Monday 27 July 2020

जन जन के कवि: तुलसीदास*

,*जन जन के कवि: तुलसीदास*


भक्ति काल के महाकवि तुलसीदास के नाम हा हिन्दी साहित्य मा सोन के आखर मा लिखाय हावय।आदि कवि महर्षि बाल्मीकि के महाकाव्य रामायण हा संस्कृत मा रिहिस हे जेहा आम आदमी के समझ ले बाहिर के रिहिस हे ।रामायण ला अधार बना के तुलसीदास जी जन सामान्य के भाषा अवधी मा रामचरित मानस के रचना करिन अउ भगवान राम के गाथा ला घर घर पहुँचाइन।आज ले कइ ठन घर मा बिहनिया ,बिहनिया रामचरित मानस के पाठ करे जाथे। मोला सुरता हे मोर नाना बबा हा रोज मानस के पाठ करय। बिना पाठ करे कुछु नइ खावय मँय हा ओखरे मुँह ले सुने रहेंव-

चित्रकूट के घाट में भई संतन की भीर ।
तुलसीदास चंंदन घिसे तिलक लेत रघुवीर।।

आज घलौ हमर छत्तीसगढ़ के गाँव गाँव मा नवधा रमायन होथे
।नव दिन ले रात दिन मानस के पाठ होथे,दूरिहा दूरिहा गाँव ले मंडली आके मानस के पाठ करथे।नवधा मा एक ठिन गीत जेला अक्सर गाये जाथे मोला घात पसंद हे-

रच के तुलसीदास ने गंगा बहा दिया।
भवसागर से उतरने का नौका बना दिया ।।

 ये गीत हा मानस के महत्ता ला अउ जनमानस मा ओखर लोकप्रियता ला बतावत हे।

सावन महिना अंजोरी पाख साते के दिन सन् पंदरा सौ चउवन मा तुलसीदास के जनम राजापुर गाँव मा होय रहिस ।उँखर ददा के नाँव आत्माराम अउ दाई के नाँव हुलसी बाई रिहिस।कहे जाथे कि अपन सुवारी रत्नावली के उलाहना ले तुलसीदास ला ठेस लगीस अउ तुलसीदास घर दुवार छोड़ के प्रयाग,फेर काशी आगे।

कारी अंधियारी पानी बरसत रात मा यमुना नदी ला पार करके रत्नावली ले मिले बर आधा रात के ससुरार पहुंचे ले रत्नावली हा अपन स्वरचित दोहा मा कहे रहिन-

अस्थि चर्म मय देह यह,ता सो ऐसी प्रीति।
नेह जो होती राम से,तो काहे भव भीति।।

काशी ले तुलसीदास चित्रकूट आगे  ।चित्रकूट ले अवधपुर आके राम के किरपा ले रामचरित मानस के रचना करिन अउ राम नाम रूपी गंगा के धार बोहाइन जेमा आज घलौ जनमानस बुड़के के डुबकी लगाथे।।

चित्रा श्रीवास
बिलासपुर
छत्तीसगढ़

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