Saturday 10 July 2021

ममा गाँव अउ मोर गरमी के छुट्टी*-बलराम चंद्राकर

 *ममा गाँव अउ मोर गरमी के छुट्टी*-बलराम चंद्राकर


ममा गाँव के नाँव मा मुँह मा मँदरस घुरे बर धर लेथे।समय बहुत आगू सरक गेहे फेर सुरता पाछू खींचत रहिथे।नानकुन अमेठी गाँव। एक ठन तरिया। एकरे तीन मुड़ा पारे पार गाँव बसे हे। बीच मा कुर्मी यादव गोड़ अउ दोनों बाजू मा सतनामी समाज के आबादी के बहुलता। दाई के गुराँवट बिहाव होय रहिस।यानि फूफू हर मामी होय रहिस त दीदी काहन।गुराँवट वाले मामा हर, दाई के कका के अकेला बेटा। ये बात ला मैं थोकन बड़े होयेंव तब जानेंव। तीन झन मामा अउ रहिन दाई के सहोदर।सब के अलग अलग घर।हमर बड़े दाई घलो ममा गाँव मा बसगे रहिन अपन चार झन बेटा संग। सबो ले बरोबर प्रेम व्यवहार। फेर हमर आना- जाना गुराँवट वाले ममा घर ही होवय। मोर बर पूरा अमेठी गाँव  ममा मामी मन के बस्ती रहै।चाहे वो कोनों जात के होय। कई झन मामी मन केलौली करै देखै तहाँ, "थोकन ठड़ा हो भाँचा, पाँव परन दे।" अउ मैं भागँव। अब सुरता हा भावुक कर देथे। ममा गाँव मोर बर प्रेम के पिटारा रहे हे। कतको भूल-चूक ला बिसार के मया करैं। फेर समय बदल गेहे। जाना कम होथे। नवा पीढ़ी आ गेहे। बबा, ममा दाई, ममा, दुनिया मा नइ हे।आज सुरता के गंगा बोहावत हे। धन्य हे गुरुदेव! अइसन विषय मा लिखे बर प्रेरित करिन। 


ममा गाँव अउ गरमी के छुट्टी । सोच के सुरता के डोरी लाम गेहे। गरमी के छुट्टी मा ममा घर जाय बर लुकलुकाय रहन।मोर गाँव सड़कविहीन रहिस - सिसदेवरी।पथरिला अउ चिखलहा। चार पाँच महीना केवल पैडगरी रस्ता काम आवय। नहर के तीरेतीर। बड़ बिच्छलहा माटी ।अइसन मा ममा गाँव के बात निराला। आरिंग शहर ले लगे नरवा तीर अमेठी गाँव। महानदी गांव के खार ले लगे। बैलगाड़ी के जमाना रहिस। चउमास छोड़ के बाकी दिन मन मा साईकल घलो साधन बन जाय। कभू दाई सँन अउ कभू अवइया जवइया घर परिवार सँग ममा गाँव जाना होवय। सुंदर सपना के गाँव रहै ममा गाँव।बस ट्रक मोटर गाड़ी देखे बर मिलय। आरिंग सहर जाय बर मिलय।तरिया मा डुबकना अउ दिन भर बटन - चित्ती, तिरी- पासा, अट्ठा चंगा, रेसटिप, बिल्लस, आमा अमली,डंडा पचरंगा, भौंरा बाँटी, इही मन मा समय बितय।  ममा गाँव पहुंच के मोला बड़ हरहिंछा लगै ।आजाद हो जाँव। दू महीना बितै इहाँ ।बिट्टा घलो जाय कभू कभू ।काबर गजब पदोवँव। कूर्ता के बटन नइ बाँचय। बबा गोटानी धर के निकलय।"करम छाँड़ दिस, रोगहा- सारा , सफो बटन ला पूदक देहे।" हसिहा मा काटे के कारण सुतरी के सँग कूर्ता तको कतरा जवय।

कभू भगवान के फोटो के नकल करौं शीश मा। कभू तेल चुपरँव बबा ला। बबा ढेरा डोरी करै ।साथ देवँव ता खुश हो जाय। उन ला लगै कि मैं सीखत हँव बने पटवा ला आँटे बर। ममा दाई हँसमुख रहै हमेशा। बोलै कम फेर दिन भर घर के काम कमई अउ बबा के सेवा जतन के खियाल रखना। ममेरा भाई मन सब बड़े। पिठैंहा चढ़ना, तरिया मा डुबकना,भैया मन के कन्धा मा बइठ तरिया के आरपार होना। खजरी - वजरी के डर नइ रहै। मार मँझनिया भर गाँव भर के लइका मन सँग डुबकईच रहै।

एक दिन भैया मन आठ दस झिन सांझ कन आरिंग गिन महूँ उँकरे मन सन साईकिल मा बइठेंव। सब झन पइसा सकेल के टिकट खरीदिन फिलिम देखे बर। मोला रोवाय बर हरे कि सिरतोन ते, कहिंन "तैं बाहिर मा बइठे रहि, हमन पिक्चर देख के आवत हन।मैं रोये ला धर लेंव तब महूँ ला भितर लेगिन टाकिज के । मैं अचकचागेंव। पिक्चर परदा मा चलत हे कहिके नइ समझ मा आइस।सब साक्षात लगिस। आगू मा पटनी के लम्मा सीट रहिस उही मा बइठे रहेंन।जीयो और जीने दो - पहिली फिल्म देखेंव टाकिज मा अउ जिंनगी मा। इही मन ममा गाँव के विस्मित ना होने वाला सुरता हरे।


