Sunday 4 July 2021

प्राथमिक शाला के सुरता*-बोधनराम निषाद

 *प्राथमिक शाला के सुरता*-बोधनराम निषाद


      मोर गाँव थान खम्हरिया,जिला-बेमेतरा(छ.ग.) । बड़े भाई ला तो मँय जानँव नहीं, ओखर गुजर जाय के बाद मोर जनम होइस । घर परिवार खुशी छा गे । पारा बस्ती के मनखे मन घलो खुश होके काहन लगिस कि ये लइका हा सबके मन ला बोधे बर आ गे । इही कारन मोर नाम *बोधन* पड़गे । मड़ियात बइठत ले काहीं पता नइ चलिस फेर अइसे तइसे मोर उमर हा दू ले तीन बछर होगे नइ रेंग सकेंव तब मोर बबा हा एक तीन चकिया ढपेल गाड़ी बनाइस । इही ढपेल गाड़ी के सहारा कुछ गोड़ उठाये के कोशिश करेंव । तभो ले घेरी बेरी गिर जावँव । उमर निकलत- निकलत नौ बछर होगे, स्कूल के मुख ला देखे नइ रेहेंव । वो समय सन् 1980 के आस-पास गुरूजी मन स्कूल मा लइका भर्ती करेबर घरो-घर आवय-जावय । एक गुरूजी मोर घर मा आइस, जात के त्रिपाठी ब्राम्हण, मोला देखिस अउ मोर बबा ला कहिस कि ये लइका के कतका उमर होगे ? जवाब मा बबा - एखर उमर नौ बछर के हावै । ये लइका हा चल-फिर नइ सकय, तेखर सेती एला स्कूल मा भर्ती नइ करेहन गुरूजी । गुरूजी बोलिस - का अइसने मा एखर जिनगी ला अँधियार करहू ? बबा के संगे संग दाई-ददा ला घलो चिंता होगे । कहिस अब कइसे करबो गुरूजी ? ये लइका के जिनगी के का होही ? रद्दा बतावौ । हाथ जोर के खड़े होगे । गुरूजी कहिस - चिन्ता के कउनो बात नइ हे । उही दिन गुरूजी त्रिपाठी जी हा तुरते अपन रजिस्टर निकालिस अउ उमर ला दू बछर कम करके मोर नाम ला लिख डारिस । सन् 1980 मा मँय प्राथमिक शाला थान खम्हरिया मा पढ़े लगेंव । गुरूजी हा खुद अपन साईकिल मा बइठाके मोला लेगय अउ लानय । ये बूता ला गुरूजी दू महिना तक करिस फेर एकझन बड़े लइका ला कहिस - तँय ये लइका ला स्कूल मा रोज लाबे अउ घर लेगबे, एखर दाई मेर चना मुर्रा माँग के खा लेबे । तब वो लइका हा मोला एक बछर तक लानना - लेगना करिस । फेर मोर आदत बनगे । मँय स्कूल जाय बर रोज बासी खा के बिहना 8 बजे निकलँव अउ 10 बजे तक पहुँच जावत रहे हँव । पीठ मा बस्ता लादे धीरे - धीरे आवँव जावँव । कई बार गिर अपट जाँव । देखइया मन मोला उठा के खड़े करै । 

      प्रार्थना मा सबले पाछू खड़े राहँव । सबके जाय के बाद कक्षा मँय घुसरौं । अउ सबके निकले के बाद कक्षा ले मँय निकलौं । बड़ कष्ट मा मोर आना-जाना होवय । कक्षा दूसरी मा जब पढ़त रहे हँव वो दिन बरामदा के एक छोर दूसर छोर जाय बर एक नवा गुरूजी हा कहिस, सब लइका चल दिस, मँय अकेल्ला बाँच गेंव । मोला देख के गुरूजी भड़क गे । तीर मा आइस, मोला चेथी ला धर के उठाइस अउ चेथी ही ला मारिस । मँय माथा के भार गिर गेंव । मोर माथा फुट गे । हेड मास्टर त्रिपाठी जी ये सब हाल ला देखिस तब वो गुरूजी बर बहुत जोर गुस्सा होइस । गुरूजी हा क्षमा माँगिस । 

      कई बार दूसर लइका मन संग मोर झगरा घलो हो जावय। बइठे-बइठे मारौं अउ मार घलो खावँव । फेर मोर सुरता नइ भुलावय । आज घलो आँखी-आँखी मा झुलत रहिथे । गीत कविता गाये के सौंख तो जब ले पुस्तक पढ़े बर धरेंव तब लागत रहिसे । स्कूल के कार्यक्रम मा घलो गीत कविता गावत राहँव । गणित बनाय मा मोर मन जादा लागय । मँय हर कक्षा अउवल राहँव । दाई-ददा गरीब राहय ते पाय के घर मा बिजली घलो नइ राहय । मोर पढ़ाई लिखाई हा माटी तेल वाले चिमनी के अँजोर मा होवय अउ घर के दुवारी गड़े बिजली खम्भा मा लगे बिजली के अँजोर मा होवय । पुस्तक कापी ले के घलो हिम्मत नइ राहय । दूसर के पुस्तक ला पढ़ के उत्तर ला अपन कापी लिखँव अउ याद करँव।  अइसे- तइसे करके सन् 1985 मा मँय पाँचवी कक्षा ला पहिली नम्बर मा पास होयेंव । 

     मोर पढ़ाई लिखाई ला देख के मोर घर परिवार मा खुशी छागे । सोंचे लागिस कि ये *बोधन राम* अब आगू अउ पढ़ लिख के अपन जिनगी ला बने सँवार लेही । 


लेखक:-

बोधन राम निषादराज

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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