Saturday 17 July 2021

विषय-- कला के बरगद अउ नवा कलाकार के आस*


*विषय-- कला के बरगद अउ नवा कलाकार के आस*


पटल म रखे गे आज के विषय बहुतेच खास हे जेन बहुत कुछ सोचे बर प्रेरित करत हे। मन-मस्तिष्क म नाना प्रकार के विचार असाड़ के बादर कस उमड़त -घुमड़त हे। कोन ल पकड़े जाय अउ कोन ल छोड़े जाय ।ये ठीक-ठीक समझ म नइ आये ल धरत ये।

          कला के बरगद हम काला काहन या मानन ---उही ला न जेन हा कला के कोनो भी क्षेत्र जइसे संगीत, चित्रकारी ,नृत्य , स्थापत्य, मूर्ति निर्माण,गायन अउ साहित्य लेखन  आदि म महारत हासिल कर चुके हे।जेखर सो अपन कला के श्रेष्ठ अउ पूर्ण ज्ञान हे।जेखर वो कला के कारण समाज म ख्याति हे अउ जेखर  अबड़े चाहने वाला या अनुयायी या शिष्य तको हें।

   अइसे माने जाथे के बड़े  बरगद के पेंड़वरा ह मोठ होथे  ,वोकर डारा -शाखा ह लम्बा -लम्बा,दूर-दूर ले बाँह पसारे फइले रहिथे जेमा अनेक जीव-जंतु मन आसरा पाथे।चिरई-चिरगुन मन सुग्घर खोंधरा बनाके हली-भली रहिथें। घमघम ले घन छवाये हरियर-हरियर पाना के छाँव म राहगीर मन बइठ के सुरताथें - थिराथें। कभू बरसत पानी म भिंजे ले बँचाय बर बरगद ह छाता कस बन जाथे। 

        कभू-कभू तो कुँवर-कुँवर, नार-बियार मन ये बरगद के सहारा लेके ,ओकर पीठ म चढ़के थिलिंग ल तको अमरे ल धर लेथेंं। कुल मिलाके ये रूप म देखे जाय त बरगद ह सच म देव स्वरूप होथे।

      इही ढंग ले जेन मनखे सच म कला के बरगद होथे वो ह नवा नवेरिया कला साधक ल आसरा देथे। अपन कृपा छँइहा म अभ्यास करे के, ज्ञान पाये के अवसर देथे।अपन शिष्य ल स्नेह करके गुरु रूप म सच्चा मार्गदर्शन देथे। कभू-कभू अपन शिष्य के कल्याण बर अपन बड़प्पन अउ बड़े ज्ञानी होये के अभिमान ल छोड़के ,थोकुन झुके असन होके हाथ पकड़ के उपर उठा के हिरदे ले लगा लेथे। लता सहीं कोनो विनम्र ज्ञान पिपासु ल सहारा देके यश के अगास ल झँका देथे।

          फेर अइसनो देखे-सुने म आथे के कुछ कला के बरगद मन अपन तरी कोनो नवा पौधा ल जामन नइ देवयँ। हो सकथे उन डर्रावत होहीं के कोनो पौधा हमरे तरी जामके ,हमर ले बड़े झन हो जावय। वोकर मान गउन हमर ले जादा झन होजय। 

     कुछ नवा कलाकार ,साहित्य के क्षेत्र म नवोदित कलमकार ह अइसन कोनो बरगद के तरी म जामके ईमानदारी ले जोर लगा के एको बीता बाढ़ जथे त वो बरगद ह फूटे आँखी नइ  भावय। कई ठन लांछन लगाके, सृजन म फोकटे-फोकट गलती निकाल के निंदा अउ चारी-चुगरी करे ल धर लेथे। कइसनो करके वो नवा कलाकार, कलमकार के बढ़वार ल रोक के मुरकेटे के उदिम करे ल धर लेथे।

    अइसन अनदेखना अउ बस मैं-मैं हाँकने वाला बरगद मन ,बरगद के नाम म कलंक आयँ।

    अब तो बोनसाई कद म ठेमना बरगद तको हें। नाम भर के बरगद ,जेमा बरगद के कोनो गुन नहीं। ये मन ल खुदे सहारा के जरूरत रहिथे।ये मन भला नवांकुर ल का सहारा देही फेर घमंड म अँइठ के बरगद कहाये ल नइ छोड़यँ। अधजल गगरी ह जइसे छलक-छलक के बाजे ल अपन शान समझथे ओइसने ये कला के बरगद मन अपन गुण के ढिंढोरा पीटत रहिंथे। इखँर जाँच करे म ठोल के भीतर बड़े-बड़े पोल मिलथे।

      फेर ये बात सोला आना सहीं हे के जेन कला के सच्चा बरगद होथे वो ह अपन तरी के नवा कलाकार रूपी पौधा ल एक पिता कस सहारा देके अपन क्षत्र-छाया म बाढ़े के ,फले-फूले के भरपूर अवसर देथे।

           नवा कलाकार मन अइसन बरगद कलाकार मन ले अबड़ेच आशा लगाये रहिथें। उन चाहथें के कलाकार बरगद सो जतका गुण हे वोला पूरा-पूरा दे दय। मँदरस के एको बूँद झारे म झन बाँचय। पूरा-पूरा तो मिलबे करय उहू म झटपट मिलय।  जादा कठिन अभ्यास करे ल झन परय। एको कनी घाम-पियास ल झन सहे ल परय। रातों रात स्टार बने के सपना----। कभू -कभू तो कोनो नवा कलाकार, कलमकार  ह  कला के बरगद के पीठ म चढ़के वोला नँवा के छम-छम नाचे ल धर लेथे भले ताल मिलय चाहे झन मिलय, मिटमिटाये म कोनो कमी झन राहय। बखत म अइसन नौसिखिया, शेखिया मन अपन  ज्ञान देवइया के बुढ़ना झर्राये म थोरको कमी अउ संकोच नइ करयँ। कुछ नवा कलाकार मन तो चाटुकारिता के समुंदर म गोतामार के कीर्ति  के मोती पाये के आशा करत रथें । अइसन मन चाहथें के मीठे-मीठ, गुप-गुप झड़के ल मिलय। कला के बरगद कोती ल एको कनी करू-कसा मत मिलय।

     कुछ झन तो पाँच गाँठ हरदी ल पाके थोक समान के दुकानदार बन जथें। सहीं माल अउ सहीं दाम के बड़े बड़े विज्ञापन वाला बोर्ड टाँग देथें। एको जिनिस खरीदे के पिछू पता चलथे---अरे ये तो ऊँचा दुकान फीका पकवान वाले बात हे। कोनो-कोनो कला के बरगद ल अइसन नवा चाटुकार कलाकार बहुतेच भाथे।

      हमर विचार ले नवा कलाकार मन ल ,कला के बरगद मन सो विनम्र होके ज्ञान पाये के आशा करना चाही। कठिन अभ्यास के बल-बूता म उन्नति के सिढ़िया म चढ़के मान-सम्मान के मीठ फर ल तोड़ना चाही। चाटुकारिता के जहर ले दूरिहा रहिके जादा ले जादा अध्ययन करना चाही। दुनिया ले अनुभव लेना चाही।

             एक हाथ ले  सिरिफ चुटकी बाज सकथे।ताली बजाये बर दुनों हाथ के जरूरत परथे। कला के क्षेत्र म बने ताली बजाये बर कला के बरगद अउ नवांकुर कलाकार मन ल अपन -अपन कर्तव्य अउ जिम्मेदारी के बढ़िया निर्वाह करे बर लागही।



चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

No comments:

Post a Comment