Wednesday 22 July 2020

रेडियो ले साहित्य यात्रा* पोखनलाल

रेडियो ले साहित्य यात्रा* पोखनलाल

      अइसे तो रेडियो के पहिचान आज भी बने हावै।मोबाइल म नेट के संग रेडियो सुने के चलन दिनोंदिन बाढ़त जात हवै।फरमाइशी गीत सुने अउ मनोरंजन बर बढ़िया माध्यम रेडियो हरे।अपन गुणवत्ता ले कभू समझौता नइ करे हे।हाँ समे के संग विज्ञापन अउ आर्थिक जरूरत के मुताबिक कुछ नवा नवा कार्यक्रम चालू जरूर होय हे,वहू ह आज लोगन के जानकारी बर जरूरी हे। जइसे कोरोना काल म जागरूकता अभियान अउ सूचना बर बड़का भूमिका रेडियो निभावत हे।
        इही रेडियो ले जुड़े अपन जिनगी के गोठ ल लिखत हँव।मोर कका (अपन पिताजी ल हमन तीनों भाई कका कहिथँन) रेडियो लेके लातिस दू चार महीना चलाके कोनो मेर बेच के फेर नवा ले आय। लोकरंजनी, आप मन के गीत अउ चौपाल ह वोकर पसंदीदा कार्यक्रम आय।तीस बछर पहिली के बात ए।घर म रेडियो सुन सुन मोरो मन रेडियो म लग गे। बछर *१९९३-९४* ले आज तक सरलग सुनत हँव।
      ११वीं पढ़े धरेंव त रोज संझा ५:०० बजे *युववाणी* सुने के भूत सवार होगे।रेडियो धर के गली गली घलुक  सुनत किंजरँव।पारा म कोनो कोनो रेडियो वाला कहे धर लीन।
       युववाणी सुन के। कार्यक्रम के समीक्षा म चिठ्ठी पाती लिखे धर लेंव।रेडियो म अपन अउ गाँव के नाँव सुन १७-१८ साल के लइकई मति हर काम छोड़ रोज संझा रेडियो सुनँव,अउ चिठ्ठी लिखँव।अउ दूसर मन के चिठ्ठी पाती सुन के चिठ्ठी म तुकबंदी लिखत कार्यक्रम के लम्बा समीक्षा भेजे लग गेंव।मोर कतको चिठ्ठी श्रेष्ठ चिठ्ठी म शामिल होइस।इहें ले फेर कब कविता लिखे धरेंव मोला गम नी मिलिस।धीरे धीरे कविता लिखाय लगिस ।कागज म लिखाय कतको ह शुरुआती दिन म कुरता संग छँटा जय जब दाई हर कुरता ल मइलागे हे कहि छाँट देतीस।
         कतको संगी साथी अउ गाँव के मन ल आरो लगिस त वोमन रेडियो म कविता पाठ बर जोजियाय लगिन।महूँ ह पहलइया कालेज के परीक्षा बाद कुछ कविता मन ल भेजेंव। त ओसरी पारी चयन म कहूँ देरी होइस होही त अक्टूबर१९९८ म मोला आकाशवाणी के चिठ्ठी मिलिस।रिकार्डिंग बर बुलाय रहिस।अउ प्रसारण १७/१०/१९९८के होइस। तब में ह हिंदी म नई कविता लिखत रेहेंव। तुकबंदी सिरीफ कार्यक्रम बर होत रहिस।रिकार्डिंग वरिष्ठ उद्घोषक *संजय पांडेय जी* करिन।रिकार्डिंग के बाद में ह पइसा २४०/रूपया देवत रेहेंव,त पांडेय जी अकबका गे, कहे लगिन काके पइसा।ए पइसा तो आप ल आकाशवाणी डाहर ले मिलही।में तब नइ जानत रेहेंव के आकाशवाणी ह कविता पाड के पइसा देथे।उही दिन संजय पांडेय जी दू ठन बड़का बात कहिन- *एक* पोखन लाल जी आज तक आप ल श्रोता मन श्रोता के रूप म पहचानत रहिन अब आगू आप ल नवा पहिचान मिलहि।ए पहिचान आप ल आपके कविता ले मिलहि।आप के कविता म दम रहिस त आप ल बुलावा चिठ्ठी भेजे गिस,ओमन सवाल करिन का आप ला कविता पाठ बर कोनो जुगाड़ करे परिस।का कोनो ल पइसा देव।नहीं न।
    *दूसर* आप जतका पढ़हू ओतके जादा अच्छा ले अच्छा लिख पाहू।एखर सेती आप रेडियो सुनत अपन पढ़ई के संग लिखे खातिर बने बने किताब जरुर पढ़व।
      ओखर बाद कई बार  कविता पाठ बर गेंव। *आज मेरी बारी है* बर गेंव अउ *दृष्टिकोण* म भी शामिल होंयेंव।आखिरी कविता पाठ ९ मार्च २०१०  म मोर भुइँया बर देंव।अतका कहि सकथँव मोर साहित्यिक यात्रा रेडियो ले शुरु होय हे। जिहाँ ले लिखे बर सीखेंव।
      आज मोर भीतर जउन लिखे के गुन हावै वोला रेडियो ह उभारिस अउ *प्रणम्य गुरुदेव अरूण निगम जी* के असीस अउ *छंद परिवार के जम्मो साधक भइया बहिनी दीदी मन ले*  अब मोला साहित्य के सही दिशा मिले हे।अउ साहित्य लेखन म अभ्यास चलत हे।समे बताही के कतका सफल होहूँ।
       बस मन म एके ठन आस हे छत्तीसगढ़ी साहित्य के कोठी म एक ठन ठोसहा दाना महूँ ह भर सकँव।

पोखन लाल जायसवाल
पलारी बलौदाबाजार भाटापारा छग.

2 comments: