राखी तिहार'-ज्ञानु
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सावन महिना म पूर्णिमा के दिन राखी तिहार मनाये जाथे। भाई- बहिनी के पवित्र रिसता के प्रतीक आय - राखी तिहार। हमर भारत देश म बड़ धूमधाम अउ हर्षोल्लास के साथ मनाये जाथे। राखी आवत सुनके भाई- बहिनी के चेहरा म खुशी के लहर दउँडे लगथे।
रक्षाबंधन दू शब्द ले मिलके बने हे - रक्षा अउ बन्धन। संस्कृत भाषा के अनुसार अर्थ होथे अइसे बँधना जेन रक्षा प्रदान करथे. रक्षा के अर्थ होथे रक्षा करना अउ बन्धन के अर्थ होथे गांठ. एक डोर जेन रक्षा प्रदान करथे. ये तिहार बहुत खुशी प्रदान करथे. भाई ल ये सुरता देवाथे के ओला अपन बहिनी के रक्षा करना हे.
राखी तिहार ह एक भाई ल अपन बहिनी के प्रति कर्तव्य ल सुरता देवाथे. ये पबरित तिहार के दिन बहिनी हा अपन भाई के कलाई म राखी बाँधथे अउ भगवान ले अपन भाई के स्वस्थ्य अउ खुशी जिनगी बर कामना करथे. भाई घलो अपन बहिनी ल कुछ उपहार भेट देथे अउ ये प्रतिज्ञा करथे जिनगी भर तोर रक्षा करहू.
पुराण म घलो राखी के उल्लेख मिलथे. असुर राजा बलि अउ देवता मनके युद्व म देवता मन हार जथे. तब इंद्र के पत्नि सचि भगवान विष्णु मेर जाके समाधान पूछथे. तब भगवान विष्णु एक धागा सचि ल देके कहिथे ये धागा राजा इंद्र के कलाई म बाँध देबे. बाद म इंद्र ह राजा बलि ल हरा देथे.
असुर सम्राट बलि भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त रिहिस. भगवान बलि के भक्ति ले अतका खुश होइस के ओखर राज्य के सुरक्षा करे बर पाताल लोक चले गिन. माता लक्ष्मी भगवान के विरह म दुखी होके एक ब्राह्मणी के रूप धरके रहे लग जथे. एक दिन राजा बलि ल राखी बाँधथे. कुछ मांगे बर बोलिस त उपहार म भगवान विष्णु ल माँगथे. ये भेद ल राजा बलि नइ जानत रिहिस. तब जाके भगवान विष्णु ल वापस माता लक्ष्मी बैकुंठ धाम लेके आथे।
भगवान कृष्ण राजा शिशुपाल के वध करिस त ओखर अँगूठा म चोट लग जथे। तब द्रोपती अपन वस्त्र ल चिर के कटे अँगूठा म बाँधे रिहिस जेखर ले खून बहे बर रुके रिहिस हे। उही समय भगवान खुश होके वचन देइस रिहिस बखत पड़े म तोर रक्षा करहू। जब कौरव राजसभा म दुस्सासन द्रोपती के चिर हरण करत रिहिस तब भगवान कृष्ण रक्षा करे रिहिस। अइसने बहुत अकन बात सुने बर मिलथे।
राखी तिहार के दिन बिहना ले बहिनीमन उठके नहा धोके तियार हो जथे। भाईमन घलो तियार रहिथे। सुग्घर थारी सजाके ओमा राखी, चंदन, कुमकुम, दीया, पिवरा चाउँर, नरियर अउ मिठई रखे रहिथे। अपन भाई ल पीढ़वा म बइठाके दीया जलाथे आरती करके माथा म तिलक लगाथे फेर कलाई म सुग्घर राखी बांधके मिठई खवाथे। भाई बड़े हे त पाँव परही नइते भाई ह अपन दीदी के पाँव परथे अउ कुछ भेंट देथे।
ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदेनी कवर्धा
छंद साधक-सत्र- ३
सुघ्घर राखी तिहार ऊपर लेख सादर बधाई भैया जी
ReplyDeleteसुघ्घर राखी तिहार ऊपर लेख सादर बधाई भैया जी
ReplyDeleteराखी उपर बढिया लेख हे।
ReplyDeleteबहुत सुग्घर लेख गुरुदेव
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