Friday 17 July 2020

इदं न मम- शकुंतला शर्मा

इदं न मम- शकुंतला शर्मा

काल रात के अचानक, कहूँ मोला झकझोर के जगा दिस, अउ दुखी मन से कहिस ..." मैं हर जूना - चिरहा हो गयँ है न? तैंहर मोला कचरा मा डार देहे, अब मोला चीन्हें के सवाले नइ उठय!"
मैं हर आँखी मूँदे- मूँदे वोला देखत रहें। वोहर धोती - कुरता पहिरे रहिस हे। खाँध म उज्जर अंगोछी झूलत रहिस हे, फेर मैं वोला चीन्हें नही पायें।
वोकर दृष्टि म बड़कपन रहिस हे। मैं हर हाथ जोर के कहें.."मोला क्षमा करव! मैं जानत हवँ कि तुमन मोर सगा सुहृद अव, कृपा करके आप अपन परिचय बतावव।" वोहर दीन - हींन दृष्टि से मोला देखिस,अउ अपमानित हो के कहिस..." मोर नाम मम्मट हे।"
अचानक अचरज के मारे, मोर आँखी खुल गिस। घड़ी ल देखेवँ, तव रात के दो बजे हे....अब मम्मट बबा के दयनीय सूरत मोर आँखी म झूलत हे... आत्मग्लानि म मरत हवँ।
असल मा मैं काल साँझ के मम्मट रचित "काव्यप्रकाश" ल जर्जर होगे कहिके, अलमारी ले हेर के बाहिर कर देहें, मोर मन ला ए बात हर पचिस नहीं,मन हर आत्मा ल बता दिस। अब आत्मा हर मोर विचार जान के, मोला प्रायश्चित करे के अवसर दिस... मम्मट बबा हर मोला कहिस "पढ़ाई - लिखाई तो करस नहीं, दायित्त्व के ध्यान हइ नइए।"
वोकर गारी हर मोला आशीर्वाद कस लागत रहिस हे। सच बात कहवँ तव, ए महापुरुष मन हमर गोतियार एँ.... मम्मट, कालिदास, प्रेमचंद, तुलसी, सूर, कबीर, मीरा, महादेवी, निराला, एमन हमर पूर्वज एँ। अब मम्मट बबा के गारी खा के सीखे हवँ, अब जब कहूँ ला पुस्तक भेंट करथवँ, तव अचानक मोर मु्ँह ले निकल जाथे.."इदं न मम!" एहर मोर नोहय।

शकुन्तला शर्मा...🙏🏻

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