Monday 3 August 2020

मया-परेम के तिहार : राखी*

*मया-परेम के तिहार : राखी*

      अइसे तो भारत भुइँया किसानी प्रधान भुइँया ए। जिहाँ किसानी के सँगेसंग कतको तीज तिहार मनाय जाथे। जादा ले जादा तिहार मन किसानी ले जुड़े हवै। कोनो ह फसल बोय के पहिली पूजा-पाठ के रूप म त कोनो ह बोय के बाद फुरसुदहा म मेल-मिलाप करे बर त अउ कोनो ह फसल पाके(तियार होय के) के बाद घर लाने के खुशी म मनाय जाथे।
       अइसने सावन महीना म दू तिहार हरेली अउ राखी आथे। जेमा के हरेली छत्तीसगढ़ म रोपा-बियासी के बाद थके-माँदे बइला अउ गाय-गरू (गोधन) के रक्षा बर मनाय के रिवाज हे। जउन ल सावन अमावस्या के दिन माने जाथे।जे छत्तीसगढ़ के पहिली अउ बड़े तिहार आय।
     दूसर राखी तिहार जउन छत्तीसगढ़ के सँगेसंग भारत भर के बड़े तिहार आय। ए तिहार किसानी ले जुड़े नइ हे। ए भाई-बहिनी के मया परेम के तिहार ए।ए दिन बहिनी मन भाई के रक्षा के कामना करत अपन रक्षा के वचन लेथे, अउ भाई के कलाई म रक्षा सूत्र बाँधथे। भगवान ले अपन भाई के मंगल कामना करथे। भाई के स्वस्थ अउ खुशहाल जिनगी के कामना करत आरती लेवत बहिनी मन मंगल तिलक लगाथें। भाई मन बड़ उछाह ले बहिनी के मया दुलार के सम्मान करथें,  स्वागत करथें, अउ भाई-बहिनी के मया-परेम के तिहार म बहिनी ल भेंट देथे। ए मौका म हमर सँस्कृति के मुताबिक नरियर, चंदन, कुमकुम, पींयर-चाउँर,फूल अउ दीया मन ले थारी पूजा खातिर सजाय जाथे।
       ए तिहार माने के पाछू कतको पौराणिक कथा हे। ए कथा मन ले एक बात साफ हवै कि मदद खातिर गुहार करत स्नेह बँधना बाँधे गिस अउ इही बँधना राखी कहाइस।
     चाहे किस्सा इन्द्र अउ बलि के लड़ई के बखत इन्द्र के पत्नी सचि के भगवान विष्णु ले मदद माँगे वाला होय, चाहे असुर राज बलि ले विष्णु ल छुड़ाय बर माता लक्ष्मी के उदीम जउन म राजा बलि ल राखी बाँधिन अउ उपहार म उँखर ले विष्णु जी ल मुक्त कराइन के किस्सा होय। वइसने भगवान कृष्ण के कटे उंगली म द्रोपदी के बाँधे कपड़ा ले जुरे किस्सा हे।द्रौपदी के ए उपकार कृष्ण जी कौरव राज सभा म द्रोपदी चीरहरण के समय चीर(कपड़ा)बढ़ा के उपकार करिन।
       ए प्रसंग मन ले इही बात सीखे मिलथे कि भाई-बहिनी एक दूसर के मदद करत राहय। अउ उँखर मया-परेम ह बने रहय।
       अइसे तो पौराणिक काल के कथा मन म ए बात के जानबा नइ मिलै कि एकर चलन आगू सरलग रहिन।बिपत म परे ले मदद के गुहार संग राखी बाँधे बस के जानकारी मिलथे।
       आज भारतीय समाज म राखी के जउन चलन हे ओखर शुरुआत कइसे होइस होही सोचथँव त अतके सोच पाथँव के बर-बिहाव के बाद बेटी ससुरार चल दय।भाई-बहिनी के मया-परेम दुरिहा जय।भाई-बहिनी अलगे अलगे जिनगी जीयँय।तब भाई बहिनी मया-परेम ले जुरे राहय अउ बिपत परे एक-दूसर के मदद कर सकय। इही सोच के कहूँ हमर पुरखा मन के पुरखा मन ए रीत बना के रखिन होही। जिनगी म कोनो भी परकार के संकट ले उबरे बर भाई-बहिनी एक-दूसर के चिंता कर सकय।
         राखी के बहाना भाई-बहिनी एक दूसर ल सुरता करय। अउ नानपन के मया दुलार जुरे रहय।भाई-बहिनी के मया-परेम के बँधना राखी के अगोरा सावन के लगते शुरु हो जथे।
       आज जब लोगन के जिनगी जिएँ के स्तर उठे हवै, उँखर आवश्यकता बाढ़ते जात हवै, अइसन म अतका कमई नइ हो सकत हे के कोनो भी बड़का काम अपन तुरते के कमई ले कर सकय।अइसन म भाई-बहिनी के मिलके काम करे ले काम बात काहत निकल जथे। परोसी ल गम नइ मिले। मोबाइल के आय ले रोजेच गोठ बात होय ले भी नता-रिश्ता म दूरी कमतीयागे हे। फेर तइहा जुग म जोरे रखे बर अइसन कुछू नइ रहिन।
           आज राखी के महत्तम दिनोंदिन कलजुग म रावन के अवतरे ले समाज म बाढ़ गे हे। अइसन म राखी के मरम अउ महत्तम ल कमती नइ आँके जा सकय।
        राखी बाँधे के उपहार म नशा छोरे के कसम ले के समाज के कतको बुराई ल घलो मेटाय के काम हो सकत हे। खुदे नशा ले होवइया नाश ले बाँचही अउ दूसरो ल बचा सकत हे।ए बात ल राखी के दिन भाई मन बताय जाना भी संभव हे।
         अभी के समे संसार पर्यावरण असंतुलन ले प्राकृतिक आपदा म घेरी-बेरी फँस जथे। एक कोनटा म बाढ़ हवै त दूसर कोनटा म सूक्खा के रोना हे। ए सब ले बाँचे बर पर्यावरण संतुलन बर रुख राई बचाना जरूरी होगे हे, ए बात ल जानत कतको मन रुख राई ल राखी बाँधथे। जउन मानवता बर जरूरी भी हे। यहू आज राखी ल नवा महत्ता परदान करत हे। एकर स्वागत हिरदे ले करना चाही।

पोखन लाल जायसवाल
पलारी बलौदाबाजार 
छत्तीसगढ़

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