हम तो लिखबो -सरला शर्मा
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स्वागत हे संगवारी मन ! जरूर लिखव ...महूं तो लिखते च हंव । हमर देश मं अपन विचार ल अभिव्यक्त करे के आज़ादी तो सबो झन ल मिले हे ..ये जरूर हे के अभिव्यक्ति के तरीका अलग अलग होथे फेर साहित्यकार के अधार तो कलम हर आय सुरता राखे के बात एहु हर तो आय के साहित्यकार के अपन जिनगी के सुख - दुख भी तो होथे जेकर प्रभाव ओकर लेखन ऊपर परबे करही । तभो मन मं राखे बर परही के एक झन के आज़ादी कहूं दूसर के गुलामी झन बन जावय एकर बर ध्यान देहे के जरूरत हे कि रचना के प्रकाश परिधि माने सोच के सीमाना अतका बड़े रहय के साहित्यकार के निजी जिनगी ओमा लुकाये रहि सकय । दूसर बात मत , विचार , चिंतन , मनन ल लिखे के बेर लेखन शैली ऊपर चिटिकुन ध्यान देहे बर परही नहीं त कलात्मकता के बिना सीधा सपाट लेखन हर अपन सोला आना सच्चाई के रहते भी कोनहा - कतरा मं ढकेल देहे जाही ...अंधऱा ल घलो तो नैनसुख कहे के रिवाज हे ...।
एक पक्ष अउ हे सीधा सपाट कहे के चक्कर मं पर के निजी जिनगी के कथा - बिथा लिख के थोरिक बेर बर सहानुभूति मिली जाही ..या बड़ाई मिल जाही , चार झन वाह ..वाह कहि के ताली च बजा देहीं तेकर बाद सबो झन भुला जाहीं काबर के अइसन घटना तो सबो के जिनगी मं थोर बहुत घट बढ़ के घटते रहिथे । साहित्यकार के कलम जब देश , राज , समाज , संसार के सुख दुख के बिथा - पीरा , जय - पराजय के गाथा लिखथे तब साहित्य - संसार मं जघा बनाये सकथे । वाल्मीकि ऋषि हर अपन नहीं क्रौंची के रोवाई ल अधार बना के पहिली श्लोक लिखे रहिस , अउ बहुत अकन उदाहरण हे आप सबो झन जानथव ...।
थोरकुन अलगे रस्ता ल भी देख लेतेन का ? लिखत तो हन फेर थोरकिन बिलम के आने मन काय लिखे हें , काय लिखत हें एहू डहर एक नज़र डार लेबो त हमर लेखन हर जगर - मगर हो जाही काबर के आने मन के सोच विचार के लाभ मिलही , सर्वज्ञानी तो हम नई हन , पढ़ लेन न ..पेट परे गुने करही बड़का फायदा होही के " मैं " ले उबरे सकबो ।
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