - घी लाने बर गे रेहे त तंय ह ग्यारह बजे लहुटे हस, लकड़ी बर जाबे त सांझ कर देबे। तोर बाबू जी ह बिना खाये चले गे। तोला जब अतेक देर लगाना रिहिसे, त पहिली ले काबर नइ केहे? लकड़ी बर जावत हस। 

सियाराम अब अपन आप ल संभाल नइ सकिस। झल्ला के किहिस-लकड़ी कोनो दूसर करा ले मंगवा ले। मोला स्कूल जाये बर देरी होवत हे।

निर्मला - खाना नइ खाबे?

सियाराम - नइ खावंव।

निर्मला मंय खाना बनाये बर तैयार हंव। हां, लकड़ी लाने बर नइ जा सकंव।

सियाराम - मूंगी ल काबर नइ भेजस?

निर्मला - मूंगी के लाये सौदा ल तंय ह कभू देखे नइ हस?

सियाराम - त मंय अभी नइ जावंव।

निर्मला - मोला दोस झन देबे। 

सियाराम बहुत दिन ले स्कूल गे रिहिसे। बाजार हाट के मारे ओला घर म किताब देखे बर समय ही नइ मिलत रिहिसे। स्कूल जा के खवई अउ बेंच म खड़ा होवई के सिवा अउ का मिलतिस? ओह घर ले किताब धर के निकले, फेर शहर के बाहिर जा के कोनो पेड़ के छइंया म बइठे रहितिस या फेर खेल तमाशा देखत रहितिस। तीन बजे घर लहूट आतिस। आज घलो ओह घर ले निकलिस फेर बइठे बर ओकर जी नइ लगिस, उपरहा म पेट म पीरा होवत रिहिसे। अब तो ओह रोटी खाये बर तरसे बर धर लिस। दस बजे का खाना नइ बन सकत रिहिसे? मानत हंव कि बाबू जी ह चल दे रिहिसे। का मोर बर घर म दू चार रुपया घलो नइ रिहिसे। महतारी रहितिस, ते अइसन बिना खाये-पिये आवन देतिस? मोर तो अब कोनो नइ रिहिस।

सियाराम के मन ह बाबाजी के दर्शन खातिर व्याकुल होगे। ओह गुनिस अभी ओह कहां मिलही? कहां जा के देखंव? ओकर मीठ बोली, ओकर उत्साह देवइया सान्तवना, ओकर मन ल तीरे बर धर लिस। ओह आतुर हो के किहिस-मंय ओकर संगे म काबर नइ गेंव? घर म मोर बर का रखे रिहिसे? ओह आज इहां ले निकलिस त घर नइ जा के सीधा घी वाले साह जी के दुकान म गिस। शायद बाबा जी ले उहें मुलाकात हो जाये। फेर बाबा जी उहां नइ रिहिस। बहुत बेर ले खड़े-खड़े देखिस, नइ दिखिस ताहन लहूट गे। 

उपर आके बइठे ही रिहिसे कि तुरते निर्मला ह आके किहिस-आज देरी कहां होइसे। सबेरे खाना नइ बनिस, का अभी घलो उपास रहिबे? जा के बाजार ले कुछु सब्जी लानबे।

सियाराम झल्ला के किहिस-दिन भर के लांघन (भूखा) हंव, कुछु पीये बर घलो नइ लाये, उपर ले बाजार जाये के हुकुम देथस। मंय जावंव बाजार, काकरो नौकर नो हंव। आखिर रोटी भर तो खवाथस, एकर सिवाय अउ का खवाथस? अइसन रोटी तो जिंहा मेहनत करहूं, उहें मिल जही। जब मजदूरी ही करना हे त आपके नइ करंव, जा आज मोर बर खान झन बनाबे।

निर्मला सन्न रहिगे। लड़का ल आज का होगे हे? आन दिन तो कलेचूप जा के काम करके आ जावत रिहिसे, आज कइसे तेवर बदलत हे? अभी घलो ए नइ सुझिस कि सियाराम ल दु-चार पइसा कुछु खाये बर दे दे। ओकर स्वभाव अतना कठोर होगे रिहिसे, किहिस-घर के काम करना मजदूरी नइ काहय। अइसने महुं कहि देथंव कि महूं ह खाना नइ रांघव। तोर बाबू जी कहि दे कि कचहरी नइ जाही, त का होही, बता? मंय नइ जानत रेहेंव कि तोला बाजार जाना बेकार लगथे, नही ते तोला सामान ले बर बाजार नइ भेजतेंव। ले आज ले कान पकड़त हंव।

सियाराम ल लाज तो जरुर अइस फेर बाजार नइ गिस। ओकर धियान बाबाजी डाहर लगे रिहिसे। अपन सरी दुख के अन्त अउ जीवन के सबो आशा ओला अब बाबाजी के असीस म दिखत रिहिसे। ओकर शरन म जा के ओकर ए आधारहीन जीवन सार्थक होही। सुरुज डूबे के समे ह अधीर होगे। सबो बाजार छान मारिस, फेर बाबाजी के कहूं पता नइ चलिस। दिन भर भूखे-प्यासे, ओ अबोध बालक पीरा म काहरत हिरदे ल दबाये, आशा अउ भय के मूर्ति बने, दुकान गली अउ मन्दिर म ओ जघा ल खोजत फिरत रिहिसे जेकर बिना ओला अपन जीवन बेकार लागत रिहिसे। एक घांव मन्दिर के आघू ओला कोनो साधु खड़े दिखई दिस। ओह समझिस उही आय। खुशी के मारे ओह झूम उठिस। फेर ओह दुसर महात्मा रिहिसे। निराश हो के आगू बढ़गे। 

धीरे-धीरे सड़क म सन्नाटा छा गे, घर के दरवाजा बंद होये बर धर ले रिहिसे। सड़क के आजू-बाजू अउ गली म बोरा जठा के भारत के जनता सुते गे रिहिन हवय फेर सियाराम ह घर नइ लहूटे रिहिसे। ओ घर ले ओकर दिल टूट गे रिहिसे, जिहां कोनो ल ओकर ले मया नइ रिहिसे, जिहां ओह कोनो पराश्रित कस पड़े रिहिसे सिरिफ एकरे सेती कि ओकर अउ कोनो करा शरण नइ रिहिसे। अभी घलो ओकर घर नइ आये के फिकर कोन ल होही? बाबूजी खाना खा के लेटे होही, माता जी आराम करे बर जावत होही। हां फूफूजी ह घबरावत होही, ओह अभी तक मोर रद्दा देखत होही। जब तक मंय नइ जाहूं तब तक ले भोजन नइ करही।

रुक्मिणी के सुरता आते भार सियाराम घर डाहर चल दिस। ओह अगर कुछु नइ कर सकतिस ते कम से कम ओला गोदी म बइठार के रोतिस? ओकर बाहिर ले आये के बाद हाथ मुंह ल धोये बर पानी तो रख देवय। संसार म सबो बालक दूध के कुल्ला नइ करय, सबो झिन सोना के कौंरा नइ खावय। कतनो मन ल भर पेट भोजन नइ मिलय, फेर घर ले अलग नइ होवय, जउन मन महतारी के स्नेह ले वंचित घलो हे।

सियाराम घर डाहर जाते रिहिसे ओतके बेर बाबा परमानन्द ह एक ठन गली ले आवत दिखिस?

सियाराम ह जा के ओकर हाथ पकड़ लिस। परमानन्द ह चौक के पूछिस-बच्चा, तेह इहां कहां?

सियाराम ह बात बना के किहिस-एक झिन संगवारी ले भेंट करे बर आये रेहेंव। आपके जघा ह इहां ले कतना दूरिहा हे?

परमानन्द - हम्मन तो आज इहां ले जावत हवन, बच्चा हरिद्वार के यात्रा मे जाना हे।

सियाराम हताश हो के किहिस-का आजे जाहू का?

