Sunday 23 August 2020

सुरता के बादर(संपूर्ण लेख) -बलराम चन्द्राकर

 


सुरता के बादर(संपूर्ण लेख) -बलराम चन्द्राकर

*छत्तीसगढ़ी काव्य के बदलत स्वरूप*

*लेखक - स्व. हरि ठाकुर*

अनुवाद - बलराम चंद्राकर 
साभार - अमृत कलश(छत्तीसगढ़ साहित्य सम्मेलन 2002 के स्मारिका) 

                ✡️
               सरगुजा के रामगढ़ पहाड़ के खोल (गुफा) मा जउन लेख उत्कीर्ण हे, वो ला 23 सौ साल पूराना माने जाथे। ये हा पाली या अर्धमागधी भाषा मा लिखाय हे। ग्रियर्सन जइसे भाषाविद मन छत्तीसगढ़ी ला अर्धमागधी ले उद्गरे भाषा मानथे।आगू चल के अलग- अलग अंचल मा भाषा के अपन- अपन ढंग ले विकास होइस। तब छत्तीसगढ़ के भाषा कोसली रहिस।छत्तीसगढ़ के पुराना नाव घलो कोसल हरे। एकरे सेती इहां के राजकन्या मन कौशल्या कहलावय। अउ इहाँ के राजा कोसली। अगर ये नाव ला स्वीकार कर लन त छत्तीसगढ़ी हा  तब कोसल राज के अंतर्गत भाषा रहिस। सत्रहवी शताब्दी मा जब ये राज के नाव छत्तीसगढ़ के रूप मा प्रचलित होगे, तब ओकर कोसली घलो छत्तीसगढ़ी कहाय लगिस।छठवीं सातवीं सदी मा अपभ्रंश के विकास होइस। श्रीपुर(सिरपुर) के लक्ष्मण मंदिर के प्रशस्तिकार कवि ईशान ला बाणभट्ट हा अपन मित्र अउ भाषा के कवि बताय हे। *इहाँ भाषा के मतलब वो समय प्रचलित अपभ्रंश से हवै*। आठवीं सदी मा छत्तीसगढ़ मा अपभ्रंश के एक अउ बड़का कवि होइन पुष्पदंत।अपभ्रंश के प्रचलन 11वीं शताब्दी तक रहिस। दसवीं सदी के अंत मा गोरखनाथ होइस। गोरखनाथ घलो अपन जम्मो पद के रचना ला अपभ्रंश मा लिखिन। रतनपुर के कल्चुरि नरेश जाजल्यदेव (1085-1120)हा गोरखनाथ के चेला रहिन। जाजल्यदेव के उल्लेख उज्जैन के मंदिर के शिलालेख मा घलो मिलथे। भरथरी घलो गोरखनाथ के चेला रहिन। छत्तीसगढ़ी मा आजो गाए जाथे-

"बूझो बूझो गोरखनाथ अमरित बानी
बरसे ले कमरा भींजे ले पानी जी।"
वो समय के भरथरी गाथा आज भी छत्तीसगढ़ी मा गाए जाथे।गोरखनाथ के पद अउ भरथरी गाए के परंपरा दसवीं सदी ले आज तक चले आवत हे। एकर मतलब यहू हे कि छत्तीसगढ़ी भाषा दसवीं शताब्दी मा प्रचलन मा आ गे रिहिस। फेर वो समय के कोन्हो लिखित साहित्य उपलब्ध नइ हे।  मुअखरा गोरखनाथ के पद अउ भरथरी लोकगाथा गाए के परंपरा हा आज तक इहाँ प्रचलित हे। एकर आधार मा छत्तीसगढ़ी ला एक हजार साल पुराना माने जा सकत हे। जउन भाषा मा लोक काव्य मौखिक रहिथे वो मा समय के साथ संसोधन- परिवर्धन होवत रहिथे।

