Saturday 10 July 2021

पांव रहि त , पनही के का दुकाल -हरिशंकर गजानन्द देवांगन

 पांव रहि त , पनही के का दुकाल -हरिशंकर गजानन्द देवांगन

               कटकऊंवा जनगल के बीच टोनहीडबरी नाव के गाँव रिहिस । इहां रहवइया के संख्या बहुत कम रिहिस । नान नान झोफड़ी म नान नान कुरिया । नदिया नरवा के सेती चारों कोती ले आये जाये के साधन सुभित्ता घला नइ रहय । जंगल के बीच पैडगरी रसदा म , कांटा खुंटी के बीच , खेत खार नहाकत , अपन डेरा म पहुंचे लोगन मन । रात दिन जगली जानवर आये के डर रहय ।   

               गाँव के मनखे तिर , आय के भलुक बहुतेच साधन रहय । फेर ओकर मेहनत के कन्हो किम्मत नइ रहय । घरो घर गाय भईंस के सेती , दूध दही मही , फेर कन्हो बिसावय निही । दूरिहा जातिस त आवत जावत ले दिन पुर जावय अऊ किम्मत घला अउने पऊने मिलय । जंगल म बड़ फल फरहरी । इहां के मनखे मन , असाढ़ ले कुंवार तक खेती किसानी , तहन कतिक म छीताफल अऊ आंवरा हर्रा , अघ्घन म जाम अऊ कंदमूल बोईर , पूस म पपीता , मांघ म लाख , फागुन चइत म मउहा , बइसाख म चार तेंदू आमा अमली , बेंच के कइसनो करके , अपन जीविका चला डरय । 

               अतेक मेहनत के बाद भी जब येमन अपन सकेले समान फल फलहरी ला बेंचे बर जावय , त फकत लूट के शिकार होय बपरा मन । एक पैली चिरौंजी के बदला , एक पैली नून मिलय इनला । तेकर सेती अमीर धरती के ये मनखे मनले , गरीबी पिछा नइ छोंड़त रहय । 

                इही गाँव के , चैतू नाव के मनखे हा अबड़ शौकिन रहय । ओहा न केवल अपन सकले समान , बलकि गाँव के अऊ मनखे मन के घला समान बेंचे के खातिर , शहर जातेच रहय । एक बेर शहर जावत समे , खेत के मेड़ म रेंगत , ओकर गोड़ म कांटा खुसरगे । कांटा ओला अबड़ परेशान करिस । कांटा के सेती बपरा चैतू के , शहर जाये म बिराम लगगे । बहुतेच दिन घर बइठे बर परगे , बपरा के बड़ नकसान होइस । कांटा के कष्ट हा पांव बर पनही , बिसाये के हिम्मत दिस । जे दिन दरद कमतिअइस , उहीच दिन , परोसी के मउहा बेंचे के बहाना शहर चल दिस अऊ अपन बर पनही बिसा डरिस । 

               गरीब मनखे पहिली बेर पनही पहिरे रहय , पनही पहिर के रेंगे ला नइ आय बपरा ला । खेत के मेड़ म नहाकत बेरा , हपट के गिरं जहूं त पनही खराब हो जही सोंचके , पनही ला हाथ म धरके अपन गांव अइस बपरा हा । ओकर गांव म , देखनी होगे रिहीस पनही ....... । 

               दूसर दिन , मउहा बिने जाये बर , पनही पहिर के तियार होगे । पनही पहिर के जंगल जाये बर , ददा मना करिस , फेर चैतू ला , डिंगरई घला मारना रहय | संगवारी मन के आगू , पनही के रौब जमाना रहय , तेकर सेती अपन ददा ला किथे के - रसता के मउहा सिरागे हे , दूरिहा जाये परथे , रसता म बिक्कट कांटा खुंटी बगरे हे , तेकर सेती पहिर के जावत हंव । 

               जंगल म मउहा पटपटागे रहय । बिनत बिनत मउहा , ओकर पनही के तरी म चपकाये त , ओसन मउहा ला सकेल के , टुकनी म धरे बर , थोकिन बने नइ लागय । पनही के खुंदाये ला कइसे लेंगव सोंचे लगिस ....... इही मऊहा ले कभू कभार , यहू मन , घरे म मंद उतारय । पनही ला उतार के देखिस त , नावा पनही के पेंदा ला , मउहा लटक चिपक के , खीक करदे रहय । पनही ला , कन्हो झिन पहिरय सोंचके , रूख के ओधा म मढ़हा के , सुटुर सुटुर मऊहा बिने लागिस । संगवारी मन देख डरिन , ओमन मजाक करत किहीन , पनही म मउहा के रसा चिपक जही त , पनही ला नसा झिन धर लेवय कहिके , तिर म मढ़हा दे हाबस का जी ........? 

                 हंसी मजाक के बीच , महर महर बगरे मउहा के गंध पाके , दू ठिन भालू पहुंचगे । चैतू अऊ ओकर संगवारी उप्पर हमला बोल दिस । टुकनी ला उही तिर पटक के , रटपट पल्ला छांड़ , गांव कोती दऊंड़िन । चैतू के पनही उही तिर छुटगे । पनही पनही रटत , गांव पहुंचगे । पनही बर पछतावत , फकत पनही के गोठ करत , संगवारी मन संग लिम चौरा म , उदास बइठे रहय चैतू हा , तभे गांव के एक झिन मनखे ला , चिंगिर चांगर धर ले लानत देखिस । लनइया मन बतइन के , मऊहा बिनत बेरा , भालू हमला कर दिस , जोर से भागे नइ सकिस , ओकर पांव ला भालू चिथ दिस । बपरा के पांवेच गै । चैतू ला घेरी बेरी , पनही बर पछतावत देखे संगवारी किथे - पनही के चक्कर म , तोरो पांव अइसने चल देतिस बाबू , तब तैं पनही ला का करते ? घेरी बेरी पछता झिन बाबू , पांव रहि त पनही के का दुकाल ..........।

हरिशंकर गजानन्द देवांगन

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