परमानन्द - हां बच्चा, अब लहुट के आहूं त दर्शन दुहूं।

सियाराम बिनती करत किहिस-का महूं आपके संग जाहूं।

परमानन्द - मोर संग! तोर घर के मन जावन दिही?

सियाराम - घर के मन ल मोर का परवाह हे? एकर आघू सियाराम अउ कुछु नइ कहि सकिस। ओकर आंसू ले भराये आँखी ह ओकर दुख के कथा ल कहीं जादा विस्तार ले सुना दिस जतना ओकर जुबान ह कहितिस। 

परमानन्द ह बालक ल गला लगा के किहिस-अच्छा बच्चा, तोर इही इच्छा हे त चल, साधु-सन्त मन के संगति के आनंद उठा। भगवान के इच्छा होही, ते तोर इच्छा जरुर पूरा होही।

दाना उपर मण्डरावत चिरई ह आखिर म दाना उपर ही गिर जथे। ओकर जिनगी के अन्त पिंजरा म होही या कसई के छुरी ले, येला कोन ह जानथे।

तेइस


मुंशीजी ह पांच बजे कछेरी ले लहुटे के बाद अन्दर म आके खटिया म गिर गे। बुढ़ापा के देह, उपरहा म आज दिन भर भोजन नइ मिले रिहिसे। मुंह ह सुख गे। निर्मला समझ गे, आज दिन ह खाली गे हे। निर्मला ह पूछिस-आज कुछु नइ मिलिस।

मुंशीजी - पूरा दिन दउंड़त गुजरिस, फेर हाथ कुछु नइ लगिस।

निर्मला - फौजदारी वाले मामला म का होइस?

मुंशीजी -मोर मुवक्किल ल सजा होगे।

निर्मला - पंडित वाले मुकदमा म?

मुंशीजी - पंडित उपर डिग्री होगे।

निर्मला - आप तो काहत रेहेव, दावा खारिज हो जही।

मुंशीजी - काहत तो रेहेंव, अउ अब भी काहत हव कि दावा खारिज हो जाना रिहिसे, मगर अतना माथा पच्ची कोन करे?

निर्मला - अउ सीर वाले दावा म?

मुंशीजी - वहू ह हार गे हे।

निर्मला - त आज आप कोनो अभागा के मुंह ल देख के उठे रेहेव।

मुंशीजी ले अब काम बिल्कुल नइ हो सकत रिहिसे। एक तो ओकर करा मुकदमा आवय नही अउ आवय वहू ह बिगड़ जावत रिहिसे। फेर अपन असफलता ल निर्मला करा छुपावत राहय। जउन दिन कुछु हाथ नइ लगय, ओ दिन काकरो करा ले दु-चार रुपया उधार ला के चुके रिहिसे। आज वहू जुगाड़ नइ हो पइस। 

निर्मला ह फिकर करत किहिस-आमदनी के ये हाल हे, त ईश्वर ही मालिक हे, उपर ले बेटा के ये हाल हे कि बाजार जाना मुश्किल हे। मूंगी ले ही सबो बूता कराये बर मन करथे। घी ले के ग्यारह बजे लहूटिस। कतेक कहि के हार गेंव कि लकड़ी लाबे कहिके, फेर सुनबे नइ करिस।

मुंशीजी - त खाना नइ रांधे हस?

निर्मला - अइसने बात म तो आप मुकदमा हारथव। ईंधन के बिना कोन खाना रांधे हे तेमा मंय ह रांध डरतेंव?

मुंशीजी - त बिना कुछु खाये ही चले गे हे।

निर्मला - घर म अउ का रखे हे, जेला खवा देतेंव।

मुंशीजी ह डर्रावत-डर्रावत किहिस-एकाद कनी पइसा वइसा नइ दे देते?

निर्मला ह भौं सिकोड़ के किहिस-घर म पइसा फरथे न? 

मुंशीजी ह कुछु जवाब नइ दिस। थोकिन समे तक इन्तजार करत रिहिसे कि शायद नास्ता करे बर कुछु मिल जही, फेर निर्मला ह पानी तक नइ मंगवाइस ताहन बिचारा ह उदास हो के बाहिर चल दिस। सियाराम के कष्ट के अनुमान करके ओकर मन ह चंचल होगे। एक घांव मूंगी ले ही लकड़ी मंगा ले रहितिस, ते अइसे का नुकसान हो जतिस? अइसनो कंजूसी कोन काम के कि घर के आदमी भूखा रही जाये। अपन संदूक ल खोल के खोजे बर धर लिस कि शायद दु-चार आना पैसा मिल जाये। ओकर अन्दर के सबो कागज पतरी ल निकाल डरिस, एक-एक खाना देखिस, नीचे हाथ डार के देखिस फेर कुछु नइ मिलिस। अगर निर्मला के संदूक म पैसा नइ फरत रिहिसे, त संदूक म तो एकर फूल घलो नइ फूलत रिहिसे होही, फेर संयोग ही काहंव कि कागज ल झाड़त-झाड़त एक ठिन चवन्नी गिर गे। मारे खुशी ले मुंशीजी उछल परिस। बड़े-बड़े रकम एकर पहिली कमा चुके रिहिसे, फेर ए चवन्नी ल पा के ए बखत ओला जतना खुशी मिले रिहिसे ओतना पहिली कभू नइ होय रिहिसें चवन्नी हाथ म धर के सियाराम के कुरिया के आघू म आके पुकारिस। कोई जवाब नइ मिलिस ताहन कुरिया म जाके देखिस। सियाराम के कहूं अता पता नइ रिहिस-का अभी स्कूल ले नइ लहूटे हे? मन म ए सवाल उठते भार मुंशीजी ह अन्दर जाके भूंगी ल पूछिस। पता चलिस स्कूल ले लहूट हे कि नही।

मुंशीजी ह पूछिस - एकाद कनी पानी पिये हे?

भूंगी ह कुछु जुबान नइ दिस। नाक सिकोड़ के मुंहु फेरे चल दिस।

मुंशीजी धीरे-धीरे आके अपन कुरिया म बइठ गे। आज पहिली घांव ओला निर्मला उपर घुस्सा अइस, फेर एक ही क्षण म क्रोध के आघात ह खुद उपर होय बर धर लिस। ओ अंधियारी कुरिया म फर्श म ढलगे (लेटे) ओह अपन बेटा डाहर ले अतना नाराज होवई ले अपन आप ल धिक्कारत रिहिसे। दिन भर के थके रिहिसे। जल्दी ओला नींद आगे। 

भूंगी ह आ के पुकारिस-बाबू जी रसोई तैयार हे।

मुंशीजी चौक के उठ के बइठगे। कुरिया म लैम्प जलत रिहिसे, पूछिस-के बज गे हे? मोला तो नींद नइ आगे रिहिसे।

भूंगी ह किहिस-कोतवाली के घन्टा म नौ बज गे हे एकर ले जादा हम नइ जानन।

मुंशीजी - सिया बाबू अइस?

भूंगी - आये रहितिस, त घर म ही रहितिस।

मुंशीजी झल्ला के पूछिस-मंय पूछथंव, आये हे कि नही? अउ तंय ह कोन जनी का का जवाब देथस? आये हे कि नही?

भूंगी - मंय तो नइ देखे हंव, लबारी कइसे कहि दंव।

मुंशीजी फेर लेटिस अउ किहिस-ओला आवन दे ताहन आहूं।

आधा घण्टा तक दरवाजा डाहर टकटकी लगाये मुंशीजी ह लेटे रिहिसे, थोकिन देर बाद ओह उठ के बाहिर अइस अउ जेउनी हाथ डाहर थोकिन दूरिहा तक चलिस। ओकर बाद लहूट के आ के पूछिस-सिया बाबू आये?

