Saturday 29 August 2020

अब तो चेतव मनखे*- चित्रा श्रीवास

 अब तो चेतव मनखे*- चित्रा श्रीवास


अइसन लागथे कि दूबर मा दू असाढ़ कहावत ला इही समय बर केहे गय हे।एक तो कोरोना महामारी ले पूरा दुनिया थर्रात हे।दिनों दिन संक्रमित मनखे मन के संख्या बाढ़त जात है।अर्थव्यवस्था चौपट हो गिस हे बेरोजगारी के समस्या मुँह फारे खड़े हे।काम धंधा छूट गिस हे।न कहूँ आना ना जाना ,जीव हलकान हे।तीज तिहार, बर बिहाव ,मरनी हरनी घलाव मा कहूँ आय जाय मा जीव काँपत हावय । हे !भगवान हम मनखे मन बर अतका दंड हा का कम रहिस हे कि इन्द्र देव घला रिसा गिन ।कई साल बाद अइसन पानी गिरत हे जेखर सेतिर तलाव, नदियाँ,नरवा ,खचवा, डबरा,के संगे संग बाँध मन घलो लबालब हो गिन हे।कई ठन गाँव मा बाढ़ के पानी घुस गिस हे लोगन ला अपन जान बचाना भारी परत हे। जादा बारिश मा कई जघा फसल हा बरबाद होय लगिस।कोनो साल अतका पानी गिरथे कि फसल बरबाद हो जाथे ता कोनो साल पानी गिरबेच नइ करय सुक्खा पर जाथे ,जामे बीज सूखा जाथे।अतको मा मनखे चेतत नइ हे ।प्रकृति से खेलवार करतेच जावत हे।रुख राई ला काटके बिकास करत हे जेहा वोखर बर बिनास साबित होवत हे।प्रकृति अपन रौंद्र रूप ला देखा के बार बार चेतावत हे फेर मनखे हे कि सुधरबेच नइ करय ।अपन सुआरथ मा मनखे अंधरा हो गय हावय।जंगल ला काट के कंक्रीट के जंगल बसात हे।नदी,नरवा,पहाड़,झील जम्मो प्रकृति के गहना गुरिया ला नोचत जावतहे।इन सब ला कचरा ले पाटत जावत हे।इही कारन ये कि कभू सुनामी ,कभू सुक्खा कभू  बाढ़ कभू महामारी के रूप मा प्रकृति अपन गुस्सा देखावत हे।
           मनखे अभी घलौ समय हे चेत जावव ।प्रकृति के मालिक बनना छोड़ देवव अउ प्रकृति के बेटा बन जावव ।बेटा अपन दाई ला नुकसान नइ पहुंचाय बल्कि ओखर सेवा करथे।हमर संस्कृति मा प्रकृति ला दाई कहे गय हे।प्रकृति दाई के सेवा करके संगे संग अपन बिकास करव, नही ता वो दिन जादा दुरिहा नइ हे जब मनखे के अस्तित्व घलो संकट मा पर जाही।

चित्रा श्रीवास
बिलासपुर छत्तीसगढ़

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