Sunday 23 October 2022

बरेंडी म ईमानदारी महेंद्र बघेल

 बरेंडी म ईमानदारी

                महेंद्र बघेल


ये भुॅंइया के किसान, बनिहार, मजदूर , ईमानदार कर्मचारी-अधिकारी , राष्ट्रवादी बेपारी अउ देश के जम्मों जनता-जनार्दन के तिहार देवारी ह अपन कोरा म खुशियाली धर के आथे।तेकर सेती लोगन मन सुरहुत्ती अउ गोरधन तिहार के जोरा म चिभके रहिथें।

एती-ओती चारो कोती, जे डहर देखबे तिही कोती सइमो-सइमो करत ..,

बाजार म रौनक.., भीड़-भड़क्का म लुटियन बेपारी मन के लूट-खसोट घलव जारी रहिथे। डब्बा म छपाय रेट ल मिटाके अपन हिसाब ले मनमाने रेट चिपकाके समान बेचे के खुलेआम खेल चलथे।

         यहू सीजन म बोतल म बंद कुंभकरण के जिपरहा जीजा मन.., जिन्न सही बोतल ले फेर भुस्स ले निकलही।ऑंखी रॅंमजत मिठई दुकान म जाके हलवई ल बमकावत धमकी-चमकी लगाही -" कइसे तोला सुरता नइहे का तिहार आ गेहे तेला, मिठई म थोरको भी मिलावट नइ होना चाही , का समझे...? अउ कहुॅं चलाकी करेस बेटा त तोला बहुत माहॅंगी पड़ही। " 

    जिन्न के टाॅंठ-टाॅंठ बोली भाखा ल सुनके हलवई राजा के खोपड़ी म बुध के तागा ह फसत जही ।तहां अपन अंतस के राष्ट्रीय भावना ल लहरावत गुनान करे लगही- " लगथे पाछू तिहार सही यहू साल के बेवहार ल निभाना पड़ही।"

     फेर सामाजिक समरसता के वातावरण म जिन्न अउ हलवई के बीच म पहिली छेमाही के शिखर-वार्ता शुरू हो जथे। ओकर बाद दूनो महानुभाव मन के बीच म भुगतान संतुलन के मामला ह वर्चुअली ढंग ले सेट हो जाथे।                           

        एती महंगाई म लेसावत -भूॅंजावत जनता ल बेमझाय बर मिलावट जाॅंच करे के नौटंकी घलव करना पडथे..! ये उदीम म जिन्न ह बसनाहा-दिन्नाहा मिठई के जप्तीनामा बनावत मामला ल ठंडा बस्ता म डारे के कोशिश करथे।  उनकर झोला छाप फोटू खिचईया मन चक चका-चक फोटू खिंचथें।

बिहान दिन थुकलू मीडिया के जम्मो राष्ट्रवादी चैनल म भारी सक्रियता दिखना शुरू हो जथे। अउ मिलावटी मिठई के भंडा फोड़, भंडा फोड़ ...! कूद-कूद के  बोमियावत प्रसारण शुरू हो जथे।

   पेपर के ब्रेकिंग न्यूज म छपके दिन्नी मिठई ह पढ़ंता (पाठक) मन के मुहुं के सवाद ल बसिया घलव देथे । 

   तब लगथे सिरिफ तीज-तिहार म ये महान ईमानदार अधिकारी-कर्मचारी मन कई-कई ठन दुकान म जा-जाके लरहा लहवई मनके हलवा टाईट करे के सरकारी प्रर्दशन भर करथें।

अउ इही उदीम करत महंगाई के वायरस म हफरत जनता ल ये जिन्न मन अपन विभाग के जीवित होय के आभासी प्रमाण सौपथें।

   चारो मुड़ा हो-हल्ला होथे, देश म ये का होवथे कहिके नेता-अधिकारी मन ऑंखी तरेरत हाड़ा प्रूफ खड्डा ल पहिरके अपन-अपन छाती ल पिटना शुरू करथे।

    येती भारतीय होय के धरम निभावत देश-प्रेमी खाद्य निरीक्षक ह अवईया फागुन तिहार तक जिन्न बनके फेर बोतल म खुसर जाथे।

  एक लेब ले दूसर लेब, दूसर ले तीसर ,तीसर ले चौथा करत-करत बसनाहा-दिन्नाहा मिठई ह खुदे अपन राज धर्म गवाॅं देथे। ये तो गुनान करे के बात आय..,जब जिन्न के जेब ह गरम हो जही त टेंशन म लेब के केमिकल ह पथरा ल रिएक्शन करही। इहाॅं-उहाॅं भटकत ये मिठई के लकड़ाय-सुखड़ाय सरूप म मिलावट के डी एन ए खोजत-खोजत बपरी केमिकल के जोश-खरोश ह खुदे कुटी-कुटी हो जथे।

        देवारी के चार महिना पाछू फागुन तिहार म ये जाॅंच रिपोट के सादर आगमन होथे।पेपर के आखिरी पन्ना के कोन्टा म नानकुन छपके सुधवा जनता ल बिजराथे..। जेमा लिखाय रथे मिठई म मिलावट के सिरबिस अभाव..!

         शोध करईया विशेषज्ञ मन कहिथें- मिलावट ल सोज्झे मिठई म नइ मिलाय जाय भलुक जेन जिनिस (दूध, मंदरस, दार, मेवा, शक्कर, घीव, केसर ,वर्क) ले मिठई ह बनथे ओमे मिलाय जाथे।

वर्क म एल्युमिनियम.., दूध म यूरिया अउ वाशिंग पाउडर.., घीव म चर्बी.., दार म टेलकम पाउडर अउ ..  अउ का का जति..!