अन्दर ले आवाज अइस-अभी नइ आये हे।

मुंशीजी फेर डेरी हाथ डाहर चल के आगू डाहर गिस। सियाराम कहूं नइ दिखिस। उहां ले फेर घर अइस अउ दरवाजा करा खड़ा हो के पूछिस-सिया बाबू आ गे? अन्दर ले जवाब मिलिस-नही।

कोतवाली के घण्टा म दस बजे बर धर ले रिहिसे।

मुंशीजी बड़ा तेज गति ले कम्पनी बाग डाहर गिस। 

गुने बर धरिस-शायद उहां घूमे बर गे होही। बाग म जा के ओह हरेक बेंच ल देखिस, चारो डाहर घूमिस, बहुत अकन मनखे घास म लेटे रिहिन हे, फेर सियाराम के निशान नइ रिहिसे। ओह सियाराम के नाम ले के जोर से पुकारिस, फेर कहूं ले आवाज नइ अइस।

ख्याल अइस शायद स्कूल म तमाशा होवत होही। स्कूल एक मील ले कुछ जादा ही दूरिहा म रिहिसे। स्कूल डाहर जाये बर धरिस, फेर आधा रास्ता ले ही लहूट गे। बाजार बंद होगे रिहिसे। स्कूल म अतेक रात तक तमाशा नइ हो सकय। अभी घलो ओला आशा होवत रिहिसे कि सियाराम लहुट के आ गे होही। दरवाजा करा आ के ओहा पुकारिस- सिया बाबू ह अइस? कपाट बंद रिहिसे। कोनो आवाज नइ अइस। फेर जोर से पुकारिस। भूंगी कपाट खोल के किहिस-अभी तो नइ आये हे। मुंशीजी धीरे से भूंगी ल अपन करा बलइसे अउ दुखी हो के किहिसे-तंय तो घर के सबो बात ल जानथस, बता आज काय होय हे? भूंगी-बाबू जी, लबारी नइ मारंव, मालकिन मोला छोड़ा दिही अउ का? दूसर के लड़का ल अइसन ढंग ले नइ राखे जाये। जहां कोनो काम होइस ताहन बस बाजार भेज देना। दिन भर बाजार अवई-जवई म बीतत रिहिसे। आज लकड़ी लाने बर नइ गिस, ते चूल्हा ही नइ जलिस। कहिबे ते मुंहु फुलाथे। जब आपे नइ देखव, त दूसरा कोन देखही? चलव भोजन कर लेवव, बहू जी कब के बइठे हे।

मुंशीजी-कहि दे, अभी नइ खावय।

मुंशीजी फेर अपन कुरिया म चले गे अउ एक लम्बा सांस लिस। दुखी मन ले ओकर मुंहु ले ये शब्द निकलगे-ईश्वर के का अभी सजा पूरा नइ होये हे? का ए अंधरा के लउठी ल घलो हाथ ले छीन लेबे?

निर्मला ह आके किहिस-आज सियाराम अभी तक नइ आ हे। काहत रहि गेंव कि खाना बना देथंव, खा ले फेर कोन जनी कब उठ के चल दिस। कोन जनी कहां घूमत हे। बात तो सुनबे नइ करय। कब तक ले ओकर रद्दा देखत रइहंवं। आप चल के खाना खा लव, ओकर बर खाना निकाल के रख दुहूं।

मुंशीजी ह निर्मला डाहर ल घूर के देख के किहिस-अभी के बजे होही?

निर्मला - कोन जनी, दस बजत होही।

मुंशीजी - जी नही, बारह बज गे हे।

निर्मला - बारह बज गे? अतका देरी तो कभू नइ करत रिहिसे। त कब तक ओकर रद्दा देखत रहिबे। मंझनिया घलो कुछु नइ खाये रेहेस। अइसन शैतान लड़का मंय ह नइ देखे रेहेंव।

मुंशीजी - तोला बहुत परेशान करथे कइसे?

निर्मला - देखव न, अतेक रात होगे अउ ओला घर के सुध नइ हे।

मुंशीजी - शायद ये आखिरी हरकत होवय।

निर्मला - कइसन बात मुंहु ले निकालथस? कहां जाही? कोनो संगवारी घर होही।

मुंशीजी - शायद अइसने हो। भगवान करे अइसने होवय।

निर्मला - बिहनिया आही, त थोकिन चेता देबे।

मुंशीजी - खूब अच्छा तरीका ले चेताहूं।

निर्मला - चलो, खाना खा ले, बहुत देरी होगे हे।

मुंशीजी - बिहनिया ओला दण्ड दे के बाद खाहूं, कहूं नइ आही, त तोला अइसन ईमानदार नौकर कहां मिलही?

निर्मला मंुह ऐंठ के किहिस-त का मंय ह भगा दे हंव?

मुंशीजी - नही अइसे कोन काहत हे? तंय ओला काबर भगाबे। तोर तो काम करत रिहिसे, विपŸिा आ गिस होही। निर्मला ह कुछु नइ किहिस। बात बाढ़े के डर रिहिसे। भीतर चल दिस। सुते बर घलो नइ किहिस। थोकिन देर बाद अन्दर से दरवाजा ल बंद करके सकरी लगा दिस। 

का मुंशीजी ल नींद आ सकत रिहिसे? तीन झिन लड़का म सिरिफ एके झिन बांचे रिहिसे। वहू ह हाथ ले निकल जही ताहन तो जिनगी म अंधियार के सिवाय अउ का रही? कोनो नाम लेवइया घलो नइ रही। का करंव, कइसे-कइसे रत्न हाथ ले निकल गे? मुंशीजी के आँखी ले आंसू के महानदी बोहावत रिहिसे, त कोनो आश्चर्य हे? ओ व्यापक पश्चाताप ह ओ सघन ग्लानि के अंजोर म आशा के एक कनी पातर रेखा ह ओला सम्हाल के रखे रिहिसे। जउन बखत ओ रेखा ह मेटा जही, कोन कहि सकथे ओकर उपर का बीतही? ओकर संवेदना के कल्पना कोन कर सकथे?

कतनो घांव मुंशीजी के आँखी ह झपकी मारिस, फेर हर बार सियाराम के आहट के धोखा म चौंक परिस। बिहनिया होते भार मुंशीजी फेर सियाराम ल खोजे बर निकलिस। कोनो ल पूछत शरम आवत रिहिसे। कोन मुंह ले पूछे? ओला काकरो ले सहानुभूति के आशा नइ रिहिसे। खुल के भले नइ बोलही फेर मने मन सब इही किही-जइसे करे हे, वइसे भोगे। दिनभर ओ ह स्कूल, मैदान बाजार अउ बगीच्चा म चक्कर लगावत रिहिस, दु दिन ले बिना आहार के रेहे के बाद घलो ओला अतना ताकत कहां ले आये रिहिसे, ओला उही ह जाने।

रात के बारह बजे मुंशी ह घर लहूटिस, दरवाजा म कण्डिल जलत रिहिसे, निर्मला द्वार म खड़े रिहिसे। देखते भार किहिस-बताये घलो नही, कोन जनी कब चल देस। कुछु पता चलिस? मुंशीजी ह लाली आँखी देख के किहिस-हट जा मोर आघू ले, नही ते ठीक नी होही। मंय घुस्सा म हो। येह तोर करनी आय। तोरे सेती आज मोर ये दशा होवत हे। आज ले छै साल पहिली का ए घर के इही दशा रिहिसे? तंय ह मोर बने-बनाये घर ल बिगाड़ देस, तंय ह लहलहावत फूलवारी ल उजाड़ देस। सिरिफ एक ठन ठुड़गा भर ह बांच गे हे। ओकरे निशान मेटा जाही तभे तोला संतोष होही। मंय अपन सर्वनाश करे खातिर तोला अपन घर नइ लाये रेहेंव। सुखी जिनगी ल अऊ बढ़िया सुखमय बनाना चाहत रेहेंव। येह ओकरे प्रायश्चित आय। जउन लड़का ल बिक्कट दुलारत रेहेंव, ओला मोर जीते-जी तंय ह नौकर समझ लेस अउ ये सब ल मंय आँखी म देख के घलो अंधरा कस बइठे रेहेंव। जा, मोरो बर थोकिन जहर (संखिया) भेज दे।

बस इही कसर ह रहि गे हे, वहू ह घलो पूरा हो जही। 

निर्मला ह रोवत किहिस-मंय तो अभगिन अंव, आप कहू तभे जानहूं। कोन जनी मोला काबर जनम दे रिहिसे। मगर अइसे आप कइसे समझ ले कि सियाराम आबे नइ करही?

