Friday 31 July 2020

गुरुजी के दुलार- संस्मरण

गुरुजी के दुलार- संस्मरण


         बच्छर 1984 के वो दिन के सुरता आथे तब मोर आँखी, गुरुजी के पाय दुलार मा आज घलाव डबडबा जाथय। मँय ओ बखत दल्ली राजहरा मा बीएसपी इस्कूल नं 33 मा चौंथी कक्षा मा पढ़त रहेंव।हमर कक्षा मा दू झन हीरालाल साहू रहेन।दूनो झन अपन अपन घर के बड़का बेटा अउ दूनों के दाई ददा अप्पड़ रहिन।फेर हमन दूनों पढ़ई मा हुँसियार ,कोनों एक दूसर ले ओन्नाइस नइ रहेन।एक अंतर रहिस कि ओखर देहें पाव मोर ले बीस एक्कईस, जेकर ओला फायदा मिलय।इस्कूल मा मोर भर्ती घलाव एकरे सेती देरी मा होय रहिस। कुछु बूता बर गुरुजी मन उही ला आगू कहय।

       एक घाँव स्कूल मा सांस्कृतिक कार्यक्रम के नेवता आइस जेमा सामान्य ज्ञान परीक्छा, भाषण,वाद विवाद अउ नाच गाना के सबो कार्यक्रम मा स्कूल ला भाग लेना रहिस।चयन होय मा भिलाई मा ओखर प्रस्तुति होना रहिस। ओ बखत के हमर गुरुजी मन भारी कलाकार रहय।सांस्कृतिक कार्यक्रम के नाव मा तो अउ आगू। पन्दरा दिन बाँचे रहय तेकर सेती लइका मन के चुनाव करके कोन-कोन कते-कते कार्यक्रम मा रही ,छाँट के अलग कर दीन। मोर नाम मीना, चैती, संतोषी,गांधीराम अउ कोमल संग समूह नाच वाले मन संग रहिस।सहिनाव के नाम सामान्य ज्ञान परीक्छा अउ वाद विवाद मा। काबर कि मैं भाषण देय बर खड़े होय मा लजकुरहा रहेंव। गुरुजी मन हमन ला खाना छुट्टी के पाछू नाचेबर सिखोवय। छत्तीसगढ़ी गीत "का तैं मोला मोंहनी डार दिये गोंदा फूल" मा तीन झन टूरा अउ तीनझन टूरी ला नाचना रहिस। हमर सबोझन के मटकई नचई ला देख के गुरुजी मन खुश हो जायव। उन ला भरोसा रहिस कि हमर चयन भिलाई बर हो जही।

      भिलाई मा भाग लेय के चयन बर कार्यक्रम दल्ली राजहरा मा होइस जेमा हमर इस्कूल ले छत्तीसगढ़ी समूह नाच अऊ सहिनाव के वाद विवाद विषय के चुनई होइस। सात दिन पाछू भिलाई जाना रहिस। गुरुजी मन अबड़ खुश रहिस।दूसर दिन साहू गुरुजी हा नाचेबर सिंगार करे के अउ नवा नवा जिनिस लाइस।भिलाई जायबर अउ जादा रिहलसल करवाबो कहिन। दू दिन बीतेच रहिस कि सहिनाव के तबियत बिगड़गे। गुरुजीमन परसान होगे।नाम तो ओखर भिलाई भेजा गे रहय।ओखर नाव दल्ली राजहरा के सबो इस्कूल के सेती रहय। एक दिन अउ बीत गे।अब वाद विवाद मा भिलाई जायबर कइसे गुरुजी मन ला करन कहिके चिंता होगे। आगू दिन हाजिरी होय के पाछू आफिस मा मोला बलाइन अउ एकठन कागज के पन्ना मा लिखाय शबदमन ला पढ़ेबर कहिस।बिना अटके सरसरात पूरा पढ़ देंव। मेश्राम गुरुजी हा साहू गुरुजी ला कहिस के एहा ठीक हे।

         साहू गुरुजी हा मोला दू दिन मा रट के बिन देखे सुनाबे कहि दिस। मैं सुकुड़दुम होगेंव। गुरुजी मन कर कुछू कही नइ सकेंव। छुट्टी पाछू घर जाके के रटे के तियारी करेंव।रतिहा कंडील अंजोर मा स्लेटपट्टी मा लिख लिख के आधा ले जादा ला रट डारेंव। ओ बखत हमर पारा बिजली नइ आय रहिस। दूसर दिन फेर हाजिरी के पाछू मेश्राम गुरुजी बला लीस अउ उही ला सुनाय ला कहिस। रात भर रटे वो वाद विवाद के शबद मन गुरुजी के आगू मा कहाँ उड़ागे समझ नइ आइस। ओतकीच बेर साहू गुरुजी आगे, सुनीस ता गुसिया के मोर गाल अउ पीठ ला अतका मारिस कि मोर सबो हुँसियारी के दही मही होगे। मेश्राम सर हा छोड़ा के मोला कक्षा मा भेज दिस।ओ दिन  नाच के रिहलसल मा मोर मन नइ लगिस तेला मेश्राम गुरुजी समझ गे।

