Saturday 11 June 2022

जीछुटहा (नान्हे कहिनी)*

 

           *जीछुटहा (नान्हे कहिनी)*

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                फुलझर अउ मंय ,हमन दुनों  संगवारी तय कर डारे रहेन कि देवतल्ला तीर के डबरी  म मछी धरना हे। हमन अपन आड़-हथियार-चरगोड़ी, हथारी, चोरिया, पहटा मन ल सम्भालत आगु बढ़त रहेन।


             कोन जानी कहाँ करा रहिस...!पतालु हमन ल अइसन जावत देखिस ,तब कूद के तीर म आ गय।गुरु हो महुँ ल राख लेवा संग म..!वोहर गेलौली करत कहिस।


"तंय अब्बड़ जी छुटहा अस बाबू।थोरकुन उंच- नीच ल सहन करे नइ सकस।"फुलझर थोरकुन जंगावत  कहिस


"राखिच लेवा  गुरु हो मोला संग म।" वो


 अबले घलव वइसनहेच गेलौली करत रहिस।


"चल ठीक हे.. ।" मैं कहें अउ बड़का हथारी ल वोला धरा देंय ।


        डबरी म पानी हर पूरा अटा गय रहिस । फेर अटवा धरे बर ,ये बाँचे पानी ल अटवाय  बर लागही ।


" जा पतालु ,छापा ल लान।छापा छींचे बर लागही ।" फुलझर, पतालु ल छापा लाने बर भेज दिस ।



      अब हमन दुनों झन चरगोड़ी मन ल लेके पानी म उतर गयेंन  अउ झोले के शुरुच कर देन ।हमन के गला म मछी धरे के ढिटोरी मन ओरमत रहिन ।



        डड़ीया अउ कोतरी मन तो उपरे म उपलाय रथें ।  चांदी कस चमकत पातर -पातर सलांगी,बोटाली सब ल धरत गयेन ।घेसरी,ठुंनगुन मन तो जइसन आवव अउ धरव कहत भागतेच्च् नइ रहिन।



   पतालु छापा लेके आइस,फेर आते साथ भड़क गय।तुमन मोला छापा लेहे बर घर भेज देया अउ येती सबो निकता मन ल धर दारा न...!


"अरे बुता कर। सब सहाजी आय ।"फुलझर फेर कड़किस ।


       मंय अउ पतालु   छापा ल धरेन अउ  जम्मों पानी ल छींच  देन । डबरी म बांच  गय चिखला...!


          अब तो तीनों झन कूदा -कूदा के मछी मन ल धरेन।पइनहा,बांबी, ठुनगुन,लपची, भेदो जइसन निरापद मछी; तब टेंगना ,मोंगरी ,मांगुर अउ केवई असन कांटा धारी खतरनाक मछी। सबो ल धरेन फेर खोपसी ,ठोर्रा अउ बांबी ल चिखला सुद्धा धरे बर लागय।


"बरोबर बाटिहा न ..!" बीच -बीच म पतालु ललकारतेच रहिस।


          छेवर म सब ल धर के फुलझर घर आयेन।


"बरोबर बाटिहा न..!"पतालु तो रट लगाएच रहिस।


        बांटत गयेन...बांटत गयेन। तीनों झन ल बराबर बांटा।फेर छेवर म चिखला म लोथ- पोथ बांचे एक ठन जिनिस ल देख के पतालु कहिस -अउ येला कइसे करत हावा?



      वो जिनिस म पानी डाल के देखेन..!ये बबा ..!येहर तो  बांबी के फेर म डोड़ीहा- पनिहर सांप हर आ गय हे..! 


 "  येला तंय पोगरी लेले जीछुटहा  कहिंके ।"फुलझर  वो सांप ल पतालु कोती फ़ेंकत कहिस।



*रामनाथ साहू*


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