Sunday 17 September 2023

तीजा के लुगरा* ---------------------- (छत्तीसगढ़ी नाटक)


              *तीजा के लुगरा*

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          (छत्तीसगढ़ी नाटक)



रामनाथ साहू

नाटककार



पात्र-

बिसाहू -गांव के दाऊ

फुलबासन- दाऊ के परानी

चैतू - बेटा 1

बैसाखू-बेटा 2

जेठू- बेटा 3

सावनलाल -बेटा 4

भादो शंकर - बेटा 5

कातिक राम - बेटा 6

अगहन - बेटा 7

फागुनमती (चंपा)-  बेटी



                      *दृश्य -1*

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ठउर - दाऊ के बारी


समय -संझाती के बेरा।


( सात भाई के एक बहिनी फागुन। अब्बड़ दुलौरिन। सब भाई वोला बड़ मया करथें। फागुन अपन बारी म , साग सब्जी छाँटत ,तितली बरोबर किंजरत हे।)


फागुन (स्वगत) -  मोर सात -सात भाई। सात भाई के अकेला बहिनी मंय फागुन।


        (आन ठउर म जाथे।)


फागुन - मोर नांव फागुन ,फेर मोर सब भाई, मोर अलग अलग नांव धर  राखे हें। बड़खा भइया कहथे ...


चैतू -  मोर बहिनी गोंदा ओ !

फागुन -भइया गा मोर।


बैशाखू -बहिनी सेवती ओ !

फागुन -हाँ ,भइया।


जेठू - नोनी मालती ओ !

फागुन - भइया गा।


सावनलाल - ननकी नोनी केंवरा ओ !

फागुन - मोर भइया।


भादो शंकर - बहिनी मोंगरा ओ !

फागुन -हाँ भइया ।


कातिक- ये पीला नोनी चमेली ओ !

फागुन - हाँ हाँ भइया गा ।


अगहन - मोर बहिनी चंपा ओ!

फागुन- काये ननकी भइया।


फागुन (स्वगत) -सब भइया मन ,मोला उपन मन के नांव धरके बलाथें । अइसन म मोर सात ठन नांव हे।फेर ननकी भई के धरे नांव -चंपा मोला ,सबले बने लागथे। सात भई के मंय ,एक बहिनी चंपा ।


   (सबो भाई हाथ म हाथ बांध के गोल हो जाथें । फागुन मंझ म रह जाथे। 



             पारंपरिक गीत- रुमझुम लोटा म पानी ल ,तँय दे दे न ओ सोनारिन दीदी बाजथे।



                     ( यवनिका पतन )




                        *दृश्य -2*


  (फागुन अपन बारी म एती -वोती किंजरथे।)


फागुन -  बड़खा भई ल लाल रकत बरन लाल भाजी बड़ सुहाथे। चल वोला टोर लेंव।


       (लाल भाजी टोरे लगथे )


फागुन -  वैशाखु भइया भाये बोहार के फूल अउ भाजी। चल वोकर बर , येला टोर लेंव।


        (बोहार के पेड़ म चढ़के ,फूल भाजी टोरे

के शुरू कर देथे)


 फागुन - जेठू भइया ल रुचथे हरियर लपलपात कांदा भाजी । येला वोकर बर टोर लेंव।


  ( फागुन कांदा भाजी ल टोरे के शुरू कर देथे।)


फागुन -सवनहा भैया ल बढ़िया  लागथे ये चेंच भाजी। वोकर बर येला घलव टोरे बर लागही जी।


(फागुन चेंच भाजी ल टोरथे।)


फागुन -भादो शंकर भइया तो ठहरिस बम भोले ! वोला भाथे ये खोटनी भाजी। चल वोला खोंट लंव मंय।


(फागुन खोटनी भाजी खोंटथे।)


फागुन- कातिक भइया के लार चुचवाय, जब वोहर नुनिया भाजी खटाई म पाय। वोकर बर मोला नुनिया भाजी टोरे बर हे जी।


(फागुन नुनिया भाजी ल सिलाथे।)


फागुन - अगहन भैया के ठाठ निराला फेर तिंवरा भाजी म वो कौरा उठाय। चल वोकर बर मंय ये तिंवरा भाजी टोर लेवत हंव।


(फागुन सब भाजी मन ल अलग अलग गठरी -मोटरी बना के वापिस होथे।


                  यवनिका पतन


                          *


                   *दृश्य 3*

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(घर म दई -ददा तीर सबो लइका संकेलाय हें।)


फुलबासन- मोर सात बेटा अउ एक बेटी !


बिसाहू- मोर आठ ठन बेटा ।


फुलबासन -ए दाई !वो कईसन ओ ? एक ठन बेटा ,अउ कोन कती हे।


बिसाहू (फागुन ल तिरत अपन कोती लानथे )- ये दे हे मोर वो मोर छेवर बेटा हर।


फुलबासन -हाँ...!ये बेटा के गोठ करत हस। मंय तो  डराइच गंय रहें,दई ।


बिसाहू- मोर आठ ठन बेटा हे तब आठ ठन बेटी हे ।


फुलबासन - ये फिर का आंय- बांय गोठियात रहथस दई ! डर डर लागथे।


बिसाहू - तँय कुछु भी कहले फुलबासन ।


फुलबासन - मंय तो ये कोती ल बर -बिहाव करे के शुरू करहाँ।(बड़खा बेटा चैतू कोती इशारा करत) फेर सबला पहिली नोनी फागुन के।


सब भाई -बढ़िया दाई !बढ़िया !