                     भोरहा घलव हो जथे.., देश म उभरत ये नेवरिया अर्थशास्त्री मन के हिसाब ले अमला-दीपादमन प्रभाव तो नोहे - " मिठई म मिलावट नइ रहय भलुक समान ह ओरिजनल नइ आय।"

     त सिरिफ मिठई च म नहीं खाय-पीये के कतको चीज म ये मिलावट ह अपन घुसपैठ कर डरे हे। चहापत्ती म डबके चहापत्ती.., धनिया म घोड़ा के लीद.., मरीच म पपई बीजा..,हरदी म  घोड़ा लीद अउ पींवरी छुही.., मिरचा म ईटा पाउडर.., बेसन म बटरी पिसान अउ .., अउ का का ..। तेल के तो कोई दाई-ददा च नइहे.. !

        अउ हमन बड़ शुद्ध सात्विक बरोबर घमंड म बोमियावत हन - "हमर सीमा म ककरो अतिक्रमण नइ होय हे!" अपन बुध के खइपा ल उघार के देख गोतियार.., "मिलावट खोर मन हमर रॅंधनी खोली तक मिलावट के पक्की सड़क बना डरे हे।"

         संझा-बिहनिया हमर बहिनी-महतारी मन घर ॲंगना ल बहारथे...। झिल्ली, पाउच-डिस्पोजल के बउरे कचरा ला ओंटा-कोंटा म लोर देथें। तहां एकेच दिन ले डस्टबिन म राखथे अउ पाई-परिया, सड़क-तरिया.., नाली-घुरवा म बरो देथें।

देश म इकरे भरोसा म स्वच्छ भारत अभियान ह जिंदा हे। चुकचुकहा छपास नेता मन देश के राजधानी म इही सकलाय कचरा ल एती-ओती बगरा देथे। अउ चटक-मटक करत अलग-अलग एंगल म फोटू खिचवाय बर झपाय परथें..।

      इही छपास नेता मन के किरपा ले सनपना-झिल्ली परिवार के लोग-लइका मन कूड़ा-कचरा के भाव-भजन म लगे रहिथें।आजादी अउ गांधी दिवस के आघू-पाछू छेमसिया जिन्न के लगवार मन, सनपना के विरोध म नारा लगावत अभियान चलाथें।

     बजार अउ रद्दा-बाट म नान्हे दुकानदार मन के झिल्ली ल झटकके चलान काट देथें।फेर बड़े-बड़े दुकानदार के आघू म इकर गतर नइ चले..., सू-सू निकल जथे। येला देख के झिल्ली-सनपना के जी ह कउव्वाबे करही।

मने एक ल माई अउ एक ल मोसी।

              पूजनीय जिन्न महोदय जी के फुरसदहा घटर- घटर सूते के फायदा जम्मो लुटियन बेपारी समाज ल सदा मिलते आय हे ।आप मन के गुण के कतिक बखान करन। सबले पहली धान-गहूॅं, साग-भाजी डहर ले हैप्पी दिवाली ,आपे मन के किरपा ले आजकल बड़े-बड़े फारम म.., खेत-खार अउ बखरी-कछार म.., बिना डिग्री के ॲंखमुंदा जहरीला दवई-खातू छींचे के कंपिटीशन चलत हवय। 

    जेन दवई के असर ह बीस-बाईस दिन ले फसल म रहिथे।उही दवई ल रमकलिया म छींचे जाथे अउ तीसरइया दिन वोला बजार म ले आथें। झोरा म चढ़के उही हरियर-कोंवर रमकलिया ह रॅंधनी घर म पहुॅंच जथे। त मसलहा मा चुरे इही ठाढ़ रमकलिया के सवाद म दू काॅंवरा उपराहा खाय के मजा कुछ अलगेच रथे न .., कइसे गोतियार..।

            सब्जी बजार म फेकाय सब्जी के छालटी ल गरवा तक ह नइ सूॅंघे अउ भोरहा म कहुॅं वो खा परीस ते खूने-खून के उल्टी करत माटी म समा जथे। फाफा-मिरगा, कीरा-मकोरा के मरे के बाद अनाज अउ साग-भाजी ह मनखे नाव के जीव के लईक उपयोगी समझे जाथे।

  उही साग के सवाद ह मनखे समाज ल बड़ सुग्घर लगथे। हाईटेक अउ डिजिटल युग म ये कोनो जादू ले कम हे का..।

     छेमसिया चित्रगुप्त मन तो खुदे नींद भाॅंजत हे। त खड़े फसल अउ बेचावत अनाज म कतिक हानिकारक दवई-खातू मिंझरे हे , तेकर कहाॅं-के लेखा-जोखा..।

            सरकार अउ खाद्य विभाग के बीच म कंपिटीशन चलत हे.., कोन जादा लापरवाह..। ईंखर परसादे बिना डर भाव के खाय-पीये के चीज ह बिन मानक के खुल्लमखुल्ला बेचावत हे। बेपारी अउ अधिकारी के दूनो पाट म सुधवा जनता मन पिसावत हे। जेकर ले माटी, हवा, पानी , फसल अउ अनाज सबो म मिलावट के बसेरा होगे। दिनों-दिन बिमारी बढ़त हे, उमर घटत हे .., डाक्टर अउ पैथोलॉजी वाले मन मनमाने नोट गिनत हें।

           यहू तिहारी सीजन म .., अल्लर परे अंतस के पीरा ल सरेखत हम अउ का कहि सकथन.., नेता-अधिकारी ,बेपारी मतलब हुसियार अउ जनता मने खुसियार..। जेन ल जतना चुहकना हे, बिंदास चुहको.., पउल-पउल के चुहको..!


महेंद्र बघेल डोंगरगांव

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