Friday 15 September 2023

अपन नावा अउ जुन्ना पीढ़ी के बीच समन्वय बनात जिम्मेदारी निभात आम -मनखे।सपूरन हर एकझन के ददा ये तब वोहर एकझन कनहुँ आन के बेटा घलो तो आय...!*

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*अपन नावा  अउ जुन्ना पीढ़ी के बीच समन्वय बनात जिम्मेदारी निभात आम -मनखे।सपूरन हर एकझन के ददा ये तब वोहर एकझन कनहुँ आन के बेटा घलो तो आय...!*


                     *ददा- बेटा*


               *(छत्तीसगढ़ी कहानी)*



         दूनो पतोहू मन ला अलगे- अलग पानी लानत देख मानसाय के माथा ठनकिस। ये का होवत हे! आन दिन तो बने हाँसत-बतरात

छोटकी फूलकुँवर अऊ बड़की पुरानमती इस्कूल तीर के बोरिंग ल पानी- काँजी लाने कम गोठियावें जादा । फेर आज का हो गईस येमन ल ?

"ददा चल रोटी खाबे.. |"बड़खा बेटा सपूरन हर वोला पानी धरावत किहिस तब तो वोकर अचम्भा हर अऊ बाढ़ गईस। वोहर ये देखे बर कि का होईस ये मन ला आज, लोटा के पानी ला धर के अंगनईया कोती आ गईस । सपूरन हर आज तक वोला अईसन पानी-काँजी धरावत खाये-पीये बर कभु नई बलाये ये। जबले छोटकी फुलकुँवर हर इहाँ आये हावे तबले ये हर वोकरेच बुता रहिस,वोकर पहिली सपूरन के महतारी हर अईसन बलाये।


           अंगनईया म बड़की बहुरिया पुरानमती गोड्सी मा लदकाय अंगाकर ला उतार के पान-पतई ला झारत रहिस। सपूरन अंगना मा

नानकुन मचुलिया ला लान दिस चुपचाप जईसन वोहर कहत रहय कि ददा अब येमा बईठ।

"लेवा डोकरा, रोटी खावा। तु लाखा में हमर कोती परे हावा। पहिली पन्दरा दिन एक पन्दराही हमर कोती खईहा तहाँ ले फेर

छोटकी कोती।अईसनहे टूटे हावे।" पुरानमती अंगाकर कुटी ल अपना ससुर मानसाय ला धरावत किहिस।

"कईसन लाखा? का होये हावे.. कोन टोरे हे..?" मानसाय के तो सुर हर बिछा गय रहिस।

"हमीच्च मन टोरे हावन ददा... लाखा घलो हमींच्च मन पारे हावन ।"सपूरन वोकर संग मा अपन बाँटा अंगाकर अऊ चटनी ला मलिया मा धरे बईठत कहिस।

"माने... तुमन... अब अलगे-बिलगे होबो कहत... हावा? "डोकरा के सुर हर अब तो अऊ बिछा गय रहिस।

"कहत नई अन ददा, अब हो गएन, समझले ।" सपूरन तरी मुड़ करके कहिस ।

'अऊ मैं... गम नई पाये!" मानसाय के सुर मा पीरा हर उतर गय रहिस।

"ददा... तोला...।" सपूरन अतका कह के चुप परगे। वोहर तरी मुड़ी करेच्च रहिस। दूनो के माली मा माढ़े अंगाकर कुटी हर

जुड़ावत रहिस जस के तस, तभे पुरानमती मा आके कथे, पहिली खावा तो ऐला...!


        सपूरन अपन माली  ला घर के ओधामा आ गय अऊ अपन बॉटा अंगाकर ला गप... गपागप खा दिस। वोला शहर जाये वर बेरा होवत रहिस। वोकर अपन बेटा इन्दर हर अपन लाली डरेस अऊ टाई- मोजा पहिन के खाँध मा बैग ओरमा के खोर मुँहटा म

वोकर रद्दा देखत रहिस।

"चल... चल... दऊ, तोला बेर हो जाही..."सापूरन सैकल के घंटी ला बजावत किहिस अऊ वोहर इन्दर ला बईठार के शहर कोती के रद्दा लिस। 


         वोहर तीर के सहर मा राजमिस्त्री के बुता करे अउ अपन घर ले रोज आना-जाना करे, तेकरे सेथी अपन बेटा इन्दर ल रद्दा म परईया अंग्रेजी इस्कुल मा पढ़ोये के जोम करे हावे। लईका हर बने पढ़- गुन डारे अऊ...। एक उन धुंधरा सपना हर वोकरो आँखी मा तऊरत हावै तभे तो इन्दर ला गाँव घर मा बॉटी- भँवरा खेलत देख, वोला पीरा होथे अऊ कभु -कभार वोकर बर गुस्सा घलो आ जाथे। एकरे सेथी वोहर वोकर बर दू दिन के दिहाड़ी ला मुरछ के चिड़िया खेले के झारा लान देये हे, बैट अऊ गेंद तो कबके लान देये हे। अगाहू अवईया पीढ़ी ला नई देखवे त कईसे बनही... | ददा...वो तो जुन्ना पीढ़ी ये। अभी रोटी ल धरे बईठे हे... नई खावत ये। अभी नई खाही त पाछु खाही... आज नई खाही त काल खाही, नई खाही त कहाँ जाही। अलगे-बिलगे होये के गोठ ला सुन के वोला पीरा होवत हे। वोकर से सलाह लेये रथिन तब तो वोहर कभु राय

नई देये रथिस। अलगे-बिलगे होये बर हे, तेकरे सेथी दूनो भई अऊ दूनो नारी जुर के अलगे कर लिन हे बरतन भांड़ा ला.. चूल्हा गढ़

गईस दू ठन। दू टेपरी खेत.. बदरा खार के तोर अऊ लीम खार के मोर। बनही...? बन जाही, लेन ठीक है। ददा... ला? पंदरा दिन तैं अऊ

पंदरा दिन मैं।


        सपूरन के सैकल साँय साँय चलत रहय ।केरियर मा बईठे इन्दर फाईव बन जा फाईव... फाईव टू जा टेन कहत रहय, दूनो के

चाल एक बरोबर रहय। छोटकी के किर्र-कार करे के सेथी मैं अलगे होवे हावों। ये ला पढ़ोवेच्च बर.. सपूरन गुनत हावे। छोटका

घलो आन मन करा कहत रहिस गाँव के सरकारी इस्कुल मा पढ़ोथिस त का होथिस। अब तो अलगे हो गय है, अब कोन कहोईया हे अऊ वोहर का गलती करत हावे.. ।


        सहर के सीवाना आ गय... अंगरेजी इस्कूल आ गय। इन्दर उतर गय टाटा करत... जा बेटा बने पढ़बे। ददा.. कोन जनी रोटी खाईस कि नींही...?



             सपूरन इन्दर ला उतार के बुता के अड्डा मा गईस त पता चलिस कि ठेकादार के ददा हर काल कर डारे हे.. सियानेच हो गय

तो रहिस.. तेकर सेथी आज बुता बंद हे । ददा... ! ददा रोटी खाईस कि नीही...? वोकर अंतस चिल्ला उठिस।


       अब तो सपूरन के सायकल घर कोती साँय-साँय चलत रहे... । वोहर इन्दल ल लेये बर पाछु फिर आ जाही।



*रामनाथ साहू*


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