Wednesday 12 August 2020

वर्तमान संदर्भ म राम अउ कृष्ण* :एक विमर्श

 *वर्तमान संदर्भ म राम अउ कृष्ण* :एक विमर्श


1, पोखनलाल जायसवाल

       भारतीय लोकजीवन म राम अउ कृष्ण के का महत्तम हे? कोनो ल बताय के जरूरत नइ हे।लोक जीवन के दिन के  शुरुआतेच राम अउ कृष्ण के नाँव ले होथे। बिहनिया ले एक-दूसर ले भेंट होय म सबो *राम-राम*, *जय राम जी की* अउ *जय श्री कृष्ण* ले हाल-चाल जाने बर गोठ-बात ल शुरू करथे। घर म बिहनिया ले कोनो उल्टा-पुल्टा बात हो जथे त बड़े सियान मन कहिथे राम-राम के बेरा ए का होवत हे? अतका ल सुन झगरा-झंझट   घला बंद हो जथे। दशना ले उठतेच साठ कतको मन *राम* नाम के सुमिरन करत धरती दाई के पँयलगी करथे। भारतीय सँस्कृति म जीवन के अंतिम यात्रा घलो राम के नाँव ले होथे, *राम नाम सत हे,सबके इही गत हे।*

      गाँव म विकास के घोड़ा अतेक भारी दौड़े लग्गेहे के गाँव अब अपन चिन्हारी ल अपन दशना के मूरसरिया म छोड़ दौड़े लगे हे। शहर के संगेसँग चले के कोशिश म गाँव एको कदम पिछुवाय रहना नइ चाहत हे। शहरी चकाचौंध म चौंधियागे हे फेर चेथी के ह आगू नइ आत हे। सोचे समझे के शक्ति कमती होगे हे। शहरी रद्दा चलत अपन सँस्कृति रीति-रिवाज अउ परम्परा ल घलो छोड़े लग गेहे। गाँव के मनखे तिर काखरो तिर बइठ के नीति-नियाव, सेवा-जतन अउ समाज खातिर परहित म सोचे बर समय नइ बाँचत हे। नैतिकता जइसे कोनो मेर छुट गे, हे लगथे। एक जमाना रहिस जब दाई ददा अउ सियान मन लइका के नाँव भगवान मन के नाँव ऊपर रखै।उँखर सोंच रहय के मरत खानी लइका के परेम म लइका ल एक बेर देखे के मोह म उँखर नाँव लेके बहाना भगवान के नाँव ले म भव ले तर जबो। लोकजीवन म मान्यता हवै के *जइसे मति, तइसे गति*। मतलब भगवान के नाँव ले भगवान के धाम जाय म कोनो बाधा नइ होय।अइसन मानना हे। समाज म एक ठन सोच अउ हे के जइसे नाम तइसे गुन मिलथे। इही बात ले घलो अपन बुढ़ापा के सहारा बर लइका के नाँव भगवान मन के नाँव ऊपर राखै। एखर फायदा होय के नइ होय भगवान जानै अउ वो मनखे, जेखर सँग अइसन बेरा आइस। *सरग तो मरे के पाछू दिखथे*। उहाँ कोन हे कोन जाने? फेर आज के समय म ए नाँव अब दुर्लभ होगे। अइसे नइहे के मनखे के आस्था अउ विश्वास कमतियागे हे। आज पहिली ले जादा भक्ति भाव देखे म मिलथे। ए भक्ति भाव म श्रद्धा कतका रहिथे उही जाने।