        दू दिन बाँचे रहय तीसर दिन भिलाई जाना रहय।सहिनाव बनेच नइ होय रहय। आज मोर फेर पेसी रहय।मार के डर मा दिन रात एक करके सबो रटे ला साहू गुरुजी ला सुना देंव।सुनके कुछ नइ कहिस,अब मोला कते कर रुकना हे, कते करा जोर से बोलना हे एला बताइन।पाछू साहू गुरुजी हा मोला उही भाषण ला मोर डर भगाय बर तीसरी कक्षा के आगू मा सुनाय बर लेगीस। आगू मा खड़े हो के सुनाय बर खड़े होयेंव ता मोर टोंटा सुखागे, बक्का नइ फुटिस।अब साहू गुरुजी के थपरा फेर मोर गाल मा परिस,आँसू घलाव निकलगे।रोनहू होके भुलात भुलात आधा ला सुनाएंव। अब एक दिन रहय फेर नाच मा घलाव धियान लगाना रहय। 

     भिलाई जाय के दिन बिहनिया ले सर्बिस(बस) इस्कूल मा खड़े होगे।पहिली घाँव भिलाई सब लइका मन संग जावत रहँव।बड़ खुशी लगत रहय। बेरा मा भिलाई पहुंच गयेन। चहा पानी पीये के पाछू मंच ठऊर मा पहुंच गेन। उहाँ नाच के बीच बीच मा भाषण, वाद विवाद घलाव होही कहिके बताइन। हमन समूह नाच के पोषाग मा तियार होगेन। बनेच देरी पाछू हमरो नंबर आ गे।सबोमन बने थपरी(ताली) बजाइन। फेर ये का ! एक झन के पाछू वाद विवाद मा नाव घलाव चिल्ला दिस। साहू गुरुजी दउड़त मोर कर आ गे।मोर हिम्मत ला बढ़ावत कहिस- अब दूसर कपड़ा बदले के समय नइ हे, इहीच पोषाग मा मंच मा जाबे अउ बिना अटके जतका आही ओला बोलबे। भुलाबे तभो रुकबे झन समझे। मँय समझगे रहँव ए दरी भुलाहूँ तब कोन जनी कतका अउ कहाँ कहाँ मार परही।

       नांव पुकारिस तब साहू गुरुजी हा मंच के सीढ़िया तक अमरायबर गिस। मंच मा एक घाँव आ गे रहँव तभो ले अकेला खड़े होयेंव ता गोड़ काँपे लगीस।फेर हिम्मत बाँध के अपन विषय ला जोर जोर से पढ़ेंव।माइक मा अकेल्ला बोले के पहिली अनुभव रहय वहू आन गाँव मा। स्कूल मा कविता घलाव नइ बोले रहेंव।पूरा होय के पाछू जय हिन्द कहिके जब मंच के सीढ़िया ला उतरत रहेंव ता साहू गुरुजी हा आधच बीच ले मोला पा के उठा लीस अउ पीठ मा शबासी के थपरी पीटिस। ओतका बेर ओखर दुलार ला पाके मँय पाछू दिन के ओखर मार ला भुलागेंव।अउ काय काय कहिस ते सुरता नइ हे।भात खाय के बेरा कतको गुरुजी मन साहू गुरुजी ला पोटार पोटार के मोर डाहर अंगरी देखावत ओला कुछु काहय अउ हाँसय।
    भिलाई ले दल्ली राजहरा बर हमर सर्बिस हा चले लागिस तब साहू गुरुजी हा बस मा बइठे जम्मो लइका मन करा फेर एक घाँव मोर प्रस्तुति ला बढ़िया कहिस। एक हफ्ता के गुस्सा हा दुलार मा बदलगे रहय। भिलाई के ओ कार्यक्रम के नानपन के  सुरता मोला आज घलाव अपन इस्कूल के लइका मन ला देख आँखी मा झूलथे। सहिनाँव अउ गाँधीराम संग मा बच्छर दू बच्छर मा भेंट हो जाथय।ओमन नाती नतरा वाला हो गय हे। 

हीरालाल साहू "समय"
छुरा, जिला- गरियाबंद 



No comments:

Post a Comment