मुंशीजी ह अपन कुरिया डाहर जावत किहिस-जरे म नून झन डार, जाके खुशी मना। तोर मनोकामना पूरा होगे हे।

निर्मला सरी रात रोवत रिहिसे। अतेक बड़े कलंक! ओह जियाराम ल गहना धर के जावत देखे के बाद घलो मुंहु खोले के हिम्मत नइ करिस। कइसे इही पाये के कि लोगन समझही कि ए फोकट के दोष लगा के लड़का ले दुश्मनी निकालत हे। आज ओकर चुप रेहे खातिर ओला दोषी ठहराये जावत रिहिसे। मान ले ओह जियाराम ल ओतने बेर रोक देतिस ते जियाराम ह शरम के मारे कहूंचो भाग जतिस, त का ओकर मुड़ी म अपराध नइ गढ़े जातिस?

सियाराम के संग ओह कोन से बुरा व्यवहार करे रिहिसे। ओह कुछु बचत के विचार ले ही तो सौदा मंगवावत रिहिसे? का ओह बचत करके अपन बर गहना बनवाना चाहत रिहिसे? जब आमदनी के कम होय बर धर लिस त पैसा बचा के जमा करे के अलावा ओकर करा अउ का साधन रिहिसे? जवान मन के जिनगी के तो कोनो भरोसा ही नइ हे त डोकरा मन के जिनगी के का ठिकाना? बच्ची के बिहाव बर ओह काकर करा हाथ फैलातिस? बच्ची के भार सिरिफ ओकरे उपर ही तो नइ रिहिस। ओह तो सिरिफ पति के सुविधा खातिर कुछ सकेले के कोशिश करत रिहिसे। पति ही के काबर? सियाराम ही तो पति के बाद घर के मालिक होतिस। निर्मला सबो उठा पटक ल गोसइया अउ बेटा के संकट ल दूर करे बर ही तो करत रिहिसे। बच्ची के बिहाव अइसन परिस्थिति म संकट के सिवा अउ का रिहिसे। फेर एकरो बर घलो ओकर भाग म बदनामी बदे रिहिसे।

मंझनिया होगे, फेर आजो घलो चूल्हा नइ जलिस। खाना घलो जीवन के काम आय, एकर कोनो ल सुध नइ रिहिसे। मुंशीजी बाहिर बेजान कस परे रिहिसे अउ निर्मला ह भीतरी म रिहिसे। नोनी ह कभु आतिस, अउ कभू बाहिर। कोनो ओकर संग गोठियइया नइ रिहिन हे। घेरी बेरी सियाराम के कुरिया के मुहाटी (द्वार) करा जाके खड़ा होवे अउ तोतरावत बैया, बैया पुकारै, फेर बैया कुछु जवाब नइ देवत रिहिसे।

संझा कना मुंशीजी ह आके निर्मला ल किहिस-तोर करा कुछ रुपया हे?

निर्मला ह चौंक के पूछिस-का करबे?

मुंशीजी - मंय जउन पूछत हंव, ओकर जवाब दे।

निर्मला - का आप ल मालूम नइ हे? देवइया तो आपे अव।

मुंशीजी - तोर करा कुछु रुपया हे या नही। अगर होही त मोला दे दे, नइ हे त साफ-साफ कहि दे।

निर्मला ह अभी घलो साफ जवाब नइ दिस। किहिस-होही त घरे म होही। मंय ह तो कहूं दूसर जघा नइ भेजे हंव।

मुंशीजी बाहिर चले गे। ओह जानत रिहिसे कि निर्मला करा रुपया हवय, वाजिब म रिहिसे। निर्मला ह यहू नइ किहिस कि नइ हे या न देवंव, फेर ओकर बात ले पता चलत रिहिसे कि ओह देना नइ चाहत हे।

नौ बजे रात कन मुंशीजी ह आ के रुक्मिणी ल किहिस-बहिनी, मंय थोकिन बाहिर जावत हंव। मोर बिस्तर ल भूंगी करा बंधवा देबे अउ टीना के सन्दूक म कुछ कपड़ा रखवा के बन्द कर देबे।

रुक्मिणी भोजन बनावत रिहिसे। किहिस-बहू तो कुरिया म हे, ओला काबर नइ काहत हस? कहां जाये के इरादा हे?

मुंशीजी - मंय तोला काहत हंव, बहू ले कहना होतिस, त तोला काबर कहितेंव? आज तंय काबर खाना रांघत हस?

रुक्मिणी - कोन पकाही? बहू के मुड़ी म पीरा होवत हे। आखिर ए बखत कहां जाथस? बिहनिया नइ चल देबे।

मुंशीजी - अइसने टालत-टालत तो आज तीन दिन होगे। एती ओती घूम-घाम के देखव, शायद सियाराम के पता मिल जाये। कुछ मन काहत रिहिसे कि एक झिन साधू संग गोठियावत रिहिसे। शायद ओह कहूं बहका के ले गे होही।

रुक्मिणी - त लहूटबे कब तक?

मुंशीजी - नइ बता सकंव। हप्ता भर लग सकत हे अउ महीना भर घलो लग सकत हे। का ठिकाना?

रुक्मिणी - आज कोन दिन आय? कोनो पंडित ले पूछे हस कि नही?

मुंशीजी भोजन करे बर बइठिस। निर्मला ल ए बखत ओकर उपर बिक्कट दया अइस। ओकर सबो क्रोध ह शांत होगे। खुद तो नइ किहिस, नोनी ल जगा के चुमत किहिस-देख, तोर बाबूजी कहां जावत हे? पूछ तो नोनी(बच्ची) ह मुहाटी ले झांक के तोतरावत किहिस-बाबू दी, कहां दावत हस?

मुंशीजी - बहुत दूरिहा जावत हंव बेटी, तोर भइया ल खोजे बर जावत हंव।

नोनी ह उही मेर ले खड़े-खड़े किहिस-हमू दइंगे! 

मुंशीजी - बहुत दूरिहा जावत हंव बेटी, तोर बर खिलौना लाहूं। मोर करा काबर नइ आवस?

नोनी मुस्कुरा के लुकागे अउ थोकिन देर बाद फेर दरवाजा ले मुड़ी निकाल के किहिस-हम दइंगे। मुंशीजी ह घलो ओकरे भाखा म तोतरावत किहिस-तोता नइ लेदंव।

नोनी - हमला काबर नइ लेदबे?