      शहरी रहन सहन बर शहर म बड़े-बड़े बिल्डिंग बनगे फेर ओ बिल्डिंग म एक ठन कुरिया नइ बन पात हे, जिहाँ दाई ददा के रेहे के बेवस्था हो सकै। आज बनवास दाई ददा ल मिलत हे, अपने मिहनत ले सिरजोय घर-द्वार अउ खेती-बाड़ी ले बेदखल होय लगत हे। वृद्धाश्रम म आश्रय ले बर मजबूर हो जथे, त कतको ल बेटा बहू खुदे पहुँचा आथे। बुढ़ापा ल देख आज के बेटा घर-कुरिया, खेती-खार के बाँटा लेत हे। अउ उन ल तिपो के जेवन कराना घलुक धरम नइ मानत हे। सोचे के बात हे एक समय रहिन जब दाई ददा के कहे म बेटा चौदह बछर के वनवास गिस। आततायी भाई के कारावास ले दाई ददा ल मुक्त कराय बर बेटा संघर्ष करिन। फेर आज ए का होगे? ए ग्रहण सिरीफ शहर ल नइ गाँव ल घलो धरे हे। ए सूतक कब उतरही एखर ठिकाना नइ हे।

      आज एक मर्यादित जीवन जीना मुश्किल जरूर हे फेर असंभव नइ हे। हम ए कहिके बाँचे के कोशिश कर सकथन के राम भगवान आय, लीला दिखाना रहिस ते पाय के सब लीला करिन। उँखर जइसे हम नइ जी सकन। फेर कहे जाथे *राम से बड़ा राम का नाम* त इही नाम के सहारा लेके जिनगी जिएँ के जरूरत हे। राम के चरित्र म जम्मो नता-रिश्ता के आदर्श समाय हे। जरूरत हे राम के स्थापित रस्ता म चले के। राम राजा घर अवतरे रहिन फेर बन बन भटकिन ये यहू बताथे के धन दौलत ह हर हमेशा काम नइ आय। अपन हिस्सा के सुख दुख खुद ल भोगना हे। अपन समय के चुनौती ले लड़े म ही रामत्व हे।

        बस एक बात धियान म रखे बर परही। *राम-राम जपना, पराया माल अपना* के चरित्र ल ओढ़े जीयत मन के पहचान होय। जनता छले मत। *खाय के दाँत आने अउ दिखाय दाँत आने।*  जगजाहिर होत हे।अइसन म राम अउ कृष्ण के नाँव ल कलंकित करैया ढोंगी मन समाज ल *दिंयार* कस खा मत डरै चिंता होथे। भगवान के नाँव म कोनो भी ऊपर विश्वास करे के पहिली अपन चेतना ल जागृत करे के जरूरत हे। 

        कृष्ण के जीवन चमत्कार ले भरे पड़े हे।जब जनम धरिन तभे ले  लीलाधर के लीला देखे ल मिलिस। राम अउ कृष्ण दूनो के जीवन लोक हित बर रहिन। मनखे-मनखे एक समान के जौन संदेश संत-महात्मा मन दे हे, उँखर ले पहिली राम जी ह  हर जीव ल महत्तम दे हे। जात-पात के कोनो भेद नइ करिन। मर्यादा म रहिन। राम के जइसे कृष्ण जी अपन समय म आततायी मन के नाश कर मानव कल्याण करिन।कोनो भी घटना ले देखे जा सकथे।धरम रक्षा अउ मानव कल्याण ह जीवन के उद्देश्य रहिन।

        आज समाज अउ देश म कतको रावण, दुर्योधन अउ दुःशासन सरीखे दुरात्मा मन मानवता ल कलंकित करत हें। नारी-अस्मिता ल दाग लगावत हें। साधु के भेष म मारीच हे, जउन राम नाम के जाप कर हनुमान जी ल भटकाय के उदीम करत हे। जउन धरम अउ मानवता के हित म नइ हे।अइसन पापी दुराचारी मन के नाश करे बर अपने भीतर के राम अउ कृष्ण ल पहचान करे के जरूरत हवै।

       एक बात के खच्चित धियान राखे के हे के राम अउ कृष्ण पूरा मानव जाति के आय। काबर के दूनो के जीवन काहन चाहे लीला मानव जाति अउ धर्म के रक्षा खातिर रहिन। ए म काखरो पोगरी बाँटा नइ हे। जेन राम के आय, राम ओकरे ए, जेन कृष्ण के ए ओकर कृष्ण आय।

