शकुन्तला शर्मा
लघुकथा
मीन मेख झन निकाल
"मीन मेख झन निकालव बहुरिया! आँखी कान हर नइ दिखय तभो ले, घर के कतको बुता ला सलटावत हावन। सास अन फेर बहुरिया बरोबर रहिथन। ए झन सोचिहव कि हमपढ़े लिखे नइ अन। हमुँ ग्यारहवीं पास हावन। गाँव म कालेज नइ रहिस तेकर सेती आगे नइ
पढ़े पाएन। तुँहर बाबूजी आज रहितिन तव, समय म हमर आँखी के आपरेशन घला हो जाए रहितिस, अउ हमला कहूँ के परबस नइ रहना परतिस।" कहिके दुर्गा हर जोर - जोर से रोए लागिस।
आलू ल निछ के मढ़ाए रहिस,तेला वोकर बहू कहि दिहिस,"कइसे नीछे हावस माँ! फोकला हर रहि गए हे।कइसे पौले हावस, कहूँ छोटे, कहूँ बड़े, कहिके निनास देथे।कइसे बहारेस ओ! कचरा हर रहि गय हावय।"
"अई!ओकर आँखी नइ दिखय कहिके जानत हावस! तभो पथरा कचारे कस बोलत हावस, तौन हर फभत हे नोनी?" बहू के महतारी हर अपन बेटी ला कहिस!
शकुन्तला शर्मा 🙏🏻
वाहहह नानकुन कहानी मा बड़े बात कहेव दीदी। बहू के महतारी के मुख ले निकले सीख अंतस ले निकले हे। स्वार्थ के दुनिया मा नइ ते बुढ़ापा मा घलो सच नइ बोलावै। जै हो।
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