चैतू -मंय नोनी गोंदा ल मांग टीका दिहां वोकर विहाव म।


बैशाखू- मंय कान म कर्णफूल।


जेठू - नाक म रानी फूली अउ नथुलिया भाई जेठू के।


सावन - घेंच म रानी हार सावन लाल के।


भादो शंकर - हाथ मन म सोन के कंगन भैया भादो शंकर के।


कातिक राम - सोन के चुटकी सोन के मुंदरी सबो के सब कातिक राम के।


अगहन -मंय सोन कहाँ पांहा?तुमन सब कमाथव ,तब तुमन सब पा जईहा। मंय बहिनी बर बनाहा मोंगरा फूल के गजरा,खोपा म लगाय बर।


फागुन -बस बस भई मन !मंय तो येती लदा मरें न। राखव अपन अपन जिनिस मन ल ।अवइया भौजी मन ल,पहिनाहा ।मोला बस दे सकंव,तो बस अइसन मया -दुलार गा।


बिसाहू -मोर चल- अचल अतका अचक संपति म सबो लइका के बराबर हक्क हे।सरकार कहत हे।कानून दरबार कहत हे...


फुलबासन -ना...ना बबा, न...ना ! नोनी परगोत्री होथे । वोकर हक्क मइके के एक लोटा पानी बस!


फागुन -अउ तीजा के लुगरा,दई ?


फुलबासन -अरे वोहू ल ले लेबे,जब तीजा रहे बर, तीजा बासी खाय बर आबे त।


               यवनिका पतन




                     *दृश्य 4*

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         (बीस साल बाद के समय एकठन नांनकुन कुरिया म फुलबासन अउ  बिसाहू ,एकदम सिमट के बइठे हें।)


फुलबासन -फागुन के ददा!


बिसाहू -अब काबर फागुन के ददा कहके ओझियावत हस, फुलबासन? अब काबर चैतू के ददा,बैसाखू के ददा कातिक के ददा नई कहत अस,सियानीन ?


फुलबासन -जरे म नून मत घसरो न,गउँटिया!


बिसाहू -अब कहाँ के बिसाहू गउँटिया अब कहाँ के बिसाहू दाऊ, फुलबासन! तोर आगु म ,अभी जउन सांस लेवत हे, वोहर तो बस अब ये सात दुने चौदह झन प्राणी के बोझा भर ये।


फुलबासन -सच कहत हंव।एक नहीं दु झन बोझा। कइसे एक लोटा पानी बर तरसत हन।अउ सहाजी माल ,बनके रह गय हावन,हमन।


               (फागुन के प्रवेश। वो अपन गांव ल आवत हे। आके दई -ददा दुनों झन के पांव परथे )


बिसाहू -कोन ,फागुन बेटी!


फागुन -हाँ, ददा ।


फुलबासन- बेटी ,आ गय।


फागुन -हाँ,दाई !बने तो हावा न,तुमन?


(उत्तर म दई पलपल रोय लगथे।)


फागुन - बस मिल गय उत्तर । फेर तँय अब रो झन। तुमन चलव मोर संग । मंय भइया -भौजाई मन करा ,लड़े तो नई सकंव ,फेर तुमन ल अकेला मंय समोख लिहां।चला सदाकाल बर, मोर संग।


बिसाहू -काहीं कुछु नई होय ये ,बेटी।तोला देखत हे, तब येकर मया हर पलपलात हे, बस।


फागुन -मोर करा झन लुका,न मोला झन समझा ददा। महुँ घलव अब तीस बसन्त देख डारे हंव। बिसाहू गउँटिया अउ फुलबासन गंउटिन के ये हाल हे। चल तँय मोर संग। चल ददा चल ! चल दई चल!!


फुलबासन -सब बनही बेटी।फेर वोइच एके जिनिस भर हर नई बनय,जउन ल तँय कहत हस । सात दुने चौदह लात ,रोज खाबो, तबले भी हमन तोर संग नई जाय सकन।


बिसाहू -हमरो दई -ददा ,इन्हें संकेला गिन।हमु मन विसनहेच हो जाबो बेटी।


फागुन(रिस म)-फेर मोर संग नई जाय सकव भर न तुमन...