       पोखन लाल जायसवाल

पलारी  बलौदाबाजार

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

2,नीलम जायसवाल: विमर्श - वर्तमान संदर्भ मा राम अउ कृष्ण

भारत के संस्कृति म राम अउ कृष्ण अइसे रचे-बसे हें, जइसे सागर म नून-अउ शरीर म खून।

   राम अउ कृष्ण के कथा कभू जुन्ना नइ हो सकै। राम भर ल कहे म राम के पूरा चरित्र ओमा समाहित हो जथे। आज भी कोनो पति-पत्नि के जोड़ी ल राम अउ सीता कस कहे जथे। दू भाई के मया ल बताय बर राम-लखन के जोड़ी कहना भर काफी होथे।

   राम के मतलब होथे, मर्यादा पुरुषोत्तम एक आदर्श मनसे। दाई-ददा अउ गुरु के आज्ञाकारी,वीर-धीर, त्याग के मूर्ति।

   अउ कृष्ण, कृष्ण जिहाँ एक नटखट लइका हे, उँहे समय अनुसार सही निर्णय लेहे के समझ बर घलव जाने जाथे।स्वभाव ले ही मया करइया हर,समाज ल गीता के ज्ञान घलव देवत हे। 

   राम अउ कृष्ण के प्रासंगिकता कभू कम नइ हो सकय। समाज म जतका भी बुराई, अपराध बाढ़त जावत हे, अउ आधुनिकता के नाम म पतन के रद्दा धरावत जावत हे। ओतके राम अउ कृष्ण के चरित्र ला आत्मसात करे के

 जरूरत बाढ़त जावत हे।

   मोर विचार ले वर्तमान संदर्भ मा राम अउ कृष्ण के जरूरत बहुत ज्यादा

हे,

नीलम जायसवाल

भिलाई, दुर्ग, छत्तीसगढ़।

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

3,चोवाराम वर्मा  बादल: *वर्तमान संदर्भ मा राम अउ कृष्ण*--- *विमर्श*

-------------------------------------

परमपिता परमेश्वर, सर्व शक्तिमान ईश्वर के ए सृष्टि म नाना रूप म अवतार अउ  अवतार लेये के अनेक कारण बताये गेहे। वो परमेश्वर ह जब -जब जेन प्रकार के जरूरत परथे उही प्रकार ले जन्म ले लेथे।

    भगवान के अनेक अवतार हे जेमा दस ठन मुख्य हे तेन म  ओकर सातवाँ राम अउ आठवाँ कृष्ण के रूप म नरावतार हमर देवभूमि भारत के कन-कन अउ जन-जन के हिरदे म रचे बसे हे।

   वर्तमान संदर्भ म ए दूनो अवतार के नर तन धरे कारण अउ चरित्र ल, देये शिक्षा ल जानना समझना बहुत जरूरी हे।

     गोस्वामी तुलसीदास जी ह राम जन्म के कारण ल बतावत लिखे हे कि -

*जब जब होई धरम की हानि। बाढहिं असुर अधम अभिमानी ।।*

*तब-तब प्रभु धरि विविध सरीरा। हरई कृपा निधि सज्जन पीरा।।*

      महाभारत के रचनाकार श्री वेदव्यास जी ह लिखे हे-  भगवान कृष्ण ह अपन अवतार के कारण बतावत कहे हे कि--

*यदा यदा धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानम धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम।* *परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुष्कृतम् धर्म संस्थापनार्थाय  संभवामि युगे युगे।*

        ए दूनो अवतार के जन्म लेये के मुख्य कारण चरम रूप म नष्ट भ्रष्ट होये *धर्म* के पुनः स्थापना करना अउ धर्म ल नष्ट करइया पापी, अत्याचारी मन ल मृत्युदंड देके ,खासकर *नारी ,साधु, सज्जन ,दीन हीन मन के* उपर अत्याचार करइया मन ल मारके इँकर  मान सम्मान के रक्षा करके सुग्घर *मानवता* ल बँचाना आय।

        श्री राम अउ श्री कृष्ण ल जाने बर उकर देये शिक्षा ल अपनाये बर *धर्म* ल जानना जरूरी हे। इहाँ धर्म के मतलब हिन्दू, मुस्लिम ,सिक्ख, ईसाई, बौद्ध ---आदि नोहय। कोनो भगवान ह ए तथाकथित कलजुगिहा मनखे मन के बनाये धर्म के नाम नइ ले हें।

ऊँकर *धर्म के मतलब तो मनुष्य के आदर्श आचरण जेला हमन मानवता कहिथन* आय। दया -मया,क्षमा, करुणा, सत्य ,अहिंसा, पवित्रता, जियव अउ जियन दव के भावना , ककरो संग भेदभाव नइ करना ,न्याय ,सबके सम्मान करना, माता पिता के सेवा करना उँकर आज्ञा के पालन करना , गुरु भक्ति ,रिश्ता नाता ल यथायोग्य  निभाना, ककरो हक ल नइ मारना, अपन होके जबर्दस्ती लड़ाई झगरा नइ करना फेर कोनो अतलंग करत हे त ओला नइ सहना भले प्रान रहे चाहे जाय, सत्य,न्याय के संग देना, अन्यायी मन के साथ नइ देना , सत्य , न्याय अउ नारी के अस्मिता के रक्षा बर  हिंसा करे ल परय ल पिछू नइ हटना ,भाई भतीजावाद नइ करना ,साफ, सुंदर स्वस्थ रहना------- आदि जतका अच्छा मानवीय गुन हे , मनुष्य के चरित्र के जतका उज्जर पहलू हे, कर्तब्य हे इही मन असली धर्म आय। इही असली धरम ह मनखे ल अउ समाज ल सुख,शांति देथे। तभे *राम राज आथे।*

     भगवान राम अउ कृष्ण ह एकरे स्थापना बर जनम धरथें।इही उँकर नरलीला के शिक्षा आय।

*वर्तमान संदर्भ म राम अउ कृष्ण*---वर्तमान समय म चारों कोती देख लव अधर्म के बोल बाला हे। हाँ अतका बात जरूर हे कि पाँचो अँगरी अभी एके बरोबर नइ होये हे।कभू-कभू, कोनो-कोनो मेर मानवता के ,धर्म के दिव्य दर्शन होवत रहिथे ।फेर अधर्म अउ अत्याचार बाढ़ गेहे।   हत्या ,लूट ,डकैती ,बलत्कार सरे आम होवत हे ,राजनीति छल-प्रपंच ले भर गेहे, जात पाँत के भेदभाव खतम होबे नइ करत हे।अत्याचारी असुर, निसाचर मन अँधेरा कायम रहे के नारा लगावत गली-गली ढिंढोरा पीटत हें।

      तेकरे सेती पूरा मानव जाति अउ समाज दुख के सागर म बूड़त जात हे।

  अगर हमला आज सुख शांति चाही त भगवान राम अउ कृष्ण के चरित्र ले शिक्षा लेके ,असली धरम ल अपना के जिये ल लागही। यदि हम अइसन कर लेन त निश्चित रूप ले राम राज आही, श्री कृष्ण के बँसुरी के मधुर तान चारों मुँड़ा सुनाही।आसा म दुनिया टिके हे-----।

चोवा राम वर्मा'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 शकुन्तला शर्मा

वर्त्तमान सन्दर्भ मा राम अउ कृष्ण 

तुलसीदास हर राम ला परिभाषित करे हे.."प्राण प्राण के, जीवन जी के।" हर युग मा राम आथे, फेर मनखे मन हकन के नइ कह सकैं कि एहर राम ए। राम धीर वीर हें।वोहर समरस हे, समर्थ हे। नीति नेम के रसदा मा रेंगत हे, सबके समस्या के समाधान करत हे। शोषित पीढ़ित अहिल्या के उद्धार करके, राम हर स्वनाम धन्य गौतम ऋषि के अपराध ला रेखाञ्कित करिन हें।

आज के संदर्भ मा बहुत झन होहीं जेमन राम जैसे बुता करत होहीं। दशरथ माँझी जैसे मनखे मा मैं हर राम ला देखथवँ। अइसने अनूठा काम अड़बड़ झन करत हें, वोमन राम के ही वंशज होहीं।
अभी तो रामजी हर अपन नवा घर के रूपरेखा ला देखे मा भरदराय होहीं, उँकर मन मा कई ठन प्लान होही, साज सज्जा के प्रति सजग रहिथें। अड़बड़ दिन ले खड़े - खड़े बिताए हें, अभी आराम करत होहीं।

