*बईहा नोहय (कहानी)*-मिनेश साहू
मंगतिन गांव म अपन जिनगी काटत राहय। मंगतिन के बिहाव नानपन म होय रिहिस हे अउ १५ बच्छर म ससुरार आगे रिहिस हे, वोला गुड़ाखू घसे के बड़ नशा रिहिस हे, दिन भर रतिहा जसना म जावत ले ओखर मुहु म गुड़ाखू दबे राहय। धीरे -धीरे दिन बितत गिस अउ मंगतिन तीन लईका के महतारी बनगे।धनसिंग (बड़े बेटा) कुंती (मंझली) अउ जीवन सबले छोटे रिहिस हवय, जीवन के अवतरे के दू बच्छर बाद मंगतिन के गोसैंया ल एक दिन खेत म सांप चाब दिस बिचारा बीत गे ।धनसिंग अउ कुंती बड़े होगे अउ गांव के सरकारी इस्कूल म पढ़े जाय लगिस... लेकिन ओखर छोटे बेटा जीवन के हाव-भाव,रेंगना-फिरना दूनो लईका मन ले अलग राहय कभू कखरो संग हां,हूं ,घलो नइ गोठियावय।कले चुप रेहे राहय,मल मूत्र अउ पखाना घलो ओन्हा म कर डारय,बाढ़त उमर अईसने कटत लईका बड़े होगे।
धीरे-धीरे मंगतिन ल संसो होगे अउ बड़ परशानी घलो होवय लईका ल घर म छोड़ के बनी-भुति म निकल जावय , जीवन के बेवहार ल देख के मंगतिन हदास होगे राहय अउ खेत खार अउ मड़ई मेला अउ सगा सोदर कोनो गांव जावय त दूनो लईका मन ल संग म धरके जावय अउ जीवन ल कुरिया मे धांध के संकरी ल लगाके रखय।
कोनो दिन कंहू घर ले जीवन निकल जतिस त गांव बस्ती पारा परोस के मन बिचारा ल पथरा ढेला म मारय अउ कोनो पानी ल घलो ओखर ऊपर फेंक देवय...नान-नान लईका संग बड़े मन घलो बिचारा ल *बईहा* आगे कहिके भगावय ,मंगतिन हदास होगे राहय अउ घर के मुहाटी म बैठे राहय उहि बेरा मा गांव के एक झन पढ़े लिखे सियान ह शाहर के *मनोरोग चिकित्सक* डॉक्टर
के तीर म देखाए म सुझाईस अउ मंगतिन ल डॉ. के पता ठिकाना ल चिट्ठी म लिखके दे दिस दुसरईया दिन मंगतिन जीवन ल धर के डाॅ. ले भेंट करिन अउ डॉ.साहब ह पुछिस ।
का जीवन ह ?अवतरे के तुरते बेरा रोईस हे...... मंगतिन कहिथे नहीं साहब।
का तेंहा नशा करथस?
हव....... साहब गुड़ाखू घसथंव।
फेर मंगतिन कहिथे डॉ साहब मोर लईका ल गांव वाले मन, पारा परोस के मन *बईहा-बईहा* कहिथे!हव साहब मोर लईका बईहा हे!
तब डॉ साहब (मनोरोग विशेषज्ञ)कहिथे जीवन बईहा नइहे.......ऐला मानसिक दिव्यांग कहिथे।अउ ईखर बुद्धि सामान्य लईका ले कम होथे।
जौन कोनो महतारी अम्मल म रहिथे तब के बेरा म नशा,अउ जेला घेरी भेरी झटका आथे अउ अन्ते-अन्ते नंगत अकन कारन हे अउ अवतरे के तुरते बेरा म लईका नइ रोवय त अईसन म लईका के बुद्धि के नस बराबर काम नइ करय जेखर कारन लईका ह मानसिक दिव्यांग होथे।
*लईका बईहा नइहे* ऐला रोज के काम धाम ले संग म रहिके सिखोवव! लईका धीरे-धीरे अपन जिनगी ल चलाए बर तो सीख जहि। कखरो बर बोझा नइ रहि।
------------******-----------------
मिनेश कुमार साहू
भुरभुसी गंडई/माना कैंप रायपुर
मंगतिन गांव म अपन जिनगी काटत राहय। मंगतिन के बिहाव नानपन म होय रिहिस हे अउ १५ बच्छर म ससुरार आगे रिहिस हे, वोला गुड़ाखू घसे के बड़ नशा रिहिस हे, दिन भर रतिहा जसना म जावत ले ओखर मुहु म गुड़ाखू दबे राहय। धीरे -धीरे दिन बितत गिस अउ मंगतिन तीन लईका के महतारी बनगे।धनसिंग (बड़े बेटा) कुंती (मंझली) अउ जीवन सबले छोटे रिहिस हवय, जीवन के अवतरे के दू बच्छर बाद मंगतिन के गोसैंया ल एक दिन खेत म सांप चाब दिस बिचारा बीत गे ।धनसिंग अउ कुंती बड़े होगे अउ गांव के सरकारी इस्कूल म पढ़े जाय लगिस... लेकिन ओखर छोटे बेटा जीवन के हाव-भाव,रेंगना-फिरना दूनो लईका मन ले अलग राहय कभू कखरो संग हां,हूं ,घलो नइ गोठियावय।कले चुप रेहे राहय,मल मूत्र अउ पखाना घलो ओन्हा म कर डारय,बाढ़त उमर अईसने कटत लईका बड़े होगे।