मुंशीजी - तंय तो मोर तीर म आवस नही।


लड़की ह ठमकत आ के अपन पिताजी के गोदी म बइठ गे। थोकिन देर बर मुंशीजी ह ओकर बाल लीला म अपन अन्तस के पीरा ल भूलागे।

भोजन करके मुंशीजी बाहिर चल दिस। निर्मला खड़ा हो के देखत रिहिसे। कहना चाहत रिहिसे-बिना मतलब के जाथस, फेर कहि नइ सकत रिहिसे। कुछ रुपया निकाल के दे के मन करत रिहिसे। फेर कहि नइ सकत रिहिसे। 

आखिर म रहि नइ गिस, रुक्मिणी ल किहिस-दीदी जी, जरा समझा देवव, कहां जावत हे! मोर बात ल नइ मानही फेर बिना बोले रहि नइ जात हे। बिना ठिकाना के कहां खोजही? फालतू के हलाकान भर होही।

रुक्मिणी ह दुखी हो के देखिस ताहन अपन कुरिया म चल दिस।

निर्मला बच्ची ल अपन गोदी म धर के गुनत रिहिसे कि शायद जाये के पहिली बच्ची ल देखे बर या मोर ले मिले बर आही कहि के, फेर ओकर आशा निराशा म बदल गे, मुंशीजी ह बिस्तर उठइस ताहन तांगा म जाके बइठ गे।

उही समे निर्मला के कलेजा ह कुढ़े बर धर लिस। ओला अइसे लागत रिहिसे कि अब एकर ले भंेट नइ होवय। ओह परेशान हो के मुहाटी करा धकर लकर अइस कि ओह मुंशीजी ल कइसनो करके रोक ले, तब तक तांगा जा चुके रिहिसे।

चौबीस


दिन गुजरन लगिस। एक महीना पूरा निकल गे, फेर मुंशीजी ह नइ लहुटिस। एको ठिन चिट्ठी घलो नइ भेजिस। निर्मला ल अब रोज इही चिन्ता ह खावत राहय कि ओह लहूट के नइ आही त का होही? ओला एकर फिकर नइ होवत रिहिसे कि ओकर उपर का बीतत होही, ओह एती ओती कहां-कहां घूमत होही, तबीयत कइसे होही? ओला सिरिफ अपन अउ ओकर ले बढ़के नोनी (बच्ची) के फिकर रिहिसे। गृहस्थी ह कइसे चलही? ईश्वर ह कइसे बेड़ा पार लगाही? बच्ची के का हाल होही? ओह बचा खुचा के जमा करे रिहिसे, वहू रोज कम होवत रिहिसे। निर्मला ओमे से एक पैसा निकालत अतना अखरे कि मानो कोनो ह ओकर देंह ले खून निकालत होही। झुंझला के मुंशीजी ल मने मन कोसय। लड़की कोनो जिनिस बर रोवय त ओला अभागिन, कलमुंही कहि के झल्लावय। इही नही अब तो रुक्मिणी के घर म रहवई ह ओला अइसे लगे, मानो ओह गला म बंधागे हे। जब हिरदे ह जलथे, तब जुबान घलो ह आगी कस लागथे। निर्मला बिक्कट गुरतुर बोलइया नारी रिहिसे फेर ओकर गिनती झरझरा माईलोगन म करे जा सकत रिहिसे। दिन भर ओकर मुंहु ले उल्टा पुल्टा गोठ निकलत राहय। ओकर बोली भाखा के सरलता ह कोन जनी कहां चल दिस। भाव म मिठास के नाम नइ हे। भूंगी बहुत दिन ले ए घर म नौकर रिहिसे। स्वभाव के सहनशील रिहिसे, फेर अब आठो पहर के बकबक ओकरो ले सहे नइ गिस। एक दिन वहू ह अपन घर चल दिस। इहां तक ले जउन बच्चा ल प्राण ले जादा मया करत रिहिसे, ओकरो सूरत ले घीन (घृणा) होगे। बात-बात म खिसिया देवय, कभू-कभू तो पीट घलो देवय। रुक्मिणी रोवत नोनी ल गोदी म बइठार के भुलवारत चुप करावय। ओ अनाथ बर अब इही सहारा भर रहि गे रिहिसे।

निर्मला ल अब अगर कुछु अच्छा लगे त ओह सुधा ले बात करना रिहिसे। ओह उहां जाये के ओखी (अवसर) खोजत रहितिस। नोनी ल अब ओह अपन संग नइ ले जाना चाहय। पहिली जब नोनी ल घर म आनी बानी के चीज खाये बर मिलत रिहिसे, त ओह उहां जाके हांसय खेले। अब उहें जाके भूख लागे बर धर लेवय। निर्मला ओला घूर-घूर के देखय, नोनी ल धमकावय, फेर लड़की ह भूख के रट लगाना नइ छोड़त रिहिसे। इही पाये के निर्मला ओला संग म नइ लेगत रिहिसे सुधा करा बइठ के अहसास होवय कि मंय मनखे अंव। ओतना देर तक ओह चिन्ता फिकर ले दूर हो जावत रिहिसे। जइसे शराबी ह शराब के नशा म सरी चिन्ता ल बिसर डरथे, ओइसने निर्मला ह सुधा के घर जा के सबो बात ल भूला जावत रिहिसे। जउन ह ओला ओकर घर म देखे होही ओह ओला इंहा देख के दंग रहि जावत रिहिस हे। उही झरझरहीन, करु करु बोलइया माईलोगन ह इहां आके हांसी-ठिठोली अउ मिठास के पुतरी बन जावत रिहिसे। यौवन काल के स्वभाविक गुन के अपन घर म रद्दा बन्द पाके इंहे आये बखत ओह बढ़िया पहिन ओढ़ के श्रंृगार करके आवय अउ जतना हो सकय अपन विपŸिा कथा ल मन म ही राखत रिहिसे। ओह इहां रोये बर नही बल्कि हांसे बर आवत रिहिसे। 

फेर कभू ओकर भाग म ये सुख ह लिखाय नइ रिहिसे। निर्मला ह अक्सर मंझनिया कन सुधा के घर मिले बर जावय। एक दिन ओकर जी ह घर म अतना उबिस कि बिहनिया ही सुधा घर पहुंच गे! सुधा ह नदिया नहाये बर गे रिहिसे, डॉक्टर साहब ह अस्पताल जाये बर कपड़ा पहिरत रिहिसे। महरी (कामवाली) अपन काम बूता म लगे रिहिसे। निर्मला अपन सहेली के कुरिया म जाके निश्चिन्त बइठ गे। ओह समझिस सुधा ह कुछु काम बूता करत होही, अभी आवत होही। जब बइठे-बइठे दु-तीन मिनट गुजर गे ताहन ओह आलमारी ले तस्वीर (फोटो) के एक ठन किताब निकाल लिस अउ खोपा खोल के पलंग उपर लेट के देखे बर धर लिस। इही बीच डॉक्टर साहब ल कोनो जरुरत से निर्मला के कुरिया म आना परिस। अपन चश्मा ल एती ओती खोजत रिहिसे। बेधड़क अन्दर आ गे। निर्मला दरवाजा डाहर चूंदी खोल के लेटे रिहिसे। डॉक्टर साहब ल देखते भार चौंक के उठ के बइठगे ताहन मुड़ी ढंाकत खटिया ले उतर के खड़ा हो के किहिस-माफी देबे निर्मला, मंय नइ जानत रेहेंव कि तंय इहां हवस। मोर चश्मा ह कुरिया म नइ मिलत रिहिसे, कोन जनी कते करा उतार के रख दे हंव। मंय ह समझेंव शायद इहां होही। 

निर्मला ह खटिया के मुड़सरिया डाहर देखिस त चश्मा के डब्बा ह दिखिस ओह जाके डब्बा ल उतार लिस, मुड़ी ल गड़ियाये, सकुचावत डॉक्टर डाहर हाथ बढ़इस। डॉक्टर साहब ह निर्मला ल दु घांव पहिली घलो देखे रिहिसे, फेर अभी कस भाव ओकर मन म कभू नइ आये रिहिसे। जउन ज्वाला ल ओह बरसो ले हिरदे म दबा के बइठे रिहिसे, ओह आज पुरवाहि (पवन, हवा) के झोंका पाके दहके बर धर लिस। ओह चश्मा ल धरे बर हाथ बढ़इस त ओकर हाथ ह कांपत रिहिसे। चश्मा धर के भी ओह बाहिर नइ गिस, उही करा गुनत खड़े रहिगे। निर्मला ह ए एकान्त ले डर्रा के पूछिस-सुधा कहूं गे हे का?