*पंद्रहवीं सताब्दी* के महान संत कबीर के सबले बड़े चेला धनीधरम दास के काव्य पद मन मा छत्तीसगढ़ी के प्रभाव हा स्पष्ट दिखथे-

   "गुरू बिन कोन हरै मोर पीरा
रहत अलिन-गलिन जुगन जुग राई बिनत पायेंव हीरा। 
पायेंव हीरा, रहै न धीरा, लेइ के चलेंव, पारख तीरा।। 
सो हीरा साधू सब परखैं, तब से भयेवँ मन धीरा। 
धरम दास बिननै कर जोरी, अजर-अमर गुरू कबीरा।।" 

संत धरम दास के बाद छत्तीसगढ़ी साहित्य के लिखित इतिहास सन् 1900 के आसपास ले ही मिले बर धरथे। सन् 1885 मा जब काब्योपाध्याय हीरालाल हा छत्तीसगढ़ी के व्याकरण लिखिन, त वोमे उदाहरण स्वरूप कुछ गीत लिखिन। फेर वो गीत मन वो समय के प्रचलित लोकगीत रिहिन। अइसे समझे जाथे कि काब्योपाध्याय के ये ग्रंथ ले प्रेरणा पा के ही पं लोचन प्रसाद पांडेय हा घलो छत्तीसगढ़ी मा काव्य सृजन के शुरुआत करिन। लिखित साहित्य के अभाव मा, ढाई - करोड़ बोलइया होय के बावजूद छत्तीसगढ़ी हा बहुत अकन अन्य भाषा, जेंकर कम बोलइया रहिन, ओकरो मन ले पिछुवागे। लोकगीत अउ लोक कथा मन कोनों भी लोक भाषा ला साहित्यिक भाषा के दर्जा नइ दिलवा सकँय। एकर लिए प्रचुर मात्रा मा श्रेष्ठ साहित्य के सिरजन जरूरी हे। 
    
   पं. लोचन प्रसाद पांडेय हा सन् 1904-05 मा साहित्य सृजन करे के शुरुआत करे रिहिन-

 "सुतत हवव नींद के भोर। 
हंडा बटउवा लेगे कोड़।।" 

पं. लोचन प्रसाद पांडेय ला छत्तीसगढ़ी के प्रथम क्रांतिकारी कवि माने जाथे, जउन हा कुम्भकरण कस सोय छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़िया मन ला जगाय के प्रयास करे रिहिन अउ जनता के धियान ला आकर्षित करे के प्रयास करिन , उन चोर मन कोती जउन मन, इहाँ के अथाह संपदा ला लूट डोहार के लेगत रिहिन। पांडेय जी हा अउ बहुत अकन रचना छत्तीसगढ़ी मा लिखिन।उन सब के एकमेंव उद्देश्य रिहिस, 'छत्तीसगढ़ के स्वाभिमान ला जगाना अउ हमार भितरी बइठे बुराई ले सावधान करना' । पांडेय जी पहिली व्यक्ति रहिन जउन इहाँ के कृषि संस्कृति ला फिर से स्थापित कर के गरब करे बर सिखाय के प्रयास करिन। वो पहिली मनखे होइन जउन अपन भाषा बोली छत्तीसगढ़ी मा वंदना गाइन जइसन हम भारत माँ के वंदना करथन-

