Friday 3 July 2020

कहानी... शकुन्तला शर्मा

कहानी...
      शकुन्तला शर्मा
आज सविता के समधिन हर, अपन बेटी अउ वोकर ननद ला धर के,सविता घर आइस। सविता हर मने मन म दाँत पीसत - पीसत कहिस ...एके गाँव मा समधियाना घला हर बड़ा मरन तो आय, फेर काय करबे? प्रेमचंद कस कहती..."जौन गोड़ के तरी मा हमर नरी हर मस्काय हे,तौन गोड़ ला माथा मा मढ़ा ले, तइसे कस कहती,जौन घर मा बेटी देहे हन,तेकर चोचला ला तो सहेच बर परही... अइसने कोन मार जियन देवत हे? मोर मोंगरा बेटी के बारह हाल कर डारे हावैं !अब मोर घर मा आके मोर तरुवा मा बैठ गिन। रात-दिन मैं एमन ला सोंहाँरी खवावत हवँ अउ उहाँ मोर बेटी हर, भरपेट दार भात बर तरसत हे।
      सविता के कलेजा मा तो भूरी बरत हे, फेर जाके अपन समधिन के स्वागत करत हे, वोकर बेटी के खुशामद मा लगे हे बिचारी हर। अपन बहू लक्ष्मी ला कहिस हे "जा बिटिया खीर सोंहाँरी बना के परोस दे!"
अतके मा वोकर ननद भीतर मा आगिस,अउ कहिस  "तोर हाथ के काफी पीतेन अम्मा! मोला बहुत मिठाथे।"
एदे बपरी नोनी के महतारी हर खवा - पिया के दूनों झन ला लुगरा - धोती देके विदा करिस हे।
बहू हर एक आखर पूछिस.."अतेक पान हर हमेशा देना लेना,काबर करथस अम्मा!वोमन तो हमन ला कुछु नहीं देवयँ।" सविता हर रोनहुत हो के कहिस..."का बताववँ बिटिया.....एही ला कहिथें, "बूड़ मरय नहकौनी दय।"   🙏🏻

No comments:

Post a Comment