डॉक्टर साहब ह मुड़ी गड़िया के जवाब दिस-हव, नहाये बर नदिया गे हे।

तभो ले डॉक्टर साहब बाहिर नइ गिस। निर्मला फेर पूछिस-कब तक आही?

डॉक्टर ह मुड़ी गड़ियाये किहिस-आवत होही। ओकर बाद घलो बाहिर नइ अइस। ओकर मन म भारी उथल पुथल (द्वन्द) होवत रिहिसे। भय के कच्चा सुत ह ओकर जबान ल रोके रिहिसे। निर्मला ह फेर किहिस-कहूं घूमे बर धर ले होही। महूं ह अभी जावत हंव। अब तो डर के कच्चा सुत ह घलो टूट गे। नदिया करार म पहुंच के भागत सेना म अद्भुत ताकत आ जथे। डॉक्टर साहब ह मुड़ी उठा के निर्मला ल देखिस अउ मया म बुड़े आवाज म किहिस-नही, निर्मला अब आते होही, अभी झन जा। रोज सुधा के सेती बइठथस आज मोर सेती बइठ। बता कब तक ये आगी म जलत राहय। सच काहत हंव निर्मला...।

निर्मला कुछु अउ नइ सुनिस। ओला अइसे लागत रिहिसे मानो सरी धरती चक्कर खावत हे। मानो ओकर प्राण म हजारो तीर मारे जात हे। ओह तुरते अड़गसनी (कपड़ा टंागे के) म लटकत चद्दर ल उतार लिस ताहन बिना कुछु केहे कुरिया ले निकल गे। डॉक्टर साहब ह खिसियाके रोनहूं मुंहु बनाये खड़े रिहिसे। ओला रोके बर या कुछु केहे कि हिम्मत नइ होइस।

निर्मला जइसने मुहाटी करा पहुंचिस त ओह सुधा ल तांगा म उतरत देखिस। सुधा ओला देख के जल्दी से उतर के ओकर डाहर गिस अउ कुछु पूछना चाहत रिहिसे, फेर निर्मला ह ओला मौका नइ दिस, अउ दंगर-दंगर ओ मेर ले चल दिस सुधा थोरिक देर बर अचम्भा के दशा म खड़े रिहिस। बात का हे, ओकर समझ म कुछु नइ आ सकिस। ओह व्याकुल होगे। जल्दी से अन्दर गिस महरी ले पूछे बर कि का बात हो हे। ओह अपराधी के पता लगाही अउ कहूं ओला पता चलिस कि महरी या दुसर नौकर मन ह ओला कोनो अपमानित करे बर कुछु केहे होही त ओला खड़े-खड़े निकाल दुहूं। लपक के ओह अपन कुरिया म गिस। अन्दर जाते भार डॉक्टर ल मुंह ओथराके खटिया म बइठे देखिस। पूछिस-निर्मला इहां आये रिहिसे? डॉक्टर साहब ह मुड़ी खजुवावत किहिस-हव, आये रिहिसे। 

सुधा - कोनो महरी-अहरी ह ओला कुछु केहे तो नइ हे। मोर संग गोठियइस घलो नही, ओह हड़बड़-हड़बड चल दिस।

डॉक्टर साहब के चेहरा के चमक ह कम होगे, किहिस-इहां तो ओला कोनो ह कुछु नइ केहे हे।

सुधा - कोनो ह कुछु केहे हे। देखव, मंय पूछथंव न ईश्वर जानथे, पता कर लुहूं ताहन खड़े-खड़े निकाल दुहूं।

डॉक्टर साहब ह घबरा के किहिस-मंय ह तो कोनो ल कुछु काहत नइ सुने नइ हंव।

सुधा - वाह, कइसे देखे नइ होबे। ओकर आघू ले तो मंय तंागा ले उतरे हंव। ओह मोर डाहर देखिस घलो, फेर बोलिस कुछु नही। ए कुरिया म आये रिहिसे? 

डॉक्टर साहब के प्राण ह सुखावत रिहिसे। डॉक्टर साहब ह झिझक के किहिस-आये रिहिसे।

सुधा - तोला इहां बइठे देख के चल दिस होही। बस कोनो महरी (काम करइया) ह कुछु कहि दिस होही। छोटे जात के आय न, कोनो ल बात करे के तो तमीज नइ हे। अरे ओ सुन्दरिया, थोकिन ए मेर तो आ!

डॉक्टर - ओला काबर बलावत हस, ओह इहां ले सीधा दरवाजा डाहर गिस। नौकर चाकर (महरी) मन ले बात तक नइ होय हे।

सुधा - त फेर तिहीं ह कुछु कहि दे होबे।

डॉक्टर साहब के कलेजा ह धक-धक करे बर धर लिस। किहिस-मंय भला का कहि देतेंव, का अतेक गंवार हंव।

सुधा - तंय ह ओला आवत देखे, तभो ले बइठे रहि गेस?

डॉक्टर - मंय येकर रहिबे नइ करे रेहेंव। बाहिर बैठक म अपन चश्मा ल खोजत रेहेंव, जब उहां नइ मिलिस, त मंय ह सोचंेव, शायद अन्दर होही। इहां आयेंव त ओला बइठे देखेंव। मंय ह बाहिर जाना चाहत रेहेंव त ओह खुदे पूछिस-कुछु जिनिस के जरुरत हे? मंय ह केहेंव, थोकिन देख तो, इहां मोर चश्मा तो नइ हे। चश्मा इही मुड़सरिया (सिरहाने) करा रिहिसे। ओह उठा के दे दिस। बस अतने बात होय हे।

सुधा - बस तोला चश्मा दे के बाद ओह झल्ला के बाहिर चल दिस कइसे?

डॉक्टर - झल्ला के तो नइ चले गे। जाय बर धरिस त मंय ह केहेंव-बइठो, ओह आवत होही। नइ बइठिस त मंय का करतेंव। सुधा कुछ सोच के किहिस-बात कुछु समझ म नइ आवत हे, मंय जरा ओकर करा जाथंव। देखंव का बात आय।

डॉक्टर - त चल देबे, अतेक का जल्दी हे। सरी दिन तो पड़े हे।

सुधा ह चद्दर ओढ़त किहिस-मोर पेट म खलबली मचे हे अउ तंय कहिथस जल्दी हे?

सुधा ह दंगर-दंगर रेंगत निर्मला के घर जाय आगू बढ़िस, पांच मिनट म सुधा ह निर्मला घर पहुंच गे। देखिस त निर्मला ह अपन कुरिया के खटिया म बइठे रोवत रिहिसे, लइका ह ओकर तीर खड़ा हो के तोतरावत काहत रिहिसे-दाई काबर लोवत हस?

सुधा ह लड़की ल गोदी म उठा के निर्मला ल किहिस-बहिनी, सच बता न, का बात ए? हमर घर कोनो ह तोला कुछु केहे हे का? मंय सबले पूछ चूके हंव फेर कोनो नइ बतावत हे। 

निर्मला आँसू पोंछत किहिस-कोनो ह कुछु नइ केहे हे बहिनी, भला उहां मोला कोनो काबर कुछु किहि?

सुधा - त फेर मोर संग गोठियाये काबर नही अउ घर आते भार रोवत हस।

निर्मला - मंय अपन नसीब उपर रोवत हंव अउ का?