"जयति जय छत्तीसगढ़ देश 
जनम भूमि सुंदर सुख खान। "
पं लोचन प्रसाद पांडेय के छत्तीसगढ़ी काव्य रचना मन बहुतेरे नीतिपरक हे। नीति परक कविता मन में कलात्मक - सौष्ठव के जगा कम होथे। *छत्तीसगढ़ी काव्य ला कलात्मक सौष्ठव मा ढाले के पहिली श्रेय जाथे पं सुंदर लाल शर्मा जी ला*। उकर रचना-" छत्तीसगढ़ी दान लीला" पौराणिक कथा ला आधार ले के लिखे गेहे। फेर ओमे जउन कलात्मक सौंदर्य हे वो हा, छत्तीसगढ़ी मा अद्भुत काव्य सृजन क्षमता हे, ए तथ्य ला पहिली बार उजागर करिस। ये दृष्टिकोण ले ए काव्य के ऐतिहासिक मूल्य हे। ये ग्रंथ के मूल्य एकर सेती भी महत्वपूर्ण हे कि छत्तीसगढ़ी भाषा भाषी साहित्यकार मन के ए हीन भावना दूर होइन कि छत्तीसगढ़ी मा काव्य रचना कोई महत्व नइ रखै। छत्तीसगढ़ी दान लीला के चहुंओर प्रसिद्धि हा साहित्यकार मन ला छत्तीसगढ़ी मा लिखे बर प्रेरित करिस ।पौराणिक आख्यान उपर आधारित होय के बावजूद छत्तीसगढ़ी - संस्कृति के सम्पन्नता ला उजागर अउ अभिव्यक्त करे के ए ग्रंथ मा गजब प्रयास होय हे। तनिक गोपी मन के चित्रण देखौ-

"काजर आँजे, अलगा डारे, मूँड़ कोराये, पाटी पारे। 
पाँव रचाये, बीरा खाये, तरुवा मा टिकली चटकाये।। 
बड़का टेड़गा खोपा पारे, गोंदा खोंचे, गजरा डारे। 
नगता लाली माँग लगाये, बेनी में फुंदरा लटकाये।। 
चांदी के सूंता चमकाये, गोदना ठांव - गांव गोदवाये। 
दुलरी तिलरी कटवा मोहे, अउ कदमाही सुर्रा सोहे।
पुतरी अउ जुगजूगी माला, रूपस मुंगिया पोह विसाला।। "

*एकर बाद पंद्रह - बीस साल तक छत्तीसगढ़ी काव्य चारण मन तान के सुत गे। अउ ये वो समय रिहिस जब हिन्दी ला राष्ट्र भाषा के रूप मा प्रतिष्ठित करे बर साहित्यकार मन युद्धस्तर मा संघर्ष करत रहिन। पद्मश्री पं मुकुटधर पांडेय, पदुमलाल पुन्नुलाल बख्शी, पं राम दयाल तिवारी जइसन साहित्यकार मन ये कालखंड मा सब ले ज्यादा सक्रिय रहिन। फेर इन हिंदी मा ही लिखैं। एमे कोनों संदेह नइये, हिंदी मा लिख के इतिहास मा इंकर नाव सुरक्षित होगे। फेर ये छत्तीसगढ़ी भाषा - भाषी कवि लेखक मन कोनों छत्तीसगढ़ी मा थोक बहुत घलो लिखे रितिन तो ये 15-20 साल के कालखंड हा सन्नाटा के हवाला नइ होतिस। साहित्य सृजन के अद्भुत प्रतिभा ए साहित्यकार मन मा रहिन।इंकर लेखनी ले हिंदी समृद्ध होइन। फेर महतारी भाषा के चिर प्यासी होठ बर जल के एक बूंद चुहाय के फुरसत इन मन ला नइ रिहिस।प्रतिभा के धनी ये धुरंधर साहित्यकार मन थोर कन भी छत्तीसगढ़ी साहित्य के सुध लेतिन तो आज के पीढ़ी बर इन मन आदर्श रहितिन*। मोर विरोध हिन्दी लेखन ले बिलकुल नइ हे।मोर विरोध हा छत्तीसगढ़ी भाषा के उपेक्षा ले हे। छत्तीसगढ़ी भाषा के काव्य के अवरोध के कारण के निष्पक्ष भाव ले विवेचना होना ही चाही...... 