धीरे-धीरे मंगतिन ल संसो होगे अउ बड़ परशानी घलो होवय लईका ल घर म छोड़ के बनी-भुति म निकल जावय , जीवन के बेवहार ल देख के मंगतिन हदास होगे राहय अउ खेत खार अउ मड़ई मेला अउ सगा सोदर कोनो गांव जावय त दूनो लईका मन ल संग म धरके जावय अउ जीवन ल कुरिया मे धांध के संकरी ल लगाके रखय।
कोनो दिन कंहू घर ले जीवन निकल जतिस त गांव बस्ती पारा परोस के मन बिचारा ल पथरा ढेला म मारय अउ कोनो पानी ल घलो ओखर ऊपर फेंक देवय...नान-नान लईका संग बड़े मन घलो बिचारा ल *बईहा* आगे कहिके भगावय ,मंगतिन हदास होगे राहय अउ घर के मुहाटी म बैठे राहय उहि बेरा मा गांव के एक झन पढ़े लिखे सियान ह शाहर के *मनोरोग चिकित्सक* डॉक्टर
के तीर म देखाए म सुझाईस अउ मंगतिन ल डॉ. के पता ठिकाना ल चिट्ठी म लिखके दे दिस दुसरईया दिन मंगतिन जीवन ल धर के डाॅ. ले भेंट करिन अउ डॉ.साहब ह पुछिस ।
का जीवन ह ?अवतरे के तुरते बेरा रोईस हे...... मंगतिन कहिथे नहीं साहब।
का तेंहा नशा करथस?
हव....... साहब गुड़ाखू घसथंव।
फेर मंगतिन कहिथे डॉ साहब मोर लईका ल गांव वाले मन, पारा परोस के मन *बईहा-बईहा* कहिथे!हव साहब मोर लईका बईहा हे!
तब डॉ साहब (मनोरोग विशेषज्ञ)कहिथे जीवन बईहा नइहे.......ऐला मानसिक दिव्यांग कहिथे।अउ ईखर बुद्धि सामान्य लईका ले कम होथे।
जौन कोनो महतारी अम्मल म रहिथे तब के बेरा म नशा,अउ जेला घेरी भेरी झटका आथे अउ अन्ते-अन्ते नंगत अकन कारन हे अउ अवतरे के तुरते बेरा म लईका नइ रोवय त अईसन म लईका के बुद्धि के नस बराबर काम नइ करय जेखर कारन लईका ह मानसिक दिव्यांग होथे।
*लईका बईहा नइहे* ऐला रोज के काम धाम ले संग म रहिके सिखोवव! लईका धीरे-धीरे अपन जिनगी ल चलाए बर तो सीख जहि। कखरो बर बोझा नइ रहि।
------------******-----------------
मिनेश कुमार साहू
भुरभुसी गंडई/माना कैंप रायपुर
सादर आभार अउ पयलगी पठोवत हवंव आदरणीय गुरुदेव जी 🙏🙏🙏
ReplyDeleteBad sughghar laghu katha he bhaiya .logo ko jagruk kare ma sahayata pradan kri au har insan mansik divyang ka hothe vola janhi au logo ke vichar la Aisan laika man bar sahi soch au samjh viksit kre ma sahayata kri .aisan sughghar laghu katha likhe has tekhar bar aap man la hath Jod ke naman he. Yash patel
ReplyDeleteहिरदै ले अभार पठोवत हवंव भाई 🙏🙏🙏🙏
Delete🙏🙏🙏🙏🙏
Deleteबहुत ही सुग्घर रचना महोदय जी, जेमा नशा-पानी के दुषपरिनाम ल बताये हे।
Delete🌹🌹🌹🙏🙏🙏
Deleteबहुत सुग्घर कहानी ,अउ कहानी म बहुत सुघ्घर सन्देश घलो हे..
ReplyDelete🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹
Deleteअतिसुघ्घर ज्ञानवर्धक हवय, कवि जी।
ReplyDelete🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना भैया संदेशात्मक लेख है समाज के लिए
ReplyDelete🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹सादर आभार
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना भैया संदेशात्मक लेख है समाज के लिए
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय श्री 🙏🙏🙏🙏
DeleteBahut sugghar bhiya
ReplyDeleteसादर आभार अउ जोहार भैय्या जी 🙏🙏
Deleteबहुत अच्छा ही संदेश देने का प्रयास किया है आपने और भी ऐसे संदेश का प्रतीक्षा रहेगा गुरु जी
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय श्री 🙏🙏🙏
Deleteबहुत सुंदर मार्मिक रचना भैया सादर बधाई आपला रचना खातिर
ReplyDeleteसादर आभार भैय्या जी 🙏🙏🙏
Deleteबहुत सुन्दर रचना है और आप मन के द्वारा समाज के लिए बहुत अच्छा संदेश
ReplyDeleteहिरदै ले अभार पठोवत हवंव आदरणीय श्री 🙏🙏🙏🙏
Deleteगज़ब सुग्घर सर
ReplyDeleteआपके आशीष गुरु देव जी 🙏🙏 सादर पयलगी 🙏🙏🙏
Delete