फागुन(रुक के )- पाछु होही गोठ बात।अभी तो मंय येमन के ओनहा -दसना ल परछर कांच देवत हंव।


              यवनिका पतन



                      *दृश्य 5*

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             (फेर 10 बच्छर बाद )


फागुन (स्वगत :अपने आप)-चल भइया मन ,मोला लेवाय नई गिन, तब मंय खुद चलके आ गंय मइके, तीजा के बासी खाय बर। 

         (फागुन मंच म रेंगथे)


फागुन -चल कोई बात नहीं। काम बुता के चक्कर म , भइया मन ल मोर सुध नई आइस होही।


          (फागुन मंच म रेंगथे)


फागुन -मोर सुध तो आइस होही,फेर लेवाय बर समे नई मिल पाइस होही।


           (फागुन मंच म रेंगथे)


फागुन - चल कोई बात नहीं।भई -बहिनी म का जिनिस के अतेक भेद ?अतेक इरखा? मंय आ गय हंव,तब भेंट करत जांव, भइया- भौजाई मन के।


        (फागुन बड़े भइया के दरवाजा पहुँचत रहिथे,फेर वोला देख के बड़े भौजी दरवाजा ल बंद कर लेथे।)


फागुन (अबक्क हो जाथे) -अरे ! काहीं बड़की भौजी मोला देख नई पाइस का जी।देखतिस तब ,वोहर दरवाजा ल बंद थोरहे करतिस। चल मंझिला भइया ,घर चलंव।


              (फागुन मंच म रेंगथे। वोहर मंझिला भाई के दुआरी म पहुँचने वाली हे कि फिर वोला देखके मंझिली भौजी दरवाजा ल बंद कर देथे।)


फागुन -ये का होत हे। जेकर दुआर म जाबे, उहाँ के दरवाजा बंद हो जात हे। काहीं येमन जान -बुझके तो नई करत हें। अब मंय समझें... सब जान बूझ के करत हें। भईया मन  चुप भौजी मन के राज !बस सब समझ गंय मंय। सब समझ गंय मंय।


      (फागुन मंच म रेंगथे। फेर अब रिस म तमतमात छोटे भई के दरवाजा पहुँचथे। छोटे भौजी  दरवाजा ल बंद करत रहिथे कि फागुन वोला धकियात अंदर घुस जाथे।)


फागुन -कहाँ हस घर खुसरा भई मन? तुँहर नारी मन ,ननद ल देख के ,दरवाजा बंद करत हें। 


छोटे भई -आ बइठ नोनी।आईच गय,दरवाजा ल धकेल के तब। ले जाबे तोर तीजा के नेंग लुगरा मोर कोती ले।


फागुन- अरे टार तोर तिजाही लुगरा ल। दई -ददा मन महुँ ल घलव ,बने घर म देंय रहिन हें सोच समझ के।उहाँ तोर असन ल मंय कमियां ओधा के राखे हंव। परंपरा ये कहके मंय खुद होके तुमन के अँगना आ खड़ा होंय ये तीजा के नेंग म ,फेर तुमन औरत मन के बुध म चलके ,बहिनी ल भुला गय हा।


छोटे भाई - बहिनी...!


फागुन -  सच कहे गय हे भई -जेकर मां नहीं

,वोकर गांव नहीं। जेकर मां नहीं,वोकर कईसन मइके।


छोटे भाई -बहिनी सुन तो...


फागुन -अब अउ का सुनहाँ? आँखी म देख डारें।


भौजी -बड़ गोठियात हस ,फागुन। हमु मन ल तो ,हमर भई -भौजी नई पूछत यें, तब तोला हम काबर पुछबो?


फागुन -तोर करा तो बातेच नई ये, भौजी ! मंय तो मोर भई करा हिसाब मांगत हंव न।तोर मोर झगड़ा तो बस एक आय न।


छोटे भाई -फागुन...


फागुन -दई -ददा के दया ले,फागुन चार झन ल खवा के खात हे । वोला काकरो जलहा - फंदहा तीजा के लुगरा के भूख नइये। वोला तो मइके के एक लोटा पानी के पियास रहिस,जउन हर नई मिलिस। फेर...


छोटे भाई -अउ का फेर...?


फागुन - फेर बहिनी के जी ल कलवा के अतेक आसानी ले ,वोकर बांटा ल नई खाय सकंव तुमन। मोला बांटा चाहिए अपन बपौती पूंजी म...। मंय सरकार दुआर जाहाँ।


(सब भई अउ भौजाई जुड़ जाथें। विचार विमर्श करथें। माफी असन मांगे के मुद्रा बनाथें। )


फागुन -  येहर फागुन के ही लड़ाई नई होय।फागुन असन लाखों -करोड़ों फागुन हें।वो सबके लड़ाई ये। सावधान भइया ! सावधान भौजाई !!  ये फागुन अउ येकरे कस आन फागुन मन अब रकत आंसू चुहात , मइके ल नई फिरें। वोला मान दो वोला सम्मान दो। नहीं त राज -दरबार सरकार दुआर कानून -कचहरी बर तियार रहव।



फागुन -वइसे बड़े भौजी ! तोर देय,ये तीजा के लुगरा हर पोठ हे।


                  (यवनिका पतन )


                   *समाप्त*

                  


लेखक -

रामनाथ साहू

देवरघटा (डभरा )

जिला -सक्ती (छ. ग.)-495688

मो -9977362668

Email -rnsahu2005@gmail.com




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