सुधा - तंय अइसन म नइ बताबे ते तोला किरिया खवा दुहूं।

निर्मला - किरिया-विरिया झन खवा, मोला कोनो ह कुछु केहे नइ हे काकर उपर फोकट के दोष लगा दंव।

सुधा - खा तो मोर किरिया।

निर्मला - तंय तो बिना मतलब के जिद करथस।

सुधा - कहूं तंय ह नइ बताबे निर्मला, त मंय समझहूं, तोला मोर ले थोरको मया नइ हे। सब देखाये भर के आय। मंय तोर ले कोनो बात के पर्दा नइ रखंव अउ तंय मोला गैर समझथस। तोर उपर मोला बिक्कट भरोसा रिहिसे। अब जान डरेंव कि कोनो ह काकरो नइ होवय।

सुधा के आँखी ह डबडबा गे। ओह नोनी ल गोदी ले उतार के मुहाटी डाहर चल दिस। निर्मला ह उठा के हाथ ल पकड़ लिस अउ रोवत-रोवत किहिस-मंय तोर पाँव परत हंव, झन पूछ। सुन के दुखी हो जबे अउ शायद महूं ह तोला अपन मुख देखा नइ पाहूं। मंय अभागिन नइ होतेंव, त ए दिन ल ही काबर देखे बर परतिस। अब तो ईश्वर ले इही बिनती हे कि संसार ले मोला उठा ले। अभी जब अइसन दुर्गति होवत हे, त आगू कोन जनी का होही?

ए वचन (बोली/शब्द) म जउन इशारा रिहिसे, ओह समझदार सुधा ले छिपे नइ रही सकिस। ओह समझ गे कि डॉक्टर साहब ह कुछ छेड़छाड़ करे हे। ओकर हिचक-हिचक के गोठियाना अउ ओकर प्रश्न ल टालना ओकर ओ दूरी अउ ओथराये चेहरा ओला सुरता आवत हे। ओह मुड़ी ले गोड़ तक कांप गे ताहन बिना कुछु केहे सुने सिहनी कस गुस्सा हो के मुहाटी डाहर चलिस। निर्मला ह ओला रोकना चाहिस, फेर नइ रोक नइ सकिस। देखते-देखते ओह सड़क म आ गे ताहन घर डाहर चल दिस। सुधा के जाये के बाद उही मेर भुइयां म बइठ के फूट-फूट के रोये बर धर लिस।

पच्चीस


निर्मला दिन भर खटिया म परे रिहिसे। अइसे लागत रिहिसे जाना मानो ओकर देह म जीव नइ हे। नहइस (स्नान) नही, न ही खाना खाये बर उठिस। संझा कना ओला बुखार चढ़ गे। रात भर तन ह तवा कस गरम रिहिसे। बिहान दिन घलो बुखार नइ उतरिस। हां कुछ कम होय रिहिसे। ओह खटिया म लेटे बिना छल कपट के मुहाटी डाहर ल देखत रिहिसे। चारो डाहर शून्य रिहिसे, अन्दर भी शून्य, बाहर भी शून्य कोनो चिन्ता नइ रिहिसे, न कोनो सुरता न कोनो दुख मस्तिष्क म सोचे समझे के ताकत रहिबे नइ करे रिहिसे।

एकाएक रुक्मिणी बच्ची ल गोदी म पा के आ के खड़ा होगे। निर्मला ह पूछिस-का येह बहुत रोवत रिहिसे। रुक्मिणी-नही, येह तो सुसकिस घलो नही। रात भर कलेचूप परे रिहिसे, सुधा ह थोकिन दूध भेज दे रिहिसे।

निर्मला - रउतइन (अहीरिन) ह दूध नइ दे के गे रिहिसे का?

रुक्मिणी - काहत रिहिसे, पहिली के पइसा बांचे हे तेला दिही त दुहूं कहिके काहत रिहिसे। तोर तबीयत अभी कइसे हे?

निर्मला - मोला कुछु नइ होय हे, काली थोकिन देह गरम होगे रिहिसे।

रुक्मिणी - डॉक्टर साहब के बुरा हाल हे।

निर्मला ह घबरा के पूछिस-का होय हे, का बने बने हे न?

रुक्मिणी - बने बने हे, बस अब ओकर लास उठाये के तैयारी चलत हे। कोनो कहिथे, जहर खा ले हे, कोई कहिथे दिल के चलना बंद होगे रिहिसे। भगवान जाने का होय रिहिसे।

निर्मला ह ठण्डी सांस लिस अउ रोनहंू आवाज म किहिस-हाय भगवान, सुधा के का गति होही, कइसे जिही?

अइसे काहत काहत रो डरिस ओकर बाद तो बहुत देर तक ले सुसकत रिहिसे। तब बड़ा मुश्किल से उठ के सुधा कर जाये बर तैयार होइस। गोड़ ह थर-थर कांपत रिहिसे, कोठ (दीवार) ल थाम के खड़े रिहिसे, फेर जीव ह नइ मानत रिहिसे। कोन जनी सुधा ह इहां ले जा के पति ल का केहे हे? मंय तो ओला कुछु केहे भी नइ हंव, कोन जनी मोर बात के का मतलब समझिस? हाय! अइसन सुन्दर दयालु, अइसन सरल प्राणी के अन्त। कहूं निर्मला ल मालूम होतिस कि ओकर गुस्सा के अइसन भारी परिणाम होही। त ओह जहर के घूट पी के ओ बात ल हंसी म उड़ा देतिस।

ये सोच के कि मोर कड़क स्वभाव के सेती डॉक्टर साहब के ए हाल होय हे, निर्मला के हिरदे के धड़कन बाढ़त गिस। अइसे दुख होय बर धर लिस मानो हिरदे म पीरा उठत हे। ओह डॉक्टर के घर चले गे।

लश उठ चुके रिहिसे। बाहिर सन्नाटा छाये रिहिसे। घर म माईलोगन मन सकलाये रिहिन हे। सुधा भुइयां म बइठे रोवत रिहिसे। निर्मला ल देख के जोर से चिल्ला के रो डरिस अउ आ के ओकर छाती ले लिपट गे। दुनो बहुत समे तक रोवत रिहिन।

जब माईलोगन मन के भीड़ ह कम होगे ताहन सुनसान होगे, निर्मला ह पूछिस-ये का हो गे बहिनी, तंय ह का कहि देस?

सुधा अपन आप ल इही सवाल के जवाब कतनो घांव दे डरे रिहिसे। ओकर मन ह जउन सवाल ले शांत होगे रिहिसे, उही उत्तर ओह निर्मला ल दिस। किहिस-चुप तो घलो नइ रहि सकत रेहेंव गुस्सा के बात बर तो गुस्सा (क्रोध) आबेच्च करथे।

निर्मला - मंय तो तोर ले अइसन कोनो बात तो नइ केहे रेहेंव।

सुधा - तंय कइसे कहिते, कहि घलो नइ सकत रेहे, फेर ओकर तो जउन बात होय रिहिसे, ओह कहि दे रिहिसे। ओकर बाद मोर मुंह म जउन बात अइस, कहि देंव। जब एक एक बात दिल म आगे, त ओला होय हे समझ लेना चाही। अवसर अउ शिकार मिले तो ओह जरुर पूरा होथे। ये कहि के कोनो बोचक नइ सकय कि मंय तो हंसी-ठिठोली करे रेहेंव। एकान्त म अइसे शब्द जबान म आना ही समझ म आवत हे कि ओकर नीयत ठीक नइ रिहिसे। मंय ह तोला कभू नइ केहेंव बहिनी, फेर मंय ह ओला कतनो घांव तोर डाहर झांखत देखे रेहेंव। ओ बखत महूं ह इही समझेंव कि शायद मोला धोखा होवत हे। अब पता चलिस कि ओ तांक झांख के का मतलब रिहिसे। अगर मंय ह दुनिया जादा देखे रहितेंव, ते तोला अपन घर नइ आवन देतेंव। फेर अइसन नइ जानत रेहेंव कि पुरुष मन के मुंह म कुछ अउ मन म कुछ होवत होही। ईश्वर ल जउन मंजूर रिहिसे, ओह होगे। अइसन सौभाग्य ले मंय विधवापन ल बुरा नइ समझंव। गरीब मनखे ओ धनी ले जादा सुखी हे जेला ओकर धन ह सांप बन के चाबे बर दउंड़थे। जादा जहरिला भोजन करे ले अच्छा तो उपास रहना जादा अच्छा हे। ठउंका इही समे डॉक्टर सिन्हा के छोटे भाई अउ कृष्णा ह घर म अइस ताहन तो घर म रोना धोना शुरु होगे।