राम अउ कृष्ण आज भी भगवान माने जाथें। राम यदि मर्यादा पुरुषोत्तम ए, तव कृष्ण बर कोई नियम कानून जरूरी नइए। वोहर जौन कर देथे, तेहर नियम कहाथे।

बलराम भैया हर, अपन बहिनी "सहोदरा" के बिहाव ला दुर्योधन के संग करना चाहत रहिस हे, फेर कृष्ण जानत रहिस हे कि सहोदरा हर "अर्जुन" ला पसंद करथे। वोहर एक ठन प्लान बनाइस, सहोदरा ला अर्जुन के रथ मा चढ़ा दिस अउ कहिस "रथ ला तैं हाँकबे, अउ देवी मंदिर मा जाके तुमन बिहाव कर लेहा।" जब बलराम भैया ल पता चलिस कि अर्जुन हर सहोदरा ल अपन रथ मा लेगत हे, तव वोहर, रथ ला रोके बर सेना भेजिस, फेर सहोदरा हर रथ ला पल्ला भगाइस अउ "सहोदरा- अर्जुन" के बिहाव होगे।
बलराम हर कृष्ण ला खिसियाइस कि "रथ ला रोके काबर नहीं?" तव कृष्ण हर कहिस - "भैया ! आप गलत समझत हव, अर्जुन हर सहोदरा ला नहीं, भलुक सहोदरा हर अर्जुन ला भगा के लेगिस हे। मैं खुद देखे हवँ, आप सेना के कोनो भी सिपाही मेरन पूछ लव।" 

कृष्ण हर मामा कंस के दुराचार से तंग हो के, समुद्र के भीतर मा एक नगर बनवा के अपन "यदुकुल" ला रातोंरात शिफ्ट कर दिन, अउ जब नींद खुलिस तव अपन घर के भोरहा, कपाट खोजैं, अउ कहैं "द्वारि कः ?" अर्थात् वो बखत संस्कृत हर जनभाषा रहिस हे, "दरवाजा कहाँ है ?"
अधमुँधरा मा उठिन , " द्वारि कः ?" कहत - कहत वो नगर के नाम हर "द्वारिका" परगे। 
राम - कृष्ण के कथा अनंत हे। हर युग मा एमन रइहीं।

शकुन्तला शर्मा...