*1940 के आसपास के काल मा एक नवा पीढ़ी के उदय होइस। ये पीढ़ी छत्तीसगढ़ी भावना ले भरे-पूरे रिहिस। आत्मविश्वास से लबालब*। ए मन छत्तीसगढ़ी काव्य के ध्वजा ला बुलंदी से उठा के अगास मा फहराइन। ये पीढ़ी के अगुवाई करइया मा पं द्वारिका प्रसाद तिवारी'विप्र', कोदूराम 'दलित ', पं. कुंज बिहारी चौबे अउ प्यारे लाल गुप्त प्रमुख रिहिन । इन चारों झन मन छत्तीसगढ़ी के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर रिहिन।

विप्र जी शुरुआत मा हिंदी मा ही लेखन करत रिहिन।फेर उन ला लगिन कि हिंदी अतेक मजबूत हो गे हे कि उॅकर सेवा के जरूरत हा अब ओतेक नइ हे पहिली जइसे।इही भावना हा उन ला छत्तीसगढ़ी कोती झुकाव बर प्रेरित करिस। अउ एक समय के बाद छत्तिसगढ़ी बर पूर्णतः समर्पित होगे। विप्र जी हा छत्तीसगढ़ी काव्य ला जन-मानस ले जोड़े के प्रयास करने वाला पहिली व्यक्ति रिहिन। मोर ये सोच बिलकुल नइ हे कि हिन्दी छंद के प्रयोग ही न किया जाय। फेर छत्तीसगढ़ी लोक छंद के अस्तित्व ला बचा के रखना घलो हमर जिम्मेदारी हरे। सुआ, करमा, ददरिया जइसन लोक छंद हमर सैकड़ों बरस के काव्य परंपरा के देन हरे, हमर पहिचान हरे।

"तोला देखे रेहेव गा
धमनी के हाट में बोइर तरी।"

विप्र जी के ये कविता लोक गीत के उन्मुक्त भाव अउ आनंद हरे। अइसन गीत मन सहजता ले लोगन के कंठ मा बस जथें।
विप्र जी के एक अउ खासियत ये रहिन- 'छत्तीसगढ़ी काव्य मा प्रकृति चित्रण के माध्यम ले कलात्मक सौंदर्य ला अभिव्यक्त करना। 'शरद ऋतु के वर्णन करत लिखिन-

" चउमास के पानी परागे।
जाना-माना अगास हर-
चाँउर सहीं छरागे।।"

राष्ट्रीय जागरण के कविता मन विप्र जी के समय मा बड़ प्रतिष्ठा पाइन। कुंज बिहारी चौबे जी के कविता मन मा राष्ट्रीय चेतना के स्वर मुखर रहै, साथ मा बेहद प्रगतिशीलता भी रहै।

"चल मोर भैया बियासी के नागर"
चौबे जी के ये कविता लोकगीत कस विख्यात हे। कुंज बिहारी जी ला छत्तीसगढ़ी काव्य के पहिली विद्रोही कवि के संज्ञा दिये जा सकथे।

उही पीढ़ी के कोदूराम 'दलित' जी शिष्ट हास्य अउ व्यंग्य ला प्रतिष्ठा देवइया पहिली कवि होइन -

"ढोंगी मन माला जपयँ, लमभा तिलक लगायँ।
हरिजन ला छूवयँ नहीं, चिंगरी मछरी खायँ।।" 
"खटला खोजो मोर बर, ददा बबा सब जाव।
खेकसी साहीं नहीं, बघनिन साहीं लाव।। 
बघनिन साहीं लाव, बिहाव मैं तब्भे करिहौ। 
नई तो जोगी बन के, तन मा राख चुपरिहौं।। 
जे गुण्डा के मुँह मा, चप्पल मारै फट ला।
खोजौ ददा बबा तुम, जो के अइसन खटला।। "