ममा के चार बेटा एक बेटी अउ वोकर मन के बीच मा मैं नानचुन। वो मन झगरा होय तो कभू नइ सुनें रहन तइसन गारी देवय।हमर गांव अउ ममा गांव के बोली मा थोरक अंतर रहै।कोनों कोनों ला परई कहै त कोनों कोनो ला कुरेड़ा ।गुड़ - शक्कर वाले पठेरा के तारा खुलै तब शक्कर खाय बर झगरा मातय।बुआ रोवय।


ममा के बड़े बेटा के बिहाव बखत के बात आय। पूरा घर सगा सोदर ले भरे रहै।महूँ दाई संघ गेंव अमेठी। आरंग खरोरा रोड ला डामर करे बर नरवा तीर मा डामर भरे ड्रम मन रखाय रहै। गरमी मा पिघल के बोहाय  रहै। घर लेगहूँ डामर ला कहिके दोनों हाथ ले डामर ला उठायेंव। नान नान कोंवर हाथ।दोनों हाथ हर फदफदागे अउ एक दूसर ले चिपकगे । रोवत  घर आयेंव। खूब गारी मार खायेंव।माटी तेल मा रगड़ रगड़ के बड़ मेहनत ले डामर ला निकालिन।नवा- नवा भौजी आय रहिन,  अभो मोर उपदरो ला सुरता कर के हाँसथे।बाद मा दू झन भइया के बिहाव एक साथ होइस। भौजी मन के मया घलो महतारी कस रहे हे। बड़ सुखद। 


बड़े होवत ले गरमी मा आना जाना रहै मामा घर।घर मा बहुत अकन भँइसी रहै।दूध निकलै वोला धर के आरिंग जाँव होटल मा दे बर। तुरंत पइसा नइ मिलै तब रोज एक शो विडियो देखँव। या टाकिज मा पिक्चर। कभू - कभू घर मा जेंन भौजी ला पइसा के जरूरत होवय आधा चुमड़ी धान ला अउ लाद दँय साइकिल मा। होटल मा नाश्ता पानी घलो पक्का हो जाय। गरमी के दिन हा अइसनो गुजरे हे।ममा के अपन दुनिया रहै। रोज आरिंग जाना अउ सांझ ले आना। पोठ किसानी रहिस ।नौकर चाकर के भरोसा खेती बारी। बबा अउ बुआ के जिम्मा ज्यादा रहै खेतखार अउ ब्यारा कोठार।

गांव के माहौल बड़ सुग्घर लगै। एक दूसर के घर उठना बइठना, हर दुख सुख मा साझीदार होना। दुआभेद हमर नजर मा कभू नइ देखेंन।एकर सेती ममा गांव के मधुर स्मृति आज भी मन मस्तिष्क मा अंकित हे। ममा गांव के सुरता हा मन ला सुख देथे, प्रफुल्लित कर देथे।  वो समय ला याद करे ले मन ला संजीवनी मिलथे।जिहाँ अभाव के नामोनिशान नहीं। उतयईल लइका रहेंव ।कोनों कोनों गलती अउ वो बेरा के पीरा दायक बात घलो अब मधुर स्मृति कस लागथे।

मँझला मामा के बड़े बेटा गांव के प्रभावशाली व्यक्ति रहिन। विजय गुरु मंत्री रहिन तब खूब चलै।जनपद सदस्य अउ सरपंच रहे हें। बारहवीं के परीक्षा के बाद ममा गांव मा मेंट के काम घलो करेंव।मस्टरोल बनावँव। मोर खर्चा के इंतजाम बढ़िया रहै।


बात बहुत अकन हे।गर्मी के छुट्टी मा ममा गांव के मजा मोर जिनगी के सुग्घर अनुभव हरे। जेन हमेशा मोला सुख देवत रइही।आजो सब ले सुंदर रिश्ता हे। फेर जाना आना कम हो गेहे। पीढ़ी बदल गेहे।बँटवारा- बँटवारा मा घर मन घलो बँट गेहे। सब ला रोजी रोटी के संसो। दुनिया के भागदौड के हिस्सा बन गेहें। कम पढ़े लिखे गांव फेर होनहार ममा के बड़े लड़का आज रायपुर शहर के बड़े उद्यमी मा गिनती आथे। जेन हा हमर लिए गौरव अउ ताकत हरे। मामा अउ मामा परिवार ला प्रणाम।  राजा मोरध्वज के नगरी अउ कौशल्या माता के मइके आरिंग- राम के ममा गांव, अउ ओकर सरहद मा अमेठी-मोर ममा गांव, सिरतोन मा मोर बर सुंदर सौभाग्यधाम।


*बलराम चंद्राकर भिलाई*

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