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

चित्रा श्रीवास: **वर्तमान संदर्भ मा राम अउ कृष्ण*

हमर भारतीय जनजीवन मा राम अउ कृष्ण अइसे रचे बसे हे कि राम अउ कृष्ण के बिना भारतीय समाज के कल्पना घलौ नइ करे जा सके ।दू अलग युग त्रेता अउ द्वापर।दू अलग व्यक्तित्व एक धीर गंभीर मर्यादा पुरुषोत्तम आदर्श मनखे अउ दूसर नटखट  लइका ।दूनो अवतारी माने गय हें।अउ दुनो के अवतार के उद्देश्य एके बताये गय हे।धर्म के हानि।इहाँ धर्म के मतलब मनखे धर्म ले हावय।मनखे धर्म का ये।दूसर ला दुख नइ देना, नारी ला सम्मान देना,दूसर के हक नइ मारना, आन के चीज मा लालच नइ  करना, अपन कर्म ला मर्यादित रखना ।अइसे कोनों काम झन करे जाय जेखर ले कोनो ला दुख पहुंचे।हमन राम अउ कृष्ण दुनो के जीवन चरित्र ला सुनथन ता कइ ठन समानता घलौ पाये जाथे।दुनो मा मानवता के  गुण भरे रिहिस।दुनो नारी सम्मान के रक्षा करिन,दाई ददा गुरु ला मान दिहिन।भगवान राम हा तो ददा के बचन के मान राखे बर राज पाठ के सुख ला छोड़ वन मा गइन अउ सबो तरह के पीरा ला झेलिन।दुनो समाज के वंचित वर्ग के सहारा बनिन।
        अभी के समय मा हमर समाज ला दुनो के चरित्र ला आत्मसात करे के जरुरत हे।मन ले भर बस नहीं कर्म ले घलौ।हम अपन कर्म ला सही करके  धर्म ला बचा सकत हन।आज धर्म के मतलब मनखे धर्म नइ रही के आडंबर हा हो गय हे।आज राम अउ कृष्ण के संदेश दया,मया,परोपकार, करुणा, ला मनखे भुलात जात हे।राम कृष्ण के नाम के आड़ मा मनखे अपन रोटी खूब सेंकत हे कभू चुनाव के मुद्दा बना लिये जाथें ता कभू धन कमाय के साधन।आज मनखे ला राम के व्यक्तित्व ले सहनशीलता, त्याग, करुणा दया समरसता के भाव ला अपनाय के जरुरत हे ता कृष्ण जइसे कर्मठता, के जरूरत हे।परमपिता परमेश्वर ये जगत के कर्ता ये,जेहा प्रकृति के कण कण मा चाहे वो जड़ होय या चेतन व्याप्त हे।उही परमपिता त्रिदेव के रूप मा जगत के रचना ,पालन,संहार घलौ करत हे।अउ जब जब पाप बढ़थे,
 धर्म के हानि होथे ता अवतार आथे अउ अधर्मी के संहार करके धर्म यानि कि मनखे धर्म के स्थापना करथे।येखर पहिली कि एक अउ अवतार ला मनखे धर्म ला बचाय खातिर भुइयाँ मा आना पर जाय हम मनखे मन चेत जाइन त बढ़िया हे।प्रकृति  ले छेड़छाड़ के कीमत हमला ओखर नराजगी कभू बाढ़ ,कभू अकाल,कभू सुनामी के रूप मा ता अब कोरोना के रूप मा चुकाय बर परत  हे।राम अउ कृष्ण के संदेश ला जिनगी मा उतार के हम सुखी समाज बनाय सकबो जिहा ऊँच नीच,अमीर गरीब के बीच भेदभाव नइ रइही अउ समता समानता रइही अउ अइसने समाज हा आदर्श समाज कहे जाथे। राम अउ कृष्ण  हमर जनजीवन मा हरदम व्याप्त हें अउ जुग जुग तक रइहीं।


चित्रा श्रीवास
बिलासपुर छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
 बलराम चन्द्राकर : वर्तमान संदर्भ मा राम अउ कृष्ण

राम न्याय प्रिय हे। मर्यादा पुरूषोत्तम ।रघुकुल रीति सदा चली आई। प्राण जाइ पर बचन न जाई।अर्थात राम जन्मजात मर्यादा ले बँधे हे।लाभ हानि माया मोह ले दूर। वंश के मर्यादा सर्वोपरि हे। राम के हर सांस मा संयम हे।

