Tuesday 7 July 2020

महतारी के पीरा(लघुकथा)-अजय अमृतांशु

महतारी के पीरा(लघुकथा)-अजय अमृतांशु

                 भुरी (घर के बाहिर गली म घुमइया कुतिया) ह 2 दिन ले सरलग  घर के गेट म आके कूँ...कूँ...कहिके नरियाय (रोवय) । रोही काबर नहीं ...?  आज अपन आखिरी पिला ल घलो गँवा डरिस ।  नरियाय त अइसे लगय मानो पूछत हवय मोर पिला ह कहाँ हे..? घर के जेन मनखे गेट के बाहिर निकलतिस तेकर तीर मा आ के नरियाय, आँखी ले आँसू तरतर तरतर बोहात रहय ।
              भुरी ह 3 ठन पिला बियाय रहिस तेमा के एक ठन ल पहिलिच कोनो उठा के लेगे।  दू ठन पिला ल गली के एक कोंटा मा खम्भा के तिर मा पोसत रहिस । कोनो रोटी देदय ता कोनो रात के बाँचे खोंचे भात ला। लईकोरहिन रहिस तेकर सेती कोनो ना कोनो खाय बर देच दय । घर के गेट ले बुलक के नान-नान पिला मन घर भीतरी आ जतिस ता भुरी घलो पाछू-पाछू भीतरी आय बर छटपटातिस। पिला संग लइका मन खेल के गेट ले बाहिर निकाल दय ,भुरी वोला ले के लहुट जाय । कुतिया हा सफेद रंग के चकचक ले दिखय तेखर सेती दाई ह ओला भुरी कहिके बलाय।
                भुरी के दुसरिया पिला ह एक दिन गाड़ी म रेता के मरगे, भुरी ह मरे पिला ल राखत बइठे रहय । कोनो ल तीर म नइ आवन देत रहिस भूँकय, चाबे-कोकने ल करय। कोनो मनखे तीर मा नइ जा सकत रहिस। फेर कइसनो करके पालिका वाले मन मरे पिला ल लेगे। भुरी के आँखी ले आँसू ढरकत रहय। महतारी तो महतारी होथे येमा मनखे लागय न कुकुर-बिलई महतारी के पीरा एके होथे।
                 दुसरिया दिन तो अतिच होगे, भुरी के आखरी पिला ला कोनो उठा के लेगे। भुरी येती ओती दउँड़ दउँड़ के पिला ला खोजय । घर के गेट मेर आके  उँ..उँ..उँ..उँ.. कहिके जोर जोर से नरियाय मानो पूछत हे -  मोर पिला कहाँ हे...? 
गेट ल खोलव... तुँहर घर आय तो नइ हे ...? ओकर नरियय ल सुन के बाहिर निकलेंव । गेट ल खोल देंव,गेट खुलते साट भूरी सर्राटा भागिस अउ अँगना मा जा के फेर  उँ..उँ..उँ..उँ.. कहिके नरियाय लगिस । दाई तीर,भाई तीर घर के सबो मनखे तिर जा-जा के उँ..उँ..उँ..उँ.. कहिके जोर जोर से नरियाय मानो पूछत हवय कि मोर पिला कहाँ हे...? इहाँ आय तो नइहे ..? भगवान दुनिया के कोनो जानवर ल मुँह तो नइ दे हे फेर भुरी के उँ..उँ..उँ..उँ.. कहिके नरिययी अउ आँखी ले झरत आँसू ला कोनो भी मनखे सफा सफा पढ़ लेतिस के वोहा अपन पिला के दुःख मा बही होगे हे।
                 भुरी ल बिस्वास देवाय बर दाई ह घेरी भेरी कहय- तोर पिला ल हमन नइ लॉय हन भुरी देख ले....नइ लाय हन वो....। फेर भुरी कहाँ मानय ..!  पिला गँवाय ले बेसुध होके  धँ आय धँ जाय, येति वोती खोजय... पाँव ल खुरचय उँ..उँ..उँ..उँ.. कहिके नरियाय फेर पिला रहय तब ना ।  अपन आखरी पिला ल गँवाय के दुःख मा भुरी के आँसू तरतर-तरतर गिरत रहिस। भुरी के आँखी ले बोहावत आँसू अउ वोकर करलयी मोर अंतस ला तार-तार कर दिस।

              अजय अमृतांशु
              भाटापारा छत्तीसगढ़
              9926160451

3 comments:

  1. आह्हा,आपके लेखनी मन प्राण ल छुवत हे,बहुत सुघ्घर वर्णन,एक कुतिया के दर्द के अतका सुघर बखान आपके,मया भरे हिरदे ल उजागर करत हे। बहुत बहुत बधाई।

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  2. अद्भुत मार्मिक भाव महतारी के अपन लईका बर मया अंतस ल छू गे हवय आदरणीय गुरुदेव जी 🙏🙏🙏 सादर पयलगी 🙏🙏🙏 बड़ सुघ्घर सिरजन बर अंतस ले बधाई पठोवत हंव।

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  3. आनन्द आगे सर

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