*हिंदी कवि सम्मेलन मन मा धाक जमइया दू कवि रहिन -कोदू राम जी अउ विप्र जी ।विप्र जी ला घलो शिष्ट हास्य अउ व्यंग्य लिखे मा महारत हासिल रहिस। ये दोनों कवि मन, वो काल खंड मा, हिंदी के बीच छत्तीसगढ़ी के अलग पहचान बनाइन।*
*विप्र जी अउ दलित जी के पीढ़ी हर छत्तीसगढ़ी कविता ला गजब प्रतिष्ठा दिलाइन।* युवा पीढ़ी ला छत्तीसगढ़ी मा लिखे के एमन प्रचुर प्रेरणा देइन। एकर बाद तो छत्तीसगढ़ी लेखन हा एक आंदोलन के रूप ले लिन। ये पीढ़ी के हस्ताक्षर मा प्रमुख रिहिन श्याम लाल चतुर्वेदी, हरि ठाकुर, लाला जगदलपुरी, विमल पाठक, भगवती लाल सेन, कपिल नाथ कश्यप, लखन लाल गुप्ता, विद्या भूषण मिश्र, लक्ष्मण मस्तुरिया, नारायण लाल परमार, मेहतर लाल साहू, बद्री बिसाल परमानन्द, हेमनाथ यदु आदि।

ये सबो कवि मन के अपन - अपन शैली हे। विषय मा विविधता हे। सबले बड़े बात छत्तीसगढ़ी काव्य बर समर्पण के भावना हे। श्याम लाल चतुर्वेदी जी मा ग्रामीण जीवन के चित्र खींचे के अद्भुत क्षमता हे। विशेष रूप मा नारी मन के पीरा ला व्यक्त करे के अद्वितीय क्षमता उॅकर कलम मा हे-

"संसार के जतका दुख हे
फेर बेटी ले छोटे
डेरी आँखी फरकत हे, लगये आजे च उन आहीं।
उँकर सुभाव ला जानत हौं, आते च टूरी ला पाहीं।" 

हरि ठाकुर जी के काव्य मा विद्रोहीपन के तेवर देखे बर मिलथे। उंकर कविता राष्ट्रीय अउ सामाजिक विचारधारा के प्रतिनिधित्व घलो करथें।
*1857  भारत के आजादी बर पहिली लड़ाई के योद्धा वीर नारायण सिंह छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद ला, काव्य मा नायक के रूप मा प्रतिष्ठित करइया हरि ठाकुर जी पहिली कवि रिहिन*।छत्तीसगढ़ी गीत मा जतेक प्रयोग उन करिन, शायद ही कोनों करे होहीं। खासकर प्रकृति चित्रण के उॅकर शैली अउ प्रयोग गजब के हवैं-

"बादर मा पर गे हे
आगी के डाँड़ असन।
बादर गँजा गे हे
रुई के पहाड़ असन।।"

धाम कहाँ उतरत हे
अरझे हे झाड़ मा।
छापा अस चटके हे
घाम हा पहाड़ मा।।
बोल असन अटके हे
सुरुज हा ताड़ मा।। "

कपिल नाथ कश्यप जी हा मुख्य रूप ले प्रबंध काव्य के रचइता कवि रहिन। सहीं बात तो ये हे कि छत्तीसगढ़ी मा प्रबंध काव्य मा रचना के कमी हे। प्रचुर मात्रा मा एकर होना निहायत जरूरी हे।सिर्फ *छिर्रा (फुटकर) कविता मन के भरोसा छत्तीसगढ़ी ला साहित्यिक भाषा के दर्जा दिलाय मा ओतेक सहायता नइ मिलय*।द्विवेदी युग मा  अकेल्ला मैथिलीशरण गुप्त के प्रबंध काव्य मन हिंदी ला सामर्थ्यवान बनाय मा अहम भूमिका निभाईस।हाँ, फेर ये बात ला ध्यान रखे के हे कि अगर प्रबंध काव्य कसावटविहीन हे तो वो हा भाषा उपर बोझ घलो बन सकत हे। कपिल नाथ कश्यप जी के 'रामकथा' छत्तीसगढ़ी मा प्रबंध काव्य के उत्कृष्ट उदाहरण हवै। विप्र जी के ही परंपरा मा  विमल पाठक जी छत्तीसगढ़ी लोक छंद मन मा प्रयोग करके अपन एक अलग पहचान बनाइन। प्रकृति चित्रण के पाठक जी के अपन एक शैली हे। भाषा हा गत्यात्मक (Dynamic) भी हे फेर विषय विविधता लाय के प्रयास मा कमी दिखथे।

