Monday 27 July 2020

छतीसगढ़ी फिल्म अउ साहित्य*

*छतीसगढ़ी फिल्म अउ साहित्य*

 हिन्दी सिनेमा के आधार रंगमंच आय। रंगमंच के बहुत अकन कलाकार मन,हिन्दी सिनेमा मा उतरिन,त कला फिल्म देखे ला मिलिस।जौन बुद्धिजीवी दर्शक मन ला बहुत भाय।साहित्यिक कहानी उपर आधारित ये कला फिल्म मन ला तृप्त कर दे। जैसे बाजार, कथा, जाने भी दो यारो, उमराव जान, पार, अर्थ, चिरूथा आदि आदि।
क्षेत्रिय भाखा के जौन फिल्म हे चाहे वो मराठी होय के गुजराती पंजाबी। सफलता के कारण रंगमंचीय कलाकार आय। साहित्यिक कहानी अउ माटी ले जुड़े लोकगीत आय।

छतीसगढ़ी सिनेमा मा, मंचीय कलाकार के संगे संग छतीसगढ़ के लोककला, संस्कृति संवाद वातावरण कथावस्तु आदि जादा नजर नइ आय। मंचीय कलाकार मा भैयालाल हेड़ाउ, फिल्म सदगति( हिन्दी) अउ श्री शिवकुमार दीपक कहि देबे संदेश, घर द्वार, रहिन हे।  बाद के सिनेमा मा "मोर छइहाँ भुइयाँ" एक लम्बा  अंतराल मा राज बने के बाद आइस। बड़े पर्दा मा अपन बोली भाखा  अउ गीत, संवाद ला सुन के युवा मन पगला गे। महीनो हाउसफुल चले लागिस।
एखर बाद तो जइसे छतीसगढी सिनेमा के बाढ़ आगे। फेर साहित्यिक कहानी अउ गीत के नितांत अभाव। प्रेम चन्द्राकर जी के तीन फिल्म हिट होगे। गीत अउ कामेडी हिट होय के कारन ये। चन्द्राकर जी अपन तीनो फिल्म मा मंचीयकलाकार मन ला ले हे।

छतीसगढ़ी सिनेमा के जनम 1965 मा होइस। जेकर श्रेय श्री मनु नायक जी ला जाथे। अउ यहाँ तक भी कहे जाथे की कहि देबे संदेश अउ घर द्वार हर, छतीसगढ़ राज्य निर्माण के आधार बनिस। मनु नायक जी हर छतीसगढ़ी सिनेमा के भागीरथी आय।कहे मा अतिश्योक्ति नइ होही।
"कहि देबे संदेश" ले जब छतीसगढ़ी सिनेमा के शुरूवात होइस तब डाँ हनुमंत नायडू, रमाकांत बख्शी, मलय चक्रवर्ती मन पहिली छतीसगढ़ी सिनेमा के आधार स्तंभ बनिस।

गीत हर सिनेमा के मुख्य भाग आय। जब छतीसगढ़ी गीत मन ला भारतीय सिनेमा के सुर मिलिस,तब वो गीत पारस होगे। मोहम्मद रफी,महेन्द्र कपूर, सुमन कल्याणपुर जब छतीसगढ़ी गीत गाइन। तब सुनइया मन अवाक रहिगे। आज भी जेन मन ये गीत ला सुनथे। गीत के सुर मा आकंठ डूब जथे।

बाद मा कुछ अच्छा सिनेमा आइस फेर कहि देबे संदेश अउ घर द्वार कस मुकाम हासिल नइ कर पाइस। 

शशि साहू कोरबा

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