Friday 10 July 2020

"ददा"-ज्ञानु

"ददा"-ज्ञानु
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आज के अपन लेख ददा ऊपर अपन एक दोहा ले करना चाहत हँव-
रखथे हम ला छाँव मा, सहिके खुद गा धूप।
महिमा ओखर का कहँव, ददा देव के रूप।।

            ददा जतका बोले, देखे, पढ़े-लिखे अउ सुने म छोटे लगथे वतके एखर गुन , महिमा अउ अर्थ बता पाना कठिन हे। संस्कृत के दा शब्द ले बने ददा। धातु रूप  आय जेखर अर्थ होथे-देना। अउ सहीच्च बात तो आय ददा हा हम ल जिनगी भर देथे तो।तभे तो ददा ल जनक घलो कहिथे।अउ मोर बर तो ददा साक्षात भगवान आय।
            जइसे  महतारी के कोख म लइका संचरथे, ददा के चिंता बढ़ जथे।महतारी तो अपन कोख म रखे रहिथे फेर ददा अवइया लइका अउ ओखर महतारी ल सदा अपन दिमाग म बसाके रखथे।अउ सदा इही चिंता म रहिथे के हे भगवान कुछु अलहन झन होवय सब बने बने निपट जतिस।लइका होय के खुशी म अपन दुख-दरद अउ गरीबी ल भुला जथे।लालन-पालन करना अउ बड़े होइस तहा पढ़ई-लिखई ,बर बिहाव आदि  ।ओखर जिद अउ शउक पूरा करे बर अपन सरी जिनगी ल खपा देथे।अपन शउक ,दुख-सुख सब ला बपुरा ददा बिसरा जथे अउ एके ध्यान रथे के लइका बर कुछु कमी झन होय।अउ उही लइका जब बड़े हो जथे त कहिथे आजतक मोर बर का करे हस अउ जतका करे हस सबो ददा अपन लइका बर करथे।अतका ल सुनके ददा बपुरा के पहाड़ बरोबर छाती ह फट जाथे।
           संगी हो ददा ह अपन सरी जिनगी भर हमर सुख बर न जाने कतका दुख-कष्ट , कतको दिन भूख पियास रहे होही हम नइ जानन।फेर हमन ददा के बूढ़त काल म ओखर संग मीठ जुबान ले नइ बोल सकन ।ददा लइका ले न कभू कुछु चाहे हे न चाहय ।बस अतके चाहथे मोर लइका मन सदा सुखी रहय।कभू तो तिर म आके मोर बेटा मोर संग गोठिया लेतिस ।फेर आजकल अक्सर ये देखे बर मिलथे।तँय कुछु नइ जानस गा या तोला का करना हे खा अउ  पी चुप पड़े रहा फालतू आय बाय बोलत रहिथस कहत सुने बर मिलथे।का अब सही म हम अतका बढ़गे हन या जानकार होगे हन के ददा ले कुछु पूछे बताये के जरूरत नइये।जेन ददा हमर लइकई पन के जब हम बोले बर नइ सीखे रेहेंन तभो भाव ल समझ जाय।आज उही ददा ल हम चुप रेहे बर बोलत हन ।उंखर बूढ़त काल के भाव ल हम काबर नइ समझ पावन ।

ज्ञानुदास मानिकपुरी
छंद साधक
चंदेनी(कवर्धा)

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