लोक छंद के सबले ज्यादा अउ बढ़िया प्रयोग बद्रीबिशाल परमानन्द के गीत मन मा मिलथे।परमानंदजी मूलतः भजनहा कवि हरें।उन हा लगभग सौ भजन मंडली के स्थापना करिन।  ये भजन मंडली मन छत्तीसगढ़ी भाषा के बड़ सेवा करे हें। *स्वामी आत्मानंद जी के बहुत स्पष्ट कहना रहिन कि छत्तीसगढ़ी ला लोकप्रिय बनाय मा अउ भाषा के प्रचार-प्रसार मा भजन सर्वाधिक सहायक सिद्ध हो सकथे। सूर, कबीर, तुलसी, रविदास के पद मन एकर उदाहरण के रूप मा हमर सामने हें*। काव्य हा  साहित्यकार तक ही सीमित झन रहै। एकर कोई मतलब नइ होही। जन जन तक पहुँचै, एकर खातिर भजन जइसे लोकप्रिय माध्यम मन के उपयोग करे जाय।
लखन लाल गुप्ता जी ला छत्तीसगढ़ी मा छंद मुक्त नवा कविता  शैली शुरू करे के श्रेय जाथे। छंद मुक्त कविता के मतलब उन्मुक्त हो जाना नोहै। गुनवत्ता के कसौटी मा छंद मुक्त काव्य ला कसना अनिवार्य हे। छंद मुक्त काव्य लिखे ले ही कोनों आधुनिक नइ हो जाय। अउ छंद बद्ध लिखे ले कोनो काव्य पूरातन नइ हो जवय। *नवा-नवा विषय अउ मौलिक शैली ही काव्य ला आधुनिक बनाथे*। छत्तीसगढ़ी मा मुक्त छंद शैली के परंपरा ला नंद किशोर तिवारी, भगत सिंह सोनी, मेहतर लाल साहू, अउ केयूरभूषण मन आगू बढ़ाइन।फेर निराला, मुक्तिबोध, धर्म वीर भारती मन के जइसन साधना के नितांत आवश्यकता हे।

      लक्ष्मण मस्तुरिया माटी के कवि हरे। छत्तीसगढ़ के शोषण ला ले के जतेक आक्रोश मस्तुरिया जी के मन मा हे, वतेक बहुत कम लोगन मा मिलथे। *देश मा छत्तीसगढ़ के अपन पहिचान बनै, ओकर स्वाभिमान अउ पौरुष जागै, ओकर गौरव-गरिमा के रक्षा होवै, ये चिंता हा लक्ष्मण मस्तुरिया जी के कविता मन ला ओजस्वी अउ तेजस्वी बना देथे-*

"अमरित अमरित बाँट-बाँट, मैं जहर पी-पी करिया गेंव
तुम काट-काट के जुरिया गेव, मैं बाँध-बाँध के छरिया गेंव
कंकालिन के आह भभकही, तौ किल्ला तड़क-तड़क जाही
रणदेवी के देखत तुहार,छाती दरक दरक जाही
फेर भागत बन नइ पाही रे, मैं सर्पिन घरे बारी आँव
मैं छत्तीसगढ़ के माटी आँव। "

            ✡️

3 comments:

  1. छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी के सुग्घर गोठबात!

    ReplyDelete
  2. बहुत सुग्घर लेख सर जी

    ReplyDelete
  3. गज़ब सुग्घर सर

    ReplyDelete