 कृष्ण स्वयं न्यायधीश हे। जग के रीति अउ नीति के बाते नइ करै। कोई बंधन नइ हे। ओकर फैसला ही तात्कालिक परिस्थिति उपर निर्भर हे। कृष्ण सबो कला मा माहिर हे। माखन चोर कृष्ण। धेनु चरैया कृष्ण ।रास रचैया प्रेमी कृष्ण। त्यागी कृष्ण। मायावी  छलिया कृष्ण।विराट स्वरूप धारी गीतोपदेशक कृष्ण। चक्रधारी कृष्ण। सखा कृष्ण।
कृष्ण के जीवन मा घलो वियोग हे, पर छोभ नइये।
ओकर राधा के वियोग ला सिरिफ ओकर मुरली जानथे।कर्म कभू रूकै नहीं।
राम के जीवन चरित्र पहिली ले विधाता लिख दे हे। वियोग संयोग सब विधाता के अधिन।मानव जीवन मा आदर्श गढ़े बर ही राम जन्म ले हे।
राम अउ कृष्ण के संस्कार ये धरती के संस्कार हरे।हमर अपन जीवन शैली हरे। भारत प्रखंड युग युग ले इही संस्कार ला आत्मसात करे हे। राम मा सगुन अउ निर्गुण दोनों हे। राम कभू नइ कहै कि मोला पुजौ। राम कहिथे मोला आत्मसात करौ। राम कभू भेद नइ करै। राम के जीवन कठिन हे पर लक्ष्य तय हे। राम अधीर नइ होय कभू। राम परिश्रमी हे।गुरू के मार्गदर्शन ले राम सबल हे। राजमहल त्याग के राम वनवासी होगे।जीवन पथ मा कतको संगी साथी होगे। राम राह बनाथे।सदैव नारी जीवन के मर्यादा लाज रखैया राम। सीता के सिवाय राम के मन मा कोई नइ हे आजीवन। सीता राममय हे अउ राम हर पल सीतामय। एक राजकुमार अउ राजा के रूप मा ये आदर्श मिसाल हे। 
राम राजा होगे, फेर प्रजा के हित सर्वोपरि हे।
कृष्ण द्वारिकाधीश होगे। दूध दही ले लबालब बृंदाबन के बचपन। कृष्ण के जीवन मा संपन्नता के संदेश हे। ग्वाला के रूप मा भी कृष्ण आत्मनिर्भरता के संदेश देथे।
कृष्ण के प्रेम सब ला लुभाथे।कृष्ण के बाल रूप, ममता मयी दाई यशोदा। बाबा नंदलाल। गोप गोपिका मन के बीच मुरली धारी कृष्ण के जीवन हम सब मा उत्साह उमंग अउ प्रेम के तरंग भर देथे।फेर कर्म क्षेत्र मा उतरते ही कृष्ण ला सिर्फ कर्म ध्येय के ही ध्यान रहिथे। अनुरागी अउ प्रेमी कृष्ण जब युद्ध क्षेत्र मा अर्जुन ला लडे़ बर प्रेरित करथे तब  ओकर गोठ अकाट्य गीता के उपदेश बन जथे। जउन हा जन जन ला जीवन पथ मा कर्म करे बर प्रेरणा देथे। कृष्णा कर्मकांडी बिलकुल नइ हे। कृष्ण कर्म उपर भरोसा करथे। मानव ला संपंन रहे के गुर सीखना हे तो कृष्णमय होना जरूरी हे। कृष्ण सर्वथा आदर्शवादी नोहय। बुराई के नाश बर छलिया घलो हो जथे। आज इहाँ पग पग मा धोखा लालच झूठफरेब के दर्शन होथे तब लकीर के फकीर बनइ घलो ठीक नइहे।कृष्ण लकीर के फकीर नइ रिहिस।
राम अउ कृष्ण के जीवन ही हमर संस्कार अउ संस्कृति हरे। दोनो गुरू से दक्ष हे। दोनों शिक्षित हे। दोनों के मार्ग मा कठिनाई हे। दोनो के जीवन मा वियोग हे। दोनों कर्मठ हे। दोनों पराक्रमी हे। दोनों विजेता ये। दोनो ला संघर्ष के बाद राजपाठ मिले रिहिस।
आज के संदर्भ मा हमन ला इंकर जीवन के हर पहलू के अध्ययन अउ मनन कर के चले के जरूरत हे। सबक ले के हम आगू बढ़बो त हमरो जीवन निश्चित ही सफल होही।
कर्म करौ फल जरूर मिलही। ध्येय निश्चित करौ, मंजिल अवश्य आही।छोट मोटे असफलता सिर्फ सबक हो सकथे, आगू बढ़े के । निरंतर प्रयास करना हमर जिम्मेदारी ये। रूकना मौत चलना जीवन। राम अउ कृष्ण के जीवन घलो इही कहिथे।

बलराम चंद्राकर भिलाई


7 comments:

  1. गद्य खजाना म जगा दे हे बर धन्यवाद गुरुजी

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर गुरूदेव

    ReplyDelete
  3. बहुत सुग्घर गुरुदेव जी

    ReplyDelete
  4. गद्य खजाना मा जघा दीये बर धन्यवाद भाई जी

    ReplyDelete