छब्बीस


एक महीना अऊ बीत गे। सुधा अपन देवर के संग तीसर दिन ही चले गे। अब निर्मला अकेल्ला होगे। पहिली हंस-बोल के जी बहला लेवत रिहिसे। अब रोवई ह एक ठन बूता रहिगे। ओकर तबीयत दिनो दिन बिगड़त गिस। जुन्ना मकान के किराया जादा रिहिसे। कम किराया म दूसर मकान लिस, एह सुल्लु (तंग) गली म रिहिसे। अन्दर एक ठिन कुरिया रिहिसे अउ छोटे से आंगन न अंजोर आवय न हवा। बदबू (दुर्गन्ध) उड़त राहय। भोजन के ये हाल कि पैसा रेहे के बाद घलो कभू-कभू उपास रेहे बर परत रिहिसे। बाजार ले लाये कोन फेर अपन कोनो गोसइया नही, कोनो लड़का नही, त रोज खाना बनाये के तकलीफ कोन उठायेे। माईलोगन मन बर रोज भोजन करे के जरुरत ही का। अगर एक घांव (बखत) खा लिस ताहन दु दिन बर छुट्टी। नोनी बर ताजा हलुआ नही ते रोटी बना लेवत रिहिसे। अइसन हालत म तबीयत ह कइसे नइ बिगड़तिस। चिन्ता, शोक, दुर्दशा मे से एक हो तो कोनो बात नइ रहितिस। इहां तो तीन-तीन ठन के धावा रिहिसे। अब निर्मला ह दवा खाये बर किरिया खा ले रिहिसे। अउ करबे का करतिस। एक कनिक रुपया म दवा के कहां गुंजाइश रिहिसे? जिहां दवा के ठिकाना नइ रिहिसे उहां दवा के बारे म सोचना का। दिनो दिन सुखावत चले जावत रिहिसे।

एक दिन रुक्मिणी ह किहिस-बहू अइसन कब तक ले दुबरावत रहिबे, जी हे त जहान हे। चल कोनो वैद्य करा देखा देथन।

निर्मला ह उदास हो के किहिस-जेला रोये बर जीना हे ओकर मर जाना ही जादा अच्छा हे।

रुक्मिणी - बलाये ले तो मौत नइ आवय।

निर्मला - मौत तो बिना बलाये आथे, बलाये ले काबर नइ आही। ओकर आये म बहुत दिन लागही बहिनी। अब मंय जिनगी ले हार गे हंव।

रुक्मिणी - दिल अइसे छोटे झन कर बहू, अभी संसार के सुख ल ही का देखे हस।

निर्मला - अगर संसार के इही सुख आय, जेला अतेक दिन ले देखत हंव, त ओकर ले मोर जी ह भर गे हे। सिरतोन काहत हवं बहिनी ए नोनी के मोह ह मोला बांधे हे, नही ते अब तक कब के चले गे रहितेंव। कोन जनी बिचारी के भाग्य म का लिखाय हे।

दुनो झिन रोये बर धर लिस। एती जब ले निर्मला ह खटिया पकड़े हे, रुक्मिणी के हिरदे म दया के झरना खुल गे हे। बैर के भाव ल तियाग के अब तो मया करे बर धर लिस। निर्मला के आवाज ल सुनतिस ताहन सबो काम बूता ल छोड़ के दउंड़े। घण्टो ओला कथा पुराण सुनावय। कोनो अइसे चीज रांघना चाहत रिहिसे, जेला निर्मला ह मन लगा के खावय। निर्मला ल कभू हांसत देख लेतिस, त खुश हो जतिस अउ बच्ची ल तो अपन गला के हार बनाये रहिथे ओकरे संग सूतथे अउ ओकरे संग उठथे। उही बालिका ह अब ओकर जीवन के आधार आय।

रुक्मिणी ह थोकिन देर बाद किहिस-बहू तंय अतना निराश काबर होथस। भगवान चाहही ते तंय ह दू-चार दिन म बने हो जबे। मोर संग आज वैद्य जी करा चल बड़ा सज्जन आदमी आय।

निर्मला - दीदी जी, अब मोला कोनो वैद्य अउ डॉक्टर के दवा फायदा नइ करय। आप मोर फिकर झन करव। बच्ची ल आपके गोदी म छोड़ के जाथंव। अगर जीयत रहिबे, ते कोनो बढ़िया कुल म एकर बिहाव कर देबे। मंय तो एकर बर अपन जीवन म कुछु नइ कर सकेंव, सिरिफ जनम भर के अपराधनी हवं। चाहे कुंवारी रखबे नही ते जहर दे के मार डरबे फेर कुपात्र संग बिहाव झन करबे, अतने ही आप से मोर बिनती हे। मंय ह आप के कुछ सेवा नइ कर सकेंव, एकर मोला बड़ा दुख हे। मोर कस अभागिन ले कोनो ल सुख नइ मिलिस जेकर उपर मोर छाया परिस, ओकर सर्वनाश होगे। अगर स्वामी जी कभू घर आही त ओला कहि देबे कि ए करमजली के अपराध ल माफ कर दिही। 

रुक्मिणी रोवत रोवत किहिस-बहू तोर कोनो अपराध नइ हे। ईश्वर ल साक्षी मान के काहत हंव, तोर बर मोर मन म थोरको मैल नइ हे। हां, मंय ह हमेशा तोर संग कपट करे हंव, एकर मोला आखिरी सांस तक दुख रही।

निर्मला भयभीत नजर ले देखत किहिस-दीदी जी, केहे के बात नोहे फेर केहे बिना रहे नइ जात हे। स्वामी जी ह हमेशा मोला अन भरोसा के नजर ले देखिस, फेर मंय ह कभू ओकर उपेक्षा नइ करेंव। जउन होना रिहिसे, ओह तो हो चुके रिहिसे। अधर्म करके अपन परलोक ल काबर बिगाड़तेंव। पहिली जनम म कोन जनी कोन से पाप करे रेहेंव, जेला भोगे (प्रायश्चित) बर परत हे। ए जनम म कंाटा बोतेंव, तब का गति हेतिस?

निर्मला के सांस ह तेज चले बर धर लिस, हइंफो-हइंफो करे बर धर लिस ताहन खटिया म सुत गे अउ नोनी (बच्ची) ल अइसे नजर ले देखिस, जउन ह ओकर जिनगी के सबो विपत्ति कथा के बिक्कट आलोचना रिहिस, जुबान म अतना सामर्थ्य कहां रिहिसे। 

तीन दिन तक निर्मला के आँखी ले आंसू के धारा बोहावत रिहिसे। ओह न काकरो संग बोले न गोठियावय, न काकरो डाहर ल देखय न काकरो कुछ सुनय। बस रोये चले जावत रिहिसे। ओ पीरा के कोन अनुमान लगा सकथे।

चौथा दिन संझा के बखत ओ विपत्ति कथा सिरागे। ओ समे जब चिरई-चिरगुन, गाय, गरुवा अपन बसेरा म लहूटत रिहिन हे, निर्मला के प्राण पखेरु ह घलो दिन भर शिकारी चिरई मन के पंजा अउ हवा के गरेर के झोंका ले आहत हो वे दुखी हो के अपन बसेरा डाहर उड गे।

मुहल्ला के लोगन जमा होगे। लाश बाहिर निकाले गिस। कोन ह दाह संस्कार करही, ये सवाल उठिस। लोगन इही चिन्ता म रिहिन हे कि अचानक एक झिन डोकरा ह गठरी लटकाये आ के खड़ा होगे। ओहा मुंशी तोताराम रिहिसे।



अनुवाद काल

11 मार्च 2021 से 16 मई 2021


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